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गुरुवार, 12 जनवरी 2023

रचनाकार :- आ. ममता झा जी, शीर्षक :- प्रेम तपस्या और साधना


नमन कलम बोलती है साहित्य समूह 
विषय क्रमांक-536
विषय-प्रेम तपस्या और साधना
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मैं भील जाति की सबरी की तपस्या संग साधना जो राम के लिए की थी उसपर कविता लिख रही हूँ। 

जाति-धर्म का भेदभाव मिटाता राम सबरी संवाद,
भीलनी की श्रद्धा भक्त से मिलने गए रघुनाथ। 
मतंग मुनि के आश्रम में रहती थी सबरी लाचार, 
सेवा करके मुनि गण का बन गई वो उच्च विचार। 

गुरू के आज्ञानुसार सबरी नित्य राम भजती थी,
राह निहारे फूल बिछाकर बेर चखकर एकत्र करती थी।
ऐसी भक्तिमय दृश्य सिर्फ रामायण में ही मिलती है,
प्रभू का भोग मीठा हो इसलिए चख चख कर बेर रखती है।

एक दिन राम मतंग वन पधारें जानकी पता लगाने को,
दूर से ही आते देखी सबरी सुन्दर दो बालक अंजाने को।
पास आकर राम ने पूछा क्या आप माता सबरी हैं,
विनम्र आवाज सुन माता समझ गई मेरे प्रभु श्रीराम यही हैं।

भावविभोर हो अपलक निहारती चरण पखारे अश्रुजल से,
जन्म आज सफल हो गया राम तुम्हारे दर्शन से।
झूठे बेर जो चख कर रखी थी दी राम लखन को खाने को,
प्रेम से खाए राम, लखन फेक दिए समझें न भावनाओ को।

राम निराश हो कहे लखन से श्रद्धा को कभी अस्वीकार न करना,
भाव का मोल चुकाना कठिन है ये बात हमेशा याद रखना।
रामायण प्रेम पाठ पढ़ाती, ऊँच-नीच भेद-भाव मिटाती है,
भील सबरी तर गई प्रेम अर्पण कर अंत में  स्वर्ग जाती है ।
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ममता झा
डालटेनगंज

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