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शुक्रवार, 24 सितंबर 2021

रचनाकार :- आ. दामोदर मिश्रा जी 🏆🏅🏆

#कलम बोलती है साहित्य समूह मंच को नमन।
#जय मां शारदे।
#दो दिवसीय आयोजन।
#दिनांक : 22 सितंबर से 23 सितंबर तक।
#दिन :      बुधवार से बृहस्पतिवार तक।
विषय :     श्राद्ध पक्ष।
विधा :      स्वैच्छिक।

                     । रचना। 

मीठे  मीठे   खीर - पूड़ी,   तुम  किसे खिला रहे हो,
किस  किस के  लिए  तुम   सब  पूजा करा  रहे हो,
पंडित   बुला   कर    क्यों   पिंड - दान  करा रहे हो,
जीते  जी  तो,  पूछा नही,  आज क्या दिखा रहे हो।

कोई  कौआ  बन  कर क्यों आए  तुम्हारे छज्जे  पर,
एक  दो दिन  का ये  तर्पण का अर्पण क्या  लेना  है,
दूध,  गुड़,  और,   खीर   के  भोग आज   लगाओगे,
ऐसी  पूजा   उनकी,   जिंदा  जी  जिन्हे  सताया था।

गाय बनकर,  तेरे  द्वारे मैं पूड़ी  खाने   क्यों आऊंगी,
कचड़े  में  पड़े   हुए  प्लास्टिक -  शीशा  ही खाऊंगी,
अपनी मतलब  आती  तो,   गाय माता  कहलाती हूं,
मतलब निकलते  ही  कसाई  के  घर भेजी जाती हूं।

कुता  बन  कर,   कोई   क्यों तुम्हारा श्राद्ध को  खाए,
कुता  हो  कर  भी,   वह  तुम  से ज्यादा वफा निभाए,
कुता -  कौआ  यह सब तो,   केवल बस  उदाहरण हैं,
उनसे  भी गिरा हुआ,  आज,    मनुज का आचरण है।

मैं  सच कहता हूं,  गाय,  कुत्ता  या  कौवा नहीं बनूंगा,
तुम्हारे  रूप  में ही रूप  बदल तुम्हारे अंदर ही   रहूंगा,
शर्धा  से  श्राद्ध होगी,  बड़ों  की  इज्जत  अगाध होगी,
तब ही श्राद्ध पक्ष मनेगा,   तब  ही असली श्राद्ध होगी।

      स्वरचित मौलिक और अप्रकाशित।

      *ब्लॉग के लिए।

                              दामोदर मिश्र, बैरागी।
                               मेदनीनगर, पलामू , झारखंड।


बुधवार, 22 सितंबर 2021

रचनाकार :-आ. कुन्दन श्रीवास्तव जी 🏆🏅🏆

रचनाकार :- आ. अभिमन्यु सिंह जी 🏆🏅🏆

कलम ✍बोलती है साहित्य समूह को सादर नमन 🙏
साप्ताहिक मुक्तक लेखन आयोजन, 
विद्या:- पत्र लेखन✍
विषय:- पुत्री का पत्र माँ के नाम, 
*******************************
माँ को चरण वन्दन, 
            कैसी  हो  तुम  माँ ।
भूली  नहीं  हूँ   मैं ,
          तेरी आंचल की छांव। 

जब जब रोईं थी मैं, 
          तुम गोद में लेकर घूमी। 
बालों को सहला कर,
          गाल पर जड़ी थी चुम्मी। 

सब कुछ याद है माँ, 
           कुछ  भी नहीं मैं  भूली ।
जब मैं सोती बेफिक्र,
            तुम रखतीं आंखें खुली। 

सोते  जागते  हर  पल, 
              तेरी याद बहुत  आती है।
तेरे हांथ की बनी कलेवा,
               सपने  में  भी  भाती  है।

अच्छे से  तुम  रहना  माँ, 
               सेहत पर भी रखना ध्यान। 
समय से अपनी नींद लेना,
               समय से लेना व्यंजन पान। 

जल्द ही आऊंगी मिलने, 
               तब  बातें  करेंगे इत्मीनान। 
बातों  की है  झड़ी लगी ,
               करती हूँ अब कलम विराम।
                                  तुम्हारी पुत्री- पर्यावरण, 
          अभिमन्यु, (औरंगाबाद, बिहार),🙏

मंगलवार, 21 सितंबर 2021

वो कौन?.. सस्पेंस थ्रिलर स्टोरी by uma Vaishnav

14  फरवरी,

मोबाइल की रिंग ट्यून बजती हैं

गुप्त..गुप्त...गुप्त... 🎶🎶🎶..

रिंग सुनते ही प्रशांत की आँख खुलती हैं, प्रशांत आँखे मशलता हुआ... मोबाइल में नंबर देख..... कॉल उठाता है..

प्रशांत.... बोलो निधि,.. किस का मर्डर हुआ है, कहाँ पहुँचना है???

निधि... अरे... बिना कुछ कहे.. ही.. पूछ रहे हैं, किसका मर्डर हुआ??... 🙄

प्रशांत :- अब इतनी सुबह.. तुम मुझे वेलेंटाइन डे विश करने के लिए तो कॉल करोगी नहीं.. 😉

कहानी को आगे बढ़ाने से पहले हम आपको बता दें कि निधि और प्रशंसा एक साथ एक डिटेएक्टिव ऑफिस  में काम करते हैं, और दिल ही. दिल में एक दूसरे को चाहते हैं, किन्तु एक दूसरे के सामने स्वीकार नही करते हैं।

प्रशांत :- अच्छा बोलो क्या हुआ है?

निधि:- आप तुरंत ऑफिस पहुंचे। एक बहुत ही अजीब केस आया।

प्रशांत :- ओके,.. मैं अभी आधे घंटे में पहुंचता हूँ।

प्रशांत समय का बहुत पका था। वो ठीक है आधे घंटे बाद अपने ऑफिस पहुँच जाता है। किंतु निधि हमेशा देर से पहुँचती है। आज भी वो देर से पहुंचती है।
प्रशांत ऑफिस में निधि का इंतजार कर रहा होता है। तभी निधि ऑफिस में पहुँचती है।

निधि :- मे आई कमिंग... सर

(प्रशांत निधि का सीनियर ऑफिसर होता हैं, इसलिए निधि उसे सर ही कहती हैं।)

प्रशांत :- निधि... तुम आज फिर पूरे.. 5 मिनिट और 25 सैकंड लेट हो।

निधि :- ( मन ही मन बडबडाते हुए)... एक.. एक.. सैकेंड की गिनती करता है.. इंसान हैं.. या मशीन......हिटलर।

प्रशांत :- कुछ.. कहा.. तुमने..??

निधि :- कुछ नहीं.. आ... आआ.. आई एम सॉरी सर।

प्रशांत :- ओके.. अब काम की बात... कैस की फ़ाइल कहाँ हैं??

निधि प्रशांत को फ़ाइल देते हुए कहती हैं।

निधि :- यह रही.. सर।.. ये केस एक सर फिरे आशिक का लगता है... सर
और निधि प्रशांत को पूरा केस बताती हैं

शालिनी एक फूड एजेंसी में काम करती होती है,
आज से ठीक 3 महीने पहले यानी कि 3 नवंबर को उसके मोबाइल पर किसी अजनबी का कॉल आता है। वो कहता है कि वो शालिनी को बहुत चाहता है, और उसी से शादी करेगा। पहली बार तो शालिनी ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया। कोई सरफ़िरा समझ कर एक दो बात सुनाई और कॉल काट दिया। लेकिन वहीं कॉल उस दिन के बाद बार बार आता रहा। और सब से बड़ी हैरत की बात तो यह थी कि उसे शालिनी के पल पल की खबर रहती थी। वो कब खाती है.. वो कब सोती है..... उसकी पसंद.. ना.. पसंद.. सब... हर रोज वो उसे कॉल कर के कभी उसके कपड़ों की कभी उसके खाने की... तो कभी.. ऑफिस से आने जाने के समय की बात करता हैं, पूरे तीन महीने से वो उसे इसी तरह परेशान कर रहा है अब तो हद ही हो गई। इस बार उसने साफ साफ कह दिया कि इस वेलेंटाइन डे को यदि उसके प्यार को स्वीकार नहीं किया तो वो उसे जान से मार देगा। शालिनी बहुत डरी हुई है सर....

