#दो_दिवसीय_लेखन
#दैनिकविषयक्रमांक-424
विषय : पाठशाला
विधा: लघुकथा
दिनांक- 16.04.2022
दिन -शनिवार
पाठशाला: ' छुट्टी बंद '
पाठशाला जीवन की स्मृतियों में प्रमुखता से छाई रहती है। खट्टी मीठी यादें, मुलाकातें ,दोस्ती ,झगड़े ,शरारतें सब कुछ ! हमेशा की तरह हमारे ' गट्टन गुरु ' , हाँ उन्हें हम इसी नाम से आपस में पुकारते, अलग अलग नाम रखे जाते ,शायद आज भी ऐसा ही होता है। संस्कृत का कालांश अंत में ही आता और आते ही वे ' रुप ' याद करवाने, सुनने का काम शुरू करदेते । एक ही उनकी शर्त होती, " जो रुप सुना देगा उसकी छुट्टी पर जो नहीं सुना पाया ,उसकी छुट्टी बंद ! "
अब यही सबसे ज्यादा मुसीबत और घवराहट का कारण होती। बहुत मेहनत से दोहराते ,बारबार याद करते ,सुनाते पर फिर भी कहीं न कहीं गलती हो ही जाती ।
राम:-रामौ - रामा:/ रामम्-रामौ- रामान्/ रामेण-रामाभ्याम्-रामै: आदि ..कहीं पर विसर्ग के प्रयोग या हलन्त के प्रयोग ,उच्चारण में गलती कर बैठते या तृतीय विभक्ति के स्थान पर पंचमी विभक्ति का पाठ बोल देते। बस फिर क्या छुट्टी बंद। यह सबसे बड़ी सजा होती ।
सबसे ज्यादा तकलीफ जब होती जब सब साथी तो.सुनाकर घंटी बजते ही उड़नछू हो गए ,रह गये.हमारे जैसे दो-तीन । अब गुरुजी तो बहीं बैठे रहते। बस मन ही मन सब कोसते रहते :
' इन्हें तो कहीं जाना है, नहीं ,इनका न कोई घर ,न ठिकाना !' क्योंकि वे पाठशाला में ही एक कमरे में रहते थे। अगर फिर कोई बातें करता, या लघुशंका आदि की छुट्टी माँगता तो उसे बैंच पर खड़े होने की सजा सुनाई जाती । उस समय क्या हाल होता, वस हम ही जानते हैं, पेट में चूहे कूदते पर उन्हें भी अधिक कूदने की इजाजत नहीं होती, मन मारकर बैठे या खड़े रहते।
बहरहाल आज हमारे वही ' गट्टन गुरुजी ' बहुत याद आते हैं, उस समय की उनकी सख्ती, अनुशासन का फल है कि आज इस उम्र में भी धातुरुप ,अलंकार आदि अच्छे से याद हैं,पोते-पोतियों को यह किस्सा सुनाया तो उन्हें बहुत आश्चर्य होता है। आज हिन्दी ,संस्कृत भाषाओं का अध्ययन, अध्यापन रुचिकर नहीं लगता, बच्चे और अभिभावकों को भी अंग्रेजी भाषा में रुचि ज्यादा है।
स्वरचित-मौलिक रचना
सियाराम शर्मा बोधिपैगाम
डीडवाना, नागौर, राजस्थान
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