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शनिवार, 28 जनवरी 2023

रचनाकार :- आ. डॉ संजय चौहान जी, शीर्षक :- स्मृति शेष


स्मृति शेष
             
तुम्हारे प्रवास के बाद
प्रियतम की पथराई आंखों की
ख़ामोशी को
देखा था मैंने।
जो लरजते आँसूओं को
बरबस दबाते रहे!
फड़फड़ाते होठ,
जिससे ध्वनित होनी
चाहती थी भावनाएं।
जिनको पीते रहे सोम-रस की तरह।
वियोग संतप्त-संततियाँ
करती थी क्रंदन
दुःख कातर आँखे
तलाशती रहती ममत्व को
सकल जगत है विहीन
कुछ है आश
स्वयं के परिजनों से।
प्रतियोगिता है सबमें
अधिकाधिक सहानुभूति प्रर्दशन की।
कुछ ऐसे भी हैं तुम्हारे अपने
अपने दुःखी नयनों से
गंगा-जमुना प्रवाहित करते रहे।
भाव विह्वल क्रंदन से
गगनांचल का सीना चीरते हुए
अर्द्ध चेतन होकर
दूसरों के सहारे बैठे हुए
होती रही उन पर करूणा की वर्षा
पर स्थिति सत्यता से पृथक
भावना है शून्य
अंतर्मन में खुशी
तुम्हारे हक को पाने की
पदासीन होने की
संचित विभूति को
सहजता से अर्पित करने की।
दूर पड़ा वह बेल
जिसे तूने दिया था सहारा
सिंचित किया था श्रमबिन्दू से
जो अपनी छाँह तूझे
देने को है तत्पर।
देख तुम होती थी हर्षित,
परन्तु उपेक्षित 
नहीं है किसी का ध्यान
वह है क्लांत,
पर बहाता नहीं आँसू
हिलते नहीं होठ
वह है जड़वत
चेतना शून्य,
दूर चला गया माली
न मिलेगा उन हाथों को सहारा
न मिलेगा अमृत जल
न मिलेगी तेरी आँचल से
नि:सृत वह प्राणवायु
अब यह गयी है मात्र
तुम्हारी स्मृति शेष।।

 डॉ संजय चौहान,
पंजाब विश्वविद्यालय अमृतसर, पंजाब, भारत।

शुक्रवार, 27 जनवरी 2023

रचनाकारः डा. राम कुमार झा "निकुंज" जी, शीर्षक :- गणतंत्र दिवस


🇮🇳🙏🏻#कलम✍️ बोलती है साहित्य समूह🙏🏻🇮🇳
#दिनांकः २६.०१.२०२३
#वारः गुरुवार
#शीर्षकः 💐🇮🇳गणतंत्र दिवस 🇮🇳💐

कोटि कोटि कुर्बानियाँ,हुआ     देश स्वतंत्र।
लूट  मची   है देश में ,खतरे   में   गणतंत्र ।। १।।   

बना वतन गणतंत्र अब,हुआ बहत्तर साल ।
विकसित जन नेता हुए,जनता  है    बेहाल।। २।। 

सभी  दुहाई   दे  रहे , संविधान   दिन रात। 
जाति धर्म भाषा लड़े, देश  विरोधी    बात।।3।।

पाकिस्तानी पे  फ़िदा,   सब नेता  हैं आज। 
किसी तरह सत्ता मिले,फिर लूटें मिल राज।।४।।  

रूहें    होंगी  रो  रहीं,कुर्बानी      पे   आज।  , 
गोरों से  भी  विकट अब ,देखे  देश समाज।।५।।   

हो समाज समता प्रजा,मिले  मूल अधिकार।
एक      पिरोयी बन्धुता,हो   भारत   आधार ।।६।।

थी दुरूह स्वाधीनता,ले      लाखों   बलिदान। 
पराधीन    जंजीर    से,जकड़ा     हिन्दुस्तान।।७।।

सब जन हित सुख भाव हो,पूर्ण धरा परिवार।
सब शिक्षित हों देश में,जाग्रत   हो   सरकार ।।८।। 

रक्षा करना है  कठिन,विभीषणों    से   आज।
सभी   स्वार्थ तल्लीन हैं,बाँट    रहे     समाज।।९।। 

गाएँ मिलकर   साथ में,अमर   रहे   गणतंत्र।  
तन मन धन अर्पित करें,भगा   दूर    षडयंत्र।।१०।।   

निर्भय  शिक्षित बेटियाँ,मिले साम्य अधिकार ।
तभी   देश   उत्थान हो,बचे     सुता    संसार।।११।।  

पुकारती   माँ    भारती,युवावर्ग    फिर  जाग। 
अपनों से  घायल वतन,बचा कोख की  लाज॥१२॥ 

संविधान   रक्षण  कठिन,बस सत्ता पद  चाह। 
सार्वभौम     गणतंत्र  में ,युवा     बने  गुमराह॥१३॥ 

अधिनायक जन गण वतन,लोकतंत्र अभिराम। 
समरसता           सद्भावना,आज  हुई बदनाम॥१४॥ 
रचनाकारः डा. राम कुमार झा "निकुंज" 
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नई दिल्ली

बुधवार, 25 जनवरी 2023

रचनाकार :- आ. नृपेन्द्र कुमार चतुर्वेदी जी, शीर्षक :- युग पुरुष

# कलम बोलती है साहित्य समूह 
#मंच को नमन 
 # दो दिवसीय आयोजन
# विषय  युगपुरुष
#शीर्षक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस
 #विधा कविता 
#दिनांक  24 जनवरी 2023
 #दिन मंगलवार 
््््््््््््

आजादी का बिगुल बजाया, फिरंगी जिनसे थर्राया।
शहर कटक,उड़ीसा में जन्मा,शेरे हिन्दुस्तान कहाया।

आई ए एस की नौकरी को,जिसने है ठुकराया।
आजादी का विगुल फूंक ,अपना ध्वज लहराया।

उठा शेर बंगाल से था पर, शेरे हिंदुस्तान कहाए।
आजाद हिंद फौज के नायक,नेता जी सुभाष कहाए।

 सत्यमेव जयते का वह सच्चा, सेना नायक था।
अहिंसा का न हो सका पुजारी,असली सेना नायक था।

कांग्रेस अध्यक्ष चुने थे मगर, खून क्रांतिकारी था।
नहीं विचार मिले गांधी से, मगर लक्ष्य एक ही था ।

छोड़ दी कांग्रेस पार्टी ,आजाद हिंद फौज बना डाली।
शेखर भगत बिस्मिल,अशफाक की राह पकड़ डाली। 

पैंसठ हजार सेना के बूते,अंग्रेजी सेना भी थर्राई।
जमीन खिसक गई पैरों से, थर-थर हांफी आई।

उम्र मात्र 48 की थी, हवाई दुर्घटना में प्राण गवाएं।
क्रांतिकारी अग्रदूत नेता,सुभाष बोस दुनिया को भाए।

नेताजी सुभाष बोस कहलाए,विश्व में नाम कमाए। पराक्रम दिवस घोषित हुआ,सच्ची श्रृद्धांजलि पाए।

आजादी के अमृत महोत्सव पर, शहीदों को नमन करें। शहीदों का स्वप्न साकार करें, अखंड भारत देश करें।

आजाद हिंद फौज के नायक का, हम करते सम्मान। लहर लहर लहराए तिरंगा, ध्वज भारत की शान।

 स्वरचित अप्रकाशित मौलिक रचना ।
नृपेन्द्र कुमार चतुर्वेदी, एडवोकेट।
 प्रयागराज, उत्तर प्रदेश।

सोमवार, 23 जनवरी 2023

रचनाकार :- आ. मनोज कुमार चंद्रवंशी जी, शीर्षक :- युग पुरुष


#नमन कलम बोलती है साहित्य समूह
#दिनांक-23/01/2023 
#दिन- सोमवार 
#विषय- युग पुरुष 
#विधा- छंद मुक्त कविता

धन्य -धन्य वो माँ भारती के अमर, वीर सपूत,
जो  प्रभावती  के  हृदय आँगन में जन्म लिये।
विराट  व्यक्तित्व प्रतिभा   के  धनी युग पुरुष,
देश के स्वतंत्रता संघर्ष यज्ञ को  सफल किये॥

1938   में  "दिल्ली  चलो"  का  नारा   देकर, 
नेता सुभाष जी  स्वतंत्रता  का बिगुल बजाए।
1943 में आजाद हिंद फौज की स्थापना कर,
माँ भारती के अमर पुत्र तिरंगा झंडा लहराए॥

"तुम  मुझे  खून  दो! मैं   तुझे  आजादी दूंगा,
नेताजी आजादी दिलवाने का जयघोष किए।
निर्मम   जेल  यात्राओं  को  सहकार नेताजी,
पावन सी धरा में स्वतंत्रता का उद्घोष  किये॥

भारतीय प्रशासनिक सेवा में नेता अव्वल  रहे,
नेता  1938 में  कांग्रेस  का कमान संभाले हैं।
देश  सेवार्थ  नेताजी  प्राणों का आहुति देकर,
नेताजी राजनीतिक दायित्वों  को  संभाले हैं॥

उग्रवादी  विचारधारा  के  परिपोषक  नेताजी,
पुरातन   भारतीय   संस्कृति  के  संवाहक थे।
स्पष्ट वक्ता, देशभक्त  पुनरुत्थान  करने वाले,
स्वतंत्रता संघर्ष का बीज बोने वाले नायक थे॥

नेता सुभाष  जी के 127  वीं  पुण्य जयंती में,
नेता के पद चिन्हों का शतशत नमन करते हैं।
कर्मयोगी स्वतंत्रता संघर्ष के नायक  नेता जी,
उनके  चरणों में श्रद्धा  सुमन अर्पित करते हैं॥

                        रचना 
            स्वरचित एवं मौलिक 
          मनोज कुमार चंद्रवंशी 
बेलगवाँ जिला अनूपपुर मध्यप्रदेश

रचनाकार :- आ. निलेश जोशी 'विनायका' जी, शीर्षक :- युग पुरुष


#कलम बोलती है साहित्य समूह
#दिनांक 23 जनवरी 2023
#विषय: युगपुरुष
#विधा: कविता

युगपुरुष सुभाष

देश के अद्भुत वीरों की
साहस भरी कहानी है
भारत माता के बेटों की
अतुल्य अमर कहानी है।

वीर सुभाष भारत का बेटा
आजादी का था रखवाला
उसने ही तो अलख जगाई
नारा दिया जय हिंद वाला।

पराधीनता के अंधकार में
स्वाधीन किरण जगाई थी
भारत माता के बेटों की
ताकत उसने दिखाई थी।

रोम टोक्यो भी सुभाष की
शक्ति को पहचान चुके थे
अपनी धरती से उनको भी
करनी मदद ये ठान चुके थे।

आजाद हिंद की फौज बनी
अंग्रेजी सेना घबराई
बढ़ती रही निरंतर आगे
भीषण संकट में लहराई।

आजाद हिंद की फौजों से
थर्राई हुकूमत अंग्रेजी
नेताजी के बलिदानों से
आजादी में आई तेजी।

स्वरचित एवं मौलिक रचना।
निलेश जोशी 'विनायका'
बाली, पाली, राजस्थान।
मो. 9694850450

शनिवार, 21 जनवरी 2023

रचनाकार :- आ. जगदीश गोकलानी "जग, ग्वालियरी" जी, शीर्षक :- बहादुरी





जय माँ शारदे
नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
#दैनिक विषय क्रमांक - 540
दिनांक - 20/01/2023
#दिन : शुक्रवार
#विषय - बहादुरी
#विधा - लघु कथा
#संचालिका -  आ. सुमन तिवारी जी
*****************

नन्नू अपने माता पिता की लाडला बेटा था।
नन्नू कक्षा पांचवी का छात्र था। नन्नू पढ़ने लिखने में तेज था। उसके माता पिता ने उसे अच्छे संस्कारों से सुसज्जित किया था। रोज रात को सोने से पहले और सुबह शीघ्र उठने से पहले वह माता पिता के चरण छूकर आशीर्वाद लेना नहीं भूलता था। उसके माता पिता  को उस पर गर्व था। 

नन्नू आज गणतंत्र समारोह में अपनी बहादुरी का पुरस्कार लेने के लिए अपने माता पिता के साथ आया था। नन्नू के नन्हीं आंखों के आगे वह वाक्या बार-बार आकर गुजर रहा था, जिस दिन उसने बुजुर्ग व्यक्ति की जान बचाई थी।

स्कूल से लौटते वक्त नन्नू बहुत खुश था। बहुत दिनों की मिन्नतों के बाद उसके पिताजी ने उसे स्कूल का नया बैग दिलवाया था। जब भी वह अपना फटा पुराना बैग स्कूल लेकर जाता था, उसके सहपाठी उसे चढ़ाते थे। नन्नू रोज घर वापस आकर अपनी मां से नया बैग दिलवाने के लिए कहता था। आज
नन्नू के कंधे पर नया बैग लटका हुआ था, जिसे थोड़ी थोड़ी देर में वह मुड़ कर पीछे देख रहा था, और अपने आप पर इतरा रहा था। नन्नू आज खुशी से फूला नहीं समा रहा था। 

इसी उधेड़बुन में नन्नू जब सड़क पार कर रहा था, तो उसने देखा कि एक बुजुर्ग व्यक्ति जो उसके आगे सड़क पार कर रहा था, नन्नू को पीछे से तेज गति से आती हुई बस दिखाई दी, उस बुजुर्ग के बिल्कुल नजदीक आ चुकी थी। राह चलते सब लोगों को लगा कि बस उस बुजुर्ग व्यक्ति को कुचल देगी। अचानक नन्नू के मन में न जाने क्या ख्याल आया कि उसने तेजी से दौड़ कर उस बुजुर्ग व्यक्ति को एक जोर का धक्का दिया, जिससे वह बुजुर्ग व्यक्ति बहुत आगे जाकर गिर गया, पीछे से दौड़ता आया नन्नू भी तेज गति से फिसल कर गिर गया। बस तेजी से निकलकर जा चुकी थी। नन्नू उठ खड़ा हुआ, बुजुर्ग व्यक्ति के पास आया और उसे सहारा देकर उठाया। नन्नू ने नम्रता से उस बुजुर्ग व्यक्ति से पूछा कि उसको कोई चोट तो नहीं लगी है। उस बुजुर्ग व्यक्ति ने नन्नू से कहा कि उसे कोई चोट नहीं लगी है। तब तक भारी भीड़ इकट्ठी हो चुकी थी। भीड़ में से एक युवक ने नन्नू को उठाया, साथ में उसका बैग उठाकर उसे दिया। नन्नू के स्कूल ड्रेस के कपड़े उस जगह से फट गए थे, आप ही बैग रगड़ खाकर, आगे की तरफ से फट गया था। वहां खड़े सभी लोगों ने नन्नू के बहादुरी की प्रशंसा की। घर पहुंचकर नन्नू ने सारी बात अपने परिवार वालों को बताई। सभी को उसकी बहादुरी पर गर्व था।

नन्नू का स्वप्न तब टूटा, जब नन्नू का नाम पुरस्कार के लिए पुकारा गया। अपना नाम सुनकर नन्नू अपने माता पिता के साथ अपना पुरस्कार प्राप्त करने के लिए पहुंचा। गवर्नर साहब ने नन्नू को गोदी में उठा कर लाड़ से सराहा, फिर नीचे उतार कर नन्नू और उसके पिता से हाथ मिला कर, उसकी माता को प्रणाम कर नन्नू के नन्हें-नन्हें हाथों में पुरस्कार प्रदान किया। मैदान में तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी थी। वहां हर शख्स नन्नू की बहादुरी की तारीफ कर रहा था।

मौलिक और स्वरचित
जगदीश गोकलानी "जग, ग्वालियरी"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश

गुरुवार, 19 जनवरी 2023

रचनाकार :- आ. नरेन्द्र श्रीवात्री स्नेह जी, शीर्षक :- धूप



कलम बोलती है साहित्य समूह 
विषय क्रमांक ---539
विषय. .धूप 
विधा कविता 
दिनांक 18/1/2023
दिन बुधवार 
संचालिका आद सुनीता चमोली जी 

शीत ऋतु की प्यारी धूप 
सबके मन को भाती धूप। 
धूप बिना न चलते काम ,
धूप से मिलता सबको आराम। 
सुबह जब निकलती धूप ,
बैठ जाते आँगन में सब। 
करते पढ़ाई बैठ कर सब, 
दादा चुस्की लेते चाय की।
 धूप छोड़ने का मन न होता। 
धूप से मिलता विटामिन डी.
धूप में बैठ कर दादी भाभी 
बुनती स्वेटर। 
सभी उठाते लुप्त धूप का ,
होती हड्डियां मजबूत।
गर्मी की  धूप लगती तेज 
आता सारे बदन में पसीना ,
 नहीं किसी को भाती धूप। 
बारिश में मुश्किल से. ,
निकलती धूप। 
कभी कभी मिलती है धूप। 
सबको प्यारी लगती धूप ,
सबके मन को भाती धूप। 

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित। 
नरेन्द्र श्रीवात्री स्नेह 
बालाघाट म प्र

रचनाकार :- आ. निकुंज शरद जानी जी, शीर्षक :- धूप


'जय माँ शारदे '
विषय- क्रमांक-539
विषय- धूप 
विधा- पद्य-लेखन 
दिनांक-18-01-2023
सादर समीक्षार्थ। 

धूप 
-----
आती धीमी- धीमी पद्चाप लिए 
फिर भी पायल सी झंकृत हो जाती 
धूप यूँ इठलाती----
मेरे आंगन के हृदयाकाश में छा जाती----

वो बर्फ़ जो ठसक गई थी काहिली सी 
पिघल- पिघल कर अनुसंधान पा जाती!
मौन होते हुए भी मुखर सी 
मानो मुझसे ही मुख़ातिब होना चाहती----

धूप के एक टुकड़े को 
मुट्ठी में बंद कर लेने का एहसास 
अब तक है बाकी 
यूँ धूप अंगड़ाई  लेती और 
मुझमें समा जाती----

गौर वर्ण चितवन चंचल सी 
कभी कोमल तो कभी कठोर सी 
आह की कसक से वाह में ढल जाती 
धूप मौसम की करवट के संग हर रंग में ढल जाती 

मेरे आशियां में एक परछाई 
धूप लाती कुछ ऐसे 
लतिकाओं की तरुणाई दीवार लांघकर आ जाती जैसे 
ना जाने कब- कहाँ प्रतिबिंबित हो जाती 
कभी उन्हीं झंकृत स्वरों में ढलकर 
एक मधुर गीत बन जाती और 
संवेदना बनकर कभी विछोह और 
कभी मिलन रागिनी बन धूप गुनगुनाती---
हाँ! धूप मुझे है भाति!
हाँ! धूप मुझे है भाति!!

---- निकुंज शरद जानी 
स्वरचित और मौलिक रचना

रचनाकार :- आ. गीता परिहार जी, शीर्षक :- धूप


#कलम ✍🏻 बोलती है साहित्य समूह 
#विषय_क्रमांक_539
 #विषय   #धूप 
#विधा  #पद्य
#दिनांक ...18 जनवरी 2023

निकल पड़े तपती धूप में जब
 क्या खबर थी पैर में छाले पड़ेंगे
गोद में बच्चा और सर पर गृहस्थी
वीरान सड़क , देखते ही देखते भीड़ बन गए।

अच्छी कमाई का लालच न होता
खेती ने गर साथ दिया होता 
मुनिया,सोनू को पीछे छोड़ा न होता
लॉकडाउन क्या बला है, मालूम होता।

रातें बीतीं,बिन खाये,
गांव पहुंचे तो जीया जुड़ाए।
पहुंचे किस विधि ?चल पड़े पैदल
धर्मात्माओं की बस्ती में बंटते लंगर।

अभिमान गया , सम्मान कहां
अन्नदाता कहलाने वाले
दया-दृष्टि पर दाताओं 
कीमत जानी विधाता की।

गीता परिहार
अयोध्या कैन्ट

मंगलवार, 17 जनवरी 2023

रचनाकार :- आ. देवेश्वरी खंडूरी जी, शीर्षक :- संगम




"क़लम ✍️ बोलती है" साहित्य समूह
मंच को प्रणाम 🙏🙏
विषय -संगम
क्रमांक संख्या 538
दिनांक- 16-1-2023
****************
                 🙏जय मां शारदे 🙏
                 🌹🌹🌹🌹🌹🌹
संगम नदियों के मिलन का स्थल बड़ा ही विहंगम ,
संगम की पवित्रता से मिट जाते जीवन के गम।

संगम पर स्नान करने से तन पवित्र, पाप कट जाते हैं,
संगम के दर्शन मात्र से मन वही रम जाता है।

नदियों का संगम जहां हो, वह तीर्थ स्थल बन जाता है, 
संगम पर पूजा-पाठ करते,मन भक्तिभाव जग जाता है।
रिमझिम बरसात का धरा से होता संगम,
गहन लताएं पेड़ों से करती आलिंगन।

बादल छाए,गगन गुनगुनाए, दोनों का हुआ मिलन,
धरा मुस्कुराए , अपनी प्यास बुझाने को बारीस की बूंदों से हुआ संगम।

देवेश्वरी खंडूरी ,
देहरादून उत्तराखंड।

रचनाकार :- आ. संजय कुमार सुमन जी, शीर्षक :- संगम


मंच को सादर नमन🙏
विषय - संगम
दिनांक - 17-01-2023
विधा- कविता

मिलन धरा और अम्बर का
झूमती पवन और चमकती रौशनी
चंदा सूरज का नजारा अद्भुत संगम का
दुनियाँ को दिखलाता है।

मिलन गंगा और यमुना का
विहंगम दृश्य संगम का
भाव पवित्रता का अप्रतिम
आकर्षक हृदय में जगाता है।

मिलन दो आत्माओं,समाज
परिवार का वह दृश्य संगम का
लोमहर्षक,अविस्मरणीय,मनोरम
नजारा बन जाता है।

जन्म - जन्म का रिश्ता बनता
सदियों तक सबको आपस में
अदृश्य बंधन में बांधता
विश्वास का संगम बनाता है।

संगम पर बनता महल
विश्वास और समर्पण का जो 
जीवन समर में मजबूती से
एक दूजे को जोड़े रखता है।

                                   संजय कुमार सुमन
                            नवगछिया,भागलपुर,बिहार।

सोमवार, 16 जनवरी 2023

रचनाकार :- आ. उमेश प्रसाद सिंह जी, शीर्षक :-संगम


# नमन मंच
# कलम बोलती है 
# विषय - संगम
# दो दिवसीय आयोजन
# दिनांक - १६/०१/२०२३
# दिन - सोमवार
# विधा - काव्य
********************************************
गंगा यमुना सरस्वती का संगम ,
बनाता सुंदर तीरथ प्रयागराज ।
जहां संगम वहीं अमृत भी बरसे,
कुम्भ नहाने आते हैं सकल समाज ।।

जब अक्षरों का होता है संगम ,
होता सुंदर शब्दों का निर्माण ।
शब्दों शब्दों के संगम को कहते,
भावपूर्ण सुंदर वाक्य सकल जहान ।।

सुंदर सुंदर वाक्यों के संगम से,
बनते जाते कविता और कहानी ।
किताबों में लिखते जाते हैं हम,
कविता कहानी नई और पुरानी ।।

जब दो दिलों का होता है संगम,
रिश्तों में बंधते हैं जीवन हमारा ।
दोनों मिलकर सुख दुख में हमेशा,
ये मानव जीवन सबने संवारा  ।।

कागज़ कलम का होता जब संगम,
लिखते हम इतिहास गणित भूगोल ।
तब ये दुनियां वाले जान सके हैं,
अपनी धुरी पर घूमती धरती गोल ।।
*****************************************
स्वरचित एवं अप्रकाशित
उमेश प्रसाद सिंह
बोकारो, झारखंड

रचनाकार :-आ. सीता गुप्ता दुर्ग जी, शीर्षक :- संगम

#कलम_बोलती_है_साहित्य_ समूह
#विषय_क्रमांक_538
#दिनांक_16-01-2023
#दिन_सोमवार
#विषय_संगम
#विधा_काव्य
        *शब्द संगम*
====================
शब्द सरित जब नीर ह्रदय में,
 मानस पटल पर बहता है।
  

कविता रूपी गागर में तब,
     भावना का संगम होता है।

दुखी हृदय को धीरज देकर,
 तपन की अग्नि मिटाता है।
  नए संकल्प भविष्य को देकर,
    पग को दृढ़ता देता है।

काव्य सरित सागर से मिलने,
  पूर्ण वेग से बहता है।
   सृजन संग चरम बिंदु पहुंचकर,
     नई परिभाषा रचता है।

शब्द संगम जब होता है,
तो भाव प्रबल हो जाता है।
मानस मन तब एक दूजे से,
भावों से संगम करता है

कविता संदेश वाहक जो होती,
 धरा पर खुशियाॅं देती है।
   पतझड़ संग बहार के जैसे,
     सृजन रंग छलकाती है।

✍🏻 सीता गुप्ता दुर्ग छत्तीसगढ़

रचनाकार का नाम- आ. संजीव कुमार भटनागर, शीर्षक :-संगम


#कलम बोलती है साहित्य समूह
#आयोजन संख्या 538
#विषय संगम
दिनांक  16/01/2023
#विधा  कविता

अक्षरों का संगम जब होता
नव गीत कोई बन जाता है,
सुरों के संगम की सरगम से
मधुर संगीत मन लुभाता है|

गंगा जमुना धारा का संगम
होता तब महान पर्व उद्गम,
लघु भारत का एहसास होता
कुंभ में होता जनता का संगम|

अरुणोदय में सूर्य चंद्र का संगम
तिमिर से ज्यों प्राची किरण मिलन,
अद्भुत होता यह दृश्य विहंगम
प्रकृति का खेल है सुंदर मनोरम|

माटी बरखा बीज का संगम
पल्लवित हो जाता नव जीवन,
कुछ संगम हैं अनोखे अद्भुत
क्षितिज पे धरा अंबर का मिलन|

नए आविष्कार जन्म लेते हैं
होता ख़ोज कल्पना का संगम,
अकल्पनीय कार्य कर जाओगे
करा हौंसलें उम्मीद का संगम|

रचनाकार का नाम- संजीव कुमार भटनागर
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
मेरी यह रचना मौलिक व स्वरचित है

रचनाकार :- आ. राकेश तिवारी "राही"जी, शीर्षक :-साथ


जय माँ शारदे
साथ
1222- 1222- 1222- 1222
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बुढ़ापे मे कभी भी साथियाँ का साथ मत छूटे ।
बँधी जो डोर जीवन की न वो मँझधार मे टूटे ।।

लिये जो सात फेरे साथ मे जीवन बिताने हित,
मिलाकर हाथ हाथों मे मधुर जीवन सफर बीते ।

दुवा रब से यही दिन-रात  सच्चे दिल से हो यारो,
मिलन पल संगिनी का हो भले संसार ये रूठे ।

बुढ़ापे के सफर मे गर युगल बिछुड़न के पल देखे,
लगे ऐसा सुनों घट पाप का आकर बड़ा फूटे ।

अँधेरा ही अँधेरा बन जहां शमशान सा लागे,
सभी अपने सगे रिस्ते समझ मे आते हैं झूठे ।

जवानी से बुढ़ापा तक बिते सुख-दुख के संगम मे ,
रहें हिल-मिल के जो 'राही' वही तो जिंदगी जीते ।

राकेश तिवारी "राही"
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रविवार, 15 जनवरी 2023

रचनाकार :- आ. अरविन्द सिंह "वत्स"जी, शीर्षक :-मकर संक्रांति,डोर,उड़े,गुड़ तिल(सार छन्द में गीत)




नमन-------कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक-----------------------537
विषय-----मकर संक्रांति,डोर,उड़े,गुड़ तिल
तिथि---------------------11/01/2023
वार------------------------------बुद्धवार
विधा--------------------सार छन्द में गीत
मात्राभार-------------------------16,12

       #मकर_संक्रांति_डोर_उड़े_गुड़_तिल

दिनकर  आते  उतरायण  में,हम त्योहार मनाते।
भाईचारा भू पर दिखता,खिचड़ी मिलकर खाते।।

द्वारे  खड़ा  मकर संक्रांति ये,पावन पर्व सुहाना।
तरह - तरह के व्यंजन बनते,लगता है मस्ताना।।
नया-नया सब वस्त्र पहनते,प्यारा तन महकाते।
दिनकर आते  उतरायण  में,हम त्योहार मनाते।।

बिके  खूब  बाजारों में है,गुड़ तिल लाई चिउरा।
खूब भीड़ हो दूकानों पर,लगता मस्त पिटियुरा।।
दूकानों पर सब व्यवसायी,खाद्य पदार्थ सजाते।
दिनकर  आते  उतरायण में,हम त्योहार मनाते।।

उड़े पतंग जब नभ की ओर,रहती कर में डोरी।
गगन  मार्ग  में  लगें  निगाहें,धूम मचे हर ओरी।।
अद्भुत  दिखे नजारा नभ में,कर से डोर बढ़ाते।
दिनकर आते  उतरायण में,हम त्योहार मनाते।।

मौज उड़ाने लोग निकलते,खा तहरी भिनसारे।
डोर  पकड़  कर  मैदानों में,बच्चे खड़े किनारे।।
हार  जीत की बाजी लगती,दर्शक दृष्टि लगाते।
दिनकर आते  उतरायण में,हम त्योहार मनाते।।

जैसे - जैसे  सन्ध्या होती,रवि की जाती लाली।
भीड़  न  हटती मैदानों से,दिखती बदरी काली।।
लेता मौसम भी अँगड़ाई,दिनकर बहुत छकाते।
दिनकर  आते उतरायण में,हम त्योहार मनाते।।

अरविन्द सिंह "वत्स"
प्रतापगढ़
उत्तरप्रदेश

रचनाकार :- आ भगवती सक्सेना गौड़ जी, शीर्षक :-पतंग, गुड़,तिल,, उड़े,मकर संक्रांति



#नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
#14 जनवरी
विषय..पतंग, गुड़,तिल,, उड़े,मकर संक्रांति

मकर राशि में सूर्य का हो रहा प्रवेश
संक्रांति काल लेकर आया पर्व विशेष !

उत्तर में खिचड़ी कहें दक्षिण में है पोंगल
लोहड़ी जो पंजाब में असम में बीहू मंगल !

लकड़ी का एक ढेर हो शीत मिटाए आग
बैर कलुष जल खाक हों पर्व मनायें जाग !

मीठे गुड में तिल मिले नभ में उड़ी पतंग
संक्रान्ति के उत्साह ने दिल में भरी उमंग !

दाने भुने मकई के भरभर रेवड़ियाँ थाल
अंतर में उल्लास हो चमकें सबके भाल !

भगवती सक्सेना गौड़
बैंगलोर

रचनाकार :-आ. कुलभूषण सोनी 'ब्रजवासी' जी, शीर्षक :-मकर_संक्रांति_दोहावली

.          



     14 जनवरी , 2023
🌹💥🌹#मकर_संक्रांति_दोहावली🌹💥🤷
1:-
आज राशि धन से मकर, दिनकर देव दिनेश।
दक्षिण  से  उत्तरायण  ,  करते  दिशा  प्रवेश।।
2:-
मिली  सुरसरि  सिंधु  से , तजे भीष्म ने प्राण।
दान करें  तिल , द्रव्य का ,'भूषन' हो कल्याण।।
3:-
सूर्य  संक्रमण  मकर से  , माना  जाता  आज।
इसी   पर्व   आनंद   में  , बजें   नगाड़े   साज।।
4:-
प्रात   काल   करते   सभी  ,  गंगा   में   स्नान।
खाते -करते  लोग  सब , द्रव् ,  तिलों का दान।।
5:-
तिल का आज महत्व है , बनते तिल पकवान।
मूंगफली , गुड़ , रेवड़ी  ,  करते   इनका  दान।।
6:-
रूठे   रिश्तेदार   को  ,  आज   मनातीं    नार।
ब्रज  में   ऐसी  रस्म  यह   ,  देती  हैं  उपहार।।
7:-
मनभावन  वातावरण  ,  अति    आनंदोत्साह।
बाल - वृद्ध  'भूषन' मगन , सभी  सराहें   वाह।।
 8:-
जन - मानस के हृदय को ,  मोहें  गगन  पतंग।
 प्रेम - पर्व   संक्रांति   का  , सब  में  भरे  तरंग।।
9:-
'भूषन' मंगल , सुखद हो , पर्व  मकर  संक्रांति।
 दान करें तिल का बना , व्यंजन घर बहु भांति।।
10:-
 दिवस मधुर - संबंध का, पर्व #मकर_संक्रांति।
 जीवन हों आनं ,, सुख, मिटें सकल मन भ्रांति।।
             ‌‌          🌹💥🙏
   मूल लेखक :- कुलभूषण सोनी 'ब्रजवासी'

शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

रचनाकार :- आ. दीपनारायण झा'दीपक' जी, शीर्षक :-मकर संक्रांति



जय माॅं वागीश्वरी 🙏
नमन कलम बोलती है साहित्य समूह मंच 💐
विषय -मकर संक्रांति
दिनांक -13-01-2023
02
🌻🌻🌻🌻🌻
मकरसंक्रांति
**********
मकर संक्रान्ति(१४ जनवरी)
************************
 पौष मास की पावन संक्रान्तिआई।
 सूर्य की संक्रान्ति है महाफलदायी।
 बारह स्वरूप भानू हैं मंगल दायी।                          
 देव प्रभात महिमा है अतिशुभदायी।                                               मकर राशि प्रवेश है अति फलदायी।

 दक्षिणायण से उत्तरायण है शुभदाई।
 दिन  बढ़ते  रातें  घटने को है आई।
 तिल-तिल बढ़े जो उजियारा है भाई।
 पौष मास की पावन संक्रांति है आई।

  यहां देश भर संक्रांति सह कई पर्व है।
  पोंगल, उत्तरायण, कहीं लोहड़ी सर्व है।
  हमको अपने भारतदेश पर अतिगर्व है।
कुछ और नहीं प्रकृति पूजन का ये पर्व है।
                                                                          मकर संक्रांति कहीं बिहू है नाम कहाते।
पौष की पावन संक्रान्ति में नहाते-खाते।
यहां अन्न संग हैं पशु-पक्षी भी पूजे जाते।
सब मिलकर हैं रंग-बिरंगे जो पतंग उड़ाते।
स्वरचित एवं मौलिक 
दीपनारायण झा'दीपक' देवघर झारखंड

गुरुवार, 12 जनवरी 2023

रचनाकार :- आ. ममता झा जी, शीर्षक :- प्रेम तपस्या और साधना


नमन कलम बोलती है साहित्य समूह 
विषय क्रमांक-536
विषय-प्रेम तपस्या और साधना
****************************************
मैं भील जाति की सबरी की तपस्या संग साधना जो राम के लिए की थी उसपर कविता लिख रही हूँ। 

जाति-धर्म का भेदभाव मिटाता राम सबरी संवाद,
भीलनी की श्रद्धा भक्त से मिलने गए रघुनाथ। 
मतंग मुनि के आश्रम में रहती थी सबरी लाचार, 
सेवा करके मुनि गण का बन गई वो उच्च विचार। 