प्रशांत... शालिनी को पुलिस.. प्रोटेक्टसन दिया गया या नहीं...??

निधि.... यस सर,... दे दिया गया है।

प्रशांत.....ओके,.... चलों शालिनी के घर.... शालिनी से कुछ पूछताछ करनी है।

इतना कह कर प्रशांत और निधि शालिनी के घर पहुंच जाते हैं। और अपना परिचय देते हुए कहते हैं...

प्रशांत.... शालिनी जी.... मैंने आपका पूरा केस स्टडी किया है, पूरे केस को पढ़े के बाद यह तो यकीन हो गया कि कॉल करने वाला जो भी हैं, वो आपका.. बहुत करीबी... में से ही कोई एक हैं।

शालिनी.... लेकिन.. कौन..???

प्रशांत... यही तो... जानना हैं शालिनी जी... इस लिये हम आपसे कुछ सवाल पूछना चाहते हैं जिसका सही सही उत्तर देना होगा आपको।

शालिनी.... जी.. पूछिये

प्रशांत... अच्छा ...शालिनी जी... ये बताये कि इस घर में आपके अलावा... और कौन.. कौन.. रहते हैं।

शालिनी... मैं अकेली ही रहती हूँ।

निधि.. आपके माता-पिता... वो कहाँ हैं

शालिनी... आज से 2 साल पहले... एक कार एक्सीडेंट में दोनों चल बसे।

प्रशांत... चाचा.. चाची... मामा.. भैया.. बहन.. कोई रिश्तेदार... कोई तो होगा ना।

शालिनी..... नहीं... कोई नहीं है।

तभी शालिनी की एक फ्रेंड निशा आती है।

निशा.... शालिनी.. शालिनी.. कैसी हो तुम?? क्या हुआ?? उस बदमाश का कॉल फिर से आया था क्या??...

तभी प्रशांत पूछता है..... आप कौन??

शालिनी... ये मेरी फ्रेंड निशा हैं।

प्रशांत निशा से पूछता है.... तो आप निशा हैं।आप शालिनी को कब से जानती है।

निशा.... काॅलेज से साथ हैं.. हम दोनों... पर आप कौन हों??

शालिनी... ये डीटेक्टीव.. प्रशांत.. और.. ये इनकी जूनियर..ऑफिसर.. निधी

निशा... क्या.... शालिनी.. तुमने.. जासूस.. हायर किया है।

शालिनी.... हाँ,... मैं बहुत डर गई हूँ। उसने मुझे जान से मारने की धमकी दी।

प्रशांत... क्यूं.. निशा जी.... क्या आप नही चाहती कि आपकी सहेली को परेशान करने वाला पकड़ा जाये।

निशा... जी.. मैंने ऐसा कब कहा....

प्रशांत... जी कहा तो नहीं आपकी बातों से ऎसा लग रहा है।

शालिनी... प्रशांत जी, निशा मेरी बहुत अच्छी फ्रेंड है मेरी दोस्त, रिश्तेदार, भाई- बहन, मां- बाप सब कुछ निशा ही है मेरी कोई भी बात निशा से छुपी नहीं...... निशा मेरी सब कुछ है। वो कभी भी मेरे लिए गलत नहीं सोचेगी।

निधि.... कभी-कभी बहुत करीबी ही धोखा दे जाते हैं।

प्रशांत... ओके... शालिनी जी... मैं आपके ऑफिस में आपके साथ काम करने वाले सारे दोस्तों से मिलना चाहता हूं
शालिनी अपने ऑफिस के दोस्तों को घर पर बुलाती हैं। राहुल, विनय, अविनाश, प्रीति और रश्मि  यह सभी शालिनी के ऑफिस में काम करते हैं। निधी और प्रशांत सभी से पूछताछ करते हैं और उनके फोन नंबर एड्रेस नोट करते हैं।
सभी से पूछताछ करने पर कोई बात ऐसे सामने नहीं आई जिससे उन पर शक किया जाए। लेकिन प्रशांत को निशा पर शक होता है। तभी दूध वाला दूध लेकर आता है। वो सीधा अंदर आकर टेबल पर दूध रख कर जाने लगता है तभी प्रशांत उसे रोक लेते हैं।
प्रशांत... तुम बिना.. नॉक किये... अंदर आ जाते हो?
तभी शालिनी कहती हैं... ये तो दूधवाला हैं।
प्रशांत कहता है... शालिनी जी.... आप अकेले घर में रहती हैं आपको इस तरह किसी पर विश्वास नहीं करना चाहिए... चाहे वह दूध वाला हो ....या इस्त्री वाला... या कोई और..

कहानी जारी रहेगी....

image by goole 

   
   


रचनाकार :- आ. संजय वर्मा "दृष्टि"जी 🏆🏅🏆

#दैनिक_विषय_क्रमांक_337
*****************

#कलम बोलती है साहित्य समूह" के मंच को नमन 



* रचना मौलिक और स्वरचित 
#विषय क्रमांक.. 337

🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
 #विषय...कोशिश 
***********************************
#विधा ...स्वैच्छिक 
*********************************
#दिनांक .....20 से 21 सितंबर तक 
*********************************
#वार :- सोमवार से मंगलवार 
*********************************
#समय :- सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक
********************************


बेटी

प्रेम पूजा रिश्तों का बीज होती है बेटी
बड़े ही नाजों से घरों में पलती है बेटी
बाबुल की हर बात को मानती है बेटी
घर में माँ के संग हाथ बटाती है बेटी

छोटें भाइयों को डांटती समझाती है बेटी
माता-पिता का दायित्व निभाती है बेटी
संजा,रंगोली ,आरती को सजाती है बेटी
घर में हर्ष,उत्साह ,सुकून दे जाती है बेटी

ससुराल जाती तो बहुत याद आती है बेटी
पिया के घर रिश्तों में उर्जा भर जाती है बेटी
जिन्दगी को चलाने का मूलमंत्र होती है बेटी
हर कोशिश अधूरी रह जाती जब न होती बेटी

#संजय वर्मा "दृष्टि"
125,शहीद भगतसिंह मार्ग
मनावर जिला धार मप्र

रचनाकार :- आ. कुलभूषण सोनी 'ब्रजवासी जी 🏆🏅🏆

.              21सितंबर , मंगलवार
                🌹शब्द :#कोशिश
              विधा : #दोहा_मुक्तक 
🏵🇮🇳🌹🇮🇳🌹🏵🇮🇳🌹🏵🇮🇳🌹🏵🇮🇳
                🏵#रचना नंबर- 2
 संविधान  निज  देश  का  ,  लागू  का  जो पर्व.

'भूषन'  दीं  कुर्बानियाँ  ,   हम - सबको  है  गर्व.

 हम भी निज #कोशिश करेंं,रहें हृदय से स्वच्छ-

मातृ - भूमि की शान को , रखें  सदा  हम  सर्व. 
                       🌹🏵🙏
    रचयिता : कुलभूषण सोनी 'ब्रजवासी


रचनाकार :- आ. प्रमोद_गोल्हानी_सरस जी 🏆🏅🏆

🙏🌹जय माँ शारदा 
नमन "कलम बोलती है"
दि.-21-09-21
विषय कलर.-337
प्रदत्त विषय- #कोशिश
विधा-  #गीत
मेरी प्रस्तुति सादर निवेदित.... 

***********************************

कोशिश करते रहना प्यारे,मंज़िल तू पा जायेगा |
बिन कोशिश के इस जीवन में,तू कुछ भी ना पायेगा ||
                    +++++
मंज़िल की है चाह अगर तो,कदम बढ़ाने ही होंगे |
बाधाओं के पत्थर सारे,तुझे हटाने भी होंगे ||
मन से गर तू हार गया तो,जीत नहीं फिर पायेगा |
कोशिश करते रहना प्यारे,मंज़िल तू पा जायेगा ||
                    +++++
बात बहुत सीधी सच्ची है,जो तुझको समझानी है |
समझ सका ये बात अगर तो,जीवन में आसानी है ||
नहीं समझ पाया जो इसको,निश्चित वो पछतायेगा |
कोशिश करते रहना प्यारे,मंज़िल तू पा जायेगा ||
                     +++++
याद करे ये दुनिया इक दिन,काम वही करते जाना |
जो भी हों हालात मगर तू,राह बुरी तजते जाना ||
नेक राह चलता चल प्यारे,गीत ज़माना गायेगा |
कोशिश करते रहना प्यारे,मंज़िल तू पा जायेगा ||

************************************

  स्वरचित
#प्रमोद_गोल्हानी_सरस
      कहानी - सिवनी म.प्र.

रचनाकार :-, आ. नन्दिनी रस्तोगी नेहा'जी 🏆🏅🏆

नमन मंच
विधा कविता
विषय मजदूर

मजदूर नहीं मैं
जो दिन रात खटती  रहूं
 कभी बर्तन 
तो कभी कपड़े रगड़ती रहूं
बनाकर तो लाए थे तुम महारानी 
और बना  दी मुझे नौकरानी
बिना पगार के मिल गई 
तुम्हें एक नौकरानी
और तो और 
सर्विस पर भी जाती 
 पगार लाकर भी देती 
और बदले में पाना चाहती हूं 
सिर्फ थोड़ा सा प्यार
 औ स्नेह की बौछार 
पर शायद 
तुम वो भी नहीं दे पाते
 क्योंकि तुम तो मुझे
 मजदूर समझते  हो
पगार लाने वाला मजदूर 
दिन भर काम करने वाला मजदूर  
तुम्हारे घर को सलीके से
 रखने वाला मजदूर 
पर मजदूर नहीं हूं मैं 
मजबूर भी नहीं 
पर तुम्हारे प्यार ने 
बांध रखा है मुझे 
बस इतना ध्यान रखना
 मुझे मजदूर समझने की
 गलती ना करना ! 

नन्दिनी रस्तोगी नेहा'
मेरठ
स्वरचित

सोमवार, 20 सितंबर 2021

रचनाकार :-आ. संजीव कुमार भटनागर जी 🏆🏅🏆

रचना नंबर 1
************
नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक - ३३७
विषय - कोशिश
विधा - कविता
दिनाँक - २०/९/२०२१
दिन - सोमवार
संचालक - आप औऱ हम

जब प्रारब्ध परीक्षा लेता है
मनुज कठिन यातना सहता है,
सफलता असफलता की रेखा
कोशिश से पार कर लेता है|

विघ्न और बाधा मिल जाते हैं
पुरुषार्थ साहस थक जाते हैं,
सर्वस्व न्योछावर कर दे जो
कोशिश से अंबर पा लेते हैं|

जब भी तुमने प्रयत्न किया है
समस्या का हल निकला है,
साधा है जब पुरुषार्थ का तीर
पत्थर से भी जल निकला है|

कठिन राह पे जब तू निकला
मंज़िल की चाह में तू भटका,
प्रयास किया तूने पूरे मन से 
सफ़ल जिंदगी में होके निकला|

कोशिश व मेहनत पूरक हैं
मंज़िल पाने के ये कारक हैं,
मंज़िल मिले या नया तजुर्बा
परिणाम इसके सुखकारक हैं|

स्वीकारो इसको इक चुनौती है
विजय इसकी शायद नियति है,
विजय चाहें हो आधी अधूरी 
प्रयासों में तेरी कोशिश पूरी है|

#घोषणा : - मैं, संजीव कुमार भटनागर घोषणा करता हूँ कि यह रचना मेरी स्वरचित मौलिक और अप्रकाशित रचना है। ब्लॉग पर प्रकाशन कि अनुमति है|


रचना नंबर -2
***********

नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
#दैनिक विषय क्रमांक - 338
दिनांक - 22/09/2021
#दिन : बुधवार
#विषय - श्राद्ध - पक्ष
#विधा - कविता

नहीं भूलते आपको हम
आपसे ही अस्तित्व हमारा,
यादों, व्रतों, पुजा में शामिल तुम
तुमसे ही ये नाम हमारा|

पूर्वज कहें या पितृ पुकारें
संग सदा हैं आशीष तुम्हारे,
जीवन ये तो देन तुम्हारा
संस्कार प्रथा ये सभी तुम्हारे|

श्राद्ध पक्ष में हम करते तर्पण
खीर पूरी का तुम्हें करते अर्पण,
सोलह दिन महालय के कम हैं
ये जीवन तो है तुम्हें समर्पण|

जीवन का हर पाठ तुम ही से
मंज़िल की हर राह तुम ही से,
नमन तुम्हें कर आज पुकारा
ये श्रद्धा ये प्रार्थना तुम ही से|

तेरी छांव में पलकर बचपन
अपना जीवन बना था अनुपम,
गोद में तेरी खेल गले लगे थे
तेरे ऋण में बंधा है ये जीवन|

समर्पित श्रद्धा फूल हैं तुमको
अर्पित पसंद भोजन ये तुमको,
विप्र रूप या काग रूप में आना
समर्पण का ये नमन है तुमको|

#घोषणा : - मैं, संजीव कुमार भटनागर घोषणा करता हूँ कि यह रचना मेरी स्वरचित मौलिक और अप्रकाशित रचना है। ब्लॉग पर प्रकाशन कि अनुमति है|

रचनाकार :- आ. सुनीता शर्मा जी 🏆🏅🏆

कोशिश,,,, मगर कितनी,,,

जी हां पिछले 15 सालों से कोशिश ही तो कर रही थी वो,जिंदगी को एक पटरी पर लाने की। कोशिश ही तो कर रही थी वो पति के होते हुए भी अकेले ही दोनो बचो को बड़ा करने की क्योकि जिसका पति अच्छे खासे शरीर का मालिक होते हुए भी केवल आवारागर्दी करता हो,जिसे केवल यार दोस्तो के साथ बैठ कर शराब पीने से फुरसत न हो ,जो केवल पत्नी की कमाई पर ज़िंदा हो,जिसे बिना किसी वजह के मानसिक व शारारिक पीड़ा 24 घंटे सहन करनी पड़ती हो,।वो ओर कर भी क्या सकती है।समाज के डर से,सिर्फ सहना जिसकी नियति बन गई हो ,वो ओर क्या कर सकती है बस एक कोशिश।। क्योंकि औरत को इस दकियानूसी समाज मे अगर जीना है तो मुँह कान ओर जबान सब बन्द करके,रहना पड़ेगा।और कोशिश करनी पड़ेगी की वो सिर्फ कोशिश ही करती रहे।,,,,,,,,,ढेर सारे प्रश्न चिन्हों के साथ।. 

