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सोमवार, 13 सितंबर 2021

रचनाकार :- आ. विजय पुरोहित"ज़ी 🏆🏅🏆

🙏नमन माँ शारदे
#नमन मंच-कलम बोलती है साहित्यिक संस्थान
#विषय-श्री गणेशजी की अराधना
#विधा-गीत
#दिनांक-11/9/21
#दिवस-शनिवार

कार्य सिद्ध करोजी,हे गजानन।
-------------------------------------
ध्यान धरूं,करूँ आपका वंदन,
कार्य सिद्ध करोजी,हे गजानन।
सर्व प्रथम,मनांऐ सब आपको,
चरण शरण मे,ले लो गजानन।।

पुष्पन की माला,सौहत है गल,
भोग लगत है,मौदक-लड्डुवंन।
रुची-रुची भोग लगाओ भगवन,
मूसकराज है अति प्रिय वाहन।।

गौरी के लाडले हो,हे शिवनंदन,
दुन्द-दुन्दाला,मस्तक पे चन्दन।
कृपा-दया दृष्टि,बनाये ही रखना,
आधी-व्याधी सब,हरो गजानन।।

रिद्धि-सिद्धी,लैयं कर आवो सँग,
मान-सम्मान,बढ़ाओ जी गजानन।
कष्ट और चिन्ताऐ,बहुत है प्रसरी,
चिन्ताभय मुक्त,करोजी गजानन।।

नित्य स्वीकार,करोजी मेरा वंदन,
सर्वकार्य सिद्ध करो हे गजानन।
नित्य हमेश मनांये हम आपको,
नैया भव पार करो जी गजानन।।

आप हो सब दीनन हितकारी,
दीनो के दुख दूर करो गौरीनंदन।
कष्ट-क्लेश मिटाओ हर जन का,
"विजय"तृप्त करो  सबका मन।।
कार्य सिद्ध करोजी हे गजानन।।

"विजय पुरोहित"
रामगढ़-शेखावाटी
जिला-सीकर(राजस्थान)

रचनाकार :- आ. सुमन तिवारी जी 🏆🏅🏆

#कलम ✍🏻 बोलती_है_साहित्य_समूह 
#दो_ दिवसीय_ लेखन
#विषय_ क्रमांक : 333
#विषय : गणेश जी की आराधना
#विधा : कविता
#दिनांक  : 11 सितंबर 2021 शनिवार
समीक्षा के लिए
___________________________
प्रथम वंदना करूँ,  हे गौरी नंदन गणेश ! 
मंगलमूर्ति,विघ्नहर्ता,काटे सकल कलेष।
हे मंगलकारी, गणनायक, दुःख भंजक
गणपति, गजबदन, मोदकप्रिय  रंजक। 

          तुम  बुद्धि प्रदाता,  रिद्धि सिद्धि  दाता
          हे विघ्न विनाशक, हे सिद्धि विनायक। 
          एकदंत दयावंत, हे गिरिजापति नंदन
          करे मूसे की सवारी, लंबोदर् ,गजानन। 

हाथ में त्रिशूल सोहे,  मूसे की सवारी
 लंबोदर गजबदन,  चार  भुजा धारी। 
रिद्धि सिद्धि निधिया तुम संग विराजे
 देवों के प्रिय, गौरा महेश संग साजे।। 

         विघ्न हरण , दारुण दुःख हर्ता प्रभु
         हम तेरे बालक आए शरण तिहारी। 
         हे संकट मोचक, शोक विनाशकारी  
         भव बाधा हरो, लाज राखो हमारी।। 


                   स्वरचित मौलिक रचना
             सुमन तिवारी, देहरादून उत्तराखंडp

#कलम ✍🏻 बोलती_है_साहित्य_समूह 
#दो_ दिवसीय_ लेखन
#विषय_ क्रमांक : 338
#विषय : श्राद्धपक्ष
#विधा : छंद मुक्त कविता
#दिनांक  : 22सितंबर 2021 बुधवार
समीक्षा के लिए
_____________________________
भाद्र पद की पूर्णिमा से आरंभ 
अश्विन कृष्ण अमावस को 
होता पितृ विसर्जन
हिंदू धर्म में पूरे सोलह दिन
कहलाते हैं पितृ पक्ष। 
कृतज्ञता ज्ञापित करने का ये पर्व
 श्रद्धा से दिया दान है श्राद्ध
 नमन करते उन पूर्वजों को
वंदन सभी पितृ गण को
जिनसे है अस्तित्व हमारा
उनसे जीवन में उजियारा।
वो मृत्यु लोक से गए परलोक 
भौतिक रूप से नहीं यहाँ
पर उनकी कृपा बरसती है यहाँ
उनकी दया से मिलती दीर्घायु 
मोक्ष प्राप्त करने को करते हैं तर्पण
जौ,तिल,जल और शाक का
श्रद्धा से करते अर्पण।
श्राद्ध से होते पितृ प्रसन्न
उनके ऋण से नहीं हो सकते हम उऋण।

                  स्वरचित मौलिक रचना
             सुमन तिवारी, देहरादून उत्तराखंड

रचनाकार :-, आ. सतीश कुमार जी 🏆🏅🏆

#नमन मंच-कलम बोलती है साहित्य समूह
#विषय- गणेश आराधना
#विषय -क्रमांक 333
#दिनांक -11 सितंबर 2021

""""""""""""""""गणेश आराधना""""""""""""""""

हे गौरी नंदन दया निधान,जग पर उपकार करो।
हे दु:खभंजन करें आह्वान,भव सागर पार करो।।

मूषक सवारी शोभित,आओ रिद्धि सिद्धि लेकर।
दीप्ति-दाता,भाग्य-विधाता,तम हरो बुद्धि देकर।।

आंख के तारे,विनायक प्यारे,शिव-गौरा के लाल।
हे शिव नंदन!सुनो क्रंदन,आज जग हुआ बेहाल।।

दो शुभ-लाभ  करो पूरे  ख्वाब ,हे गणपति! देवा।
हे मंगलमूर्ति! हर्षित  धरती, लगाये मोदक  सेवा।।

हे दया  सागर! भरो गागर, हम तेरी शरण आये।
काज संवार- दीन पुकार , दीप तेरे चरण लगाये।।

मिटे क्लेश,रहे खुशी हमेशा, कृपा  बारंबार करो
हे गौरी नंदन! दया निधान,जग पर उपकार करो।।

#नमन मंच-कलम बोलती है साहित्य समूह
#विषय- गणेश आराधना
#विषय -क्रमांक 333
#दिनांक -11 सितंबर 2021

""""""""""""""""गणेश आराधना""""""""""""""""

हे गौरी नंदन दया निधान,जग पर उपकार करो।
हे दु:खभंजन करें आह्वान,भव सागर पार करो।।

मूषक सवारी शोभित,आओ रिद्धि सिद्धि लेकर।
दीप्ति-दाता,भाग्य-विधाता,तम हरो बुद्धि देकर।।

आंख के तारे,विनायक प्यारे,शिव-गौरा के लाल।
हे शिव नंदन!सुनो क्रंदन,आज जग हुआ बेहाल।।

दो शुभ-लाभ  करो पूरे  ख्वाब ,हे गणपति! देवा।
हे मंगलमूर्ति! हर्षित  धरती, लगाये मोदक  सेवा।।

हे दया  सागर! भरो गागर, हम तेरी शरण आये।
काज संवार- दीन पुकार , दीप तेरे चरण लगाये।।

मिटे क्लेश,रहे खुशी हमेशा, कृपा  बारंबार करो
हे गौरी नंदन! दया निधान,जग पर उपकार करो।।

सतीश कुमार नारनौंद
जिला हिसार हरियाणा
स्वरचित और मौलिक
जिला हिसार हरियाणा
स्वरचित और मौलिक

रचनाकार :- आ. सीता गुप्ता दुर्ग जी

🙏 नमन मंच,
कलम बोलती है साहित्य समूह (सूरत )गुजरात
दैनिक विषय क्रमांक 333
10सितंबर से 11 सितंबर 2021तक
विषय:- "श्री गणेश जी की आराधना"
विधा:-स्वैच्छिक

   *महिमा गणपति की* 
==================
प्रथम पूज्य श्री गौरी नंदन, 
विघ्न हरण गणेश |
जहाँ खड़े हों जाएँ प्रभु जी, 
मिट जाएँ सब क्लेश |

एकदंत की महिमा न्यारी, 
मूषक की सवारी |
करी परिक्रमा मात-पिता की, 
जाने दुनिया सारी |

मोदक उनके मन को भाए, 
लंबोदर कहलाए|
सूपा जैसे कान हैं उनके, 
अद्भुत रूप वो पाए |

बुद्धि के हैं वो तो दाता, 
सबके भाग्य विधाता |
बिन बुद्धि इस सारे जग में, 
कोई न कुछ भी पाता |


करो अर्चना पूजा वंदन,
 घर-घर में प्रभु आए|
अच्छे कर्म करे जो जग में, 
उनकी कृपा वो पाए |

✍🏻 सीता गुप्ता दुर्ग छत्तीसगढ़

रचनाकार :- आ. मोनिका (मीनू) जी

दैनिक_विषय_क्रमांक_333

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
🙏जय माँ शारदे 🙏
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🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼

 #विषय..गणपति आराधना

हे प्रथम पूज्य सिद्धि विनायक
जीवन में सुख समृद्धि भर दो
जीवन पथ पर अंधकार है
हे लम्बोदर ,प्रकाश भर दो
हे गणपति ,सृष्टि मंगलमय कर दो
दृष्टि मंगलमय रखने का वर दो
ग्रहस्थ में सदेव हो आनंद
हे मोदक प्रिय, स्तिथि अनुकूल कर दो
वक्रतुंड ,  एक दंत , गजमुख -दिव्य स्वरूप तुम्हारे
हे चतुर्भुज ,समस्त भय से रक्षा कर दो
जीवन हो सरल -सतत प्रवाहित
लक्ष्य प्राप्ति का वर दो
मेरे घर भी आना, रूखा सूखा जो भी हो
 कर जाना स्वीकार
हे रिद्धि सिद्धि के दाता
मेरे भावों का है यही सार
जीवन ख़ुशियों से महके 
कृपा बरसा जाना
मनोकामना पूर्ण करना
स्वास्थ्य, धन ,संतोष भरना
मस्तक झुकाकर, करबद्ध करें प्रार्थना
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
स्वरचित एवं मौलिक
मोनिका (मीनू)
11.09.21


रचनाकार :- आ. रुचिका राय ज़ी 🏆🏅🏆

नमन मंच
कलम बोलती है
विषय-गणपति


प्रथम पूजनीय गणपति,बाधा हरो हमारी,
दुख विपदा दूर करो,मेरे तारण हारी।

मात पिता की सेवा कर,उद्धार सदा ही होता,
विपत्ति का समूल नाश करो, हे विघ्नहारी।

मोदक लड्डू का भोग लगे सदा,
मिठास रहे जीवन में सारी,
गणपति गणनायक करें मूषक की सवारी।

छतीस करोड़ देवी देवता पूजनीय,
प्रथम पूज्य लंबोदर विपदा हरो हमारी।

संकट में जब भी हम हो आये शरण तिहारी,
कुशाग्र बुद्धि के पूजन ,मंगलाचरण करें जन सारी।

रिद्धि सिद्धि के तुम दाता, हम हैं दास तुम्हारी,
प्रथम पूजनीय लंबोदर,आये शरण तिहारी।


रूचिका राय

रचनाकार :- आ. प्रियदर्शिनी आचार्य ज़ी 🏆🏅🏆

श्री गणेशाय नमः🙏
 

महिमा गौरी पुत्र गणेश की करे हम वंदना 
प्रथम पूजू  आपको पधारो मोरे अंगना
 लडुअन भोग लगाऊं धरू मिश्री अरु मेवा 
निशि दिन जपूं नाम तेरा करो स्वीकार सेवा 
कर प्रदक्षिणा मात-पिता की उनका मान बढ़ाया 
उनके चरणों में चारो धाम जगत को समझाया 
आठों  सिद्धि नवनिधि के तुम ही हो दाता 
बल विद्या बुद्धि के तुम ही   तो हो प्रदाता 
 तज तुम्हारे चरणन  को ठौर कहीं ना पाऊं
 एकदंत दयावंत  टेरि कर तुमको मैं मनाऊं
 गणपति बप्पा बोलकर  तुम्हें मैं रिझाऊं 
अगले बरस आने की अरदास मैं लगाऊं 
दीनबंधु दुख हर्ता  तुम रक्षक सब के 
दे आशीष  दुख हरो तुम  हम सबके 
बुद्धिहीन को बुद्धिध देते निर्धन को धन देते
 तुम हो नित्य दया के सागर विनती सुन लेते

प्रियदर्शिनी आचार्य

रचनाकार :- आ. ब्रह्मनाथ पाण्डेय' मधुर' जी 🏆🏅🏆

क़लम बोलती है साहित्य समूह
दिनांक:-11-09-2021
बिषय:-श्री गणेश जी की आराधना
विधा:- दोहा
क्रमांक:-333

लम्बोदर को पूजिए, सब हो पूरण काम|
विघ्नेश्वर गणपति सभी, देंगे शुभ परिणाम||1||

गौरीसुत की मान्यता, करते नित्य पुराण|
महाप्राण वह स्वयं हैं, देते जग को त्राण||2||

प्रथम देव गणपति सुनो, पूजे सकल जहान|
जग तारण वह देव हैं, पूजो पाओ मान||3||

               स्वरचित/ मौलिक
              ब्रह्मनाथ पाण्डेय' मधुर'
ककटही, मेंहदावल, संत कबीर नगर, उत्तर प्रदेश

रचनाकार :- आ. सीमा शर्मा ज़ी 🏆🏅🏆

नमन मंच 
कलम बोलती है साहित्य समूह
क्रमांक -333
विषय- गणपति आराधना 
दिन -शनिवार 
दिनांक -11/ 9 /2021 

चलो गणेश बनाएं सखी री 
चलो गणेश मनाएं 
गंगा का जल भरकर लाये
गणपति जी को नहाए 
सखी री चलो गणेश मनाए
दूबा लाएं फूल ले आए 
गणपति जी को चढ़ाएं
सखी री चलो गणेश मनाएं
लड्डू लाए पेड़ा लाए 
मोदक भोग लगाएं
सखी री चलो गणेश बनाएं 
चलो गणेश बनाएं सखी री
धूप दीप नेवेद्ध आरती
हिल मिल के सब गाये
सखी री चलो  गणेश मनाएं
रिद्धि सिद्धि के हैं दाता 
शिवनंदन कहलाए 
सखी री चलो गणेश मनाये 
शुभ लाभ के पिता हैं गणपति 
पूज्य प्रथम कहलाये सखी री
चलो गणेश मनाएं गणेश बनाएं 
सखी री चलो गणेश मनाएं।

स्वरचित एवं मौलिक
सीमा शर्मा कालापीपल।


रविवार, 12 सितंबर 2021

रचनाकार :- आ. आई जे सिंह

नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
#विषय: गणेश आराधना
#विधा: पद्य

एकदंत  शोभित  लम्बोदर, गणपति गौरीनंदन हैं।
विध्न विनाशक मंगलदायक,चरण तुम्हारे वंदन हैं।।

हैं अम्बिकेय मोदकप्रिय ये, सबके काज बनाते हैं।
गजकर्णक,सुमुख,कपिल हम, महिमा  तेरी गाते हैं।
पावन पर्व गणेश चतुर्थी, करते  सब अभिनंदन हैं।
विध्न विनाशक मंगलदायक,चरण तुम्हारे वंदन हैं।।

शंकरसुवन गजानन  देवा, नाम  तुम्हारे भाते हैं।
मिट जाते हैं कष्ट सभी जब, दर्श तुम्हारे पाते हैं।
अष्टविनायक बुद्धिपति तुम,तुम्हीं उमासुत नंदन हैं।
विध्न विनाशक मंगलदायक,चरण तुम्हारे वंदन हैं।।

हे वक्रतुंड द्वैमातुर प्रभु, कार्तिकेय के सुन भ्राता।
अर्ज करो स्वीकार हमारी, गजवदनम मोदकदाता।
शीश नवाते चरण तुम्हारे, भाल लगाते  चंदन हैं।
विध्न विनाशक मंगलदायक,चरण तुम्हारे वंदन हैं।।

सिद्धिविनायक शूर्पकर्ण तुम, कर्मों के संचालक हो।
दुःख सृष्टि के हरने वाले, विघ्नराज तुम पालक हो।
दया दृष्टि हो जहाँ तुम्हारी, होते वहाँ न कृन्दन हैं।
विध्न विनाशक मंगलदायक, चरण तुम्हारे वंदन हैं।।

महाकाय हे देव हस्तिमुख, गौरी सुत हे गणनायक।
हे आदिपूज्य प्रभु शुभकर्ता,तुम अंतस में जगनायक।
रहे सदा आशीष तुम्हारा, तुम वसुधा  के कुन्दन हैं।
विध्न विनाशक मंगलदायक, चरण तुम्हारे वंदन हैं।।

(स्वरचित एवं मौलिक)
-©® आई जे सिंह
दिल्ली
11/09/2021

रचनाकार :- आ. सुनीता शर्मा जी 🏆🏅🏆

आप ओर हम
जी हाँ आप ओर हम 
ही तो है इस ग्रुप की जान
आन बान शान,
कुछ नई कुछ पुरानी सी पहचान।
जैसे सीप में मोती रहे
जल में रहे मीन
आसमान में तारे चमके
चूमे चंदा को जमीन


वैसे ही आप ओर हम है
एक दूजे के पूरक
अधूरे अधूरे है अभी
मगर साथ रहे तो हो जायगे पूरे।


जी हां आप ओर हम


रचनाकार :- आ. रोशन बलूनी जी 🏆🏅🏆

नमन मंच
#कलमबोलतीसाहित्यिक समूह
#दि0-11/09/21
#विषय-गणपति आराधना
#विधा-#वंदना(पद्य)

जय गणपति वन्दन  सुरनायक
जय सिद्धिविनायक गणनायक

प्रथम विराजे गणपति घर पर
मंगल   मूरति  हे   गणनायक।
बंदन   बार   लगे   घर    द्वारे
कष्ट  हरो   हे  विघ्नविनाशक।

पार्वती  शिव   के  तुम  प्यारे
सब भक्तन  के  तुम  रखवारे
रिद्धि-सिद्धि के तुम दाता हो
तुम भक्तों के हो प्रतिपालक।

विद्या वारिधि मन  के  स्वामी
सुरमुनि पूजित जग के स्वामी
भवसागर  से   पार  लगा  दो
सकल अमंगल के तुम नाशक।

एकदंत     तुम    गौरी   नंदन
कृपा तुम्हारी पाऊँ  निश-दिन
हे  लंबोदर  तिमिर  विनाशक
जै जै जै  हो तव  सुखदायक।

जय गणपति वन्दन  सुरनायक
जय सिद्धिविनायक गणनायक

रचयिता-- रोशन बलूनी🌹
कोटद्वार  पौडीगढवाल 
       उत्तराखण्ड
@..copyright act..🙏

शनिवार, 11 सितंबर 2021

आ. रकमिश सुल्तानपुरी जी 🏆🏅🏅🏆

ग़ज़ल

वक़्त   लगता   पुरानी  सदी  की  तरह ।
आदमी  न   रहा   आदमी   की    तरह ।

हाव  से  ,भाव  से , बात   व्यवहार   से,
लोग  लगने  लगे  अजनबी  की  तरह । 

किससे  लेता  भला  मशविरा  यार  मैं,
हर कोई चुप यहाँ  ख़ामुसी  की  तरह ।

हर कोई है यहाँ सच से वाकिफ़  मगर, 
झूठ   फैला  हुआ   चाँदनी  की  तरह ।

इश्क़  का  दर्द   दुनिया में  मशहूर  है ।
दर्द   कोई  नही  आशिक़ी  की  तरह ।

मयकशी  में  यहाँ  इश्क़  का ज़ीस्त से ,
रब्त  बनता   नही   शायरी  की  तरह ।

उम्रभर  का तज़ुर्बा  है "रकमिश" मेरा ,
आईना  है  कहाँ  ज़िन्दगी   की  तरह ।

               रकमिश सुल्तानपुरी

शुक्रवार, 10 सितंबर 2021

रचनाकार :- आ. डॉ देवेन्द्र तोमर जी 🏆🏅🏆

रचना की विधा.......गीत
रचना का शीर्षक.....ठीक नहीं है सोते जगते
रचनाकार............... डॉ देवेंद्र तोमर

ठीक नहीं है सोते जगते

ठीक नहीं है सोते जगते
बिना बात के हंसते रहना
लोगबाग इस कारण तुमको
पागल कहने लग जाएंगे

माना खिलती हुई कली सी
बचपन और जवानी पायी
ऊपर मंडराते भंवरों की
पूरी एक कहानी पायी
ठीक नहीं है सोते जगते
हरदम मेघ बरसते रहना
लोगबाग इस कारण तुमको
बादल कहने लग जाएंगे
लोग-बाग इस कारण तुमको
पागल कहने लग जाएंगे

रतरानी में कचनारों में 
माना खूब समायी हो तुम
छुई मुई सी और गुलाबी
पांखें पांखें पायी हो तुम
ठीक नहीं है सोते जगते
बनकर नजर लिपटते रहना
लोग बाग इस कारण तुमको
घायल कहने लग जाएंगे
लोग बाग इस कारण तुमको
पागल कहने लग जाएंगे

द्वार द्वार पर गली गली में
ऐसे जाया नहीं करो तुम
देख किसी की भी चितवन को
ऐसे गाया नहीं करो तुम
ठीक नहीं है सोते जगते
घुंघरू पांव खनकते रहना
लोग बाग इस कारण तुमको
पायल कहने लग जाएंगे
लोग बाग इस कारण तुमको
पागल कहने लग जाएंगे

ठीक नहीं है सोते जगते
बिना बात के हंसते रहना
लोग बाग इस कारण तुमको
पागल कहने लग जाएंगे

डॉक्टर देवेंद्र तोमर
अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष
विश्व साहित्य सेवा संस्थान

रचनाकार :- आ. अनिल कुमार राही जी 🏆🏅🏆

#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह 
#नमन मंच🙏🌷
#दैनिक विषय क्र 333
#विषय गणेश जी की आराधना
#विधा कविता
#दिनाँक 10/09/2021
#दिन शुक्रवार
#स्वरचित/मौलिक
#रचना समीक्षार्थ हेतु
🙏🙏🙏🌷🌹
    🌷🙏 गणेशबन्दना🌷🙏
एक दंत, वक्रतुण्डाय
मन में श्रद्धा भाव लाय
करें गुणगान श्री गणेश का
जय हो प्रभु लम्बोदराय

बुद्धि के तुम हो दाता
बना के तुमसे नाता
ज्ञान का दिया जलाय
जय हो प्रभु लम्बोदराय

तुम ही जगत के स्वामी
करुणा निधान अंतर्यामी
मन में तेरी छवि समाय
जय हो प्रभु लम्बोदराय

हाथ जोड़ विनती करे
प्रभु दुख,संकट,पीड़ा हरे
आज हमारे द्वार पधारो आय
जय हो प्रभु लम्बोदराय
************
@अनिल राही
ग्वालियर मध्यप्रदेश@
#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह 
#नमन मंच🙏🌹
#दैनिक विषय क्र 335
#विषय बावरा मन
#विधा कविता
#दिनाँक 15/09/2021
#दिन बुधवार
#स्वरचित/मौलिक
#रचना समीक्षार्थ हेतु
*************
मन करता है, उड़ उड़ जाऊँ
अपने प्रेम के पंख फैलाऊँ
सबको समेट कर उसमें
प्रेम की बगिया में ले जाऊँ

मन करता है प्रेम गीत गाऊँ
मिश्री सा रस घोलता जाऊँ
संगीत के उठ रहे साज को
सबके दिलों में भरता जाऊँ

मन करता है सबको अपनाऊँ
सब में मानवता का भाव जगाऊँ
झूठे,स्वार्थ से भरे इस जग में
इंसानियत का पाठ पढ़ाऊँ

मन करता है द्वार द्वार पर जाऊँ
दुख,दरिद्र,पीड़ा,कष्टों को अपनाऊँ
सबके दिलों में जगह बनाकर
अपनत्व की अलख जगाऊँ

मन करता है,मन मंदिर बनाऊँ
दया,प्रेम,करूणा की मूर्ती कहाऊँ
प्राण, प्रतिष्ठा कर हर दिल में
ऐसा सुंदर स्वरूप में बन जाऊं
**************
अनिल राही
ग्वालियर मध्यप्रदेश
"# ब्लॉग के लिए"

रचनाकार :- आ. अंकुर सिंह जी 🏆🏅🏆

नमनमंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
दिनांक-10.09.2021
विषय- गजानन महाराज
विधा-कविता

भाद्र शुक्ल की चतुर्दशी,
मनत है गणपति त्योहार।
सवारी प्रभु का मूषक डिंक
मोदक उनका प्रिय आहार ।।

उमा सुत है प्रथम पूज्य,
प्रभु गजानन महाराज।
ऋद्धि सिद्धि संग पधार,
पूर्ण करो मेरे सब काज।

मोदक संग चढ़े जिन्हे,
दूर्वा, शमी, पुष्प लाल।
हे लंबोदर ! सिद्धिविनायक !
आए हरो मेरे सब काल।।

हे ऋद्धि, सिद्धि के दायक,
हे  एकदंत !  हे विनायक !
गणेश उत्सव पर पधार,
बनो हमरे सदा  सहायक।।

बप्पा गणपति पूजा हेतु,
दस दिवस को आए ।
पधार पुत्र शुभ लाभ संग,
सारी खुशियां संग लाए।।

फूल, चंदन संग अक्षत, रोली,
लिए हाथ जोड़ करते वंदन।
हे गणाध्यक्ष!, हे शिवनंदन !,
स्वीकार करो मेरा अभिनन्दन।।

(मौलिक एवम् स्वरचित रचना)

अंकुर सिंह
हरदासीपुर, चंदवक 
जौनपुर, उ. प्र. -222129.

