#कीमत
थाली की कीमत
वर्मा जी अपने बहू बेटे के यहां मुम्बई आये थे। एक महीने पहले ही पत्नी नही रही, अपने पुराने घर मे उदास बेचैन से रहते थे। इसी कारण बेटा जिद करके शहर ले आया।
शुरू में तो माहौल बदला तो छोटे आकाश के साथ मन बहल जाता था।
कुछ दिनों बाद देखा, सुबह ही बहू, बेटा, आकाश सब अपने अपने आफिस और स्कूल चले जाते। कुक नौ बजे रोटी सब्ज़ी बनाकर निकल जाती, वर्मा जी की आदत थी एक बजे लंच करने की, और वो उसी समय खाते थे। थोड़े दिन किसी तरह खाते रहे, यही सोचते रहे, जीने के लिए खाना भी पड़ेगा।
एक दोपहर को तो मोटी मोटी ठंडी रोटी खाते हुए, पत्नी की यादों में खो गए, आंखे कब पनीली हो गयी, ध्यान ही नही रहा। किसी न किसी बात पर पत्नी के ऊपर झुंझलाते रहते थे। जबकि वो रोज दाल, चावल, सब्जी, रायता, चटनी और सबसे बढ़िया नरम गरम रोटियां खिलाती थी, उस समय उस थाली की कीमत उन्हें नही समझ आती थी। शादीशुदा चालीस वर्ष तक दिन रात दोनो समय पत्नी गरम रोटी ही बनाती और प्रेम से परोसती रही। आज उन्हें ध्यान आया कि वो थाली अनमोल थी, शायद उन्हें कभी नसीब नही होगी।
बड़े शहरों में लोगो के पास समय ही नही है, जब समय होता है तो बाहर जाकर पिज़्ज़ा बर्गर खाना याद आता है।
रात को वर्मा जी के सपने में पत्नी आयी और बोली, सुनो, वहीं चलो न अपने घर, वो रमिया से अपने पसंद का खाना बनवाना, और उस प्यारे से घर के हर कोने में मुझे महसूस करना, मन लग जायेगा। यहां भी तो दिन में अकेले ही रहते हो।
और वर्मा जी ने दूसरे दिन टिकट बनवा लिया।
स्वरचित
भगवती सक्सेना
धन्यवाद उमा जी 🙏🙏
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