#विषय -पाठशाला
#विधा लघुकथा
#दिनांक- 16/04/22
शर्मा जी जाने-माने धनी व्यक्ति थे। उनके यहांँ एक ड्राइवर काम करता था। शर्मा जी का बेटा जिस स्कूल में पढ़ता था,वहीं ड्राइवर का भी बेटा पढ़ता था।
शर्मा जी को अपने धनी होने का बहुत ही गुमान था और उनका बेटा भी एकदम उन्हीं की तरह था।
दोनों एक ही स्कूल में थे,वो ड्राइवर के बेटे का स्कूल में मजाक उड़ाया करता था, "अरे इसके पिता मेरे यहांँ ड्राइवर है!"
एक बार स्कूल में कोई फंक्शन था। सभी छात्र छात्राएं मंच पर कार्यक्रम कर रहे थे।
ड्राइवर का बेटा राहुल का प्रदर्शन बहुत ही अच्छा हुआ।
शर्मा जी के बेटे को भी पुरस्कृत किया गया।
पर मंच पर पुरस्कार लेते समय ड्राइवर के बेटे राहुल ने अपने सभी शिक्षक,शिक्षिकाओं का अभिवादन किया, चरण स्पर्श किया और उनके सम्मान में कुछ शब्द कहे।
उसी जगह शर्मा जी का बेटा बिना कुछ कहे पुरस्कार लेकर अपनी जगह पर चला गया।
राहुल के इस गुण से उसके स्कूल के प्रधानाध्यापक खुश होते हुए मंच पर बोले,"आज राहुल के इस व्यवहार से मैं बहुत ही खुश हुआ हूंँ,भले ही हम पाठशाला में सीखने आते हैं, पर हमारी पहली पाठशाला हमारा घर होता है,और शिक्षक माता-पिता, और राहुल ने इसका परिचय दिया है!"
सभी अभिभावक तालियां बजा रहे थे और शर्मा जी स्तब्ध बैठे सुन रहे थे।
स्वरचित अनामिका मिश्रा
झारखंड जमशेदपुर
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