रचनाकार :- आ. राकेश तिवारी राही जी 🏆🏅🏆

जय श्री गणेश जी
---------------

                      -1-
प्रथम पूजनी गणपती, करूँ तुम्हारा ध्यान ।
बल,बुद्धि, विद्या दे मुझे, गौरी पूत महान ।।

                      -2-
मोदक ,मेवा,फल लिये, सुनों खडा मै द्वार ।
शरणागत प्रभु आपके, करो मेरा उद्धार ।।

                       -3-
रिद्धि, सिद्धि लम्बोदर प्रभू, गणनायक भगवान ।
दया दृष्टि निज सेवक पे, करिये दयानिधान ।।

                        -4-
गणपति बप्पा मोर्या , जय जयकार सुनाय ।
नर-नारी घर-घर प्रभू, तुझको रहे मनाय ।।

                     -5-
दुखहर्ता, मंगलमय कर्ता, श्री गणपति महराज ।
बिघ्न हरण देवों के देवा, प्रभू सुधारो काज ।।

                     -6-
उमा और शिवशंकर के , प्रभु तुम राजकुमार ।
यश, वैभव बाढै प्रभू , बढे कलम मे धार ।।

राकेश तिवारी " राही "
---------------------------------

श्री गणेश वंदना 🙏🙏

।। गणेश वन्दना।। 

मंगल - मूर्ति - गौरी - नंदन,
भक्ति-भाव से करू मैं वंदन,
जय - जय - जय संतन हितकारी.. 
जय - जय - जय मंगलकारी.. 
प्रथम पूज्य तुम, श्रीगणेश तुम,...2
वर दायक तुम, , सुख दायक तुम ...2
जय - जय - जय गौरी नंदन, 
हम सब मिल करे अभिनंदन,
जय - जय - जय संतन हितकारी,..
जय - जय- जय मंगलकारी...
एक दंत तुम,दयावंत तुम ,..2,
मंगलकारी तुम , शुभकारी तुम..2
जय - जय - जय शंकर नंदन, 
भक्तिभाव से करे हम वंदन, 
जय - जय - जय संतन हितकारी... 
जय - जय-जय मंगलकारी... 
गज मुख तुम, गजानन तुम... 2
मुशक सवार तुम, नंदी सवार तु्‍म... 2
जय - जय - जय श्री गणेशा
भजे तुम्हें वहाँ रहे ना कलेशा, 
जय - जय - जय संतन हितकारी... 
जय - जय - जय मंगलकारी... 
रिद्धि - सिद्धी के, स्वामी तुम हो... 2
शुभ और लाभ के, पालक तुम हो..2
जय - जय - जय माँ संतोषी के जनका, 
जहाँ तुम हो, वहाँ रहे ना कोई शंका, 
जय - जय - जय संतन हितकारी... 
जय - जय - जय मंगलकारी... 
नमन करे तुम्हें, आरती गाए.. 2
भोग लगाएं तुम्हें,स्तुति गाए..2
जय - जय - जय गणपति देवा, 
धावे तुम्हें वो पावे मेवा, 
जय - जय - जय संतन हितकारी.. 
जय - जय - जय मंगलकारी ।

।।ॐ गणपतिः नमः।। 

Uma vaishnav 
(स्वरचित और मौलिक)

रचनाकार :- आ. रवेन्द्र पाल सिंह 'रसिक'जी 🏆🏅🏆

नमन मंच
दिनाँक-8-9-2021
विषय-अन्याय
विधा-लघु कथा
बात अभी कुछ दिनों  पहले की ही है। हमारे विद्यालय के एक कर्मचारी द्वारा एक छोटी सी भूल होने पर हमारे विद्यालय के प्रधानाचार्य द्वारा उसे ऐसी सजा दी गई कि जिससे उसकी नौकरी ही समाप्त हो गयी। वह जो कुछ विद्यालय से जीवन यापन के लिए कमाता था वह भी समाप्त हो गई। उसने मुझे बताया सुनकर बहुत दुख हुआ ।मालूम करने पर पता चला कि प्रधानाचार्य जी ने उससे पीने के लिए पानी मँगाया था। कर्मचारी को अन्य कार्य होने के कारण वह पानी देना भूल गया इसी बात पर प्रधानाचार्य ने उसको बुरी तरह से ड़ाँटा, और उसकी नौकरी से छुट्टी कर दी जब यह बात मुझे मालूम पड़ी तो मैंने इस अन्याय का विरोध किया और प्रधानाचार्य से कहा कि इस कर्मचारी की रोजी-रोटी छीनने से
आपका कोई भला नहीं होगा पर उन्होंने अनसुनी कर दी। और उसको करीब 8 दिन तक निलंबित रखा इस अन्याय के प्रति मेरे मन में बहुत ही दुख का भाव था मैंने अपने स्तर से बात बड़े अधिकारियों तक पहुंचाई और अधिकारियों ने मेरी बात को ध्यान से सुना और उस कर्मचारी को उसकी सेवा पर पुनः बहाल किया और इस प्रकार एक गरीब के प्रति जो अन्याय हो रहा था  उसको मैंने दूर करने का प्रयास किया कहा भी गया है अन्याय को सहन करना भी अन्याय है इसलिए हमें अगर किसी के प्रति कोई अन्याय की बात दिखाई दे रही हो तो हमें उसका डटकर मुकाबला करना चाहिए जीत अंत में  न्याय की ही होती है अन्याय कि नहीं। धन्यवाद
रवेन्द्र पाल सिंह 'रसिक'

नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
विधा-काव्य
विषय-गणपति आराधना
दिनाँक-10-9-2021
रचनाकार-रवेन्द्र पाल सिंह 'रसिक'
नमन मंच
दिनाँक-10-9-2021
 


कर दो बेड़ा पार गजानन तुम्हें मनाते हैं,आज हम तुम्हें मनाते हैं।।
सबसे पहले तुम्हें मनावें।
सभा बीच में तुम्हें बुलावें।।
गणपति आन पधारौं हम तो तुम्हें मनाते हैं ,आज हम तुम्हें मनाते हैं।।
आओ पार्वती के लाला।
मूषक वाहन सुंड विशाला।।
जपें तुम्हारे नाम की माला,तुम्हें बुलाते हैं ।आज हम तुम्हें मनाते हैं।।
उमापति शंकर के प्यारे।
तू भक्तों केकाज सँवारे।।
बड़े बड़े पापी तारे जो शरण में आते हैं।आज हम तुम्हें मनाते हैं।।
लड्डू ,पेड़ा भोग लगावें।
पान ,सुपारी,पुष्प चढ़ावें।।
हाथ जोड़कर करें वंदना,शीश झुकाते हैं।आज हम तुम्हें मनाते हैं
सब भक्तों ने टेर लगाई।
रसिक ने तेरी महिमा गाई।।
रिद्धि-सिद्धि संग ले आओ हम भोग लगाते हैं।आज हम तुम्हें मनाते हैं-2 


रवेन्द्र पाल सिंह 'रसिक 'मथुरा
नमन मंच
दिनाँक-20-9-2021
विषय कोशिश
विधा-घनाक्षरी
कोशिश करोगे तो मिलेगी सफलता किंतु.
देश की अखंडता से मुँह मोड़िये नहीं.
भारत को जो भी वक्र दृष्टि से निहारे उसे.
धृष्टता का फल दिये बिना छोड़िये नहीं।
भूलिये न राम की भरत की उदारता को.
राज्य धन हेतु मित्र शीश फोड़िये नहीं।
एकता के हेतुप्रिय प्राणों का भुला दो मोह.
राणा,शिवा की परंपरा को तोड़िये नहीं।
रवेन्द्र पाल सिंह 'रसिक'

रचनाकार :- आ. घूरण राय गौतम जी 🏆🏅🏆

नमन कलम बोलती है समुह
#दिनांक- 09/09/21
$विषय क्रमांक- 332
******************
#वार- बुधवार , गुरुवार 
#विषय- अन्याय 
#विधा- लघुकथा 
#शीर्षक-अन्याय 
°°°°°°°°°°°°°°°°°°
     !! लघुकथा !!
      !! अन्याय !! 

गौरव एक गांव मे गरीब किसान है। वह गरीब होने के कारण  अपने बच्चे को गांव की ही एक सरकारी स्कूल में पढाने को मजबूर है। सिद्धान्त पढने में होशियार था। पिता को अपने होनहार बेटा सिद्धान्त पर बहुत ही गर्व था। वह इस उम्र में किसी अन्याय के विरुद्ध अवाज उठाने की हिम्मत थी।
इस वजह से कई बार स्कूल में अपने शिक्षक से पिट चुका था। पर वह लडका पिता से शिकायत नहीं करता था।
एक दिन की बात है, हर सरकारी स्कूल मे सरकार द्वारा पोषाहार योजना के अन्तर्गत सरकारी मेनू के हिसाब से पोषणयुक्त खाना देने का प्रावधान निश्चित किया गया है। एक दिन सेब और अनार का वितरण-छात्र छात्राओं बीच किया जा रहा था। सेब और अनार काफी छोटा और घटिया किस्म का था। कई बार खिचडी की थाली में तिलचट्टे और कीड़े होने की खिलाब आवाज उठानेवाले सिद्धांत आज अपने हाथों में वह सडे सेब और अनार ले कर अपने प्रधान अध्यापक के पास गया और बोला- "सर क्या आपके स्कूल का यही घटिया पोषाहार है। इसे खा कर विद्यार्थीयो  को पोषण तो नहीं मिल सकता लेकिन वह बीमार जरूर हो जाएगा। आप अपने विद्यार्थियों को चंद पैसों की लालच में , सेहत के साध खिलवाड़ क्यों कर रहें है।"
इतनी सी बात सुनते ही प्रधान अध्यापक आग बबूला हो गया। पास मे पडी छडी उठा कर यह बोलते हुऐ पिटने लगा , " चल भाग यहाँ से ! आज-कल नेता बनने लगा है"। सिध्दान्त रोते हुए ,पीठ सहलाते हुए प्रधान अध्यापक के कमरे से बाहर भागा।
सारे बच्चे स्तब्ध हो सिद्धांत का मुंह देख रहा धा।
यह कैसा अन्याय है , जिस सरकारी शिक्षक को 50 हजार से लाखों तक की तनख्वाह मिलती है ,  फिर भी उन्हें संतोष नहीं। पोषाहार में धांधली कर विद्यार्थीयो के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करते हैं।
ऐसे शिक्षक, शिक्षक कम राक्षस ज्यादा होते है। 
शिक्षक को हमेशा कर्तव्यनिष्ठ होना चाहिए न कि लालची।
यह अन्याय नहीं महा अन्याय है।
                 इति
उपर्युक्त रचना (लघुकथा)
 स्वरचित , मौलिक और  
     अप्रकाशित है।

   ✍घूरण राय गौतम 
    बेलौंजा मधुबनी बिहार

रचनाकार :- आ. प्रमोद कुमार चौहान जी 🏆🏅🏆

#कलम बोलती है मंच
*# दिनांक- 9/9/2021*
*# दिन- बुधवार*
*# विषय- अन्याय*
*#विधा- लघुकथा*
*#शीर्षक- अन्याय*


आज ही समाचार मिला कि कल से परीक्षा होनी है परीक्षा की तैयारी में लग गए और परीक्षा का समय नजदीक आ गया । परीक्षा देने के लिए गए परीक्षा में जो भी प्रश्न आए थे सारे प्रश्न बहुत ही अच्छे तरीके से किए और साथी मित्र ने बताया कि उसके दो प्रश्न रह गए हैं । इस प्रकार लिखित परीक्षा संपन्न हुई और फिर मौखिक परीक्षा में चयन हुआ मौखिक का भी समय निश्चित हुआ और फिर साथी मित्र के साथ परीक्षा दी, मौखिक परीक्षा में भी साथी मित्र ने बताया कि कुछ कमी रह गई है परंतु उसके दूसरे साथी की मौखिक परीक्षा भी बहुत अच्छे तरीके से संपन्न हुई । उसे उम्मीद थी कि उसका तो चयन निश्चित रूप से हो जायेगा और वह आश्वस्त था चयनित होने के प्रति , लेकिन जब अंतरिम परीक्षा का परिणाम आया तो पाया कि जिस साथी के प्रश्न छूट गए थे और  न ही मौखिक परीक्षा ठीक हुई थी उसका चयन हो गया और जिसकी दोनों परीक्षाएं बहुत अच्छी तरीके से संपन्न हुई वह चयनित से वंचित रह गया अर्थात कहीं ना कहीं प्रतिभा के साथ अन्याय हुआ है ।


पूर्व सैनिक
प्रमोद कुमार चौहान
कुरवाई विदिशा मध्यप्रदेश

रचनाकार :- आ. अनामिका_वैश्य_आईना जी 🏆🏅🏆

#दैनिक_विषय_क्रमांक_332
9.9.21 /वीर वार
विषय - अन्याय
विधा- लघुकथा

बेटी सयानी हो चली। पिता शादी के लिए परेशान है। आखिर होते भी क्यों न, डॉ. बेटी के मुकाबले कोई लायक वर भी तो नहीं मिल रहा है। इसी बीच बेटी ने अपनी पसंद पिता जी के सामने जाहिर की। पिताजी मिले और बात भी किया लेकिन बेटी पसंद पर पिताजी को कहाँ यक़ीन? बेटी का उसकी पसंद से दूर करने के लिए पिता जी ने तांत्रिक की मदद ली और मन को पलटवा कर उस लड़के से दूर कर दिया। लड़का भी लड़की के साथ ही पढ़ता वो भी सहयोगी डॉ. ही था लेकिन पिता की साजिश से अनजान बेटी के साथ उसके ही पिता ने अन्याय तो किया। अब बेटी तो है लेकिन पहले की तरह खिली हुई नहीं। मुस्कान तो है लेकिन झूठी और दिल टूटा हुआ पीड़ा से बेहाल... लेकिन कोई कर भी क्या सकता था एक बाप ने ही बेटी को पीर दिया है उसके साथ अन्याय करके.. सोचा नहीं था इतने ज्ञानी विज्ञानी चिकित्सा भी ऐसा कुछ कर सकते हैं।

#अनामिका_वैश्य_आईना
#लखनऊ

रचनाकार :- आ. टी के पांडेय जी 🏆🏅🏆

अन्याय

लघुकथा
टी के पांडेय
दिल्ली
_____

बहुत मुश्किल से दिन भर कमाने के बाद रात की रोटी जुटा पाता था राजेश। अपनी गृहस्थ आश्रम में शांति और खुशी से चार बच्चों को ऊँची शिक्षा देने के ख्याल से शहर आया था परंतु भाग्य ने यहाँ भी उस बार बार छला। कहते हैं न कहाँ जाते हो नेपाल, साथ जाएगा कपाल। पत्नी माया के असहनीय पीड़ा ने उसे अंदर से झकझोर दिया जब डॉक्टर ने ओवरी में सिस्ट बताया और तत्काल ऑपरेशन की बात कही। धरा के धरा रह गया सारा प्लान और घर में बची खुची जमींन बेचने आ गया। हाय रे विपत्ति उसके सगे चाचा ने उसके द्वारा जमीं बेचने पर कोर्ट में स्टे ऑर्डर इसलिए रोक लगबा दी ताकि उसके हिस्से को "अन्याय "करके ही सही मालिकाना हक प्राप्त कर सके। सच में कहा _

सच में विपत्ति जब आती है, कायर का जी दहलाती है
सुरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते। 
अन्याय के खिलाफ राजेश ने कमर कस कर सामने तन कर मुकाबला करने को सोचा। यह भी सत्य है जैसे ही आप तन कर खड़े,,,,,,,,

भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन के साथ संवाद के कुछ अंश की प्रस्तुति। आज के समय को समर्पित ये तत्व। 

संवाद
*****
पंचम सर्ग
--------
********१*******

योग्य कर्म है वही, जहां पर, फल की कोई चाह नहीं।
त्यागी ,प्रिय अर्जुन वही जिन्हें तन की है परवाह नहीं
********२*********

आंधी तूफ़ानों में जो जन , अपमान,सुधा सम पीता हो।
मेरे में अर्पित कर कुछ दिन का भाव लिए ही जीता हो।

********३********

एकांत किसी भी प्रांत शांत हो अर्जुन मेरा ध्यान करो।
छोड़ हालाहाल को अब तो तू सुधा कलश का पान करो ।

*********४********

मन अगर भ्रमण में जाता है, जानो दो प्रिय सुनसान जहां।
फिर लौट तुझी में आएगा, रहता है तेरा ध्यान जहां।

*******५*********

योगी जन का नास नहीं, जीवन मन पर ही निर्भर है।
जीवन मृत्यु से कहीं दूर समझो अर्जुन वह ऊपर है।

टी के पांडेय
दिल्ली
१०/०९/२१

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रचनाकार :- आ. गोपाल सिन्हा जी 🏆🏅🏆

