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रविवार, 17 अप्रैल 2022

#लघुकथा_आयोजन.. पाठशाला (आ प्रीति शर्मा"पूर्णिमा" ज़ी)

जय शारदे माँ 🙏🙏
नमनमंच संचालक
कलमबोलतीहै साहित्य समूह।
विषय - पाठशाला।
विधा - लघुकथा।
स्वरचित।

पच्चीस वर्षीय रेखा चार बच्चों की मां थी और कोठियों में झाड़ू पौंछा,बर्तन करके अपना गुजारा कररही थी।उसने रीमा जी की कोठी में भी काम पकड़ा हुआ था।रीमा स्वयं अध्यापिका थी और रेखा के काम और व्यवहार से संतुष्ट भी अतः वह उसे हमेशा अच्छी सलाह दिया करतीं। 
एक दिन रीमा ने देखा रेखा अपनी नौ दस साल की बेटी को अपने साथ लेकर आई है। 
 रीमा जी ने अचानक से पूछ लिया रेखा अपनी बेटी को नहीं पढ़ाती क्या.? 
कहां आंटी, मैं काम पर आ जाती हूं मेरे पति भी काम पर चले जाते हैं और यह अपने छोटे भाईयों की देखभाल करती है।
यह तो गलत बात है रेखा..पढने की उम्र में तू इसे घर में काम ले रही है। तू कितनी पढी है..? 
मैं तो आंटी पढ़ी नहीं किसी ने पढ़ाया ही नहीं,कुछ निराशा भरे स्वर में रेखा बोली। 
तुम पढ़ नहीं पाई तो क्या हुआ,अपनी बेटी को तो पढ़ा सकती है ना..
वो झुग्गी पर भी कोई कोई कभी आते हैं आंटी तो शाम को ये चली जाती है। वो टाफी बगैरह भी देते हैं... खुशी होते हुये रेखा बोली। 
रीमा उसकी नादानी पर मुस्कराई। 
वो तो नियमित पढाई नहीं हुई ना। तुझे पता है सरकारी स्कूलों में कितनी सुविधाएं हैं।दोपहर का खाना,किताब कापी, ड्रेस सब कुछ तो मिलता है।और खाता खुलवाकर खाते में हर महीने पैसे भी। तू इसका दाखिला करा दे... रीमा उसे पढाने के फायदे समझाने लगी। 
अच्छा आंटी इतना कुछ मिलता है...सुनकर हैरानी से रेखा बोली।
और क्या... ऊपर से तुझे डर भी नहीं रहेगा कि झुग्गी झोंपड़ी में तेरी बेटी अकेली है।
रीमा ने उसकी बेटी नेहा से पूछा, 
तुझे पढ़ना अच्छा लगता है..? 
हां आंटी... कभी-कभी जब झुग्गी में पढ़ाने आते हैं तो मैं भी में बैठ जाती हूँ। 
तुझे कुछ लिखन आता है..? 
हां 
तो दिखा। 
नेहा ने वर्णमाला लिखकर दिखाई हालांकि उसमें कुछ गलतियां थीं। 
तब रीमा ने रेखा को समझाया, 
तू नहीं पढी,इसका मतलब यह तो नहीं अपने बच्चों को भी नहीं पढायेगी।देख आज के समय में पढ़ना लिखना बहुत जरूरी है।किसी तरह अगर तेरे बच्चे दसवीं बारहवीं कर गये तो इनका भविष्य बन सकता है।छोटी-मोटी नौकरी मिल सकती है नहीं तो प्राइवेट नौकरियां भी बहुत हैं।कम से कम मजदूरी तो नहीं करेंगे।अगर यह पढ़ लिख जाएंगे तो आगे अपने बच्चों को भी पढ़ायेंगे नयी राहदिखाएंगे।
बात रेखा की समझ में आई पर आजकल करके टालती रही तब रीमा को लगा ये काम तो खुद करना होगा। रेखा शायद स्कूल जाने में झिझक रही है और अगले दिन ही रेखा रीमा के साथ स्कूल गयी।
 रीमा ने वहां के हेडमास्टर को अपना परिचय दिया और बात की और फिर रेखा के बेटी की उम्र देखकर दूसरी कक्षा में और छोटे बेटे का प्ले में दाखिला वहां करा दिया। 
अब रेखा ने अपनी बेटी का ट्यूशन भी लगा दिया है ताकि वह बाकी बच्चों के सामने कमजोर ना रहे। एक मैडम रीमा के पड़ोस में ही रहती है और उसने रेखा से ट्यूशन फीस लेने से भी मना कर दिया।
  रेखा के बच्चों को भविष्य मिला है और उसने रीमा से वायदा किया है कि अगले साल जब सबसे छोटा बेटा चार साल का हो जायेगा तब उन दोनों बेटों को भी स्कूल में भेजेगी।
   रीमा का सोचना है कि जीवन ही सच्ची पाठशाला है और शिक्षा के प्रति जागरूकता फैलाना ही पाठ ग्रहण करना है।अगर हम पाठशाला में पढ़ लिख कर भी किसी के काम नहीं आए तो क्या फायदा..? ज्ञान की रोशनी दूसरों को पहुंचाना ही पाठशाला अर्थ को सार्थक करता है। 

प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
16/04/20226

#लघुकथा_लेखन... पाठशाला (आ. आचार्या नीरू शर्मा जी)

#कलम बोलती है साहित्य समूह
#दैनिक विषय क्रमांक - 424
#दिनांक - 16.04.2022
#वार - शनिवार 
#विषय - पाठशाला
#विधा - कहानी
रामचंद्र और उनकी पत्नी नीर विनम्र,सरल,खुशमिज़ाज स्वभाव के थे। दोनों पति - पत्नी धार्मिक थे। जो भी कभी उनके पास सहायता के लिए आता वह कभी खाली हाथ नहीं जाता था,पर रामचंद्र हमेशा से अमीर नहीं थे। उन्होंने मुफ़लिसी का वह दौर जिया था जिसमें उनके पास कई-कई दिन खाने का जुगाड़ नहीं हो पाता था। वह स्वभाव से ईमानदार और मेहनती था,पत्नी नीर भी संतोष स्वभाव की थीं । <br>
रामचंद्र ने खूब मेहनत करके व्यापार में उन्नति पाई थी। अब जब इनके ऊपर लक्ष्मी की कृपा है तो वह किसी भी जरूरतमंद की सहायता से पीछे नहीं हटते । दोनों का एक ही पुत्र सूरज था जिसे वह बेहद प्रेम करते थे । जैसे - जैसे वह बड़ा हो रहा था उसके स्वभाव में अकड़ आने लगी । वह अपने मित्रों में अमीर होने का रूआब दिखाने लगा। जब रामचंद्र और उनकी पत्नी को यह पता चला तो उन्होंने उसे बहुत समझाया । वह उनके सामने तो बात मान लेता पर पीछे से सभी के साथ रौब से व्यवहार करता। 
रामचंद्र ने काफी सोच - समझकर पत्नी नीर से कुछ सलाह की। नीर ने पति की बात पर सहमति जताई । दो दिन बाद रामचंद्र ने पत्नी और बेटे को बुलाकर कहा - हमें व्यापार में काफी घाटा हो गया है और सब कुछ बेचना पड़ेगा, तो तुम दोनों सामान बाँधकर गाँव चले जाओ, मैं अगले हफ्ते तक सबके पैसों को देकर आ जाऊँगा। सूरज उदास हो गया क्योंकि अब उसे गाँव के स्कूल में पढ़ाई करनी पड़ेगी और जिन दोस्तों पर अपनी अमीरी का रौब झाड़ता था वे सब उस पर हँसेंगे। 
नीर ने बेटे सूरज के साथ गाँव आकर छोटे से घर में नए दिन की शुरूआत की। सूरज को रातभर जमीन पर सोना पड़ा और माँ ने सुबह जगाकर उसे पास के कुएँ से पानी लाने को कहा। सूरज ने पहले कभी यह काम किया नहीं था उसे तो बड़े से बाथरूम में सेवकों द्वारा पानी और सभी चीजें मिल जाती थीं । खाने के लिए अलग - अलग पकवान और घूमने के लिए गाड़ी थी। सूरज दुःखी था। 
माँ ने उसे अपने साथ ले जाकर कुएँ से पानी लेना सिखाया और कहा कल से खुद लेकर आना नहीं तो खाना समय से नहीं बन पाएगा और तुम्हें भी बिना भोजन के स्कूल जाना पड़ेगा । यहाँ तो मास्टरजी भी गर्म स्वभाव के हैं नीर ने बताया। सूरज जैसे - तैसे स्कूल जाने लगा और माँ की सहायता करने लगा । स्कूल से आकर खेत में नीर की सहायता करता। अब उसका स्वभाव नम्र हो चुका था और हर काम वह खुद से करने लगा था।
दो हफ्ते बाद रामचंद्र गाँव आया और उसने सूरज को देखा। पत्नी ने उन्हें सूरज के व्यवहार परिवर्तन की बात बताई।अगले दिन रामचंद्र ने नीर और सूरज से कहा कि अब हम वापस शहर जाकर रहेंगे। सूरज हैरान था । उसने पिता से कहा कि अब तो उनके पास वहाँ कुछ भी नहीं है, वे वहाँ कहाँ रहेंगे? रामचंद्र ने मुस्कुराकर उसे बताया कि सूरज तुम पढ़ने - लिखने में तो होशियार हो, पर तुम्हारे अंदर घमंड और अहंकार आ गया था, इसलिए जीवन की सच्चाई दिखाने और तुम्हें सही राह पर लाने के लिए हमने यह राह अपनाई । आज तुमने जीवन की पाठशाला का जो सबक सीखा है उससे तुम्हारा व्यवहार ही निर्मल नहीं हुआ अपितु तुमने मानवता और इंसानियत भी सीख ली है और यह तुम्हारे जीवन की पूँजी है। सूरज ने हाथ जोड़कर माँ और पिता से माफी माँगी और वादा किया वह हमेशा अच्छाई और सच्चाई की राह पर चलेगा और कभी कोई भेदभाव नहीं करेगा। रामचंद्र और नीर आज बेहद खुश थे। 
रचना - स्वरचित / मौलिक 
रचयिता - आचार्या नीरू शर्मा
स्थान - कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश ।

#लघुकथा_आयोजन.. पाठशाला (आ. सियाराम शर्मा बोधिपैगाम जी)

#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह  
#दो_दिवसीय_लेखन
#दैनिकविषयक्रमांक-424
विषय : पाठशाला
विधा: लघुकथा
दिनांक- 16.04.2022
    दिन -शनिवार
        
                  पाठशाला: ' छुट्टी बंद '

