यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 2 दिसंबर 2021

रचनाकार :- आ टी. के. पांडेय जी 🏆🥇🏆

आम आदमी

___

लेखन द्वारा टी के पांडेय
दिल्ली
___
कलम को समर्पित
___

आम आदमी का क्या कीमत, दर दर ठोकर खाता जाता। 
इधर, चपाता लगा रहा है, उधर चपाता और लगाता। 

शेष हाथ खाली खाली है, मन की वह मुश्कान कहाँ है
आम आदमी हूँ मै साहब, मेरा वह पहचान कहाँ है। 

सड़कों के झोपड़ पट्टी में, सदियों से मैं रहता आया। 
आम आदमी हूँ, मै भाई । 
झूठे वादों से नहलाया। 

दर्द ,व्यथा ,वेदना सहुँ मैं, छल प्रपंच सर नहीं कहीं है। 
दो लत्ति खाता हूँ भाई, कह कर जाता जिसका जी है। 

आम आदमी की ताकत को देखा नहीं, दिखाता हूँ मैं
मैने ही सरकार बनाई, गीत ध्वनि की गाता हूँ मैं। 

आम आदमी, आह सुना क्या, ईश्वर भी आ कर बसते हैं। 
मेरी झोपड़ में आ देखो, आम लीची कितने ससते हैं। 

__
त्रिपुरारी
___

मंगलवार, 30 नवंबर 2021

रचनाकार :-आ. कैलाश चंद साहू जी 🏆🥇🏆

मै आम हूं मै फिर भी काम हूं
सबके दिलो का जरा खास हूं।।

मैं आम हूं इसलिए दास हूं
करता नहीं जी हुजूरी बदनाम हूं।।

मेहनत की कमाई मेहनत की रोटी
इसलिए खास होते हुए भी दूर हूं

पल पल ख्वाब सजाता बस वास हूं
जिंदगी का सफर सुन्दर अहसास हूं।।

रचनाकार :- आ. रंजीत सिंह जी 🏆🥇🏆

आम आदमी को भी अधिकार,मत समझो उसको बेकार !

जीता वो भी अपना जीवन,पाले रखता अपना परिबार !

आम आदमी भी होते महान,जग करता उनको भी प्यार !

उनका वैभव भी गौरब शाली,जग करे नमस्कार !

संन्तोष करे आम आदमी,दुख सुख तो
है उसके यार !

रचनाकार :- आ. प्रबोध मिश्र हितैषी जी 🏆🥇🏆

नमन कलम बोलती है 
मंगलवार/30.11.2021
विषय-आम आदमी
विधा--मुक्तक
1.
आम आदमी के लिए, बने सभी कानून ।
भुजबल धनबल को सदा, हो जाते ये ऊन ।
अगर व्यवस्था चाहिए, रहें नियम के साथ -
नियम अगर तोड़ा नहीं, दंड न होगा दून ।
2.
साधारण दिखता भले, करतब करे अनंत ।
अपने अपने विषय के, ज्ञानी और महंत ।
ज्ञान और सँसाधन जो, बॉटे दिन औ रात -
आम आदमी से अलग, होता असली पंत ।

**********************************
      प्रबोध मिश्र ' हितैषी'
बडवानी (म. प्र.) 451551

रचनाकार :- आ. ब्रह्मनाथ पाण्डेय' मधुर जी 🏆🥇🏆

क़लम बोलती है साहित्य समूह
दिनांक:-30-11-2021
बिषय:- आम आदमी
विधा:- कुंडलियाँ
क्रमांक 366

आम आदमी के लिए, क्या     करती सरकार|
अनुदानों की सूचियाँ, बिल्कुल     हैं    बेकार||
बिल्कुल हैं    बेकार, बड़ी     गहरी है    खाई|
भ्रष्टाचार       पहाड़, कठिन है     बड़ी चढ़ाई||
कहें' मधुर' कविराय, चकित है देख यह जमीं|
लगता   है   लाचार, आजकल  आम आदमी||

               स्वरचित/ मौलिक
              ब्रह्मनाथ पाण्डेय' मधुर'
ककटही, मेंहदावल, संत कबीर नगर, उत्तर प्रदेश

रचनाकार :- आ. मूरत सिंह यादव जी 🏆🥇🏆

#हे मां सरस्वती 🙏
#कलम बोलती है साहित्य समूह को सादर नमन 🙏
दिनांक- 30 /11/2021
दिन- मंगलवार
विषय- आदमी
विधा-दोहा
***************
महंगाई के दौर में,आम आदमी हैरान।
पैसा बचे न जेब में,मंहगाई शैतान।।1
महंगाई बैरन बड़ी,करती खाली जेब।
नेता संसद बैठ के,करते जाल फरेब।।2
भारी अब लाचार है,आम आदमी का वंश।
आम आदमी को ड़स रहा,मंहगाई का दंश।।3
अतिथि का स्वागत भला,महंगा होता एक।
आम आदमी रोने लगा,सुन कड़की की टेक।।4

स्वरचित दोहे/मौलिक
मूरत सिंह यादव
प्राथमिक शिक्षक
दतिया मध्य प्रदेश

रचनाकार :-आ अल्का मीणा जी 🏆🥇🏆

नमन मंच कलम बोलती है
विषय- आम आदमी
विधा- स्वैच्छिक
दिनांक- 30/11/2021
 दिवस-मंगलवार

सादर अभिवादन 🙏🏻

हाय यह महंगाई,हाय यह महंगाई
खर्चे हैं ज्यादा और आधी है कमाई।

कटौती करें तो करें कहां भाई
महंगा हो रहा जीवन यापन,
महंगी होती जा रही
बच्चों की पढ़ाई।

उच्च निम्न आज हर कोई
झेल रहा महंगाई की मार,
महंगाई बढ़ती ही जा रही
होकर घोड़े पर सवार।

महंगाई की मार से
हर कोई है हारा,
लेकिन सबसे ज्यादा पिस रहा
आम आदमी बेचारा।

कोई तो हो जो
करे कुछ उपाय,
आजकल कोई मुद्दा नहीं
महंगाई के सिवाय।

अल्का मीणा
नई दिल्ली
स्वरचित एवं मौलिक रचना

रचनाकार :- आ. मंजु टेकड़ीवाल जी 🏆🥇🏆

#नमन मंच 
#कलम बोलतीं है साहित्य समूह 
#विषय क्रमांक-366
#विषय-आम आदमी 
#विधा-कवि 
#दिनांक-30.11.21
#दिवस-मंगलवार  

आम आदमी इज्जतदार सीधा साधा। 
मेहनत करता भावनाओं को मारता।।
तन व पेट चिन्ता से कभी न उभरता।
विकास की सुविधा से वंचित रहता ।।

 शिक्षित बच्चों को कभी न कर पाता।
 परिवार केवल घुट घुट कर जीता।।
अरमानों से इस का नहीं कोई नाता।
पढ़ाई लिखा रईस इन से कतराता।।

कभी बदलेगा समय आस में जीता।
गरीबी,बीमारी,मौसम मार झेलता।।
केवल कठिनाइयों से इस का नाता। 
थोड़े में जीने की कला हमें सिखाता।।

स्वरचित एवं अप्रकाशित मंजु टेकड़ीवाल कोलकाता।

रचनाकार :- आ. अनुराधा प्रियदर्शिनी जी 🏆🥇🏆

नमन मंच🙏🙏🙏#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह
दिनांक:30/11/2021
विषय:आम आदमी
विधा:- कविता

आम आदमी ही तो संघर्षों से जूझता है
जो मुश्किलों से नहीं डरता वहीं मंजिल को पाता है
आम आदमी ही तो एक दिन खास बनता है
इतिहास में अपना नाम अपने जज्बे से लिखता है
दाल रोटी खाकर प्रेम जग में बांटता है
आम आदमी ही मुश्किल हालातों में साथ रहता है
हिमाचल सा खड़ा हर तुफान से लड़ता है
आम आदमी ही वादा तो हरदम निभाता है
कभी आसमां छूता कभी सागर में गोते लगाता है
आम आदमी ही तो चांद पर पहुंचा है
हर दिन नए सपने संजोए उनको पूरा करता है
आम आदमी ही एक दिन खास बनता है

स्वरचित एवं मौलिक रचना

    अनुराधा प्रियदर्शिनी
  प्रयागराज उत्तर प्रदेश

रचनाकार :- आ. प्रमोद तिवारी जी 🏆🥇🏆

नमन मंच 
#कलम बोलती है साहित्य समूह
दिनांक-30/11/2021
दिन-मंगलवार
विषय-आम आदमी
विधा-कविता
विषय क्रमांक-365

 मौसम बदला आम आदमी याद आ रहा है
लगता है देश में फिर कोई चुनाव आ रहा है
तभी आम आदमी जुवां पर नाम आ रहा है
किसी ने सुध ना ली कहाँ मातम मना रहा है

चुनावों में आम आदमी का मुद्दा छा रहा है
हर दल इनको लुभावने सपने दिखा रहा है
आम आदमी के मन में उम्मीद जगा रहा है
लगता है देश में फिर कोई चुनाव आ रहा है

आम आदमी नाम पर खास बन जा रहा है
आम आदमी बदहाली पर आंंशू बहा रहा है
कैसा संयोग है वह लगातार ठगा जा रहा है
लगता है देश में फिर कोई चुनाव आ रहा है

हाड तोड़ मेहनत का फल वो कहाँ पा रहा है
उनके दर्द को क्या कोई नेता बाँट पा रहा है
पिता की दवा बच्चों की फीस कहाँ दे रहा है
लगता है देश में फिर कोई चुनाव आ रहा है

स्वरचित एवं मौलिक रचना
प्रमोद तिवारी
दिबियापुर
औरैया
उत्तर प्रदेश

रचनाकार :- आ. अनिल मोदी जी 🏆🥇🏆

कलम बोलती है साहित्य मंच
तिथि ३० - ११ - २०२१
विषय आम आदमी
विधा
आम आदमी त्रस्त है।
 महंगाई से पस्त  है।
दिवा स्वप्न दिखाये नेता,
वातानुकुल में मस्त है।
हौसले सबके पस्त है।
जीवन में कितने कष्ट हैं।
भागदौड़ की जिंदगी में,
सब अपने दुख: सै पस्त है।
ना कह सके ना सह सके,
ना हंस सके ना रो सके, 
एकल परिवार में व्यस्त है।
बात-बात में तुनक मिजाज,
तलाक की देहरी छुते है।
फैशन की दौड में ,
हर कोई चाहे अव्वल दिखना,
जेब है सक्षम तो जिन्दगी मस्त है।
 पति पत्नी और बच्चा महंगी पढाई जीना ध्वस्त है।
दोनो करते नौकरी, बच्चा,
शिशुआलय में पलता,
मोबाइल लेपटॉप की जिन्दगी जीता,
मदरस् डे,  फादर्स डे का इंतजार है।
आम आदमी की विरानी जिन्दगी हरियाली कम, पतझड ज्यादा है।
अनिल मोदी, चेन्नई ३

रचनाकार :- आ रजनी कपूर जी 🏆🥇🏆

नमन मंच🙏🙏
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय-आम आदमी
दिनांक-30/11/2021
क्रमांक-365

आम आदमी

घिसटतें ,चलते दौड़तें ,भागतें
क्षण-क्षण समय के साथ
चाहे समय दे ना साथ
जिम्मेदारियों संग रहते सदा गतिमान
क्योंकि मैं ही तो हूँ आम आदमी

खुशी हो या गम
स्वस्थ हो या अस्वस्थ
गाते रहते हरदम
सबका रख ध्यान
मुख में रख मुस्कान
क्योंकि हम ही तो है आम आदमी

विपदाएं आती चली जाती
चट्टान सा हमें पाती
रोज़ का किस्सा यही 
हो जाते अभ्यस्त सभी
क्योंकि हम ही तो है आम आदमी

रजनी कपूर

रचनाकार :-आ रूपेन्द्र गौर जी 🏆🥇🏆

नमन- कलम बोलती है साहित्य समूह
दिनांक -30/11/2021
विषय -आम आदमी। 
विधा-गीत।
समीक्षार्थ,

आम आदमी के दम पर ही, चलती है सरकार यहाॅं।
पर उसी पर होते रहता, जमकर अत्याचार यहाॅं। 

आम आदमी को जरा भी, मिलता नहीं सुकून है। 
भागता रहता साल साल भर, क्या अगस्त क्या जून है।
होती उसके वोट की कीमत, उसकी कीमत शून्य है। 
जिसे जरूरत वही चूसता, उसका मीठा खून है।
पर उसकी कीमत का होता, है ना कुछ सत्कार यहाॅं।
आम आदमी के दम पर ही, चलती है सरकार यहाॅं। 

इधर से उधर उधर से इधर, फुटबाल बनाया जाता है। 
चुनावी सीजन में उस पर फिर, दांव लगाया जाता है।
वोट नाचने के लिए उसे फिर, खूब रिझाया जाता है। 
पश्चात चुनावों के उसको फिर से ठुकराया जाता है।
पर उसकी नैया के वास्ते, हरदम है मझधार यहाॅं।
आम आदमी के दम पर ही, चलती है सरकार यहाॅं।

जितनी बढ़े सैलरी उससे दुगनी महंगाई की मार।
पूछो तो कैसे चलता है आम आदमी का परिवार। 
तेल खरीदे गैस खरीदे या खरीदे मोटर कार। 
आखिर किससे आम आदमी मुश्किलों में करे पुकार।
उसकी तकलीफों का रहता, सदा ही पारावार यहाॅं।
आम आदमी के दम पर ही, चलती है सरकार यहाॅं। 

आम आदमी के जीवन में, आता नहीं उछाल है।
वही अचार वही रोटी सब्जी, वही चटनी हुई दाल है। 
कभी खत्म ना होने वाला, हरदम खड़ा सवाल है। 
देखो जाकर उसको जब भी, वही हड्डी वही खाल है।
आम आदमी होते रहता, हर दम ही लाचार यहाॅं। 
आम आदमी के दम पर ही, चलती है सरकार यहाॅं।

रूपेन्द्र गौर, इटारसी, 8871675954
स्वरचित एवं मौलिक

रचनाकार :- आ. बीना नौडियाल खंडूरी जी 🏆🥇🏆

नमन् मंच🙏.
कलम बोलती है साहित्य समूह.. 
क्रमांक.. 365 . 
# विषय.. आम आदमी.

आम आदमी, खास आदमी.
ये तो जग- रीत से, 
नियम- सिद्धांतों में, 
उलझी हुई, आम आदमी, 
   की ज़िन्दगी.. 
क्यों है? कोई आम आदमी, 
क्योंकि उसकी कोई पहचान नहीं..... ??
या उसकी कोई पहुँच नहीं?? 
ईश्वर ने अपनी कृति में, 
भेद ना कोई किया.. 
इंसान को एक जैसा ही बनाया.. 
कर्म उनके नाम किया.. 
क्यों ऐसा है?? 
कि गुनाह करके भी, 
स्वतंत्र है खास आदमी.
और बेगुनाह होने पर भी
सजा पा जातें हैं आम आदमी.... 
हर काम में, हर क्षेत्र में... 
उपेक्षित होता रहा, 
आम आदमी.. 
यही अब मेरी नियति है,... 
संतुष्ट होता है, आम आदमी.. 
  
मेरी लेखनी... ✍
बीना नौडियाल खंडूरी🙏🌹...

रचनाकार :- आ. संगीता चमोली जी 🏆🥇🏆

नमन मंच
 कलम बोलती है साहित्य समूह
दिनांक-30-11-2021
विषय आम आदमी
विधा कविता

हम सब आम आदमी है।
जिंदगी भर बोझ उठाते हैं।
कभी किसी को नहीं सताते हैं।
सदा लक्ष्य प्राप्ति करते हैं।

सेवा धर्म कर्म पर विश्वास करते हैं।
सत्संग में बढ़ते रहते हैं।
सबका कल्याण करने हेतु ही।
अनंत दुख खुशी से सहते हैं।

स्वयं को कष्ट पहुंचा कर।
परिवार के लिए जीते हैं।
मेहनत हक का खाते हैं।
नहीं किसी से छीनते हैं।।

यदि जीवन में दुखा जाए।
यही भाग में ,,खुशी से झेलते हैं।
एक दूजे के दुख में आम आदमी।
परिस्थिति को समझे,रोता है।

रिश्ते नाते को सदा निभाते हैं।
मान सम्मान को करते कराते हैं।
सपनों की मंजिल पाते हैं।
भेदभाव कभी भी नही करते हैं।

स्वरचित मौलिक तथा अप्रकाशित
संगीता चमोली देहरादून उत्तराखंड
ब्लॉग प्रस्तुति हेतु सहमति है।

रचनाकार :- आ. डॉ. अवधेश तिवारी भावुक जी 🏆🥇🏆

नमन मंच
विषय क्रमांक-366
30/11/2021
विषय-आम आदमी

आम आदमी

मैं कोई कवि नहीं
जिसकी कविता पर वाहवाही हो,
मैं कोई राज नेता नहीं
जिसके भाषण पर गड़गड़ाती तालियाँ हो,

मैं हूँ एक आम आदमी
जिसको कोई पूछता नहीं,
जिसको कोई पूजता नहीं,

जिसे कोई जानता नहीं,
जिसे कोई पहचानता नहीं,

जो रोज कुनबे भर की जरूरतें पूरी करता है,
जो रोज बढ़ती मँहगाई में उलझा रहता है।

बस अपनी मेहनत 
अब छोटी लगने लगी है,
कीमतें आसमान छूने लगी है।

मैं कौन हूँ
ये तो मैं भी नही जानता।

सरकार कहती है
की मैं एक आम आदमी हूँ।

हाँ मैं हूँ आम आदमी

जो खास आदमियो के काम आता है,
सड़को पर आजकल
धरने प्रदर्शनों के लिए जाना जाता है।

परवाह किसी को नहीं मेरी,
लेकिन हर जगह बात मेरी ही होती है...

डॉ.अवधेश तिवारी "भावुक"

रचनाकार :- आ. छगनलाल मुथा जी 🏆🥇🏆

#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह 
विषय:- आम आदमी
विधा- हाइकु
दिनांक ३०/११/२०२१
**************************
आम आदमी
जीवन में लिखा है
करना श्रम।

बडा भोला है
फंस जाता किसी भी
झूठे वादों में।

परिवार को
कैसे खुश रखना
एक ही ध्येय।

रोजी-रोटी का
कैसे हो बंदोबस्त
आज का दिन।

नहीं सोचता
कभी बुरा किसी का
समय नहीं।
************************"*
स्व रचित- कवि छगनलाल मुथा-सान्डेराव (ओस्ट्रेलीया)

रचनाकार :- आ. दिनेश प्रताप सिंह चौहान जी 🏆🥇🏆

"नमन कलम बोलती है साहित्य समूह"
29/11/2021--सोमवार
दैनिक विषय क्रमांक=365
विषय=आम आदमी
विधा=स्वैच्छिक
प्रतियोगिता एवं समीक्षा हेतु 
===================================
मँहगाई से हलकान है,......ये आम आदमी,
हैरान परेशान है,........... ये आम आदमी।
कुर्सी के खेल में न इसका,कोई पुरसाहाल,
बस वोट का सामान है,...ये आम आदमी।
नीचे से ऊपर जाने में,.... रहता सदा लगा,
उलझाए इसमें जान है,...ये आम आदमी।
बस बनाता रहता है बजट,... पूरी ज़िंदगी,
एक गरीबी पुराण है,.....ये आम आदमी।
दो कमरे के मकान का ही,ख़्वाब उम्र भर,
एक अधूरा अरमान है,...ये आम आदमी।
===================================
"दिनेश प्रताप सिंह चौहान" (स्वरचित)
(एटा=यूपी)

रचनाकार :-आ राम गोपाल प्रयास जी 🏆🥇🏆

नमन -मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय-आम आदमी
दिनांक-३०/११/२१
विधा-मुक्तक
समीक्षार्थ

आम आदमी भी ह़ै आदमी भ़ूल क्यों जाता है‌ तू ।
अपनी कारग़ुजाऱियों से क्यों उसको डराता है तू ।
आम आदमी क़ी आहों से मत खेल कल पछताएगा -
क्यों कर के उसके अश्कों को दिन- रात बहाता है तू ।।

आम आदमी जानवर नहीं, आदमी तो ह़ै ।
तेरे जितना पढ़ा नहीं पर, आदमी तो ह़ै ।
करत़ा है बहुत कम ‌बेईम़ानी और गुस्ताखियां -
नहीं है द़ौलतमंद तो क्या ,आदमी त़ो है ।।
स्वरचित
रामगोपाल प्रयास 
गाडरवारा मध्य प्रदेश

रचनाकार :- आ. ज्योति विपुल जी 🏆🥇🏆

नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह,
दिनांक-३०/११/२०२१
दिन-मंगलवार
विषय-आम आदमी
विधा-कविता
विषय क्रमांक-365

आम आदमी हूं,पर दिल का राजा हूं,
दिल पर राज करता हूं,सबको जोड़े रखता हूं,
अभिमान से कोसों दूर, सबसे मित्रता निभाता हूं ,
प्यार है मुझे पसंद, नफरत को करता हूं दूर ।
आम आदमी हूं मैं, आम आदमी हूं मैं ।

अतिथियों का स्वागत करता हूं,
बड़े बुजुर्गों का सम्मान करता हूं,
संतोष, समाधान है मेरी पूंजी,
बीवी, बच्चों को देता हूं खुशी ।
आम आदमी हूं मैं, आम आदमी हूं मैं ।

आम आदमी हूं, महंगाई से डरता हूं,
महंगाई भी खर्चों में कटौती कर परिवार को खुशियां देता हूं,
सकारात्मकता है मेरा मित्र, हमेशा मुस्कुराता हूं,
संकटो से नहीं डरता मैं, हिम्मत से काम लेता हूं ।
आम आदमी हूं मैं, आम आदमी हूं मैं ।

स्वरचित,मौलिक, अप्रकाशित मेरी रचना ।
ज्योति विपुल जैन
वलसाड (गुजरात)

रचनाकार :- आ. देवेश्वरी खण्डूरी जी 🏆🥇🏆

#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह 
#मंच_को_प्रणाम 
दिनांक:30/11/2021
विषय:आम आदमी
_________________________________________
आम आदमी को परेशानियों का सामना करना पड़ता, परिश्रम बहुत करता ,
फल बहुत कम मिलता ,
दो वक्त की रोटी का गुजारा मुश्किल से होता ,
आम आदमी बेबस होता ,
आम आदमी का दर्द हर कोई नहीं समझता ,
कभी किसी का शोषण नहीं करता ,
दूसरों के दुख को अपना समझता ,
अपने गम को भूल कर ,
ओरों को हंसाता रहता,
आम आदमी साधारण रहता ,
सपने अच्छे सजाता।
__________________________________________
देवेश्वरी खंडूरी
 देहरादून उत्तराखंड
स्वरचित रचना।

रचनाकार :-- आ. भगवती सक्सेना गौड़ जी 🏆🥇🏆

नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय आम आदमी
30 नवम्बर
क्रमांक 365

आम आदमी 

एक चौराहे पर आम आदमी बैठे बतिया रहे थे, पहले घर, बडी कार, महंगे ब्रांडेड कपडे और सोना नही खरीद पाता था तो क्या हुआ ? हम लोग सब्ज़ी तो झोले भर भरकर लाते थे, पर अभी कई दिनों से टमाटर खरीदना भी दुर्लभ हो रहा।

स्वरचित
भगवती सक्सेना गौड़
बैंगलोर

रचनाकार :- आ मंजू लोढा जी 🏆🥇🏆

नमन मंच
शीर्षक – आम आदमी
दिनांक – 30 नवम्बर 2021

अक्सर जब भी कोई किसी से पूछता है,
कि कौन हो तुम ?
तब वह कहता हैं कि आम आदमी हूं। भीड़ का एक अंश होकर भी भीड़ में अकेला हूं।
नित्य सुबह उठता हूँ,
जीवन की भट्ठी में तपता हूँ,
रूखा-सुखा जो मिला,
उसी में जीवन काटता हूँ।
न महलों की ख्वाइश है,
न हीरे-मोती की चाह है,
दो जून रोटी मिले सकून से,
प्रभु से बस यही आस है।
आम आदमी कि विवशता है,
ना वह भीख मांग सकता है,
ना अपनों को भूखा सुला सकता है,
परिवार के दायित्वों तले,
वह नित्य पीसता है,
इमारत, सड़क, बाजार,
मिल, कल-कारखानों में वह, 
मशीनों जैसा पीसता है,
सोचता है क्या वाकई वह इंसान है? 
कभी-कभी तो वह,
आंसूओं के संग-संग, 
खून के घूंट भी पीकर रह जाता है,
प्रेम के दो शब्दों पर,
आम आदमी बिना मूल्य बिक जाता है।
- मंजू लोढ़ा, स्वरचित

रचनाकार :- आ. नंदिनी लहेजा जी 🏆🥇🏆

नमन कलम बोलती है
मंगलवार/30.11.2021
विषय-आम आदमी

हां इस भारत देश का, एक आम आदमी हूँ मैं। 
मन में कई सपने परन्तु, यथार्थ में संघर्षों का मारा हूँ मैं। 
कहते सुबह के सपने होते सच है,पर तड़के जल्दी उठ जाता हूँ मैं। 
उठो! अब पानी आने का टाइम हो गया,
श्रीमतीजी की आवाज़ को अलार्म जो समझता हूँ मैं। 
हां इस भारत देश का, एक आम आदमी हूँ मैं। 
बेटे को समय से स्कूल छोड़कर आना, 
चाय के साथ अख़बार के पन्ने पलटना, 
अरे! थोड़ा सब्जी कटवा दो मुझे, न कहना देर हो गई। 
 मधुर वाणी से हड़बड़ा जाता हूँ मैं। 
 हां इस भारत देश का, एक आम आदमी हूँ मैं। 
नित पेट्रोल के दामों ने, जेब काट दी है। 
रसोई गैस,और बिजली बिल के बढ़ते भाव ने,
ज़िन्दगी दुश्वार कर दी है। 
ऊपर से ऑनलाइन क्लास के लिए मोबाइल रिचार्ज,
तो दूजे तरफ स्कूल में फीस भी भरनी हैं। 
क्या खाऊंगा और क्या मैं बचाहूँ, कश्मकश में सदा रहता हूँ मैं। 
 हां इस भारत देश का, एक आम आदमी हूँ मैं। 
ऑफिस किसी दिन जो, देर से पहुँचता। 
बॉस की तीखी नज़रों से,स्वयं को बचता। 
 पैसे ना काट जाएँ,गर छुट्टी करी तो, 
प्रमोशन के लिए, कड़ी मेहनत करता हूँ मैं। 
हां इस भारत देश का, एक आम आदमी हूँ मैं। 
मुझे देश के उच्च वर्ग से, कोई बैर नहीं। 
मैं ठहरा आम आदमी, क्या टिपण्णी करूँ, वर्ना खैर नहीं। 
निर्धन तबके के लिए फिर भी, राशन मुफ्त है। 
यहाँ तो प्याज़ टमाटर के बिना सब्जी से स्वाद लुप्त हैं। 
emi पटाऊँ ,या lic भरूँ,
मैं आम आदमी, बेचारा क्या क्या करूँ। 
फिर भी समाज में अपने परिवार के, मान को ना झुकता हूँ मैं। 
हां इस भारत देश का एक आम आदमी हूँ मैं। 

नंदिनी लहेजा 
रायपुर(छत्तीसगढ़)
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

रचनाकार :- आ. सत्या पांडे जी 🏆🥇🏆

नमन मंच 
विषय आम आदमी

इस महगाई के दोर से
परेशान है आम आदमी
कभी महगाई ,कभी महामारी
चारो तरफ मची अफरातफरी
सब का जीवन तबाह हो रहा है
इस मुसीबत से परेशान हर आदमी
सबसे अच्छा ऐशो आराम मे
मिलता नेता अभिनेता मे
गरीब की पुकार कोन सुनता
जयकार होती जो है खास आदमी ।।

सत्या पांडेय 
वाराणसी

रचनाकार :- आ. अल्का गुप्ता "प्रियदर्शिनी " जी 🏆🥇🏆

नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय+- आम आदमी
दिनांक-30/11/2021
विधा-स्वैच्छिक
विषय क्रमांक-365

आम आदमी
***********

आज परेशान बड़ा  आम आदमी
मंहगाई का मारा है आम आदमी
कुरीतियों से जूझता आम आदमी
सुविधा से अंजान है आम आदमी

सुख है कोसों दूर दुख है सम्मुख 
सबसे ज्यादा कष्ट में आम आदमी
गरीब जनों को सरकार भी देती
अमीर जिए खुश हाल सदा ही

आम आदमी मध्यम वर्ग का
मरता रहता मध्य में पिसकर
मांग न पाए हाथ फैला कर
शर्म में डूबा है आम आदमी

प्यार दिलों में बनाए रखता
नफ़रत नहीं किसी से करता
मदद सभी की है वह करता
फिर भी पिसता आम आदमी

मिलकर समाज संग रहता
सुख दुख में साथ निभाता
अच्छा बुरा वक्त है बिताता
कभी न हारा आम आदमी

करें कटौती घर के खर्चों में
कम खाए कम खर्च है करता
देखें अलका इस दुनिया में
अधिक कष्ट में आम आदमी।

अलका गुप्ता 'प्रियदर्शिनी'
लखनऊ उत्तर प्रदेश।
स्व रचित
@सर्वाधिकार सुरक्षित।

समीक्षार्थ 🙏

सोमवार, 29 नवंबर 2021

रचनाकार :- आ. कवि देवदास गढपाल कटंगी जी 🏆🥇🏆

नंमन मंच
कलम बोलती हैं
#विषय क्र.365
दि.29/11/21
विषय. आम आदमी
 मंहगाई बढ़े या रेल भाड़ा
प्रभावित होता आम आदमी।
खराब हो सडक़ या फिर चौड़ी
प्रभावित होता आम आदमी।
वृक्ष कटे या फिर जंगल जले
प्रभावित होता आम आदमी ।
अतिक्रमण हो या झोपड़ी गिरे।
प्रभावित होता आम आदमी।
प्रदूषण हो या आक्सीजन बहे
प्रभावित होता आम आदमी।

स्वरचित मौलिक रचना है।
कवि देवदास गढपाल कटंगी बालाघाट मध्यप्रदेश।

रचनाकार :-आ वंदना खंण्डूड़ी जी 🏆🥇🏆

#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह 
#मंच_को_प्रणाम 
#विषय_क्रमांक_365
#विषय_आम_आदमी
#दिनांक_29_11_2021
-----------------------------------------------------
आम आदमी से बने खास, 
जब कर जाऐ कुछ खास,
बना दे धरा को हरा-भरा, 
जब बन जाऐ वो खास।

आम आदमी सीमा पर, 
प्राण न्यौछावर करते,
कसम फर्ज निभाने के लिए, 
जीवन को अर्पण करते।

आम आदमी ने खास बनकर किये बहुत से काम,
कभी हिमालय के शिखरों मे अपना बिगुल बजाए,
कभी अंतरिक्ष में तो कभी ,
विश्व पटल पर अपना झंडा फहराये।

देखा है मैंने बस्ती मे भी उन फूलों को खिलते हुए,
जिन्होंने आम बनकर दुनिया मे परचम लहराया है,
अपने जीवन के साथ-साथ,
 सबके जीवन को महकाया है।

आम आदमी से ही बने सरकार, 
आम आदमी से ही गिरे सरकार,
जब हो कहीं अत्याचार,
तब आम आदमी मांगे अपना अधिकार।

आम आदमी बनना नहीं आसान,
जो अर्पण करें धरा को वो बन जाए खास,
जग मे रहकर करें जो सबका उद्धार,
वो ही खास आदमी को बनाया एक आम आदमी ने।

आम आदमी की शक्ति को पहचानो,
खास नहीं पर आम आदमी बनकर जग को रोशन कर जाओ।

---------------------------------------------------------------
डा.वन्दना खण्डूडी
देहरादून, उत्तराखंड
स्वरचित रचना।

रचनाकार :-आ मनोज कुमार तिवारी मनसिज जी 🏆🥇🏆

#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह 
#दिनांक-29/11/2021
#विषय-आमा आदमी
#विधा-गद्य

नमन मंच-

वर्तमान समय में आम आदमी एक सामान्य जन है । जो अनेकों समस्याओं को सहता हुआ अपना जीवन जी रहा है। वह कम राशि में अपने परिवार का भरण पोषण बड़ी कठिनाई से कर पाता है। वह अच्छे निजी विद्यालयों की शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाता ।बेरोजगार रहता है। महंगाई की मार झेलता है फिर भी मन ही मन अपने को समझाता है। इसी आम आदमी की ना अधिकारी ही बात सुनते हैं और ना ही हमारे राजनेता। बुरा हाल है आम आदमी का।सरकारे कहती तो बहुत कुछ है लेकिन आम आदमी का भला नहीं हो पा रहा स्वतंत्रता के 74 साल बीत जाने के बाद भी आज व्यक्ति लगता है वही का वही है वह निरंतर श्रम करता है लेकिन उसके श्रम का उचित मुल्य उसे नहीं मिलता जिसका आधार लेकिन आज भी वह निराधार है।
स्वरचित, मौलिक-
मनोज कुमार तिवारी'मनसिज'
बड़ामलहरा(छतरपुर)मध्यप्रदेश

रचनाकार :-आ गोपाल सिन्हा जी 🏆🥇🏆

आम आदमी
--------------

आदमी तो आदमी है। यह आम आदमी क्या होता है ?

क्या हम किसी अन्य प्राणी मे, ऐसे विभेद करते हैं ?

जैसे एक हथेली की पाँचों उंगलियां बराबर नहीं होतीं, वैसे ही एक समाज के सभी सदस्य बराबर नहीं होते हैं। शारीरिक बनावट, मानसिक विकास, रंग-रूप की दृष्टि से, वे भिन्न होते हैं।

इतना तक तो ठीक है, पर जब हम उनका आर्थिक आधार पर वर्गीकरण करते हैं, तो उच्च आय-वर्ग, मध्यम आय-वर्ग, निम्न आय-वर्ग आदि के रूप में विभाजित करते हैं और यहीं से आम आदमी की बात उठती है, जो प्रायः मध्यम आय-वर्ग अथवा मध्यम एवं निम्न आय-वर्गों के संयुक्त रूप से जाने जाते हैं।

इस वर्ग की या दोनों वर्गों की अपनी परिस्थितियां हैं, आकांक्षाएं हैं, आवश्यकताएं हैं, विशेषताएं हैं। यह वर्ग श्रमजीवी होता है। इसके पास पूंजी का अभाव होता है। यह उत्पादन से जुड़ा होने पर भी बड़ा उद्यमी-व्यवसायी नहीं होता, किंतु सामूहिक उपभोक्ता होता है।

आम आदमी साहित्य एवं राजनीति में अधिक चर्चित रहता है। वहाँ इसे सीमित आय, सीमित साधन, सादी जीवन-शैली, शाँत, छोटी-मोटी जरूरतों, छोटे सपने देखनेवालों के रूप में चित्रित किया जाता है। कोई सरकारी योजना बनाते समय यह ध्यान दिया जाता है कि इससे आम आदमी को क्या लाभ मिलेगा और तब आम आदमी भी खास दिखने लगता है।

--- गोपाल सिन्हा,
      बंगलुरू, कर्णाटक,
      ३०-११-२०२१

रचनाकार :- आ. राधा शैलेन्द्र जी 🏆🥇🏆

आम आदमी
---------------
इतनी छोटी सी जिंदगी में
बदहवाश सा दुनिया में 
क्यों भागता रहता है आम आदमी?
घर "जमीन" खेत-खलिहान जायदाद के लिए
दिलों को क्यों बाँटता है आदमी?
दुनिया की इस भीड़ में
अपनो को भी बाँटता है आदमी
हर संबंध के बीच 
दीवार खड़ी करता हैं इंसान!
नहीं समझता कि जिंदगी 
न मिलेगी दुबारा!

सपने पूरे हों या न हों
'खाक' में मिल जाता है आदमी
अहंकार
रूप सौंदर्य गुण दौलत का
इसी दुनिया में
क्यों पालता है आदमी
हार जीत के युद्ध में
उलझा रहता है इंसान!

धूप और छावं की आंख 
मिचौली सी
यह भंगुर 'जिंदगानी' सारी
फिर आलीशान इमारतों के आगे
बेघर भूखा क्यों मरता है आदमी
दुनिया प्यार से भरपूर हो
ये क्यों नहीं चाहता आदमी!

अपने पराये के बीच बस 
फर्क करता है आदमी
जमीन के लिये एक दूसरे को
क्यों मारता है आदमी?

इस चंदरोज़ा जिंदगी में भी
दुनिया से दिल से दिल मिलाकर
क्यों नही रह पाता है आदमी?
एतबार एक दूसरे पर क्यों 
नहीं कर पाता है आदमी?
नफरत सीने में, प्यार 'दीवारों' में
चिन सहेजकर क्यों रखता है आदमी?

-राधा शैलेन्द्र,
भागलपुर

रचनाकार :- आ. सुनीता चमोली जी 🏆🥇🏆

"कलम ✍🏻 बोलती है साहित्य समूह" मंच को नमन।                                   विषय क्रमांक-: 365
विषय-:आम आदमी                                                      विधा -:कविता
रचना-: मौलिक स्वरचित
दिनांक -:29/11/2021
समीक्षा हेतु।
★आम आदमी★                                                           पथ जीवन का जटिल भी है
दुरुह भी,दुष्कर भी 
कई रुपों में स्वयं खोजता
आम भी खास भी 
रंग वैसा रुप वैसा                                                             सब कुछ उसमें है वही 
नयन नक्श सब कुछ वैसा
फिर भी अंतर भेद नही
ये भेद किसने किये ?                                                        कोई खास,कोई आम आदमी
किसने दिये इसे विशेषण
बिल्कुल वैसा ही है
जैसे अन्य मनुज तन
क्या ? कोई शरीर देखकर 
अंतर कर सकता है इनमें
ये खास है ये आम आदमी
रक्त का रंग वही                                                               शरीर का रंग वही                                            
ईशवर के बनाये हम सभी 
मनुष्य,जीव,जंतु-जड़ चेतन
वृक्ष-वनस्पति सब कुछ                                                      जो इस चराचर जगत में स्थित 
परिस्थितियां भिन्न भी हों
तब भी आम और खास 
का भेद मन का 
तन से तो सब अभेद 
ये मन का मैल कब धुलेगा
ये खास आदमी  
ये आम आदमी 
यह तो ईशवर की बनाई 
श्रृष्टि का अनादर 
जब इसमें लेकर जन्म
वास इसमें सब करते
सभी प्राणमय जीव 
जड़़तत्व अनगिनत
दुःख शोक रोग व्याधि
जन्म मृत्यु निशचित सब
वह स्वयं सूर्य सम                                                           फिर कैसा अनर्थ।

रचनाकार :- आ. रवींद्र पाल सिंह रसिक जी 🏆🥇🏆

नमन मंच
दिनाँक-29-11-2021
विषय-आम आदमी
विधा-मुक्तक

छद्म जालों में फँसा है आम आदमी।
तोड़ता खुद ही घरोंदे आम आदमी।।
खो गई  इंसानियत इंसान से।
चढ़ा क्यों हैवानियत पै आम आदमी।।

मिथक लेकर जी रहा है आम आदमी।
धन सृजक ही रह गया है आम आदमी।।
चंद रोजा जिंदगी जीने को ही।
संघर्ष करने को विवश है आम आदमी।।

भूखी प्यासी देह का ये आम आदमी।
रोजी रोटी को बिलखता ये आम आदमी।।
कड़कड़ाती ठंड वाली रात में।
ढ़ाँपने को तन तरसता आम आदमी।।
रवेन्द्र पाल सिंह रसिक

रचनाकार :- आ. शम्भू सिंह रघुवंशी अजेय जी 🏆🥇🏆

कलम बोलती है
 विषय क्रमांक -365
29/11/2021/सोमवार
-----
*आम आदमी*
काव्य
-----
हर आदमी नहीं होता आम आदमी
कुछ होते हैं विशेष
उनके अपने खास आदमी
जिन्हें मिलते रहते हैं उपहार घर परिवार 
द्वार पर आकर।
देखिए आप
घर आंगन में मिले नंगा नृत्य करने का अधिकार
यही तो हैं हमारे अपने।
आम आदमी रोता रहता कोई श्रोता बनकर रहता
कहीं अपना पड़ोसी
हमारा सिर हाथ पैर तोडता अपने ही देश में
ऐसा आम आदमी के साथ होता रहता।
मौत का तांडव होता यही है हमारे देश के हालात
बनाए सभी विशेष वर्ग के
लोगों को कुछ महान नेताओं ने दिए
मुफ्त उपहार उपलब्ध कराएं विदेशी मेहमानों को बसाए हमारे आम आदमी के अधिकार बिसराए।
हमें अपनी अपनी औकात बताए।
------
    शंभू सिंह रघुवंशी अजेय
   गुना म प्र
------
*आम आदमी*
काव्य

29/11/2021/सोमवार

रचनाकार :- आ.सुमन तिवारी जी 🏆🥇🏆

#कलम ✍🏻 बोलती_है_साहित्य_समूह  #दो_दिवसीय_लेखन
#दैनिक_विषय_क्रमांक : 365
#विषय :आम आदमी
#विधा : कविता 
#दिनांक  :29/11/2021  सोमवार
समीक्षा के लिए
________________________
जी हाँ  मैं एक आम आदमी हूँ । 

नित परिश्रम से रोटी कमाता हूँ
रात  दिन पसीना बहाता रहता
खुशियों की फसल उपजाता हूँ
मेहनत की ही फसल काटता हूँ। 

जी हाँ मैं एक  आम आदमी हूँ। 

कामचोरी करना मेरा काम नहीं
किसी का शोषण नहीं करता हूँ
बच्चों के लिए सपने बुनता रहता
मेहनत से पूरा करना चाहता हूँ। 

जी हाँ मैं एक आम आदमी हूँ। 

स्वाभिमान रही सदा मेरी पूँजी
चरित्र को सँभाल कर रहता हूँ
सभ्यता संस्कार की धरोहर को
मैं अगली पीढ़ी को सौंपता हूँ। 

जी हाँ मैं एक आम आदमी हूँ। 

रोज  सपनों की चादर बुनता हूँ
उसीको ओढ़ता और बिछाता हूँ
सपने पूरे होने की प्रतीक्षा करता
फिर सपनों की चादर बुनता हूँ । 

जी हाँ मैं एक आम आदमी हूँ । 

प्रतिपल  देश की चिंता में घुलता
विकास में भागीदारी निभाता हूँ
देश के सम्मान पर आँच न आए
मैं इस कोशिश में हरदम रहता हूँ। 

जी हाँ मैं एक आम आदमी हूँ। 

भ्रष्टाचारी और रिश्वतखोरी देख
 भीतर ही भीतर रोता रहता हूँ
दगाबाज  जयचंदों को देख कर
मैं मन ही मन में घुटता रहता हूँ। 
   
              स्वरचित मौलिक रचना
        सुमन तिवारी, देहरादून, उत्तराखण्ड

रचनाकार :-आ. राकेश तिवारी राही जी 🏆🥇🏆

जय माँ शारदे
आम आदमी
--------------

आम आदमी कौन कहाँ है, सोचो, समझो, जानो जी ।
आम आदमी की ताकत को, पढो और पहिचानो जी ।।

                      -1-
जो जीवन के खतिर सबको, अन्न उगाया करता है ।
खुद भूखा भी रहके सबको, सदा खिलाया करता है ।।
साधारण घर मे रहता पर, महल बनाया करता है ।
और थोडे पैसों खातिर, जिंदगी गँवाया करता है ।।
उसका खून चूसकर ही तो, भरते दिखें खजानो जी ।
आम आदमी की ताकत को, पढो और पहिचानो जी ।।

                       -2-
प्रहरी बनकर सीमा पे, प्राणों की बाजी लगा रहा ।
आम आदमी सच मे ही, खुद्दारी दिल से निभा रहा ।।
चाह नही अपनी किस्मत की, दूजे की जो सजा रहा ।
दुनियां भर के गम सहकर भी, वो दुनियां को हँसा रहा ।।
गन्दी बस्ती, फुटपाथों पे, दिखते ठौर ठिकानो जी ।
आम आदमी की ताकत को, पढो और पहिचानो जी ।।

                       -3-
जिसके बल पर सरकारें भी, बनती और बिगडती है ।
फिर भी उसके भाग्य पटल की, रेखा नही बदलती है ।।
सीढी आम आदमी की बन, जिसके संग मे लगती है ।
विश्व पटल पे उसकी ही छबि, उच्च शिखर पे सजती है ।।
पारस बटिया आम आदमी, हर युग मे था मानो जी ।
आम आदमी की ताकत को, पढो और पहिचानो जी ।।

राकेश तिवारी "राही"
-----------------------

रचनाकार :- आ. कैलाश चंद साहू जी 🏆🥇🏆

में एक आम आदमी हूं
सारी श्रष्टि का बोझ उठाता हूं
किसी को नहीं सताता हूं
सबको हमेशा हंसाता हूं।।

सबकी सेवा करता हूं
सबका कल्याण करता हूं
सबका भला करता हूं
सपने ख्वाब सजाता हूं।।

अपने सपने भुल सबका
जीवन सुखी बनाता हूं
इसलिए खास नहीं
आम आदमी कहलाता हूं।।

अपने लिए नहीं दूसरो के लिए
हमेशा जीता मरता हूं।।
अपने हक की खाता हूं
नहीं किसी से डरता हूं।।

कैलाश चंद साहू
बूंदी राजस्थान

रचनाकार :- आ. नरेंद्र श्रीवात्री स्नेह जी 🏆🥇🏆

नमन मंच कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक 365
विषय आम आदमी
विधा कविता
दिनाँक 29/11/2021
दिन सोमवार
संचालक आप औऱ हम

आम आदमी होता नहीं खास,
जन साधारण होता आम आदमी।
झेलता महँगाई की मार ।
बेरोजगारी करती उस पर वार।
मूलभूत सुबिधाओं से रहता वंचित।
 श्रम कर परिवार का करता पालन।
नहीं दिला पाता बच्चों को उच्च शिक्षा।
न रहने को अच्छा मकान।
एक साधारण होता आम आदमी।
नहीं रहती उसकी कोई अहमियत।
बस चुनाव के वक़्त नेताओं को ,
समझ आती है अहमियत।
तब नेताओं के लिये ,
आम आदमी हो जाता खास।
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचना।
नरेन्द्र श्रीवात्री स्नेह
बालाघाट म. प्र.

रचनाकार :- आ संजीव कुमार भटनागर जी 🏆🥇🏆

नमन मंच कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक 366
विषय आम आदमी
विधा कविता
दिनाँक 29/11/2021
दिन सोमवार
संचालक आप औऱ हम

खूबसूरती वो मन में छुपाये
मैल दिखाता कुछ बाहर से,
आम आदमी है ख़ास नहीं
दिल का वो बहुत साफ है|

कीमती खिलौने बच्चे चाहें
पैसों की कमी न रोकें राहें,
बच्चों को वो बहला लेता
टूटे खिलौने से उन्हें हर्षाये|

रिश्तों को निभाना आता है
दूसरों के घर मिठाई ले जाता है,
चेहरे पे खुशी झलकती सदा
चाहें थैला पुराना ले चलता है|

गम में कोसता कभी भाग्य को
दुख में पुकारे कभी भगवान को,
बात बात में रोता हँसता बहुत है
जब देखे अपने बिखरते सपने को|

बेकार हो गयी हैं सारी अटकल
आम आदमी है बेबस औ बेकल,
मन मे लेता है सपनों की उड़ान
परिस्थिति भाग्य का ओड़े आँचल|

रचनाकार का नाम- संजीव कुमार भटनागर
लखनऊ, उ. प्रदेश
मेरी यह रचना मौलिक व स्वरचित है।

रचनाकार :- आ अशोक शर्मा जी 🏆🥇🏆

नमन मंच
विषय क्रमाँकः-365
दिनाँकः-29-11-21
विषयः-आम आदमी
विधाः-कविता
जिंदगी 
आम आदमी की क्या होता है
जान नही पायेगा हर इंसान।1
दर्द नही
समझ क्या पायेगा ओ महलों 
के वाशिंदे।2
जिनके 
हिस्से की चिलचिलाती धुप
कड़कड़ाती सर्दी।2
सब कुछ
सहते.है पथरीली सड़क में
तपते मरूस्थल में।3
क्योकि
वह होता है इस दुनिया का
एक अदद आदमी।3,


रचनाकार :- आ. शिव सान्याल जी 🏆🥇🏆

जय मां शारदे
विषय क्रमांक - - 365
दिनांक - - 29/11/2021
विषय--आम आदमी
विधा -  कविता

हर  पहुँच  से  दूर  है  आम आदमी।
टूट  जाता  सुबह  से  शाम आदमी। 
हर  रोज महंगाई की  मार पड़ रही,
जीने को  मजबूर  है  आम आदमी।
समाज में गरीब की है कदर कोई न, 
हर शह बदनाम होता आम आदमी। 
हाथ जोड़  खड़ा है  लाचार  बन के,
मजबूरी का नाम होता आम आदमी। 
पहुँच वाले  हाथ में  सरकार होती है, 
कौड़ियों के दाम होता आम आदमी। 
धाक  होती उन  की जो पैसे वाले हैं, 
गरीब के इल्ज़ाम होता आम आदमी। 
कर के  दंगे हाथ  लम्बे  छूट  जाते हैं, 
निर्दोष कत्लेआम होता आम आदमी। 

रचना मौलिक स्वरचित है। 
शिव सन्याल
ज्वाली कांगड़ा हि. प्र

रचनाकार :- आ. योगेन्द्र अग्निहोत्री जी 🏆🥇🏆

विषय क्रमांक 365
विषय   आम आदमी 
दिनांक  29/11/2021  

अपने जीवन में बहुत 
आम आदमी तंग ।
आमदनी और खर्च में 
हर दिन छिड़ती जंग ।
बहुत कठिनता से उसका 
बीत रहा है माह ।
हरदम बाट निहार रहा है 
पहिली की तनख्वाह ।
आम आदमी व्यथित है, 
आह भर रहा आज ।
कभी टमाटर रूला रहे हैं 
कभी रूलाता प्याज ।
वोट माँग ले जाते नेता 
देते झूठी आस ।
आप तो गद्दी पर चढ़ जाएँ 
जनता खड़े उदास ।।
योगेन्द्र अग्निहोत्री 
स्वरचित

रचनाकार :- आ. अंजू भूटानी जी 🏆🥇🏆

शुभ मध्यान्ह
कलम बोलती है
नमन मंच
विषय क्रमांक:365
विषय:आम आदमी
दिनांक: 29/11/21

मैं एक आम आदमी हूँ
हर कोई मुझको सुने
ऐसी कोई बात नही
हर कोई मुझे जाने
ऐसी मेरी फितरत नही।

कर का बोझ उठाता हूँ
महंगाई मार खाता हूँ
संघर्ष करता जाता हूँ
सब कुछ सहता जाता हूँ।

खास की सेवा करता हूँ
खास बातें सुनता हूँ
खास का कर्जदार हूँ
फिर भी आम कहलाता हूँ।

सपने खूब सजाता हूँ
ख्वाहिशें खूब पालता हूँ
दो जून की रोटी कमाने
चक्करघिन्नी बन जाता हूँ।

राशन की लाइन सजाता है
मूंगफली को बादाम समझता
डालडा से तृप्त हो जाता हूँ
कम में भी निभा लेता हूँ।

हर कोई करे मेरी चर्चा
चर्चा का हिस्सा बन जाता हूँ
बातें सुन चुप रह जाता हूँ
लाचार ही रह जाता हूँ।

सियासत का मोहरा हूँ
गेंद से बन जाता हूँ
भुखमरी सहता हूँ
सब्र हमेशा रखता हूँ

सुनो मेरा आव्हान
और नही सहूँगा
अपनी आवाज़ बुलंद करूँगा
अपना हिसाब माँगूंगा।

अंजू भूटानी
नागपुर

रचनाकार :- आ. गोविंद प्रसाद गौतम जी 🏆🥇🏆

नमन मंच  
विषय क्रमांक 365
विषय आम आदमी
विधा हाइकु
29 नवम्बर 2021,सोमवार

आम आदमी
मुसीबत का मारा
करे गुलामी।

होता शोषण
मेहनत करता
आम आदमी।

पथ विकास
निरंतर चलता
आम आदमी।

होता शोषण
कदम कदम पे
करे पोषण।

हिम्मत वाला
होता आम आदमी
है रखवाला।

स्वरचित,मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

रचनाकार :- आ. दमयन्ती मिश्रा जी 🏆🥇🏆

नमन मंच कलम बोलती हैं
क्रमांक_३६५
दिनांक_२९/११/२०२१
विषय_आम आदमी
हम आम आदमी,राहे नही आसान|
करो का बोझ ढोते ,अपने परिश्रम से ही |
कर्म कर्तव्यों का करते निर्वह ,ईमानदारी सत्यता से |
माध्यम वर्गीय हम बचे दिखावे से,
यह लोगो नही  भाता |
जीवन एक युद्श्रेत्र,मन बुद्धि शस्त्र | दीप प्रज्वलित हॄदय मे राम नाम |
हर पल भरता ऊर्जा हमे, कर्तव्य पथ पर चले |
आये चाहे कितने सघर्ष ,तैयार रहते देश के लिए |
आम से खास बनने की नही तमन्ना ,देश की उन्नति लक्ष्य हमारा |
हम आम आदमी असली सितारे देश के |
हो किसान सैनिक नोकरपेशा  ,रहते सजग पहरी बन |
अपनी मुश्किल राहे सुगम बनाते हम,अपने करमो से |
दमयंती मिश्रा 
स्वरचित

रचनाकार :- आ. दिनेश विकल जी 🏆🥇🏆

नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्यिक समूह
#दिनांक-29/11/21
#विषय-आम आदमी
#विधा-कविता
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
आम आदमी  ,खुद को एक आम पता है।
कोई चूस खाता है,तो कोई काट खाता है।

पेड़ पर भी , बिचारा यह चेन न पता है।
राह चलता भी,इसमें पत्थर ही लगाता है।

कच्चा होने पर भी,जरा नहीं चेन पाता है।
कोई अचार बनाता है,कोई मुरब्बा बनाता है।

आम आदमी तो,दो पाटों में पिसता जाता है।
कोई ऊपर से दबाता,कोई नीचे से दबाता है।

मुश्किल से निज गृहस्थी का खर्चा चलाता है।
ऊपर से दुनियां भर के रिश्तों को निभाता है।

जीवन आम आदमी,आम जैसा ही पाता है।
जन्म से ले मरण तक,कष्टो को ही उठाता है।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
रचना स्वरचित व मौलिक है। 
दिनेश "विकल" 
ग्वालियर म.प्र.

रचनाकार :- आ. सुनीता शर्मा जी 🏆🥇🏆

नमस्कार सभी मंच वासियो को

आम आदमी।

आम आदमी आम ही रहे तो अच्छा है
वर्ना वो बेमकसद घूमता एक बच्चा है।
जाने वो क्यों खाश बनना चाहता है
जाने क्यों वो अपने विशवास को इसलिये डिगाता है।
वो क्यों ये महसूस नही करता है
की वो अपने माता पिता ,अपने परिवार के लिये,
उनकी हर खुशी के लिये हर पल खाश ही बन जाता है।
आम आदमी आम कहा होता है
वो कम से कम रोता तो है मुस्कुराता तो है।
आम आदमी आम आदमी
आम आदमी
समाज को खुली आँखों से देखने का दिखाने का नजरिया है
इसलिये वो आम ही रहे तो अच्छा है।
सुनीता शर्मा

रचनाकार :-आ. मधुकवि राकेशमधुर मधुकवि राकेशमधुर जी 🏆🥇🏆

((मधुकवि का मधुर गीत))बिषय ((आम आदमी))
गीत
किस तरह जी रहा, आज आम आदमी।।
कितना नाकाम दुनिया में,आम आदमी।।
हमने देखे हैं ऐसे, तमाम आदमी।।

लोग बदनाम होने से,डरते नहीं।।
अच्छे कामों को अब,लोग करते नहीं।।
कैसे -कैसे करे हाय, काम आदमी।।१।।

बिक रहा आम जन, गौर कर देख तू।।
हैं खरीदार कितने, जो सच बेच तू।।
लोग लेते खरीद देके ,दाम आदमी।।२।।

लोग हम जैसे निर्धन , यहां आम हैं।।
बदनसीबी गरीबी , में गुमनाम हैं।।
कैसे रोशन करे अपना, नाम आदमी।।३।।

रात-दिन दौड़ता, भागता फिर रहा।।
पेट भरने को सौ-सौ , जतन कर रहा।।
देखा बेचैन सुबहा से, शाम आदमी।।४।।

जिंदगी कितनी मायूस, लोगों की है।।
दुनियां आसक्त हाये रे, भोगों की है।।
आदतों का रहा हो,गुलाम आदमी।।५।।

जब बहकता है ये, आमजन रोषकर।।
जाये झुक एक राजा भी , अनुरोध पर।।
दे लगा बिगड़े जब ,जाम आम आदमी।।६।।

किस तरह जी रहा, आज आम आदमी।।
कितना नाकाम दुनिया में आम आदमी।।

((मधुकवि राकेशमधुर मधुकवि राकेशमधुर ))

रचनाकार :- आ. निकुंज शरद जानी जी 🏆🥇🏆

'जय माँ शारदे '
विषय क्रमांक-365
विषय- आम आदमी 
दिनांक-29-11-2021
समीक्षा हेतु सादर प्रस्तुत। 

आम आदमी 
------------------
राह आसान नहीं 
लेकिन सपन- स्पन्दन!
दूरदर्शी!
अलौकिक सृष्टि!
कुछ कर गुजरेगा 
आभासित!
चकित लोग 
अचम्भित!
आम आदमी!
माद्दा रखता है 
इसकी मालगुजारी से 
ऊपरी भी डरता है 
किस करवट ऊँट बैठ जाए 
कोई ना बता पाए!
इसके मस्तक की रेखाएँ 
इसे ही आजमाए!
हर सोच से परे 
प्रतिबिंबित होता है 
अनुपस्थिति में भी 
उपस्थिति दर्ज है जिसकी 
आम आदमी है 
इसलिए!
सबके लिए खास होता है!
टोह ली जाती इसकी 
इसकी राह वह भी चलता है 
जिसके हाथ होती जलती मशाल!
यह तो वह दीप है जो 
आँधी- तूफ़ान से भी 
लड़ गुजरता है---!
बहुत मुश्किल हो फिर भी 
राह अपनी निकाल ही लेता है 
आडम्बर-रहित है 
आम आदमी!
इसलिए तो जीवन- संग्राम में 
अंत तक अडिग रहता है----!