गुरू के आज्ञानुसार सबरी नित्य राम भजती थी,
राह निहारे फूल बिछाकर बेर चखकर एकत्र करती थी।
ऐसी भक्तिमय दृश्य सिर्फ रामायण में ही मिलती है,
प्रभू का भोग मीठा हो इसलिए चख चख कर बेर रखती है।

एक दिन राम मतंग वन पधारें जानकी पता लगाने को,
दूर से ही आते देखी सबरी सुन्दर दो बालक अंजाने को।
पास आकर राम ने पूछा क्या आप माता सबरी हैं,
विनम्र आवाज सुन माता समझ गई मेरे प्रभु श्रीराम यही हैं।

भावविभोर हो अपलक निहारती चरण पखारे अश्रुजल से,
जन्म आज सफल हो गया राम तुम्हारे दर्शन से।
झूठे बेर जो चख कर रखी थी दी राम लखन को खाने को,
प्रेम से खाए राम, लखन फेक दिए समझें न भावनाओ को।

राम निराश हो कहे लखन से श्रद्धा को कभी अस्वीकार न करना,
भाव का मोल चुकाना कठिन है ये बात हमेशा याद रखना।
रामायण प्रेम पाठ पढ़ाती, ऊँच-नीच भेद-भाव मिटाती है,
भील सबरी तर गई प्रेम अर्पण कर अंत में  स्वर्ग जाती है ।
*********************************************
ममता झा
डालटेनगंज

रचनाकार :- आ. अरविन्द सिंह "वत्स" जी, शीर्षक :- प्रेम तपस्या और साधना

नमन-------कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक-----------------------536
विषय------------प्रेम तपस्या और साधना
तिथि---------------------11/01/2023
वार------------------------------बुद्धवार
विधा------------------सरसी छन्द में गीत
मात्राभार-------------------------16,11

            #प्रेम_तपस्या_और_साधना

प्रेम  तपस्या  और  साधना,जीवन में अनमोल।
नेक कर्म से रिश्ता जोड़ो,हे ! मानव दृग खोल।।

त्याग तपस्या अरु परमारथ,करते रहिये भक्ति।
हिय  की व्याधा सकल कटेगी,ईश्वर देंगे शक्ति।।
कठिन साधना में रत रहिये,प्यारी मधुरम बोल।
प्रेम  तपस्या  और  साधना,जीवन में अनमोल।।

लोभ  मोह  से मोह न करिये,सच्चे मन से कर्म।
जीव - जन्तु  की सेवा करके,भू पर करिये धर्म।।
नष्ट कीजिये नहीं किसी को,बनें नहीं बकलोल।
प्रेम  तपस्या  और  साधना,जीवन में अनमोल।।

नरम  हृदय  में  मानवता का,बने सदा आवास।
कट  जायेगा  संकट पथ का,करें और विश्वास।।
सत्य  मार्ग पर चलते जायें,रखें न मन में झोल।
प्रेम  तपस्या  और  साधना,जीवन में अनमोल।।

निश्चल  मन  में  पाप  न  आये,रहिये इससे दूर।
कभी न बनिये क्रूर धरा पर,कभी न मद में चूर।।
दोष न आये वाणी में भी,मधुर-मधुर रस घोल।
प्रेम  तपस्या  और  साधना,जीवन में अनमोल।।

सरल बहुत है प्रभु को पाना,भाव रखें निश्वार्थ।
बुरी  बला है धन की लालच,सदा करें परमार्थ।।
कड़ी तपस्या करते रहिए,वत्स बजा कर ढोल।
प्रेम  तपस्या  और साधना,जीवन में अनमोल।।

अरविन्द सिंह "वत्स"
प्रतापगढ़
उत्तरप्रदेश

मंगलवार, 10 जनवरी 2023

रचनाकार :- आ. योगेन्द्र अग्निहोत्री जी, शीर्षक :- पथिक


# नमन मंच 
# विषय पथिक 
# दिनांक 10/01/2023

राह में कंटक बिछे हुए हैं,
पथिक ,देख भाल कर चलना ।
अधिंयारों ने पंथ ढका है ,
ज्ञान का दीप  संजोये रखना ।
बीत गई सो बात पुरानी 
आगे का कुछ ज्ञात नहीं है 
" आज" न रीता जाने पाये 
उत्सव खूब मनाये रखना ।
सुख,दुख जीवन के दो पहिये 
एक साथ दोनों चलते हैं, 
सुख में चाल पे काबू रखना 
दुःख में धैर्य बनाये रखना ।
जीवन पथ पर धुंध बहुत है 
ज्ञान का दीप जलाये रखना ।
योगेन्द्र अग्निहोत्री

सोमवार, 9 जनवरी 2023

रचनाकार :- आ. टी. के. पांडेय जी, शीर्षक :- विश्व हिंदी दिवस


कलम बोलती है साहित्यिक समूह
बिषय
हिंदी दिवस
१०/०१/२३
______

खाते हिंदी, पीते हिंदी,     हिंदी ही में जीते हिंदी। 
हिंदू की पहचान ये हिंदी,भारत की प्राण ये हिंदी। 

हिंदी में जीवन बसता है, दुनियाँ में भाषा ससता है। 
ईश्वर भी इसमें रमते हैं, कवि, कला आ कर जमते हैं। 

उत्तर में वो खड़ा हिमालय, गंगा, जमुना, नभ देवालय। 
दसो दिशाओं के स्वर सुंदर, हिंदी शोभित देव पुरंदर। 

धरती का हर कोना कोना, हिंदी उगल रही है सोना। 
अति मन लोभन् पावन हिंदी, अति सुंदर प्रिय गावन हिंदी। 

हिंदी दिवस करें कामना,आप सभी को है "शुभकामना"

टी के पांडेय
दिल्ली

रचनाकार :- आ. शिवशंकर लोध राजपूत ️जी, शीर्षक :- विश्व हिंदी दिवस


नमन मंच 
#कलम बोलती है साहित्य समूह 
#दिनांक :10/01/2023
#विषय :विश्व हिंदी दिवस 
#विधा:कविता 

हिंदी है हिंद का मान 
है माथे की बिंदिया 
हमारी हिंदी भाषा,
हमारा अभिमान है
हमारी संस्कृति, मातृभाषा, 
भारत राष्ट्रभाषा महान है
जन-जन में व्यापक, 
सर्वत्र क्षेत्र में बोली जाती 
हिंदी भाषा महान है
हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा मिला
14, सितम्बर 1949 में
हमारी भाषा हमारा अभिमान है 
'क'अक्षर से शुरू वर्णमाला 
देवनागरी लिपि मे
हिंदी भाषा व्याकरण 
से शब्द निखार है 
हिंदी भाषा महान है
हमारी भाषा हमारा अभिमान है 
सब क्षेत्रो को जोड़ने वाली है भाषा 
सर्वत्र बोली जाने वाली भाषा 
आओ मिलकर इसका, 
और प्रचार, प्रसार करें 
हिंदी दिवस पर भाषा, 
हिंदी का गुणगान करें 
हमें गर्व है हम है भारतीय 
हमारी भाषा यह
हमारा अभिमान है

शिवशंकर लोध राजपूत ️
(दिल्ली)

रचना स्वरचित व मौलिक है !

रचनाकार :- डॉ ललिता सेंगर जी, गीत का शीर्षक -मैं पथिक सच की डगर का


नमन कलम बोलती है साहित्यिक मंच 
विषय- पथिक 
09/01/23
सोमवार 
गीत -मैं पथिक सच की डगर का 

मैं पथिक सच की डगर का, अनवरत चलता रहूँगा,     
शूल  कितने  भी हों  पथ  में, कर्म  मैं  करता रहूँगा।

आज   भ्रष्टाचार - अत्याचार  ने   जीवन   छला  है,   
कोई भी परकाज-हित करता नहीं  किंचित भला है,      इसलिए  सद्भावना  की  अलख जन-जन में जगाने ,  
मैं  सदा सन्मार्ग  पर  चलने  का  शुचि-संदेश  दूँगा।          
मैं पथिक सच की डगर का ........... 

दूर है मंजिल बहुत  पर  मैं नहीं  थककर  रुकूंगा,     
राह  की कटुतम  चुनौती  देखकर  न  मैं  झुकूंगा,       
मैंने  पथ  पर  आगे  बढ़कर  लौटना सीखा नहीं है, 
इसलिए   झंझावतों   से   जूझकर   आगे  बढूंगा।             
मैं पथिक सच की डगर का .......... 

लाख   काँटे  लोग  मेरी  राह  में  आकर  बिछा  दें ,    विघ्न-बाधाओं  से  जीवन  कठिनतम  मेरा बना दें,      
किन्तु  इस  काँटों भरी  संघर्षमयी जीवन डगर पर,         
मैं   नये  संकल्प  का  दृढ़  भाव  हृदय  में  भरूँगा।          
मैं पथिक सच की डगर का ..........

 स्वरचित 
डॉ ललिता सेंगर

शनिवार, 7 जनवरी 2023

रचनाकार :- आ. ममता यादव जी.. रचना का शीर्षक :-सलोना बचपन



#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह 
#नमन_मंच_को 
#दो_दिवसीय_लेखन
#विषय_क्रमांक_534
#दिनाँक 07/01/2023
#दिन_शनिवार 
#विषय_चित्र_लेखन 
#विधा_कविता 
#शीर्षक_सलोना_बचपन

रोते - बिलखते दुनिया में आकर,
सुनहरे सपनों के पंख लगाकर।
बचपन की गलियारों से होकर,
स्वर्णिम जीवन की आस लगाकर।

नटखट सलोने बचपन की याद,
अब रमता है मेरे तन - मन में।
कितना सरल कितना निश्छल,
वो प्यारा बचपन था जीवन में।

कागज़ की  कश्तियां  बनाना,
मिट्टी ले खिलौनों संग खेलना,
बारिश के पानी में छपाक लगाना,
सखी-सहेलियों संग मेला देखना।

फूलों सा था वो नाज़ुक बचपन,
कितना सुखमय था मेरा बचपन।
गुज़रे लम्हों का खुशनूमा बचपन,
आज भीगा है यादों का अंतर्मन।

ममता यादव ✍️
मुंबई महाराष्ट्र 
स्वरचित एवं मौलिक रचना

रचनाकार :- आ. अरविन्द सिंह "वत्स" जी.. तांटक छंद में गीत



नमन-------कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक-----------------------534
विषय-------------------------चित्रलेखन
तिथि---------------------07/01/2023
वार-----------------------------शनिवार
विधा-----------------तांटक छन्द में गीत
मात्राभार------------------------16,14

                           #बचपन

बचपन  का वो वक्त निराला,खेल खिलौने भाते थे।
गली मुहल्ला गाँव शहर में,मिल कर धूम मचाते थे।।

बाल  उम्र  की  बात  निराली,गणना  थी शैतानों में।
चिन्ता  कभी  न  मन  में रहती,दिखते थे मैदानों में।।
खेल  खेलकर  अमराई  में,लौट सदन को आते थे।
बचपन  का वो वक्त निराला,खेल खिलौने भाते थे।।

चोरी - चोरी  चुपके - चुपके,घुस  जाते  थे पानी में।
हँसी  ठिठोली दिल को भाती,रत रहते मनमानी में।।
आम तोड़कर घर लाते थे,मिलकर जामुन खाते थे।
बचपन  का वो वक्त निराला,खेल खिलौने भाते थे।।

हाथ पकड़कर निज मित्रों का,धूल लगाते गालों में।
जब  बर्षा का मौसम आता,मछली पकड़ें तालों में।।
साथ - साथ  हम  पढ़ने  जाते,बैठ मेड़ पर गाते थे।
बचपन  का वो वक्त निराला,खेल खिलौने भाते थे।।

वक्त  शाम  का जब आ जाता,द्वारे पर चिल्लाते थे।
अगर  न  आते  मित्र समय पर,देरी पर झल्लाते थे।।
गिल्ली डण्डा और कबड्डी,मिल कर खेल रचाते थे।
बचपन  का वो वक्त निराला,खेल खिलौने भाते थे।।

