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शनिवार, 7 जनवरी 2023

रचनाकार :- आ. अरविन्द सिंह "वत्स" जी.. तांटक छंद में गीत



नमन-------कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक-----------------------534
विषय-------------------------चित्रलेखन
तिथि---------------------07/01/2023
वार-----------------------------शनिवार
विधा-----------------तांटक छन्द में गीत
मात्राभार------------------------16,14

                           #बचपन

बचपन  का वो वक्त निराला,खेल खिलौने भाते थे।
गली मुहल्ला गाँव शहर में,मिल कर धूम मचाते थे।।

बाल  उम्र  की  बात  निराली,गणना  थी शैतानों में।
चिन्ता  कभी  न  मन  में रहती,दिखते थे मैदानों में।।
खेल  खेलकर  अमराई  में,लौट सदन को आते थे।
बचपन  का वो वक्त निराला,खेल खिलौने भाते थे।।

चोरी - चोरी  चुपके - चुपके,घुस  जाते  थे पानी में।
हँसी  ठिठोली दिल को भाती,रत रहते मनमानी में।।
आम तोड़कर घर लाते थे,मिलकर जामुन खाते थे।
बचपन  का वो वक्त निराला,खेल खिलौने भाते थे।।

हाथ पकड़कर निज मित्रों का,धूल लगाते गालों में।
जब  बर्षा का मौसम आता,मछली पकड़ें तालों में।।
साथ - साथ  हम  पढ़ने  जाते,बैठ मेड़ पर गाते थे।
बचपन  का वो वक्त निराला,खेल खिलौने भाते थे।।

वक्त  शाम  का जब आ जाता,द्वारे पर चिल्लाते थे।
अगर  न  आते  मित्र समय पर,देरी पर झल्लाते थे।।
गिल्ली डण्डा और कबड्डी,मिल कर खेल रचाते थे।
बचपन  का वो वक्त निराला,खेल खिलौने भाते थे।।

मम्मी  पापा  से  दुलराते , कभी  नहीं  शरमाते  थे।
आज्ञाकारी  बन  जाते  थे,पाकर  धन  इतराते  थे।।
चाट  समोसा  और  मिठाई,खाकर मौज उड़ाते थे।
बचपन का वो वक्त निराला,खेल खिलौने भाते थे।।

अरविन्द सिंह "वत्स"
प्रतापगढ़
उत्तरप्रदेश

2 टिप्‍पणियां:

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