----- निकुंज शरद जानी 
स्वरचित एवं मौलिक काव्य सादर प्रस्तुत है।

रविवार, 28 नवंबर 2021

रचनाकार :- आ. शिव मोहन सिन्हा जी 🏆🥇🏆

आदरणीय मंच को नमन
विषय      आम आदमी
दिनांक     29-11-2021
विधा       अतुकान्त (स्वैच्छिक)

  सियासत

   एक मासूम मारा गया,
   सियासत चल पड़ी,
   इस बात से बेखबर
   क्या गुजरती होगी
   उस माँ पर,
   जो यह जानने का यत्न कर रही है,
   क्यों मारा गया उसका लाल ?
   अभी सबेरे ही तो
   एक घंटा पहले
   उसको बड़े प्यार से स्कूल भेजा था।
   क्या हाल होगा उस बाप का,
   जो दर - बदर न्याय की गुहार में,
   कभी पुलिस, कभी प्रशासन
   या कभी नेताओं के चक्कर लगा रहा है,
   उसके बेटे की मौत इंसाफ माँग रही है,
   उस अबोध का दोष क्या है?

   व्यवस्था पूर्व की भाँति शांत है,
   दिलासा दे रही है,इंतज़ार करो
   तुमको न्याय जरूर मिलेगा,
   हाँ, इंसाफ मिलने में वक्त लगता है,
   तब तक तुम जो पीड़ित हो,
   व्यवस्था के इर्द गिर्द चक्कर लगाते रहो,
   न्याय की भीख माँगते रहो,
   तुम किसी मंत्री की संतान नहीं हो कि
   तुम्हारे लिए प्लेन हाइजैक करने वाले
   किसी आतंकी को छोड़ दिया जाए।
   न ही तुमको किसी विशिष्ट व्यक्ति का
   रुतबा मिला है कि सरकारी तंत्र
   मुस्तैदी से तुम्हारी मदद के लिए
   दौड़ने लगे।

   तुम एक सामान्य व्यक्ति हो,
   आम आदमी की तरह जीना सीखो,
   आश्वासनों पर निर्भर रहने की आदत ड़ालो,
   क्योंकि यहाँ आम आदमी को
   न्याय पाने के लिए कभी कभी
   वर्षों का इंतज़ार करना पड़ता है।
   तुमने अपना बेटा ही तो खोया है,
   बेटा देश से बड़ा नहीं है,
   अभी व्यवस्था देश के 
   विकास का खाका बुनने में व्यस्त है,
   उसके पास किसी माँ की पीड़ा,
   किसी बाप की व्यथा सुनने की
   फुरसत नहीं है।

   इसलिए, तुम इंतजार करो
   कानून अपना काम कर रहा है,
   व्यवस्था को आवश्यक
   निर्देश दिए जा चुके हैं,
   तुम्हारी पीड़ा किसी फाइल में
   दफन की जा चुकी है,
   समय आने पर फाइल खुलेगी,
   फिर न्याय प्रक्रिया शुरू होगी,
   इंतज़ार बड़े बड़े जख्मों पर
   मरहम लगा देता है,
   समय,पीड़ा और उसके
   एहसास को कम कर देता है,
   इसलिए,
   हे आम जन,
   तुम धैर्य रखने की आदत ड़ालो।

            शिवमोहन सिन्हा

मंगलवार, 23 नवंबर 2021

विषय 👉🏻बेरोजगारी



#🙏 जय माँ शारदे 🙏
# नमन मंच🙏🙏
# कलम बोलती है साहित्य समूह
# विषय_बेरोजगारी
# विद्या_कविता
# दिनांक_04/10/2021
# रचनाकार_✍️✍️संदीप कुमार सिंह
# व्हाट्सएप नम्बर_7738485797
# जिला_समस्तीपुर(बिहार)
*****************************
            बेरोजगारी
सत्यता विलाप कर रही है,
झूठ खूब फल_फूल रहा है।
शब्द बेरोजगार कान खराब कर दिया है,
भारत का अभिमान खराब कर दिया है।
झूठी डिंगों का बोलबाला है,
सरकारी यंत्र हंस रही है।
बेरोजगार यूवक रो रहे हैं,
खाली प्रलोभनों के सहारे जी रहें हैं।
वही खानदानी पेशा किसानी,
अन्न उपजा कर पालन_पोषण हो रही है।
सभाएं और राजनीति खूब हो रहें हैं,
आवश्यकताएं बाट जोह रही है।
उधगों और कलकारखानों की,
भारी अभाव झेल रही है।
पच्चहत्तर पर पच्चीस भारी है,
यह भारत के उत्थान को रोक रही है।
शासन_प्रशासन मजे कर रहें हैं,
आलम यह गजब है।
बहुतों को बहुत हो रहें हैं,
थोड़े वाले और सिमटते जा रहें हैं।
कहीं पर जाम पर जाम है,
कहीं पर प्यास भी अधुरी है।
गुमराह यूवक नशे के शिकार हैं,
अपने ही देश में लाचार हैं।
यह दिक्कत बेरोजगार की नहीं,
यह दिक्कत भारत की है।
ऐसे बदलेंगे ना यह विवशता,
शायद जनता ही भूल कर रही है।
राजा कोई ऐसा चुनें,
हकीकत का जिसको खबर हो।
मनसा जिसका नेक और ईमानदार हो,
वही इस समस्या भाड़ीको,
इस लाचारी को मिटा सकते हैं।
वह कोई यूग पुरुष हो,
वह कोई मशीहा हो।
काया _ कल्प कर दे,
हिन्दुस्तान की जान में जान डाल दे।
कोमल और अबोध,
बेरोजगार और बेरोजगारी का,
समूल नष्ट कर,
उत्साहित और समृद्ध भारत में,
नवजीवन प्राण डाल दे।
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹

#नमन मंच 🙏
#कलम बोलती है साहित्य समूह
#विषय - बेरोजगारी
#विधा - आलेख
#दिनांक - 4/10/2021
#दिन - सोमवार

✍🏻 बेरोजगारी ..।।

बेरोजगारी आज देश की सबसे बड़ी समस्या बन गई है। आज पढ़ा लिखा युवा बेरोजगार घूम रहा है, उसके पास डिग्री तो है , पर वह रोजगार के अवसरों के लिए जगह - जगह भटक रहा है। वह काम करना चाहता है , उसमे काम करने की ललक भी ही पर उसके पास रोजगार नहीं है।
बचपन में सिखाया जाता था, पढ़ोगे - लिखोगे तो बनोगे नवाब , खेलोगे कूदोगे तो बनोगे खराब । आज उल्टा जान पड़ रहा है। " खेलोगे कूदोगे के तो बनोगे नवाब , पढ़ोगे लिखोगे तो फिरोगे बेरोजगार।

बदलते परिवेश के साथ शिक्षण - प्रशिक्षण प्रणाली में सुधार लाने की आवश्यकता है। वर्तमान समय में आज व्यवस्था कुछ ऐसी है कि उसमें जो कार्यकुशल है तो उनके पास प्रशिक्षण नहीं है और जिनके पास प्रशिक्षण है, तो वह कार्यकुशल नहीं है। दोनों तरफ से समस्या है जिसके कारण बेरोजगारी बढ़ती जा रही है।मशीनीकरण भी बेरोजगारी बढ़ाने में सहायक सिद्ध हुआ है। इसमें श्रमिको की संख्या हटाने में, बिजली को बचाने में , संसाधनों की बचत करने में सफलता तो मिली है, लेकिन अनेक बेरोजगार को लाकर खड़ा कर दिया है।

आज बेरोजगारी में भी बेरोजगार युवक युवती के एक प्रतियोगिता परीक्षा की फीस ७०० रूपए है, जिसमे किताबो का खर्च , ऐसे में रोजगार प्राप्त करने के लिए कितनी परीक्षा देनी पड़ती है। आज मुश्किल यह हो गई है कि पढ़ा लिखा युवा भी बेरोजगार घूम रहा है। उसमे कही राजनीति खींचातानी , कही आरक्षण , कही महंगाई में युवा दबा कुचला सा जान पड़ता है और नशे का आदी होता जा रहा है जिसके कारण तनाव आदि बीमारियों का शिकार भी होता जा रहा है।।

*संध्या शर्मा "श्रेष्ठ"*
बड़वानी ( मध्य प्रदेश )

🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹

#कलम बोलती है साहित्य समूह
#विषय-बेरोजगारी
क्रमांक-343
दिनांकः-04/10/21
दिन-सोमवार
#कलम बोलती है साहित्य समूह
#विषय-बेरोजगारी
#दो दिवसीय आयोजन
#विधा-स्वैच्छिक

बेरोजगारी की मार,
हो रहा अत्याचार।

पढ़ाई लिखाई बेकार,
डिग्री लेने चले बाजार।

जैसी शिक्षा वैसी भिक्षा,
बेरोजगारी की मार।

पहले एक कमाता था,
पूरा परिवार खाता था।

आज पूरा परिवार कमाता,
फिर भी क्यों नहीं भरता पेट?

जैसी नियत वैसी बरकत,
बेरोजगारी की क्या हरकत?

ईश्वर की ही है सब माया,
कहीं धूप, कहीं पर छाया।

बेरोजगारी तो बहाना है,
काम की कमी सुनानाहै।

श्रीमती प्रेम सिंह
छत्तीसगढ़
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹

सादर नमन मंच
कलम बोलती है
क्रमांक। 343
दिनांक। 04/10/2021
विषय। बेरोजगारी
विधा। कविता
****************


वर्तमान परिप्रेक्ष्य में स्वयं से यह प्रश्न बार बार करोगे,
बढ़ती बेरोजगारी के लिए किसको जिम्मेदार कहोगे ?

देश में बढ़ती जनसंख्या का विस्फोट,
शिक्षण विभागों व संस्थानों में पोलम पोट,
व्यावहारिक शिक्षा के अभाव का,
नियोक्ता निकालता हर कर्मचारी में खोट ।
यत्र यत्र सर्वत्र कहां कहां सुधार करोगे ।
बढ़ती बेरोजगारी के लिए किसको जिम्मेदार कहोगे ?

शिक्षा क्षेत्र की आड़ में फल फूल रहा व्यापार,
रिश्वतखोरी बन गई रोजगार प्राप्ति का आधार,
कौशल की कमी होती युवाओं में परिलक्षित,
आरक्षण नीति ने की शिक्षितों की दुर्दशा अपार।
इस गंभीर समस्या पर कब तक हाहाकार करोगे ।
बढ़ती बेरोजगारी के लिए किसको जिम्मेदार कहोगे ?

लघु उद्योगों की कमी,उद्योगीकरण की धीमी प्रक्रिया,
तथा आर्थिक मंदी ने बेरोजगारी दर में योगदान दिया,
मशीनीकरण से हुई श्रमिकों की अंधाधुंध छंटाई,
तकनीकी साधनों की कमी ने रोजगारों को कम किया।
नौकरशाही व लालफीताशाही पर कैसे प्रहार करोगे ।
बढ़ती बेरोजगारी के लिए किसको जिम्मेदार कहोगे ?

संगीता चौबे पंखुड़ी,
 इंदौर मध्यप्रदेश
स्व रचित एवम् मौलिक रचना
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹
#नमन मंच
#विषय बेरोजगारी
#विधा कविता
#दिनांक 4.10.2021
#वार सोमवार
🏟️🏟️🏟️🏟️🏟️🏟️🏟️🏟️🏟️🏟️
छा गई चारो ओर महामारी
फैली देखो देखो बेरोजगारी
कभी न देखी ऐसी बेरोजगारी
सिमटा रोजगार गई दारोमदारी।।
🏜️🏘️🏘️🏘️🏘️🏘️🏘️🏘️🏘️🏘️
रोजगार सिमटा मचा गली में शोर
घर से बाहर जाना चलता नहीं जोर
दिल का दर्द बढ़ रहा नहीं कोई मोर
न काम न धंधा नहीं कोई ओर।।
🏜️🏜️🏜️🏜️🏜️🏜️🏜️🏜️🏜️🏜️
महामारी ने किया सबको कंगाल
बेरोजगारी का रूप बढ़ा विकराल
 नहीं काम धंधा नहीं बचा माल
बेकार में सब बजा रहे गाल।।
🧱🧱🧱🧱🧱🧱🧱🧱🧱🧱
स्वरचित मौलिक
🏛️🏛️🏛️🏛️🏛️
कैलाश चंद साहू
बूंदी राजस्थान
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹
नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समुह
बिषय#बेरोजगारी
विधा#पद्य
******/***************
दो बीसा बाप की जमीन में
कितना रोजगार उगाओ गे।
जीने खाने के लिए अन्य या
कितने कपड़े बनवाओगे।

इन्तजाम कर बच्चो की फीस
या किताब खरीद के लाओगे।
हाँ साहब टायर ट्यूब पंचर हो
तो सायकिल कब बनवाओगे।।

बी ए एम ए करके रोजगार में
आलू गोभी कितना उगाओगे।
बेरोजगारी फैल रही है साहब
बेरोजगार का जड मिटाओगे।

मिट्टी को मंथन करते करते ही
धरती ऊसर बंजर बनाओगे।
जो भी पैदा कर अन्न फल दे।
उसको भी गिरवी रखवाओगे।

ओम प्रकाश आस गोरखपुर
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹


नमन मंच कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक 343
विषय बेरोजगारी
विधा कविता
दिनाँक 4/10/2021
दिन सोमवार
संचालकः आप औऱ हम

पढ़ लिख पर भी युवा हैं बेरोजगार
गली गली ढूंढ़ रहे रोजगार
नहीं मिलता कोई काम न रोजगार।
देश में बड़ी हुई है बेरोजगारी।
मेहनतकश की भी रोटी छिन गईं
मशीनरी युग में।
भागते हैं लोग छोड़ गाँव शहर की ओर
अब तो शहरों में भी फैली बेरोजगारी।
कैसे होगा जीवन व्यापन सब हैंपरेशान।
ऊपर से महंगाई की मार।
गलत राह पर निकल पड़े हैं युवा,
कर रहे आत्महत्या बेरोजगार।
झेल रहे सब बेरोजगारी की मार।

स्वरचित अप्रकाशित मौलिक रचना।ब्लाग में अपलोड करने की अनुमति है।

नरेन्द्र श्रीवात्री स्नेह
बालाघाट म. प्र.
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹
कलम बोलती है साहित्य समूह को सादर प्रणाम 🙏🙏
दैनिक विषय क्रमांक-343
दिनांक-04-10-2021
दिन -सोमवार
विषय- बेरोजगारी
विधा- स्वेच्छिक ( कविता )

✍️✍️✍️ बेरोजगारी.....

बेरोजगारी एक अभिशाप है
   गरीब होना उससे बड़ा अभिशाप
बेरोजगारी के दौर में रिश्ते
   रिश्तेदार ही दुश्मन बन जाते हैं
जाने अनजाने चाहे ना चाहे
   घूँट घूँट जहर पीना पड़ता है
लम्हे लम्हे जोड़ जोड़ कर
    सुन्दर सुन्दर ख्वाब सजाये हैं
बेरोजगारी तूफ़ां के झटके ने
    बिखेर देते हैं सारे सपने को
छोटे छोटे होने वाली बर्बादी
     सितम के पहाड़ टूट जाया करते हैं
वो बर्दाश्त ही नहीं कर पाता है
     पैरों के नीचे जमीं छीन जाती है
मिल जाते कुछ हसीन लम्हें
     दो जून की रोटी के लिए भी
 मोहताज होता है बेरोजगार
      चंद घड़ी भर के लिए ही सही
मिल जाता है उन्हें कोई कार्य
   आते हैं जीवन में खुशी के कुछ पल
चंद खनकते सिक्कों की खातिर
    अस्मत तक दांव लग जाता है
चूल्हे की बुझी हुई राख
     गढ़ती कहानी किस्मत की
वहीं धनाढ्य के घर का कुत्ते
    खाते हैं बिस्किट सोते हैं सोफे पर
गरीब बच्चे भूख की क्षुब्धता
    व्याकुल हो अकुलाते पानी पीते 
खुला आसमां भी सोने को नहीं
    बेरोजगारी के कहर से जूझते
जिंदा रहने का जज्बा कम नहीं 
     ये है सभ्य समाज का घिनौना सच
हर एक चुनावी के दौर में
     वादा करते सत्ता के दलाल
बेरोजगारी का शोर गूंजता है
     सिर्फ सत्ता के गलियारों में
कसमें खाते झूठे वादा करते
     हम हर हाल बेरोजगारी दूर करेंगे
देश की बेरोजगारी दूर करते करते
    खुद की बेरोजगारी दूर कर बैठे हैं
6%बेरोजगारी बढ़कर 36%हो गई
    गरीब के बच्चे जन्म के साथ ही
48 हजार का कर्जदार पैदा होता 
    नेता के बच्चे अरबपति जन्म लेते
ये कैसा समसामयिक मुद्दा है
    जो हर सरकार का वादा होता है
बेरोजगारी लाइलाज रोग बन गया
    जिसने इस रोग का इलाज किया
वो कम्पनी का मॉलिक बनकर बैठा है
    पेट में लात मार भूख छीन लिए
चेहरे की मुस्कान ना कहीं पाए
     बेरोजगारी का अभिशाप भी
सच्चाई ईमानदारी का उपहार है
       चंद लम्हों की जिंदगी है ऐ राज!
हँस हँस कर बिता लो अब तुम।
       बेरोजगारी युवा की शान बन गई
अमीरों का पेट भरता बेरोजगार है।

*****************************
राजेन्द्र कुमार पाण्डेय " राज "
प्राचार्य
सरस्वती शिशु मंदिर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय,
बागबाहरा
जिला-महासमुन्द ( छत्तीसगढ़ )
पिनकोड-496499
घोषणा पत्र- मैं यह प्रमाणित करता हूँ मेरी यह कविता सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित व मौलिक है।
*****************************
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹
जय शारदे माँ 🙏🙏🙏
नमनमंच संचालक।
कलम बोलती है साहित्य समूह।
विषय - बेरोजगारी।
विधा - कविता।
स्वरचित 

वो रोज निकलता है घर से,
सुबह एक आशा के साथ,
प्रैस किए कपड़ों और
ढंग से सवांरे वालों के साथ।।

दिल में घर किए अनेक इच्छाओं
और कामनाओं के साथ, 
सीने से लगाए हाथों में दबाए,
एक पुराने बैग के साथ।
कभी आता था जो काॅलेज में
किताबों को रखने के काम ,
आज जगह ले ली है किताबों की
कुछ प्रमाणपत्रों ने। 

किताबें जो ज्ञानार्जन कराती थीं,
प्रमाणपत्र जो आस बंधाते हैं।।
एक जगह से दूसरी जगह,
एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर तक,
चप्पलें घिसता है,
भटकता है शाम तक ।।

एक निराशा के बाद,
वह दूसरी निराशा सहता है।
आशा करता है ,
आशा निराशा में बदल जाती है,
इच्छाएं दम तोड़ देती हैं 
वह काला बैग सीने की जगह
घुटनों से सट जाता है ।।

वह रोज घुसता है घर में 
मुर्दा जिस्म की तरह।
उसकी यही नियति है
क्योंकि वह बेरोजगार है!
और बेरोजगारी उसकी बीमारी है।। 

प्रीति शर्मा" पूर्णिमा"
04/10/2021
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹

#कलम बोलती है साहित्य समूह
#विषय-बेरोजगारी
#दो दिवसीय आयोजन
#विधा-स्वैच्छिक

बेरोजगारी की मार,
हो रहा अत्याचार।

पढ़ाई लिखाई बेकार,
डिग्री लेने चले बाजार।

जैसी शिक्षा वैसी भिक्षा,
बेरोजगारी की मार।

पहले एक कमाता था,
पूरा परिवार खाता था।

आज पूरा परिवार कमाता,
फिर भी क्यों नहीं भरता पेट?

जैसी नियत वैसी बरकत,
बेरोजगारी की क्या हरकत?

ईश्वर की ही है सब माया,
कहीं धूप, कहीं पर छाया।

बेरोजगारी तो बहाना है,
काम की कमी सुनानाहै।

श्रीमती प्रेम सिंह
छत्तीसगढ़
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹
जय माँ शारदे
बेरोजगारी
---------

बेरोजगारी बहुत बडी बीमारी है ।
पढे लिखे होकर भी लाचारी है ।।
नौकरी की तलाश रह गया भटकाव ही ,
फिर भी भविष्य हित दौड-भाग जारी है ।।

युवा पीढी पढ-लिख सपने सजाती है ।
हकीकत हो रूबरू जब होश को उडाती ।।
परकटे परिंदे बन गिरते सब जमी पे ,
बेरोजगारी सभी की फिर खिल्लियां उडाती है ।।

राकेश तिवारी "राही"
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹
----------------------नमन_कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय_बेरोजगारी क्रमांक_३४३
व़िधा_स्वपसंद नवगीत
दिनांक_०४/१०/२१
समीक्षार्थ

अलमारी म़ें डिग्रियां बैठी,
देख देख कर हंसती हैं ।
आशा करत़ा क्यों सर्विस की,  
मुझसे कहती रहती हैं ।

अस्थि विसर्जित हमारी करदे ,
भूल जा डिप्लोमा डिग्री ।
फेरी लगा कुछ धंधा करले ,
सब्जी क़ी करले बिक्री ।
मिलेंगे प़ैसे चले जिंदगी ,
धन के बिऩा न चलती है 
मुझसे कहती रहती है ।

मात-पिता ने सपने द़ेखे ,
मिलेगी ऩौकरी सरकारी।
प़ेट काट कर खूब पढ़ाया ,
हाथ लगी ह़ै बेरोजगारी ।
आरक्षण के अचूक मंत्र से
योग्यता भ़ी तो डरती है 
मुझसे कहती रहती है ।

गाड़ी चले न बिन माया के ,
बेरोजगारी अभिशाप बऩी ।
नजर पसारे किसी क्षेत्र में ,
मंहगाई आसमान चढ़ी ।
द़ूभर हो रहा ज़ीवन जीऩा
दिल से आह निकलती है ।
मुझसे कहती रहती है ।

स्वरचित 
रामगोपाल प्रयास
गाडरवारा मध्य प्रदेश

🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹
नमन_कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय_बेरोजगारी क्रमांक_३४३
व़िधा_स्वपसंद नवगीत
दिनांक_०४/१०/२१
समीक्षार्थ

अलमारी म़ें डिग्रियां बैठी,
देख देख कर हंसती हैं ।
आशा करत़ा क्यों सर्विस की,  
मुझसे कहती रहती हैं ।

अस्थि विसर्जित हमारी करदे ,
भूल जा डिप्लोमा डिग्री ।
फेरी लगा कुछ धंधा करले ,
सब्जी क़ी करले बिक्री ।
मिलेंगे प़ैसे चले जिंदगी ,
धन के बिऩा न चलती है 
मुझसे कहती रहती है ।

मात-पिता ने सपने द़ेखे ,
मिलेगी ऩौकरी सरकारी।
प़ेट काट कर खूब पढ़ाया ,
हाथ लगी ह़ै बेरोजगारी ।
आरक्षण के अचूक मंत्र से
योग्यता भ़ी तो डरती है 
मुझसे कहती रहती है ।

गाड़ी चले न बिन माया के ,
बेरोजगारी अभिशाप बऩी ।
नजर पसारे किसी क्षेत्र में ,
मंहगाई आसमान चढ़ी ।
द़ूभर हो रहा ज़ीवन जीऩा
दिल से आह निकलती है ।
मुझसे कहती रहती है ।

स्वरचित 
रामगोपाल प्रयास
गाडरवारा मध्य प्रदेश
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹
नमन मंच
विषय- बेरोजगारी
 
दैहिक दैविक भौतिक तापों से जूझ रहा इंसान हैं ।कोरोना की मार से आज युवा हुआ परेशान है।। 

ऊंची डिग्री लेकर इंटरव्यू काउंसलिंग कर रहे 
सुबह शाम संस्थानों के चक्कर वे यूं ही काट रहे 
शिक्षित बेरोजगारी से यहां हर कोई हैरान है ।।

मां की दवाई पिता का चश्मा ठीक कराना उनको है 
बेटी की गुड़िया बेटे की गाड़ी भी लानी उन्हीं को है 
खाली जेब खाली पोकिट का चर्चा हुआ आम है।। 

 करके कैरियर में समझौते हर काम वो कर रहे 
छोड़ पढ़ाई विद्या अध्ययन छोटे छोटे काम कर रहे 
कहते इसको लोकतंत्र पर कैसा यह सुशासन है ।।

महंगाई की मार से हर बेरोजगार गुजरता है 
जैसे तैसे दो जून की रोटी वह कमा पाता है 
अगर मिल जाए सब को काम तो जीना आसान है।।

 घर की जिम्मेदारी ने अवसाद तनाव से घेरा है 
चहुंओर लाचारी और बेबसी का ही डेरा है
 'सबको काम सबको दाम' यह नीति संविधान है ।।

देखो रिश्वत का राक्षस रोजगार को लील गया
 भाईभतीजावाद भी दफ्तरशाही में घुस गया 
आम आदमी खास आदमी को रोजगार नहीं समान है।।

रचनाकार :-प्रियदर्शिनी आचार्य 

🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹

'जय माँ शारदे '
विषय- बेरोजगारी
दिनांक-04-10-2021
विधा- पद्य-लेखन 
समीक्षा हेतु सादर। 

बेरोजगारी 
--------------
युवा-देश यह!
युवा ही लड़खड़ाता हुआ 
अपना ही बोझ 
अपने कंधो पर उठाता हुआ!

डिग्रियों का पुलिंदा 
लिए हाथों में 
दर- दर की ठोकरें है खा रहा 
कूलीन वर्ग में जन्मा वह 
अपना शीश झुका रहा!

अयोग्यता का तमगा 
लगा दिया गया हो मानो 
सफेदपोशों के आगे 
रोजगारी की भीख मांग रहा!

हवाला दिया जाता कभी 
आरक्षण का तो कभी 
रूपयों के तराजू में 
उसे तौला जा रहा----

योग्यता- अयोग्यता की किसे है परवाह ?
निज स्वार्थ में हर एक 
अपनी रोटी सेंक रहा 

बेरोजगारी कोरोना पर भारी 
क्या किसान, क्या मजदूर 
मजबूर है यहाँ हर एक 
बेबुनियादी नियमों का शिकंजा 
कसता जा रहा----

योग्यता साबित करने के लिए भी 
काम चाहिए 
जीवन यापन के लिए 
सम्मानित रोजगार चाहिए 
यहाँ तो भ्रष्टाचार का व्यापार 
बिन अवरोध चल रहा----
गेहूँ में घुन की तरह 
आज का युवा पीस रहा----!

एक अनहद, अनदेखी 
ज्वाला है धधक रही 
अपनी ही रूह को कुछ 
इस कदर झुलसा रहा---!

बेरोजगारी के फंदे में एक नहीं 
मानो पूरा देश झूल गया 
कल के समाचार- पत्र के साथ ही 
आज यह समाचार बासी हो गया---!

---- निकुंज शरद जानी 
स्वरचित और मौलिक काव्य सादर प्रस्तुत है।
                 

                   

🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹

नमन मंच
दिनाँक:04/10/2021
#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह 
#विषय:बेरोजगारी
#विधा: पद्य

     भाग्य का सितारा
=================
डिग्रियाँ अनेकों हाथ में,  
पर रोजगार मिलता नहीं।
भाग्य का अपना सितारा,   
क्यों यार खिलता नहीं।।

कोस कर भी क्या करूँ,  
मैं दोस्तों सरकारों को।
बन्द मैं कैसे कराऊँ,   
इन डिग्री के बाजारों को।
बिना रिश्वत के आजकल,  
पत्ता भी हिलता नहीं।
भाग्य का अपना सितारा,  
क्यों यार खिलता नहीं।।

शिक्षा के कर्ज में डूबा हूँ,  
सपने व अरमान गये।
गाँव में गिरवी रखे जो, 
वो पुश्तैनी खलियान गये।
शिक्षा रोजगार की जननी है, 
अब मुझे लगता नहीं।
भाग्य का अपना सितारा,  
क्यों यार खिलता नहीं।।

बेरोजगारी का आलम ये,  
युवा फंदों पर लटक रहा।
इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर,   
हर जगह भटक रहा।
माँ बाप के ख्वाब पूरे करूँ,  
वो रास्ता दिखता। नहीं।
भाग्य का अपना सितारा,   
क्यों यार खिलता नहीं।।

(स्वरचित एवं मौलिक)
-©®आई जे सिंह

🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹
04/10/2021नमन मंच

किसी ने कहां बेरोजगार हो
                   किसी ने कहां कवि हो न हमनें
हमने कहां कवि हैं इसलिए बेरोजगार हैं
                           और भावनाओं का कोई मोल नहीं
इसलिए कवि हैं, बहुत बड़ी बड़ी डिग्री है हमारे पास
                                   पहले भी थी अब हम और
है हमारे बच्चों के पास काम तलाश में भटकते रहे
                              पर फिर जुड़ गए अंतर आत्मा के
साथ सुना था आजमाने लगे
                      हम भी फुटपाथ पर ठेला सजाने लगे
पहले तो लोग दया दृष्टि दिखाते , पर फिर नजरें चुराने
         लगे हम भी बड़े दीठ थे
      सुन सुन गर्दन झुकाने लगे कई बार लड़खड़ाए हम
                        पर फिर कदम जमाने लगे ठेले हट कर
हम अब दुकान जमा ने लगे,
                    जो ताना देते थे हमें हमारा उदाहरण
सुनाने लगे आज हमारे पास सब है यही
                   हम अपने बच्चों को समझाने चले पर
डिग्री का ताल वे भी हमें दिखाने लगे
                     आप के जैसे नहीं बनना है हमें कुछ बहुत अच्छा करना है , हमने भी रोका नही टोका नहीं
                    प्रयास करने दिया, नदी मैं तैरने दिया
बेचारा तक हार कर किनारे बैठ गया,
   फिर बोला मैं अपना कुछ काम करूंगा आपकी तरह
               फुटपाथ से शुरूआत करूंगा 
अब बच्चों को किताबी ज्ञान के साथ कुछ जीवन की
               सच्चाइयों से अवगत कराना होगा
हमें उन्हें भूख का अहसास कराने के लिए 
                 भूखा भी रखना होगा
और हीन भावना को दरकिनार कर नये समाज का
                   निर्माण करना होगा।
अर्चना जोशी भोपाल मध्यप्रदेश यह कविता मेरे द्वारा स्वरचित है और पूर्णतः मौलिक है

🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌼
नमन....मंच
कलमबोलतीहैसाहित्यसमूह
आयोजन क्रमांक - 343 
विषय....प्रधानमंत्री जी को पत्र
विधा..... गीत
दिनांक....04/10/2021

      ---: प्रधानमंत्री जी को पत्र :---

हे प्रधानमंत्री जी ! निवेदन आप से ।
खत मैं लिख रहा बेरोजगारी भाँप के ।।

   है दिख रहा नहीं मुझे ,
                  जीवन का रास्ता ;
   क्या व्यवस्था शिक्षा की ,
                  सुनाएँ दास्ताँ ;

एम ए - बी ए पास भी अँगूठा छाप से ।
खत मैं लिख रहा बेरोजगारी भाँप के ।।

     साक्षर बनाने से नहि ,
                  चलेगा काम अब ;
     रोजी-रोटी का करें ,
                  जी ! इंतजाम अब ;

हों मुक्त सभी बेरोजगार अभिशाप से ।
खत मैं लिख रहा बेरोजगारी भाँप के ।।

       उदार सर्वशिक्षा को ,
                   इतना न कीजिए ;
       योजना के साथ सही ,
                  भी ज्ञान दीजिए ;

हों गुरूजी मुक्त गैर क्रिया-कलाप से ।
खत मैं लिख रहा बेरोजगारी भाँप के ।।

       ले के डिग्री काम भी ,
                 करते त हैं नहीं ;
       शिक्षा हि उसे काम की ,
                 दिलायें अब कहीं ;

स्वयं कमाई कर सकें न माँगें बाप से ।
खत मैं लिख रहा बेरोजगारी भाँप के ।।

           --------- ० ---------
स्वरचित व मौलिक रचना

             आचार्य धनंजय पाठक
                      पनेरीबाँध
             डालटनगंज , झारखंड🙏🏻
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹
🌹🙏नमन मंच🙏🌹
#कलम बोलती है
#विषय बेरोजगारी
#विषय क्रमांक 343
#विधा स्वैच्छिक

विकराल समस्या है बेरोजगारी
लाचार है आदमी,है लाचारी।
कोई त्रस्त है ,गरीबी से
तो किसी को पैसों की खुमारी।
बेरोजगारी सिर पर तांडव कर रही है।
केवल मध्यम वर्गीय जनता मर रही ।
प्राइवेट कार्यालय के बुरे हाल हैं
सैलरी की आस में आदमी बेहाल है।
गेंहू भरे घर में या पहले तेल लाए
दे मकान किराया या जेल जाए।
मौत दे देना प्रभु,ना देना गरीबी, बेरोजगारी
जब तक जिंदा रहे इंसान,जीती रहे खुद्दारी।।

स्वरचित मौलिक
✍सीमा आचार्य🌹🙏नमन मंच🙏🌹
#कलम बोलती है
#विषय बेरोजगारी
#विषय क्रमांक 343
#विधा स्वैच्छिक

विकराल समस्या है बेरोजगारी
लाचार है आदमी,है लाचारी।
कोई त्रस्त है ,गरीबी से
तो किसी को पैसों की खुमारी।
बेरोजगारी सिर पर तांडव कर रही है।
केवल मध्यम वर्गीय जनता मर रही ।
प्राइवेट कार्यालय के बुरे हाल हैं
सैलरी की आस में आदमी बेहाल है।
गेंहू भरे घर में या पहले तेल लाए
दे मकान किराया या जेल जाए।
मौत दे देना प्रभु,ना देना गरीबी, बेरोजगारी
जब तक जिंदा रहे इंसान,जीती रहे खुद्दारी।।

स्वरचित मौलिक
✍सीमा आचार्य
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹
नमन मंच
क़लम बोलती है साहित्य समूह
दिनांक 5/10/2021
दिन मंगलवार
विषय बेरोजगारी
विधा कविता
समीक्षा के लिए


जिस प्रकार बढ़ रहा है
दायरा जनसंख्या का
ऐसे में लगता है यही
यहां बेरोजगारी होगी।

बढ़ती जाती आबादी तो
घट रहे संसाधन जिनसे
हम कुछ कर पाये कुछ
कमा सके खुद के लिए।

बडी बडी डिग्री लेकर तो
घूम रहे हैं लोग क्या मिला
उन्हें समझ न पाये बस रहे
हमेशा परेशान बेरोजगारी से।

नीरू बंसल हनुमान गढ राजस्थान स्वरचित
🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼
नमन मंच
विषय -बेरोजगारी
दिनांक 5/10/2021
बेरोजगारी
पढ़ाई हुई पूरी M.A B.A वो कर रहे।
बेरोजगारी का ग्राफ देश में बढ़ा रहे।।
देश में हो रहा नव युवाओं का ऐसा विकास ।
पढ़ाई बस नाम की पूरी ना हो माता पिता की आस।।
उच्च शिक्षा को ले कर भी अशिक्षितओं की भीड़ में शामिल ।
विडंबना है ऐसी कि मध्यमवर्गीय ना अब किसी काम के काबिल ।।
बेरोजगारी का जो दाग लग रहा हर युवाओं के दामन पर।
बस ठेला लगाने को मजबूर हर युवा सब्जी बाजार।। 
सरकारी नौकरी का कहीं कोई ठिकाना नहीं।
युवाओं के पास पैसा कमाने का कोई साधन नहीं।
देश की अर्थव्यवस्था का हाल कैसा है ,भिखारी भी बेरोजगारों से अच्छा है ।
महंगाई के इस दौर में शादी-शुदा से तो हर कुंवारा ही अच्छा है ।।
उनकी पढ़ाई करके भी नौकरी मिली न छोकरी बस बच गई डिग्री की चाकरी ।
बच्चे कह रहे दादा दादी कुंवारे
 रह कर ही देश में रुकेगी नाग आबादी ।।
कर सपनों का बलिदान चपरासी की नौकरी को हो गया वह तैयार।
भला कैसे मैं कहलाना ना चाहूं ,कि अब नहीं मैं बेरोजगार।?

अनामिका संजय अग्रवाल खरसिया छत्तीसगढ़
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹
नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह 
#दिनांक-05/10/2021
#दिवस_मंगलवासर
#विषय_बेरोजगारी
#विधा_मुक्तक

पढ़े लिखे और अनपढ़ सबकी एक जैसी भीड़ खडी
ख्वाब धूमिल हसरतें टूटी इच्छा-शक्ति कमजोर पड़ी ।
चारों तरफ बढती #बेरोजगारी किसको जिम्मेदार कहेंगे
हनन हो रहा जिस प्रतिभा का वो आखिर किस किस से न लड़ी ।।

असीमित जनसँख्या बढती जा रही रोकने वाला कोई नहीं
लगातार घट रहे संसाधन अनियोजित दोहन अब करे नहीं ।
घटते शैक्षिक स्तर और कौशल बिन शिक्षा के कारण 
#बेरोजगारी बढ रही है समस्या का हल अभी तक कोई नहीं ।।

अब जरूरत है शिक्षा में बड़े परिवर्तन करने होंगें
आत्मनिर्भर देश बनाने नये तरीके अपनाने होंगे ।
असन्तुलन मिटाने को सबको करना होगा पुनरवलोकन
इस विकट समस्या का जल्दी समाधान अब ढूंढने होंगें ।।

कौशल युक्त प्रशिक्षण देकर सबको हुनर सिखाएं हम
विद्यार्थी को रुचि अनुसार विद्यालय में पढाएं हम।
मूर्ख बनाकर सत्ता पा जाते वायदे नेता झूठे करते हैं
सरकारी नौकरी के भरोसे न बैठ अपने उद्योग धन्धे लगाएं हम।।

स्वरोजगार अपनाकर के रचनात्मक परिश्रम युवा करे
#बेरोजगारी महामारी को शीघ्र पराजित युवा करे ।
साधन कम आरक्षण ज्यादा किसको जिम्मेदार कहेंगे
भटक रहे जो डिग्री लेकर वो नवीन अवसर सृजित करे ।

सर्वथा स्वरचित मौलिक और अप्रकाशित रचना है ।

डॉ देशबन्धु भट्ट
ग्राम सेम मुखेम
ब्लॉक प्रताप नगर
जिला टिहरी गढ़वाल 
उत्तराखण्ड
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹
शीर्षक – बेरोजगारी
दिनांक – 5-10-2021

हुनरमंद हाथों को कोई काम नहीं है,
जग में कोई उनका अपना नाम नहीं है,
ढूंढता फिर रहा वह रोटी का दो निवाला,
बेरोजगार है वह, उसके पास काम नहीं है।

उज्जवल भविष्य के सपने लेकर,
सारा परिवार खुन-पसीना एक किया,
दिन-रात मेहनत कर पढ़ाई किया पर,
बेरोजगार है वह, उसके पास काम नहीं है।

अच्छी पढाई के चक्कर में,
बिक गये सारे खेत और खलिहान,
नौकरी के चक्कर घिन्नी में पीसकर,
बेरोजगार है वह, उसके पास काम नहीं है।

शोषण है हर ओर यहां पर,
मेहनत का नहीं मिलता पूरा दाम,
शब्दों के हेराफेरी में उलझकर,
बेरोजगार है वह, उसके पास काम नहीं है।

नौकरी का झांसा देकर ठग
मासूम बेरोजगारों को लूट जाते है,
असली-नकली के चक्कर में पीसकर
बेरोजगार है वह, उसके पास काम नहीं है।

