जय माँ शारदे
साथ
1222- 1222- 1222- 1222
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बुढ़ापे मे कभी भी साथियाँ का साथ मत छूटे ।
बँधी जो डोर जीवन की न वो मँझधार मे टूटे ।।
लिये जो सात फेरे साथ मे जीवन बिताने हित,
मिलाकर हाथ हाथों मे मधुर जीवन सफर बीते ।
दुवा रब से यही दिन-रात सच्चे दिल से हो यारो,
मिलन पल संगिनी का हो भले संसार ये रूठे ।
बुढ़ापे के सफर मे गर युगल बिछुड़न के पल देखे,
लगे ऐसा सुनों घट पाप का आकर बड़ा फूटे ।
अँधेरा ही अँधेरा बन जहां शमशान सा लागे,
सभी अपने सगे रिस्ते समझ मे आते हैं झूठे ।
जवानी से बुढ़ापा तक बिते सुख-दुख के संगम मे ,
रहें हिल-मिल के जो 'राही' वही तो जिंदगी जीते ।
राकेश तिवारी "राही"
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