नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक 562
विषय पथिक तू चलता चल
दिनांक 13.03.23
शीर्षक " बना रहे उत्साह प्रबल"
पथिक तू चलता चल
राह कितनी भी पत्थरीली हो
पग पग पर झाड़ कंटीली हो
दुर्गम ऊंचाइयां भी कभी
कर पाएं न तुझे विकल
पथिक तू चलता चल
सूरज बरसाए अग्नि बाण
या मेघ बरस करें परेशान
हर पल लगे बाधाओं भरा
निराशा का घनघोर अंधेरा
तू कस ले कमर और निश्चय अटल
पथिक तू चलता चल
न सोच कोई क्यूं साथ नहीं
हाथों में किसी का हाथ नहीं
मंज़िल भी दिखती नहीं कहीं
राहबर का भी एहसास नहीं
जो साथ चलें उसे लेकर चल
पथिक तू चलता चल
कैसा थकना क्या रोना है
नभ छत है धरा तेरा बिछौना है
ग़र करता रहा प्रयत्न निरंतर
तो उद्देश्य बस एक खिलौना है
इस खेल में बना रहे उत्साह प्रबल
पथिक तू चलता चल
- डॉ. सुनील शर्मा
गुरुग्राम, हरियाणा
प्रोत्साहन के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया जी 🙏🙏
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