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सोमवार, 29 नवंबर 2021

रचनाकार :-आ. मधुकवि राकेशमधुर मधुकवि राकेशमधुर जी 🏆🥇🏆

((मधुकवि का मधुर गीत))बिषय ((आम आदमी))
गीत
किस तरह जी रहा, आज आम आदमी।।
कितना नाकाम दुनिया में,आम आदमी।।
हमने देखे हैं ऐसे, तमाम आदमी।।

लोग बदनाम होने से,डरते नहीं।।
अच्छे कामों को अब,लोग करते नहीं।।
कैसे -कैसे करे हाय, काम आदमी।।१।।

बिक रहा आम जन, गौर कर देख तू।।
हैं खरीदार कितने, जो सच बेच तू।।
लोग लेते खरीद देके ,दाम आदमी।।२।।

लोग हम जैसे निर्धन , यहां आम हैं।।
बदनसीबी गरीबी , में गुमनाम हैं।।
कैसे रोशन करे अपना, नाम आदमी।।३।।

रात-दिन दौड़ता, भागता फिर रहा।।
पेट भरने को सौ-सौ , जतन कर रहा।।
देखा बेचैन सुबहा से, शाम आदमी।।४।।

जिंदगी कितनी मायूस, लोगों की है।।
दुनियां आसक्त हाये रे, भोगों की है।।
आदतों का रहा हो,गुलाम आदमी।।५।।

जब बहकता है ये, आमजन रोषकर।।
जाये झुक एक राजा भी , अनुरोध पर।।
दे लगा बिगड़े जब ,जाम आम आदमी।।६।।

किस तरह जी रहा, आज आम आदमी।।
कितना नाकाम दुनिया में आम आदमी।।

((मधुकवि राकेशमधुर मधुकवि राकेशमधुर ))

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