सोंच बदलों, आत्मनिर्भर बनो,
बेरोजगारी छोड़, संभालों अपना काम,
कठिन है यह थोड़ा, पर नामुमकिन नहीं है,
बेरोजगारी हटाने का इससे बेहतर विकल्प नहीं है। आज से ठान लो मन में परिस्थितियों के सिर पर चढ़कर हिमालय पर चढ़ना हैं, अपनी हिम्मत से, विश्वास और प्रयत्न से बेरोजगारी को मिटाना है। 

मंजू लोढ़ा,स्वरचित
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹
नमन कलम बोलती है मंच
विषय क्रमांक-343
विषय-बेरोजगारी
विधा-कुंडलिया
दिनांक-4/10/2021

रहे कुशलता काम में, हों सपने साकार।
रोजगार जो दे नहीं, वह शिक्षा बेकार।।
वह शिक्षा बेकार, काम कब सबको मिलता।
कमी नहीं हो अर्थ, युवक हर आगे बढता।।
हो आबादी रोक, तभी है असल सफलता।
सपने हों साकार, सभी में रहे कुशलता।।

ऐसी शिक्षा दीजिए, हो सबका उद्धार।
रोजगार मिलता नहीं, शिक्षित हुए अपार।।
शिक्षित हूए अपार, नये उद्योग चलायें।
हों लघु और कुटीर,सभी को काम दिलायें।।
रोजगार दें स्वयं, कहीं क्यों माँगे भिक्षा।
खुद का हो उद्योग, निपुण हों ऐसी शिक्षा।।

चढे पढाई कर्ज घर, पड़ता इलाज भार।
कौन चुकाये कर्ज अब, क्या इलाज बीमार।।
क्या इलाज बीमार, साथ मँहगाई मारे।
आरक्षण का दैत्य भूख अब सबको मारे।।
भ्रात भतीजा वाद, सकल ये नाव ड़ुबाई।
होनहार लाचार, कर्ज जब चढे पढाई।।

स्वरचित
डॉ एन एल शर्मा निर्भय
जयपुर
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹
जय माँ शारदे
नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
#दैनिक विषय क्रमांक - 342
दिनांक - 05/10/2021
#दिन : मंगलवार
#विषय - बेरोजगारी
#विधा - कविता
#समीक्षा के लिए
---------------------------        
**********************************

आन पड़ी है सिर पर जिम्मेदारी, ऊपर से बेरोजगारी।
खत्म हो गए नोट सब, बची नहीं जरा भी रेजगारी।।

मर खप कर जैसे तैसे हमने, खत्म की अपनी पढ़ाई।
खाने को बचा कुछ नहीं घर में, बस ठोकरें ही खाई।।
मां छुपाती रही अपनी बीमारी, बहन की उम्र बड़ चली है
दिल आंहे भरे, रह-रह कर, उसमें से निकलती चिंगारी।।

रिश्ते पराए अब होने लगे, दोस्त सारे मुख मोड़ने लगे।
नौकरी मिली क्या पूछ कर, दिल को मेरे तोड़ने लगे।।
जतन करके देखे अनेकों, इंटरव्यू देके देखे
हजारों।
सच कहता हूं मैं यारों कहीं भी, काम ना आई मेरी होनहारी।।

घर की दीवार भी अब लगे, टूट कर मुझको चिढ़ा रही।
जगह-जगह अपना मुंह खोलकर, मंद मंद मुस्कुरा रही।।
किसी काम का होता नहीं हुनर, काम ना आए ईमानदारी।
हर तरफ चल रही तरफदारी, मेरे पास बची मेरी लाचारी।।

मौलिक एवं स्वरचित 
जगदीश गोकलानी "जग" ग्वालियरी
ग्वालियर, मध्य प्रदेश
🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼
नमन मंच
कलम बोलती है
विषय क्रमांक: 343
विषय: बेरोज़गारी
विधा: नज़्म

क्यूँ गरीबी को बदहाली हो गयी
बेरोज़गारी की गुनाही हो गयी

परोस कर झूठ की थाली बेचते हो
कोरे सच इस कदर नीलामी हो गयी

बेरोज़गारी ने लूटा सुख चैन मेरा
उधारी की यूँ इज़ाफ़ी हो गयी 

हशर आम आदमी का हुआ जानिब
जैव उसकी बेवजह खाली हो गयी

तर्क-के-मय वो खूब पिलाते गये हमे
अंजु जीवन में शिगाफी हो गयी

अंजु भूटानी
नागपुर
🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼
#कलम बोलती है
#मंच को नमन
 #दो दिवसीय आयोजन 
#विषय बेरोजगारी 
# विधा कविता 
#दिनांक 4 अक्टूबर 2021 
्््््््््््््

रोजगार न दे पाएं सबको, है सरकारों की लाचारी।
सुरसा सा मुंह फाड़े खड़ी है, देखो यह बेरोजगारी।

जगह-जगह स्कूल खुले हैं, बांट रहे हैं डिग्री सारी। 
बिना पढ़े डिग्री मिल जाए, यह है सारी बेरोजगारी। 

पढ़े-लिखे का कोटा कागज में, योग्यता शून्य धारी।
एक नौकरी हजार दरखास्त,सरकार की कमाई जारी।

रोजगार दफ्तर बतलाते, बेरोजगारी की भरमारी।
करते दीगर काम पर,दफ्तर रोजगार की हैं बीमारी।

योग्यता नहीं है जिनमें, पर डिग्री 90 परसेंट धारी।
हमारे जमाने में विद्यार्थी, 60%बिरला ही खेलते पारी।

 सेकंड डिवीजन पाते, तो हम फूले नहीं समाते। बेरोजगारी समस्या न थी,बहुतेरे नौकरी छोड़ आते।

आरक्षित कोटा न हो , सिर्फ योग्यता मापदंड हो।
योग्यता अनुसार काम मिले,बेरोजगारी दफन दफन हो।

कामगार कर रहे काम है ,पर हैंगे बेरोजगार ।
रोजगार दफ्तर के देखो ये,असली है सौदागार।

स्वरचित अप्रकाशित मौलिक रचना।
 नृपेंद्र कुमार चतुर्वेदी एडवोकेट।
 प्रयागराज उत्तर प्रदेश
🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼
नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय बेरोजगारी
विद्या पद्य
दिनांक-4-10-2021

बढ़ती जनसंख्या से बडी बेरोजगारी।
जीवन बन गया अब निराशावादी।
जगह-जगह हाहाकार निराशा भरी।
चारों तरफ बहुत बड़ी बेरोजगारी।

भाई भतीजावाद जनता पर भारी।
रोटी की समस्या करे परेशानी।
नैनों से विडंबना का बहे पानी।
पढ़े लिखे युवाओं की समस्या भारी

हाथ पर डिग्री लेकर फिरे मारामारी
चारों तरफ हो रही मानवता की लाचारी।
दुनिया की चकाचौंध में मारामारी।
विश्वास हनन हो गया दुविधा सारी।

छोडे गांव शहरों की संकुचित अंधियारी।
दाल रोटी के लिए तरस रहे भारी।
देखा देखी में हो रही है देनदारी।
कहीं नहीं दिखाई दे रही है वफादारी।

भाई भाई की हो रही है आपस में बुराई।
गृहस्ती में चल रही है समस्या भारी।
चूल्हे चूल्हे में राजनीति विकट न्यारी
हर रिश्ते में झूठ फरेब व्यबचारी।।

स्वरचित मौलिक
संगीता चमोली देहरादून उत्तराखंड
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹
क़लम बोलती है साहित्य समूह
दिनांक:-04-10-2021
बिषय:- बेरोजगारी
विधा:- कुंडलियाँ, दोहा
क्रमांक:-343

रोजगार मिलता नहीं, खाली सबका हाथ|
कलप-कलपकर पीटते, हैं सब अपना माथ||
हैं सब अपना माथ, पेट खाली खाली है|
मँहगाई की मार, और हालत माली है।।
कहें' मधुर' कविराय, भोगती जाए जनता।
सरकारें हैं मस्त, कुछ रोजगार न मिलता।।

दोहा:-

युवा झेलता दंश है, काम नहीं कुछ पास|
पेट वस्त्र कैसे चले, रहता सदा उदास||

               स्वरचित/ मौलिक
              ब्रह्मनाथ पाण्डेय' मधुर'
ककटही, मेंहदावल, संत कबीर नगर, उत्तर प्रदेश
🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼
#नमन कलम बोलती है साहित्य समूह 
#दिनांक 04/10/ 2021
#दिन- सोमवार 
#विषय- बेरोजगारी 
#विधा- गद्य

#बेरोजगारी से आशय- जब कोई व्यक्ति शारीरिक, मानसिक दृष्टि से कार्य करने के लिए योग्य हो या किसी कार्य को करने के लिए उसके पास पर्याप्त योग्यता एवं क्षमता हो इसके बावजूद भी उसे कहीं काम ना मिल पाए बेरोजगारी कहलाता है|
वर्तमान परिप्रेक्ष्य को देखने से पता चलता है इस समूचे भारत में बेरोजगारी की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है| आज नवयुवकों के पास पर्याप्त योग्यता, क्षमता होने के बावजूद भी उन्हें कहीं कार्य नहीं मिल पा रहा है| जिससे वो तनावग्रस्त हो रहे हैं|

#बेरोजगारी की समस्या

1) बढ़ती जनसंख्या वृद्धि-- जनसंख्या वृद्धि दिन- प्रतिदिन बढ़ती जा रही है| हमारे देश में जनसंख्या गुणात्मक अनुपात में बढ़ रही है जबकि देश के संसाधन ज्यामितीय अनुपात में बढ़ रहा है| बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण संसाधनों में कमी आ रही है जिससे लोग बेरोजगार हो रहे हैं|

2)#पूंजी की कमी पूंजी के अभाव में लोग अभावग्रस्त जिंदगी जी रहे हैं| कहीं भी अपना उद्योग धंधा स्थापित नहीं कर पा रहे हैं|

3) #तकनीकी शिक्षा का अभाव आज भारत में सबसे ज्यादा शिक्षित बेरोजगारी की समस्या बढ़ती नजर आ रही है| जिसका मुख्य कारण है तकनीकी शिक्षा का अभाव नवयुवकों को केवल सैद्धांतिक शिक्षा दी जाती है| उन्हें व्यवहारिक शिक्षा नहीं दी जाती है| जिसकी वजह से वे तकनीकी क्षेत्र में नहीं जा पा रहें हैं|

4)#दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली भारत की शिक्षा प्रणाली दोषपूर्ण है| भारत में विद्यार्थियों को जीवन उन्नयन, कौशल, क्षमता संवर्धन का शिक्षा नहीं दिया जाता है| केवल उन्हें परीक्षा उत्तीर्ण करने की शिक्षा दी जाती है|

5)#व्यवसायिक शिक्षा का अभाव व्यवसायिक शिक्षा के अभाव के कारण नव युवकों में बेरोजगारी की समस्या पनप रही है| उन्हें उनकी योग्यता क्षमता के अनुरूप कार्य नहीं मिल पा रहा है क्योंकि उनके पास व्यवसायिक शिक्षा का अभाव है|

#बेरोजगारी का समाधान

1)#जनसंख्या नियंत्रण जनसंख्या नियंत्रण कर बेरोजगारी की समस्या को कुछ हद तक कम किया जा सकता है| क्योंकि संसाधनों के अभाव में जोवकोपार्जन मै कठिनाई आ रही है|

2)#व्यवसायिक शिक्षा की व्यवस्था यदि बेरोजगारी की समस्या को दूर करना है इसके लिए शासन को व्यवसायिक शिक्षण संस्थान की व्यवस्था करना चाहिए जिस से विद्यार्थी प्रवेश लेकर अपना भविष्य को उज्जवल कर सकें|

2)#अधोसंरचना का विकास बेरोजगार नविकों के भविष्य को सुनहरी बनाने के लिए देश में अधोसंरचना का विकास होना नितांत आवश्यक है| जिसके द्वारा बेरोजगारी की समस्या को कुछ हद तक कम किया जा सकता|

3)#तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था भारत में तकनीकी शिक्षा का अभाव है जिससे व्यक्ति केवल सैद्धांतिक शिक्षा प्राप्त कर पाते हैं और पूरे वर्ष बेरोजगार होकर अत्र तत्र भटकते रहते हैं|

#निष्कर्ष मैं निःसंदेह कह सकता हूं कि बेरोजगारी की समस्या से निजात पाने के लिए अधोसंरचना का विकास एवं जनसंख्या वृद्धि को रोककर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है| इसके लिए गैर सरकारी संगठन एवं सरकारी संगठन दोनों मिलकर अभिनव पहल उठाने की आवश्यकता है |

                       रचना 
            स्वरचित एवं मौलिक 
           मनोज कुमार चंद्रवंशी 
                 (व्याख्याता) 
   बेलगवाँ जिला अनूपपुर मध्यप्रदेश
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹नमन मंच 
#कलम बोलती है साहित्य समूह 
#विषय :बेरोजगारी 
क्रमांक -343
दिनांक 04/10/2021
दिन :सोमवार 

मै श्रम करने वाला हूँ मजदूर, मेरी किस्मत में विश्राम कहाँ 
मै विश्राम करूँगा तो श्रम कौन करेगा यहाँ !

मेरी ही मेहनत से, यह कोठी, बँगले, मकान,कार्यालय,ऊंची 
-ऊंची इमारतें,मंदिर,मस्ज़िद,गुरूद्वारे,गिरजाघर,बने आज !!

इन गठठे पड़े हाथों से,ईंटों को ढोया,हाथों से मसाला-गारा
बनाया है मिस्त्री तक पहुँचाया,तब जाकर यह सब बन पाया !

ईंट-भटटों में, भारी दुपहरिया में श्रम कर 
इन ईंटों को है बनाया, तब यह सब निर्माण संभव हो पाया !!

यह कोठी, यह बगलें, यह कार्यालय,आदि  
की ड्योड़ी पर जब जाता, तो दुत्करा , फटकारा जाता 
दूर से ही निहार कर मन को, समझा कर वापस आ जाता !

जब जरुरत पड़ती दुबारा, चाय, समोसा, मट्टी खिलाया जाता, 
दोपहर को खाना भी, फिर जी तोड़ मेहनत कराया जाता !!

हम मजदूर ना होते इस धरा पर,तो क्या निर्माण कार्य हो पाता  
इस संसार में क्या,मनुष्य सुखद जीवन ब्यतीत कर पाता !

हम मजदूर मजदूरी करते, रूखी सूखी खाकर ठंडा पानी पीते 
हमको नहीं सुहाए सोलह पकवान, नमक, मिर्च,मोटी मोटी रोटी संग प्याज, मन को भाये सदाबहार !!

कोरोना वायरस की वजह से शहरों में नहीं है काम
हमारे हाथों की लकीरों, की किस्मत है फ़ूटी आज !
तभी तो हम लोग है बेरोजगार 
फैली है बेरोजगारी चारों ओर !!

शिवशंकर लोध राजपूत ✍️
दिल्ली 
व्हाट्सप्प no. 7217618716
🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼
_________________________
#मंच #को #सादर #प्रणाम /🙏/
           | ■ | #कलम #बोलती | ■ |       
              बिषय क्रमांक --343
विषय -- #बेरोजगार
विधा -- #हाइकु
दिनांक -- #04/10/2020
दिन -- #सोमवार  
_________________________

१/
भूल न जाना -
पुस्तक है पढ़ना 
ज्ञान है पाना 

२/
देना है दाना
जीव जन्तु हमारे -
भूलना मत 

३/
तड़प देख -
विचलित न होना 
मदद करों 

४/
सारथी बनो
सही रास्ता दिखाओं -
भ्रम न पालो

५/
भूल चूक से -
रास्ता भटक गये
माफी मागंलो 

६/
एक ही चूक -
जीवन बदलती 
सोचो समझो

७/
बेरोजगारी -
पलायन कराती 
पेट पालने 

८/
विज्ञान पढ़ो 
अशुद्ध मिश्रण से -
विष बनता

९/
त्याग दो उसे -
जो है नासूर तुम्हें 
जीवन बचा 
_________________________
स्वरचित .......
पूर्व सैनिक 
प्रमोद कुमार चौहान 
शा मा शाला सिरावली 
ब्लाक कुरवाई विदिशा 
_________________________
🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼
नमन म॔च 
कलम बोलती है साहित्य समूह 
दिनांक :5/10/21
विषय बेरोज़गारी 
विधा: कविता

बेरोजगारी केवल निकम्मों के लिये
श्रवण प्रह्लाद ध्रुव के लिए कोई 
बेरोजगारी भुखमरी नही थी
आजादी के लिए वीरों ने फांसी के फंदे चूमे ।

अनादिकालीन भारत देवभूमि रही है 
भारत ऋषि मुनियों की तपस्थली रही है
भारत किसानों की कर्म भूमि रही है
 भारत योद्धाओं की कर धर्म भूमि रही है।

जहां कर्म ही श्रद्धा कर्म ही पूजा रहा हो
परम्परागत सांस्कृतिक आदान-प्रदान रहा हो
जहाँ कर्म सा न कोई गुण दूजा रहा हो
कर्म प्रधान जीवन जिस भारत का रहा हो।

भारत भूमि मानवीय संवेदना से भरपूर रही है
साहित्य कला सांस्कृतिक संगीत की पहचान रही है
जहां चिकित्सा के नये नये आयाम नित सृज रहे हैं
जहाँ जल थल नभ में वीरों की पहचान रही हो।

जहां कर्मवीर श्रमवीर नित नवल प्रतिमान गढ रहो हो
हां निकम्मों के लिए सदा ही बेरोज़गारी रही है
हां आलसियों के लिए कभी कोई काम न रहा हो
कैस कह दे मन झूठ से कि बेरोज़गारी बढी है ।

स्वरचित मूल रचना 
कवियत्री :गार्गी राजेन्द्र गैरोला 
देहरादून,उत्तराखंड
🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼
# नमन मंच 
# दो दिवसीय आयोजन 
# विषय- बेरोजगारी 
# विधा - कहानी 
# दिनांक- 4-10-2021 
🌺✍ 
    किसान देश का अन्नदाता होता है ,मगर ये कैसी मजबूरी है कि खेतिहर भी शहर में नौकरी करने जाने की ओर आकर्षित हो जाते हैं। बड़ा बेटा ददन कलकत्ता में कपड़े की फैक्ट्री में काम करने चला गया। लखन खेत की पैदावार शहर जाकर बेचा करता था। ग्रीष्म ऋतु के पश्चात वर्षा ऋतु का आगमन होने वाला था। धान की रोपाई के लिए भरपूर पानी की आवश्यकता होती है। पर कहते हैं न किसी भी चीज की अति अधिकता अच्छी नहीं होती। लखन की सूनी आंखें जैसे भगवान से बातें करती हों, " हम गरीबों पर रहम बरसा प्रभु।" अचानक ईश्वर की कृपा तो हुई, पर ये कह सकते हैं कि बारिश ज्यादा ही हुई, लखन की उम्मीद पर जैसे पानी फिरता नज़र आ रहा था। लगातार बारिश होती रही धान की खेती तहस नहस हो गई। दूसरी ओर ददन बड़ा बेटा बेरोजगार हो शहर से वापस आ गया था,भारी नुकसान के कारण कपड़े की फैक्ट्री बंद हो गई, वह बेरोजगार हो गया। यह सब देख लखन हताश हो बीमार पड़ गया। छोटा बेटा दुःखी हुआ किन्तु हार कर बैठने को तैयार नहीं था। मन मस्तिष्क में कुछ नया करने की ठान ली।
आख़िरकार लखन के दोनों बेटों ने निर्णय लिया कि अन्य रोजगार भी करेंगे जिसके लिए उसे बारिश पर निर्भर न रहना पड़े। मां बांस से बनने वाले सामान के निर्माण में कुशल थी। बेटों ने कुटीर उद्योग जैसे कार्य को भी खेती के साथ-साथ चलाने का निर्णय लिया। ताकि बेरोजगारी दूर हो सके। बारिश ने ही उसे कुछ अलग सोचने पर विवश किया। लखन के बेटे की सकारात्मक सोच और कठिन परिश्रम ने एक नई राह दिखाई। मां बेटे मिल कर बांस से बनी तरह-तरह की वस्तुएं तैयार किए और उसे रंग कर आकर्षक बनाया। धीरे -धीरे उसके इस व्यापार को सराहा जाने लगा और बढ़ावा मिला। घर की आर्थिक स्थिति में सुधार होने लगा, लखन अब केवल खेती पर ही नहीं निर्भर रहता था। लखन के बेटों यानि नई पीढ़ी की सोच ने एक नए विचार को जन्म दिया। जिंदगी जीना भी एक कला है जिसमें नित नए रंग भरने के विषय में सोचना चाहिए।
लखन खेती में और दोनों बेटे कुटीर उद्योग को बढ़ाने में पुरजोर कोशिश करने लगे। शहरों में लोग छोटे-बड़े पर्व- त्यौहारों में भी बांस से बनी डलिया में उपहार सजाकर लोगों को भेंट किया करते हैं। बांस से बनी सामग्रियों के महत्व को प्राथमिकता दी। लखन के बेटों की सकारात्मक पहल से रोजगार को तरक्की मिलती गई। बेरोजगारी निराशा को जन्म देती है, पर नयी राह भी वहीं से आरंभ होती है। विपरीत परिस्थितियों में धैर्य नहीं खोना चाहिए। चुनौतियों से जूझना ही जीवन है। 