पाठशाला जीवन की स्मृतियों में प्रमुखता से छाई रहती है। खट्टी मीठी यादें, मुलाकातें ,दोस्ती ,झगड़े ,शरारतें सब कुछ ! हमेशा की तरह हमारे ' गट्टन गुरु ' , हाँ उन्हें हम इसी नाम से आपस में पुकारते, अलग अलग नाम रखे जाते ,शायद आज भी ऐसा ही होता है। संस्कृत का कालांश अंत में ही आता और आते ही वे ' रुप ' याद करवाने, सुनने का काम शुरू करदेते । एक ही उनकी शर्त होती, " जो रुप सुना देगा उसकी छुट्टी पर जो नहीं सुना पाया ,उसकी छुट्टी बंद ! "
अब यही सबसे ज्यादा मुसीबत और घवराहट का कारण होती। बहुत मेहनत से दोहराते ,बारबार याद करते ,सुनाते पर फिर भी कहीं न कहीं गलती हो ही जाती । 
राम:-रामौ - रामा:/ रामम्-रामौ- रामान्/ रामेण-रामाभ्याम्-रामै: आदि ..कहीं पर विसर्ग के प्रयोग या हलन्त के प्रयोग ,उच्चारण में गलती कर बैठते या तृतीय विभक्ति के स्थान पर पंचमी विभक्ति का पाठ बोल देते। बस फिर क्या छुट्टी बंद। यह सबसे बड़ी सजा होती । 
सबसे ज्यादा तकलीफ जब होती जब सब साथी तो.सुनाकर घंटी बजते ही उड़नछू हो गए ,रह गये.हमारे जैसे दो-तीन । अब गुरुजी तो बहीं बैठे रहते। बस मन ही मन सब कोसते रहते :
' इन्हें तो कहीं जाना है, नहीं ,इनका न कोई घर ,न ठिकाना !' क्योंकि वे पाठशाला में ही एक कमरे में रहते थे। अगर फिर कोई बातें करता, या लघुशंका आदि की छुट्टी माँगता तो उसे बैंच पर खड़े होने की सजा सुनाई जाती । उस समय क्या हाल होता, वस हम ही जानते हैं, पेट में चूहे कूदते पर उन्हें भी अधिक कूदने की इजाजत नहीं होती, मन मारकर बैठे या खड़े रहते।
बहरहाल आज हमारे वही ' गट्टन गुरुजी ' बहुत याद आते हैं, उस समय की उनकी सख्ती, अनुशासन का फल है कि आज इस उम्र में भी धातुरुप ,अलंकार आदि अच्छे से याद हैं,पोते-पोतियों को यह किस्सा सुनाया तो उन्हें बहुत आश्चर्य होता है। आज हिन्दी ,संस्कृत भाषाओं का अध्ययन, अध्यापन रुचिकर नहीं लगता, बच्चे और अभिभावकों को भी अंग्रेजी भाषा में रुचि ज्यादा है। 

स्वरचित-मौलिक रचना
सियाराम शर्मा बोधिपैगाम
डीडवाना, नागौर, राजस्थान

#लघुकथा_आयोजन... पाठशाला (आ. सुमन तिवारी जी)

#कलम✍🏻बोलती_है_साहित्य_समूह  #दो_दिवसीय_लेखन
#दैनिक_विषय_क्रमांक : 424
#विषय :  पाठशाला
#विधा : लघुकथा
#दिनांक : 16/04/2022 ,  बृहस्पतिवार
समीक्षार्थ
______________________________

आज प्यारेलाल की पत्नी सीमा दो दिन बाद काम पर लौटी । मुँह सूजा हुआ, जगह- जगह चोट के निशान। 
मेरे पूछने पर बोली---क्या बताऊँ मैडम, वही रोज का पैसों का लफड़ा।  आपके दिए हुए पैसे बेटी की पाठशाला की फीस के लिए रखे थे वह भी चोरी से ले गया और दारू पीकर आ गया, सुबह उठकर फिर रुपए माँगने लगा न देने पर मारपीट करने लगा। 

    लड़की भी सहमी डरी हुई रहती है पाठशाला भी नहीं जाना चाहती। मेरे कहने पर दूसरे दिन वह बेटी अनीता को मेरे पास लेकर आई, वह रोते हुए बोली मैडम पापा इतनी पी लेते हैं कि अपनी भी सुध नहीं रहती, रोज की गाली गलौज, मारपीट से सब लोग हम पर हँसते और ताने मारते हैं। मुझे बाहर निकलने में भी शर्म आती है। मैं पाठशाला नहीं जाना चाहती
वहाँ बच्चे चिढ़ाते हैं। मैंने उसे समझाया और किसी दूसरे स्कूल में प्रवेश दिला दिया जहाँ लड़कियों के लिए छात्रावास की सुविधा थी। 

           आज अनीता बहुत खुश है उसने दो वर्ष छात्रावास में रहकर खूब मेहनत की और अच्छे अंकों से हाईस्कूल कर लिया अब वह आगे की पढ़ाई जारी रखना चाहती है और एक सफल अध्यापिका बन कर अपनी तरह की लड़कियों की  जिंदगी सँवारना चाहती है।अनीता की माँ मेरे पैर छूते हुए बोली
मैडम आपने मुझ जैसी एक और सीमा की जिंदगी बरबाद होने से बचा ली। 

                    स्वरचित मौलिक रचना
              सुमन तिवारी, देहरादून उत्तराखंड

शुक्रवार, 15 अप्रैल 2022

#लघुकथा_आयोजन.. पाठशाला (आ. मंजु माथुर जी)

जय मां शारदा  
मंच को नमन  
दिनांक 15 अप्रैल 2021
 विषय पाठशाला 
विधा लघु कथा
स्वरचित एवं मौलिक
रश्मि के पास विद्या का फोन आया ।विद्या चकित रह गई। आज इतने दिन बाद सखी का फोन क्यों आया ।दोनों सखियां पुरानी यादों में खो गई  विद्या ने पूछा अरे तुझे मेरी याद कैसे आ गई तो रश्मि ने कहा आज मैं यहां गांव आई हुई हूं ।मार्केटिंग करने जा रही थी रास्ते में अपनी पाठशाला मिली ।पुरानी यादें ताजा हो गई और सबसे ज्यादा याद तुम्हारी आई आकर तुम्हें फोन कर रही हूं।
हां उस समय का तो पाठशाला का अनुभव बहुत शानदार है। याद है हम लोग नाव में बैठकर स्कूल जाया करते थे।
 सभी जाति समुदाय के लड़के और लड़कियां होते थे पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं था ।अपन कितनी मस्ती करते थे और सच कहूं तो उस नाव की यात्रा में साथियों द्वारा लाए गए बाजरे की रोटी राबड़ी ,लहसुन की चटनी कभी भुलाए नहीं भूलेगी ।और नाव से उतरने के बाद साथी अपने खेतों से ज्वार लाते थे और उन बालियों को भून कर जो ज्वार निकलती थी उसको वे लोग माखन मिश्री कहते थे ।वास्तव में वह माखन मिश्री  कितनी मिठास भरी होती थी ।वह मिठास तो उसमें ही थी पर साथियों के प्रेम की मिठास उसे दुगना कर देती थी।
जिसका होमवर्क अधूरा होता वहीं बैठ कर सब मिलकर एक दूसरे का होमवर्क पूरा करवाते थे।
विद्या की बात सुनकर रश्मि ने कहा हां अपनी पाठशाला कितनी अच्छी थी। केवल पढ़ाई ही नहीं पी टी खेलकूद सिलाई कढ़ाई सभी बातें याद आती है उस पाठशाला को हम कभी नहीं भूल सकते हमारी नींव वही तैयार हुई थी।
मनु रोता हुआ आया मम्मी भूख लगी है खाना दो। तब विद्या ने कहा अच्छा चलती हूं आज बहुत अच्छा लगा अपने बचपन की अपनी पाठशाला की याद करके।
 मंजु माथुर अजमेर राजस्थान

#लघुकथा_आयोजन.. पाठशाला (आ. शोभा वर्मा ज़ी)

(7)
जय मां शारदे। 
कलम✍ बोलती है साहित्य समूह।
क्रमांक--424
विषय--"पाठशाला"।
विधा--"लघुकथा"।
दिनांक--"१५|०४|२२,शुक्रवार। 
रचियता--"शोभा वर्मा"
           देहरादून, उत्तराखंड।
            (समीक्षार्थ प्रस्तुति)

       लघुकथा--"पाठशाला"।

"और आज की अंतर्विद्यालय सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता की ट्राफी की विजेता हैं "श्री गुरु राम राय इंटर कालेज"की "सौम्या अग्रवाल",। प्रिंसिपल वर्मा की इस उद्घोषणा से सभागार तालियों की गङगङाहट से गूंज उठा। 
    यह सुनकर सौम्या जीत की खुशी में आंखों में आंसू भरकर हाल में बैठी छात्राओं और प्रतिभागियों के बीच से अपना रास्ता बनाती हुई मंच पर पहुँची उसने प्रिंसीपल वर्मा से ट्राफी लेकर उनका आशीर्वाद लिया। 
आज उसका सीना गर्व से गौरवान्वित
हो रहा था,किन्तु उसकी आंखें एक बार 
फिर आंसूओं से भर आयीं और उस दिनका पूरा घटनाक्रम उसकी आंखों के सामने घूम गया।
     विद्यालय में "सामान्य ज्ञान" प्रतियोगिता के लिए प्रतिभागियों का चयन हो रह था।वह भी प्रतिभागियों की कतार में खङी थी,अपना नंबर आते ही उसने फार्म देने के लिए कहा तो शिक्षिका ने कहा," तुम इस प्रतियोगिता को जीत नहीं पाओगी, बङे-बङे अंग्रेज़ी माध्यम स्कूलों के विद्यार्थी प्रतिभाग कर रहे हैं,तुम तो" हिन्दीपाठशाला" (HindiMedium) से पढ रही हो, तुम इसमें कैसे प्रतिभाग कर सकती हो"? किन्तु उसके साथियों के बार बार अनुनय करने पर शिक्षिका ने उसे फार्म दे दिया।
एक सप्ताह बाद यह परीक्षा होनी थी,सौम्या स्कूल से आकर बस्ती में बने घर में जहाँ लाइट भी नहीं थी,वहां प्रतिदिन प्रतियोगिता की तैयारी करती।प्रतियोगिता के दिन उसने सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता के सभी राउंड में विजय प्राप्त कर ली,और अन्य प्रतिभागियों 
के मुकाबले सर्वश्रेष्ठ रही थी।
   आज उसे अपनी "हिन्दी पाठशाला " 
की शिक्षा पर गर्व हो रहा था। 
सच ही तो है,ज्ञान तो कहीं से भी,कैसे भी प्राप्त किया जा सकता है,उसके लिए किसी शोहरत वाले विद्यालय की आवश्यकता नहीं होती है।
               ✝︎✝︎✝︎✝︎✝︎✝︎✝︎✝︎
स्वरचित मौलिक रचना। 
सर्वाधिकार सुरक्षित ©️®️

#लघुकथा_आयोजन.. पाठशाला (आ. दीपनारायण झा'दीपक' जी )

