नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
३/२/२०२३
विषय---धूल
विधा---लघुकथा
संचालन --आ.सुभाष कुशवाहा जी
सादर समीक्षार्थ
#धूल
-------
संजय और रागिनी के बीच गाहे-बगाहे बच्चों को लेकर वाद विवाद हो ही जाता था।
संजय को बच्चों का धूल में खेलना बहुत पसंद था, उसका कहना था बच्चे धूल-मिट्टी में खेल कर मजबूत बनते हैं और निरोगी रहते हैं। रागिनी को पसंद नहीं था कि हमारे हाई सोसाइटी के, शहर के बड़े स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे धूल -धूसरित होकर घर आएं।
उसे बड़ी कोफ्त होती थी।
जितनी रागिनी को धूल से चिढ़ थी, उतना ही घरवालों को धूल से प्यार था।
संजय तुम इतने बड़े अफसर हो, कल जब तुम्हारे बॉस अपनी फैमिली के साथ घर आए थे तब बच्चे धूल में खेल कर गंदे से घर आए तब मुझे बहुत शर्म आ रही थी। तुम समझते क्यों नहीं.......
रोज की तना-तनी और तनाव में जीती रागिनी को देख कर एक दिन उसके सास ससुर ने राज खोला कि संजय जो तुम्हारा पति है और बहुत बड़ा ऑफिसर भी......यह रास्ते की #धूल #का #फूल है ।
रागिनी की आँखों से धूल का पर्दा साफ हो चुका था।
शशि मित्तल "अमर"
स्वरचित
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें