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रोते - बिलखते दुनिया में आकर,
सुनहरे सपनों के पंख लगाकर।
बचपन की गलियारों से होकर,
स्वर्णिम जीवन की आस लगाकर।
नटखट सलोने बचपन की याद,
अब रमता है मेरे तन - मन में।
कितना सरल कितना निश्छल,
वो प्यारा बचपन था जीवन में।
कागज़ की कश्तियां बनाना,
मिट्टी ले खिलौनों संग खेलना,
बारिश के पानी में छपाक लगाना,
सखी-सहेलियों संग मेला देखना।
फूलों सा था वो नाज़ुक बचपन,
कितना सुखमय था मेरा बचपन।
गुज़रे लम्हों का खुशनूमा बचपन,
आज भीगा है यादों का अंतर्मन।
ममता यादव ✍️
मुंबई महाराष्ट्र
स्वरचित एवं मौलिक रचना
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