🙏जय माॅं शारदे 🙏
💐नमन कलम बोलती है साहित्य समूह💐
#विषय-पाठशाला
#विधा-लघुकथा
#विषय क्रमांक-४२४
#दिनांक-१५-०४-२०२२
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#पाठशाला
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काश! बचपन में ही पाठशाला का सही अर्थ समझ पाता कि पाठशाला पढ़ने का घर होता है। समझने में बहुत देर हो गई। वाकई रोमांचित हो उठता हूं बचपन के दिनों की पाठशाला को याद कर।रोम -रोम खुशी से झूम उठता है बचपन की पाठशाला को याद कर।
बचपन में मेरी पारिवारिक स्थिति अच्छी थी। घरेलू काम के लिए भी कई लोग थे। मिश्रित परिवार था।मेरे दादा जी अच्छे किसान थे। पिताजी सहायक शिक्षक, चाचा जी सहायक शिक्षक थे। समय की मांग के अनुरूप मेरा नामांकन अंचल के एकमात्र अंग्रेजी माध्यम स्कूल बाल भारती में करा दी गई।बाल भारती विद्यालय पांचवीं कक्षा तक था और जिसने भी पांचवीं कक्षा तक पढ़ाई सही ढंग से की आज वो सभी अधिकांश अच्छे पद पर आसीन हैं।
पुनः राजकीय मध्य एवं उच्च विद्यालय सारवां में नामांकन हुआ। पुनः देवघर महाविद्यालय देवघर से पढ़ाई करने का अवसर मिला।
शुरुआती दिनों में विद्यालय जाना अच्छा नहीं लगता था क्योंकि घर से तीन किलोमीटर दूर दादा जी के कंधे पर एवं साइकिल पर विद्यालय जाना होता था। फिर विद्यालय में खेलकूद के दौरान कई साथी बन गए। पाठशाला जाने में इतना मन लगने लगा कि अवकाश होने पर दुःख होता था। फिर गांव के सारे बच्चे एक साथ एक दुसरे को बुलाते हुए, खेलते-कूदते हुए विद्यालय जाते थे। दादा जी भले ही किसान थे मगर पढ़ाई के मामले में काफी सख्त थे। लम्बी कदकाठी बड़ी-बड़ी आंखें, गठीला शरीर भारी-भरकम आवाज की एक आवाज से मिलों भर से लोग दौड़े चले आते थे।
मुझे याद है मैं पहली कक्षा में था। जनवरी का महिना था मुझे हिन्दी की नई पुस्तक मिली। बिना उठे सभी कविताएं एवं कहानियों को पढ़ डाला। एवं एक सप्ताह में सभी कंठस्थ हो गया। गांव में रहने के बावजूद भी अनावश्यक रूप से इधर उधर घुमने की आजादी नहीं थी। खेल- कूद के लिए शाम का समय निर्धारित था।शाम के समय कबड्डी, गिल्ली डंडा,आदि खेला करते थे।
बीते दो दशकों से सहायक शिक्षक के रूप में कार्य करते हुए गर्वान्वित हूॅं कि जिन-जिन शिक्षण संस्थानों से पठन -पाठन किया वहां-वहां अध्ययन-अध्यापन, परीक्षण, पर्यवेक्षण करने का अवसर मिलता रहा है।आज विद्यालय के बच्चों में अपना बचपन ढूंढने का प्रयास करता हूं। उनके साथ सभी तुतलाकर बोलता हूं, साथ -साथ खेलता हूं, गाता-बजाता हूॅं, शैक्षणिक भ्रमण करता हूॅं एवं शिक्षण के साथ- साथ अन्य सभी गतिविधियों को करता हूं और अपने बचपन को याद करता हूॅं।आज शिक्षा का स्वरूप भी बदल गया है। पहले विद्यालय का मतलब होता था केवल पढ़ाई करने जाना किन्तु आज शिक्षा बहुत व्यापक रूप ले चुकी है बच्चों के अंदर की सभी प्रतिभावों को उजागर किया जाता है एवं अपने रुचि के अनुसार आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
और अधिक विस्तृत न करते हुए अंत में इतना ही कहना चाहता हूॅं कि"बचपन का वो सफर था सुहाना दोस्तों,अब तो वो भी लगने लगे बचकाना दोस्तों।

दीपनारायण झा'दीपक'
देवघर झारखंड

#लघुकथा_आयोजन..... पाठशाला (आ. राजेन्द्र कुमार राज जी)

"नमन माँ शारदे"
विषय-पाठशाला
विषय क्रमांक-424
दिनांक-15/4/2022
   ✍️लघुकथा
💐💐💐💐💐💐💐💐
प्राइमरी स्कूल की उच्च कक्षा उतीर्ण कर T C प्राप्त करने के बाद राजकीय संस्कृत विद्यालय में कक्षा 6 में प्रवेश के समय मेरी आयु 8 वर्ष ही थी।
मुझे आज भी याद है रास्ते में गांव का ही एक व्यक्ति जो मेरे से बहुत बड़ा है, ने मुझसे पूछा क्या करता है बे? मैंने कहा कक्षा6 में पढ़ता हूं। तो उसने मेरी उम्र व कद को देखकर कुछ अपशब्द कहे और कहा देखते हैं क्या? करेगा पढ़ कर।
उसी दिन मैंने मन में ठान ली पढ़ लिखकर इसे कुछ करके दिखाना है, घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण मजदूरी भी करनी पड़ती थी।
पर वो बात एक टीस बनकर मेरे मन में चुभती रहती थी।
पढ़ने का समय कम ही मिलता था और न ही इतना हमारे यहां पढ़ाई को अधिक महत्व दिया जाता था पर वो बात रह रहकर चुभती रहती थी। तो रात्री को पढ़ने के लिए समय निकालता और अध्ययन किया करता था।
समय बीतता गया पाठशाला में अध्ययन के साथ-साथ उसके द्वारा किया गया अपमान कुछ करने के लिए मजबूर करता रहा और उसकी बदौलत आज में सरकारी सेवा में कार्य कर रहा हूँ।
आज भी वो व्यक्ति जब भी मुझे कहीं मिलता है तो उसकी कहि बात याद आती है, मुझे नहीं पता उसको वो बात याद है या नहीं पर मुझे आज भी याद है और में तो उसे अपना मार्गदर्शक मानकर नमन, प्रणाम करता हूँ पता नहीं वो चुभने वाली बात अगर मुझे नहीं कहता तो इस मुकाम पर पहुँचता या कहीं मजदूरी करता रहता।

स्वरचित व मौलिक, स्वगठित भी।
राजेन्द्र कुमार राज
श्रीमाधोपुर, सीकर
राजस्थान

#लघुकथा_आयोजन.. पाठशाला (आ. सुमन तिवारी जी)

#कलम✍🏻बोलती_है_साहित्य_समूह #दो_दिवसीय_लेखन
#दैनिक_विषय_क्रमांक : 424
#विषय : पाठशाला
#विधा : लघुकथा
#दिनांक : 15/04/2022 , बुधवार
समीक्षार्थ
________________________
       मेरा बचपन पिथौरागढ की सुंदर पर्वतीय नगरी में बीता। पिताजी की पोस्टिंग तीन-तीन वर्ष में होती रहती थी। उस समय पिथौरागढ में अंग्रेजी स्कूल नहीं थे, बस एक सरस्वती शिशु मंदिर था अंग्रेजी स्कूल के नाम पर। अन्य एक दो सरकारी स्कूल भी थे। मैंने मुनाकोट ब्लॉक के प्राइमरी पाठशाला में प्रवेश लिया। सरकारी पाठशाला एकदम आश्रम पद्धति की होती थी। पेड़ के नीचे जमीन पर दरी बिछाकर बच्चे बैठते और गुरु जी श्यामपट पर लिख कर समझाते थे। छटी कक्षा तक तो हमने पतली सरकंडे की कलम व स्याही से लिखा, लेख अच्छा न होने पर स्केल से उल्टे हाथ पर गुरु जी मारते क्या मजाल कि कोई उफ़ करे, लिखावट मोती सी चमकती थी। कक्षा में आज के पब्लिक स्कूल की तरह भीड़ नहीं होती थी। मेरी पाँचवी कक्षा में तो कुल मिलाकर हम पाँच बच्चे थे, और मैं अकेली लड़की।

            प्रार्थना सभा में ईश्वर प्रार्थना के साथ ही सदाचार की बातें बताई जातीं और 15- 16 मिनट शारीरिक व्यायाम के बाद ही हम अपनी कक्षा में जाते थे। सरकारी स्कूल में आज के पब्लिक स्कूल की तरह बस्तों का बोझ नहीं होता था। मुख्य विषय हिंदी, गणित, इतिहास- भूगोल, और विज्ञान होते थे। हमारे गुरु जी हमें क्लास में ही बहुत अच्छा पढ़ाते थे। ट्यूशन का नाम कोई जानता ही नहीं था। 

        मध्यांतर में नाश्ते में हमें उबले चने, आलू की चाट, मिल्क पावडर आदि आदि मिलता था, जिसका स्वाद मैं आज तक नहीं भूली। आखिरी पीरियड में हमसब प्रार्थना सभा में एकत्रित होते एक बच्चा सामने खड़ा होकर गिनती ,पहाड़े व हिंदी की कविताएँ बोलता हमसब उसे दोहराते थे। आज तक वह सब मुझे याद है। 

          तीन साल बाद पिताजी का तबादला दूसरे ब्लॉक में होगया। G G I C में मुझे छटी कक्षा में प्रवेश मिला, अब दरी की जगह बैंच और मेज में बैठ कर हम स्वयं को राजा समझने लगे। हर वर्ग के बच्चे पढ़ते कोई भेदभाव नहीं था। मुझे आज भी अपने सरकारी स्कूल याद आते हैं जहाँ न कोई दिखावा न कोई टीम टाम, बस पढ़ना, खेल कूद, बागवानी और सिलाई कढ़ाई। छटी कक्षा में आकर ही अंग्रेजी विषय पढ़ा, पर व्याकरण की बुनियाद इतनी अच्छी कि शहर के प्रतिष्ठित अंग्रेजी स्कूल में शिक्षण का अवसर मिला जहाँ लगभग 30-32 वर्ष विभागाध्याक्षा रही। यह आत्मविश्वास और हुनर सरकारी स्कूल की ही देन है। मुझे गर्व है कि मैं सरकारी स्कूल में पढ़ी हूँ और अंग्रेजी स्कूल के बच्चों को पढ़ाया। 

                    स्वरचित मौलिक रचना
              सुमन तिवारी, देहरादून उत्तराखंड

#लघुकथा_आयोजन... पाठशाला (आ. राजीव रावत जी)

#कलम _बोलती_ है
#विषय क्रमांक - 424
#विषय - पाठशाला

पाठशाला - -लघु कथा
              राजीव रावत
             
       रमुआ के पिता एक छोटे किसान थे, दो बर्षों से बारिश न होने कारण मजदूरी कर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे थे। वह चाहते थे कि उनका बेटा कुछ पढ़ लिख जाये तो इस फटे आल जिंदगी से छुटकारा मिले। वैसे रमुआ पढ़ने तीव्र बुद्धि का था लेकिन नयी किताबें खरीदने के लिए और नदी पार करके दूसरे गांव में स्कूल जाने के लिए पैसे नहीं थे। इसलिए वह रोज सुबह सुबह जल्दी जाकर नाव बुजुर्ग नाविक का नाव खैने में सहायता करता और उसके एवज में वह फ्री में नाव से स्कूल जाता।
                स्कूल में उसके गांव के जमीदार का लड़का भी पढ़ता था। रमुआ रास्ते में नावं चलाते चलाते जमीदार के लड़के की किताबों से पढ़ भी लिया करता था। स्कूल मे इम्तिहान के बाद जब रजिल्ट की घोषणा हुई तो अध्यापक ने जमीदार के लड़के को प्रथम घोषित किया और रमुआ फेल हो गया था।
                उस दिन रमुआ बहुत उदास था क्योंकि उसने अपने सारे पेपरों में सही जबाव लिखे थे। वह चुपचाप नांव पर आ कर बैठ गया। जब नांव भर गयी तो जमींदार का लड़का और उसके दोस्त नांव पर मस्ती कर रहे थे और रमुआ उदास बैठा नांव चला रहा था, घर पर बाबू जी को क्या जबाव देगा?
                अचानक तेजी से हवायें चलनें लगी और नांव डोलने लगी, लाख कोशिशों के बाद भी नांव पलट गयी। सभी पानी में डूबने लगे। अब रमुआ तेजी से तैर कर डूबते जमीदार के बच्चे सहित बारी बारी से कई लोगों को बचा लाया और अंत में स्वयं बेहोश होकर किनारे पर गिर गया।
                उस दिन शाम जमीदार ने अपने यहां गांव की मीटिंग बुलाई और अध्यापक जी सर झुकाये खड़े थे क्योंकि जमीदार जी के लड़के ने सच बता दिया था कि रमुआ की परीक्षा कापियों से अदला-बदली कर दी गयी थी। तब जमीदार ने रमुआ को गांव के सामने न केवल पास घोषित किया बल्कि कहा कि पढा़ई की पाठशाला में बेईमानी से फेल हो सकता है लेकिन जो जीवन की पाठशाला में सफलता प्राप्त करता है, वह कभी फेल नहीं हो सकता है क्योंकि जीवन की पाठशाला ही श्रेष्ठ पाठशाला होती है।पढा़ई की पाठशाला ज्ञान तो दे सकती है लेकिन जीवन की पाठशाला कैसे और कहां उपयोग करना है सिखाती है। 
                                 राजीव रावत 
 भोपाल (म0प्र0)
(स्वरचित रचना)

