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मंगलवार, 18 अप्रैल 2023

रचनाकार :- आ. संगीता चमोली जी






नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समुह
 विषय साहित्य सफर
 विधा कविता

दिनांक 17 अप्रैल 2023

महकती कलम की खुशबू नजर अलग हो,
साहित्य के सफर की झलक अलग हो,
दस्तख सफर में दी, तो हमने देखा,
सहयोगी पहचान बनी तो आनंद अलग है,,

बड़े खुश हैं हम जीवन में सम्मान पाकर,
बड़े सुहाने नजारे हैं साहित्य सफर में आकर,
चलती रही कलम भाव विचार लिखकर,
रात दिन चलती रही  प्यारा साहित्य सफर,

भाव हकीकत लिखने की कोशिश मेरी रही है,
हर मानव को साहित्य  पढ़कर आनंद लेना है,
इस सफर में ज्ञान और सम्मान बढ़ता रहता है,
टूटी फूटी वाणी से गुणगान गाती रहती हूं !

सच्ची श्रद्धा तन मन से लिखकर समर्पित हूं,
साहित्य के सफर में उड़ान भरना भर्ती रहती हूं,
मां शारदे यही वरदान दे पहचान चाहती हूं,
शारदे की पूजा साहित्य संदेश देना चाहते हैं !

          स्वरचित
 संगीता चमोली उत्तराखंड

रचनाकार :- आ. तरुण रस्तोगी "कलमकार" जी


🙏नमन मंच 🙏
#कलम बोलती है साहित्य समूह 
#आयोजन संख्या ५७७
#दिनांक १८/०४/२३
#विषय सफ़र
#विधा छंद मुक्त कविता 

ज़िंदगी से मायूस न होना कभी गर्दिशों भी  मुस्कुराते रहो।
दुश्वारियां जीवन में बहुत है मगर मुश्किलों को अपनी  हटाते रहो।
इम्तहांँ जिंदगी ले रही आजकल मुश्किल जीना तेरा हो गया है यहां,
मार ठोकर हवा में उड़ते उसे राह अपनी सही तुम बनाते रहो।
रुकावटें मंजिलों में मिलेगी तुझे संकटों से भरा है तुम्हारा #सफर,
हौसले को अपने डिगाना नहीं लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाते रहो।
हालातों से कभी घबराना नहीं हार कर तुम्हें बैठ जाना नहीं!
जोश में होश अपना न खोना कभी तीर निशाने पर अपना लगाते रहो।
डगमगाए जो किश्ती भंवर में तेरी छोड़ देना नहीं अपनी पतवार को,
हौसले को तू अपने जगाना जरा नाव अपनी किनारे लगाते रहो।
ज़िंदगी से मायूस न होना कभी गर्दिशों भी  मुस्कुराते रहो।
दुश्वारियां जीवन में बहुत है मगर मुश्किलों को अपनी  हटाते रहो।

तरुण रस्तोगी "कलमकार"
मेरठ स्वरचित
🙏🌹🙏

सोमवार, 17 अप्रैल 2023

रचनाकार :-आ. नफे सिंह योगी मालड़ा जी



मंच को सादर नमन
दिनांक:- 14.04.2023
विषय क्रमांक:- 576
विषय:- सुकून यही है
विधा:- स्वैच्छिक 
शीर्षक:- बड़ा सुकून मिलता है...   

     कभी ऐसा किया, करो..बड़ा सुकून मिलता है...  

कभी ऐसा किया..कि फुर्सत के लम्हों में  किसी अपरिचित गरीब  के साथ बैठकर, एक साथ खाना खाया , उसकी संवेदनाओं को, मजबूरियों को, गरीबी को करीब से देखा... कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया..  कि सर्दी में रेलवे स्टेशन पर सोये अपंग, अपाहिज ,दुखी गरीब भिखारी को अपनी कम्बल उतार कर ओढ़ाया हो, कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया..कि अकेले बुजुर्ग के पास बैठ कर उसे गौर से सुना। उसकी आँखों में आँखें डालकर उसके जवानी के दिनों की कल्पना की, कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया.. कि जब माँ बैठी हो और आपने पूछा माँ पानी ले आऊँ,या कभी सुबह -सुबह सोयी हुई माँ को
चरण स्पर्श करके कहा ...लो माँ चाय पी लो, कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया.. कि खचाखच भरी बस में अकेली महिला शांत खड़ी हो और आपने कहा हो आओ माँ जी! यहाँ बैठिए, कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया.. कि गांँव में किसी गरीब की लड़की की शादी में गुप्त दान दिया और  सम्मान के साथ सिर पर हाथ रख  आशीर्वाद दे कर भावनाओं में बहे हो, कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया .. कि बुरी तरह हारी हुई, हताश टीम के पास जाकर कभी ये कहा आप बहुत अच्छे खेले, ये लो मैं तुम्हें खुश हो कर देता हूँ, कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया .. कि आप किसी सार्वजनिक इलाके से जा रहे थे और अपने देखा कि वहाँ बहुत ज्यादा प्लास्टिक बैग बिखरे हुए हैं, आप ने बिना हिचकिचाहट के उठाए, कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया .. कि दीपावली के अवसर पर लक्ष्मी पूजा के साथ-साथ गाँव के किसी शहीद की फोटो रख उसको भी तिलक लगाया हो, कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया.. कि रक्षाबंधन के त्यौहार पर किसी बिन भाई की बहन के घर जाकर सादर भाव से राखी बंधवाई हो और उसे हर उत्सव में सम्मानित किया हो। कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी  ऐसा किया.. कि शहीद दिवस पर अपने नजदीकी गाँव में शहीद स्मारक पर दीया जलाकर सल्यूट मारा, कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया.. कि बचपन के बूढे शिक्षक ,शिक्षिका जो हमें पढ़ाया करते थे।उनके पास जाकर चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लिया और बीते दिनों को याद किया,करो बड़ा सुकून मिलता है।

नफे सिंह योगी मालड़ा©®
महेंद्रगढ़ हरियाणा

रचनाकार :- आ अनामिका_वैश्य_आईना जी



शीर्षक - सुकून 

कहीं न कहीं तो मिलेगा, बस इसी आश में 
सब भटकते यहां है, सुकूं की तलाश में.. 

कर्म के तनाव जिम्मेदारियों के भार से परे निकल
आना चाहते हैं सब, सुकून के प्रकाश में.. 

सौंप करके सुकून को स्वयं को पूर्णतया सखी 
बदलना सभी को है यहाँ, बबूल से पलाश में..

बोझ सह न पा रहे हैं लोग वक्त के प्रहार से 
जिंदगी गुज़रना उन्हें है, सुकूनी अवकाश में..

सुकून के प्रेमी संघर्षों से रहते हैं बहुत दूर 
वो लोग विचरते हैं ख्वाबों के आकाश में..

सुकून यहीं है संतोष और भक्ति में पलता
आत्म में सुकून बसा है ढूँढते जहान में ..

#अनामिका_वैश्य_आईना
#लखनऊ

शुक्रवार, 31 मार्च 2023

रचनाकार :- आ. रजनी कपूर जी



नमन मंच🙏🙏
कलम बोलती साहित्य समूह
विषय -फूल और कांटे

सच और  झूठ के  क्या  मायनें किसको पता
कितने गुमनाम हीरे आए गए किसको पता 

पत्ता - पत्ता  हो रहा  जब पत्तझड़
बसंत बहार लिख पाए किसको पता 

झिलमिल तारों से सजा है आसमाँ
कितने  टूटे  है तारे  किसको पता 

रंगबिरंगे शोख से मुस्कुरातें से फूल
कांटो की पीड़ा है कितनी किसको पता 

कुछ अश्रु जो ठहरे है नयन कोरों मे
दर्द कितना समेटे नही ,किसी को पता 

रजनी कपूर
जम्मू

रचनाकार :- आ. प्रजापति श्योनाथ सिंह "शिव" जी



"नमन मंच"
क्रमांक:- 570
दिनांक :-31/03/2023
विषय:- फूल और कांटे
विधा:- गेय पद्य
                        "फूल और कांटे "
                      _-_-_-_-_-_-_-_-_

जीवन चार दिनों का ये,आ मिल खुशियां बांटें
कहीं मिलेंगे फूल तुझे ,कहीं गढ़े पग कांटे।

विधुना का कैसा खेला,समझ परे अनजाने
सुख की चाहत भाए मन , कंटक मनु अरि समाने
सुख , दुख की फुलवारी दुनिया, वर्ग भेद सब छांटें
कहीं मिलेंगे ---------

इक पादप की इक शाखा, महिमा निरख निराली
नजर एक पालक - पोषक, इक प्यास बुझाता माली
फिर भी पुष्पित कली -भली, सुगंध - गंध मन भाते।
कहीं मिलेंगे ---------

सुख का है संसार सभी, दुःख मन सभी उतारें
दुःख का ग्राहक नहीं बने, चुभ कंटक आह निकारे
लहरें मानो भवसागर ,संग उठे ज्वार व भाटे ।
कहीं मिलेंगे--------

रक्षा सुमन करें कंटक , संभल कर हाथ लगाना
मत तोड़ो ये भाई मेरा, खुशियों भरा फ़साना
"शिव" सम्मान समय का कर,मृदूलता दरद को सांटे।
कहीं मिलेंगे --------

प्रजापति श्योनाथ सिंह "शिव"
 महेशरा, अमरोहा,उ0प्र0
स्वरचित/मौलिक

गुरुवार, 30 मार्च 2023

रचनाकार :- आ. अरविंद सिंह वत्स जी

नमन--कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक------------------569
विषय-------------कटहल की सब्जी
तिथि----------------30/03/2023
वार-------------------------गुरुवार
विधा------------------------मुक्तक
मात्राभार--------------------13,11

               #कटहल_की_सब्जी

कटहल की सब्जी बनी,मुख में आया नीर।
सब्जी खाया माँग कर,कब था भाया क्षीर।
चटनी भी थी साथ में,लिया साथ में स्वाद-
सब्जी खाया सो गया,सकल मिटाया पीर।

उदर हुआ ये लालची,फिर खाने की चाह।
बची नहीं थी रात में,सब्जी बिन थी आह।
अन्तर्मन फिर माँगता,करता बहु आवाज-
सुने कौन इस शोर जी,वत्स न भाती राह।

अरविन्द सिंह "वत्स"
प्रतापगढ़
उत्तरप्रदेश

रचनाकार :- आ. अल्का बलूनी पंत जी

सोमवार, 20 मार्च 2023

रचनाकार :- आ. मिठू डे जी, शीर्षक :- बाल श्रम और बचपन


#कलमबोलतीहैसाहित्यसमूह 
#विषयक्रमांक564
#विषय-बालश्रम और बचपन 
#विधा- लघुकथा 
#दिनांक- 17/3/2023

अब रोटी कौन ?लाएगा भाई !!- अर्थी में लेटी माँ को एक टक देखतें हुए मुन्नी पूछ रही थी अपने आठ साल के बड़े भाई से!!
संजू बिलग बिलग कर रो रहा था!!अचानक बहन के इस सवाल से वो भी कुछ पल के लिए रोना भूल गया!!संजू!मुन्नी की तरफ़ पलट देखा तो देखा मुन्नी एक टक माँ की तरफ़ देखें जा रही है!उसकी आंखों में एक बूंद भी आंसू नहीं है एक अजीब सा सन्नाटा है !हाँ!!चेहरे पे एक अजीब सा भाव है!शायद रोटी की फिक्र!!
मुन्नी- भाई!माँ!तो मर गई अब रोटी कौन लाएगा?
संजू !बहन को गले लगाते हुए बोला- मैं  लाऊंगा!!