ब्लॉग के लिये।।    
सुनीता शर्मा कलमकार।मंदसौर।मध्य प्रदेश।
हिंदुस्तान

शनिवार, 18 सितंबर 2021

रचनाकार :- आ. सीमा शर्मा जी 🏆🏅🏆

नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
क्रमांक- 337
विषय -प्रेम की गागर
दिन- शनिवार 
विधा -कविता 
दिनांक- 18 /9 /2021


नहीं झलकती प्रेम की गागर हरदम यूहीं
नहीं सरसता प्रेम का सागर हर पल यूहीं
नहीं बरसता नेह का बादल हरदम यूही
खिलते नहीं हैं सुमन बगीचों मे  यूहीं

बहती नहीं प्रेम की नदियाँ हरदम यूही
यह तो बहती हैं ही उफान आने पर ही 
लिखती है कलम  विचार आने पर ही
नहीं झलकती प्रेम की गागर हरदम यूही

जीवन सबका लगता नहीं सरल सबको
सुख  मिले सभी को नहीं है मुमकिन 
प्रेम की गागर झलकी थी राधा के मन में 
प्रेम का पौधा पनपा था मीरा के मन में 

सूरदास की लगी लगन थी श्री कृष्णा से
तुलसी की मिट गई तृष्णा राम लेखन से
मेरा भी मन पावन हो इनके आचरण से
जीवन हो सरल इनके अनुसरण से।।

स्वरचित एवं मौलिक
सीमा शर्मा कालापीपल
ब्लॉग के लियेb

नमन मंच 
कलम बोलती है साहित्य समूह 
क्रमांक -338 
विषय -श्राद्ध पक्ष 
दिन -गुरुवार 
दिनांक -23/9/ 2021 

श्राद्ध पक्ष है आया 
पित्रों का मन हर्षाया 
अपने स्वजनों से मिलने का
फिर से अवसर आया 
अपने पूर्वजो को 
मनाने का अवसर आया

श्राद्ध पक्ष है आया
पितरों का मन हर्षाया

द्वारे पर रंगोली बनाओ
फूल और पत्तों से उसे सजाओ 
अपने पितरों को
 रिझाने का समय आया
श्राद्ध पक्ष है आया 
पितरों का मन हर्षाया

प्रेम से खीर और पुड़ी बनाओ 
अपने पित्रों को  को भोग लगाओ
प्रेम से उनकों जिमाने का अवसर आया
श्राद्ध पक्ष है आया
पितरों का मन हर्षाया

हमारे पूर्वजों का ऋण 
कम नही हमारे सिर पर 
क्या क्या दुख उठाकर 
हमें लायक बनाया
अपने पितरों पितामहों के
ऋण चुकाने का समय आया
श्राद्ध पक्ष है आया
पितरों का मन हर्षाया

जीवन भर था उन्हें सताया
उसके पश्चाताप का अवसर आया
कुछ कर्म कर उनसे आशीष
बरसाने का पल आया
श्राद्ध पक्ष है आया
पितरों का मन हर्षाया

अशिवन पूनम को 
सबके घरों में पधारे
पितृमोक्ष अमावस्या को
छोड़ कर विदा हो जायेंगे
फल फूल वस्त्र देकर
उनकों संतुष्ट करके
विदा करनें का अवसर आया

श्राद्ध पक्ष है आया
पितरों का मन हर्षाया 
अपने स्वजनों से फिर से 
मिलने का अवसर आया

स्वरचित एवं मौलिक
सीमा शर्मा 
कालापीपल मध्यप्रदेश
ब्लॉग के लिये सहर्ष






शुक्रवार, 17 सितंबर 2021

रचनाकार :- आ ओम प्रकाश आस जी 🏆🏅🏆

नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समुह
बिषय#बावरा मन
विधा#कविता।
**************
बन परिन्दा उडता है नील गगन।
ख्वाबो को बुनता है बावरा मन।।

चंचल चित  पल पल में उडता।
ढूढे कही बसेरा,ठाँव अपनापन।।
  
सुन्दर स्वप्न पिरोये भटक रहा है
मंजिल की चाहत में खटक रहा।

सुख चैन का नींद  किया हराम।
खुद गैरो की मंजिल झाँक रहा।।

कुछ सहमा सहमा सा रह कर।
अपना सर्बस्व लुटाना ओ चाहे।

पर पागल दिल मान सका ना
मन बावरा सोच जाल बिछाने।।

नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समुह
बिषय#बावरा मन
विधा#कविता।
**************
बन परिन्दा उडता है नील गगन।
ख्वाबो को बुनता है बावरा मन।।

चंचल चित  पल पल में उडता।
ढूढे कही बसेरा,ठाँव अपनापन।।
  
सुन्दर स्वप्न पिरोये भटक रहा है
मंजिल की चाहत में खटक रहा।

सुख चैन का नींद  किया हराम।
खुद गैरो की मंजिल झाँक रहा।।

कुछ सहमा सहमा सा रह कर।
अपना सर्बस्व लुटाना ओ चाहे।

पर पागल दिल मान सका ना
मन बावरा सोच जाल बिछाने।।

ओम प्रकाश आस
बौठा बरही गोरखपुर
यह रचना स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

(ब्लॉग हेतू)
बौठा बरही गोरखपुर
यह रचना स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

(ब्लॉग हेतू)

रचनाकार :- आ. सुनीता परसाई जी 🏆🏅🏆

पटल को नमन🙏
कलम बोलती है, साहित्य समूह
15/9/21, बुधवार
विधा :-मुक्तक
विषय :-बावरा मन

🌹बावरा मन🌹

बावरा मन ढूंढे चहुं ओर,
बंधी है  प्रीत की डोर।

प्रेम की सलोनी जोड़ी,
देख श्याम, राधा दौड़ी।

मुरली की धुन सुनकर,
सखियां आती मिलकर।

मथुरा में था जन्म लिया ,
 यशोमति को था सताया ।

राधा संग रास खेला,
था रसरंग का वो रेला।

राधा का साथ छोड़ा,
बिछड़ गया था जोड़ा।

 मिलन की नहीं थी आस,
 बावरे मन को था आभास।।

निहारती रहती थी राह,
 निकलती सदा थी आह।

अब आ जाओ गिरधारी,
मैं तो तुम से हूॅं हारी।

           स्वरचित रचना
      🌹सुनीता परसाई 🌹
            जबलपुर, मप्र

ब्लाग के लिए 🙏

रचनाकार :- आ. ममता गुप्ता जी 🏆🏅🏆


जय माँ शारदे
विषय क्रमांक-335
विषय-बावरा मन
विधा-कविता
दिनांक-१५/९/२०२१

बावरा मन बड़ा चंचल,जाने क्यों बन कर अचल।
बस चिंतन के सरोवर में ,बहता जाता है अविरल।
बावरा मन कहाँ कब कुछ समझ पाता है
हर वक्त यह बच्चो की तरह मचल जाता है।
कभी चाहता है,आसमां के तारे तोड़कर लाना
कभी चाहता है,चाँद को अपने घर लाना।
कभी चाहता है, पक्षी बनकर स्वछंद उड़ जाना।
कभी चाहता है,नदियों की तरह सागर में मिल जाना
चाहता है,फूल बन अपनी महक से बगिया महकाना।
जितना कुछ यह बावरा मन करना चाहता है।
अपनी मुट्ठी में सारे जहां की खुशियां समेटना चाहता है।
कुछ पाने की खुशी,कुछ खोने का डर सताता है।
इस उथल पुथल में मन हमेसा बेचैन सा रहता है।
मै कैसे समझाऊं ,इस बावरे मन को
अशान्त मन नकारात्मक विचारों को जन्म देता है
सकारात्मक सोच,सब्र का फल हमेशा मीठा होता है।
ए मेरे बावरे मन तू बस आज में "जी" 
क्यो कल के लिए परेशान होता है।

#ब्लॉग

©️ममता गुप्ता✍️
अलवर राजस्थान

गुरुवार, 16 सितंबर 2021

रचनाकार :- आ. साधना तिवारी "रीवा" जी 🏆🏅🏆

नमन मंच🙏
कलम बोलती साहित्य समूह
विषय बावरा मन
विधा  स्वैच्छिक

बावरा सा मन ये मेरा
जाने किस ओर है चला
कुछ सोचे और ना समझे
न देखे अपना भला और बुरा
बावरा सा....।

चंचलता है इसमें भरी
नई उमंगों के साथ चला
खुशियों को समेटे हुए
बिन पंखो के है उडा।
बावरा सा .....।

पल दो पल का ये जीवन
इसको जी लो अब तुम जरा
राह मुश्किल से मिलती है प्यार की,
उसी राह पर है यह चला।
बावरा सा.....।

कहते हैं शांत और सीधा है ये
पर दिल को यही भटकाये 
जैसे नदिया में कोई भवर उठता जाये।
 अनकहे रिश्तो को यह पास बुलाए,
बावरा मन ...।