#लघुकथा_आयोजन...पाठशाला (आ. शशि मित्तल "अमर" जी)

नमन मंच ✒️ बोलती है साहित्य समूह
१५/४/२०२२
विषय---पाठशाला
विधा--लघुकथा
सादर समीक्षार्थ

*लघु कथा*

      #पाठशाला

  राजेश अपने माता-पिता के साथ गाँव में रहता था, जब वह छ: साल का था, वह पाठशाला जाने लगा। 
    वह पढ़ने में भी बहुत होशियार था, शिक्षक उसे बहुत प्यार करते थे, मगर वह घर से बहुत दुखी था। सब बच्चे उसे चिढ़ाते थे, कारण कि उसके माता-पिता दोनों शराब पीते थे और खूब लड़ते थे। दोनों अनपढ़ थे।
     गाँव का सरपंच उन दोनों को रात्रिकालीन पाठशाला में जाने को कहा मगर वो नहीं गये।
  राजेश की पढ़ाई घर में हो नहीं पाती, क्योंकि उसके घर में दिन भर किच-किच होती थी।
   पड़ोसी आ कर समझाते मगर वो नशे में उन्हें गाली दे के भगा देते।
   राजेश ने ये सारी बातें अपने शिक्षक को बताई, वो समझाए कि तुम छात्रावास में आकर रहो।
 वहाँ तुम आराम से अध्ययन कर सकते हो।
   राजेश घर आकर अपना सामान रखने लगा, उसके पिताजी बोले "बेटा कहाँ जा रहे हो"? राजेश बोला आप लोग आराम से बैठ कर दारु पीजिए मैं इस घर में अब नहीं रहूंगा"।
    राजेश की माँ आकर देखती रही, फिर रोने लगी, बोली "हमारा तो एक ही बेटा है और वो भी हमारी बुरी आदतों के कारण घर छोड़ रहा है,"
वह घर मे रखी सभी बोतलें बाहर फेंक दी और बोली--
  "आग लगे ऐसी आदत को"
और अपने बेटे को गले से लगा ली।
 अब दोनों ने अपनी गलती सुधार कर शराब न पीने की कसमें खाई।
और दोनों साक्षरता अभियान के अन्तर्गत पाठशाला जाने का निर्णय लिए।

शशि मित्तल "अमर"
मौलिक

#लघुकथा_आयोजन...पाठशाला (आ. अनिता शर्मा**त्रिवेणी**जी)

नमन मंच
 "कलम ✍️ बोलती है" साहित्य समूह 
 विषय क्रमांक: 424
  विषय: पाठशाला
    विधा: *"लघुकथा"*
    15 04,22

   पाठ शाला
      (लघु कथा)

 शिवानी अपनी सहेलियों को पाठशाला जाते हुए देख रही थी।गरीब बस्ती की छोटी सी टूटी हुई झोपड़ी में वह और उसकी मां दोनो ही रहती थी।पिता का कोरो ना के चलते स्वर्गवास हो गया था।मां दूसरो के घरों में काम करके गुजारा कर रही थी।वह डरती थी कि यदि उसे भी कुछ हो गया तो बेटी को कौन देखेगा? मां शिवानी को नजर से दूर नहीं रखती थी।शिवानी का मन पाठशाला जाने को होता था।
  तभी बस्ती में एक बड़ी गाड़ी आ कर रुकी।उसमे से दो महिलाएं और दो पुरुष उतर कर झोपड़ियों में जाने लगे।श्याद सरकारी कर्मचारी थे।बस्ती वाले यहां वहां छिपने लगे।एक महिला शिवानी के घर भी आई।मां से घर के विषय में जानकारी ली।फिर शिवानी के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा....? पाठशाला जाओगी??
   शिवानी ने खुशी के मारे हां में सिर हिला दिया।मां.....!नहीं..नहीं।यह मेरा एक ही सहारा है।इसे मैं नहीं छोड़ सकती।
   महिला ने मां को सरकारी योजनाएं और बालिका अधिकार समझाए।मां को कुछ समझ आ रहा था।तभी पुरुष कर्मचारी बोला।पास के सरकारी पाठशाला में दोपहर भोजन हेतु सेविका की आवश्यकता है।क्या आप राजी हो।मां ..की खुशी का ठिकाना न रहा।..."अब मां और शिवानी दोनो पाठशाला जाएंगी""।

    अनिता शर्मा**त्रिवेणी**
     देवास(मध्य प्रदेश)

   पूर्णतः मौलिक 🙏🏼
    अप्रकाशित 🙏🏼🌹

#लघुकथा_आयोजन.... पाठशाला ( आ. किरन पाण्डेय जी)

नमन मंच कलम बोलती है साहित्य समूह
दिनांक 15.4.2022
विषय क्रमांक 424
विषय पाठशाला
विधा लघु कथा
*""""**"""*""""**
मैं जब पाठशाला में शिक्षक थी उस समय मेरे बच्चे बहुत छोटे छोटे थे! 
नित्य प्रातः ही घर की जिम्मेदारी रहती थी और बच्चों को भी विद्यालय के लिए तैयार करना होता था! 
सच बहुत भागमभाग लगा रहता, काम के साथ ही उनके गृहकार्य कभी परीक्षा की तैयारी तो कभी असाइंमेंट और भी ना जाने क्या क्या❓
नये कक्षा में जाते ही नये किताब कापियाँ स्टेशनरी! बच्चों के साथ बडे़ उत्साहित हो मिल कर सब निपटाते थे! 
सच पाठशाला की शिक्षा हमारे जीवन की अमुल्य धरोहर है और सच्चे ज्ञान का भंडार भी! हम सामाजिक वातावरण के साथ मित्रता और प्रगतिशील होना अर्जित करते हैं! 

   किरन पाण्डेय
  मौलिक गोरखपुर उत्तर प्रदेश

#लघुकथा_आयोजन..पाठशाला (आ. प्रमोद कुमार चौहान जी)

कलम बोलती साहित्यक मंच
विषय -- लघुकथा (पाठशाला)
दिनांक --१५/०४/२२

पाठशाला

              

            ममता, मैं तो अपने बिट्टू से बहुत परेशान हूं आए दिन मोहल्ले वालों की शिकायत, लड़ाई, झगड़ा, सुन-सुन के तंग आ गई कुछ समझ नहीं बन रहा करूं तो करूं क्या ऐसा दीप्ति ने चेहरे पर तनाव भरे भावों से कहा ... ममता ने गंभीर भाव से सुना फिर पूछा कि बिट्टू पढ़ता कहां है . ममता ने कहा कॉन्वेंट में, तब दीप्ति ने कहा कि यदि बुरा न मानो तो मैं एक बात कहूॅं, तो ममता ने कहा इसमें बुराई की क्या बात है ।
            मुझे तो समस्या का हल मिल जाए क्योंकि अब मैं बहुत तंग आ चुकी हूॅं रोज-रोज की शिकायतें सुनकर... तब दीप्ति ने कहॉं पहले मुझे भी ऐसी शिकायतें रोज मिलती थी मेरे व्यू की पर मेरे पड़ोस में रहने वाली चाची ने मुझे सलाह दी की व्यू का नाम सरकारी पाठशाला में लिखवा दो... जहां शिक्षा के साथ संस्कार की भी शिक्षा दी जाता है ।
             ‌मैंने फिर वैसा ही किया और व्यू का नाम पाठशाला में लिखवा दिया तब से मुझे व्यू से कोई शिकायत नहीं है । दीप्ति की बात सुनकर ममता के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव थे और वह तुरंत घर गई और अगले दिन ही उसने अपने बेटे बिट्टू का नाम सरकारी पाठशाला में लिखवा दिया, तब से बिट्टू कि कोई शिकायत नहीं आती और आज बिट्टू बहुत ही संस्कारी और गुणी छात्रों में गिना जाता है ।

               पूर्व सैनिक
         प्रमोद कुमार चौहान
     कुरवाई विदिशा मध्यप्रदेश
शा माध्यमिक विद्यालय सिरावली

#लघुकथा_आयोजन.. पाठशाला (आ. निकुंज शरद जानी)

'जय माँ शारदे '
विषय क्रमांक-424
विषय- पाठशाला
लघुकथा 
दिनांक-15-04-2022

पाठशाला 
--------------
शुभी की रोज सुबह घुटनों तक लम्बे बालों की रिबिन वाली दो चोटियाँ बनाकर माँ पाठशाला के लिए तैयार करती हुई उस समय का उपयोग उससे कभी पहाड़े मुखाग्र कराते हुए तो कभी 
कविता पाठ कराते हुए एक पंथ दो काज करती। 
नई कोरी काॅपी- किताबें आते ही शाम के समय उन पर खाखी रंग के नये पृष्ठ चढ़ाये जाते--- पाठशाला की नई युनिफार्म, नया लंच बॉक्स और कम्पास बाॅक्स जैसे एक ऐसा उत्सव जो हर साल दिवाली के त्यौहार की तरह मनाने की धुनक रहती। 
शुभी की जीवन रीत सीखने की शुरुआत यहीं से हुई होगी----
पाठशाला विद्या के साथ कितने सलीके 
सीखाती रही। माँ ने एक बार युनिफार्म के मायने समझाते हुए कहा था देखो शुभी तुम और रधिया की बिटिया बिल्कुल एक सी लगती हो--- कौन कहेगा कि रागी नौकरानी की बेटी है---!
वहीं से शायद शुभी ने पोशाक को कभी लोगों को मापने का पैमाना बनाना और भेदभाव करना नहीं सीखा 
रागी को उसकी अगले साल की पुस्तकें मिलती और नये खाखी कवर भी----
रागी के लिए पुस्तकों की नएपन की खुश्बू से बढ़कर पुस्तकों की उपलब्धता 
मायने रखती---
शुभी को याद है रागी नये पृष्ठों पर अपना नाम बड़े जतन से लिखकर अपनेपन का एक एहसास पा लेती फिर पुस्तक उसकी अपनी हो जाती। 
रधिया तो पुरानी युनिफार्म का भी कहती लेकिन माँ नई बनवाकर देती---
माँ कहती शिक्षा पाठशाला में तब ना मिलेगी जब स्वाभिमान घर से ले कर जायेगी-----!
माँ छोटी से छोटी पेंसिल भी बचाकर रखती और यही सब उसे पाठशाला में सिखाया जाता । एक दिन घर आकर शुभी ने माँ से कहा- माँ तुम और मेरी पाठशाला बिल्कुल एक समान हो। 
मेरी शिक्षिका भी कहती है कि घर का भोजन ही स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है और तुम भी सुबह जल्दी उठकर मेरा लंच बनाती हो----
हम सब पाठशाला में वही प्रार्थना और प्रतीज्ञा गाते- दोहराते हैं जो तुम मुझे लोरी की तरह रोज रात सुनाती हो ।
शुभी पाठशाला में घर और घर में पाठशाला को एकाकार देख रही थी। 

पाठशाला में अध्यापिका को माँ और घर में माँ को अध्यापिका के रूप में देखते हुए उसका कोमल मन एक कोंपल को विकसित करने की प्रक्रिया में गतिशील हो चुका था जिसे आगे जाकर एक पुष्पित वृक्ष बनना था----

इस विकास की आधारशिला तो 'पाठशाला 'ही थी ----जहाँ से निकलकर वह दुनियाँ की वृहत् पाठशाला में कदम रखने वाली थी जहाँ त्रैमासिक, छःमासिक या वार्षिक परीक्षा नहीं होती--- वहाँ प्रतिदिन परीक्षा देना होता है-----।

----- निकुंज शरद जानी 
स्वरचित और मौलिक लघुकथा सादर प्रस्तुत है।

#लघुकथा_आयोजन... पाठशाला ( आ. टी . के. पांडेय जी)

कलम बोलती है साहित्यिक समूह
पाठशाला
लघु कथा

टी के पांडेय
______
मनीष मेधावी था बिषय पर पूर्ण अधिकार कहिये नहीं की उत्तर प्रस्तुत। ठीक बिपरित था उसका मित्र सुरेश। मंद बुद्ध व्यक्तित्व। मनीष हमेसा शिक्षक का चहेता था बहुत करीब। एक दिन दोनों मित्र परस्पर बात कर रहे थे मनीष ने कहा, सुरेश मुझे देखो मै स्कूल में टीचर का टास्क भी नहीं बनाता फिर भो गुरुजी मुझे कुछ नहीं कहते तुझे तो डेली मार पड़ती है और कहते कहते वह हंस पड़ा।सुरेश बिल्कुल चुप उदास मन ही मन खीज गया। 
अगले दिन गुरुजी ने मनीष को उसकी कापी चेक की। बिल्कुल कोरी गुरुजी गुस्से से आग होते हुए मनीष को पिटाई कर रहे थे और सुरेश हंस रहा था अपने तिरछे नेत्र से मनीष ने सुरेश को देखा मन ही मन बुदाबूदाया, देखना, देख लूंगा। 

टी के दिल्ली

रविवार, 16 जनवरी 2022

विषय 👉🏻हिन्दी ।रचनाकार 👉🏻आ. नीतू पाराशर जी 🏅🏆🏅

Uma Vaishnav 
कलम✍️ बोलती है साहित्य समूह
मंच को प्रणाम 🙏🙏
विषय -हिंदी
दिनांक -10/1/2022
*****************🌹हिंदी है हमारी प्यारी
     बोली,
    राष्ट्रभाषा का सम्मान है
    पाती,
    हिंदी है हमारी प्यारी 
     बोली,
    भारत के सभी राज्यो में,
      है बोली जाती,
     हिंदी है हमारी प्यारी
      बोली,
    जब कोई बोली समझ न
     आए तो,
    हिंदी ही बोली जाती,
    हिंदी है हमारी प्यारी
      बोली ,
   हिंदी से ही आश हमारी,
   हिंदी से पहचान हमारी,
   हिंदी से ही हिंदुस्तान,
   हमारा,,
   हिंदी से ही है हिंदुत्व 
   हमारा ,, क्योकि     
   हिंदी है हम सबकी प्यारी       
    बोली,,
  हिंदी है हम सबकी प्यारी
    बोली,,........🌹
और अंत मे बस इतना ही
कहना चाहती हु.........
हिंदी है हम तो वतन है और हिंदी को दिलाना होगा,
हम सब को विश्व मे सम्मान,

🌹विश्व हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं🌹
  स्वरचित
🌹नीतू पाराशर पाली🌹

विषय 👉🏻हिन्दी । रचनाकार 👉🏻आ. जयदेव अत्री जी 🏅🏆🏅

Uma Vaishnav 
नमन माँ शारदे 
नमन" कलम बोलती है "साहित्य समूह मंच 
सोमवार --10/01/2022
विषय क्रमांक : 383
विषय : हिन्दी 
विधा : कविता (मेरी ये अभिलाषा हिन्दी) 
मेरी ये अभिलाषा हिन्दी, जन-जन की हो भाषा हिन्दी ।
ताज साज राष्ट्र भाषा का, क्यों अब तक है भाल की बिंदी ।।

मुक्ता सम वर्णों की माला, सागर सम शब्द कोश विशाला। 
अलंकृत स्वांलकारों से, पूरित है सब संस्कारों से। 
सुन्दर सरस सलोनी लिपि, मुखरित,सृजित,पटत सम रूपि। 
सृजन करती सब विधाओं का, लय, गति, छंद, रस, भावों का। 
शब्दाबाद रहा हर तेरा, फिर भी अपनों में शर्मिंदी।..................1

संस्कृत सुता सरस अति पावन, अभिनेता वाणी मन भावन। 
स्वाधीनता की रही भाषा, नेता, कवि लेखन की आशा। 
वीणा की झंकारों में तू, आजादी के नारों में तू। 
स्वराष्ट्र की तू है पहचान,तू जननी का लोरी गान। 
सरल ,सम्पूर्ण, संस्कारी तू,फिर भी है मर-मर के जिन्दी।...............2

रिश्तों को परिभाषित करती, भाव, विचारों की अभिव्यक्ति। 
राष्ट्र का सम्मान है तू,जन-जन का स्वाभिमान है तू। 
भारतेन्दु युग का संधान, तुलसी कबीर मीरा का ज्ञान। 
मात शारदे का वंदन तू, वीर भारती अभिनंदन तू। 
तेरा ही गुणगान करें हम, भारत के मिल सारे सिंधी।.................. 3

कलमकार करें सभी मंथन, बुद्धिमान सभी आत्मचिंतन। 
हिन्दी ना हो बस कंठन में, झांको सारे अन्तर्मन में ।
हिंदी हो दिल की धड़कन में, शोणित ,सपंदन ,कंपन में। 
एकता की तब होगी आशा, हिन्दी बने जब राष्ट्र भाषा। 
शुचि सनातन रहे गंगा सी, पंख खोल तब उड़े परिन्दी।.......... 4

      स्वरचित, मौलिक। 
       जयदेव अत्री ,जुलाना 
       जीन्द (हरियाणा)

विषय 👉🏻हिन्दी ।रचनाकार 👉🏻आ. मोनिका कटारिया (मीनू) जी 🏅🏆🏅

Uma Vaishnav नमन मंच
कलम बोलती है समूह
क्रमांक 383
दिनांक 07.01.22
विषय – हिन्दी
विधा- कविता

विश्व हिन्दी दिवस

हिंदुस्तानी हम , , हिंदी अपना मान
            माटी की सुगन्ध इसमें
           ममता का आँचल है यह
           याद दिलाती अपनी सभ्यता
            बढ़ाती है आत्मसम्मान

हिंदुस्तानी हम , हिंदी अपना मान

कल परसों का नहीं है परिचय
सदियों का है नाता
कोई भाव हो मन में
तुरंत प्रकट हो जाता
अपनो से कराती पहचान

हिंदुस्तानी हम , हिंदी अपना मान

आज़ादी की लड़ाई में
इसने साथ निभाया
राजकाज की भाषा बनकर
सबसे मेल कराया
देवों की वाणी है यह
वेदों का है प्राण

हिंदुस्तानी हम , हिंदी अपना मान

आत्मीयता की इसमें गंध
अभिव्यक्ति अपनी भाषा में ही सम्भव
सारे देश को देती एक सूत्र में बांध

हिंदुस्तानी हम , हिंदी अपना मान

हिंदी भाषा का दीप जलायें
जन जन की भाषा बनायें
विविध भाषा का ज्ञान होता अच्छा
मातृभाषा दिलाती प्रतिष्ठा एवं सम्मान

हिंदुस्तानी हम , हिंदी अपना मान

मोनिका कटारिया (मीनू)
मौलिक रचना

विषय :- हिन्दी ।रचनाकार :- आ विनोद शर्मा जी 🏅🏆🏅

सादर नमन
कलम बोलती है मंच
सोमवार,10जनवरी 2022
विषय--हिंदी
विधा--गीतिका
                    **गीतिका**
शपथ लो तुम करोगे आज,से हर काम हिंदी में।
नमन सूरज को हिंदी में, सजाएँ शाम हिंदी में।

लिखो द्वार पर घर के तुम,तुम्हारा नाम हिंदी में,
सदा तुम दो बधाई या कि, हर पैगाम हिंदी में।

अगर उलझन कोई आए,तुम्हारी जिंदगी में तो,
सदा करना भजन बस,लो प्रभू का नाम हिंदी में।

अनूठे संस्कारों से भरी,ये हमारी मातृभाषा है,
उचित सम्मान दें इसको, करें प्रणाम हिंदी में। 

                            विनोद शर्मा
                            पिपरिया (म.प्र.)
विश्व हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

विषय :- पतंग। रचनाकार :- आ. सत्या पांडेय जी 🏅🏆🏅

🙏

हवा के रुख को समझती पतंग,
 बुरे हालत से लड़ती  पतंग,🪁

कटती है, उतरती , चढ़ती पतंग
उम्मीद के धागे से  बढ़ती  पतंग

गिरती , सम्हलती ,मचलती ,पतंग,
बेखौफ तमन्नाओं सी उड़ती  पतंग..

हौसले की उडान उडती पतंग 
प्रतिस्पर्धा  मे खूब कटती पतंग ।।

जिन्दगी का सफर होता कठिन 
 जिन्दगी  भी है यू उडती पतंग  

जिन्दगी की राह मे काटे  बहुत  है
 जैसे शूल पर मर मिटती   पतंग 

सत्या पांडेय 
वाराणसी

शनिवार, 15 जनवरी 2022

विषय :- हिन्दी ।रचनाकार :- आ. योगेन्द्र अग्निहोत्री जी 🏅🏆🏅

 भारत देश की शक्ति है हिन्दी ।
एक सहज अभिव्यक्ति है हिन्दी ।
क्यों न  हिन्दी अपनायें हम ,
कलमकार की भक्ति है हिन्दी ।
संस्कृत ने जन्म दिया है,
उर्दू के संग खेली है ।
मेरे देश की मिश्रित हिन्दी
भाषाओं की सहेली है ।
अन्य क्षेत्र की भाषाओं का
तुम बेशक सम्मान करो ।
हिन्दी शान है भारत माँ की 
मत इसका अपमान करो ।
हिन्दी सूत्र है भाषाओँ की , 
गले में चेन हो जैसे कोई ।
हिन्दी चेन की लाकेट जैसी, 
संविधान में गई पिरोई ।
तुलसी की चौपाई हिन्दी ,
कृष्ण भजन है सूरा की ।
हिन्दी में रसखान का रस है,
भक्ति भाव है मीरा की ।
हिन्दी भाषा, हिन्द की बेटी, 
भारत की पहचान ।
हिन्दी लिखें ,बोलें हिन्दी में ,
निज भाषा से बढ़ती शान ।।
 योगेन्द्र अग्निहोत्री,स्वरचित

शुक्रवार, 14 जनवरी 2022

विषय :- हिन्दी ।रचनाकार :- आ राजीव रावत जी 🏅🏆🏅

#नमन मंच
#विषय क्रमांक - 383
विषय-हिंदी
विधा-गद्य कविता
दिनांक - 11/01/22

हिन्दी - - हमारी भाषा
                           राजीव रावत

जिसकी न हो 
अपनी धरती, न हो कोई भाषा - 
किसी राष्ट्र की कोई कैसे,सम्पूर्ण करे परिभाषा - 
नारी के सौंदर्य को 
जैसे प्रदीप्त करे है बिन्दी - 
वैसी उज्जवल किरण बिखेरे अपनी भाषा हिन्दी - 
अपने आंगन 
पली बढ़ी, यौवन भर पायी हिन्दी - 
कुछ दुशासन खींच रहे हैं, उसके तन की चिंदी-
मां ने हमें 
जन्म दिया और भाषा ने हमको शब्द दिये-
दोनों ने ही तो मिल कर हमारे जीवन के प्रारब्ध लिखे-
फिर हम 
अपनी मां और भाषा से दूर भले क्यों होते हैं-
धुंधली आंखों के सपने और भींगे शब्द भी रोते हैं-
जिनको अपनी 
मातृभूमि के गौरव का अभिमान नहीं-
अपनी भाषा के शब्दों पर,होता है स्वाभिमान नहीं - 
राष्ट्रप्रेम की 
भावनाओं का, जिनको होता नहीं है अर्थ-
उन नरों का जीवन भी क्या है, सम्पूर्ण रुप से व्यर्थ-
कृष्ण बनो 
तुम कोई दुशासन, हर न पाये चिंदी-
युगयुगांतर तक गूंजे,बस चहू दिशा में हिन्दी - 
जिनको अपना राष्ट्, 
राष्ट्रभाषा है स्वीकार नहीं-
उनको इस पावन धरा पर, रहने का अधिकार नहीं-
युग उनको 
नहीं छमा करेगा, जिन्हें घेरे रहे हताशा - 
किसी राष्ट्र की कोई कैसे, सम्पूर्ण करे परिभाषा - 
   (यह कविता मेरी मौलिक रचना है) 
                              राजीव रावत                               
भोपाल (म0प्र0)

विषय :- हिन्दी ।रचनाकार :- आ. कुलभूषण सोनी जी 🏅🏆🏅

. 11 सितंबर , मंगलवार
शब्द :#हिंदी
#दोहे-- दो
#रचना_नंबर-- दो
#हिंदी को अपनाइए। , भारत मां के बोल।
इसे प्यार सबही करो, यह भाषा अनमोल।।--१

#हिंदी भाषा का अगर , करें सदा सत्कार।
एक धर्म "भूषन" बने , नेक बने व्यवहार।।--२
🙏🙋🌹
-कुलभूषण सोनी , दिल्ली

विषय :- हिन्दी । रचनाकार :- आ अंजू भूटानी जी 🏅🏆🏅

नमन मंच
कलम बोलती है
विषय क्रमांक:383
विषय: हिंदी
दिनांक: 11/01/22

सदियों से बोली जाती हिंदी
देश की आन शान है हिंदी
माय बोली है हमारी हिंदी
सनातन धर्म की पहचान हिंदी।

हिमालय का टीका है हिंदी
एकता का सूत्र है भाषा हिंदी
भाव की अभिव्यक्ति है हिंदी
देदीप्यमान ज्ञान का पुंज हिंदी।

बच्चन की 'मधुशाला' है हिंदी
निराला की बनी 'जूही की कली'
महादेवी की 'रश्मि' है प्यारी हिंदी
दिनकर की ओजस्वी 'हुंकार' हिंदी।

मीठी, मनोरम सहज हमारी हिंदी
जन जन की बोली हमारी हिंदी
हिन्द की जिंदगी है हमारी हिंदी
परम वंदनीय है मातृभाषा हिंदी।

अंजू भूटानी
नागपुर

विषय :- हिन्दी ।रचनाकार :- आ. रमाकांत सोनी जी 🏅🏆🏅

मंच को नमन 
कलम बोलती है साहित्य सृजन मंच
दिनांक 11/012022

विषय हिंदी

 विधा गीत 

गौरव गान सिखाती हिंदी, राष्ट्रप्रेम जगाती हिंदी। 
राष्ट्र धारा बन बहती, देश का मान बढ़ाती हिंदी। 

देश का सम्मान हिंदी, वंदे मातरम गान हिंदी। 
सबके दिल में बसने वाली, देश की पहचान हिंदी। 

मोहक लय तान हिंदी, सबका है अभिमान हिंदी। 
गीत बन गूंजे धरा पर, मधुर नेह का भान हिंदी।

उर भाव जगाती हिंदी, मंद मंद मुस्काती हिंदी।
हृदय प्रेम भाव जगाती,देश का मान बढ़ाती हिंदी।

सरहद के रखवाले गाते, सदा तिरंगा शान हिंदी। 
यशगाथा उन वीरों की, लूटा गए जो जान हिंदी। 

राष्ट्र का उत्थान हिंदी, वीरों का गुणगान हिंदी। 
सद्भावो की बहती सरिता, होठों पर मुस्कान हिंदी।

भाईचारा प्रेम जगाती, संस्कृति सिखाती हिंदी। 
वसुदेव कुटुंबकम ले, देश का मान बढ़ाती हिंदी।

गीता का सब सार हिंदी, पावन गंगा धार हिंदी। 
बहती मधुर मधुर पुरवाई, सावन की फुहार हिंदी।

तीज और त्योहार हिंदी, प्रगति का आधार हिंदी। 
होली के रंगों की छटा, दीपों की सजी बहार हिंदी।

भाई बहना प्यार झलके, रक्षासूत्र बन जाती हिंदी। 
रिश्तों में मधुरता घोले, देश का मान बढ़ाती हिंदी।

रमाकांत सोनी नवलगढ़
जिला झुंझुनू राजस्थान

प्रस्तुत की गई रचना स्वरचित व मौलिक है।

विषय :- हिन्दी ।रचनाकार :- आ. देवेश्वरी खंडूरी जी 🏅🏆🏅

#कलम बोलती है साहित्य समूह 
मंच को प्रणाम 🙏🙏
विषय - हिंदी 
दिनांक- 11/1/ 2022
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पटल पर आसीन सभी सम्मानित, आदरणीय, महानुभाव को हिंदी दिवस की शुभकामनाओं सहित हार्दिक बधाई🙏🙏
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हिंदी भाषा हमारी अमूल्य धरोहर, अनुपम वरदान है,
साहित्य रत्नों की खान है हिंदी हमारी जान है।

राष्ट्रभाषा हिंदी पर गर्व है हिंदी भाषा से हमें बहुत प्यार है,
हिंदी भाषा में संस्कृति , सुसंस्कारों का भंडार है।

हिंदी भाषा की अद्भुत दिव्य पहचान है ,
ज्ञान ,विज्ञान के जीवन में हिंदी भाषा की शान है।

भारत माता की माथे की बिंदी है हिंदी ,
भारत माता का सम्मान, अभिमान है हिंदी।

हिंदी हमारे मन में जिह्वा पर रची ,बसी है,
हमारे व्यवहार ,सवाल, जवाब , मैं हिंदी है।

विविधताओं के देश में एकता के सूत्र में पिरोए रखती है हिंदी,
भिन्न-भिन्न भाषाओं के होने पर भी सारे विश्व में एकता का प्रतीक है हिंदी।

उत्पत्ति संस्कृति सही हुई है पर हमारी प्यारी भाषा है हिंदी,
सभी अन्य भाषाओं को लेकर साथ चलती है हिंदी।

हर भाषा के रंग में रंग जाने वाली भाषा है हिंदी,
कश्मीर से कन्याकुमारी तक बोलचाल की भाषा में है हिंदी।

हिंदी भाषा पर हमें अभिमान है, हिंदी भाषा का करते हम सम्मान ,
हृदय की धड़कनों से हिंदी भाषा को नमन वंदन करते हैं प्रणाम, 🙏🙏

देवेश्वरी खंडूरी, 
देहरादून उत्तराखंड।

विषय :- हिन्दी ।रचनाकार :- आ. आचार्या नीरू शर्मा जी 🏅🏆🏅

#कलम बोलती है साहित्य समूह 
#दैनिक विषय क्रमांक -383 
#दिनांक - 11.01.2022
#वार - मंगलवार 
#विषय - हिंदी 
#विधा - कविता 

मेरे भारत की शान है हिंदी 
मेल - जोल की पहचान है हिंदी 
हर बोली और भाषा का 
हम देशवासी सदा करते हैं 
आदर - सम्मान । 
आओ मिलकर 
देश की एकता को और बढ़ाएँ 
हिंदी का सम्मान बढ़ाएँ । 

रचना - स्वरचित / मौलिक 
रचयिता - आचार्या नीरू शर्मा 
स्थान - कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश ।

विषय :- हिन्दी ।रचनाकार :- आ बिजय बहादुर तिवारी'विस्मृत जी 🏅🏆🏅

नमन मंच 
दिनांक:11/०1/2022
आयोजन क्रमांक:383
हिन्दी दिवस 

★विश्व हिन्दी दिवस★ 

माह जनवरी तिथि दस
मना रहा विश्व हिंदी दिवस 
मन मे ले विश्वास इक
बने हिन्दी भाषा वैश्विक। 

रहे सुचारु संवाद-संवहन
कौशल विकास, प्रणाली -प्रबंधन  
औद्योगिकीकरण बनाता देश महान 
स्वतकनीक विकास इसका निदान। 

बन अभिव्यक्ति व संवाद संवाहक 
राजभाषा राष्ट्रीय प्रगति की मानक 
सफलतम स्वदेशीकरण अभियान 
गर हिंदी पाये, यथोचित सम्मान । 

हिंदी जनक,भरत का भारत 
देख दशा मन होता आहत 
भारती से ही होकर भयभीत 
देश में भी आंशिक प्रचलित। 

होते हुए जन-जन की भाषा 
दयनीय दशा देख होती निराशा
हस्ताक्षर तक है कहीं सिमटी 
कहीं खानापुरी तक लिपटी । 

जो हिंदी भाषा से रखते योग
समझा जाता पिछड़ा अयोग्य 
विवश, बेसुध बेहाल पडी है
हिंदी पलने से आगे नहीं बढी है। 

अंतत: 

हो गर्वी प्रयोग करो निज भाषा व श्रम।
कार्य करना हिन्दी मे है साविधिक धर्म॥ 

बिजय बहादुर तिवारी'विस्मृत, बोकारो
सर्वाधिकार सुरक्षित

विषय :- हिन्दी ।रचनाकार :- आ रवेन्द्र पाल सिंह 'रसिक' जी 🏅🏆🏅

नमन मंच
दिनाँक-11-1-2022
विषय-हिंदी
विधा-गीत

हिंदी है प्राण अपनी हिंदी है राष्ट्र धारा
करना प्रतिष्ठा इसकी संकल्प हो हमारा

इसकी कृपा से हमने शब्दों का ज्ञान पाया
भावों को व्यक्त करना हमको इसी से आया
हर शब्द मोती दीखा जब भी इसे निहारा।
हिंदी है प्राण......

भारत की प्यारी भाषा सबको समझ में आती।
बहती हवा भी इसके जीवन के गीत गाती।।
पतवार इसकी लेकर पा जायेंगे किनारा।
हिंदी है प्राण.........

सखियाँ हैं सोलह इसकी सब साथ साथ रहतीं।
परदेश वासिनी के घातों को कब से सहतीं।।
दे दो निकाला उसको गूँजेगा स्वर तुम्हारा।
हिंदी है प्राण.........

गीतों की जननी बनकर जन-जन को ये लुभाती।
रस से भरी ये भाषा रसिकों को रास आती।।
तुम मान इसको देदो मिल जायेगा सहारा।
हिंदी है प्राण अपनी हिंदु है राष्ट्र धारा।।
रवेन्द्र पाल सिंह 'रसिक'मथुरा

विषय :- हिन्दी ।रचनाकार :- भगवती सक्सेना गौड़ जी 🏅🏆🏅

नमन मंच
कलम बोलती है
विषय हिंदी 
क्रमांक 383
विधा लघुकथा

सखियां

दो सहेलियां शहर में घूमने निकली। एक स्थान में कई बुध्दजीवियों का जमावड़ा था, वही वो जाकर आराम करने लगीं।

पहली सखी बहुत खुश हुई, कवि गोष्ठी चल रही थी, खूब तालियां बज रही थी। दूसरी वहां गुमसुम बैठी थी, उसके कुछ पल्ले नही पड़ रहा था।

वहां से निकली तो दोनो सहेलियां एक जन्मदिन पार्टी में पहुँच गयी, वहां हर उम्र के लोग जश्न मना रहे थे।

वहां छोटे से बड़े लोगो की गिटपिट सुनकर दूसरी सखी आनंदित थी, पहली सखी खामोश थी और चिंतन कर रही थी, कि छोटे बच्चों को दूसरे देश की भाषा मे कविताये, गाने सुनकर लोग कितना खुश हो रहे है, दूसरी उसे अपना अंगूठा दिखा रही थी।

पहली सखी के माथे पर बिंदी थी, पहले बड़े घमंड में रहती थी, देखो मेरे नाम पर देश मे एक दिन मनाया जाता है काश सबलोग मेरी महत्ता पहचाने। आप दोनो सहेलियों के नाम बता सकते हैं।

स्वरचित
भगवती सक्सेना गौड़
बैंगलोर

विषय :-हिन्दी ।रचनाकार :- आ. संगीता चमोली जी 🏅🏆🏅

नमन मंच
क़लम बोलती है साहित्य समूह
दिनांक -11-1-2022
विषय हमारी मातृभाषा हिंदी
विषय कविता

गंगा यमुना सरस्वती मां।
युगो युगों- की शान है।
हिंदी राष्ट्र अति महान है।
यह पावन संस्कृति की पहचान है।

गंगा जल अमृत रस घर-घर है
हिंदी हमारी राष्ट्रीय धरोहर है।
चारों वेदों की प्यारी भाषा है।
संस्कृति संस्कृत में काव्य पाठ है।

सूर कबीर बाल्मिकी द्रोण जैसे।
विश्व गुरु भारत की पहचान है।
गुरु की महिमा जाने जन-जन है।
हिंदी हमारी राष्ट्रीय धरोहर है।

चलो हम शपथ ले हिंदी के संग।
हाथों में हाथ ले आगे बढ़े संग संग।
हिंदी की बिंदी माथे पर सजा दे।
हिंदी जन-जन के मन में बनाए घर हैं।

हिंदी हमारी राष्ट्रीय धरोहर है।
हिंदी साहित्य रत्न सागर है।
हिंदी गागर में सागर है।
हिंदी के वेद मंत्र से घर घर पवित्र है।
हिंदी हमारी राष्ट्रीय धरोहर है

स्वरचित मौलिक
संगीता चमोली देहरादून उत्तराखंड

विषय :- हिन्दी ।रचनाकार :- आ. नीतू अखिलेश त्रिपाठी जी 🏅🏆🏅

नमन-----------मंच 
दिनांक --10/01/22
क्रमांक ----------383
विषय----------- हिन्दी 
शीर्षक--(अस्तित्व खतरे मे)
##############
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
हिन्द समाया हिन्दी मे,
हिन्दी हिन्दुस्तानी।
देवभाषा जननी जिसकी,
 भाषाओ की रानी ।।
 हिन्दी हिन्दुस्तानी,----2
--------------------------------
विश्व लहराए,
परचम जिसका ।
क्या तुझको , 
इसका है भान ।।
अखंड हिन्द की ,
अखंड शान ये,
हिन्दी,हिन्दू,हिंदुस्तान ।
 सरताज रही साहित्य जगत की,
 बनकर ये महारानी ।
देवभाषा जननी जिसकी,
भाषाओ की रानी ।
हिन्दी हिन्दूस्तानी---2
-----------------------------
"नही फ़िरंगी सत्ता मे अब,
पर भाषा का शासन है ।
चीर हरण हुआ हिन्दी का,
हम सब ही दुष्शासन है ।
"मात्र न रह जाए बन भाषा,
जन जन की ये हो वानी ।
देवभाषा जननी जिसकी 
भाषाओ की रानी ।।
हिन्दी हिन्दुस्तानी-----2
##############

"चौपाई मे बसती सांसे,
अस्तित्व बनाया छन्दो ने ।
 दोहे जिसका मान बढावे,
 संस्कृति जिसके कन्धो पे।।
राष्ट्र भाषा सिरमौर बने ये,
 अब हम सब ने है ठानी ।
देवभाषा जिसकी जननी,
भाषाओ की रानी ।।
हिन्दी हिन्दुस्तानी------2
##############
स्वरचित-नीतू अखिलेश त्रिपाठी #कानपुर #
  #उ o प्र o #
🌷जय माता की 🌷
🙏🙏🙏🙏🙏🙏

विषय :- हिन्दी ।रचनाकार :- आ. अनु तोमर जी 🏅🏆🏅

नमन मंच
# कलम बोलती है साहित्य समूह
#क्रमांक -३८३
# दिनांक-११.०१.२२
# - विषय - हिन्दी
विद्या - स्वैच्छिक ( गद्य)
हिन्दी का आरम्भ तभी से होता है जब शिशु का जन्म होता
 है और वह मां मां करके रुदन करता है । यह शब्द कानों में
मीठा रस घोलता है। यह भाषा सरल और मधुर है । वैज्ञानिकता आधारित है । इसी के हारा प्रत्येक रस और भाव को प्रगट करते हैं। अपभ्रंश सरल और देसी भाषा शब्द ( अवहट्ट ) इसी से हिन्दी भाषा का उद्भव हुआ।१४ सितम्बर
१९४९ को कैंसिल संविधान की सभा में यह निर्णय लिया गया कि हिंदी भारत की राजभाषा हो ।भारत के राष्ट्रपति द्वारा नई दिल्ली के विज्ञान भवन में विभिन्न विभागों में राष्ट्रीयकृत बैंकों में हिंदी में किए गए कार्यों के लिए पुरस्कार प्रदान किए गए । हिंदी है है हम । हिंदुस्तान हमारा है ।हमारी पहचान हिंदी के द्वारा होनी चाहिए । हमें चाहिए कि हम अपनी नई पीढ़ी को हिंदी में पुस्तक पढ़ने की आदत डालें ।यह पुस्तकें हमारी धरोहर है । आधुनिक युग में उच्च शिक्षा प्राप्त कर युवा वर्ग जीविकोपार्जन के लिए बाहर जाते हैं । अंग्रेजी पढ़े, लेकिन अपनी मातृभाषा का सम्मान करना कभी न भूलें ।इसका अधिक से अधिक प्रचार और प्रसार कर जन-जन तक पहुंचाना है । हमारी भाषा प्रेम की भाषा है। सबको अपनाती है। हमारी हिंदी भाषा मेंवो उर्जा है, वो चुम्बकीय गुण है सब देश इसकी ओर आकर्षित होते हैं। हमारे प्रतिष्ठित जन भी विदेशों में अपनी हिन्दी भाषा को महत्व देते हैं। शिक्षाविदों और बुजुर्गों का यह दायित्व होना चाहिए कि हिन्दी के प्रति रुचि जागृत 
कर प्राचीन हिंदी लिखित धार्मिक ग्रंथों में लिखे मूल्यों को बताया जाए, जिससे हमारी धरोहर .पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रहे । हिन्दी हमारी शान है । हम इसकी शान को कभी कम न होने देंगे।
स्वरचित
अनु तोमर
मोदी नगर
गाजियाबाद

विषय :- हिन्दी ।रचनाकार :- आ. गोपाल सिन्हा जी 🏅🏆🏅

हिंदी-दिवस
-------------

माता, मातृभाषा, मातृभूमि को सदैव नमन !

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के,
मिटन न हिय के सूल।

--- भारतेन्दु हरिश्चंद्र।

हिंदी हमारी मातृभाषा है, अस्मिता है, पहचान है, अभिव्यक्ति का सहज माध्यम है। यह देश को जोड़ने वाली कड़ी है। हमें स्वभाविक रूप से आनी चाहिए, उत्साह-पूर्वक सीखनी चाहिए।

आज भारत ही नहीं, पूरे विश्व में, जहां भी भारतीय मूल के लोग हैं, हिंदी बोली-समझी जाती है। विदेश में, अनेक विश्वविद्यालयों में, हिंदी पढ़ाई जाती है। 

यह हमारी संस्कृति-संस्कारों से जुड़ी है। सामाजिक-सुधारों, स्वतंत्रता-आंदोलनों, देश की एकता, अखंडता में इसका योगदान है। 

आज अधिकांश सरकारी कार्य हिंदी में हो रहे हैं। शिक्षा एवं प्रतियोगिता-परीक्षाओं में इसका, विषय अथवा विकल्प-रूप में प्रावधान है। 

यह हमारी शिक्षा, व्यवसाय, प्रगति में बाधक नहीं, सहायक है, आत्म-विश्वास का परिचायक है। 

इसका विपुल शब्द-भंडार है, वैज्ञानिक शब्दावली एवं समृद्ध साहित्य है। 

इसकी अज्ञानता हमारे लिए हास्यास्पद है, उपेक्षा शोचनीय।

हिंदी के प्रचार का मुख्य दायित्व, हम हिंदी- भाषियों का है। हम दैनिक जीवन में इसे पूरे जोश एवं कर्तव्य-भावना से अपनाएं। स्वयं भी पढ़ें-लिखें-बोलें, बच्चों को भी प्रेरित करें।

जहां हम हिंदी के सरल शब्दों का प्रयोग कर सकते हैं, वहां अनावश्यक रूप से, दूसरी भाषाओं के शब्दों से बचें।

जहाँ जाएं-रहें, वहाँ की बोली-भाषा सीखें और वहाँ हिंदी सिखाएं। इसका निश्चित ही अच्छा प्रभाव पड़ेगा।

--- गोपाल सिन्हा,
      बंगलुरू,
      ११-१-२०२२

विषय :- हिन्दी ।रचनाकार :- आ. सुमन तिवारी जी 🏅🏆🏅

#कलम ✍🏻 बोलती_है_साहित्य_समूह #दो_दिवसीय_लेखन
#दैनिक_विषय_क्रमांक : 382
#विषय: हिंदी
#विधा : कविता
# दिनांक: 11 जनवरी 2022, मंगलवार
समीक्षा के लिए
_______________________
माँ के भाल का तिलक हिंदी
       माँ के माथे की शोभा हिंदी। 
यही मान अभिमान हमारी
       कवियों की सुर तान हिंदी।। 