मम्मी  पापा  से  दुलराते , कभी  नहीं  शरमाते  थे।
आज्ञाकारी  बन  जाते  थे,पाकर  धन  इतराते  थे।।
चाट  समोसा  और  मिठाई,खाकर मौज उड़ाते थे।
बचपन का वो वक्त निराला,खेल खिलौने भाते थे।।

अरविन्द सिंह "वत्स"
प्रतापगढ़
उत्तरप्रदेश

शुक्रवार, 6 जनवरी 2023

रचनाकार :- आ. जमुना प्रसाद उनियाल जी, रचना का शीर्षक :- बच्चे देश का भविष्य



नमन मंच
दिनांक 06,01,2023
दिवस शुक्रवार
विषय चित्रलेखन
     🌺🌺बच्चे देश का भविष्य🌺🌺
🌹🌹🌹🌹🌹👧👮👩‍🏫👩‍🏭👳👩‍🔧👩‍🔬
बच्चे है हमारा सबसे बड़ा धन।
बनाना होगा इनका शक्तिशाली तन मन ।।
देनी है इनको संस्कारो की भी शिक्षा।
इनको दे उच्च व्यवहार की दीक्षा।।
आने वाले कल के है ये कर्णधार।
इनके ऊपर टिकी रहेगी देश उन्नति की सार।।
भविष्य इनका है हम सब के हाथ।
इनके भविष्य का निर्माण करे मिलकर साथ।।
प्रथम पाठशाला इनके होते माँ, बाप।
शिक्षक भी होते भविष्य निर्माण में खास।।
बहुत कुछ ये समाज से शिक्षा पाते।
उसको भी ये जीवन मे अपनाते।।
हर सम्भव करना है प्रयास।
भविष्य बनाये इनका स्वच्छ और साफ।।
हमने जो भी पाया बचपन्न से अब तक।
करो अवलोकन दो इन्हें सही पाया जो अब तक।।
सत्मार्ग संग दो व्यवसाय का ज्ञान।
इनके हाथ ही है आगे देश का मान सम्मान।।
जमुना प्रसाद उनियाल
ज्ञानसू उत्तरकाशी उत्तराखंड
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

रचनाकार :-आ भगवती सक्सेना गौड़ जी, रचना का शीर्षक :- थाली की कीमत


#कीमत

थाली की कीमत

वर्मा जी अपने बहू बेटे के यहां मुम्बई आये थे। एक महीने पहले ही पत्नी नही रही, अपने पुराने घर मे उदास बेचैन से रहते थे। इसी कारण बेटा जिद करके शहर ले आया।
शुरू में तो माहौल बदला तो छोटे आकाश के साथ मन बहल जाता था।

कुछ दिनों बाद देखा, सुबह ही बहू, बेटा, आकाश सब अपने अपने आफिस और स्कूल चले जाते। कुक नौ बजे रोटी सब्ज़ी बनाकर निकल जाती, वर्मा जी की आदत थी एक बजे लंच करने की, और वो उसी समय खाते थे। थोड़े दिन किसी तरह खाते रहे, यही सोचते रहे, जीने के लिए खाना भी पड़ेगा।

एक दोपहर को तो मोटी मोटी ठंडी रोटी खाते हुए, पत्नी की यादों में खो गए, आंखे कब पनीली हो गयी, ध्यान ही नही रहा। किसी न किसी बात पर पत्नी के ऊपर झुंझलाते रहते थे। जबकि वो रोज दाल, चावल, सब्जी, रायता, चटनी और सबसे बढ़िया नरम गरम रोटियां खिलाती थी, उस समय उस थाली की कीमत उन्हें नही समझ आती थी। शादीशुदा चालीस वर्ष तक दिन रात दोनो समय पत्नी गरम रोटी ही बनाती और प्रेम से परोसती रही। आज उन्हें ध्यान आया कि वो थाली अनमोल थी, शायद उन्हें कभी नसीब नही होगी।
बड़े शहरों में लोगो के पास समय ही नही है, जब समय होता है तो बाहर जाकर पिज़्ज़ा बर्गर खाना याद आता है।

रात को वर्मा जी के सपने में पत्नी आयी और बोली, सुनो, वहीं चलो न अपने घर, वो रमिया से अपने पसंद का खाना बनवाना, और उस प्यारे से घर के हर कोने में मुझे महसूस करना, मन लग जायेगा। यहां भी तो दिन में अकेले ही रहते हो।
और वर्मा जी ने दूसरे दिन टिकट बनवा लिया।

स्वरचित
भगवती सक्सेना

गुरुवार, 5 जनवरी 2023

रचनाकार :- आ रमेशचंद्र शर्मा जी , रचना का शीर्षक :- सम्मान का मनोविज्ञान




सम्मान का मनोविज्ञान !
================

सम्मान की चाह किसे नहीं होती ? हर कोई  अपने किए कार्यों की प्रशंसा एवं पुरस्कार की अपेक्षा रखता है । यद्यपि साहित्यिक रचनाएं स्वांतःसुखाय होती है,फिर भी सहज मानवीय प्रवृत्ति  सराहना की अपेक्षा करती है । 
               निष्पक्ष समीक्षात्मक आलोचनाओं का भी खुले मन से स्वागत किया जाना चाहिए । कभी-कभी सम्मान पत्रों के चयन पर प्रश्न जरूर खड़े कर दिए जाते हैं। यह एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया भी है। यह मर्यादित होना चाहिए ।
 हर कोई रचनाकार अपनी रचना धर्मिता का श्रेष्ठ देना चाहता है । रचनाकार इस कसौटी पर कितना खरा उतरा कभी कभी यह सम्मान द्वारा भी मूल्यांकित किया जाता है । सम्मान की भी अपनी सीमाएं हैं। सभी को सम्मान  दिया जाना हमेशा संभव नहीं होता ।ऐसे में चयन मंडल द्वारा अपने तयशुदा  मानकों पर रचना को परखकर उनका सम्मान  हेतु चयन किया जाता है । यही सर्वोत्तम चयन प्रक्रिया भी है। फिर भी कुछ लोग संतुष्ट नहीं हो पाते । 
        सम्मान रचनाकारों को गौरव की अनुभूति के साथ ही रचनाकर्म के लिए प्रोत्साहित भी करते हैं ।वैसे सम्मान  की चाह में रचनाकर्म उचित प्रतीत नहीं होता। स्तरीय रचनाकार एवं रचनाएं स्वतः  सुधि पाठकों को प्रभावित कर लेते हैं ।उनकी रचना  सम्मान हेतु चयन मंडल को बाध्य कर देती है ।
    कुल मिलाकर सम्मान रचनाकार को प्रोत्साहित तो करते ही हैं, साथ ही उनकी रचनाधर्मिता को सम्मान पूर्वक मान्यता भी प्रदान करते हैं । इसलिए रचनाकारों को अपना ध्यान रचना की गुणवत्ता  पर केंद्रित रखना चाहिए । रचना के भावपक्ष एवं कलापक्ष दोनों का संतुलित सहज प्रयोग रचना को आकर्षक बना देता है । ऐसी रचनाएं चयन मंडल द्वारा जरूर चयनित की जाती है ।
सम्मान नहीं मिलने पर नैराश्य भाव नहीं आना चाहिए। आज नहीं तो कल रचनाओं को सम्मान जरूर मिलेगा । लेखन प्रक्रिया सहज सतत निरंतर रहना जरूरी है । 
आभासी दुनिया के बढ़ते प्रभाव ने सम्मान की लालसा को बढ़ा दिया है । अनेक डिजिटल प्लेटफॉर्म रचनाकारों को सम्मानित करते रहते हैं। ऐसे डिजिटल प्लेटफॉर्म का भी स्वागत किया जाना चाहिए।  खेमे बंदी एवं बाड़ा बंदी  का जगजाहिर रोग यहां बहुत पहले से व्याप्त है । कुछ लोग जुगाड़ से सम्मान हथिया लेते हैं तो कुछ  अन्य तरीके अपनाकर ।
सम्मान का जुगाड़ तंत्र सब दूर हावी नहीं है । कुछ संस्थाएं पारदर्शी तरीके से काम कर रही है। यह संस्था को संचालित वाले व्यक्तित्व पर भी निर्भर करता है।( जैसे हिंदी साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश पारदर्शी प्रक्रिया अपनाकर स्थापित मानदंडों पर चयन करती है साधुवाद)। प्राप्त सभी प्रविष्टियों को पुरस्कृत किया जाना कहीं भी संभव नहीं है । श्रेष्ठतम प्रविष्टियों का चयन बहुत कठिन होता है। चयन मंडल के भी अपने-अपने दायरे होते हैं।
चयन मंडल को पूर्व से स्थापित भारी-भरकम नाम के प्रभाव से बचना चाहिए ।
कुछ संस्थाएं भारी-भरकम व्यक्तियों के बोझ से दबी रहती है। मीडिया एवं कथित संस्थाओं से दूरी बनाए हुए बहुत सारे लेखक आज भी साहित्यिक रचनाओं का उपादान दे रहे हैं। संस्थाओं को मीडिया तंत्र में रोजाना नहीं दिखने वाले रचनाकारों पर भी ध्यान देना चाहिए । यह निर्विवाद सत्य है सभी को सम्मानित नहीं किया जा सकता किंतु श्रेष्ठतम को सम्मानित करने की दृढ़ इच्छाशक्ति संस्थाओं के पास होना चाहिए।
व्यक्तियों की तरह कुछ संस्थाएं भी पूर्वाग्रह की शिकार रहती है। उच्च स्तर की रचना धर्मिता को प्रोत्साहित करना सभी का उद्देश्य होना चाहिए ।
आजकल सोशल मीडिया पर आ रहे रचनाकारों को दोयम दर्जे का साबित करने की होड़ लगी हुई है। कुछ कथित प्रतिस्थापित इसे अपने हम पर आघात मानते हैं। इस पूर्वाग्रह को कदापि उचित नहीं कहा जा सकता ।
कुल मिलाकर सम्मान का मनोविज्ञान हर व्यक्ति और तंत्र को प्रभावित करता है। मठाधीश कहां नहीं हैं? क्या बिना मठाधीश के मठ की कल्पना तार्किक है ?
श्रेष्ठ का सम्मान सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि है।
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#  रमेशचंद्र शर्मा
     इंदौर

बुधवार, 4 जनवरी 2023

रचनाकार :- आ. रूपेन्द्र गौर जी.. इटारसी, मप्र,



कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय- कीमत
विधा- दोहे
दिनांक- 04/01/2023

कीमत समझो वक्त की, करें वक्त पर काम।
वरना  निश्चित  मानिए, मिलता  है  अंजाम।।

कीमत समझो वक्त की, करें न वक्त व्यतीत।
पछताना ही हाथ फिर, कभी न मिलती जीत।।

कीमत समझो वक्त की, वक्त सदा सरताज।
चुग जाने के बाद फिर, उगता नहीं अनाज।।

कीमत समझो वक्त की, वक्त सदा बलवान।
जिसने भी की कद्र नहीं, उसकी बिखरी शान।।

कीमत समझो वक्त की, करें नहीं बेकार।
जाने पर इसके गुजर, केवल मिलती हार।।

कीमत समझो वक्त की, जिसने लिया सॅंभाल।
हो जाता फिर वो बहुत, सचमुच  मालामाल।।

कीमत समझो वक्त की, रहता नित खामोश।
फिसले बालू की तरह, और उड़ाता होश।।

कीमत समझो वक्त की, करना नहीं घमंड।
वैसे तो ये शांत पर, इसका ताप प्रचंड।।

कीमत समझो वक्त की, जिसने रक्खा मान।
उसको नित मिलती रही, दुनिया में पहचान।।

कीमत समझो वक्त की, इसके कल अरु आज।
यह फिसले ज्यों हाथ से, गिरती है फिर गाज।।

कीमत समझो वक्त की, इसे न समझें आम।
वक्त न ज़ाया कीजिए, इसके सभी गुलाम।।

कीमत समझो वक्त की, राजा रंक फकीर।
वापस आता फिर नहीं, ज्यों तरकश से तीर।।

रूपेन्द्र गौर, इटारसी, मप्र,
स्वरचित एवं मौलिक,

मंगलवार, 3 जनवरी 2023

रचनाकार :- आ. शोभा वर्मा जी



जय शारदे माँ। 
कलम✍ बोलती है साहित्य समूह।
क्रमांक-532
दिनांक--३|०१|२३,सोम.मंगल. 
विषय- नव वर्ष, छंद-मुक्त कविता।
(समीक्षार्थ प्रस्तुति)