सुख-दुख का अहसास कराए
करे शिकायतें खुद से, और खुद ही समझाए,
बावरा मन मेरा खुद में ही उलझता जाए।
बावरा मन ....।

स्वरचित एवं मौलिक
साधना तिवारी रीवा
 मध्य प्रदेश

रचनाकार :- आ. रामगोपाल प्रयास जी 🏆🏅🏆

नमन _मंच
विषय_गणपति आराधना 
व़िधा _स्व़ेच्छ़िक
दिनांक_११/०९/२१

विधा _रोल़ा 
समीक्षार्थ


गणपति ज्ञान निधान ,कृपा अब हम पर कीज़े ।
भरा   ज्ञान  भंडार , तनिक  सबको  ही  द़ीजे ।

मेटो   सबके  विघ्न , व़िघ्न  को   हरने  व़ाल़े ।
हो जायें खुश हाल , पड़े   न  दुखों  से  पाले ।

वक्र त़ुंड से सीख ,  सदा ही  हिलती डुलती ।
रहो न अक्रिया श़ील, आप से ये ही कहती ।

गज आनन भगवान , आप की वंदना करत़े ।
राग  द्वेष  से मुक्त , करें  प्रभ़ु ‌‌ त़ुमसे   कहते । 

सूर्पकर्ण भगवान , दया  हम  पर  बरस़ाय़ें ।
रहे    बुऱाई     दूर , सदा  ही  हम हरष़ाय़ें  ।

स्वरचित
रामगोपाल प्रयास

रचनाकार :- आ. अजय केशरी "अजेय" जी 🏆🏅🏆

नमन कलम बोलती है मंच 
 विधा - स्वतंत्र  (चोपाई छंद)
 विषय :- श्री गणपति देवा 
 दिनांक :- 11.09.2021  शनिवार 

====///====///====///====///===
       गणपति  गणपति    मेरे      देवा
       तन   की   सारी     पीरा   लेवा l
       मुसक   सवारी     तेरो     वाहन    
       नरम  करे  बस तू  सब  पाहन ll
====///====///====///====///===
       पार्वती   के    बाल   हो    लाला
       रोक  दिये  थे   शिव  के  चाला l
       क्रोध  में   जब  त्रिशूल    उठाए
       माँ को फिर तुम  ध्यान  दिलाए ll
====///====///====///====///===
       बड़ा   शोर   जब    होने    लागे 
       सब  की   बुद्धि  उठकर  भागे l
       तब  जाकर    गजराजा    लाये
       उनके  धड  से  शीष  मिलाये ll
====///====///====///====///===
       नये    रूप    में    आये    दाता
       देती  वर   फिर   प्यारी   माता l
       पहला   पूजन    आपा    होगा
       यार    भगेगा   मनका    रोगा ll
====///====///====///====///===
                 द्वारा :- 🖋️🖋️
           अजय केशरी  "अजेय" 
     दुधीचुआ सिंगरौली (मध्य प्रदेश)
  ( स्वरचित स्वकल्पित मौलिक रचना)