       आठ साल का संजू अपनी और अपनी बहन की पेट की आग बुझाने के लिए एक बीड़ी कारखाने में काम पर लग !!
धीरे-धीरे दम घूंटता माहौल में संजू नन्हे-नन्हे हाथो से बीड़ी के पत्तियों में तंबाकू लपेटना सिख गया!शायद उसकी किस्मत की लकीरे भी उस दम घूंटते माहौल में 
दम तोड़नें लगा!!
बचपन ना जाने कहाँ खो गया??

✍मिठु डे मौलिक (स्वरचित )

वर्धमान-वेस्ट बंगाल

मंगलवार, 14 मार्च 2023

रचनाकार :- आ. शशि मित्तल अमर जी, शीर्षक :- शीतलता




नमन मंच (कलम बोलती है साहित्य समूह)
१५/३/२०२३
विषय--शीतलता
संचालन --आ.कन्हैयालाल गुप्त जी

सादर समीक्षार्थ

          #शीतलता 
--------------0---------

मन को जो शीतलता दे ,
ऐसा गीत कहाँ से गाऊँ 
मन मेरा है उदास
खुशी के सुर कैसे सजाऊँ?

जीवन में मिलना बिछुड़ना क्यों
क्या यही जग का नियम है..
जो आया है वो जाएगा 
फिर क्यूं दिल में तड़पन है???
ऐ दिल तू ही बता मुझको
मैं कैसे मन को समझाऊँ ?

मन को शीतलता दे 
ऐसा गीत कहाँ से गाऊँ??

पन्ने पलटे डायरी के ,
कुछ गुलाब की पंखुरियां 
बिखर ,मुस्कुराई 
ठंडक पहुंची दिल को..
याद किसी की आई
नई -पुरानी बतियां
दिल में मुस्कुराई,
कुछ यादों से 
आँखें भर आई
कुछ  यादें
मन ही मन मुस्कुराई...
कानों में हौले से
राग नया सुना गई
यही तो जीवन है
सुख -दु:ख तो 
आना - जाना
मत हो उदास
मीत तुम्हारा है साथ
गीत खुशी के गाओ
जीवन में हर सुर-साज़ सजाओ!!

*शशि मित्तल "अमर"*
स्वरचित

रचनाकार -आ. संजीव कुमार भटनागर जी

नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक_ 562
विषय  पथिक तू चलता चल
विधा  कविता
दिनांक ..13 मार्च 2023 
वार : सोमवार

ओ पथिक तू चलता चल
राह में होंगे थकान के पल,
नहीं रुक पथ में तू कभी
जीत के पाएगा सुखद पल|

मंज़िल नहीं है अब दूर तेरी
साहस की तेरे आयी घड़ी,
कंटको को तब तू रौंद देना
पथ में होगी फूलों की लड़ी|

निडर चल ज्यों नदिया बहे
राह में प्रस्तर खंड भी मिले,
सागर से मिलने चलती जाती
अपनी राह वो खुद बनाती|

तूफानों से नहीं डरना तुझको
पथ विमुख नहीं होना तुझको
राह अडिग अटल पर्वत सा
विपत्तियों से है लड़ना तुझको|

सपने सब तूने जो देखे थे कल
हकीकत में उनको रंगता चल,
सूर्य तेज या गहराई सागर लिए
पथ पे पथिक तू चलता चल|

रचनाकार का नाम- संजीव कुमार भटनागर
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
मेरी यह रचना मौलिक व स्वरचित है

रचनाकार :- आ. सुनील शर्मा जी,


नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक 562
विषय पथिक तू चलता चल 
दिनांक 13.03.23
शीर्षक " बना रहे उत्साह प्रबल"

पथिक तू चलता चल
राह कितनी भी पत्थरीली हो
पग पग पर झाड़ कंटीली हो
दुर्गम ऊंचाइयां भी कभी
कर पाएं न तुझे विकल
पथिक तू चलता चल

सूरज बरसाए अग्नि बाण
या मेघ बरस करें परेशान
हर पल लगे बाधाओं भरा
निराशा का घनघोर अंधेरा
तू कस ले कमर और निश्चय अटल
पथिक तू चलता चल

न सोच कोई क्यूं साथ नहीं
हाथों में किसी का हाथ नहीं 
मंज़िल भी दिखती नहीं कहीं
राहबर का भी एहसास नहीं
जो साथ चलें उसे लेकर चल
पथिक तू चलता चल

कैसा थकना क्या रोना है
नभ छत है धरा तेरा बिछौना है
ग़र करता रहा प्रयत्न निरंतर
तो उद्देश्य बस एक खिलौना है
इस खेल में बना रहे उत्साह प्रबल
पथिक तू चलता चल

- डॉ. सुनील शर्मा
गुरुग्राम, हरियाणा

शनिवार, 11 मार्च 2023

रचनाकार :- आ. अरविंद सिंह वत्स जी


नमन---कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक-------------------561
विषय-------------------------स्वतन्त्र
तिथि-----------------11/03/2023
वार--------------------------शनिवार
विधा--------------------विधाता छन्द
मापनी---1222,1222,1222,1222

                        #रिपु_दमन

हृदय में वास मिट्टी का,अरे!सम्मान भारत है।
लुटाना जान मिट्टी पर,अरे!अरमान भारत है।
नहीं झुकना मुझे यारों,अरे!सौगन्ध खाता हूँ-
वतन यह जिंदगी देता,अरे!वरदान भारत है।

लहू तन में भरा जो है,नहीं ठंडा कभी होगा।
मिटाना है मुझे दुश्मन,नहीं दंगा कभी होगा।
मिलूँगा सामने रिपु से,नहीं पीछे हटूँगा अब-
अरे ! बदरंग धरती पे,नहीं झंडा कभी होगा।

अरविन्द सिंह "वत्स"
प्रतापगढ़
उत्तरप्रदेश

शुक्रवार, 10 मार्च 2023

रचनाकार :- आ. तरुण रस्तोगी "कलमकार"जी



🙏नमन मंच 🙏
#कलमबोलतीहैसाहित्यसमूह
#आयोजन संख्या-५६१
#प्रदत्त छंद-माधव आधारित मुक्तक मालती छंद
#सादर समीक्षार्थ 
#मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२२

वंदना  माँ  शारदे  की , मैं  सदा  करते  
रहूंगा।
भाव मन के आपको माँ ,मैं समर्पित करता रहूंगा।
दो मुझे आशीष माता, लेखनी  में  धार  होगी,
देश हित की कामनाएं ,लेख में लिखता रहूंगा।
(२)
रास कान्हा ने रचाया, नाचती सब गोपियां है।
बांसुरी की तान पर ही, झूमती सब गोपियां है ।
सांझ है कितनी सुहानी, खिल खिलाते चांद तारे,
बज रही बंसी मधुर है,होश खोती गोपियां है।

तरुण रस्तोगी "कलमकार"
मेरठ स्वरचित
🙏🌹🙏

मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023

रचनाकार :- दमयंती मिश्रा जी, शीर्षक :- बदरी और चाँद

नमन मंच कलम बोलती है
आदरणीया निकुंज शरद जानी को नमन।
क्रमांक _५५६
दिनांक _२७/२/२०२३
विषय_बदरी और चांद
हे रीत पुरानी बदली और चांदकी ।
करते रहते खेल लुका छुपी का ।
बदली ढंक  लेती अपनी ओट में,
चांद को छा जाता गहन अंधेरा ।
 चकोर पक्षी विरह में पुकारता ।
पीहू पीहू कहां हो आओ न पास ।
  बदली सुन विरह गीत हट जाती ।
     ओट से निकल चांद की शीतल,
      चांदनी सितारे निखर उठते ऐसे ।
 बरात ले आते चंदा रोहणी को ब्याहने ।
बदली के अश्रु छलक जाते बन जल ।
 धरा की प्यास बुझती, हो उठती हरित।
 है यह खेल दोनों का चला आ रहा आदिकाल से ।
है कवि की कविता लिए छंद अलंकार से परिपूर्ण।
स्वरचित दमयंती मिश्रा

रचनाकार :- आ. रजनी कपूर जी, शीर्षक :-बदरी और चाँद


नमन मंच 🙏🙏
कलम बोलती साहित्य समूह
विषय -बदरी और चाँद

सूखे -सूखे से पत्ते हैं शाख पर,
सब्ज़ पत्तो ने आड़ दे आस जगाई है।

बदली मे छिपे -छिपे से चाँद की,
हल्की सी झलक से रोशनी जगमगाई है।

विमन्सक सन्नाटा सा है हर तरफ,
यूं लगा अल्हड़ सी गज़ल किसी ने गुनगुनाई है।

एक लम्हा जब महसूस किया तुमको,
यूं लगा रूह मेरी इत्र मे नहा आई है।

मुसाफिर सा था अन्धी सी दौड़ का,
जब खोज की तो भीतर ही मंजिल पाई है।

रजनी कपूर
जम्मू

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023

रचनाकार :- आ. प्रजापति श्योनाथ सिंह "शिव" महेशरा जी, शीर्षक :- जब फसल लहलहाती है ।


"नमन मंच"
दिनांक:- 23/02/2023
विषय:- जब फसल लहलहाती है
विधा :- कविता/स्वैच्छिक
समीक्षार्थ --
                "जब फसल लहलहाती है"
               _-_-_-_-_-_-_-_-_-_-_-_-_-_