नई ऊर्जा,नई खुशियाँ लेकर आया नव वर्ष। 
गम की रैना बीत गयी छाया है चहुं ओर हर्ष।
सूर्य रश्मियाँ जगमगातीं सुखद आशीष लिए। 
आओ करें स्वागत इसका बाहों के हार लिए।

नयी सौगात के पुष्पों से सुसज्जित करके।
आशाओं के दीप जलाएं,उन्नति के नये आयाम लिए,चिंता,कष्टों को भूलकर नव मार्ग लिए।
अब ना आये कोई महामारी नव संताप लिए। 

भ्रातृभाव,की अभिलाषा के संग उम्मीद लिए।
नया सवेरा मुस्काया,आशाओं के पंख लिए।
सुख,समृद्धि फैले एक नया उल्लास लिए ।
जन कल्याण की भावना से हम नव वर्ष का सत्कार करें। 
                ÷÷÷÷÷÷÷÷
©️स्वरचित मौलिक रचना। 
शोभा वर्मा--०३|०१|२३
देहरादून,उत्तराखंड।

सोमवार, 2 जनवरी 2023

रचनाकार :- आ. रुपेश यादव औराई जी

कलम बोलती है साहित्य समूह
दिनांक 02/01/2023
 विषय  "नया साल"
विषय क्रमांक 532

कोई रो रहा है कोई गा रहा है 
लेकिन नया साल मना रहा है।

कोई रजाई में पड़ा है 
कोई नहाने के लिए खड़ा है
कोई पानी के लिए चिल्ला रहा है
 लेकिन नया साल मना रहा है।

कोई ठंड से कांप रहा है 
कोई उठकर अलाव ताप रहा है
 कोई बिना नहाए ही खा रहा है 
लेकिन नया साल मना रहा है।

कोई घूमने जा रहा है 
कोई घूम घूम कर आ रहा है
कोई घर पर ही भजन गा रहा है
लेकिन नया साल मना रहा है।

कोई घर गिरस्ती में लगा है 
कोई जीवन की मस्ती में लगा है 
कोई दोस्तों की महफिल सजा रहा है
लेकिन नया साल मना रहा है।

कोई नौकरी करके आ रहा है 
कोई नौकरी पर जा रहा है 
कोई घर पर ही दिमाग लगा रहा है
लेकिन नया साल मना रहा है।

संदेश देने की झड़ी लगी है 
मोबाइल पर भीड़ बड़ी लगी है 
कोई जमकर बतिया रहा है 
लेकिन नया साल मना रहा है।
 स्वरचित मौलिक 
रुपेश यादव औराई भदोही उत्तर प्रदेश

रविवार, 17 अप्रैल 2022

#लघुकथा_आयोजन.. पाठशाला (आ. देवेश्वरी खंडूरी जी)

"कलम ✍️बोलती है" साहित्य समूह,
मंच को प्रणाम 🙏🙏
विषय -पाठशाला (लघु कथा) 
क्रमांक संख्या -423 
दिनांक -16 /4/ 2022
********************
🙏🙏मां शारदे का नमन वंदन करते हुए🙏🙏
          मां सरस्वती का वास है पाठशाला
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

         पाठशाला का अर्थ बचपन में हमने समझा नहीं, जब घर से तैयार होकर पढ़ने के लिए जाते थे, तो दिल और दिमाग में यह नहीं आता था ,कि विद्या अध्ययन करके हमें कुछ आगे बढ़ना है। मस्ती में झूमते , खेलते- खेलते स्कूल पहुंचते थे। पर्वतीय क्षेत्रों में स्कूल बहुत दूर-दूर एवं गिने चुने होते थे। उस समय पर्वतीय क्षेत्रों में अंग्रेजी स्कूल नहीं होते थे। सरकारी स्कूल होते थे। कक्षा एक से कक्षा तीन तक पाटी पर लिखते थे। पार्टी आजकल की सिलेट की तरह होती थी। अब तो वह दूर दूर तक नजर नहीं आती। पुरानी सारी वस्तुएं समाप्त होती जा रही है। उस समय सारे सरकारी स्कूलों में जमीन पर टाट पट्टी बिछाकर बैठते थे । गुरुजी श्यामपट्ट पर लिखकर पढ़ाते और समझाते थे। उस समय की पढ़ाई बहुत अच्छी होती थी।
            समय से पाठशाला पहुंचकर पहले ईश्वर प्रार्थना , प्रार्थना के बाद सदाचार का पाठ, फिर पीटी, याने व्यायाम सिखाया जाता था। मध्यांतर में मिल्क पाउडर घोलकर सभी छात्रों को दिया जाता था। सभी छात्र बड़े शौक से पीते थे। 
             गुरुजी का सभी छात्रों के प्रति पढ़ाई की ओर विशेष ध्यान रहता था, साथ ही लिखावट पर भी बहुत मार पड़ती थी , क्रमबद्ध लिखना, अक्षरों को सही ढंग से मिला कर लिखना, सभी छात्रों का उत्साह बढ़ाते रहते थे। उस समय पांचवी कक्षा एवं आठवीं कक्षा का भी बोर्ड हुआ करता था, और काफी दूर बोर्ड का सेंटर पड़ता था। उस समय आवागमन के साधन भी नहीं थे। काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था।
           आखरी क्लास में सभी छात्र खड़े होकर पहाड़े, गिनती, कविता दोहराते थे, खूब जोर जोर से बोलकर याद करते थे। उस समय के स्कूलों में पढ़ाई के अलावा कोई दिखावा नहीं था। बहुत अच्छा समय व पाठशालाएं थी।
              मुझे बहुत अच्छा लगता है ,मैंने सरकारी स्कूल में विद्या अध्ययन किया, आज शिक्षा का स्वरूप बदल गया। समय बदला समय के साथ सब कुछ बदल गया।

देवेश्वरी खंडूरी ,
देहरादून उत्तराखंड।

#लघुकथा_आयोजन.. पाठशाला (आ. अनामिका मिश्रा जी)

#नमन मंच 
#विषय -पाठशाला 
#विधा लघुकथा 
#दिनांक- 16/04/22

शर्मा जी जाने-माने धनी व्यक्ति थे। उनके यहांँ एक ड्राइवर काम करता था। शर्मा जी का बेटा जिस स्कूल में पढ़ता था,वहीं ड्राइवर का भी बेटा पढ़ता था।
शर्मा जी को अपने धनी होने का बहुत ही गुमान था और उनका बेटा भी एकदम उन्हीं की तरह था। 
दोनों एक ही स्कूल में थे,वो ड्राइवर के बेटे का स्कूल में मजाक उड़ाया करता था, "अरे इसके पिता मेरे यहांँ ड्राइवर है!"
एक बार स्कूल में कोई फंक्शन था। सभी छात्र छात्राएं मंच पर कार्यक्रम कर रहे थे। 
ड्राइवर का बेटा राहुल का प्रदर्शन बहुत ही अच्छा हुआ। 
शर्मा जी के बेटे को भी पुरस्कृत किया गया।
पर मंच पर पुरस्कार लेते समय ड्राइवर के बेटे राहुल ने अपने सभी शिक्षक,शिक्षिकाओं का अभिवादन किया, चरण स्पर्श किया और उनके सम्मान में कुछ शब्द कहे। 
उसी जगह शर्मा जी का बेटा बिना कुछ कहे पुरस्कार लेकर अपनी जगह पर चला गया। 
राहुल के इस गुण से उसके स्कूल के प्रधानाध्यापक खुश होते हुए मंच पर बोले,"आज राहुल के इस व्यवहार से मैं बहुत ही खुश हुआ हूंँ,भले ही हम पाठशाला में सीखने आते हैं, पर हमारी पहली पाठशाला हमारा घर होता है,और शिक्षक माता-पिता, और राहुल ने इसका परिचय दिया है!"
सभी अभिभावक तालियां बजा रहे थे और शर्मा जी स्तब्ध बैठे सुन रहे थे। 

स्वरचित अनामिका मिश्रा 
झारखंड जमशेदपुर

#लघुकथा_आयोजन.. पाठशाला (आ. अंजु श्रीवास्तव जी)

नमन मंच 
कलम बोलती है साहित्य समूह 
विषय :पाठशाला
क्रमांक संख्या 423 
आज की कहानी पाठशाला से शुरू होती है जिसे जीवन में पाने के लिए मैंने बहुत संघर्ष किया था पिता के ना रहने पर बहुत जल्दी मेरा विवाह भी हो गया उसके पश्चात एक बेटी बेटा मेरी गोदी में हो गया समय गुजरता रहा और मैं अपने बच्चों के लालन-पालन में लगी रही एक दिन जब मैं अपने मायके गई तो मैंने देखा पास के इंटर कॉलेज एनटीटी कोर्स करने के लिए फार्म रखे थे मैंने फार्म भरे और मेरा सिलेक्शन हुआ उसके बाद में मैंने ठाना कि मुझे एक सरकारी नौकरी करनी है उस पाठशाला में जाना है जहां पर बच्चे गांव के पढ़ने आते हो मेरे मियां बी,एड किया m.a. किया और उसके पश्चात जमकर पढ़ाई की इसके पश्चात एक गांव की सुदूर सुंदर से गांव मैं मेरी पोस्टिंग हो गई वह गांव जितना सुंदर था इतनी सुंदर मां के बच्चे भी थे उन प्यारे बच्चों ने मेरा मन मोह लिया और मैं आराम से लग्न के भाव से उस पाठशाला में पढ़ाने लगी मेरे पढ़ायेबच्चे लगभग सभी प्रतियोगिता में भाग लेते थे मैं उनकी अध्यापिका के साथ-साथ उनकी स्थिति बन गई थी धीरे-धीरे समय बता और वो पाठशाला मेरा जीवन बन चुके सच कहूं शिक्षिका बनना और उस पाठशाला में मुझे पढ़ाना आज भी मेरे लिए गौरव की बात है 
अंजू श्रीवास्तव देहरादून

#लघुकथा_आयोजन.. पाठशाला (आ. मोनिका कटारिया"मीनू" जी)

🌹नमन मंच🌹
कलम बोलती है समूह
क्रमांक 424
दिनांक 16.04.22
विषय – पाठशाला
विधा- लघु कथा

करोना काल-- भयावह ,डरावना काल
सब बंद, इंसान भी ----कभी सोचा ना था भागती दौड़ती ज़िंदगी यूँ ही बस रुक जाएगी
धीरे धीरे जिंदगी पटरी पर आने लगी
तो सुमन हमारी कामवाली बाई भी लौट आयी
कुछ परेशान सी रहने लगी पति भी वापिस काम पर लौट गया था भले ही कुछ तनख़्वाह कम पर , बच्चे भी पहले तो पाठशाला जाते थे। अब घर पर रहकर पढ़ने लगे । 
पर सुमन परेशान ही रहती बार बार पूछने पर एक दिन 
सुमन ने चाय पीते हुए बताया उसे फ़ोन की आवश्यकता है क्यूँकि अब बच्चे पाठशाला नहीं जा सकते- पढ़ाई फ़ोन पर ही होगी , मेरे पास ना तो वैसेवाला फ़ोन है ना ही मुझे चलाना आता है ना ही इतने पैसे है कि मैं नया फ़ोन ख़रीद कर बच्चों को दे सकूँ ताकि उनकी पाठशाला की पढ़ाई फ़ोन पर ही हो जाये । 
एक साँस में सब बोल गई सुमन और रोने लगी ये कैसी मुसीबत आन पढ़ी है दीदी क्या होगा ग़रीबों का?? भगवान भी हम ग़रीबों को ही सताते हैं। 
ऐसा नहीं है सुमन -मैंने उसे ढाँढस बांधते हुए समझाया ये समय ही ऐसा है पूरी दुनिया ही परेशान है। 

