नमनमंच संचालक
कलमबोलतीहै साहित्य समूह।
विषय - पाठशाला।
विधा - लघुकथा।
स्वरचित।
पच्चीस वर्षीय रेखा चार बच्चों की मां थी और कोठियों में झाड़ू पौंछा,बर्तन करके अपना गुजारा कररही थी।उसने रीमा जी की कोठी में भी काम पकड़ा हुआ था।रीमा स्वयं अध्यापिका थी और रेखा के काम और व्यवहार से संतुष्ट भी अतः वह उसे हमेशा अच्छी सलाह दिया करतीं।
एक दिन रीमा ने देखा रेखा अपनी नौ दस साल की बेटी को अपने साथ लेकर आई है।
रीमा जी ने अचानक से पूछ लिया रेखा अपनी बेटी को नहीं पढ़ाती क्या.?
कहां आंटी, मैं काम पर आ जाती हूं मेरे पति भी काम पर चले जाते हैं और यह अपने छोटे भाईयों की देखभाल करती है।
यह तो गलत बात है रेखा..पढने की उम्र में तू इसे घर में काम ले रही है। तू कितनी पढी है..?
मैं तो आंटी पढ़ी नहीं किसी ने पढ़ाया ही नहीं,कुछ निराशा भरे स्वर में रेखा बोली।
तुम पढ़ नहीं पाई तो क्या हुआ,अपनी बेटी को तो पढ़ा सकती है ना..
वो झुग्गी पर भी कोई कोई कभी आते हैं आंटी तो शाम को ये चली जाती है। वो टाफी बगैरह भी देते हैं... खुशी होते हुये रेखा बोली।
रीमा उसकी नादानी पर मुस्कराई।
वो तो नियमित पढाई नहीं हुई ना। तुझे पता है सरकारी स्कूलों में कितनी सुविधाएं हैं।दोपहर का खाना,किताब कापी, ड्रेस सब कुछ तो मिलता है।और खाता खुलवाकर खाते में हर महीने पैसे भी। तू इसका दाखिला करा दे... रीमा उसे पढाने के फायदे समझाने लगी।
अच्छा आंटी इतना कुछ मिलता है...सुनकर हैरानी से रेखा बोली।
और क्या... ऊपर से तुझे डर भी नहीं रहेगा कि झुग्गी झोंपड़ी में तेरी बेटी अकेली है।
रीमा ने उसकी बेटी नेहा से पूछा,
तुझे पढ़ना अच्छा लगता है..?
हां आंटी... कभी-कभी जब झुग्गी में पढ़ाने आते हैं तो मैं भी में बैठ जाती हूँ।
तुझे कुछ लिखन आता है..?
हां
तो दिखा।
नेहा ने वर्णमाला लिखकर दिखाई हालांकि उसमें कुछ गलतियां थीं।
तब रीमा ने रेखा को समझाया,
तू नहीं पढी,इसका मतलब यह तो नहीं अपने बच्चों को भी नहीं पढायेगी।देख आज के समय में पढ़ना लिखना बहुत जरूरी है।किसी तरह अगर तेरे बच्चे दसवीं बारहवीं कर गये तो इनका भविष्य बन सकता है।छोटी-मोटी नौकरी मिल सकती है नहीं तो प्राइवेट नौकरियां भी बहुत हैं।कम से कम मजदूरी तो नहीं करेंगे।अगर यह पढ़ लिख जाएंगे तो आगे अपने बच्चों को भी पढ़ायेंगे नयी राहदिखाएंगे।
बात रेखा की समझ में आई पर आजकल करके टालती रही तब रीमा को लगा ये काम तो खुद करना होगा। रेखा शायद स्कूल जाने में झिझक रही है और अगले दिन ही रेखा रीमा के साथ स्कूल गयी।
रीमा ने वहां के हेडमास्टर को अपना परिचय दिया और बात की और फिर रेखा के बेटी की उम्र देखकर दूसरी कक्षा में और छोटे बेटे का प्ले में दाखिला वहां करा दिया।
अब रेखा ने अपनी बेटी का ट्यूशन भी लगा दिया है ताकि वह बाकी बच्चों के सामने कमजोर ना रहे। एक मैडम रीमा के पड़ोस में ही रहती है और उसने रेखा से ट्यूशन फीस लेने से भी मना कर दिया।
रेखा के बच्चों को भविष्य मिला है और उसने रीमा से वायदा किया है कि अगले साल जब सबसे छोटा बेटा चार साल का हो जायेगा तब उन दोनों बेटों को भी स्कूल में भेजेगी।
रीमा का सोचना है कि जीवन ही सच्ची पाठशाला है और शिक्षा के प्रति जागरूकता फैलाना ही पाठ ग्रहण करना है।अगर हम पाठशाला में पढ़ लिख कर भी किसी के काम नहीं आए तो क्या फायदा..? ज्ञान की रोशनी दूसरों को पहुंचाना ही पाठशाला अर्थ को सार्थक करता है।
प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
16/04/20226
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