कृषक  मन  आल्हादित  होता
निरख  फसल  लहलहाती  सी
परिवारी  मन  हर्षित  उसका
नवल  उपज  जब  पक  जाती।

धरा  करे  श्रंगार  नवल
चूनर  ओढ़े  धानी  रंग
हरियाली  जैसे  डेरा
महक  रहा  तृण  तृण  अंग।
यह  मौसम  अद्भुत  अनुपम
नयी  कोंपले  शाखा  सब
उपवन  कलियां  चटक  रहीं
पुष्प  बिखेरे  सौरभ  घर।

खुशबू  सौंधी  आम्र  मंजरी
कूक रही   कोयल  काली
फुदक  फुदक  गीत  सुनाती
स्वर  सरगम  की  मतवाली।

कनक  बल्लरी  झूम  रही
रंग  सुनहरा  छाया  है
घूंघरू  स्वर  चना  घनेरा
झूमर  मसूर  पाया  है।

अलसी  के  सिर  कलसी
प्रकृति  सुंदर  माया  है।
तिलहन  - दलहन  फसलें  ये
ऋतु  बसंती  लाया  है

अद्भुत  निरखत  दृग  दृश्य
अरहर  अलि  ढूंढे  मकरंद
छटा  छबीली  सुरबाला  लख
अनुभूति  का  ले  आनंद।

हलधर  मन  दशा  विशेषी
"शिव"  बौराया  नाच  रहा
उदर  पूर्ति  भरें  भंडारे
उपज  उपज  धन   जांच  रहा।

                              प्रजापति श्योनाथ सिंह "शिव"
                                महेशरा, अमरोहा, उ0प्र0
स्वरचित/मौलिक

रचनाकार :- आ. डॉ अर्चना नगाइच जी, शीर्षक :- जब फसल लहलहाती है




नमन मंच
        कलम बोलती है साहित्य समूह
        23.02.23
         विषय ---फसल लहलहाती है
         
            चलो खेत  हल उठाओ हम है किसान
            मेहनत से धरती माता की सेवा ही काम
            भरी दुपहरी पा विटप छांव पा पल भर विश्राम
            सांझ ढले लौट घर थके श्रमजीवी किसान 

            दिन रात अथक श्रम करते सुबह शाम
            आशा उम्मीदों के आंगन खिलते पुष्प अविराम
            मौसम रंग ले आया लहलहाते खेत फसल बेलगाम
             खुशियों से भरे मन आंनदित आठों याम
             
             सकल पूंजी किसान की यही फसल लहलहाए
             घर परिवार बाल बच्चे सब आस लिये मुस्काये
             बहुत कठिन समय होता प्रकृति हो जब प्रतिकूल
              कांपते धड़कते दिल से किसान रहते धीर कूल
             आपदा विपदा सह किसान उठ नई उम्मीद संजोय
             लहलहतीं फसलें भरती जीवन में नव उत्साह ।

    स्वरचित ,मौलिक
   डॉ अर्चना नगाइच
💐💐💐💐💐💐
    23.02.23

रचनाकार :- आ मीठु डे, शीर्षक :- जब फसल लहलहाती है।


#कलमबोलतीहैसाहित्यसमूह 
#विषयक्रमांक554
#विषय- जब फसल लहलहाती है 
#विधा- कविता 
#दिनांक- 22/2/2023

जब फसल लहलहाती है !
धरा का सीना चीरकर नए !
अंकुर उग आते है !
उगाकर अन्न मेहनत का !
हमें भोजन खिलाते है!
सदा भूखों का भूख मिटाता जो !
वो मजबूर हलधर अभावों में !
गले में फाँसी लगाता क्यो?
ठिठुरती सर्दियों में चिलचिलाती धूप में !
बरसती काली घटाओं में!
आसमानी आपदाओं में !
न जाने किस किस से !
लड़ कर अपना फसल बचाता है !
कभी हार ना माने परिणाम चाहे कुछ भी हो !
फ़िर क्यों टूट जाता है वो ?
हार जाता अभावों में भूखे पेट की संघर्षों में !
उसकी तकलीफ कोई नहीं सुनता !
किस काम की ये तरक्की ??
रियायत किस काम आयेगा?
अन्न उगाने वालों की मत करो अवहेलना !!
वक्त पर संभल जाओ ये है देश के कर्णधार !!
किसान मुकर गया कभी अगर !
देश को भूखा मर जाना है !!

✍मीठु डे मौलिक (स्वरचित )

वर्धमान-वेस्ट बंगाल

बुधवार, 15 फ़रवरी 2023

रचनाकार :- आ. विमलेश जैसवाल जी, शीर्षक :- यादें



#कलम बोलती है
#विधा काव्य
#विषय यादें

सदा दिल दुखायेंगी यादें तुम्हारी
न हम भूल पाये शहादत वो भारी
कहीं लाल बिछुड़ा कहीं भाई खोया 
हुई है अकेली कहीं प्राण प्यारी 
लिया खूब बदला तसल्ली मिली भी 
मगर मांग सूनी खिली फिर न क्यारी 
बहुत कायराना है हरकत तुम्हारी 
है कैसी ये नफरत है कैसी बीमारी 
तबाही के तुम रास्ते पर चले हो 
संभल जाओ वरना बनोगे भिखारी
 स्वरचित विमलेश

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2023

रचनाकार :- आ. - डॉ. सुनील शर्मा जी, शीर्षक :- यादें



नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक 550
विषय यादें
दिनांक 13.02.2023
शीर्षक " यादें उन बरसातों की "

याद तुम्हारी साथ में लाई 
यादें उन बरसातों की
भीगा आंगन, भीगा आंचल
भीगी भीगी रातों की

भीगी पलकों से मुड़ मुड़ कर
देखा उन राहों की ओर
जिससे जाकर लौटे न तुम
सूख गए पलकों के कोर 

थम जाएगी नभ की रिमझिम
नैनों की बरसात नहीं
न खत आया न संदेसा
आने की भी आस नहीं

गुज़र गए यूं ही कई मौसम
पतझर क्या, मधुमास है क्या
फूल खिलें या मुरझाएं
बस टीस रही मन में इक यहां

दीप धरे देहरी पर फिर भी
बैठी हूं यही आस में गुम
कह कर गए थे आऊंगा मैं
लौट आओगे इक दिन तुम 

- डॉ. सुनील शर्मा
गुरुग्राम, हरियाणा
मौलिक एवं स्वरचित

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2023

रचनाकार :- आ. सुनीता चमोली जी, शीर्षक :- आओ वक्त के साथ चले..


विषय क्रमांक:- 547
विषय :- आओ वक्त के साथ चले। विधा :-स्वैच्छिक।समीक्षा हेतु।दिनांक :- 06 फ़रवरी 2023 
    🌹आओ वक्त के साथ चलेंं🌹
जिस परिवार से मैं स्वयं हूँ वह बहुत बडा़ है।मेरी माँ हमेशा कहा करती थी बच्चों को अपने से बडों और छोटों के साथ व्यवहार करने की शिक्षा घर से ही मिलती है।माँ एक कुशल गृहणी थी।हम बच्चों का बहुत ध्यान रखती थी।हम बच्चों को नीति शिक्षा की कहानियाँ सुनाकर हममें नैतिकता अंकुरित करती थी।एक बार की बात है गर्मियों की श्याम का समय था।मुझे और पडो़सियों के बच्चों को बुलाकर उन्होंने अपने पास बैठा लिया और कहने लगी "आओ वक्त के साथ चले"की कहानी सुनाती हूँ।उन बच्चों में मैं सबसे छोटी उम्र की थी।लेकिन मुझे भी उन्होंने अपनी गोदी में न बैठाकर और बच्चों के साथ अपने सामने बैठाया और कहानी कहने लगी-एक बार की बात है,एक व्यक्ति था वो एक महात्मा जी के पास गया और कहने लगा की गुरुजी मुझे दुःखों से कब छुटकारा मिलेगा और मैं "वक्त के साथ कब चल सकूंगा"।महात्मा जी ने उसको दो थैलियाँ दी और कहा पहली थैली में तुम्हारे पडो़सी की बुराइयाँ है इसे तुम हमेशा अपनी पीठ पर रखना और कभी खोलकर मत देखना और दूसरी पोटली में तुम्हारी बुराइयाँ रखी है इसे हमेशा अपने सामने रखना और कभी-कभी खोलकर देखते रहना।वो व्यक्ति बहुत खुश हुआ और घर चलने को हुआ तो थैलियाँ आपस मैं बदल गई।जिस थैली में उस व्यक्ति की स्वयं की बुराईयाँ  थी उसे उसने अपनी पीठ पर रख ली और पडोसियों की बुराई वाली थैली अपने हाथ में पकड़ ली।एक दो दिन तो उस व्यक्ति के शांति से बीते।लेकिन तीसरे दिन पडो़सी के घर का कचरा उसके घर के आँगन में गिरा तो वह लडने लगा।रोज ही उसके साथ कुछ न कुछ होनें लगा।एक दिन वही महात्मा जी उसके घर पहुंचे जिन्होंने उसे पोटलियाँ दी थी।उसका हाल चाल पूछने पर उसने पडोसियों के साथ लड़ाई झगडे़ वाली बात बता दी।महात्मा जी समझ गये इस व्यक्ति से कुछ गड़बड़ हो गई है।महात्मा जी ने उसकी पोटलियों को ठीक किया और चले गये।अब वह व्यक्ति किसी से कुछ नही बोलता था।शांति से घर पर रहने लगा।पडोसियों का उसके साथ व्यवहार भी बदल गया।पडो़सियों को बडा़ आश्चर्य हुआ।पडो़सी पूछते तो शान से कहता अब मैंने "वक्त के साथ चलना"- सीख लिया है।                                                                                         सुनीता चमोली ✍🏻

रचनाकार :- आ जगदीश गोकलानी "जग, ग्वालियरी" जी, शीर्षक :- आओ वक्त के साथ चले


जय माँ शारदे
नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
#दैनिक विषय क्रमांक - 547
दिनांक - 06/02/2023
#दिन : सोमवार
#विषय - आओ वक्त के साथ चलें
#विधा - गीत
#संचालिका -  आ. शशि मित्तल अमर जी
*****************

वक्त के साथ चलें हम, कदम से कदम मिलाकर।
मिले मौका बढ़ जाए आगे, हम वक्त को हराकर।।