मेरे बच्चों ने ये बात समझी और अगले दिनसुमन को अपने बच्चों के साथ आने को कहा
अगले दिन सुमन दोनों बच्चों संग उपस्थित थी 
बच्चों ने अपना मोबाइल दिया, चलाना भी सिखाया
अब सुमन के बच्चे मोबाइल पाठशाला में जाने लगे😊
मैं भी ख़ुश थी कि मेरे बच्चों ने भी सही पाठशाला से पढ़ाई की है साथ ही आज वो ज़िंदगी की पाठशाला में भी ऊतीर्ण हो गये थे। 

स्वरचित एवं मौलिक
मोनिका(मीनू)
16.04.22

#लघुकथा_आयोजन.. पाठशाला (आ. नरेन्द्र श्रीवात्री स्नेह जी)

नमन मंच कलम बोलती है साहित्य समूह 
विषय क्रमांक 424
विषय पाठशाला 
विधा लघुकथा 
दिनांक 16/4/2022
दिन शनिवार 
संचालक आप औऱ हम 

संगीता एक शिक्षित परिवार की लड़की शहर से रामपुर गाँव में शादी होकर आईं। शादी के तीन बर्ष बाद ही पति का स्वर्गवास हो गया। संगीता की दो बर्ष की पुत्री थी। घर में रहते उसका समय मुश्किल से व्यतीत होता। गाँव में कोई पाठशाला नहीं थी शिक्षित भी बहुत कम थे ।उसने अपने घर के सामने पेड़ के नीचे दो चार बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। बच्चों को पढ़ाई में लगाव देख। उसने अपने भाई से कहकर किताबें बुलवा ली। बच्चों की संख्या बढ़ने लगी । वहां के विधायक दौरे पर निकले वहां संगीता को पढ़ाते देखा तो परिचय लिया।विधायक महोदय ने वहां एक पाठशाला खुलवा दी। औऱ कुछ वर्षो में भवन भी बन गया ।संगीता को शिक्षिका के पद पर नियुक्ति हो गई ।
संगीता की मेहनत औऱ लगन काम आईं। 

स्वलिखित मौलिक अप्रकाशित लघुकथा ।
नरेन्द्र श्रीवात्री स्नेह 
बालाघाट म प्र

#लघुकथा_आयोजन.. पाठशाला (आ. गोपाल सिन्हा जी)

पाठशाला
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बरसों बाद वह, अपने गाँव आया था। विदेश में बस जाने के बाद भी, वह, अपने गाँव, गाँव के लोगों, पाठशाला, गुरुजी एवं सहपाठियों को नहीं भूल पाया था। 

उसे याद है सुबह एक मुट्ठी चूड़ा, पानी में भिंगोकर, थोड़ा गुड़ के साथ, माँ, उसे नाश्ते के रूप में, खाने को दे देती थी। 

पानी पीकर, स्लेट-पेंसिल और एक छोटी सी चटाई या बोरिया लेकर, वह, पाठशाला की ओर दौड़ जाता। 

वहाँ शीघ्र प्रार्थना शुरू हो जाती। वह चुपके से शामिल हो जाता। गुरुजी की नजर, उस पर पड़ती। वह संकोच में सिमट जाता।

 गुरु जी प्रेम से, उसे बुलाते और प्रार्थना गाने को कहते। उसकी आवाज अच्छी थी। ऐसा सब लोग कहते थे। 

प्रार्थना के बाद, पाठशाला के बरामदे में कक्षा आरंभ होती। सभी बच्चे अपनी बोरिया बिछाकर बैठ जाते। गुरु जी श्याम-पट पर कुछ लिखते। बच्चों को अपनी स्लेट-पेंसिल निकालने को कहते।

 शहर के स्कूल में जाने से पहले, उसने पाठशाला में, बहुत कुछ सीखा। वर्णमाला, गिनती, पहाड़ा, जोड़-घटाव-गुणा-भाग, भूगोल, इतिहास का आरंभिक ज्ञान। विशेष अवसरों पर प्रभातफेरियों का आयोजन होता था। 

सभी उत्साह-पूर्वक देश-भक्ति-पूर्ण नारे लगाते हुए, गाँव की गलियों से गुजरते थे। राष्ट्र-गान और राष्ट्र-गीत पूरा कंठस्थ, वहीं हो गए थे।

 रामायण-महाभारत से लेकर महापुरुषों की जीवनी से संक्षिप्त परिचय कराया गया था।

 स्वास्थ्य-स्वच्छता-संबंधी नियम, सादगी- सच्चाई, बड़ों का आदर, पशु-धन की सेवा, बागवानी, घरेलू औषधियों और न जाने, कितनी बातें सिखायी गई थीं। 

भारत से दूर रहते हुए, वह बचपन में दिये गये शिक्षा-संस्कार को भूला नहीं था। जीवन में, जो सफलता मिली, उसका कुछ श्रेय, पाठशाला की पढ़ाई को भी जाता था। 

आज पाठशाला भवन की भग्नावस्था को देखकर वह चिंतित एवं लज्जित हुआ। उसने इसके जीर्णोद्धार का संकल्प लिया।

--- गोपाल सिन्हा,
    पटना,
    १६-४-२०२२

#लघुकथा_आयोजन.. पाठशाला (आ. आकाश, बघेल जी)

# नमन मंच
# विषय_ पाठशाला
# विधा_ लघुकथा
# दिनांक _ १७/०४/२०२२
   
     जब कक्षा तीन में पड़ता था । तो में पड़ने में थोड़ा कमजोर होने के कारण में स्कूल बहुत कम जाता था। दिन में खेलना और सुबह - शाम यमुना नदी पर अपनी गाय - भैंस चराने के बाद फिर घर आ जाना। फिर जैसे ही सुबह हुई और घर से छुपकर निकलना ,बस जैसे ही हमारे गुरु जी को पता चला कि आकाश आज फिर से पाठशाला नहीं आया तो दो - लड़के भेजना और हमारी पिटाई करना । मुझे तैरने का काफी सौंक था, स्कूल जाना भूल जाता था मगर यमुना नहीं पर प्रतिदिन जाना नहीं भूल पाता । कुछ दिन बाद हम भरतपुर चले जाते है । ये वो कदम था जहां हम पहली बार , कार बस ,ऊंची ,इमारतें , देखते है । फिर में मन ही मन सोचता हूं । ये दुनिया कितनी बड़ी है,
भरतपुर में मेरी मुलाकात एक नेक,लड़की नीलम से होती है। वो पड़ने में काफी तेज थी । वो हमसे बुद्धू बोलती थी, धीरे - धीरे हमने उससे बहुत कुछ सीख लिया, अंग्रेजी भाषा,में बात करना भी आसान सा लगने लगा,एक दिन ,नीलम और मुझ में थोड़ा झगड़ा सा हो जाता है, दो दिन बाद आचनक वो बोलती है कि ओए बुद्धू मुझे तुझसे सादी करनी है, मगर एक शर्त है।कक्षा १० में मुझसे ज्यादा नंबर लाने होने ,वो अपने पापा का फोन नंबर देती है , और बोलती है अब घर चला जाना ,और मन लगाकर पड़ना , में अपने गांव आया और सारी बात अपने, गुरु जी को बताई जो हिन्दी के आध्यपक थे, पहले तो हसे फिर उन्होंने मुझे घर ३ साल रखा में बही पड़ता, जब कक्षा १० के पेपर आग गए थे, अगले दिन सोमवार को हिंदी का पेपर था, तो गुरु जी ने मुझे बुलाया और बोले वो नंबर कहा है । में घर आया संदूक में से नंबर को निकाला और गुरु जी पास पहुंच गया। गुरु जी ने फोन मिलाया, फोन नीलम के हाथ में ही था। उसने मेरी आवाज ३साल बाद भी पहचान ली और बोली । शादी करेंगे मैने कहा हां , अंत में नीलम से ४ नंबर ज्यादा आते है , फिर हम मिलते है ,और शादी न करके और दोनों एक साथ,राजकीय iTi बृंदावन,मथुरा में हमारा सलेक्शन हो जाता है ,
     आकाश, बघेल ,मथुरा ,उत्तर प्रदेश।

लघुकथा आयोजन.. पाठशाला (आ. आरती गुप्ता जी)

#कलम ✍️बोलती है साहित्य समूह
#नमन मंच
#दो दिवसीय लेखन
#दिनांक- १५/०४/२०२२ से १६/०४/२०२२
# विधा- लघुकथा#
#विषय- पाठशाला
# दिन- शनिवार
🙏🙏🙏
सीमा कुछ दिनों से बहुत परेशान थी ,रह - रह कर उसे मोहन के प्रश्न कांटो की तरह चूभ रहे थे, पर करती भी, तो क्या करती? वह खुद भी अनपढ़ थी पाठशाला किसे कहते हैं? कम उम्र में ही सीमा की शादी रघु से हो गई ।रघु अक्सर काम के सिलसिले में बाहर ही रहता था ,उधर 1 साल में सीमा को एक प्यारा सा लड़का पैदा हुआ जो बिल्कुल कृष्ण के मनमोहक रूप की तरह लगता था 
सीमा ने उसका नाम भी मोहन ही रखा पर मोहन की तबीयत अक्सर खराब रहती थी डॉक्टरों को दिखाने पर उसे पता चला कि मोहन को मिर्गी की बीमारी है और यह मस्तिष्क में किसी गड़बड़ी के कारण होता है ,जिससे बार-बार दौरे पड़ते हैं ,डॉक्टरों ने साफ-साफ कहा की फिलहाल 10 वर्षों तक मोहन की देख भाल करने की ज्यादा आवश्यकता है, धीरे - धीरे बढ़ती उम्र के साथ मोहन की यह बीमारी भी ठीक हो जाएगी इसी वजह से सीमा ने मोहन का दाखिला स्कूल में नहीं करवाया ।
मोहन 6 वर्ष का हो चुका था अपने दोस्तों को स्कूल जाते एक साथ खेलते मस्ती करते देख उसके मन में भी पाठशाला जाने का विचार आया था और उसने इसी बारे में अपनी मां सीमा से बात की थी ,तभी से सीमा मोहन की तबीयत को लेकर ज्यादा ही चिंतित रहती थी।
कुछ दिनों बाद मोहन की मौसी रीता उसके घर आई मोहन ने अपनी मौसी से पूछा ?मौसी पाठशाला क्या होती है ? मौसी ने कहा बेटा पाठशाला वह पवित्र स्थान हैं ,जहां पर बहुत सारे बच्चे बिना किसी भेदभाव के एक ही छत के नीचे बैठकर एक साथ शिक्षा प्राप्त करते हैं , दूसरे शब्दों में पाठशाला को हम स्कूल भी कहते हैं ।
मोहन ने कहा, मौसी मुझे भी पाठशाला जाना है , मां को बोलो ना कि वह मुझे पाठशाला जाने दे।
दीदी क्या तुमने अभी तक मोहन का दाखिला स्कूल में नहीं करवाया ?सीमा तुम तो जानती हो ना रीता मोहन की तबीयत के बारे में ।
हो सकता है ,स्कूल जाने से, बच्चों के साथ खेल कूद करने से मोहन शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनेगा । शायद तुम ठीक कह रही हो तो हम कल ही गांव के स्कूल जाकर मोहन का दाखिला करवाएंगे तुम भी चलोगी रीता साथ में?
अगले दिन सुबह पाठशाला जाकर सीमा ने मोहन का दाखिला करवाया।अब मोहन भी बाकी बच्चों के साथ पाठशाला जाने लगा।

स्वरचित
आरती गुप्ता (अंतरा)
रायपुर छत्तीसगढ़

#लघुकथा_आयोजन..... पाठशाला (आ. अनिल मोदी जी)