अन्याय
---------

बहुत दिनों की बात है, कोई आज की नहीं। किसी सुदूर देश में, पास में नहीं, एक राजा राज करता था। उसे अपने एकलौते पुत्र, आसन कुमार के लिए, एक योग्य कन्या की अपेक्षा थी। 

उसने पूरे राज्य में मुनादी पिटवा दी कि उसे राजकुमार से विवाह के लिए अमुक प्रकार की कन्या चाहिए। 

बहुत-सी कन्याओं ने आवेदन किया। सोच-विचार कर, दो कन्याओं को साक्षात्कार के लिए आमंत्रित किया गया। एक का नाम था प्रतिभा, दूसरी का सुविधा। 

उनसे उनकी शिक्षा-दीक्षा, कला-कौशल आदि के संबंध में प्रश्न पूछे गए। योग्यता की कसौटी पर प्रतिभा खरी उतर रही थी। 

इसी समय कुछ सभासदों ने राज्य के विधि-विधान एवं परंपराओं का संदर्भ देते हुए, सुविधा के पक्ष में आवाज उठानी शुरू की। 

देखते ही देखते राजनीति गरमाने लगी। राजा थोड़े चिंतित हुए। प्रतिभा एक साधारण परिवार से थी। 

सुविधा अपेक्षाकृत संपन्न परिवार से थी। उसने दावा किया कि उसके परिवार से कई कन्याओं का चुनाव, राज्य के महत्वपूर्ण पदों के अधिकारियों की भार्या के रूप में हो चुका है और वह, आसन कुमार की पत्नी होने का संवैधानिक अधिकार भी रखती है। 

राजा-रानी चुप, अधिकांश सभासद चुप। कुछ खिसक गए, कुछ ने मौके की नजाकत देखते हुए या अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए, उन्हीं लोगों के सुर में सुर मिलाना आरंभ कर दिया। 

एक बूढ़े मंत्री ने सुझाव दिया कि क्यों न अपने हृदय को टटोला जाए। वहाँ से आवाज आयी कि यदि राजनीतिक कारणों से प्रतिभा की उपेक्षा की गई, तो यह उसके प्रति अन्याय होगा।
 
राजा अभी भी असमंजस में है। उधर सुविधा के प्रति गठबंधन मजबूत होता जा रहा है।


--- ( स्व-रचित )

     ( गोपाल सिन्हा,
       समस्तीपुर, बिहार,
       ९-९-२०२१ )

गुरुवार, 9 सितंबर 2021

रचनाकार :- आ. मंजू लोढ़ा जी 🏆🏅🏆

नमन मंच
शीर्षक – अन्याय (लघुकथा)
दिनांक – 09 सितम्बर 2021

आजकल हर तरफ अन्याय होता रहता है और लोग आम तौर पर अपनी आंखें बंद करके आगे बढ़ जाते है। कोई विरोध करना तो दूर, उसकी ओर ध्यान तक देने से कतराते है। जबकि एक समय था कि लोग राजा के द्वारा किये गये अन्याय का भी विरोध करते थे। प्रसंगवश आज मुझे बीरबल की खिचड़ी वाली कहानी याद आ रही है।

एक दिन बादशाह अकबर ने घोषणा की, कि जो आदमी सर्दी के इस मौसम में नदी के ठण्डे पानी में रात-भर खड़ा रहेगा, उसे शाही खजाने से पुरस्कृत किया जायेगा। इस घोषणा को सुनकर एक गरीब धोबी ने सारी रात नदी में खड़े-खड़े बिता दी और अगले दिन बादशाह के दरबार में आकर इनाम लेने पहूँचा।

बादशाह ने उस धोबी से सवाल किया, क्या तुम बता सकते हो किस शक्ति के सहारे तुम रात नदी में खड़े रहे ? धोबी ने अदब के साथ जवाब दिया, मैं कल सारी रात महल की छत पर जलते हुए चिराग को देखते रहा। उसी की शक्ति से मैं सारी रात नदी में खड़ा रह सका। बादशाह ने उसका जवाब सुनकर कहा, इसका मतलब तो यह हुआ की महल की रोशनी की आंच की गरमी के कारण तुम सारी रात पानी में खड़े रह सके, इसलिए तुम इनाम के सच्चे हकदार नहीं हो सकते।

धोबी उदास हो गया और बीरबल के पास जाकर निराशा भरे स्वर में बोला, दरबार में बादशाह ने इनाम देने से इंकार कर दिया है। धोबी ने इसका कारण भी बीरबल को बता दिया। बीरबल ने गरीब धोबी को सांत्वना देकर घर भेज दिया। 

बादशाह ने अगले दिन बीरबल को दरबार में न पाकर एक खादिम को उन्हें बुलाने के लिए भेजा। खादिम ने उन्हें आकर सूचना दी, बीरबल ने कहा है कि जब उनकी खिचड़ी पूरी पक जाएगी, तभी वह दरबार में आ सकेंगे। बादशाह को यह सुनकर बड़ा अचरज हुआ। वह अपने दरबारियों के साथ बीरबल के घर पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि दो लम्बे बांसों के ऊपर एक हंडिया में चावल रखकर उसे लटकाया गया है और नीचे जमीन पर आग जल रही है।

बादशाह ने तत्काल पूछा, बीरबल, यह क्या तमाशा है ? क्या इतनी दूरी पर रखी हंडिया में खिचड़ी पक जाएगी ? हुजूर जरूर पक जाएगी। बीरबल ने उत्तर दिया। कैसे ? बादशाह ने कौतूहलवश पूछा ? जहाँपनाह बिल्कुल वैसे ही जैसे महल के ऊपर जल रहे दिये की गर्मी के कारण धोबी सारी रात नदी के पानी में खड़ा रहा- बीरबल ने कहा।

बादशाह अकबर बीरबल का यह तर्कसंगत उत्तर सुनकर लज्जित हुए। उन्होंने तुरन्त धोबी को ढूंढ लाने और पुरस्कृत करने का आदेश जारी कर दिया। जब लोगों को ये बात पता चली तभी से  "बीरबल की खिचड़ी" एक कहावत के रूप में प्रचलित हो गयी।

किसी के साथ कभी अन्याय नही करना चाहिए और अगर कोई कर भी रहा है तो उसे सचेत करते हुए करने से भी रोकना चाहिए। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने भी कहा है कि अन्याय करने वाले से अधिक बड़ा पापी अन्याय सहन करने वाला होता है। इसलिए जीवन में हमेशा किसी के प्रति अन्याय हो रहा हो और अगर हम सक्ष्म हैं, और इसका विरोध कर सकते हैं तो इसका विरोध जरूर करना चाहिए।  गीता में भी कहा गया है, अन्याय सहना अन्याय करने से ज्यादा बड़ा पाप है।

इतिहास साक्षी है कि पापियों की उद्दंडता ने संसार को उतनी हानि नहीं पहुंचाई जितनी कि सज्जनों के मौन ने पहुंचाई। यदि कोई मूर्ख बोल रहा है तो मौन रहना उचित है, परंतु यदि कहीं छल हो रहा है, अपराध हो रहा है तो उठिए और विरोध कीजिए, क्योंकि आपके लिए न सही आने वाली पीढ़ी के लिए यह मौन घातक सिद्ध हो सकता है।  

- मंजू लोढ़ा

नमन मंच 
शीर्षक – गणेश आराधना
दिनांक – 11 सितम्बर 2021

ॐ गं गणपतये नमो नम:,
श्री सिध्धीविनायक नमो नम:,
अष्टविनायक नमो नम:,
गणपती बाप्पा मोरया ...। देखो देखो श्री गणेश उत्सव आया ,साथ में खुशियां अपार लाया।
गजानन के आगमन से,
आध्यात्मिक वातावरण में,
प्रफुल्लित तन मन कर्म से,
रिद्धी सिद्धी की आस लिए,
हर कोई मस्त मगन  नाचे गाये,
ॐ गं गणपतये नमो नम:,
श्री सिध्धीविनायक नमो नम:,
अष्टविनायक नमो नम:,
गणपती बाप्पा मोरया ...।
जल, थल, नभ, गगन पुकारे,
मोदक, लड्डू का भोग लगावे,  लाल फूल अर्पित करें, मस्तक पर दूर्वा चढ़ाये,
मूषकराज की करके सवारी,
गजानन हम सबके घर रिद्धि- सिद्धि तुष्टि- पुष्टि श्री ,शुभ -लाभ, आमोद- प्रमोद पूरे परिवार संग पधारे, प्रेम से जीवन जीने की राह दिखाएं,
चलो, मिलकर गाए हम सारे,
ॐ गं गणपतये नमो नम:,
श्री सिध्धीविनायक नमो नम:,
अष्टविनायक नमो नम:,
गणपती बाप्पा मोरया , विघ्नहर्ता बप्पा मोरिया रे। 
- मंजू लोढ़ा, स्वरचित