साथ में वक्त की धार के , जो कोई संग बहता,
चलता जो वक्त के साथ में, हरदम आगे रहता।
रह जाए अगर तू पीछे, नहीं वक्त से गिला कर,
मिले मौका बढ़ जाए आगे, हम वक्त को हराकर।।

करता जो सलाम वक्त को, किस्मत  बदल जाती,
बनता गुलाम वक्त का, सफलता हाथ नहीं आती।
मान ले वक्त की बात को, नहीं वक्त से सिला कर,
मिले मौका बढ़ जाए आगे, हम वक्त को हराकर।।

वक्त है दौड़ लगाता, अतीत नहीं वक्त को भाता,
साथ वक्त के जो दौड़े, जीवन में सब कुछ पाता।
राह रोके वक्त अगर, रख दे तू वक्त को हिलाकर,
मिले मौका बढ़ जाए आगे, हम वक्त को हराकर

मौलिक और स्वरचित
जगदीश गोकलानी "जग, ग्वालियरी"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश

रचनाकार :- आ. सीता गुप्ता जी, शीर्षक :- राह जीवन की।


#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह
#विषय_क्रमांक_547 
#दिनांक_06-02-2023
#दिन_सोमवार
#विषय_आओ_वक्त_के_साथ_ चलें
#विधा_पंक्ति पर सृजन
     *राह जीवन की*
================
यह जीवन एक पहेली है!
जिसकी राह बड़ी अलबेली है।
कभी पग में कंटक देती है,
कभी मखमली सुमन बिछाती है।

कभी अश्रु कोटर होते हैं,
कभी अधर गीत भी गाते हैं।
कभी अपने पराए लगते हैं,
कभी गैर अपने हो जाते हैं।

कभी कोसों दूर की वो मंजिल!
क्षण भर में हासिल होती है।
कभी हाथ में आईं कुछ खुशियां,
एक पल में गायब होती हैं।

यह जिंदगी यूं ही पहेली बन,
अनसुलझी आगे बढ़ती है।
आओ वक्त के साथ चलें!
यही सीख वह देती है।

जो वक्त के साथ चल पाता है,
उसे जीने की राह मिल जाती है।
जो सम्मान किया उसने वक्त का,
उसे सारी खुशियां मिल जाती हैं।

✍🏻 सीता गुप्ता दुर्ग छत्तीसगढ़

सोमवार, 6 फ़रवरी 2023

रचनाकार :- आ. कन्हैयालाल गुप्त किशन जी की रचनाओं का संग्रह 🏅🏆🏅




आओ वक्त के साथ चले,मीठी मीठी बात करें,
यादों की सौगात गुने,   सौ बातों में बात चुनें,
वक्त के साथ जो चलता है, वक्त की बातें करता है,
वक्त पर वही काम आता है, वक्त से वही निपटता है,
वक्त की तो बात बड़ी, वक्त की सौगात बड़ी,
वक्त ने राम को वन भेजा, वक्त ने शिव को दग्ध किया,
हरिश्चंद्र भी वक्त के दम से, महाराजा से मरघट भंगी हुए,
वक्त के साथ चलना सीखों, वक्त की नब्ज को पहचानों,
वक्त पर वक्त की बात करो, वक्त से मत फरियाद करो।।

स्वरचित मौलिक रचना
डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन
आर्य चौक बाजार, भाटपार रानी, देवरिया, उत्तर प्रदेश, भारत २७४७०२
डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन जी:
******************************************
 गूंज रहा है गीत भारत की फिजाओं में,
जिन्दा है भारत अब भी इन अमराइयों में,
यहां के झरने सुंदर गीत गाते हैं श्रृंगार के,
हवाएं गुनगुनाती है अठखेलियों  प्यार से,
बादल भी रिमझिम रिमझिम धुन सुनाते,
ऋतुएं रंग बिरंगी छटा है सुंदर बिखेरते,
नदियों का जल निर्मल है अमृत की तरह,
यहां की मिट्टी चंदन है पूजन अर्चन तरह,
बालक है राम कृष्ण हर बालिका है राधा,
आज भी कण कण में बसे हैं राम श्याम,
जीवन के संगीत पर्व त्यौहारों में है बसे,
प्रेम प्रीति पूजा है तीज परिवारों में बसे।।
 डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन जी: 
***************************************
भारत का तिरंगा झुकना नहीं चाहिए,
बलिदानों की पारी रुकना नहीं चाहिए।
यह महावीरों की पावन पुनीत भूमि है,
यह शूरवीरों की रंगीन मनोभवी स्थली है।
यहां गौतम ने जन्म ले शांति पढ़ाया है,
महावीर ने अहिंसा का अभ्यास कराया है।
कबीर की साखियां गलियों में गूंजती है,
मीरा के पद भक्तों के मन को लूभाते है।
तुलसी का मानस लोगों के मस्तिष्क में है।
सूर के पद बाल कन्हैया का अह्लाद है।
स्वरचित मौलिक कविताएं

डॉ कन्हैयालाल गुप्त "किशन"
भाटपार रानी, देवरिया, 
उत्तर प्रदेश, भारत
२७४७०२
 डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन जी
******************************************
विकसित युवा विकसित भारत, तभी होगा क्षितिज पर भारत,
युवा अपनी सोच बदले, कौशल को कर्म का आधार बनाये,
स्वार्थ से ऊपर परमार्थ को सोचे,तब भारत की जनता को सोचे,
युवा ही बदल सकता है भारत के कायाकल्प कलेवर को,
आज का दिवस है बड़ा ही पावन, अवतरण हुए विवेकानन्द जी,
आज दिवस है युवा दिवस का, युवाओं में जोश हो पावन,
भारत तभी क्षितिज पर होगा, युवा जब होगा कर्म में कौशल,
जागेगा तभी भारत और भारतवासी होगें विश्व में अग्रतर।। 
स्वरचित मौलिक रचना डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन भाटपार रानी, देवरिया, उत्तर प्रदेश
डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन जी: 
*******************************************
धुंध
****
जीवन में भी आज कल छा गई है धुंध,
नहीं रहता है अब कोई मुझे सुध बुध।
जीवन की रफ्तार कुछ ठहर सी गई है,
अपनों से रिश्ते कुछ बिखर सी गई है।
सजाने संवारने की कोशिश में लगा हूं,
ये वक्त पर छोड़ता हूं, इसके परिणाम।
अभी जी रहा हूं जीवन को मै वर्तमान,
कौन जाए अतीत के कातिल लफड़ो में।
धुंध छंटने में समय तो लगता ही है जब,
हवाएं चलेंगी अपने अनुकूल तब होगा।
जीवन में थोड़ा सुकून, आशाएं जगेगी,
स्वर्णिम सुप्रभात भी तभी मन भाएगा।।

स्वरचित मौलिक रचना
डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन
आर्य चौक बाजार, भाटपार रानी, देवरिया, उत्तर प्रदेश, भारत
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#जय_छठी_मईया

जय छठी मईया,हम सब रहते आपकी छहिया,
बड़ा ही कठोर और निर्मल वर्त है, जानता जगत है,
चार दिनों तक घोर तपस्या,खाय नहाय से होत है,
गंगा घाट पर मईया की अराधना,अस्त सूर्य देव पूजा है,
फल पकवानों का सुंदर संग्रह, घर परिवार में सुख शांति है,
उदयाचल सूर्य देव की होती अराधना, सूर्य देव सुनते प्रार्थना है,
घाटों पर मेला सा लगा है,बहंगी का तांता सा लगा है,
देवे आशीष सुफल हो प्रार्थना, यही भक्तों की कामना है।।

स्वरचित मौलिक रचना
डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन
आर्य चौक बाजार भाटपार रानी, देवरिया, उत्तर प्रदेश 
******************************************
आज आप सूचित हो कि विश्व हिन्दी दिवस है,
इस भाषा में माधुर्य ओज और लालित्य भी है,
साहित्य समाज सभ्यता और संस्कृति दर्पण है,
भावों की अभिव्यंजना हिंदी मातृभाषा मेंही है,
हिंदी सारे संसार पर छायी   विकास भाषा है,
हिंदी के कवि लोगों की जुबान पर बसे हुए हैं,
आज हिंदी वासियों को   बहुत बहुत बधाई है,
आप सभी को विश्व हिन्दी दिवस पर बधाई है।।

 स्वरचित मौलिक रचना डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन 
*******************************************
 #नववर्ष

नव वर्ष है,नव हर्ष है,नवल व्योम में नवल रवि है,
नव वर्ष की बात अलग है,इसकी सौगात अलग है,
अपने राष्ट्र की हवा नई है,अपने राष्ट्र की शान अलग है,
होंठों पर मुस्कान अलग है, दिलों के अरमान अलग है,
बसुंधरा की मान अलग है,नदी पर्वत की शान अलग है,
राजनीति के घात अलग है, न्यायालयों की जात अलग है,
हे प्रभु! देश की वायु बदल दे,नई चाल दे नई गति बल दे,
चिर नवीन को चिरंजीवी कर, देश की मर्यादा को बल दे।।

स्वरचित मौलिक रचना
डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन
आर्य चौक बाजार, भाटपार रानी, देवरिया, उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 4 फ़रवरी 2023

