कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय- कीमत
विधा- दोहे
दिनांक- 04/01/2023
कीमत समझो वक्त की, करें वक्त पर काम।
वरना निश्चित मानिए, मिलता है अंजाम।।
कीमत समझो वक्त की, करें न वक्त व्यतीत।
पछताना ही हाथ फिर, कभी न मिलती जीत।।
कीमत समझो वक्त की, वक्त सदा सरताज।
चुग जाने के बाद फिर, उगता नहीं अनाज।।
कीमत समझो वक्त की, वक्त सदा बलवान।
जिसने भी की कद्र नहीं, उसकी बिखरी शान।।
कीमत समझो वक्त की, करें नहीं बेकार।
जाने पर इसके गुजर, केवल मिलती हार।।
कीमत समझो वक्त की, जिसने लिया सॅंभाल।
हो जाता फिर वो बहुत, सचमुच मालामाल।।
कीमत समझो वक्त की, रहता नित खामोश।
फिसले बालू की तरह, और उड़ाता होश।।
कीमत समझो वक्त की, करना नहीं घमंड।
वैसे तो ये शांत पर, इसका ताप प्रचंड।।
कीमत समझो वक्त की, जिसने रक्खा मान।
उसको नित मिलती रही, दुनिया में पहचान।।
कीमत समझो वक्त की, इसके कल अरु आज।
यह फिसले ज्यों हाथ से, गिरती है फिर गाज।।
कीमत समझो वक्त की, इसे न समझें आम।
वक्त न ज़ाया कीजिए, इसके सभी गुलाम।।
कीमत समझो वक्त की, राजा रंक फकीर।
वापस आता फिर नहीं, ज्यों तरकश से तीर।।
रूपेन्द्र गौर, इटारसी, मप्र,
स्वरचित एवं मौलिक,
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