"नमन मंच"
दिनांक:- 23/02/2023
विषय:- जब फसल लहलहाती है
विधा :- कविता/स्वैच्छिक
समीक्षार्थ --
"जब फसल लहलहाती है"
_-_-_-_-_-_-_-_-_-_-_-_-_-_
कृषक मन आल्हादित होता
निरख फसल लहलहाती सी
परिवारी मन हर्षित उसका
नवल उपज जब पक जाती।
धरा करे श्रंगार नवल
चूनर ओढ़े धानी रंग
हरियाली जैसे डेरा
महक रहा तृण तृण अंग।
यह मौसम अद्भुत अनुपम
नयी कोंपले शाखा सब
उपवन कलियां चटक रहीं
पुष्प बिखेरे सौरभ घर।
खुशबू सौंधी आम्र मंजरी
कूक रही कोयल काली
फुदक फुदक गीत सुनाती
स्वर सरगम की मतवाली।
कनक बल्लरी झूम रही
रंग सुनहरा छाया है
घूंघरू स्वर चना घनेरा
झूमर मसूर पाया है।
अलसी के सिर कलसी
प्रकृति सुंदर माया है।
तिलहन - दलहन फसलें ये
ऋतु बसंती लाया है
अद्भुत निरखत दृग दृश्य
अरहर अलि ढूंढे मकरंद
छटा छबीली सुरबाला लख
अनुभूति का ले आनंद।
हलधर मन दशा विशेषी
"शिव" बौराया नाच रहा
उदर पूर्ति भरें भंडारे
उपज उपज धन जांच रहा।
प्रजापति श्योनाथ सिंह "शिव"
महेशरा, अमरोहा, उ0प्र0
स्वरचित/मौलिक
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें