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मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023

रचनाकार :- दमयंती मिश्रा जी, शीर्षक :- बदरी और चाँद

नमन मंच कलम बोलती है
आदरणीया निकुंज शरद जानी को नमन।
क्रमांक _५५६
दिनांक _२७/२/२०२३
विषय_बदरी और चांद
हे रीत पुरानी बदली और चांदकी ।
करते रहते खेल लुका छुपी का ।
बदली ढंक  लेती अपनी ओट में,
चांद को छा जाता गहन अंधेरा ।
 चकोर पक्षी विरह में पुकारता ।
पीहू पीहू कहां हो आओ न पास ।
  बदली सुन विरह गीत हट जाती ।
     ओट से निकल चांद की शीतल,
      चांदनी सितारे निखर उठते ऐसे ।
 बरात ले आते चंदा रोहणी को ब्याहने ।
बदली के अश्रु छलक जाते बन जल ।
 धरा की प्यास बुझती, हो उठती हरित।
 है यह खेल दोनों का चला आ रहा आदिकाल से ।
है कवि की कविता लिए छंद अलंकार से परिपूर्ण।
स्वरचित दमयंती मिश्रा

2 टिप्‍पणियां:

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