रचनाकार :- आ. मीनाक्षी दीक्षित जी 🏆🏅🏆

सादर नमन कलम बोलती है मंच
११/०९२०२१      शनिवार
द्विदिवसीय प्रतियोगिता
विषय क्रमांक  -   ३३३
विषय --  गणेश वंदना
विधा-      स्वतंत्र (रोला छंद)
~~~~~~~~~~~~~~~~~

काटो संकट क्लेश,      गजानन गौरीनंदन।
तव चरणों की धूल,     भक्त माथे का चंदन।
दूर्वा मोदक भेंट,       करूँ देवा अभिनन्दन।
ऋद्धि-सिद्धि के साथ, विराजे गणपति वंदन।।

ऋद्धि-सिद्धि शुभ-लाभ, प्रदाता हे शिव नंदन!
संकट विकट विनाश,    करो देवा दुखभंजन।
मंगलमूर्ति स्वरूप,     कीजिए गणपति सेवा ।
मनवांछित फल प्राप्त, प्रदाता गणपति देवा।।

मीनाक्षी दीक्षित
भोपाल मध्यप्रदेश
पूर्णतः स्वरचित मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित

रचनाकार :- आ. अनु तोमर जी 🏆🏅🏆

नमन मंच
कलम बोलती है
दिनांक -११.०९.२१
विषय - श्री गणेश जी की आराधना
विद्या - स्वैच्छिक
मंगल मूरति, दया निधान।
मूषक पर होकर सवार।
रिद्धि -सिद्धि को साथ लेकर,
लम्बोदर गौरा जी के लाल।
लक्ष्मी जी को साथ लेकर,
हाथ जोड़ मैं पुकार रहा हूं।
दुर्बल काया ,दीन हीन हूं।
तेरे द्वार पर आ न पाया।
हे कष्ट निवारक, बुद्धि के दाता ।
घर के द्वारे खोल दिये हैं सारे।
आओ गणपति मेरे द्वारे।
जो भी कुछ, मेरे पास है बप्पा,
सब तुझ पर न्यौछावर है।
आसन तेरा सजा रखा है।
मोदक प्रिय एक दन्त धारी,
आशा का दीप जला रखा है।
सबके संकट हर लो। कृपासिंधु
छाया है महामारी का घोर अंधेरा।
 विघ्न विनाशक, गजानन घारी।
देर करो मत, विनती सुन लो।
 प्रथम पूज्य तुम ही हो जग में
आओ - आओ मैं शरण तुम्हारी।
स्वरचित
अनु तोमर
मोदी नगर
गाजियाबाद

रचनाकार :- आ. डॉ. राजेश पुरोहित जी 🏆🏅🏆


🙏नमन मंच🙏
#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह 
#विषय गणेश आराधना
#विषयक्रमांक 333
#दिनांक  10/09/21

हे लंबोदर हे गजानन
हे वक्रतुण्ड हे सिद्धिविनायक
हे पार्वती नंदन
शिव जी के प्यारे गजानन
हे प्रथम पूज्य
हे गणनायक
तुम ही हो सिद्धि विनायक
हे बुद्धि के दाता
हम सब के भाग्य विधाता
मूषक वाहन पर आप बिराजे
घट घट में प्रभु आप बिराजे
हे करुणा के सागर
हे जग के पालक
असुरों के संहारक
हे विध्न विनाशक
हे गौरी नंदन
थोड़ी तो दया करो
हमारा भी उद्घार करो

✍स्वरचित मौलिक
डॉ. राजेश पुरोहित

रचनाकार :- आ. डॉ. अवधेश तिवारी "भावुक"जी 🏆🏅🏆

नमन मंच
विषय-गणेश वन्दना
11/09/2021

श्री गणेश आराधना

जय जय जय जय प्रभु गणेशा,
रहना  भावुक - संग  में हमेशा।

जब  भी  मैं  हो  जाऊँ  उदास,
मेरे   हृदय    में   करके   वास,
शुभाशीष  "भावुक"  को देकर
गणपति   भर    देना   विश्वास।

आप   मेरे   हो   आसपास  में
मन  को   हो  एहसास  हमेशा,

जय जय जय जय प्रभु गणेशा।

रक्षा   करना   मेरे   मान    का,
देना   दान   सतत   ज्ञान   का,
भावुक सर पर वरद  हस्त रख
जीवन    देना     सम्मान    का।

शिव - गौरा   के   राज   दुलारे
तन - मन को बल  देना  हमेशा।

जय जय जय जय प्रभु गणेशा।

प्रज्ञा , ज्ञान , शक्ति  का  वर  दे
सुख - समृद्धि , वैभव  भर   दें
जीवन   के  हर   इक   पथ  में
जहाँ  कहीं  भावुक  पग धर दें।

गौरी-सुत जय जय शिव नंदन
मिले   प्रभु  सम्मान    हमेशा।

जय जय जय जय प्रभु गणेशा,
रहना  भावुक - संग  में हमेशा।

डॉ. अवधेश तिवारी "भावुक"
नई दिल्ली
(स्वरचित एवं मौलिक)

रचनाकार :- आ. जगदीश गोकलानी "जग ग्वालियरी"जी

जय माँ शारदे
नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
#दैनिक विषय क्रमांक - 333
दिनांक - 11/09/2021
#दिन : शनिवार
#विषय - आराधना
#विधा - भजन
#समीक्षा के लिए
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आओं मिलकर करें प्यारे गणपति की अर्चना 
सब कुछ जग में रची हुई उसकी ही तो रचना
मनचाहा फल सभी को देते आप ही तो बप्पा
देते नहीं कभी किसी को गणपति आप वेदना

रिद्धि सिद्धि के दाता भक्तों के भाग्य विधाता
शंकर के लाल गणराजा पार्वती आपकी माता
ऊंचे आसन तुम बैठे कभी न भक्तों से रूठे
मुकुट सिर कानन कुंडल, आपको बहुत भाता

फूल चढ़े और चढ़े और आप पर चढ़े मेवा
मनचाहा फल देते सबको आप गणेश देवा
हे गणेश आप शिव के गणों के अधिपति
माता आपकी पार्वती और पिता महादेवा

मूशे की करते हो सवारी पहनते भगवा वेश
नैया मंझधार पड़ती जब आप लाते शुभ संदेश
रुके हुए सब कार्य आप ही आकर पूर्ण करते
नैया पार कराते हो गजानंद गौरी पुत्र गणेश

प्रथम प्रणाम आपको काटते सकल क्लेश
बुद्धि देकर मिटाते हो अंदर का सारा द्वेष
गिरिजा के नंदन काटते भक्तों के बंधन
विनती आपसे यही बनी रहे कृपा विध्नेश

देवों के आप देव हो आपसे बढ़कर न दूजा
शुभ कार्यों में प्रथम होती  आपकी पूजा
बाधाएं विध्न सब टारे रखते हो आप ही
देवताओं में सबसे ऊंचा आपका ही दर्जा

मौलिक और स्वरचित
जगदीश गोकलानी "जग ग्वालियरी"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश

जय माँ शारदे
नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
#दैनिक विषय क्रमांक - 337
दिनांक - 20/09/2021
#दिन : सोमवार
#विषय - कोशिश 
#विधा - गीत
#समीक्षा के लिए
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जिंदगी तुझे मनाने की टूटी हर आस
कोशिश करी हमारे दिल ने अनायास
                                      (मु०)

जिंदगी हमारी शुरू से ही हारी है
हमने तो बस पैबंदों में गुजारी है
जितना मनाए उतना रूठती जाती
इसे मनाने की जंग हमारी जारी है
साथ न हो कोई तो क्या जिंदगी है
होता जाने क्या जा रहा है मुझ को
कोशिश करी....(1)

कैसे भूले जिंदगी तुझे चाहने की बेबसी
निकलती नहीं है अब इन होंठो से हंसी
जान मेरी ये जाने कहां जाकर के फंसी
रास नहीं आई तुझे हमारी ये मुफलिसी
हो नहीं पाएगी क्या जिंदगी तेरी वापिसी
दे न पाए हम मुहब्बत का सिला तुझको
कोशिश करी....(2)

दिल के अफसाने बस दिल में दबते रहे
तीर बनकर ये अंदर ही अंदर चुभते रहे
जज़्बात हमारे जाने कब से सुलगते रहे
ठोकरों से हम तो हमेशा ही दहलते रहे
दर्दे-दिल के नाम भर से हम बचते रहे
देंगे जवाब हम, बताओ किस किसको
कोशिश करी....(3)

मौलिक एवं स्वरचित
जगदीश गोकलानी “जग ग्वालियरी”
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
ब्लॉग के लिए सहमति।


जय माँ शारदे
नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
#दैनिक विषय क्रमांक - 338
दिनांक - 22/09/2021
#दिन : बुधवार
#विषय - श्राद्ध - पक्ष
#विधा - कविता
#समीक्षा के लिए
---------------------------

करें नमन उन्हें जिन्होंने जीवन का हर बार पाठ पढ़ाया।
करें नमन उन्हें जिन्होंने जीवन पथ पर चलना सिखाया।।
श्राद्ध पक्ष में करें उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना।
