कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक ---539
विषय. .धूप
विधा कविता
दिनांक 18/1/2023
दिन बुधवार
संचालिका आद सुनीता चमोली जी
शीत ऋतु की प्यारी धूप
सबके मन को भाती धूप।
धूप बिना न चलते काम ,
धूप से मिलता सबको आराम।
सुबह जब निकलती धूप ,
बैठ जाते आँगन में सब।
करते पढ़ाई बैठ कर सब,
दादा चुस्की लेते चाय की।
धूप छोड़ने का मन न होता।
धूप से मिलता विटामिन डी.
धूप में बैठ कर दादी भाभी
बुनती स्वेटर।
सभी उठाते लुप्त धूप का ,
होती हड्डियां मजबूत।
गर्मी की धूप लगती तेज
आता सारे बदन में पसीना ,
नहीं किसी को भाती धूप।
बारिश में मुश्किल से. ,
निकलती धूप।
कभी कभी मिलती है धूप।
सबको प्यारी लगती धूप ,
सबके मन को भाती धूप।
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित।
नरेन्द्र श्रीवात्री स्नेह
बालाघाट म प्र
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