रचनाकार :- आ. मीनाक्षी भालेराव जी


मीनाक्षी जी की बहुत ही सुंदर रचना 
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सभी साहित्यकारों से रचनाकारों से अनुरोध है बिना पढे टिपणी ना करे 🙏🙏🙏
स्त्री 
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क्या तुम समझते हो 
स्त्री होने का दुःख ?
नहीं , तुम नहीं समझ सकते 
तुम्हें अपने पुरूष 
होंने का बहुत 
अभिमान है ।
सदियों दर सदियों तक 
तुम नहीं बदलोगे 
क्या तुम एक दिन के लिए 
केवल एक दिन के लिए 
स्त्री बनना चाहोगे 
देखना चाहोगे ।
महिने के वो सात दिन 
किस पीड़ा से गुजरती है 
जीना चाहोगे संस्कारों के
 नाम पर
शोषित होकर 
क्या तुम एक संतान को
 जन्म देकर 
नो महिने का अनुभव 
करना चाहोगे 
क्या एक दिन तुम 
चारदिवारी में 
बंद रहकर सब की देखभाल
 करना चाहोगे 
सबकी इच्छाओ की पूर्ति के लिए 
अपनी इच्छाओं का बलिदान 
 कर पाओगे 
स्त्री होने के लिए 
अहिल्या सा पत्थर होना पड़ता है 
मोक्ष के नाम पर ठोकरों में 
रहना पड़ता है 
द्रौपदी सा चीरहरण  सहना 
पड़ता है
 गली गली दुर्योधन 
भटकते हैं 
जो औरत को केवल भोग की
 वस्तु समझते हैं 
झेलना पड़ता है 
गांधारी सा अंधापन
साँस -ससुर ,पती की 
इच्छा  के कारण 
अपनी  ममता को 
छलना पड़ता है 
सिर्फ और सिर्फ पुरूष संतान को 
जिवित रखने के लिए 
कितनी बच्चियों को 
कुर्बान होना पड़ता है 
जिन्हें पैदा होने से पहले ही 
मार दिया जाता है 
फिर भी उजड़ी कोख
 लिए जिना पड़ता है 
कितनी अग्नि परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है 
सिया सा आत्मा के  जंगलों में भटकना पड़ता है 
क्या तुमने दी है कभी 
अग्नि परीक्षा 
सावित्री सा तपस्वी  
होना पड़ता है 
मृत्यु तक को हारना 
पड़ता है 
क्या  कभी  तुम अपनी 
सहचरी के लिए 
लड़े हो मौत से 
नहीं तुम तो अपने अहंकार 
 क्षणिक भूख के लिए स्त्री का 
शरीर ही नहीं 
आत्मा तक छीनबीन कर देते हो
फेंक देते हो 
मरने के लिए
उसका जिस्म तार-तार कर के 
और अपने होने पर गर्व करते हो
क्या है  
तुम्हारे पास गर्व करने 
जैसा 
जब भी  इस बात से भ्रमित हो 
के तुम 
संसार की सबसे श्रेष्ठ 
कृति हो
तो जाकर अपनी माँ से लिपट
 जाना
अपनी  बहन को देख लेना
अपनी बेटी के सर पर हाथ रख देना
 जब तुम्हें लगे के माँ की गोद से बढ़कर 
कोई जगह नहीं है संसार में 
या सुखद अहसास दुसरा नहीं है तो
स्त्री का महत्व जीवन में ही नहीं 
संसार में क्या होता है समझ लोगे 
तब तुम सही मायने में 
पुरूष कहलाओगे  ।

 मीनाक्षी भालेराव अध्यक्ष:पृथा फ़ाउन्डेशन अध्यक्ष:अक्षर अक्षर कविताओं का हिन्दी काव्य मंच

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2023

रचनाकार :- आ. शशि मित्तल "अमर" जी, शीर्षक :- धूल


नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
३/२/२०२३
विषय---धूल
विधा---लघुकथा
संचालन --आ.सुभाष कुशवाहा जी

सादर समीक्षार्थ

         #धूल
         -------
          संजय और रागिनी के बीच गाहे-बगाहे बच्चों को लेकर वाद विवाद हो ही जाता था।
        संजय को बच्चों का धूल में खेलना बहुत पसंद था, उसका कहना था बच्चे धूल-मिट्टी में खेल कर मजबूत बनते हैं और निरोगी रहते हैं। रागिनी को पसंद नहीं था कि हमारे हाई सोसाइटी के, शहर के बड़े स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे धूल -धूसरित होकर घर आएं।
उसे बड़ी कोफ्त होती थी।
        
          जितनी रागिनी को धूल से चिढ़ थी, उतना ही घरवालों को धूल से प्यार था।
             संजय तुम इतने बड़े अफसर हो, कल जब तुम्हारे बॉस अपनी फैमिली के साथ घर आए थे तब बच्चे धूल में खेल कर गंदे से घर आए तब मुझे बहुत शर्म आ रही थी। तुम समझते क्यों नहीं.......
      रोज की तना-तनी और तनाव में जीती रागिनी को  देख कर एक दिन उसके सास ससुर ने राज खोला कि संजय जो तुम्हारा पति है और बहुत बड़ा ऑफिसर  भी......यह रास्ते की #धूल #का #फूल है ।

        रागिनी की आँखों से धूल का पर्दा साफ हो चुका था।

शशि मित्तल "अमर"
स्वरचित

रचनाकार :- आ दमयंती मिश्रा जी, शीर्षक :-धूल


नमन मंच कलम बोलती है।
क्रमांक _५४६
दिनांक _३/२/२०२३
विषय _धूल 
 विधा  _लघुकथा
राम, श्याम व शंकर तीनों भाई साथ साथ रहते थे ।समय के साथ सोच बदलती है ।राम सबसे बड़ा समझदार, कर्तव्य निष्ठा, ईमानदारी सत्यनिष्ठ स्वभाव वाला था । विवाद करना व लालच स्वहित  के लिए झगड़ा  नहीं चाहता था ।
छोटे भाईयों ने उसे कुछ न दे कर माता पिता की जिम्मेदारी उसे सौंप दी ।वह मेहनत से परिवार को पालते हुए बच्चों को शिक्षित करना चाहता था ।साथ ही मां, पिता जी सेवा भी ईश्वर मानकर करता था ।
बच्चे अपने पिता मदद करते हुए आगे बढ़ रहे थे ।एक दिन माता पिता ने कहा बेटा हमारे पास कुछ नहीं है ।धन दौलत भाईयों ने ले लिया तुझे देख कर बहुत अफसोस होता है ।
शंकर बोला मां पिता जी धन दौलत तो धूल जैसे है ।आज से कर नहीं । आपकी सेवा मेरा परम कर्म कर्तव्य है ।आपके चरणों की धूल मुझे मिल रही है इसका तिलक करने से बहुत बहुत संतोषजनक धन की प्राप्ति होती उससे बड़ा धन ओर कोई नहीं ।
उसके बच्चे सुन रहे थे ।जब पढ़ कर अच्छी पोस्ट पर आरुड़ हुए तो बेटी ने दोनों खुलो को स्वर्ग बना दिया ।बेटा को सुशील सर्वगुण संपन्न बीबी मिली । उसने अपने दोनों हाथों से मां पिता सेवा की व अपने कर्म कर्तव्य को पूजा समझकर कार्य किया ।
वह कहता भ्रष्टाचार बेईमानी से कमाया धन धूल माटी है ।जो चला जाता साथ इज्जत भी धूल में मिल जाती ।
अतः दोस्तों परिवार समाज देश को आगे बढ़ाना हो तो दुर्गुणों को छोड़कर सत्य अहिंसा परमो धर्म सिद्धांत पर चलो । कभी भी आपका जीवन धूल सदृष्य न हो गया।
स्वरचित दमयंती मिश्रा गरोठ मध्यप्रदेश

बुधवार, 1 फ़रवरी 2023

रचनाकार :- आ. पूनम गुप्ता जी, शीर्षक :- संयुक्त परिवार या एकल परिवार.....


#कलम बोलती है साहित्य समूह मंच को नमन
#विषय - संयुक्त परिवार या एकल परिवार
#विधा - परिचर्चा
#दिनांक -1/2/23

देश में संयुक्त परिवार का अब चलन अब कमहो गया है। इसके विघटन होने का कारण पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित होकर लोग अब एकल परिवार में रहना पसंद करते है| देश में संयुक्त परिवार की जो मिसाल दी जाती थी वह विलुप्त होती नजर आ रही है| स्वार्थ और अमीर बनने की होड़ में संयुक्त परिवार टूट रहे हैं| आज के युग में संयुक्त परिवार से अधिक एकल परिवार का चलन लगातार बढ़ता जा रहा है एकल परिवार में कमाने और खर्चा करने पर कोई पाबंदी नहीं होती है |वहीं दूसरी ओर बड़े बुजुर्ग की सुरक्षा का कवच भी एकल परिवार में नहीं होता है एकल परिवार में लोग अपने आप को स्वतंत्र महसूस करते हैं उन्हें किसी प्रकार की दखलअंदाजी पसंद नहीं आती है इसलिए आज के युग में एकल परिवार की संख्या बढ़ती जा रही है| वर्तमान समय में यह देखा जाए तो पहले की अपेक्षा पैसा कमाने के लिए साधनों में बहुत परिवर्तन हुए हैं परिवार यदि छोटा है तो आपकी जिम्मेदारी कम होती है किसी भी प्रकार का कोई दबाब नहीं होता है आप स्वतंत्र होते हैं आप अपनी मर्जी से कोई भी कार्य कर सकते हैं| पैसा कमा लेने से वह धनी तो  बन जाते हैं लेकिन  संयुक्त   परिवार में जो खुशी मिलती है वह एकल परिवार में नहीं होती संयुक परिवार में  एक दूसरे के लिए हमदर्दी और सबका  साथ मिलता है किसी भी प्रकार की परेशानी होने पर एक साथ मिलता है | संयुक्त परिवार में सब लोग एक दूसरे की मदद करने के लिए तैयार रहते हैं| वहीं एकल परिवार में विपरीत स्थिति उत्पन्न होती हैएकल परिवार में अकेला व्यकित तनाव ग्रस्त हो जाता है| इससे वो बीमार भी रहने लगता है यह ध्यान देने योग्य बात है पश्चिमी सभ्यता को हम अपना रहे हैं पश्चिमी देश  हमारे देश की सभ्यता संस्कारों को अपनाकर संयुक्त परिवार की ओर अपने कदम बढ़ा चुके है| हमें उन को देखते हुए सीख लेनी चाहिए जो पश्चिमी देश हमारे देश से सीख लेकर आगे बढ़ रहे है| फिर भी हम अपने संस्कारों को भूल गए हैं| हमें उनको देखकर अपने संस्कृति संस्कारों को जीवित रखना है परिवार में बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद प्राप्त होता है| उनकी छत्रछाया में सब एक साथ रहते हैं संयुक्त परिवार हमारे सम्रद्धि पूर्ण देश का ढांचा है| इसे  बिखरने न दे अपने बच्चों को अपने परिवार के साथ रखें अपने माता पिता के साथ रहे बड़े बुजुर्गों को अपने साथ रखकर उनका ध्यान और उनसे बातें करें  परिवार एक महत्वपूर्ण स्थान है| जहां आप सच्चा सुख प्राप्त कर सकते हैं अपने सारे दुख परेशानी भूल कर बड़ों के साथ आंतरिक आनंद की प्राप्ति होती है| संयुक्त परिवार मैं हमेशा एक दूसरे की सहायता के लिए सब तैयार रहते हैं| दुख हो या कोई परेशानी सब मिल बांट कर आपस में प्यार से रहते हैं देश में संयुक्त परिवार की स्थिति पहले से बेहतर नहीं हैं| अब आज के युवा पीढ़ी परिवार से अलग रहने में ही अपने आप को स्वतंत्र समझती है|वह अपनी मर्जी से सब काम करना चाहते हैं| संयुक्त परिवार में सभी लोग मिलजुल कर एक साथ रहते हैं जिससे परिवार के बच्चे अपने अंदर एकता की भावना को जागृत करते हैं| देश में संयुक्त परिवार की  स्थिति को सुधारने के लिए हम युवा पीढ़ी से अपेक्षा कर सकते हैं और देश में संयुक्त परिवार की स्थिति को हम सब मिलकर मजबूत कर सके|

 पूनम गुप्ता
भोपाल

रचनाकार :- आ. अनामिका_वैश्य_आईना जी, शीर्षक :- अहिंसा

शीर्षक -अहिंसा परमो धर्म 
काव्य

सब जीवों से प्रेम कर
सब ईश्वर की सन्तान
प्रेम दया करूणा रखें
अंतस में भाव महान ..

अहिंसा परमो धर्म है
सब पालन करिए जी
कभी किसी को पीर न दे
ध्यान यही मन रखिए जी ..

जप तप ज्ञान महान है
गुण विनम्र अति जानिए
अहिंसा उपासना ईश की
गीता उपदेश ये मानिये ..

#अनामिका_वैश्य_आईना
#लखनऊ

रचनाकार :- डॉक्टर उषा मिश्रा जी, शीर्षक :-अहिंसा



"  जय मां शारदे "
कलम बोलती है साहित्य समूह नमन।
दिनांक/३१/१/२३दिन मंगलवार
विषय _ क्रमांक 544
विधा_ स्वैच्छिक
विषय :_"अहिंसा "
संचालक आदरणीय गोपाल सिन्हा जी ।
संस्थापक आदरणीय उमा वैष्णवी जी।

 "अहिंसा परमो धर्म " हम सब
बड़े गर्व से कहते हैं। किंतु इसका
पालन करने में कंजूसी कर जाते हैं।
अहिंसा को समझना बहुत जरूरी है
अहिंसा मानव मात्र को जीना सिखाती है
अहिंसा जितना मानव मात्र के लिए जरूरी है उतना ही पशु पक्षियों के लिए भी  जरूरी है। वह भी समाज का अभिन्न अंग है ।
उनको भी जीने का अधिकार हमें देना चाहिए
कमज़ोर व्यक्ति का सहारा हमें अपने आपको बनाना चाहिए। हम समर्थ हैं पशु पक्षी कमजोर! व्यक्ति अपना बचाओ रखरखाव नहीं कर सकते! इस लिए हमें समय और कुछ अर्थ की व्यवस्था अपने आपसे कटौती करके उनकी सहायता के लिए तत्पर रहना चाहिए।
हमारे देश में एक लंगोटिया संत पैदा हुआ
जिसने सत्य और अहिंसा के लिए अपना संपूर्ण जीवन लगा दिया। जिन्हें हम बड़े आदर से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम से याद करते हैं।
हमें ऐसे लोगों से नसीहत लेनी चाहिए ;और
उनके अनुसार! उनके बताए हुए रास्ते पर चलकर! अहिंसा का पाठ समझना होगा।
अभी तीन दिन पहले की ही बात है।
रात में सोने के समय सड़क पर कुत्ते भौंक रहे थे। एक सज्जन व्यक्ति ही कहूंगी उन्हें  नीद
मे बड़ा व्यवधान पहुंचा।
और वह क्रोध में भर उठे और अपनी लाइसेंसी बंदूक से उन कुत्तों के ऊपर फायर कर दिया ।
गोली दोनों  के पेट से आर पार निकल गई
एक तो उसी वक्त मर गया दूसरा कुत्ता जो फीमेल डॉग थी , वह प्रेग्नेंट थी ! काफ़ी देर
तड़पने के बाद उसकी भी मृत्यु हो गई ।
उसकी समझ में नहीं आया कि आख़िर
इतनी सर्दी में भूखे प्यासे वह क्यों भोंक रहे 
है ? एक बार देखा होता तो पता चल जाता कि कोई अजनबी गली में किस नियत से घूम रहा है। जिस के लिए वह तुम्हें  सचेतकर रहे हैं।
ऐसे हिंसक व्यक्तियों को गांधी को, गौतम बुद्ध
आदि महापुरुषों को पढ़ना चाहिए और इनसे अहिंसा का ज्ञान वर्धन करना सीखना चाहिए।

स्वरचित 🔥
डॉक्टर उषा मिश्रा🔥
कानपुर उत्तर प्रदेश 🔥

शनिवार, 28 जनवरी 2023

रचनाकार :- आ. डॉ संजय चौहान जी, शीर्षक :- स्मृति शेष


स्मृति शेष
             
तुम्हारे प्रवास के बाद
प्रियतम की पथराई आंखों की
ख़ामोशी को
देखा था मैंने।
जो लरजते आँसूओं को
बरबस दबाते रहे!
फड़फड़ाते होठ,
जिससे ध्वनित होनी
चाहती थी भावनाएं।
जिनको पीते रहे सोम-रस की तरह।
वियोग संतप्त-संततियाँ
करती थी क्रंदन
दुःख कातर आँखे
तलाशती रहती ममत्व को
सकल जगत है विहीन
कुछ है आश
स्वयं के परिजनों से।
प्रतियोगिता है सबमें
अधिकाधिक सहानुभूति प्रर्दशन की।
कुछ ऐसे भी हैं तुम्हारे अपने
अपने दुःखी नयनों से
गंगा-जमुना प्रवाहित करते रहे।
भाव विह्वल क्रंदन से
गगनांचल का सीना चीरते हुए
अर्द्ध चेतन होकर
दूसरों के सहारे बैठे हुए
होती रही उन पर करूणा की वर्षा
पर स्थिति सत्यता से पृथक
भावना है शून्य
अंतर्मन में खुशी
तुम्हारे हक को पाने की
पदासीन होने की
संचित विभूति को
सहजता से अर्पित करने की।
दूर पड़ा वह बेल
जिसे तूने दिया था सहारा
सिंचित किया था श्रमबिन्दू से
जो अपनी छाँह तूझे
देने को है तत्पर।
देख तुम होती थी हर्षित,
परन्तु उपेक्षित 
नहीं है किसी का ध्यान
वह है क्लांत,
पर बहाता नहीं आँसू
हिलते नहीं होठ
वह है जड़वत
चेतना शून्य,
दूर चला गया माली
न मिलेगा उन हाथों को सहारा
न मिलेगा अमृत जल
न मिलेगी तेरी आँचल से
नि:सृत वह प्राणवायु
अब यह गयी है मात्र
तुम्हारी स्मृति शेष।।

 डॉ संजय चौहान,
पंजाब विश्वविद्यालय अमृतसर, पंजाब, भारत।

शुक्रवार, 27 जनवरी 2023

रचनाकारः डा. राम कुमार झा "निकुंज" जी, शीर्षक :- गणतंत्र दिवस


🇮🇳🙏🏻#कलम✍️ बोलती है साहित्य समूह🙏🏻🇮🇳
#दिनांकः २६.०१.२०२३
#वारः गुरुवार
#शीर्षकः 💐🇮🇳गणतंत्र दिवस 🇮🇳💐

कोटि कोटि कुर्बानियाँ,हुआ     देश स्वतंत्र।
लूट  मची   है देश में ,खतरे   में   गणतंत्र ।। १।।   

बना वतन गणतंत्र अब,हुआ बहत्तर साल ।
विकसित जन नेता हुए,जनता  है    बेहाल।। २।। 

सभी  दुहाई   दे  रहे , संविधान   दिन रात। 
जाति धर्म भाषा लड़े, देश  विरोधी    बात।।3।।

पाकिस्तानी पे  फ़िदा,   सब नेता  हैं आज। 
किसी तरह सत्ता मिले,फिर लूटें मिल राज।।४।।  

रूहें    होंगी  रो  रहीं,कुर्बानी      पे   आज।  , 
गोरों से  भी  विकट अब ,देखे  देश समाज।।५।।   

हो समाज समता प्रजा,मिले  मूल अधिकार।
एक      पिरोयी बन्धुता,हो   भारत   आधार ।।६।।

थी दुरूह स्वाधीनता,ले      लाखों   बलिदान। 
पराधीन    जंजीर    से,जकड़ा     हिन्दुस्तान।।७।।

सब जन हित सुख भाव हो,पूर्ण धरा परिवार।
सब शिक्षित हों देश में,जाग्रत   हो   सरकार ।।८।। 

रक्षा करना है  कठिन,विभीषणों    से   आज।
सभी   स्वार्थ तल्लीन हैं,बाँट    रहे     समाज।।९।। 

गाएँ मिलकर   साथ में,अमर   रहे   गणतंत्र।  
तन मन धन अर्पित करें,भगा   दूर    षडयंत्र।।१०।।   

निर्भय  शिक्षित बेटियाँ,मिले साम्य अधिकार ।
तभी   देश   उत्थान हो,बचे     सुता    संसार।।११।।  

पुकारती   माँ    भारती,युवावर्ग    फिर  जाग। 
अपनों से  घायल वतन,बचा कोख की  लाज॥१२॥ 

संविधान   रक्षण  कठिन,बस सत्ता पद  चाह। 
सार्वभौम     गणतंत्र  में ,युवा     बने  गुमराह॥१३॥ 

अधिनायक जन गण वतन,लोकतंत्र अभिराम। 
समरसता           सद्भावना,आज  हुई बदनाम॥१४॥ 
रचनाकारः डा. राम कुमार झा "निकुंज" 
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नई दिल्ली

बुधवार, 25 जनवरी 2023

रचनाकार :- आ. नृपेन्द्र कुमार चतुर्वेदी जी, शीर्षक :- युग पुरुष

# कलम बोलती है साहित्य समूह 
#मंच को नमन 
 # दो दिवसीय आयोजन
# विषय  युगपुरुष
#शीर्षक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस
 #विधा कविता 
#दिनांक  24 जनवरी 2023
 #दिन मंगलवार 
््््््््््््

आजादी का बिगुल बजाया, फिरंगी जिनसे थर्राया।
शहर कटक,उड़ीसा में जन्मा,शेरे हिन्दुस्तान कहाया।

आई ए एस की नौकरी को,जिसने है ठुकराया।
आजादी का विगुल फूंक ,अपना ध्वज लहराया।

उठा शेर बंगाल से था पर, शेरे हिंदुस्तान कहाए।
आजाद हिंद फौज के नायक,नेता जी सुभाष कहाए।

