मंच को प्रणाम 🙏🙏
विषय -पाठशाला (लघु कथा)
क्रमांक संख्या -423
दिनांक -16 /4/ 2022
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🙏🙏मां शारदे का नमन वंदन करते हुए🙏🙏
मां सरस्वती का वास है पाठशाला
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पाठशाला का अर्थ बचपन में हमने समझा नहीं, जब घर से तैयार होकर पढ़ने के लिए जाते थे, तो दिल और दिमाग में यह नहीं आता था ,कि विद्या अध्ययन करके हमें कुछ आगे बढ़ना है। मस्ती में झूमते , खेलते- खेलते स्कूल पहुंचते थे। पर्वतीय क्षेत्रों में स्कूल बहुत दूर-दूर एवं गिने चुने होते थे। उस समय पर्वतीय क्षेत्रों में अंग्रेजी स्कूल नहीं होते थे। सरकारी स्कूल होते थे। कक्षा एक से कक्षा तीन तक पाटी पर लिखते थे। पार्टी आजकल की सिलेट की तरह होती थी। अब तो वह दूर दूर तक नजर नहीं आती। पुरानी सारी वस्तुएं समाप्त होती जा रही है। उस समय सारे सरकारी स्कूलों में जमीन पर टाट पट्टी बिछाकर बैठते थे । गुरुजी श्यामपट्ट पर लिखकर पढ़ाते और समझाते थे। उस समय की पढ़ाई बहुत अच्छी होती थी।
समय से पाठशाला पहुंचकर पहले ईश्वर प्रार्थना , प्रार्थना के बाद सदाचार का पाठ, फिर पीटी, याने व्यायाम सिखाया जाता था। मध्यांतर में मिल्क पाउडर घोलकर सभी छात्रों को दिया जाता था। सभी छात्र बड़े शौक से पीते थे।
गुरुजी का सभी छात्रों के प्रति पढ़ाई की ओर विशेष ध्यान रहता था, साथ ही लिखावट पर भी बहुत मार पड़ती थी , क्रमबद्ध लिखना, अक्षरों को सही ढंग से मिला कर लिखना, सभी छात्रों का उत्साह बढ़ाते रहते थे। उस समय पांचवी कक्षा एवं आठवीं कक्षा का भी बोर्ड हुआ करता था, और काफी दूर बोर्ड का सेंटर पड़ता था। उस समय आवागमन के साधन भी नहीं थे। काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था।
आखरी क्लास में सभी छात्र खड़े होकर पहाड़े, गिनती, कविता दोहराते थे, खूब जोर जोर से बोलकर याद करते थे। उस समय के स्कूलों में पढ़ाई के अलावा कोई दिखावा नहीं था। बहुत अच्छा समय व पाठशालाएं थी।
मुझे बहुत अच्छा लगता है ,मैंने सरकारी स्कूल में विद्या अध्ययन किया, आज शिक्षा का स्वरूप बदल गया। समय बदला समय के साथ सब कुछ बदल गया।
देवेश्वरी खंडूरी ,
देहरादून उत्तराखंड।