जय मां शारदे।
कलम✍ बोलती है साहित्य समूह।
क्रमांक--424
विषय--"पाठशाला"।
विधा--"लघुकथा"।
दिनांक--"१५|०४|२२,शुक्रवार।
रचियता--"शोभा वर्मा"
देहरादून, उत्तराखंड।
(समीक्षार्थ प्रस्तुति)
लघुकथा--"पाठशाला"।
"और आज की अंतर्विद्यालय सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता की ट्राफी की विजेता हैं "श्री गुरु राम राय इंटर कालेज"की "सौम्या अग्रवाल",। प्रिंसिपल वर्मा की इस उद्घोषणा से सभागार तालियों की गङगङाहट से गूंज उठा।
यह सुनकर सौम्या जीत की खुशी में आंखों में आंसू भरकर हाल में बैठी छात्राओं और प्रतिभागियों के बीच से अपना रास्ता बनाती हुई मंच पर पहुँची उसने प्रिंसीपल वर्मा से ट्राफी लेकर उनका आशीर्वाद लिया।
आज उसका सीना गर्व से गौरवान्वित
हो रहा था,किन्तु उसकी आंखें एक बार
फिर आंसूओं से भर आयीं और उस दिनका पूरा घटनाक्रम उसकी आंखों के सामने घूम गया।
विद्यालय में "सामान्य ज्ञान" प्रतियोगिता के लिए प्रतिभागियों का चयन हो रह था।वह भी प्रतिभागियों की कतार में खङी थी,अपना नंबर आते ही उसने फार्म देने के लिए कहा तो शिक्षिका ने कहा," तुम इस प्रतियोगिता को जीत नहीं पाओगी, बङे-बङे अंग्रेज़ी माध्यम स्कूलों के विद्यार्थी प्रतिभाग कर रहे हैं,तुम तो" हिन्दीपाठशाला" (HindiMedium) से पढ रही हो, तुम इसमें कैसे प्रतिभाग कर सकती हो"? किन्तु उसके साथियों के बार बार अनुनय करने पर शिक्षिका ने उसे फार्म दे दिया।
एक सप्ताह बाद यह परीक्षा होनी थी,सौम्या स्कूल से आकर बस्ती में बने घर में जहाँ लाइट भी नहीं थी,वहां प्रतिदिन प्रतियोगिता की तैयारी करती।प्रतियोगिता के दिन उसने सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता के सभी राउंड में विजय प्राप्त कर ली,और अन्य प्रतिभागियों
के मुकाबले सर्वश्रेष्ठ रही थी।
आज उसे अपनी "हिन्दी पाठशाला "
की शिक्षा पर गर्व हो रहा था।
सच ही तो है,ज्ञान तो कहीं से भी,कैसे भी प्राप्त किया जा सकता है,उसके लिए किसी शोहरत वाले विद्यालय की आवश्यकता नहीं होती है।
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स्वरचित मौलिक रचना।
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