🇮🇳🙏🏻#कलम✍️ बोलती है साहित्य समूह🙏🏻🇮🇳
#दिनांकः २६.०१.२०२३
#वारः गुरुवार
#शीर्षकः 💐🇮🇳गणतंत्र दिवस 🇮🇳💐
कोटि कोटि कुर्बानियाँ,हुआ देश स्वतंत्र।
लूट मची है देश में ,खतरे में गणतंत्र ।। १।।
बना वतन गणतंत्र अब,हुआ बहत्तर साल ।
विकसित जन नेता हुए,जनता है बेहाल।। २।।
सभी दुहाई दे रहे , संविधान दिन रात।
जाति धर्म भाषा लड़े, देश विरोधी बात।।3।।
पाकिस्तानी पे फ़िदा, सब नेता हैं आज।
किसी तरह सत्ता मिले,फिर लूटें मिल राज।।४।।
रूहें होंगी रो रहीं,कुर्बानी पे आज। ,
गोरों से भी विकट अब ,देखे देश समाज।।५।।
हो समाज समता प्रजा,मिले मूल अधिकार।
एक पिरोयी बन्धुता,हो भारत आधार ।।६।।
थी दुरूह स्वाधीनता,ले लाखों बलिदान।
पराधीन जंजीर से,जकड़ा हिन्दुस्तान।।७।।
सब जन हित सुख भाव हो,पूर्ण धरा परिवार।
सब शिक्षित हों देश में,जाग्रत हो सरकार ।।८।।
रक्षा करना है कठिन,विभीषणों से आज।
सभी स्वार्थ तल्लीन हैं,बाँट रहे समाज।।९।।
गाएँ मिलकर साथ में,अमर रहे गणतंत्र।
तन मन धन अर्पित करें,भगा दूर षडयंत्र।।१०।।
निर्भय शिक्षित बेटियाँ,मिले साम्य अधिकार ।
तभी देश उत्थान हो,बचे सुता संसार।।११।।
पुकारती माँ भारती,युवावर्ग फिर जाग।
अपनों से घायल वतन,बचा कोख की लाज॥१२॥
संविधान रक्षण कठिन,बस सत्ता पद चाह।
सार्वभौम गणतंत्र में ,युवा बने गुमराह॥१३॥
अधिनायक जन गण वतन,लोकतंत्र अभिराम।
समरसता सद्भावना,आज हुई बदनाम॥१४॥
रचनाकारः डा. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नई दिल्ली
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