 सत्यमेव जयते का वह सच्चा, सेना नायक था।
अहिंसा का न हो सका पुजारी,असली सेना नायक था।

कांग्रेस अध्यक्ष चुने थे मगर, खून क्रांतिकारी था।
नहीं विचार मिले गांधी से, मगर लक्ष्य एक ही था ।

छोड़ दी कांग्रेस पार्टी ,आजाद हिंद फौज बना डाली।
शेखर भगत बिस्मिल,अशफाक की राह पकड़ डाली। 

पैंसठ हजार सेना के बूते,अंग्रेजी सेना भी थर्राई।
जमीन खिसक गई पैरों से, थर-थर हांफी आई।

उम्र मात्र 48 की थी, हवाई दुर्घटना में प्राण गवाएं।
क्रांतिकारी अग्रदूत नेता,सुभाष बोस दुनिया को भाए।

नेताजी सुभाष बोस कहलाए,विश्व में नाम कमाए। पराक्रम दिवस घोषित हुआ,सच्ची श्रृद्धांजलि पाए।

आजादी के अमृत महोत्सव पर, शहीदों को नमन करें। शहीदों का स्वप्न साकार करें, अखंड भारत देश करें।

आजाद हिंद फौज के नायक का, हम करते सम्मान। लहर लहर लहराए तिरंगा, ध्वज भारत की शान।

 स्वरचित अप्रकाशित मौलिक रचना ।
नृपेन्द्र कुमार चतुर्वेदी, एडवोकेट।
 प्रयागराज, उत्तर प्रदेश।

सोमवार, 23 जनवरी 2023

रचनाकार :- आ. मनोज कुमार चंद्रवंशी जी, शीर्षक :- युग पुरुष


#नमन कलम बोलती है साहित्य समूह
#दिनांक-23/01/2023 
#दिन- सोमवार 
#विषय- युग पुरुष 
#विधा- छंद मुक्त कविता

धन्य -धन्य वो माँ भारती के अमर, वीर सपूत,
जो  प्रभावती  के  हृदय आँगन में जन्म लिये।
विराट  व्यक्तित्व प्रतिभा   के  धनी युग पुरुष,
देश के स्वतंत्रता संघर्ष यज्ञ को  सफल किये॥

1938   में  "दिल्ली  चलो"  का  नारा   देकर, 
नेता सुभाष जी  स्वतंत्रता  का बिगुल बजाए।
1943 में आजाद हिंद फौज की स्थापना कर,
माँ भारती के अमर पुत्र तिरंगा झंडा लहराए॥

"तुम  मुझे  खून  दो! मैं   तुझे  आजादी दूंगा,
नेताजी आजादी दिलवाने का जयघोष किए।
निर्मम   जेल  यात्राओं  को  सहकार नेताजी,
पावन सी धरा में स्वतंत्रता का उद्घोष  किये॥

भारतीय प्रशासनिक सेवा में नेता अव्वल  रहे,
नेता  1938 में  कांग्रेस  का कमान संभाले हैं।
देश  सेवार्थ  नेताजी  प्राणों का आहुति देकर,
नेताजी राजनीतिक दायित्वों  को  संभाले हैं॥

उग्रवादी  विचारधारा  के  परिपोषक  नेताजी,
पुरातन   भारतीय   संस्कृति  के  संवाहक थे।
स्पष्ट वक्ता, देशभक्त  पुनरुत्थान  करने वाले,
स्वतंत्रता संघर्ष का बीज बोने वाले नायक थे॥

नेता सुभाष  जी के 127  वीं  पुण्य जयंती में,
नेता के पद चिन्हों का शतशत नमन करते हैं।
कर्मयोगी स्वतंत्रता संघर्ष के नायक  नेता जी,
उनके  चरणों में श्रद्धा  सुमन अर्पित करते हैं॥

                        रचना 
            स्वरचित एवं मौलिक 
          मनोज कुमार चंद्रवंशी 
बेलगवाँ जिला अनूपपुर मध्यप्रदेश

रचनाकार :- आ. निलेश जोशी 'विनायका' जी, शीर्षक :- युग पुरुष


#कलम बोलती है साहित्य समूह
#दिनांक 23 जनवरी 2023
#विषय: युगपुरुष
#विधा: कविता

युगपुरुष सुभाष

देश के अद्भुत वीरों की
साहस भरी कहानी है
भारत माता के बेटों की
अतुल्य अमर कहानी है।

वीर सुभाष भारत का बेटा
आजादी का था रखवाला
उसने ही तो अलख जगाई
नारा दिया जय हिंद वाला।

पराधीनता के अंधकार में
स्वाधीन किरण जगाई थी
भारत माता के बेटों की
ताकत उसने दिखाई थी।

रोम टोक्यो भी सुभाष की
शक्ति को पहचान चुके थे
अपनी धरती से उनको भी
करनी मदद ये ठान चुके थे।

आजाद हिंद की फौज बनी
अंग्रेजी सेना घबराई
बढ़ती रही निरंतर आगे
भीषण संकट में लहराई।

आजाद हिंद की फौजों से
थर्राई हुकूमत अंग्रेजी
नेताजी के बलिदानों से
आजादी में आई तेजी।

स्वरचित एवं मौलिक रचना।
निलेश जोशी 'विनायका'
बाली, पाली, राजस्थान।
मो. 9694850450

शनिवार, 21 जनवरी 2023

रचनाकार :- आ. जगदीश गोकलानी "जग, ग्वालियरी" जी, शीर्षक :- बहादुरी





जय माँ शारदे
नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
#दैनिक विषय क्रमांक - 540
दिनांक - 20/01/2023
#दिन : शुक्रवार
#विषय - बहादुरी
#विधा - लघु कथा
#संचालिका -  आ. सुमन तिवारी जी
*****************

नन्नू अपने माता पिता की लाडला बेटा था।
नन्नू कक्षा पांचवी का छात्र था। नन्नू पढ़ने लिखने में तेज था। उसके माता पिता ने उसे अच्छे संस्कारों से सुसज्जित किया था। रोज रात को सोने से पहले और सुबह शीघ्र उठने से पहले वह माता पिता के चरण छूकर आशीर्वाद लेना नहीं भूलता था। उसके माता पिता  को उस पर गर्व था। 

नन्नू आज गणतंत्र समारोह में अपनी बहादुरी का पुरस्कार लेने के लिए अपने माता पिता के साथ आया था। नन्नू के नन्हीं आंखों के आगे वह वाक्या बार-बार आकर गुजर रहा था, जिस दिन उसने बुजुर्ग व्यक्ति की जान बचाई थी।

स्कूल से लौटते वक्त नन्नू बहुत खुश था। बहुत दिनों की मिन्नतों के बाद उसके पिताजी ने उसे स्कूल का नया बैग दिलवाया था। जब भी वह अपना फटा पुराना बैग स्कूल लेकर जाता था, उसके सहपाठी उसे चढ़ाते थे। नन्नू रोज घर वापस आकर अपनी मां से नया बैग दिलवाने के लिए कहता था। आज
नन्नू के कंधे पर नया बैग लटका हुआ था, जिसे थोड़ी थोड़ी देर में वह मुड़ कर पीछे देख रहा था, और अपने आप पर इतरा रहा था। नन्नू आज खुशी से फूला नहीं समा रहा था। 

इसी उधेड़बुन में नन्नू जब सड़क पार कर रहा था, तो उसने देखा कि एक बुजुर्ग व्यक्ति जो उसके आगे सड़क पार कर रहा था, नन्नू को पीछे से तेज गति से आती हुई बस दिखाई दी, उस बुजुर्ग के बिल्कुल नजदीक आ चुकी थी। राह चलते सब लोगों को लगा कि बस उस बुजुर्ग व्यक्ति को कुचल देगी। अचानक नन्नू के मन में न जाने क्या ख्याल आया कि उसने तेजी से दौड़ कर उस बुजुर्ग व्यक्ति को एक जोर का धक्का दिया, जिससे वह बुजुर्ग व्यक्ति बहुत आगे जाकर गिर गया, पीछे से दौड़ता आया नन्नू भी तेज गति से फिसल कर गिर गया। बस तेजी से निकलकर जा चुकी थी। नन्नू उठ खड़ा हुआ, बुजुर्ग व्यक्ति के पास आया और उसे सहारा देकर उठाया। नन्नू ने नम्रता से उस बुजुर्ग व्यक्ति से पूछा कि उसको कोई चोट तो नहीं लगी है। उस बुजुर्ग व्यक्ति ने नन्नू से कहा कि उसे कोई चोट नहीं लगी है। तब तक भारी भीड़ इकट्ठी हो चुकी थी। भीड़ में से एक युवक ने नन्नू को उठाया, साथ में उसका बैग उठाकर उसे दिया। नन्नू के स्कूल ड्रेस के कपड़े उस जगह से फट गए थे, आप ही बैग रगड़ खाकर, आगे की तरफ से फट गया था। वहां खड़े सभी लोगों ने नन्नू के बहादुरी की प्रशंसा की। घर पहुंचकर नन्नू ने सारी बात अपने परिवार वालों को बताई। सभी को उसकी बहादुरी पर गर्व था।

नन्नू का स्वप्न तब टूटा, जब नन्नू का नाम पुरस्कार के लिए पुकारा गया। अपना नाम सुनकर नन्नू अपने माता पिता के साथ अपना पुरस्कार प्राप्त करने के लिए पहुंचा। गवर्नर साहब ने नन्नू को गोदी में उठा कर लाड़ से सराहा, फिर नीचे उतार कर नन्नू और उसके पिता से हाथ मिला कर, उसकी माता को प्रणाम कर नन्नू के नन्हें-नन्हें हाथों में पुरस्कार प्रदान किया। मैदान में तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी थी। वहां हर शख्स नन्नू की बहादुरी की तारीफ कर रहा था।

मौलिक और स्वरचित
जगदीश गोकलानी "जग, ग्वालियरी"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश

गुरुवार, 19 जनवरी 2023

रचनाकार :- आ. नरेन्द्र श्रीवात्री स्नेह जी, शीर्षक :- धूप



कलम बोलती है साहित्य समूह 
विषय क्रमांक ---539
विषय. .धूप 
विधा कविता 
दिनांक 18/1/2023
दिन बुधवार 
संचालिका आद सुनीता चमोली जी 

