विषय क्रमांक:- 547
विषय :- आओ वक्त के साथ चले। विधा :-स्वैच्छिक।समीक्षा हेतु।दिनांक :- 06 फ़रवरी 2023
🌹आओ वक्त के साथ चलेंं🌹
जिस परिवार से मैं स्वयं हूँ वह बहुत बडा़ है।मेरी माँ हमेशा कहा करती थी बच्चों को अपने से बडों और छोटों के साथ व्यवहार करने की शिक्षा घर से ही मिलती है।माँ एक कुशल गृहणी थी।हम बच्चों का बहुत ध्यान रखती थी।हम बच्चों को नीति शिक्षा की कहानियाँ सुनाकर हममें नैतिकता अंकुरित करती थी।एक बार की बात है गर्मियों की श्याम का समय था।मुझे और पडो़सियों के बच्चों को बुलाकर उन्होंने अपने पास बैठा लिया और कहने लगी "आओ वक्त के साथ चले"की कहानी सुनाती हूँ।उन बच्चों में मैं सबसे छोटी उम्र की थी।लेकिन मुझे भी उन्होंने अपनी गोदी में न बैठाकर और बच्चों के साथ अपने सामने बैठाया और कहानी कहने लगी-एक बार की बात है,एक व्यक्ति था वो एक महात्मा जी के पास गया और कहने लगा की गुरुजी मुझे दुःखों से कब छुटकारा मिलेगा और मैं "वक्त के साथ कब चल सकूंगा"।महात्मा जी ने उसको दो थैलियाँ दी और कहा पहली थैली में तुम्हारे पडो़सी की बुराइयाँ है इसे तुम हमेशा अपनी पीठ पर रखना और कभी खोलकर मत देखना और दूसरी पोटली में तुम्हारी बुराइयाँ रखी है इसे हमेशा अपने सामने रखना और कभी-कभी खोलकर देखते रहना।वो व्यक्ति बहुत खुश हुआ और घर चलने को हुआ तो थैलियाँ आपस मैं बदल गई।जिस थैली में उस व्यक्ति की स्वयं की बुराईयाँ थी उसे उसने अपनी पीठ पर रख ली और पडोसियों की बुराई वाली थैली अपने हाथ में पकड़ ली।एक दो दिन तो उस व्यक्ति के शांति से बीते।लेकिन तीसरे दिन पडो़सी के घर का कचरा उसके घर के आँगन में गिरा तो वह लडने लगा।रोज ही उसके साथ कुछ न कुछ होनें लगा।एक दिन वही महात्मा जी उसके घर पहुंचे जिन्होंने उसे पोटलियाँ दी थी।उसका हाल चाल पूछने पर उसने पडोसियों के साथ लड़ाई झगडे़ वाली बात बता दी।महात्मा जी समझ गये इस व्यक्ति से कुछ गड़बड़ हो गई है।महात्मा जी ने उसकी पोटलियों को ठीक किया और चले गये।अब वह व्यक्ति किसी से कुछ नही बोलता था।शांति से घर पर रहने लगा।पडोसियों का उसके साथ व्यवहार भी बदल गया।पडो़सियों को बडा़ आश्चर्य हुआ।पडो़सी पूछते तो शान से कहता अब मैंने "वक्त के साथ चलना"- सीख लिया है। सुनीता चमोली ✍🏻
धन्यवाद 🙏
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