जय माँ शारदे
नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
#दैनिक विषय क्रमांक - 540
दिनांक - 20/01/2023
#दिन : शुक्रवार
#विषय - बहादुरी
#विधा - लघु कथा
#संचालिका - आ. सुमन तिवारी जी
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नन्नू अपने माता पिता की लाडला बेटा था।
नन्नू कक्षा पांचवी का छात्र था। नन्नू पढ़ने लिखने में तेज था। उसके माता पिता ने उसे अच्छे संस्कारों से सुसज्जित किया था। रोज रात को सोने से पहले और सुबह शीघ्र उठने से पहले वह माता पिता के चरण छूकर आशीर्वाद लेना नहीं भूलता था। उसके माता पिता को उस पर गर्व था।
नन्नू आज गणतंत्र समारोह में अपनी बहादुरी का पुरस्कार लेने के लिए अपने माता पिता के साथ आया था। नन्नू के नन्हीं आंखों के आगे वह वाक्या बार-बार आकर गुजर रहा था, जिस दिन उसने बुजुर्ग व्यक्ति की जान बचाई थी।
स्कूल से लौटते वक्त नन्नू बहुत खुश था। बहुत दिनों की मिन्नतों के बाद उसके पिताजी ने उसे स्कूल का नया बैग दिलवाया था। जब भी वह अपना फटा पुराना बैग स्कूल लेकर जाता था, उसके सहपाठी उसे चढ़ाते थे। नन्नू रोज घर वापस आकर अपनी मां से नया बैग दिलवाने के लिए कहता था। आज
नन्नू के कंधे पर नया बैग लटका हुआ था, जिसे थोड़ी थोड़ी देर में वह मुड़ कर पीछे देख रहा था, और अपने आप पर इतरा रहा था। नन्नू आज खुशी से फूला नहीं समा रहा था।
इसी उधेड़बुन में नन्नू जब सड़क पार कर रहा था, तो उसने देखा कि एक बुजुर्ग व्यक्ति जो उसके आगे सड़क पार कर रहा था, नन्नू को पीछे से तेज गति से आती हुई बस दिखाई दी, उस बुजुर्ग के बिल्कुल नजदीक आ चुकी थी। राह चलते सब लोगों को लगा कि बस उस बुजुर्ग व्यक्ति को कुचल देगी। अचानक नन्नू के मन में न जाने क्या ख्याल आया कि उसने तेजी से दौड़ कर उस बुजुर्ग व्यक्ति को एक जोर का धक्का दिया, जिससे वह बुजुर्ग व्यक्ति बहुत आगे जाकर गिर गया, पीछे से दौड़ता आया नन्नू भी तेज गति से फिसल कर गिर गया। बस तेजी से निकलकर जा चुकी थी। नन्नू उठ खड़ा हुआ, बुजुर्ग व्यक्ति के पास आया और उसे सहारा देकर उठाया। नन्नू ने नम्रता से उस बुजुर्ग व्यक्ति से पूछा कि उसको कोई चोट तो नहीं लगी है। उस बुजुर्ग व्यक्ति ने नन्नू से कहा कि उसे कोई चोट नहीं लगी है। तब तक भारी भीड़ इकट्ठी हो चुकी थी। भीड़ में से एक युवक ने नन्नू को उठाया, साथ में उसका बैग उठाकर उसे दिया। नन्नू के स्कूल ड्रेस के कपड़े उस जगह से फट गए थे, आप ही बैग रगड़ खाकर, आगे की तरफ से फट गया था। वहां खड़े सभी लोगों ने नन्नू के बहादुरी की प्रशंसा की। घर पहुंचकर नन्नू ने सारी बात अपने परिवार वालों को बताई। सभी को उसकी बहादुरी पर गर्व था।
नन्नू का स्वप्न तब टूटा, जब नन्नू का नाम पुरस्कार के लिए पुकारा गया। अपना नाम सुनकर नन्नू अपने माता पिता के साथ अपना पुरस्कार प्राप्त करने के लिए पहुंचा। गवर्नर साहब ने नन्नू को गोदी में उठा कर लाड़ से सराहा, फिर नीचे उतार कर नन्नू और उसके पिता से हाथ मिला कर, उसकी माता को प्रणाम कर नन्नू के नन्हें-नन्हें हाथों में पुरस्कार प्रदान किया। मैदान में तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी थी। वहां हर शख्स नन्नू की बहादुरी की तारीफ कर रहा था।
मौलिक और स्वरचित
जगदीश गोकलानी "जग, ग्वालियरी"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
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