रचनाकार :- आ. नरेन्द्र श्रीवात्री स्नेह जी 🏆🏅🏆

नमन मंच कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमाँक. 332
विषय. अन्याय
विधा. लघुकथा
दिनाँक 9/9/2021
दिन. गुरुवार
संचालक आप औऱ हम

शशि एक सभ्य परिवार की बेटी जिसे उच्च संस्कार मिले थे। किन्तु पति अन्यत्र स्थान में कार्यरत था।
औऱ बहुत ही कम घर आता था। शशि अपने ससुर के साथ रहती। सिलाई का काम करती साथ में देवर भी रह्ता था। जो कपड़े बेचने का काम करता। खाने पीने से उसे कोई परेशानी नहीं थी।
पर ससुर की नशे की बुरी लत से वह परेशान थी। शाम को शराब पीकर आता औऱ गाली गलौज करता कई बार तो उसे मार भी देता।
ठण्ड के दिन करीब आठ बजे रात के समय उसकी गन्दी गन्दी गालियों की आवाज औऱ बहू के क्रंदन की आवाज सुन मुझसे रहा नहीं गया। मैं घर गया वह मुझे ही गाली देने लगा। मैंने उसे प्यार से समझाया पर वह नहीं माना। तब मुझे भी गुस्सा आ गया औऱ मैंने उसकी पिटाई कर दी। पड़ोस के सभी लोग एकत्रित हो गए।
सबों ने कहा अच्छा किया तुमने।उस दिन से ससुर जी की गाली की आवाज बन्द हो गई। रक्षाबंधन के दिन शशि ने मुझे अपना भाई बनाकर रक्षाबंधन बाँधा।
शशि का तलाक हो गया।शशि अपने मायके चली गई।
हर वर्ष शशि की राखी आती है औऱ सबसे पहले वही राखी मेरी कलाई में बंधती है। एक दो बार शशि सतना से राखी बाँधने घर आई है।
आज भी किसी पर अन्याय होते हुए मुझे देख कर सहन नहीं होता औऱ मैं अन्याय के प्रति आवाज उठाता हूँ।

स्वलिखित अप्रकाशित मौलिक सत्य लघु कथा।
ब्लाग में सम्मिलित।करने  की पूर्ण अनुमति है

नरेन्द्र श्रीवात्री स्नेह
बालाघाट म. प्र.
9893578040


रचना नंबर 1
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नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमाँक 333
विषय श्री गणेश जी की आराधना
विधा कविता
दिनाँक 10/9/2021
दिन शुक्रवार 
संचालक आप औऱ हम

जय हो गणेश तेरी जय हो गणेश।
चार भुजा धारी हे मूषक तेरी सवारी है।
तू विघ्नविनाषक है गौरी पुत्र गणेश।
नाम तेरे अनेक हैं लम्बोदर, गजानन। 
प्रथम पूज्य है तू तेरी आराधना करें सब
ब्रम्हा विष्णु महेश।
पापियों का तू नाश कर दे,
विघ्नहर्ता है तू विघ्न हर ले।
है गजबदन विनायक गौरी पुत्र गणेश।
तू ज्ञान दाता है ज्ञान हमें दे दे,
अज्ञान तम दूर कर दे।
मोदक लड्डू तुझे पसन्द हैं,
भक्तों की पूजा से खुश होकर,
दूर करता क्लेश।
हे गौरी पुत्र गणेश।

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचनाब्लाग पर अप लोडकरने की अनुमति है।
नरेन्द्र श्रीवात्री स्नेह
बालाघाट म. प्र.
 


रचना नंबर 2
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नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक३३५
विषय बावरा मन
विधा कविता
दिनाँक१६/९/२०२१
दिन गुरुवार
संचालक. आप औऱ हम

तेरी प्रीत ममें सांवरे बावरा हुआ रे मन।
सुध बुध भुला बैठा रे मेरा बावरा मन।
ढूंढ़ता फिरे तुझे हरदम य़े बावरा मन।
पूछता फिरे हर कुंज बाग में,
पूँछें हर कली फूलों से ये बावरा मन।
प्रीत लगाकर कहां चले गए हो तुम।
नजर क्यूं नहीं आते पूछ रहा है ये,
बावरा मन।
अब तो सबसे कहता है ये बावरा मन।
कोई किसी से प्रीत न करेप्रीत में हो
जाता है बावरा मन।
बहारों का आए मौसम तो ,
खुश हो जाता बावरा मन।
कहीं तो मिलेंगे सनम।
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचना। ब्लाग में अपलोड करने की अनुमति है।
नरेन्द्र श्रीवात्री स्नेह
बालाघाट म. प्र.
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रचना नंबर 3
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नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक३३६
विषय प्रेम की गागर
विधा कविता
दिनाँक१७./९/२०२१
दिन शुक्रवार
संचालक आप औऱ हम

प्रेम की गागर अमृतमयि होती है।
जीवन में करती नया संचार।
पूरित हो प्रेम से प्रेम की गागर।
जिन्दगी हँस के गुजर जाती है।
अपने प्रेम की गागर से हर
 दीन दुखी को तुम दो प्यार।
गम से घबराया हो जो तुम उससे
प्यार के दो मीठे बोलों से हर लो दुख।
अपने प्रेम की गागर से जो दोगे प्रेम जल।
तो जीवन सफल हो जाएगा तुम्हारा।
प्रेम की गागर से प्रेम कम कभी न होने देना।
प्रेम से चलता सारा संसार।
प्रेम ही है जीवन का सार।
प्रेम बिना सूना सब संसार।
प्रेम की गागर में रखो प्रेम अपार।

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचना। ब्लाग में अपलोड करने की अनुमति है।
नरेन्द्र श्रीवात्री स्नेह
बालाघाट म. प्र.

रचना नम्बर 4
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नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक३३७
विषय कोशिश
विधा कविता
दिनाँक२०/९/२०२१
दिन सोमवार
संचालक आप औऱ हम

समस्या कितनी भी बड़ी हो नहीं घबराना चाहिये।
समस्या को हल करने की कोशिश करना चाहिये।
कोशिश करने से सबकाम सफल ही जाते हैं।
नन्हा बालक सीखता है चलना ।
बार बार गिरता है फिर करता कोशिश।
कोशिश करने से चलना सीख जाता है।
कोई भीनया काम हो देख कर लगता है।
हम यह नहीं कर पाएंगे ।
पर बार बार कोशिश करने से ,
सीख जाते हैं वो काम।
कोशिश ही सफलता की सीढ़ी है।
कभी किसी काम के लिये हार
नहीं माननी चाहिये।
बस कोशिश करते जाना चाहिये।

रचना स्वरचित मौलिक अप्रकाशित है। ब्लाग में अपलोड करने की पूर्ण अनुमति है ।
नरेन्द्र श्रीवात्री स्नेह
बालाघाट म.प्र.


रचना नंबर 5
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नमन मंच कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक३३८
विषय श्राद्ध पक्ष
विधा कविता
दिनाँक.२३/९/२०२१
दिन गुरुवार
संचालक आप औऱ हम


अश्विनी मास की कृष्ण पक्षप्रतिपदा सेशुरू होता श्राद्ध पक्ष।
श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों की आत्मा हमें आशीष देने
को आती। हम जल तिल अक्षत करते तर्पण।
किया हमारे लिये जो पूर्वजों ने उऋण होने के लिये
करते हम तर्पण।
पितृ रुप काग औऱ विप्र द्वार हमारे आते
देते हम उनको भोजन मिष्ठान ।
करते हम हैं दान।
पूरे पक्ष रहते पृथ्वी लोक में फिर स्वर्ग
वापिस हैं जाते।
चली आ रही प्रथा वर्षो से। 
ये भी क्या हुई प्रथा हमारी
जीते जी तो कुछ न दिया माँ बाप को।
हरदम उनको दिया है दुख।
मरने के बाद करते हम पूर्वजों कोn तर्पण।
अब तो श्राद्ध पक्ष में गाय औऱ काग मिलना भी हो गया मुश्किल।
फिर भी हम श्राद्ध पक्ष मनाते।

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचना।ब्लाग में अपलोड करने की अनुमति है।
नरेन्द्र श्रीवात्री स्नेह
बालाघाट म.प्र.