कलम बोलती हे साहित्यकार मंच
तिथि 16 -04 -2022
विषय पाठशाला
विधा लघु कथा
हंसी खुशी भरा परिवार था, ना जाने ये क्या हुआ।
कोरोना की चपेट पिता का साया उठ गया।
माँ बेटा दो ही प्राणी, जीवन निर्वाह हो रहा।
चार घरो में काम कर बेटे के आने से पहले माँ घर की देहरी पर रहती खडी।
अधीर खड़ी है आज, मां देहरी पर, लाल मेरा आएगा।
गया है वह पाठशाला, पढ़ लिख कर वो आएगा।
मेरे सपनों का राजा है उम्मीद पे मेरे खरा उतरेगा, निश्चय ही सफलता पायेगा।
खूब पढ़ाऊंगी, होशियार बनाऊंगी,
दुनिया में रोशन नाम करेगा।
देश हित में काम करेगा, स्वदेशी स्वालंबन स्वच्छता का ख्याल करेगा।
वतन की खातिर जीना मरना, 
संस्कारों से ओतप्रोत बनेगा।‌
सपने बुनती, खड़ी देहरी, 
ना मालूम बेटा कब आया, घर के अंदर।
सपनों की दुनिया से बाहर निकली,
चूम लिया बेटे को अंक में भरकर।
लाल मेरा घर आया है,
 पहले हाथ मुंह धुलवाऊं।
खाना खिलाऊं,
फिर गृह कार्य करवाऊं।
पढ लिख अव्वल आये,
 ऐसा इंसान बनाऊं।
सारे जग का करे नेतृत्व, इतनी आभिलाशा चाहुं।

अनिल मोदी, चेन्नई

#लघुकथा_आयोजन... पाठशाला (आ. ममता यादव जी)

नमन मंच को 🙏🙇🙏
दिनांक : 16/04/2022
विधा : लघुकथा 
शीर्षक : "मेरी पाठशाला"

जीवन का सबसे अनमोल पल मेरी पाठशाला हुआ करती थी। पाठशाला को हम सब मंदिर के समान मानते थे। प्रतिदिन समय पर पाठशाला जाना मुझे बड़ा अच्छा लगता था। सबके साथ मिल-जुलकर पढ़ाई करना,रिसस में टिफिन झट से खतम करके दोस्तों के साथ कबड्डी खेलना बड़ा आनंददायक लगता था। रिसस में हम चार आने की दो मीठी चूरन और चार आने की दो काली चूरन खरीदकर चाटते थे। मुझे आज भी याद है कि मेरे पापा मुंबई से टेलीफोन पर मुझे अच्छे से पढाई करने और पाठशाला के सभी खेल-कूद में भाग लेने की हिदायत देते थे। गिल्ली डंडा मेरा सबसे पसंदीदा खेल था.....दादी के लाख मना करने और चिल्लाने के बावजूद भी मैं गांव के लड़कों के साथ गिल्ली डंडा खेलती थी। पाठशाला में सभी जाति-धर्म के बच्चों को समान दर्जा दिया जाता था। हम सब जमीन पर बोरिया बिछाकर बैठते थे। जमीन पर बहुत धूल मिट्टी रहती थी फिर भी हम प्राइमरी तक पीपल के पेड़ के छांव में बैठकर पढ़ते थे। संध्या पहर सूर्य के पश्चिम दिशा प्रस्थान होने पर हम सब वापस बोरिया-बस्तर लेकर पूर्व दिशा की ओर लाइन से बैठते थे। तब हम कलम या पेंसिल से नहीं बल्कि नरकट और स्याही से लिखते थे।कई मर्तबा तो स्याही की छींटे किसी के कपड़े पर चले जाने से छात्र या छात्रा रूठ जाया करते थे। मैं गुरुजी की प्रिय छात्रा थी। आज तारीख क्या है...... कौन सा दिन है........ हिंदी पुस्तक का कौन सा पाठ चालू है........ गणित में जोड़-घटाना,गुणा-भाग कहां तक हुआ है........सब मैं ही बताती थी। ऐसा नहीं कि गुरुजी बाकी सभी से नहीं पूछते थे....सबसे पूछ लेने के बाद अंत में मुझसे पूछते थे। गुरुजी प्रेम से हम सभी छात्राओं को देवी और भवानी कहकर बुलाते थे।
              हमारे गुरुजी बहुत बड़े दयावान थे.... वे कभी छात्राओं को अपने पवित्र हाथों या अपनी छड़ी से दंड नहीं देते थे। जब किसी प्रश्न का उत्तर एक छात्रा न दे और दूसरी दे दे तब उस दूसरी छात्रा से पहली वाली को चार मुक्का कसकर मारने का आदेश देते थे और जिस दिन जब किसी भी प्रश्न का कोई भी छात्रा उत्तर नहीं दे पाती थी तब मुझे ही सबको मुक्का मारना पड़ता था। मुक्का मारते-मारते मेरा तो हाथ दुखने लगता था तब एक साथ चालीस-पैंतालीस लड़कियों को मुक्का मारना कोई खाने वाली बात थी? खुशी की बात ये है कि जब किसी से मेरा अनबन हो जाता था न.... तब मैं उसे चार मुक्के को आठ के बराबर जोर से कसकर मारती थी और इससे मैं अपनी पूरी भड़ास निकाल लेती थी। अगर हम धीरे से किसी को मुक्का मारते थे तो गुरुजी बोलते थे कि.....जोर से मारो देवी नहीं तो तुम मेरी छड़ी से मार खाओगी। पता है कबड्डी खेलते समय मेरी विरोधी टीम को मैं सांस टूटने पर भी खूब जमकर दबाए रखती थी। गुरूजी ने एक और अनोखा नियम बनाया था...... यदि कोई दो छात्रा पाठशाला में गुरूजी के गैर मौजूदगी में किसी बात पर लड़ाई झगड़ा किया हो तो.......गुरूजी उन दोनों की चोटी एक-दूसरे से कसकर बांध देते थे । छात्रों को गृह कार्य न करने व मार-झगड़ा करने पर उनको मुर्गा बनवाते थे या फिर एक टांग पर धूप में खड़े रहने का दंड देते थे। पाठशाला की घंटी बजते ही सब बच्चे हंसी - खुशी बोरिया-बस्तर लेकर अपने-अपने घर चले जाते थे। पाठशाला में हर शनिवार को चौरसिया गुरुजी चित्रकला बनवाते थे और गीत-भजन आदि करवाते थे। उन दिनों मुझे घर के सदस्यों से और पाठशाला में गुरूजनो से बड़ा प्यार मिलता था। आज भी उन दिनों की सुनहरी स्मृतियां मेरे हृदय को हजार मन खुशियों से भर देती है।

ममता यादव ✍️ मुंबई
स्वरचित मौलिक रचना

#लघुकथा_आयोजन.. पाठशाला (आ प्रीति शर्मा"पूर्णिमा" ज़ी)

जय शारदे माँ 🙏🙏
नमनमंच संचालक
कलमबोलतीहै साहित्य समूह।
विषय - पाठशाला।
विधा - लघुकथा।
स्वरचित।

पच्चीस वर्षीय रेखा चार बच्चों की मां थी और कोठियों में झाड़ू पौंछा,बर्तन करके अपना गुजारा कररही थी।उसने रीमा जी की कोठी में भी काम पकड़ा हुआ था।रीमा स्वयं अध्यापिका थी और रेखा के काम और व्यवहार से संतुष्ट भी अतः वह उसे हमेशा अच्छी सलाह दिया करतीं। 
एक दिन रीमा ने देखा रेखा अपनी नौ दस साल की बेटी को अपने साथ लेकर आई है। 
 रीमा जी ने अचानक से पूछ लिया रेखा अपनी बेटी को नहीं पढ़ाती क्या.? 
कहां आंटी, मैं काम पर आ जाती हूं मेरे पति भी काम पर चले जाते हैं और यह अपने छोटे भाईयों की देखभाल करती है।
यह तो गलत बात है रेखा..पढने की उम्र में तू इसे घर में काम ले रही है। तू कितनी पढी है..? 
मैं तो आंटी पढ़ी नहीं किसी ने पढ़ाया ही नहीं,कुछ निराशा भरे स्वर में रेखा बोली। 
तुम पढ़ नहीं पाई तो क्या हुआ,अपनी बेटी को तो पढ़ा सकती है ना..
वो झुग्गी पर भी कोई कोई कभी आते हैं आंटी तो शाम को ये चली जाती है। वो टाफी बगैरह भी देते हैं... खुशी होते हुये रेखा बोली। 
रीमा उसकी नादानी पर मुस्कराई। 
वो तो नियमित पढाई नहीं हुई ना। तुझे पता है सरकारी स्कूलों में कितनी सुविधाएं हैं।दोपहर का खाना,किताब कापी, ड्रेस सब कुछ तो मिलता है।और खाता खुलवाकर खाते में हर महीने पैसे भी। तू इसका दाखिला करा दे... रीमा उसे पढाने के फायदे समझाने लगी। 
अच्छा आंटी इतना कुछ मिलता है...सुनकर हैरानी से रेखा बोली।
और क्या... ऊपर से तुझे डर भी नहीं रहेगा कि झुग्गी झोंपड़ी में तेरी बेटी अकेली है।
रीमा ने उसकी बेटी नेहा से पूछा, 
तुझे पढ़ना अच्छा लगता है..? 
हां आंटी... कभी-कभी जब झुग्गी में पढ़ाने आते हैं तो मैं भी में बैठ जाती हूँ। 
तुझे कुछ लिखन आता है..? 
हां 
तो दिखा। 
नेहा ने वर्णमाला लिखकर दिखाई हालांकि उसमें कुछ गलतियां थीं। 
तब रीमा ने रेखा को समझाया, 
तू नहीं पढी,इसका मतलब यह तो नहीं अपने बच्चों को भी नहीं पढायेगी।देख आज के समय में पढ़ना लिखना बहुत जरूरी है।किसी तरह अगर तेरे बच्चे दसवीं बारहवीं कर गये तो इनका भविष्य बन सकता है।छोटी-मोटी नौकरी मिल सकती है नहीं तो प्राइवेट नौकरियां भी बहुत हैं।कम से कम मजदूरी तो नहीं करेंगे।अगर यह पढ़ लिख जाएंगे तो आगे अपने बच्चों को भी पढ़ायेंगे नयी राहदिखाएंगे।
बात रेखा की समझ में आई पर आजकल करके टालती रही तब रीमा को लगा ये काम तो खुद करना होगा। रेखा शायद स्कूल जाने में झिझक रही है और अगले दिन ही रेखा रीमा के साथ स्कूल गयी।
 रीमा ने वहां के हेडमास्टर को अपना परिचय दिया और बात की और फिर रेखा के बेटी की उम्र देखकर दूसरी कक्षा में और छोटे बेटे का प्ले में दाखिला वहां करा दिया। 
अब रेखा ने अपनी बेटी का ट्यूशन भी लगा दिया है ताकि वह बाकी बच्चों के सामने कमजोर ना रहे। एक मैडम रीमा के पड़ोस में ही रहती है और उसने रेखा से ट्यूशन फीस लेने से भी मना कर दिया।
  रेखा के बच्चों को भविष्य मिला है और उसने रीमा से वायदा किया है कि अगले साल जब सबसे छोटा बेटा चार साल का हो जायेगा तब उन दोनों बेटों को भी स्कूल में भेजेगी।
   रीमा का सोचना है कि जीवन ही सच्ची पाठशाला है और शिक्षा के प्रति जागरूकता फैलाना ही पाठ ग्रहण करना है।अगर हम पाठशाला में पढ़ लिख कर भी किसी के काम नहीं आए तो क्या फायदा..? ज्ञान की रोशनी दूसरों को पहुंचाना ही पाठशाला अर्थ को सार्थक करता है। 

प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
16/04/20226

रचनाकार :- आ. संगीता चमोली जी

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