कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय :पाठशाला
क्रमांक संख्या 423
आज की कहानी पाठशाला से शुरू होती है जिसे जीवन में पाने के लिए मैंने बहुत संघर्ष किया था पिता के ना रहने पर बहुत जल्दी मेरा विवाह भी हो गया उसके पश्चात एक बेटी बेटा मेरी गोदी में हो गया समय गुजरता रहा और मैं अपने बच्चों के लालन-पालन में लगी रही एक दिन जब मैं अपने मायके गई तो मैंने देखा पास के इंटर कॉलेज एनटीटी कोर्स करने के लिए फार्म रखे थे मैंने फार्म भरे और मेरा सिलेक्शन हुआ उसके बाद में मैंने ठाना कि मुझे एक सरकारी नौकरी करनी है उस पाठशाला में जाना है जहां पर बच्चे गांव के पढ़ने आते हो मेरे मियां बी,एड किया m.a. किया और उसके पश्चात जमकर पढ़ाई की इसके पश्चात एक गांव की सुदूर सुंदर से गांव मैं मेरी पोस्टिंग हो गई वह गांव जितना सुंदर था इतनी सुंदर मां के बच्चे भी थे उन प्यारे बच्चों ने मेरा मन मोह लिया और मैं आराम से लग्न के भाव से उस पाठशाला में पढ़ाने लगी मेरे पढ़ायेबच्चे लगभग सभी प्रतियोगिता में भाग लेते थे मैं उनकी अध्यापिका के साथ-साथ उनकी स्थिति बन गई थी धीरे-धीरे समय बता और वो पाठशाला मेरा जीवन बन चुके सच कहूं शिक्षिका बनना और उस पाठशाला में मुझे पढ़ाना आज भी मेरे लिए गौरव की बात है
अंजू श्रीवास्तव देहरादून
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