* अर्चना सिंह जया , गाजियाबाद।
    
🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼
नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
दिनांक 4/10/2021
विषय--बेरोजगारी
विधा कविता


घटती अर्थव्यवस्था है बढ़ती बेरोजगरी।
विद्रोह की फूट रही है देश में चिंगारी।
अपने भत्ते बढ़ाने में कसर नहीं छोड़ते, 
काबू नहीं आ रही है फैली चोर बजारी।
जवान बेरोजगार भविष्य अंधकार में, 
हालात से लाचार मिले नहीं रोजगारी।
थाली से दाल रोटी दूर होती जा रही, 
टैक्सों की मार देना कहाँ की समझदारी। 
मुश्किलों के दौर में क्यों आज अन्नदाता, 
उतर सड़क पर आया है समझो लाचारी। 
किसान मजबूत हो सुदृढ़ अर्थव्यवस्था, 
निर्यात कर आनाज को निपटे देनदारी। 
हर हाथ को काम हो उचित दाम हो, 
कुटीर उद्योग में हो सभी की साझेदारी। 
रिक्त भद तुरंत भरो पढ़ाई का मोल हो, 
कुशलता से कार्य हों गैर या सरकारी। 
संस्थान सृजन करना नेताओं का काम है, 
निष्पक्षता से हर क्षेत्र में निभाएं वफादारी। 


रचना मौलिक स्वरचित है। 
शिव सन्याल 
ज्वाली कांगड़ा हि. प्र
🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼
नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समुह
विषयः बेरोजगारी
विधाः कविता
दिनाँकः 4-10-21
देखकर शहर की 
चकाचौंध आ गये गाँव से
इस विश्वास में 
अपनी भी होगी बंगला कार
पर आके बेकार हो गये।1
खो कर अपनी पहचान
भटकते भटकते 
पथरीली सड़को में
खुद अपनी जमीं से 
बे आधार हो गये।2
छुट गया गाँव, सम्मान 
शहर की अंधकार.में खो.गये।3
🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼
बेरोजगारी


कोरोना के काल मे
सब फस गए बेरोजगारी के जाल में

हाल बेहाल हो गए
हाय इस जंजाल में


कई मुह से निवाले छीन गए
कहियो के गए सपने टूट

जबसे बेरोजगार हुए है
कई अपने गए है छूट।


नवयुवको मे रोष बहुत है
बेरोजगारी का बोझ बहुत है।

पढ़ लिख कर भी धकके खा रहे
पकोड़े चाय समोसे बना रहे।

इस बेरोजगारी ने मारा ऐसा शूल

की छट गई शिक्षित होने की धूल।


सुनीता शर्मा।

मंदसौर मध्य प्रदेश
🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼दिनांक: 04/10/21
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय: बेरोजगारी"
  -डॉ. महेश मुनका "मुदित"  
पढ़े-लिखे युवा घूम रहे बेकार,
न है नौकरी इनके पास न ही कोई कारोबार। 
यह फैल रही है जैसे, हो कोई महामारी,
आज के युवा जो है बेरोजगार,
हो रहे हताश निराश और लाचार।
यह कैसी बेरोजगारी,यह कैसी बेरोजगारी।। 
दुनिया भर की डिग्रियां इन्होंने ले रखी है, 
मैडल और मान पत्रों से संदुकें के भरी पड़ी है।
पर अब यह सब हैं बेकार, मिलता नहीं रोजगार।
तपती धूप बारिश में भी, दर-दर घूम रहे हैं 
परीक्षा साक्षात्कार से भी, रूबरू हो रहे है।
 फिर वही ढाक के तीन पात ।
यह कैसी बेरोजगारी यह कैसी बेरोजगारी ।।
जगह-जगह ठुकराए जाने पर, हो गए निराश, 
आंखें भरी भरी पड़ी है दिल हो रहा है हताश। 
भाई भतीजावाद ने, फेरा है सब पर पानी।
पेट भरने को एम ए,पास भी बन रहे दरबान।
यह कैसी बेरोजगारी यह कैसी बेरोजगारी ।।
कहे मुदित,देशभर में यह बेरोजगारी बनी है महामारी, सरकार प्रयासरत हैं फिर भी लगाम न लगा पा रही।
यह कैसी बेरोजगारी हो या कैसी बेरोजगारी।।
  -डॉ. महेश मुनका "मुदित"  
*******
🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼
#कलम ✍🏻 बोलती_है_साहित्य_समूह  
दो दिवसीय लेखन
#विषय : बेरोजगारी
#विधा : छंदमुक्त काव्य
#दिनांक :4/10/2021, सोमवार
समीक्षा के लिए
_______________________
शैतान की आँत सी
बढ़ती जा रही है बेरोजगारी
सुरसा के मुँह सी
फैलती जा रही है बीमारी। 
आजीविका की खोज में
दर दर भटक रहा है आदमी
रोजगार की तलाश में
ठोकरें खा रहा है आदमी। 
पढ़े लिखे, डिग्री लिए
बेरोजगार हैं कतार में
रोजगार के लिए भीड़ लगी
फुटपाथ और बाजार में। 
व्यक्ति, देश और समाज के लिए
 बेरोजगारी है बड़ी घातक
 आवारागर्द, गुंडागर्द और
युवा हो रहे अराजक। 
जनसंख्या वृद्धि, औद्योगीकरण
मशीन यंत्रों के प्रयोग से
बंद हैं कुटीर धंधे
और ठप पड़ गए उद्योग। 
शारीरिक श्रम का हो महत्त्व
जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण
कुटीर उद्योग को मिले प्रोत्साहन
हो शिक्षा का व्यवसायीकरण। 

         
                स्वरचित मौलिक रचना
              सुमन तिवारी, देहरादून, उत्तराखंड
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹
नमन मंच 🙏🙏
कलम बोलती है साहित्य समूह
दिनांक: ५/१०/२०२१
विषय : बेरोज़गारी

आशाएं बिखर जाती हैं
खुशियां मुंह मोड़ लेती हैं
निराशा घर कर लेती है
डिग्रियों का पुलंदा लिए
जब युवा पीढ़ी ऑफिस दर ऑफिस
रोजगार की तलाश में भटकती है

गरीब वृद्ध माता पिता ने 
न जाने कितने सपने सजोए थे
बेरोजगारी की आग में
सबके सब ध्वंस हो गए थे

बेरोजगारी की यह बीमारी
तकनीकि शिक्षा के अभाव से
रातों रात बड़ा बनाने के ख्वाब से
जनसंख्या वृद्धि नियंत्रण पर
सरकार के न मिलते जबाव से
महत्वहीन शारीरिक श्रम से
सुरसा वत विकराल रूप
आज धारण कर रही है।

स्व रचित मौलिक रचना
सरोज माहेश्वरी पुणे (महाराष्ट्र)
🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼
💐🙏#कलम✍ बोलती है साहित्य समूह🙏💐

#दैनिक_विषय_क्रमांक-- ३४३

#दिनांकः ०५.१०.२०२१
#दिवसः मंगलवार
#विषय: कविता
#विषय: बेरोज़गारी

आपाधापी चारों ओर भ्रमित, 
हो शिक्षा का नंगा नाॅंच यहाँ। 
डिग्रीधारी हो बहु क्षेत्र दमित, 
बेरोजगार बेबसी काॅंच जहाँ। 
       मारामारी बस, भागमभागी, 
       मज़बूर जीविका भटक रही जनता। 
       जठराग्नि दहकती क्षुधार्त प्यास, 
       आक्रोशित युवा वृद्ध नारी क्षमता। 
अतिकुपित विलखती अवसाद कलम, 
बेकार युवा तड़प रोज़गार कहाँ। 
जन डॅंसी बेरोजगारी साॅंपिन, 
सुरसामुख दीन धनी भेद यहाँ। 
        बन जीती जनता बस वोटबैंक, 
        बस चुनावी वादा जन ग्रस्त यहाँ। 
        बेरोजगार बेबस है युवावर्ग, 
        भटकाव बिखर पथ बस क्षोभ यहाँ। 
है चाहत विशाल मानव जीवन, 
तकनीक चिकित्सा बहुविध शिक्षा। 
कानून , वाणिज्य संस्था शिक्षण, 
रोजगार शिक्षा संस्था दीक्षा। 
         तीन चौथाई जन रोजगार विमुख, 
         बांटे कुछ मुफ़्त मुफ्तखोर यहाँ। 
         एक पीठ पेट क्षुधा प्यास पीड़ित, 
         मुफ़्त प्राप्ति रत जनता होड़ यहाँ। 
बस लूट रहे धन जन नेतागण, 
सुविधा सुख विलास जीवन्त यहाँ। 
युवजन जनता बेरोजगार मरण, 
दंगा हिंस्र लूट छल निरत यहाँ। 
         उदास युव जन गण आजाद वतन, 
         कर रोजगार विरत उन्माद यहाँ। 
         दिया सर्वस्व लुटा सन्तति शिक्षण, 
         हो समुचित शिक्षण निर्बाध यहाँ। 
क्या स्वाधीन युवा जनता भारत, 
धन तन मन आहत विक्षिप्त यहाँ। 
बन कामी खल दल आतंक पथिक, 
संयम धीर मनोबल टूट रहा। 
         हो जाग्रत शासन सरकार वतन, 
         करे युवा रोजगार नित यत्न यहाँ। 
         फिर खुशियाँ सुख जनगण जीवन, 
         नवजोत सोच मुख मुस्कान यहाँ। 

कवि✍डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक (स्वरचित) 
नई दिल्ली
🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼
कलम बोलती है साहित्य मँच
क्लमाँक ३४३
विषय बेरोजगारी
विधा

दिन ब दिन बढ रही आबादी
बचाव के कोई उपाय नहीं है।
भुखमरी महंगाई के पाटो में
पीस रही जनता सारी है।

जनसंख्या नियंत्रण ना होगा
प्रलय भयंकर ऐसा आयेगा।
मानव को मानव ही खायेगा
जब खाना नसीब ना होगा।

सर पर जब छत नसीब ना होगी
जिसकी लाठी उसकी भैंस होगी।
रोजगार की किल्लत बढ जायेगी
 सक्षम होगा उसकी तकदीर बनेगी।

बढा विलासिता का बोलबाला है ।
पर्यावरण का संतुलन बिगड़ा है।
जब पापाचार चरम पर बढ जायेगा
तब सब कुछ यहाँँ बिखर जायेगा।

अनिल मोदी, चेन्नई3
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹
नमन मंच
विधा - कविता
बेरोजगार 

सोची थी डॉक्टर बनूँगी या इंजीनियर बनूँगी
बड़ी होकर कुछ न कुछ तो जरूर बनूँगी
पर अफसोस न डॉक्टर बन पाई न इंजीनियर
जिसका मुझे डर था वही हो गया
जी हाँ! बड़ी होकर शिक्षित बेरोजगार हो गयी
होती भी क्यों न होना ही था
नेता या अभिनेता की पुत्री जो न थी
नौकरी की कोई कमी नहीं है जनाब
बस पैसे होने चाहिए आपकी जेब में
खैर इस बेरोजगारी ने अच्छा पाठ सिखाया
मुझे कविता लिखना सिखाया
रोकर लिखती हूँ,हँसकर लिखती हैं
जब भूख लगती है तब रोटी पर लिखती हैं
मंहगाई जब भागती है
आलू और टमाटर पर लिखती हूँ
माफ करना भैया
मैं तो खुद पर लिखती हूं
ईश्वर की बंदरिया हूं
मदारी के खेल पर लिखती हूं।।

राधा शैलेन्द्र
भागलपुर
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹
नमन मंच #कलम_बोलती_है समुह 
#विषय- बेरोजगारी 
विधा- पद्य 
#दैनिक_विषय_क्रमांक- 434
     ॥ बेरोजगारी॥
      सारे जगत में पसरा 
  बेरोजगारी का आलम है
बेरोजगारी युवा को डस रहा
रोजगार से खाली हर दामन है
     दर्द ऐ हाल उनसे पूछो
      जो जन बेरोजगार है
    रोजगार वाले जीत गये
    बेरोजगारों की हार है
उसे मालुम पडती दुनिया दारी
  जिसके पास है बेरोजगारी 
 बेरोजगारी एक अभिशाप है
फिर भी बेरोजगार में छुपी 
     उम्मीद कि आस है
बेरोजगारी है तो रहे कभी मंदा
आओ हम शुरू करे अपना ही 
  कुछ वाणिज्यिक काम धंधा

      घूरण राय "गौतम" 
         मधुबनी बिहार
🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼
नमन मंच 🙏🙏
कलम बोलती है साहित्य समूह 
विषय क्रमांक 343
विषय बेरोजगारी  
विधा स्वैच्छिक कविता

 दिन मंगलवार
 दिनांक 5 अक्टूबर 2021
 विषय झोपड़ी और इंसान 
विधा स्वैच्छिक कविता

भूख बेबसी मजलूमी में बेकारी दरिद्रता बेरोजगारी,
मुफलिस की मारी जनता निजाम बनाके ले लाचारी।

ओ महलों की रहने वालों जरा झोपड़ी में जाकर देखो,
चकाचौंध से दूर पड़ी है तुम इनके अंदर जाकर पेखो।

दर्द भरी गरीबी भूखे प्यासे सुख सुविधा कब से हीन,
जाकर शिक्षा की अलख जगाओ बन जाओ बंधु दीन।

दीनबंधु बनकर तुम इनके जीवनतम मेंप्रकाश भर दो,
जीवन को सुंदरतम करने तुम थोड़ा सा उपक्रम कर दो।

झोपड़ीनुमा घर के भीतर भी दीनबंधु वेभगवान बसे हैं,
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे दीवार से अरमान जगाती बसे हैं।

गंदगी बदबू कीड़े मकोड़े के बीच तेरे प्रतिरूप बसे हैं,
थोड़ा वक्त निकालो बाहर यहां भी कुछ इंसान बसे हैं।

झोपड़ी टूटी बर्तन फूटे घास फूस सा बिखरे आशियाना,
जरा रहबर बन देखो जला दो कुछ उज्ज्वल शमियाना।

कंगाली में कैसे गुजरी भूखी रातें दिन भी कटे रो रोते,
दो वक्त जून की रोटी खातिर बलि चढ़ी नाबालिग रातें।

इन मैले कुचैले ऐसे लोगों के बीच दीनबंधु भी बसते हैं,
 भूखे सूखे रहकर भी पशु सा पेट बांधकर भी हंसते हैं।

      लेखन ✍️✍️✍️
     के एल महोबिया 
अमरकंटक अनूपपुर मध्यप्रदेश
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹
# सादर नमन मंच
# कलम बोलती है
#दिनांक---5/10/21
#विषय---"'"बेरोजगारी"'
#विधा---कविता
●*•••••••••••••••••••••••••••*● 

बेरोजगारी जिसमे चले ना कोई उधारी
निकम्मा, आवारा समझे दुनिया सारी
है एक इल्जाम जो किसी भी युवा को
कहीं भी जाये ,चुभे दिल मे कटारी-सा 

बेरोजगारी है एक गंभीर कलंक-शर्म है.. राष्ट्र का
सामाधान नही मिले कितने बदले मुखडे ..जनतंत्र का
जनसंख्या विस्फोटक खडी करे बेकारी की फौज
तुष्टिकरण, आरक्षण की बदनीयती मारे हक जन का 

शिक्षित बेकार,देश की मेधा-प्रज्ञा का तिरस्कार
भटके कितने द्वार लिए प्रमाण-पत्र,डिग्री का भार
मात-पिता अकुलाते अपने संतति का देख बुरा हाल
भविष्य के सुंदर स्वप्न की कडियां होता चकनाचूर 

हर युवा, समर्थ,सजग हाथों को समुचित रोजगार मिले
सरकारी योजनाओं मे सभी को यथोचित अधिकार मिले
स्वरोजगार,स्वप्रबंधन और स्वालंबन का पूरा अवसर खुले
देश-समाज के प्रति जो उन्मुख है,उन्हें भरपुर सम्मान मिले.. 

ऊंच-नीच के भेद हटे,समाज की खाई मिटे
पारंपरिक व्यवस्था में गांवों तक विकास पहुंचे
नये-नये रास्तों से नये रोजगार के तरकीब ढूंढे
आत्मनिर्भरता का जोरदार अभियान चले.... 

********************************
#पूर्णत: मौलिक वं स्वरचित
@अर्चना श्रीवास्तव 'आहना', मलेशिया
🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼
नमन मंच
कलम बोलती साहित्य समूह
क्रमांक-343
दिनांक-05-10-2021
दिन-मंगलवार
विषय-बेरोजगारी
विधा-पद्य कविता
-----------------------

परेशान है जनता सारी।
           हाय हाय रे ये बेरोजगारी।।

नव जवान सब घूम रहे हैं
            अपना माथा चूम रहे हैं।
पढ़ें लिखे सब बैठे घर पर,
             बैठे - बैठे ऊँघ रहे हैं।

नहीं नौकरी अब सरकारी।
          हाय-हाय रे ये बेरोजगारी।।

भाग रहे सब दौड़ा-दौड़ा।
         चलो सड़क पर तलो पकौड़ा।
कोई खाये प्लेट एक ले,
          कोई खाये जोड़ा - जोड़ा।

साथ रहे भजिया तरकारी।
             हाय-हाय रे ये बेरोजगारी।।

डिग्री लेकर रोज मिलते।
             अनपढ़ सारे घास छिलते।
दोनों का अब नहीं गुजारा,
            लूट पाट फिर हत्या करते।

मची हुई है मारा- मारी।
             हाय-हाय रे ये बेरोजगारी।।

मंहगाई में कैसे जीते।
           सूखी रोटी संग पानी पीते।
समाधान कुछ नहीं दिखता,
           दर्द बहुत है समय न बीते।

आयी देखो बहुत लाचारी।
           हाय-हाय रे ये बेरोजगारी।।

    स्वरचित/मौलिक।
      "रामानन्द राव"
  इन्दिरा नगर लखनऊ।
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹
नमन मंच 
#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह 
#विषय:-बेरोजगारी 
#विधा:- हाइकु 
# दिनांक :- 5/10/2021

              बेरोजगारी 
         युवा सभी लाचार
              संकट भारी।
       भूख की मार
       रोटी, घर,वसन
       सभी हताश।
           मंदा बाजार
           है समाज बेज़ार
           कैसे गुजर !
       छोटी चादर
       लम्बी होती काया     
      त्रासदी बड़ी।
          घुप अंधेरा
          मायूसी का घेरा 
          क्षीण उजाला।

  कल्पना सिन्हा 
स्वरचित व मौलिक, 
  मुम्बई ।
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹
🙏नमन मंच 🙏
#कलम_बोलती_है_
साहित्य_समूह 
#आयोजन संख्या ३४३
#विषय बेरोजगारी
#विधा स्वैच्छिक
#दिनांक ०५/१०/२१
#दिन मंगलवार

मैं हूं एक पढ़ा-लिखा बेरोजगार।
दर बदर तलाश रहा रोजगार।
जहा भी जाता नो वकैंसी का पोस्टर
 पहले से ही चिपका नजर आता।
मुझको अपनी जैसे बेरोजगारों की तकदीर
 पर बहुत रोना आता।
बेरोज़गारी पर भाषण सबके द्वारा खूब ज़ोरदार दिया जाता।
पर कोई भी व्यक्ति इस समस्या का समाधान नहीं कर पाता।
हमने भी सैकड़ों दफ्तर के चक्कर लगाए।
अपने बायोडाटा हर जगह पहुंचाएं।
बड़ी मुश्किल से एक नौकरी हाथ लगी।
रुकी हुई घर गृहस्थी की गाड़ी चलाने लगी।
कुछ जीवन में संतोष आने लगा।
चार पैसे रिश्वत के खाने लगा।
सब कुछ बढ़िया चल रहा था।
अच्छा खासा पैसा बरस रहा था।
कमबख्त जबसे कोरोना आया है।
हमने अपना सुख चैन गँवाया है।

तरुण रस्तोगी'कलमकार'
मेरठ स्वरचित
🌷🙏🌷
🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼
*डाः नेहा इलाहाबादी दिल्ली*
नमन मंच - कलम बोलती है। 
 मंगल
मंगलवार - 05/10/2021
            *बेरोजगारी*
 *हाइकूः-*
     1) बेरोजगारी 
            देती है तकलीफ
             बहुत भारी।। 

     2) लोग पूछते
            बेरोजगारी क्या है 
             कैसे कहते।। 

      3) कैसे सहते 
            बेरोजगारी का दर्द 
             किसे कहते।।

       4) जीना सिखाती। 
              तकलीफ में हमें 
               बेरोजगारी ।।

       5) करवाती है
             हमारी रुसवाई 
              बेरोजगारी।। 

डाः नेहा इलाहाबादी दिल्ली
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹
नमन मंच कलम बोलती है 🙏🏻
विषय-बेरोज़गारी
विधा-स्वैच्छिक
दिनांक-5/10/21
दिवस-मंगलवार

सादर अभिवादन 🙏🏻

आज संपूर्ण विश्व में
तेज़ी से फैल रही है एक बीमारी,
वह बीमारी कोई और नहीं
वह तो है युवाओं की बेरोज़गारी।

आज का युवा सुशिक्षित है
लेकिन फिर भी नौकरी से वंचित है, 
वह समय और था जब
बी.ए.कर लिया समझो नौकरी तो सुनिश्चित है।

कैसे रोकी जाए यह महामारी
चिंता का विषय है भारी,
जनसंख्या है बढ़ रही
और बढ़ रहे व्यभिचारी।

ज़रूरत है इस दिशा में
ठोस क़दम उठाए जाएं,
और आज के उच्च शिक्षित युवा
अपने कदमों पर खड़े हो पाएं।

अल्का मीणा
नई दिल्ली
स्वरचित एवं मौलिक रचना
🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼
#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह 
#विषयक्रमांक 343
#विषय बेरोजगारी
#विधास्वैच्छिक
#दिनांक: 05/10/2021
-------------------------------------------------------------------------------------------------
                             किसको जिम्मेदार कहोगे ?
-------------------------------------------------------------------------------------------------
सच कहते हैं ---- किसको जिम्मेदार कहोगे ?
पहले गुरु मांँ - बाप 
जिन्होंने पढने के लिए लायक बनाया
 आए फिर विद्यालय के गुरु 
जिन्होंने शिक्षित हमें बनाया।
 
महाविद्यालय की डिग्रियांँ तो हमें उत्साहित करती
 बस - बस अब तो हम शिक्षक, 
डॉ, अधिकारी आदि - आदि बनने के सपने देखने लगे,
 समूह - ग, आईपीएस, आईएस--- पर यह क्या ?
 बेरोजगारी तो पैर पसारे आंगन में खड़ी ......
 सच कहते हैं---- किसको जिम्मेदार कहोगे ??
                         किसको जिम्मेदार कहोगे ??

दृढ़ निश्चय, मजबूत इरादे से 
बेरोजगारी दूर भगाएंगे ,
नहीं बने सरकारी सेवादार 
तो जन सेवादार बन जाएंगे ।

खुद का रोजगार चलाएंगे 
बेरोजगारी को दूर भगाएंगे 
शिक्षित होने का मतलब यही है
 शिक्षा का प्रसार बढाएंगे 
अपना रोजगार चलाएंगे
 बेरोजगारी से रोजगार का दीपक जलाएंगे।
-------------------------------------------------------------------------------------------------

डा.वन्दना खण्डूड़ी
देहरादून, उत्तराखंड
स्वरचित रचना
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹
विषय - बेरोजगारी
रचना - मौलिक व स्वरचित

प्रजातंत्र की संवेदना

बस के नीचे आकर मरने जा रहे एक बेरोज़गार से एक ने पूछा -‘ भाई मरना क्यों चाहते हो ?‘
बेरोज़गार ने रोते हुये कहा - ‘दो दिन से भूखा हूं । मां को कैंसर है । अस्पताल में आखिरी सांसे ले रही है । दवा चाहिये । किराया न दे पाने के कारण मकान मालिक ने कमरे से निकाल दिया । बेसहारा और बेघर हूं ।‘ 
वह कुछ गंभीर हुआ । सिर के बालों पर हाथ फेरा । गर्दन दायें - बायें की । और बोला - ‘मामला पेचीदा है । तुम्हें प्रजातंत्र के मंत्री के पास ले चलता हूं । उनके यहॉं विकास ही विकास है । वेे ही इसका निपटारा करेंगे । काम हो जाने पर तुम मुझे केवल पॉंच सौ रूपये दे देना ।‘
बेरोज़गार सहमत हो उसके साथ चल पड़ा । 
चार घ्रंटे बैठाने के बाद प्रजातंत्र का मंत्री पशमीना शाल लपेटे अपने आलीशान महल नुमा घर से बाहर आया और ठंड से ठिठुरते हुए बेरोजगार से पूछा - ‘क्यों भाई मरना क्यों चाहते हो ?‘ 
बेरोज़गार ने अपनी परेशानी दोहराई - ‘पिछले आठ महीने से बेरोज़गार हूं । दो दिन से भूखा हूं । मां को कैंसर है । अस्पताल में आखिरी सांसे ले रही है । दवा चाहिये । किराया न दे पाने के कारण मकान मालिक ने कमरे से निकाल दिया । बेघर और बेसहारा हूं । ‘
प्रजातंत्र के मंत्री को गुस्सा आ गया । विकास के मखमली गलीचे पर यह छेद कहॉं से आ गया । झल्लाते हुए बोला - ‘अबे , इतनी सारी मांगे पूरी करने में तो पच्चीस साल लगेंगे । वोट देनी हैं तीन और काम कराने हैं दस । पता नहीं कहॉं से चले आते हैं । सोच - समझ कर डिमांड रख ।‘ 
बेरोज़गार ने कुछ सोचा , फिर बोला - ‘मॉं की दवा के लिये ही कुछ रूपये दे दीज़िये । उसके लिये उसकी जान से कहीं बढ़कर मॉं की जान थी ।‘
प्रजातंत्र के मंत्री ने सुझाव दिया - ‘दवा के लिये कल तुम मेरे ‘पी़.ए.‘ से मिल लो । वह एक कमेटी बना देगा । जो यह पता लगायेगी कि तुम्हारी मॉं सचमुच बीमार है कि नहीं । उसे दवा की जरूरत है भी कि नहीं । कमेटी एक सप्ताह में अपने सुझाव दे देगी । तब मैं तुम्हें रूपया दिलाने की सिफारिश कर दूंगा । लेकिन , कमेटी के सुझाव आने तक अपनी मौं से कह देना कि वह न मरे ।‘
बेराज़गार , हतप्रभ सा अपना पेट टटोलता हुआ चल पड़ा ।
डा. नरेंद्र शुक्ल
🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼
नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय बेरोजगारी
विद्या पद्य
दिनांक-4-10-2021

बढ़ती जनसंख्या से बडी बेरोजगारी।
जीवन बन गया अब निराशावादी।
जगह-जगह हाहाकार निराशा भरी।
चारों तरफ बहुत बड़ी बेरोजगारी।

भाई भतीजावाद जनता पर भारी।
रोटी की समस्या करे परेशानी।
नैनों से विडंबना का बहे पानी।
पढ़े लिखे युवाओं की समस्या भारी

हाथ पर डिग्री लेकर फिरे मारामारी
चारों तरफ हो रही मानवता की लाचारी।
दुनिया की चकाचौंध में मारामारी।
विश्वास हनन हो गया दुविधा सारी।

छोडे गांव शहरों की संकुचित अंधियारी।
दाल रोटी के लिए तरस रहे भारी।
देखा देखी में हो रही है देनदारी।
कहीं नहीं दिखाई दे रही है वफादारी।

भाई भाई की हो रही है आपस में बुराई।
गृहस्ती में चल रही है समस्या भारी।
चूल्हे चूल्हे में राजनीति विकट न्यारी
हर रिश्ते में झूठ फरेब व्यबचारी।।

ब्लॉक प्रस्तुति हेतु सहमति
स्वरचित मौलिक
संगीता चमोली देहरादून उत्तराखंड
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹
नमन🙏🕉🙏 मंच
#कलम बोलती साहित्य समूह
#दिनांक-05.10.2021
#दिन-मंगलवार
#विषय क्रमांक-343
#विषय-बेरोजगारी
#विधा-पद्य कविता
<><><><><><><><>
बुरा जमाना,किसे सुनाना,
बहुत बढ गयी बेरोजगारी।
रंग में भंग हो रहा है जब,
बढती जा रही बेरोज़गारी।।
समय की नजाकत ही तो है,
किससे प्रकट करें लाचारी।
बाल, वृद्ध सब चिन्तित हैं,
समाधान चाहते बेरोज़गारी।।
पढे लिखे सोचते थे पहले,
रोजगार मिल बनें आभारी।
कुछ तो यत्न कीजिए ऐसा,
खत्म हो सारी बेरोज़गारी।।
बच्चों का पढने का काम,
उसके बाद कुछ करें तैयारी।
लाखों में कर्ज चुकाने को,
माथा टेक बैठे हैं नर नारी।।
हाथों को काम,चुकाऊं दाम,
भ्रष्टाचार की भेंट की तैयारी।
भेंट चढ रही योजनाएं देखो,
कैसे बन पाएं इमान सहचारी।।
अपना पराया का बोलबाला,
हम तो ठहरे भय्या शाकाहारी।
काम मिले दाम चुकाकर तो,
कैसे दूर ना हो बरोजगारी।।
जहां देखो वहां भीड़ खड़ी है,
ना जाने कहां की हो तैयारी।
या ना हो मंहगी पड़ जाए,
हमको शिक्षिक बेरोज़गारी।।
देश काल परिस्थति कहती,
मत फायदा उठाओ लाचारी।
रोजगार के सृजन करें अब,
खत्म करो यह बेरोज़गारी।।
शिक्षा ऐसी होनी चाहिए,
काम आवे सदा ही हमारी।
स्वयं सहायता कर सके जो,
दूर भागेगी तब बेरोज़गारी।।
टूटे सपनों का समय छोड़,
देश,काल परिस्तिथियां सारी।
आओ हाथ बढाएं हम साथ,
दूर चकनाचूर बेरोज़गारी।।
स्थानीय स्तर पर करें चुनाव,
दूर करने को सबकी लाचारी।
हर हाथ मिलेगा काम जब,
दूर करने को बेरोज़गारी।।

सर्वथा मौलिक अप्रकाशित
 मगनेश्वर नौटियाल"बट्वै"
           श्यामांगन 
भेटियारा/कालेश्वर,उतरकाशी 
         उतराखण्ड
🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼
कलम बोलती है साहित्य समूह मंच
नमन मंच
दिनांक ०५/१०/२०२१
विधा ‌--कविता
विषय # बेरोजगारी #
बेरोज़गारी का दंश झेल रहा है
पढ़ लिखा इंन्सान यहां
पेट को रोटी काम हाथ को
खोज रहा है इंन्सान यहां
बेरोज़गारी की भीड़ बढ़ी है
गांव गली कूच चौराहों पर
क्या करें अब कहां जायें ये
चल रहे दुविधा की राहों पर
धूमिल हो रहे जीवन के सपने
हसरतें हिम्मत टूट रही
लावारिस से फिरते हैं दर दर
उमर भी धीरे-धीरे छूट रही
हनन हो रहा है प्रतिभाओं का
विकराल रूप है बेरोज़गारी
नहीं माथा ठनकता आकाओं का
बेलगाम बढ़ती जनसंख्या ही  
बेरोज़गारी का मुख्य कारण है
सरकारी गलत नीतियां भी नहीं
किसी कारण से कमतर हैं
बेरोज़गारी को समाप्त करने को
आत्मनिर्भरता को अपनाना होगा
विकास शील देशों से कुछ सीखकर
आत्मनिर्भर भारत बनाना होगा
सृजन करें हम लघु उद्योगों का
हर जन हर हाथ को काम मिले
बेरोज़गारी का कलंक मिटायें
श्रम का सुंदर मधुवन खिले
रचनाकार -- सुभाष चौरसिया हेम बाबू महोबा
स्वरचित, मौलिक, सर्वाधिकार सुरक्षित
🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹
कलमबोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक 343
विषय बेरोजगार
विधा कविता
दिनाँक 05/10/2021 
दिन मंगलवार
संचालक आप औऱ हम

बैठे हैं युवा घर में बनके बेरोजगार
अपना हुनर भूल के चाहते रोजगार,
बरसों से ये केवल इक सपना देखते 
सरकारी नौकरी जैसा हो व्यवहार|

एक जगह पे लाखों आवेदक आते
सालों बाद फिर कोई नौकरी पाते,
परीक्षा, परिणाम, नियुक्ति की प्रतीक्षा
इसी इंतज़ार में जीवन वो बिताते|

चाहता सरकारी नौकरी कोई है
विदेश के सपने देखता कोई है,
विदेशों में मजदूरी भी कर लेते हैं
अपने देश में हेय समझते जिसे

कोई काम छोटा न बड़ा होता 
हर काम में इक गौरव होता,
काम यदि दिल से करा अगर तो
कोई युवा बेरोजगार न होता|

सरकारी नीतियाँ बहुत हैं लागू
लघु उद्योगों से मन करो काबू,
भ्रष्टाचार पे लगाम कसे जो
मेहनत की तब फैला दो ख़ुशबू|

बिन मेहनत के कुछ नहीं मिलता
बीज बोये तभी फूल खिलता,
डिग्री नहीं कोई बीमा नौकरी की
हुनरमंद के हाथों रोज़गार मिलता|

उद्यमी बनकर चलाओ व्यापार
अपने संग दो चार को रोज़गार,
विकास पथ पर तुम दौड़ते जाना
तेरे सपने बने तेरा अधिकार|

रचनाकार का नाम- संजीव कुमार भटनागर
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
मेरी यह रचना मौलिक व अप्रकाशित है।
🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼

नमन मंच🙏🙏
विधा-कविता
विषय-बेरोजगारी

पहले कोरोना चीन में फैला
हम चीनी नहीं थे
इसलिए हम सतर्क नहीं हुए
फिर वो अमेरिका में फैला
हम अमेरिकी नहीं थे
इसलिए हम सतर्क नहीं हुए
 
इसके बाद वो इटली में फैला
पर हम इटालियन नहीं थे
इसलिए हम भयभीत नहीं हुए

फिर वो ईरान, स्पेन, ब्राजील और ना जाने कितने देशों में फैला
पर चुकी हम इनमें से किसी भी देश के निवासी नहीं थे
इसलिए हम गंभीरता से नहीं लिए

और फिर वैश्वीकरण की वजह से वो इंडिया के महानगरों में फैला
लेकिन चुकी हम महानगर में नहीं थे
इसलिए अभी भी थोड़े लापरवाह रहे

फिर, देखते ही देखते जब वो सभी राज्यों में फैला
तो लाइलाज़ होने की वजह से लॉकडाउन के सिवा कोई ऑप्शन ही नहीं था
आज हम ना चाहते हुए भी सोशल डिस्टेन्सिंग मेन्टेन करने को मजबूर हैं
चाहते हुए भी खुलकर किसी की मदद ना कर पाने के लिए मजबूर है
मेडिकल फैसिलिटीज हमेशा अवेलेबल ना होने की वजह से अन्य मर्ज़ से निजात पाने के लिए तत्काल पेनकिलर्स खाने के लिए मजबूर हैं
दिहाड़ी मजदूर दो भयानक पाटों के बीच पिसने को मजबूर है

  एक खतरा इस भयानक महामारी का
    यानी कोविड19के संक्रमण का
   दूसरा कोलैप्स करती इस अर्थव्यवस्था का
  यानी लाचारी , भूखमरी और बेरोज़गारी का
और हम इस बात को नकार नहीं सकते कि ये सभी प्रॉब्लम्स
ग्लोबलाइजेशन के स्याह पक्ष ब हमारी बेनियाज़ी(लापरवाही)के ही परिणाम है।

❤❤प्रवीणा(सहरसा, बिहार)
स्वरचित

🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹
कलम बोलती है विषय क्रमांक-343
जयजय श्रीरामरामजी
5/10/2021/मंगलवार
*बेरोज़गारी*
------
आदमी आज जानबूझकर बेरोजगार
हो रहा है
मुफ्तखोर नेता बना रहे
बेरोजगार युवा यूंही 
निरंतर बढ़ते जा रहे
काम करना नहीं चाहते
अब कहां रहे हम 
कोई कहीं 
अपने वचनों से बंधे हुए
दिखते नहीं
अपनी कथनी और करनी में अंतर
साफ दिखता
नेताओं के भाषण में
सिर्फ आश्वासन मिलता।
लोग वचन का महत्व समझते नहीं
संयम और विवेक
से काम नहीं लेते।
बेरोज़गारी कुछ भी नहीं
यदि काम करने की ललक हो
आलस नहीं अपने धर्म-कर्म करते रहें
काम ही हमारी पूजा 
यही भावना हो
जो कहें उसे सम्मान दें।
मानवता सहनशीलता से
परहेज नहीं करें
वादा कर
वचन निभाते चलें।
हमारा आत्मबल आत्म शक्ति शायद सभी कमजोर पड़ गये।
लाज हया सब मर गई
देखिए बेशर्मी 
हद से ज्यादा बढ़ गई
इसीलिए तो हमारी संस्कृति संस्कार शराफत 
शनै शनै शनै 
दुनिया में लुप्त हो रही।
बेरोज़गारी चरम सीमा पर पहुंच रही।
क्यों कि 
कथनी करनी की नीयत अब कहां रही।
------
     शंभू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र

---------
*बेरोज़गारी*

5/10/2021/मंगलवार

रचनाकार :- आ. संगीता चमोली जी

नमन मंच कलम बोलती है साहित्य समुह  विषय साहित्य सफर  विधा कविता दिनांक 17 अप्रैल 2023 महकती कलम की खुशबू नजर अलग हो, साहित्य के ...