शीत ऋतु की प्यारी धूप 
सबके मन को भाती धूप। 
धूप बिना न चलते काम ,
धूप से मिलता सबको आराम। 
सुबह जब निकलती धूप ,
बैठ जाते आँगन में सब। 
करते पढ़ाई बैठ कर सब, 
दादा चुस्की लेते चाय की।
 धूप छोड़ने का मन न होता। 
धूप से मिलता विटामिन डी.
धूप में बैठ कर दादी भाभी 
बुनती स्वेटर। 
सभी उठाते लुप्त धूप का ,
होती हड्डियां मजबूत।
गर्मी की  धूप लगती तेज 
आता सारे बदन में पसीना ,
 नहीं किसी को भाती धूप। 
बारिश में मुश्किल से. ,
निकलती धूप। 
कभी कभी मिलती है धूप। 
सबको प्यारी लगती धूप ,
सबके मन को भाती धूप। 

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित। 
नरेन्द्र श्रीवात्री स्नेह 
बालाघाट म प्र

रचनाकार :- आ. निकुंज शरद जानी जी, शीर्षक :- धूप


'जय माँ शारदे '
विषय- क्रमांक-539
विषय- धूप 
विधा- पद्य-लेखन 
दिनांक-18-01-2023
सादर समीक्षार्थ। 

धूप 
-----
आती धीमी- धीमी पद्चाप लिए 
फिर भी पायल सी झंकृत हो जाती 
धूप यूँ इठलाती----
मेरे आंगन के हृदयाकाश में छा जाती----

वो बर्फ़ जो ठसक गई थी काहिली सी 
पिघल- पिघल कर अनुसंधान पा जाती!
मौन होते हुए भी मुखर सी 
मानो मुझसे ही मुख़ातिब होना चाहती----

धूप के एक टुकड़े को 
मुट्ठी में बंद कर लेने का एहसास 
अब तक है बाकी 
यूँ धूप अंगड़ाई  लेती और 
मुझमें समा जाती----

गौर वर्ण चितवन चंचल सी 
कभी कोमल तो कभी कठोर सी 
आह की कसक से वाह में ढल जाती 
धूप मौसम की करवट के संग हर रंग में ढल जाती 

मेरे आशियां में एक परछाई 
धूप लाती कुछ ऐसे 
लतिकाओं की तरुणाई दीवार लांघकर आ जाती जैसे 
ना जाने कब- कहाँ प्रतिबिंबित हो जाती 
कभी उन्हीं झंकृत स्वरों में ढलकर 
एक मधुर गीत बन जाती और 
संवेदना बनकर कभी विछोह और 
कभी मिलन रागिनी बन धूप गुनगुनाती---
हाँ! धूप मुझे है भाति!
हाँ! धूप मुझे है भाति!!

---- निकुंज शरद जानी 
स्वरचित और मौलिक रचना

रचनाकार :- आ. गीता परिहार जी, शीर्षक :- धूप


#कलम ✍🏻 बोलती है साहित्य समूह 
#विषय_क्रमांक_539
 #विषय   #धूप 
#विधा  #पद्य
#दिनांक ...18 जनवरी 2023

निकल पड़े तपती धूप में जब
 क्या खबर थी पैर में छाले पड़ेंगे
गोद में बच्चा और सर पर गृहस्थी
वीरान सड़क , देखते ही देखते भीड़ बन गए।

अच्छी कमाई का लालच न होता
खेती ने गर साथ दिया होता 
मुनिया,सोनू को पीछे छोड़ा न होता
लॉकडाउन क्या बला है, मालूम होता।

रातें बीतीं,बिन खाये,
गांव पहुंचे तो जीया जुड़ाए।
पहुंचे किस विधि ?चल पड़े पैदल
धर्मात्माओं की बस्ती में बंटते लंगर।

अभिमान गया , सम्मान कहां
अन्नदाता कहलाने वाले
दया-दृष्टि पर दाताओं 
कीमत जानी विधाता की।

गीता परिहार
अयोध्या कैन्ट

मंगलवार, 17 जनवरी 2023

रचनाकार :- आ. देवेश्वरी खंडूरी जी, शीर्षक :- संगम




"क़लम ✍️ बोलती है" साहित्य समूह
मंच को प्रणाम 🙏🙏
विषय -संगम
क्रमांक संख्या 538
दिनांक- 16-1-2023
****************
                 🙏जय मां शारदे 🙏
                 🌹🌹🌹🌹🌹🌹
संगम नदियों के मिलन का स्थल बड़ा ही विहंगम ,
संगम की पवित्रता से मिट जाते जीवन के गम।

संगम पर स्नान करने से तन पवित्र, पाप कट जाते हैं,
संगम के दर्शन मात्र से मन वही रम जाता है।

नदियों का संगम जहां हो, वह तीर्थ स्थल बन जाता है, 
संगम पर पूजा-पाठ करते,मन भक्तिभाव जग जाता है।
रिमझिम बरसात का धरा से होता संगम,
गहन लताएं पेड़ों से करती आलिंगन।

बादल छाए,गगन गुनगुनाए, दोनों का हुआ मिलन,
धरा मुस्कुराए , अपनी प्यास बुझाने को बारीस की बूंदों से हुआ संगम।

देवेश्वरी खंडूरी ,
देहरादून उत्तराखंड।

रचनाकार :- आ. संजय कुमार सुमन जी, शीर्षक :- संगम


मंच को सादर नमन🙏
विषय - संगम
दिनांक - 17-01-2023
विधा- कविता

मिलन धरा और अम्बर का
झूमती पवन और चमकती रौशनी
चंदा सूरज का नजारा अद्भुत संगम का
दुनियाँ को दिखलाता है।

मिलन गंगा और यमुना का
विहंगम दृश्य संगम का
भाव पवित्रता का अप्रतिम
आकर्षक हृदय में जगाता है।

मिलन दो आत्माओं,समाज
परिवार का वह दृश्य संगम का
लोमहर्षक,अविस्मरणीय,मनोरम
नजारा बन जाता है।

जन्म - जन्म का रिश्ता बनता
सदियों तक सबको आपस में
अदृश्य बंधन में बांधता
विश्वास का संगम बनाता है।

संगम पर बनता महल
विश्वास और समर्पण का जो 
जीवन समर में मजबूती से
एक दूजे को जोड़े रखता है।

                                   संजय कुमार सुमन
                            नवगछिया,भागलपुर,बिहार।

सोमवार, 16 जनवरी 2023

रचनाकार :- आ. उमेश प्रसाद सिंह जी, शीर्षक :-संगम


# नमन मंच
# कलम बोलती है 
# विषय - संगम
# दो दिवसीय आयोजन
# दिनांक - १६/०१/२०२३
# दिन - सोमवार
# विधा - काव्य
********************************************
गंगा यमुना सरस्वती का संगम ,
बनाता सुंदर तीरथ प्रयागराज ।
जहां संगम वहीं अमृत भी बरसे,
कुम्भ नहाने आते हैं सकल समाज ।।

जब अक्षरों का होता है संगम ,
होता सुंदर शब्दों का निर्माण ।
शब्दों शब्दों के संगम को कहते,
भावपूर्ण सुंदर वाक्य सकल जहान ।।

सुंदर सुंदर वाक्यों के संगम से,
बनते जाते कविता और कहानी ।
किताबों में लिखते जाते हैं हम,
कविता कहानी नई और पुरानी ।।

जब दो दिलों का होता है संगम,
रिश्तों में बंधते हैं जीवन हमारा ।
दोनों मिलकर सुख दुख में हमेशा,
ये मानव जीवन सबने संवारा  ।।

कागज़ कलम का होता जब संगम,
लिखते हम इतिहास गणित भूगोल ।
तब ये दुनियां वाले जान सके हैं,
अपनी धुरी पर घूमती धरती गोल ।।
*****************************************
स्वरचित एवं अप्रकाशित
उमेश प्रसाद सिंह
बोकारो, झारखंड

रचनाकार :-आ. सीता गुप्ता दुर्ग जी, शीर्षक :- संगम

#कलम_बोलती_है_साहित्य_ समूह
#विषय_क्रमांक_538
#दिनांक_16-01-2023
#दिन_सोमवार
#विषय_संगम
#विधा_काव्य
        *शब्द संगम*
====================
शब्द सरित जब नीर ह्रदय में,
 मानस पटल पर बहता है।
  

कविता रूपी गागर में तब,
     भावना का संगम होता है।

दुखी हृदय को धीरज देकर,
 तपन की अग्नि मिटाता है।
  नए संकल्प भविष्य को देकर,
    पग को दृढ़ता देता है।

काव्य सरित सागर से मिलने,
  पूर्ण वेग से बहता है।
   सृजन संग चरम बिंदु पहुंचकर,
     नई परिभाषा रचता है।

शब्द संगम जब होता है,
तो भाव प्रबल हो जाता है।
मानस मन तब एक दूजे से,
भावों से संगम करता है

कविता संदेश वाहक जो होती,
 धरा पर खुशियाॅं देती है।
   पतझड़ संग बहार के जैसे,
     सृजन रंग छलकाती है।

✍🏻 सीता गुप्ता दुर्ग छत्तीसगढ़

रचनाकार का नाम- आ. संजीव कुमार भटनागर, शीर्षक :-संगम


#कलम बोलती है साहित्य समूह
#आयोजन संख्या 538
#विषय संगम
दिनांक  16/01/2023
#विधा  कविता

अक्षरों का संगम जब होता
नव गीत कोई बन जाता है,
सुरों के संगम की सरगम से
मधुर संगीत मन लुभाता है|

गंगा जमुना धारा का संगम
होता तब महान पर्व उद्गम,
लघु भारत का एहसास होता
कुंभ में होता जनता का संगम|

अरुणोदय में सूर्य चंद्र का संगम
तिमिर से ज्यों प्राची किरण मिलन,
अद्भुत होता यह दृश्य विहंगम
प्रकृति का खेल है सुंदर मनोरम|

माटी बरखा बीज का संगम
पल्लवित हो जाता नव जीवन,
कुछ संगम हैं अनोखे अद्भुत
क्षितिज पे धरा अंबर का मिलन|

नए आविष्कार जन्म लेते हैं
होता ख़ोज कल्पना का संगम,
अकल्पनीय कार्य कर जाओगे
करा हौंसलें उम्मीद का संगम|

रचनाकार का नाम- संजीव कुमार भटनागर
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
मेरी यह रचना मौलिक व स्वरचित है

रचनाकार :- आ. संगीता चमोली जी

नमन मंच कलम बोलती है साहित्य समुह  विषय साहित्य सफर  विधा कविता दिनांक 17 अप्रैल 2023 महकती कलम की खुशबू नजर अलग हो, साहित्य के ...