बुधवार, 8 सितंबर 2021

रचनाकार :- आ. मनोज कुमार चन्द्रवंशी मौन जी 🏆🏅🏆

#नमन कलम बोलती है साहित्य समूह 
#दिनांक-08/09/2021 
#दिन- शुक्रवार 
#विषय- अन्याय
#विधा- लघुकथा 

नंदिता की शादी को 4 माह हुए हैं। नंदिता के ससुराल वाले नंदिता को हमेशा प्रताड़ित करते हैं। नंदिता अपने मायके से ससुराल में कुछ अरमान लेकर आई है। लेकिन नंदिता की सारे अरमान धूल में मिल गई। नंदिता हमेशा रोती रहती है। जीवन को कोसती रहती है। ओह!!! भगवान मुझे किस नर्क में तूने डाल दिया। नंदिता का पति लापरवाह है। नंदिता के भावनाओं को नही समझता है। नंदिता मायके की सुख को अनुभूति कर हमेशा अपने आप को कोसती रहती है। उसकी दिल हमेशा कचोटते रहता है।

समय बीतता गया। समय कुछ ऐसा करवट लेता है। जब नंदिता अपने ससुराल में इतना ज्यादा प्रताड़ित हो गई। ये अन्याय उसके सहन शक्ति से परे हो गया। उसने सोचा कि मुझे अब इस घर में नहीं रहना है। नंदिता हमेशा अकेलापन महसूस करती है। नंदिता चुपचाप जाकर बेडरूम में सिसकियां,,, लेती रहती है। उसके इस स्वभाव को देखकर उसके ससुराल वाले अनबन बनाने लगे। नंदिता  और परिवार वालों की रिश्ते में खटास आने लगा। नंदिता सारी व्यथा अपने घरवालों को बताई। नंदिता घर वाले बोले कुछ दिन और रहो। बेटी,,,, लेकिन नंदिता बोली----अब मैं आत्म ग्लानि  की घूंट  नहीं पी सकती हूं। ससुराल और मायके वालों  के बीच इतना ज्यादा अनबन हो गया कि जो पूर्व में मधुर संबंध था। वह टूट कर बिखर गया।

ससुराल मायके वालों के बीच अनबन की खाई इतना गहरा हो गया कि उस खाई को पाटना बड़ा मुश्किल हो गया। नंदिता के स्वभाव को जाने बिना  प्रताड़ना दोनो रिश्तों के बीच दरार डाल दिया।

                           रचना 
               स्वरचित एवं मौलिक
          मनोज कुमार चन्द्रवंशी मौन
बेलगवाँ जिला अनूपपुर मध्यप्रदेश

#नमन कलम बोलती है साहित्य समूह 
#दिनांक-21/09/2021 
#दिन- मंगलवार 
#विषय -कोशिश
#विधा -छंद मुक्त कविता 

 कुछ नूतन करने का मन में आस कर,
 नव सृजन का अटल विश्वास कर।
 सोई हुई प्रतिभा को जागृत करने का,
 स्वयं का एक सार्थक प्रयास कर॥

विगत हर पल को आत्मसात कर,
वर्तमान के कर्म को अवलोकित कर।
भविष्य के प्रति उन्मुख होकर,
कुछ अच्छा करने का कोशिश कर॥

भाव भंगिमाओं को साज संवार कर,
झुकी कटि को फिर खडा कर।
जिंदगी के विवशता को त्याग कर,
पर्वत सादृश्य मनोबल बड़ा कर॥

गर गिर चुके हैं पगडंडियों में,
यह जमाना स्तब्ध देख रहा है।
यदि रुक गये नाकामयाबी के गर्त में,
हृदय की व्याकुलता कोस रहा है॥

शनैः - शैनः कदम आगे बढ़ाते रहो,
एक दिन सफलता शोर मचा देगा।
पग चुंबन होगा पर अधरों से,
खुशियों से जीवन की डोर सजेगा॥

हिम्मत न हारें नभ का तारें गिनना है,
पग से नापना है धरती आसमां को।
एक तुच्छ प्रयास क्यों ना हो?
हमें दिखला देना है असमय को॥

यदि भूल हुआ है पुनः सुधार कर,
नए सिरे से नव आगाज कर।
सब त्रुटियों को प्रयश्चित कर,
जीवन में सफलता का बरसात कर॥

                    स्वरचित
           मनोज कुमार चंद्रवंशी
 पुष्पराजगढ़ जिला अनूपपुर (म0 प्र0)

रचनाकार :- आ. प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"जी 🏆🏅🏆

जयशारदे माँ 🙏🙏
नमनमंच संचालक।
✍️कलम बोलती है साहित्य समूह।
विषय - अन्याय।
विधा - लघुकथा।
स्वरचित।

प्रेमनाथ जी आफिस में क्लर्क थे।किराये के दो कमरों में गुजर-बसर हो रही थी।परिवार में पत्नी और तीन बेटे थे।बड़े बेटे की क्लर्क की नौकरी लग गयी। 
सरकारी कर्मचारी केकोटे से लाटरी में दो छोटे-छोटे प्लाट बाप-बेटे के नाम अलाट हो गये और धीरे-धीरे किस्तें पूरी होतीं रहीं।एक बेटा बाहर नौकरी करने लगा
कुछ समय बाद बड़े बेटे शादी हो गयी।रिटायर होने पर प्रेमनाथ जी ने एक प्लाट पर दो कमरों का मकान बनवा दिया।
बड़े बेटे की एक-एक कर 3 बच्चे हो गए उसी दो कमरे के किराए के मकान में।मकान बनने के बावजूद उन्हीं दो कमरों में सात लोग निवास कर रहे थे।जब भी कोई आ जाता तो बड़ी मुश्किल होती। 
    एक बार जब छोटा बेटा आया तो यह सब देख कर उसने कहा कि जब हमारा मकान बन गया है तो वहां क्यों नहीं शिफ्ट हो जाते। प्रेमनाथ जी को लगा कि वह मकान भी कुछ ज्यादा बड़ा नहीं है तो बड़े बेटे को वहां शिफ्ट कर देते हैं परिवार के साथ.. आगे उसके बच्चे बड़े होंगे पढेंगे तो उसे ज्यादा जरूरत है।
दूसरे प्लाट में आगे जब सुविधा होगी अपने लिए घर बना लेंगे। इस तरह बड़ा बेटा अपनी पत्नी और बच्चों के साथ नए मकान में शिफ्ट हो गया और प्रेम नाथ जी उसी किराए के मकान में रह गये। 
   एक दिन बड़ा बेटा मां बाप के पास आया हुआ था और मैं भी वहां बैठी हुई थी।चलती बात में बेटा कहने लगा देखिए ना मां बाप ने मेरे साथ कितना अन्याय किया,मेरे को घर से अलग कर दिया। 
मैं उसकी इस अन्याय की परिभाषा पर सोच रही थी कि अन्य वास्तव में किसके साथ हुआ था..? 
जिसको अपना घर मिला रहने को वह जिनका सारा जीवन किराए के मकान में गुजर रहा है..? 

प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
08/09/2021


जय शारदे मां 🙏🙏
नमनमंच संचालक।
कलम बोलती है साहित्य समूह।
विषय - बाबरा मन।
विधा - कविता।
स्वरचित ।(ब्लाग पर दे सकतीं हैं उमाजी) 

मन बाबरा होता है, 
जब लगन लग जाती है।
दुनियां की फिकर छूट जाती है,
जब प्रभु से लौ लग जाती है।।
***
मीरा हुई बाबरी कृष्ण प्रेम में 
औ दुनियां हुई बाबरी पैसे के खेल में। 
मां हुई बाबरी वात्सल्य प्रेम में
औ सन्तान हुई बाबरी कैरियर के खेल में।। 

हर कोई यहां बाबरा
किसी ना किसी खेल में 
मैं हुई बाबरी प्रतिलिपि लेखन में।। 
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प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
15/09/2021

रचनाकार :- आ. अंजु भूटानी जी 🏆🏅🏆

नमन मंच
दिनांक: 8/9/21
कलम बोलती है समूह
विधा: लघुकथा
शीर्षक: पाखी

सुमि ने सुना था कि अन्याय करने वाला और सहने वाला दोनों दोषी होते हैं। तो वह इस अन्याय का प्रतिकार करेंगी। उसकी कोख पल रही बेटी का जीने का अधिकार। 
एक पढ़ी लिखी नौकरी पेशा विवाहिता है। आज अपने रहने का प्रबंध कही और कर लिया। हाँ उसकी अंतरंग सखी निया ने उसका साथ दिया।
सौरभ के नाम उसने पत्र लिखा और चल दी अपने नए आशियाने की तरफ। समाज और परिवार से संघर्ष करने। 
नौ महीने बाद उसने स्वस्थ सुंदर कन्या को जन्म दिया। आज उसकी बगिया खिल उठी नन्ही पाखी की किलकारी के साथ।

अंजु भूटानी
नागपुर
#ब्लॉग _के_लिए

रचनाकार :- आ. संगीता चमोली जी

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