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रविवार, 17 अप्रैल 2022

#लघुकथा_आयोजन... पाठशाला (आ. सुमन तिवारी जी)

#कलम✍🏻बोलती_है_साहित्य_समूह  #दो_दिवसीय_लेखन
#दैनिक_विषय_क्रमांक : 424
#विषय :  पाठशाला
#विधा : लघुकथा
#दिनांक : 16/04/2022 ,  बृहस्पतिवार
समीक्षार्थ
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आज प्यारेलाल की पत्नी सीमा दो दिन बाद काम पर लौटी । मुँह सूजा हुआ, जगह- जगह चोट के निशान। 
मेरे पूछने पर बोली---क्या बताऊँ मैडम, वही रोज का पैसों का लफड़ा।  आपके दिए हुए पैसे बेटी की पाठशाला की फीस के लिए रखे थे वह भी चोरी से ले गया और दारू पीकर आ गया, सुबह उठकर फिर रुपए माँगने लगा न देने पर मारपीट करने लगा। 

    लड़की भी सहमी डरी हुई रहती है पाठशाला भी नहीं जाना चाहती। मेरे कहने पर दूसरे दिन वह बेटी अनीता को मेरे पास लेकर आई, वह रोते हुए बोली मैडम पापा इतनी पी लेते हैं कि अपनी भी सुध नहीं रहती, रोज की गाली गलौज, मारपीट से सब लोग हम पर हँसते और ताने मारते हैं। मुझे बाहर निकलने में भी शर्म आती है। मैं पाठशाला नहीं जाना चाहती
वहाँ बच्चे चिढ़ाते हैं। मैंने उसे समझाया और किसी दूसरे स्कूल में प्रवेश दिला दिया जहाँ लड़कियों के लिए छात्रावास की सुविधा थी। 

           आज अनीता बहुत खुश है उसने दो वर्ष छात्रावास में रहकर खूब मेहनत की और अच्छे अंकों से हाईस्कूल कर लिया अब वह आगे की पढ़ाई जारी रखना चाहती है और एक सफल अध्यापिका बन कर अपनी तरह की लड़कियों की  जिंदगी सँवारना चाहती है।अनीता की माँ मेरे पैर छूते हुए बोली
मैडम आपने मुझ जैसी एक और सीमा की जिंदगी बरबाद होने से बचा ली। 

                    स्वरचित मौलिक रचना
              सुमन तिवारी, देहरादून उत्तराखंड

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रचनाकार :- आ. संगीता चमोली जी

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