#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह
#विषय_क्रमांक_547
#दिनांक_06-02-2023
#दिन_सोमवार
#विषय_आओ_वक्त_के_साथ_ चलें
#विधा_पंक्ति पर सृजन
*राह जीवन की*
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यह जीवन एक पहेली है!
जिसकी राह बड़ी अलबेली है।
कभी पग में कंटक देती है,
कभी मखमली सुमन बिछाती है।
कभी अश्रु कोटर होते हैं,
कभी अधर गीत भी गाते हैं।
कभी अपने पराए लगते हैं,
कभी गैर अपने हो जाते हैं।
कभी कोसों दूर की वो मंजिल!
क्षण भर में हासिल होती है।
कभी हाथ में आईं कुछ खुशियां,
एक पल में गायब होती हैं।
यह जिंदगी यूं ही पहेली बन,
अनसुलझी आगे बढ़ती है।
आओ वक्त के साथ चलें!
यही सीख वह देती है।
जो वक्त के साथ चल पाता है,
उसे जीने की राह मिल जाती है।
जो सम्मान किया उसने वक्त का,
उसे सारी खुशियां मिल जाती हैं।
✍🏻 सीता गुप्ता दुर्ग छत्तीसगढ़
हार्दिक बधाई जी
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