#कलमबोलतीहैसाहित्यसमूह
#विषयक्रमांक554
#विषय- जब फसल लहलहाती है
#विधा- कविता
#दिनांक- 22/2/2023
जब फसल लहलहाती है !
धरा का सीना चीरकर नए !
अंकुर उग आते है !
उगाकर अन्न मेहनत का !
हमें भोजन खिलाते है!
सदा भूखों का भूख मिटाता जो !
वो मजबूर हलधर अभावों में !
गले में फाँसी लगाता क्यो?
ठिठुरती सर्दियों में चिलचिलाती धूप में !
बरसती काली घटाओं में!
आसमानी आपदाओं में !
न जाने किस किस से !
लड़ कर अपना फसल बचाता है !
कभी हार ना माने परिणाम चाहे कुछ भी हो !
फ़िर क्यों टूट जाता है वो ?
हार जाता अभावों में भूखे पेट की संघर्षों में !
उसकी तकलीफ कोई नहीं सुनता !
किस काम की ये तरक्की ??
रियायत किस काम आयेगा?
अन्न उगाने वालों की मत करो अवहेलना !!
वक्त पर संभल जाओ ये है देश के कर्णधार !!
किसान मुकर गया कभी अगर !
देश को भूखा मर जाना है !!
✍मीठु डे मौलिक (स्वरचित )
वर्धमान-वेस्ट बंगाल
👌👌💐
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