बिषय - हिंदी दिवस
विधा - कविता
मातृरूपेण हिंदी
जबसे मैंने होश संभाला,
तुने भाषा से परिचय करवाया,
संस्कारों का जननी बन,
मुझको मुझसे मिलवाया।
तु हर कालखंड की साक्षी,
ऋषि-मुनियों की वाणी,
वेद-ऋचाओं की जननी,
हिंदवासियों की शान है।
देश-विदेशों में पहचान है।
स्वर-व्यंजनों से सुशोभित,
रस,छंद,अलंकार से सुसज्जित,
गीत-गजल की मधूर शान है,
तुलसी की चौपाई में,
कबीरा की वाणी में,
मीरा, रसखान, सुर की भक्ति में,
भारतेन्दु, निराला, दिनकर
निराला, महादेवी की कविता में
तुझसे ही अभिमान है।
हे मातृरूपेण हिंदी
जबतक भारतवर्ष रहेगा,
तेरा स्वभिमान रहेगा ।
ज्योति सिंह
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित