मीनाक्षी जी की बहुत ही सुंदर रचना
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स्त्री
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क्या तुम समझते हो
स्त्री होने का दुःख ?
नहीं , तुम नहीं समझ सकते
तुम्हें अपने पुरूष
होंने का बहुत
अभिमान है ।
सदियों दर सदियों तक
तुम नहीं बदलोगे
क्या तुम एक दिन के लिए
केवल एक दिन के लिए
स्त्री बनना चाहोगे
देखना चाहोगे ।
महिने के वो सात दिन
किस पीड़ा से गुजरती है
जीना चाहोगे संस्कारों के
नाम पर
शोषित होकर
क्या तुम एक संतान को
जन्म देकर
नो महिने का अनुभव
करना चाहोगे
क्या एक दिन तुम
चारदिवारी में
बंद रहकर सब की देखभाल
करना चाहोगे
सबकी इच्छाओ की पूर्ति के लिए
अपनी इच्छाओं का बलिदान
कर पाओगे
स्त्री होने के लिए
अहिल्या सा पत्थर होना पड़ता है
मोक्ष के नाम पर ठोकरों में
रहना पड़ता है
द्रौपदी सा चीरहरण सहना
पड़ता है
गली गली दुर्योधन
भटकते हैं
जो औरत को केवल भोग की
वस्तु समझते हैं
झेलना पड़ता है
गांधारी सा अंधापन
साँस -ससुर ,पती की
इच्छा के कारण
अपनी ममता को
छलना पड़ता है
सिर्फ और सिर्फ पुरूष संतान को
जिवित रखने के लिए
कितनी बच्चियों को
कुर्बान होना पड़ता है
जिन्हें पैदा होने से पहले ही
मार दिया जाता है
फिर भी उजड़ी कोख
लिए जिना पड़ता है
कितनी अग्नि परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है
सिया सा आत्मा के जंगलों में भटकना पड़ता है
क्या तुमने दी है कभी
अग्नि परीक्षा
सावित्री सा तपस्वी
होना पड़ता है
मृत्यु तक को हारना
पड़ता है
क्या कभी तुम अपनी
सहचरी के लिए
लड़े हो मौत से
नहीं तुम तो अपने अहंकार
क्षणिक भूख के लिए स्त्री का
शरीर ही नहीं
आत्मा तक छीनबीन कर देते हो
फेंक देते हो
मरने के लिए
उसका जिस्म तार-तार कर के
और अपने होने पर गर्व करते हो
क्या है
तुम्हारे पास गर्व करने
जैसा
जब भी इस बात से भ्रमित हो
के तुम
संसार की सबसे श्रेष्ठ
कृति हो
तो जाकर अपनी माँ से लिपट
जाना
अपनी बहन को देख लेना
अपनी बेटी के सर पर हाथ रख देना
जब तुम्हें लगे के माँ की गोद से बढ़कर
कोई जगह नहीं है संसार में
या सुखद अहसास दुसरा नहीं है तो
स्त्री का महत्व जीवन में ही नहीं
संसार में क्या होता है समझ लोगे
तब तुम सही मायने में
पुरूष कहलाओगे ।
मीनाक्षी भालेराव अध्यक्ष:पृथा फ़ाउन्डेशन अध्यक्ष:अक्षर अक्षर कविताओं का हिन्दी काव्य मंच
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