नमन--कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक------------------569
विषय-------------कटहल की सब्जी
तिथि----------------30/03/2023
वार-------------------------गुरुवार
विधा------------------------मुक्तक
मात्राभार--------------------13,11
#कटहल_की_सब्जी
कटहल की सब्जी बनी,मुख में आया नीर।
सब्जी खाया माँग कर,कब था भाया क्षीर।
चटनी भी थी साथ में,लिया साथ में स्वाद-
सब्जी खाया सो गया,सकल मिटाया पीर।
उदर हुआ ये लालची,फिर खाने की चाह।
बची नहीं थी रात में,सब्जी बिन थी आह।
अन्तर्मन फिर माँगता,करता बहु आवाज-
सुने कौन इस शोर जी,वत्स न भाती राह।
अरविन्द सिंह "वत्स"
प्रतापगढ़
उत्तरप्रदेश
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