नमन मंच कलम बोलती है
आदरणीया निकुंज शरद जानी को नमन।
क्रमांक _५५६
दिनांक _२७/२/२०२३
विषय_बदरी और चांद
हे रीत पुरानी बदली और चांदकी ।
करते रहते खेल लुका छुपी का ।
बदली ढंक लेती अपनी ओट में,
चांद को छा जाता गहन अंधेरा ।
चकोर पक्षी विरह में पुकारता ।
पीहू पीहू कहां हो आओ न पास ।
बदली सुन विरह गीत हट जाती ।
ओट से निकल चांद की शीतल,
चांदनी सितारे निखर उठते ऐसे ।
बरात ले आते चंदा रोहणी को ब्याहने ।
बदली के अश्रु छलक जाते बन जल ।
धरा की प्यास बुझती, हो उठती हरित।
है यह खेल दोनों का चला आ रहा आदिकाल से ।
है कवि की कविता लिए छंद अलंकार से परिपूर्ण।
स्वरचित दमयंती मिश्रा
हार्दिक बधाई दीदी
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन सृजन आदरणीय दीदी आपकी छोटी बहन संगीता
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