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रविवार, 15 जनवरी 2023

रचनाकार :- आ. अरविन्द सिंह "वत्स"जी, शीर्षक :-मकर संक्रांति,डोर,उड़े,गुड़ तिल(सार छन्द में गीत)




नमन-------कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक-----------------------537
विषय-----मकर संक्रांति,डोर,उड़े,गुड़ तिल
तिथि---------------------11/01/2023
वार------------------------------बुद्धवार
विधा--------------------सार छन्द में गीत
मात्राभार-------------------------16,12

       #मकर_संक्रांति_डोर_उड़े_गुड़_तिल

दिनकर  आते  उतरायण  में,हम त्योहार मनाते।
भाईचारा भू पर दिखता,खिचड़ी मिलकर खाते।।

द्वारे  खड़ा  मकर संक्रांति ये,पावन पर्व सुहाना।
तरह - तरह के व्यंजन बनते,लगता है मस्ताना।।
नया-नया सब वस्त्र पहनते,प्यारा तन महकाते।
दिनकर आते  उतरायण  में,हम त्योहार मनाते।।

बिके  खूब  बाजारों में है,गुड़ तिल लाई चिउरा।
खूब भीड़ हो दूकानों पर,लगता मस्त पिटियुरा।।
दूकानों पर सब व्यवसायी,खाद्य पदार्थ सजाते।
दिनकर  आते  उतरायण में,हम त्योहार मनाते।।

उड़े पतंग जब नभ की ओर,रहती कर में डोरी।
गगन  मार्ग  में  लगें  निगाहें,धूम मचे हर ओरी।।
अद्भुत  दिखे नजारा नभ में,कर से डोर बढ़ाते।
दिनकर आते  उतरायण में,हम त्योहार मनाते।।

मौज उड़ाने लोग निकलते,खा तहरी भिनसारे।
डोर  पकड़  कर  मैदानों में,बच्चे खड़े किनारे।।
हार  जीत की बाजी लगती,दर्शक दृष्टि लगाते।
दिनकर आते  उतरायण में,हम त्योहार मनाते।।

जैसे - जैसे  सन्ध्या होती,रवि की जाती लाली।
भीड़  न  हटती मैदानों से,दिखती बदरी काली।।
लेता मौसम भी अँगड़ाई,दिनकर बहुत छकाते।
दिनकर  आते उतरायण में,हम त्योहार मनाते।।

अरविन्द सिंह "वत्स"
प्रतापगढ़
उत्तरप्रदेश

1 टिप्पणी:

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