कलम बोलती है समूह
क्रमांक 424
दिनांक 16.04.22
विषय – पाठशाला
विधा- लघु कथा
करोना काल-- भयावह ,डरावना काल
सब बंद, इंसान भी ----कभी सोचा ना था भागती दौड़ती ज़िंदगी यूँ ही बस रुक जाएगी
धीरे धीरे जिंदगी पटरी पर आने लगी
तो सुमन हमारी कामवाली बाई भी लौट आयी
कुछ परेशान सी रहने लगी पति भी वापिस काम पर लौट गया था भले ही कुछ तनख़्वाह कम पर , बच्चे भी पहले तो पाठशाला जाते थे। अब घर पर रहकर पढ़ने लगे ।
पर सुमन परेशान ही रहती बार बार पूछने पर एक दिन
सुमन ने चाय पीते हुए बताया उसे फ़ोन की आवश्यकता है क्यूँकि अब बच्चे पाठशाला नहीं जा सकते- पढ़ाई फ़ोन पर ही होगी , मेरे पास ना तो वैसेवाला फ़ोन है ना ही मुझे चलाना आता है ना ही इतने पैसे है कि मैं नया फ़ोन ख़रीद कर बच्चों को दे सकूँ ताकि उनकी पाठशाला की पढ़ाई फ़ोन पर ही हो जाये ।
एक साँस में सब बोल गई सुमन और रोने लगी ये कैसी मुसीबत आन पढ़ी है दीदी क्या होगा ग़रीबों का?? भगवान भी हम ग़रीबों को ही सताते हैं।
ऐसा नहीं है सुमन -मैंने उसे ढाँढस बांधते हुए समझाया ये समय ही ऐसा है पूरी दुनिया ही परेशान है।
मेरे बच्चों ने ये बात समझी और अगले दिनसुमन को अपने बच्चों के साथ आने को कहा
अगले दिन सुमन दोनों बच्चों संग उपस्थित थी
बच्चों ने अपना मोबाइल दिया, चलाना भी सिखाया
अब सुमन के बच्चे मोबाइल पाठशाला में जाने लगे😊
मैं भी ख़ुश थी कि मेरे बच्चों ने भी सही पाठशाला से पढ़ाई की है साथ ही आज वो ज़िंदगी की पाठशाला में भी ऊतीर्ण हो गये थे।
स्वरचित एवं मौलिक
मोनिका(मीनू)
16.04.22
Wah wah ..khoob
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