मात्रा का सारा खेल है हिंदी
       स्वर व्यंजन वर्णों की माला। 
यति गति,ताल और छंद लय
       अलंकार युक्त रस का प्याला।। 

आन बान और शान है हिंदी
       बनी भारत की पहचान हिंदी। 
संपूर्ण विश्व में भारत देश का
       परचम लहरा रही मेरी हिंदी।। 

आओ मिलकर विचार करें
       भारत माता का श्रृंगार करें। 
राष्ट्रभाषा का मान दिलाकर
       मातृभाषा का सम्मान करें।। 

             स्वरचित मौलिक रचना
     सुमन तिवारी, देहरादून, उत्तराखंड

विषय :- हिन्दी ।रचनाकार :- आ सुशील शर्मा जी 🏅🏆🏅

#नमन कलम बोलती है साहित्य मंच
#विषय-हिन्दी 
विधा#काव्य
दि.11/1/22
हम हिंदू है हमारी पहचान हिंदी से है।
भारत माँ के भाल की शान बिंदी से है।
सीधी सरल व हर रूप में है अपनापन,
भावनाओं का गौरव,सम्मान हिंदी से है।
सब भाषाओं की जननी मात सी ममता,
मूक की आवाज बनती जान हिंदी से है।
लेखनी के शब्दों में ये मिठास सी भरती,
लेखन की विधाओं का भान हिंदी से है।
💐सुशील शर्मा💐

विषय :- हिन्दी ।रचनाकार :- आ. शीला द्विवेदी "अक्षरा"जी 🏅🏆🏅

#नमनमंच
#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह 
#बिषय_हिंदी

करे अलंकृत भाल सुहागिन
सौभाग्य निशानी बिंदी ज्यों,
सब भाषाओं में श्रेष्ठ कहाती
हिन्द की भाषा हिंदी त्यों।

बाल्मीकि रामायण में है
है तुलसी की चौपाई में,
कृष्ण कथामृत पान कराती
है मीरा के इकतारा में।

सूर, कबीर, रहीम की वाणी
ब्रज अवधी मान बढ़ाती है,
दोहा, छंद, पद, चौपाई से
जब हिंदी सज जाती है।

सात समंदर पार भी हिंदी
अपना रंग जमाती है,
विदेशियों के हृदय पटल पर
भगवा की छाप छोड़ती है।

कहलाती है जननी संस्कृत 
उर्दू की बहिन चहेती है,
श्रृंगार करे रस अलंकारों से
वह मेरी मातृ भाषा हिंदी है।।

शीला द्विवेदी "अक्षरा"
उत्तर प्रदेश "उरई"

विषय :- हिन्दी ।रचनाकार :- आ तरुण रस्तोगी'कलमकार'जी 🏅🏆🏅

🙏नमन मंच 🙏
#कलम_बोलती_है_
साहित्य_समूह 
#आयोजन संख्या ३८३
#विषय हिंदी 
#विधा दोहा ग़ज़ल
#दिनांक ११/०१/२२
#दिन मंगलवार
#सादरसमीक्षार्थ
#प्रस्तुति संख्या ०२

सबको करना चाहिए, 
                      हिंदी में अब काम।
देना चाहूंँ मैं यही, 
                      आज यहांँ पैगाम।

भाषा प्यारी है हिंदी,
                   सुना सभी यह बात।
जग में हम प्रचार करें, 
                        हिंदी का हो नाम।

सबको कहता हूंँ यही, 
                    करो हिंदी में बात
लालच में लाकर दिए, 
                   सभी जनों को आम।

करता हूंँ यही कामना, 
                      बढ़े हिंदी का मान।
अंग्रेजी को छोड़ कर,
                    दामन इसका थाम।

मम्मी डैडी ना कहे,
                    मात पिता को आप।
टीचर या गुरु से करे
                     चरण छूकर प्रणाम।

तरुण रस्तोगी'कलमकार'
मेरठ स्वरचित
🙏🌹🙏

विषय :- हिन्दी ।रचनाकार :- आ. संजीव कुमार भटनागर जी 🏅🏆🏅

नमन मंच
कलम बोलती है समूह
क्रमांक 383
दिनांक 11/01/2022
विषय – हिन्दी 
विधा- कविता
शीर्षक – हिन्दी का सम्मान

जब जब होता, हिन्दी का अपमान
विश्व पटल पर, भारत का घटता मान,
दस जनवरी विश्व हिन्दी दिवस मनाते
हिन्दी बोलने में, क्यों खोते स्वाभिमान| 

क्यों केवल हिन्दी दिवस पर सम्मान मिले
क्यों न पूरे बरस, फूल बन आँगन में खिले,
सबसे सरल मीठी है, हमारी हिन्दी भाषा
नत है जैसे पर्वत, ऊंचे नील गगन तले|

विश्व हिन्दी दिवस पर, हिन्दी करे पुकार
मैं मांगु दिल में जगह, अपना अधिकार,
जन मानस को जोड़ बनी हूँ सबकी भाषा
हिन्दी हूँ मैं, मन से कर लो मुझे स्वीकार|

कैसे मैं बयान करूँ, क्या है मेरी व्यथा
क्षेत्रों में बटी हूँ, दुखभरी है मेरी गाथा,
राजनीति दूर करो, भाषा विवाद वालों            
सम्मान हो सबका, हर भाषा से मेरा नाता|

रचनाकार का नाम- संजीव कुमार भटनागर
लखनऊ, उ. प्रदेश
मेरी यह रचना मौलिक व स्वरचित है।

विषय :- हिन्दी ।रचनाकार :- आ कान्ता शर्मा जी 🏅🏆🏅

नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य सृजन मंच
क्र.संः 383
दिनाँकः 11-01-2022
विषयः हिन्दी

आओ हिंदी को अपनी पहचान बनाएं,
अस्तित्व इसका खो रहा मिलकर बचाएं।
युगों-युगों से ऋषि मुनियों की वाणी बन,
अनेक ग्रंथों की रचना में समाई।
देश विदेश में बन गई ये महान,
फिर भारत में क्यों नहीं रहा अब सम्मान।
पूर्व से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण,
चहुँ ओर लहराता है इसका परचम।
हिमालय सजा है देश का मुकुट जैसे,
हिंदी की बिंदी भी चमके चाँद के जैसे।
वैज्ञानिक भाषा होकर भी ये बेगानी,
आज युवा अपना रहे संस्कृति अनजानी।
हर रक्त की बूँद में हमारे है ये समायी,
फिर अंग्रेजी अपनाकर क्यों ये भुलाई।
अ से अनपढ़ को ज्ञ ज्ञानी ये बनाये
अंग्रेजी पढ़कर क्यों ऐपल खाकर ज़ेब्रा बन जाये।
न भूलें हम विश्व पटल पर लहरा रहा है, दुनिया के कोने-कोने में इसका परचम।
विदेशी आज अपनाकर हमारी हिंदी को,
संस्कृति में इसकी खोज रहे इसके गुण।
सुनो हिन्द देश के सभी वासीयों!
अंग्रेजों ने ही तो भारत को गुलाम किया था,
फिर आज त्याग कर अंग्रेजी भाषा को,
अपनी हिन्दी से जुड़ इसकी संस्कृति का उत्थान करें।

स्वरचित व मौलिक
कान्ता शर्मा,
शिमला, हि.प्र.।

विषय :- हिन्दी ।रचनाकार :- आ. दमयंती मिश्रा जी 🏅🏆🏅

नमन मंच कलम बोलती हैं ।
क्रमांक_३८३
दिनांक_११/१/२०२२
विषय_‌हिंदी दिवस
विधा_गद्य
आज सब की कविताऐ कहानियां छंद आदि मे यही चर्चाएं हे । होना स्वभाविक भी ।कभी यह विचार किया की हमारे बच्चो को कितनी हिंदी आती हैं संस्कृत की तो बात ही छोड दे ।आज गांवौ मे भी अग्रेंजी शब्दावळी का चलना‌ बड रहा ।हिंदी अंको का ,महीनो दिनो के नामो का ज्ञान नही ।
तो सचाई को स्वीकारे ओर अग्रेजी अंको व शब्दावली के साथ पूर्ण ज्ञान हिंदी का कराना अति आवश्यक है ।तभी यह दिवस मनाना सार्थक हो गा ।मेरे यहाँ यह दिवस सार्थक है क्योंकि सबको हिंदी का ज्ञान हे ।बोलने मे हम पूर्ण तया हिंदी का ही उपयोग करते हैं ।
आओ हम सब करे प्रयास लिखे पढे हिंदी बढा़ये मान मातृभूमि का ।ओर सभी भाषाऔ को सम्मान दे ।
दमयंती मिश्रा

विषय :- हिन्दी ।रचनाकार :- आ मगनेश्वर नौटियाल"बट्वै"जी 🏅🏆🏅

नमन🙏🕉🙏 मंच
#कलम बोलती साहित्य समूह
#दिनांक 11.01.2022
#विषय क्रमांक-383
# विषय-हिन्दी
#विधा-पद्य कविता
✍️🙏✍️👩‍🦱✍️🙋‍✍️🕉
मां समान मातृभाषा हिंदी,
जिसका गौरवशाली इतिहास।
राष्ट्रीयता का भाव जगाने,
सद्भाव बढाती भाषा खास।।
हिन्दी जन-जन की भाषा,
आशाओं पर खरी उतरती।
मृदु भावों से परिपूर्ण हिन्दी,
है जिह्वा पर जो निखरती।।
वाणी में मधुरता हिन्दी,
ज्ञान विज्ञान की दाता है।
पढता लिखता जो हिन्दी,
अनमोल रत्न बन जाता है।।
साथ दिया है मातृभाषा ने,
समाचार,दर्शन,संचार।
थे जकड़े पराधीनता में,
आजादी जंग का प्रचार।।
राष्ट्रवाद का नारा हिन्दी,
प्रेरक बन प्रेरित करती।
हिन्द देश के हैं सिपाही,
मन में सुंदर भाव भरती।।
बोल चाल की हो भाषा,
हिन्दी सम्प्रेषण में सरल।
भाषाओं में श्रेष्ठ हो तुम,
यथा पदार्थों में तरल।।
निज भाषा उन्नति करने को,
आओ मां की बोली अपनाएं।
राष्ट्रभाषा का दर्जा देकर,
आओ हम भी हिन्दी अपनाएं।।
ऋणी हैं हम माता हमारी,
पुराण,महा ग्रन्थ रामायण।
तुझसे रचना,संरचना होती,
हिन्दी से शुभ कार्य पारायण।।
दोहावली,ग्रन्थावलियां भी,
हिन्दी में ही गाथाएं गाती।
अपनीं मां अपनीं होती है,
तभी तो मातृभाषा कहलाती।।
रचनाकारों का संसार तुम्ही हो,
वाचन में आनन्दायक।
दुनियां में जितनी भाषाएं,
मां तुम सबकी हो महानायक।।
कोटिशः नमन माता को,
माता तुम विद्या की दाता।
सीख गया जो हिन्दी भाषा,
समझो योगी पुरूष बन जाता।।

सर्वथा मौलिक अप्रकाशित
 मगनेश्वर नौटियाल"बट्वै"
          श्यामांगन 
भेटियारा/कालेश्वर,उतरकाशी
        उतराखण्ड

रचनाकार :- आ. संगीता चमोली जी

नमन मंच कलम बोलती है साहित्य समुह  विषय साहित्य सफर  विधा कविता दिनांक 17 अप्रैल 2023 महकती कलम की खुशबू नजर अलग हो, साहित्य के ...