तिथि 16 -04 -2022
विषय पाठशाला
विधा लघु कथा
हंसी खुशी भरा परिवार था, ना जाने ये क्या हुआ।
कोरोना की चपेट पिता का साया उठ गया।
माँ बेटा दो ही प्राणी, जीवन निर्वाह हो रहा।
चार घरो में काम कर बेटे के आने से पहले माँ घर की देहरी पर रहती खडी।
अधीर खड़ी है आज, मां देहरी पर, लाल मेरा आएगा।
गया है वह पाठशाला, पढ़ लिख कर वो आएगा।
मेरे सपनों का राजा है उम्मीद पे मेरे खरा उतरेगा, निश्चय ही सफलता पायेगा।
खूब पढ़ाऊंगी, होशियार बनाऊंगी,
दुनिया में रोशन नाम करेगा।
देश हित में काम करेगा, स्वदेशी स्वालंबन स्वच्छता का ख्याल करेगा।
वतन की खातिर जीना मरना,
संस्कारों से ओतप्रोत बनेगा।
सपने बुनती, खड़ी देहरी,
ना मालूम बेटा कब आया, घर के अंदर।
सपनों की दुनिया से बाहर निकली,
चूम लिया बेटे को अंक में भरकर।
लाल मेरा घर आया है,
पहले हाथ मुंह धुलवाऊं।
खाना खिलाऊं,
फिर गृह कार्य करवाऊं।
पढ लिख अव्वल आये,
ऐसा इंसान बनाऊं।
सारे जग का करे नेतृत्व, इतनी आभिलाशा चाहुं।
अनिल मोदी, चेन्नई
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