जिन्होंने कभी हमें वात्सल्य में भीगकर गले था लगाया।।

पितरों को करे श्रद्धा अर्पित, कभी रहा था उनका साया।
श्राद्ध पक्ष में करें समर्पित, फूल उन्होंने जो था कभी खिलाया।।
पीढ़ियों का जो बना किला, उसको याद करें सम्मान करें।
नाम दिया धन दान दिया, हर बार गिरने से हमें उठाया।।

विधा का उन्होंने विधान रचा, देकर हमको एक नई काया।
फूल अपनी बगिया में खिलाकर, संसार में हमको था लाया।।
मिला है मौका उनको याद करने का प्रायश्चित करने का।।
अपना सब कुछ समर्पण कर, गुण ज्ञान से था चमकाया।।

शत शत उनको नमन करने का, आज वह दिन आया।
सदा बनी रहती थी जिनकी, हमारे ऊपर छत्रछाया।।
श्रद्धा पितरों के प्रति ही है, सबसे बड़ा और सच्चा श्राद्ध।
भारतीय परंपरा ने पूर्वजों के गुणों को धारण करना सिखाया।।

मौलिक और स्वरचित
जगदीश गोकलानी "जग, ग्वालियरी"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
ब्लॉग पर प्रस्तुत करने की सहमति।

सोमवार, 13 सितंबर 2021

रचनाकार :- आ.योगेन्द्र अग्निहोत्री जी 🏆🏅🏆

नमन मंच 
विषय क्रमांक 333
दिनांक  11/09/2021
गणपति आराधना 

प्रथम पूज्य गण देवता , गौरी पुत्र गणेश ।
भव बाधा जग की हरो ,कोविड हुआ कलेश।   
किसी की छूटी नौकरी, किसी ने छोड़ी देह ।
किसी ने सब कुछ बेच कर छोड़ा अपना गेह  ।   
गणपति स्वागत आप का ,आपका मंगल रूप । 
गृह गृह प्रभु  बिराजिए , छाया हो या धूप ।
आप ज्ञान के स्त्रोत हैं, बख्शें ऐसा ज्ञान ।   
औषधि का निर्माण हो ऐसा , ले वाइरस की  जान ।
देश में सुख समृद्धि हो , लोगों में हो प्यार ।  
हर जन सुखी हो विश्व का , रोज मने त्यौहार ।
हाथ जोड़कर कर रहा गणपति ! विनती आज ।
चेहरो पर मुस्कान भरी हो , हर घर भरा अनाज ।।
योगेन्द्र अग्निहोत्री

रचनाकार :- आ. विजय पुरोहित"ज़ी 🏆🏅🏆

🙏नमन माँ शारदे
#नमन मंच-कलम बोलती है साहित्यिक संस्थान
#विषय-श्री गणेशजी की अराधना
#विधा-गीत
#दिनांक-11/9/21
#दिवस-शनिवार

कार्य सिद्ध करोजी,हे गजानन।
-------------------------------------
ध्यान धरूं,करूँ आपका वंदन,
कार्य सिद्ध करोजी,हे गजानन।
सर्व प्रथम,मनांऐ सब आपको,
चरण शरण मे,ले लो गजानन।।

पुष्पन की माला,सौहत है गल,
भोग लगत है,मौदक-लड्डुवंन।
रुची-रुची भोग लगाओ भगवन,
मूसकराज है अति प्रिय वाहन।।

गौरी के लाडले हो,हे शिवनंदन,
दुन्द-दुन्दाला,मस्तक पे चन्दन।
कृपा-दया दृष्टि,बनाये ही रखना,
आधी-व्याधी सब,हरो गजानन।।

रिद्धि-सिद्धी,लैयं कर आवो सँग,
मान-सम्मान,बढ़ाओ जी गजानन।
कष्ट और चिन्ताऐ,बहुत है प्रसरी,
चिन्ताभय मुक्त,करोजी गजानन।।

नित्य स्वीकार,करोजी मेरा वंदन,
सर्वकार्य सिद्ध करो हे गजानन।
नित्य हमेश मनांये हम आपको,
नैया भव पार करो जी गजानन।।

आप हो सब दीनन हितकारी,
दीनो के दुख दूर करो गौरीनंदन।
कष्ट-क्लेश मिटाओ हर जन का,
"विजय"तृप्त करो  सबका मन।।
कार्य सिद्ध करोजी हे गजानन।।

"विजय पुरोहित"
रामगढ़-शेखावाटी
जिला-सीकर(राजस्थान)

रचनाकार :- आ. सुमन तिवारी जी 🏆🏅🏆

#कलम ✍🏻 बोलती_है_साहित्य_समूह 
#दो_ दिवसीय_ लेखन
#विषय_ क्रमांक : 333
#विषय : गणेश जी की आराधना
#विधा : कविता
#दिनांक  : 11 सितंबर 2021 शनिवार
समीक्षा के लिए
___________________________
प्रथम वंदना करूँ,  हे गौरी नंदन गणेश ! 
मंगलमूर्ति,विघ्नहर्ता,काटे सकल कलेष।
हे मंगलकारी, गणनायक, दुःख भंजक
गणपति, गजबदन, मोदकप्रिय  रंजक। 

          तुम  बुद्धि प्रदाता,  रिद्धि सिद्धि  दाता
          हे विघ्न विनाशक, हे सिद्धि विनायक। 
          एकदंत दयावंत, हे गिरिजापति नंदन
          करे मूसे की सवारी, लंबोदर् ,गजानन। 

हाथ में त्रिशूल सोहे,  मूसे की सवारी
 लंबोदर गजबदन,  चार  भुजा धारी। 
रिद्धि सिद्धि निधिया तुम संग विराजे
 देवों के प्रिय, गौरा महेश संग साजे।। 

         विघ्न हरण , दारुण दुःख हर्ता प्रभु
         हम तेरे बालक आए शरण तिहारी। 
         हे संकट मोचक, शोक विनाशकारी  
         भव बाधा हरो, लाज राखो हमारी।। 


                   स्वरचित मौलिक रचना
             सुमन तिवारी, देहरादून उत्तराखंडp

#कलम ✍🏻 बोलती_है_साहित्य_समूह 
#दो_ दिवसीय_ लेखन
#विषय_ क्रमांक : 338
#विषय : श्राद्धपक्ष
#विधा : छंद मुक्त कविता
#दिनांक  : 22सितंबर 2021 बुधवार
समीक्षा के लिए
_____________________________
भाद्र पद की पूर्णिमा से आरंभ 
अश्विन कृष्ण अमावस को 
होता पितृ विसर्जन
हिंदू धर्म में पूरे सोलह दिन
कहलाते हैं पितृ पक्ष। 
कृतज्ञता ज्ञापित करने का ये पर्व
 श्रद्धा से दिया दान है श्राद्ध
 नमन करते उन पूर्वजों को
वंदन सभी पितृ गण को
जिनसे है अस्तित्व हमारा
उनसे जीवन में उजियारा।
वो मृत्यु लोक से गए परलोक 
भौतिक रूप से नहीं यहाँ
पर उनकी कृपा बरसती है यहाँ
उनकी दया से मिलती दीर्घायु 
मोक्ष प्राप्त करने को करते हैं तर्पण
जौ,तिल,जल और शाक का
श्रद्धा से करते अर्पण।
श्राद्ध से होते पितृ प्रसन्न
उनके ऋण से नहीं हो सकते हम उऋण।

                  स्वरचित मौलिक रचना
             सुमन तिवारी, देहरादून उत्तराखंड

रचनाकार :-, आ. सतीश कुमार जी 🏆🏅🏆

#नमन मंच-कलम बोलती है साहित्य समूह
#विषय- गणेश आराधना
#विषय -क्रमांक 333
#दिनांक -11 सितंबर 2021

""""""""""""""""गणेश आराधना""""""""""""""""

हे गौरी नंदन दया निधान,जग पर उपकार करो।
हे दु:खभंजन करें आह्वान,भव सागर पार करो।।

मूषक सवारी शोभित,आओ रिद्धि सिद्धि लेकर।
दीप्ति-दाता,भाग्य-विधाता,तम हरो बुद्धि देकर।।

आंख के तारे,विनायक प्यारे,शिव-गौरा के लाल।
हे शिव नंदन!सुनो क्रंदन,आज जग हुआ बेहाल।।

दो शुभ-लाभ  करो पूरे  ख्वाब ,हे गणपति! देवा।
हे मंगलमूर्ति! हर्षित  धरती, लगाये मोदक  सेवा।।

हे दया  सागर! भरो गागर, हम तेरी शरण आये।
काज संवार- दीन पुकार , दीप तेरे चरण लगाये।।

मिटे क्लेश,रहे खुशी हमेशा, कृपा  बारंबार करो
हे गौरी नंदन! दया निधान,जग पर उपकार करो।।

#नमन मंच-कलम बोलती है साहित्य समूह
#विषय- गणेश आराधना
#विषय -क्रमांक 333
#दिनांक -11 सितंबर 2021

""""""""""""""""गणेश आराधना""""""""""""""""

हे गौरी नंदन दया निधान,जग पर उपकार करो।
हे दु:खभंजन करें आह्वान,भव सागर पार करो।।

मूषक सवारी शोभित,आओ रिद्धि सिद्धि लेकर।
दीप्ति-दाता,भाग्य-विधाता,तम हरो बुद्धि देकर।।

आंख के तारे,विनायक प्यारे,शिव-गौरा के लाल।
हे शिव नंदन!सुनो क्रंदन,आज जग हुआ बेहाल।।

दो शुभ-लाभ  करो पूरे  ख्वाब ,हे गणपति! देवा।
हे मंगलमूर्ति! हर्षित  धरती, लगाये मोदक  सेवा।।

हे दया  सागर! भरो गागर, हम तेरी शरण आये।
काज संवार- दीन पुकार , दीप तेरे चरण लगाये।।

मिटे क्लेश,रहे खुशी हमेशा, कृपा  बारंबार करो
हे गौरी नंदन! दया निधान,जग पर उपकार करो।।

सतीश कुमार नारनौंद
जिला हिसार हरियाणा
स्वरचित और मौलिक
जिला हिसार हरियाणा
स्वरचित और मौलिक

रचनाकार :- आ. सीता गुप्ता दुर्ग जी

🙏 नमन मंच,
कलम बोलती है साहित्य समूह (सूरत )गुजरात
दैनिक विषय क्रमांक 333
10सितंबर से 11 सितंबर 2021तक
विषय:- "श्री गणेश जी की आराधना"
विधा:-स्वैच्छिक

   *महिमा गणपति की* 
==================
प्रथम पूज्य श्री गौरी नंदन, 
विघ्न हरण गणेश |
जहाँ खड़े हों जाएँ प्रभु जी, 
मिट जाएँ सब क्लेश |

एकदंत की महिमा न्यारी, 
मूषक की सवारी |
करी परिक्रमा मात-पिता की, 
जाने दुनिया सारी |

मोदक उनके मन को भाए, 
लंबोदर कहलाए|
सूपा जैसे कान हैं उनके, 
अद्भुत रूप वो पाए |

बुद्धि के हैं वो तो दाता, 
सबके भाग्य विधाता |
बिन बुद्धि इस सारे जग में, 
कोई न कुछ भी पाता |


करो अर्चना पूजा वंदन,
 घर-घर में प्रभु आए|
अच्छे कर्म करे जो जग में, 
उनकी कृपा वो पाए |

✍🏻 सीता गुप्ता दुर्ग छत्तीसगढ़

रचनाकार :- आ. मोनिका (मीनू) जी

दैनिक_विषय_क्रमांक_333

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🙏जय माँ शारदे 🙏
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 #विषय..गणपति आराधना

हे प्रथम पूज्य सिद्धि विनायक
जीवन में सुख समृद्धि भर दो
जीवन पथ पर अंधकार है
हे लम्बोदर ,प्रकाश भर दो
हे गणपति ,सृष्टि मंगलमय कर दो
दृष्टि मंगलमय रखने का वर दो
ग्रहस्थ में सदेव हो आनंद
हे मोदक प्रिय, स्तिथि अनुकूल कर दो
वक्रतुंड ,  एक दंत , गजमुख -दिव्य स्वरूप तुम्हारे
हे चतुर्भुज ,समस्त भय से रक्षा कर दो
जीवन हो सरल -सतत प्रवाहित
लक्ष्य प्राप्ति का वर दो
मेरे घर भी आना, रूखा सूखा जो भी हो
 कर जाना स्वीकार
हे रिद्धि सिद्धि के दाता
मेरे भावों का है यही सार
जीवन ख़ुशियों से महके 
कृपा बरसा जाना
मनोकामना पूर्ण करना
स्वास्थ्य, धन ,संतोष भरना
मस्तक झुकाकर, करबद्ध करें प्रार्थना
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स्वरचित एवं मौलिक
मोनिका (मीनू)
11.09.21


रचनाकार :- आ. रुचिका राय ज़ी 🏆🏅🏆

नमन मंच
कलम बोलती है
विषय-गणपति


प्रथम पूजनीय गणपति,बाधा हरो हमारी,
दुख विपदा दूर करो,मेरे तारण हारी।

मात पिता की सेवा कर,उद्धार सदा ही होता,
विपत्ति का समूल नाश करो, हे विघ्नहारी।

मोदक लड्डू का भोग लगे सदा,
मिठास रहे जीवन में सारी,
गणपति गणनायक करें मूषक की सवारी।

छतीस करोड़ देवी देवता पूजनीय,
प्रथम पूज्य लंबोदर विपदा हरो हमारी।

संकट में जब भी हम हो आये शरण तिहारी,
कुशाग्र बुद्धि के पूजन ,मंगलाचरण करें जन सारी।

रिद्धि सिद्धि के तुम दाता, हम हैं दास तुम्हारी,
प्रथम पूजनीय लंबोदर,आये शरण तिहारी।


रूचिका राय

रचनाकार :- आ. प्रियदर्शिनी आचार्य ज़ी 🏆🏅🏆

श्री गणेशाय नमः🙏
 

महिमा गौरी पुत्र गणेश की करे हम वंदना 
प्रथम पूजू  आपको पधारो मोरे अंगना
 लडुअन भोग लगाऊं धरू मिश्री अरु मेवा 
निशि दिन जपूं नाम तेरा करो स्वीकार सेवा 
कर प्रदक्षिणा मात-पिता की उनका मान बढ़ाया 
उनके चरणों में चारो धाम जगत को समझाया 
आठों  सिद्धि नवनिधि के तुम ही हो दाता 
बल विद्या बुद्धि के तुम ही   तो हो प्रदाता 
 तज तुम्हारे चरणन  को ठौर कहीं ना पाऊं
 एकदंत दयावंत  टेरि कर तुमको मैं मनाऊं
 गणपति बप्पा बोलकर  तुम्हें मैं रिझाऊं 
अगले बरस आने की अरदास मैं लगाऊं 
दीनबंधु दुख हर्ता  तुम रक्षक सब के 
दे आशीष  दुख हरो तुम  हम सबके 
बुद्धिहीन को बुद्धिध देते निर्धन को धन देते
 तुम हो नित्य दया के सागर विनती सुन लेते

प्रियदर्शिनी आचार्य

रचनाकार :- आ. ब्रह्मनाथ पाण्डेय' मधुर' जी 🏆🏅🏆

क़लम बोलती है साहित्य समूह
दिनांक:-11-09-2021
बिषय:-श्री गणेश जी की आराधना
विधा:- दोहा
क्रमांक:-333

लम्बोदर को पूजिए, सब हो पूरण काम|
विघ्नेश्वर गणपति सभी, देंगे शुभ परिणाम||1||

गौरीसुत की मान्यता, करते नित्य पुराण|
महाप्राण वह स्वयं हैं, देते जग को त्राण||2||

प्रथम देव गणपति सुनो, पूजे सकल जहान|
जग तारण वह देव हैं, पूजो पाओ मान||3||

               स्वरचित/ मौलिक
              ब्रह्मनाथ पाण्डेय' मधुर'
ककटही, मेंहदावल, संत कबीर नगर, उत्तर प्रदेश

रचनाकार :- आ. सीमा शर्मा ज़ी 🏆🏅🏆

नमन मंच 
कलम बोलती है साहित्य समूह
क्रमांक -333
विषय- गणपति आराधना 
दिन -शनिवार 
दिनांक -11/ 9 /2021 

चलो गणेश बनाएं सखी री 
चलो गणेश मनाएं 
गंगा का जल भरकर लाये
गणपति जी को नहाए 
सखी री चलो गणेश मनाए
दूबा लाएं फूल ले आए 
गणपति जी को चढ़ाएं
सखी री चलो गणेश मनाएं
लड्डू लाए पेड़ा लाए 
मोदक भोग लगाएं
सखी री चलो गणेश बनाएं 
चलो गणेश बनाएं सखी री
धूप दीप नेवेद्ध आरती
हिल मिल के सब गाये
सखी री चलो  गणेश मनाएं
रिद्धि सिद्धि के हैं दाता 
शिवनंदन कहलाए 
सखी री चलो गणेश मनाये 
शुभ लाभ के पिता हैं गणपति 
पूज्य प्रथम कहलाये सखी री
चलो गणेश मनाएं गणेश बनाएं 
सखी री चलो गणेश मनाएं।

स्वरचित एवं मौलिक
सीमा शर्मा कालापीपल।


रविवार, 12 सितंबर 2021

रचनाकार :- आ. आई जे सिंह

नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
#विषय: गणेश आराधना
#विधा: पद्य

एकदंत  शोभित  लम्बोदर, गणपति गौरीनंदन हैं।
विध्न विनाशक मंगलदायक,चरण तुम्हारे वंदन हैं।।

हैं अम्बिकेय मोदकप्रिय ये, सबके काज बनाते हैं।
गजकर्णक,सुमुख,कपिल हम, महिमा  तेरी गाते हैं।
पावन पर्व गणेश चतुर्थी, करते  सब अभिनंदन हैं।
विध्न विनाशक मंगलदायक,चरण तुम्हारे वंदन हैं।।

शंकरसुवन गजानन  देवा, नाम  तुम्हारे भाते हैं।
मिट जाते हैं कष्ट सभी जब, दर्श तुम्हारे पाते हैं।
अष्टविनायक बुद्धिपति तुम,तुम्हीं उमासुत नंदन हैं।
विध्न विनाशक मंगलदायक,चरण तुम्हारे वंदन हैं।।

हे वक्रतुंड द्वैमातुर प्रभु, कार्तिकेय के सुन भ्राता।
अर्ज करो स्वीकार हमारी, गजवदनम मोदकदाता।
शीश नवाते चरण तुम्हारे, भाल लगाते  चंदन हैं।
विध्न विनाशक मंगलदायक,चरण तुम्हारे वंदन हैं।।

सिद्धिविनायक शूर्पकर्ण तुम, कर्मों के संचालक हो।
दुःख सृष्टि के हरने वाले, विघ्नराज तुम पालक हो।
दया दृष्टि हो जहाँ तुम्हारी, होते वहाँ न कृन्दन हैं।
विध्न विनाशक मंगलदायक, चरण तुम्हारे वंदन हैं।।

महाकाय हे देव हस्तिमुख, गौरी सुत हे गणनायक।
हे आदिपूज्य प्रभु शुभकर्ता,तुम अंतस में जगनायक।
रहे सदा आशीष तुम्हारा, तुम वसुधा  के कुन्दन हैं।
विध्न विनाशक मंगलदायक, चरण तुम्हारे वंदन हैं।।

(स्वरचित एवं मौलिक)
-©® आई जे सिंह
दिल्ली
11/09/2021

रचनाकार :- आ. संगीता चमोली जी

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