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शुक्रवार, 24 सितंबर 2021

विषय :- #अभिलाषा 🏆🏅🏆





रचना नंबर - 1
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24 सितंबर , शुक्रवार
 शब्द : #अभिलाषा
शब्द प्रदाता : सुश्री महिमा शुक्ला जी
      .           #दोहा_मुक्तक- 1
🙏🏵🙏🏵🙏🙏🌹🙏🏵🙏🏵🙏

चालाकी  करते  रहे , फिर भी गली  न दाल.

हड़पी  दौलत  मित्र  की .  हुए न मालामाल.

कर्म सदा फलता वही , करता  जो  सत्कर्म -

#अभिलाषा जिसकी बढ़़ी , वही रहे  कंगाल. 

                    #दोहा_मुक्तक- 2
📣📣📣📣📣📣📣📣📣📣📣📣📣

 जीवन  नीरस  ही  बने  , अपनों  से  न  मिलाप.

 वह रसना किस काम की , करे न हरि का जाप.  

'भूषन' #अभिलाषा  बढ़़े  , उर  में  बढ़े  विकार-

 घृणा - पात्र   जग   में   बने  ,  रहता  पश्चाताप.
                      🌹🏵🙏
            रचयिता :-कुलभूषण सोनी
    रचयिता :- कुलभूषण सोनी 'ब्रजवासी'


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रचना नंबर - 2
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नमन मंच कलम बोलती है
विषय  अभिलाषा
विधा  पद्य
क्रमांक  339
24 सितम्बर 2021,शुक्रवार

अभिलाषा पर खड़ी दुनियां
सब करते अभिलाषाएँ पूरी।
यह जीवन , कर्मों पर निर्भर
अभिलाषा  की मिटती दूरी।

नव अभिलाषा उमंग हिय में
उत्साह जज्बा, होता जरूरी।
निष्फल कर्म किये जा मानव
निश्चित अभिलाषा होती पूरी।

अभिलाषा का भंडार है नर
अभिलाषा समाप्त न होती।
परिश्रम का फल अति मधुर 
सागर में से खोजते हैं मोती।

मुख मुखौटा ,पहन घूम रहे
क्यों इनसे,अभिलाषा करते?
रखो निज पर उम्मीद अपनी
बढ़ते कदम , कभी न रुकते।

सजग रहिये, बनो होंशीयार
गर अभिलाषा पूरण करनी।
समय चक्र,  चलता रहे नित
अभिलाषा  बनती संजीवनी।

स्वरचित,मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम 
कोटा,राजस्थान।
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रचना नंबर - 3
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💐🙏#कलम✍ बोलती है साहित्य समूह🙏💀

#दिनांकः २४.०९.२०२१
#दिवसः शुक्रवार
#विषयः अभिलाषा
#विधाः कविता(गीत)
#शीर्षकः मानव की अभिलाषा

मानव  की   जिजीविषा अनंत पथ,
केवल   जीवन  उड़ान  न   समझो।
नित अटल निडर निर्बाध लक्ष्य पथ,
ख़ुशियाँ  ज़न्नत   निर्माणक समझो।

उन्मुक्त   इबादत    आतुर    लेखन,
हर कीमत मन अभिलाषित समझो।
बन   धीर     वीर  योद्धा  रनिवासर,
साहस   अविरत   यायावर  समझो। 

संकल्प हृदय लेकर  पथ  अविचल,
आँधी   तूफान   उफ़ान  समझ लो। 
साम  दाम   भेद  नीति    दण्ड   से,
अविरत  पूरण अभिलाषी  समझो।

नव यौवन नव जोश प्रगति कर्म पथ, 
ऊर्जावान  नित मिहनतकश समझो। 
विश्वास लबालब मन   कार्य  सफल,
काबिल    स्वयंभू    मानक  समझो। 

मानव जिजीविषा नित  सागर  सम,
संघर्ष     जटिल  संवाहक   समझो। 
बाधक   हों   खाई  चट्टान    विषम,
प्रतिकार  सचेतक   जाग्रत  समझो।

उन्माद  चाह   अतिघातक   जीवन,
नव द्वेष घृणा शत्रु    सृजन  समझो।
रत  रोग शोक   क्रोधानल   हिंसक,
पर जिजीविषा   अभिलाषा समझो। 

सुखद शान्ति   चैन  आनंद   सकल,
बस अभिलाष तिमिर धुमिल समझो।
कहँ   मानवता   मूल्यक   नीति धर्म,
शैतान     दनुज   परिवर्तन   समझो।  

अब   ईमान   धर्म   परमार्थ   रहित,
कर्तव्यहीन  मनुज लालच    समझो। 
स्वराष्ट्र   मान मुहब्बत  क्या मतलब,     
बस  अभिलाष वृद्धि जीवन समझो। 

हाय हाय   सदा  धन  सत्ता  अर्जन,
विश्वास स्वयं इतर   खोता  समझो।
कर्ता    हर्ता   पालक   ख़ुद   ईश्वर,
मानव  ख़ुद  पातक हन्ता   समझो। 

मानव   की  जिजीविषा  सुरसा सम,
जीवन्त  मौत , पर  अन्त  न समझो।
खो   मति   विवेक  समरसता  रिश्ते,
बस अपयश अशान्ति नायक समझो।

कवि✍️ डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" 
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नई दिल्ली
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रचना नंबर - 4
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जय माँ शारदे
अभिलाषा 
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                                                                                                                    सोना चांदी न मोती का हार चाहिए । इंसा हूँ बस इंसानों का प्यार चाहिए ।। 

                           1-
नयनो से मोती रूपी निकले आसू की धार , ऐसा रोता और रुलाता, न ब्योहार चाहिए ।  
  
                             2-
खुशियों का फौव्वारा छूटे दांत खिले मोती से , हरा भरा मुझको ऐसा, संसार चाहिए ।   

                               3-
मोती जैसे चमके चेहरे गम अनुभव बिहीन सा , दिल से दिल का मिला हुआ परिवार चाहिए ।   

                                4-
चर्चे नही नफरतों के हो चौपालों मे, मानवता से सराबोर घर द्वार चाहिए ।   

                                   5-
हर एक जीव बने मोती सी प्रतिभा लाकर , गरिमा उच्च विचारों का उद्गार चाहिए ।  

राकेश तिवारी "राही"
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रचना नंबर - 5
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'जय माँ शारदे '
विषय क्रमांक-339
विषय- अभिलाषा 
दिनांक-24-09-2021
शुक्रवार 
समीक्षा हेतु सादर प्रेषित-

अभिलाषा 
---------------
विहग वृन्द के गगन में
मृदु-वचन के पंचामृत में
अलंकृत शब्दों के सुशोभन में 
आत्मिक प्रक्षेपण में 
हे! ईश तुम्हें पा जाऊँ मैं!
जो उद्द्गार समझ ना सका कोई 
नयन- आलेखित अश्रू से धूल-धुसरित 
भाषा तुम्हें पढ़ाऊँ मैं !
एक आरत निज की 
कर चरणों में वंदन 
नित्य उतारूँ मैं!
दृष्टि अलौकिक कर चंदन 
विभूषित भाल पर मेरे 
प्रशंसा तुम्हारी पा जाऊँ मैं!
कहाँ और कब रोकती हूँ तुम्हें 
राधा- मीरा का मन मोहने से!
एक आवेदन स्विकारोक्ति की 
आऐ हस्त तुम्हारे भी!
गुहार की अवज्ञा ना हो 
एक वादा पा जाऊँ मैं!
कुसुम- अगर की ज्योत में तुम 
किसी जनम के विखुट- साथी सी प्रतीति!
तस्वीर तुम्हारी कराती है 
मुखारविन्द की मुस्कान 
कितने रहस्यों में उलझाती है!
होकर चितेरे! अपनी रचना से 
अनजान कैसे हो सकते हो!
अभिलाषा! यही! जब करूँ याद तुम्हें मैं 
कुसुम बन आंगन में महक जाना तुम!
मैं ना आ सकूं तीर जब 
मुझे लिवाने तुम आना----!!!

---- निकुंज शरद जानी 
स्वरचित और मौलिक काव्य सादर प्रस्तुत है। 
ब्लाॅग हेतु सादर प्रस्तुत।
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रचना नंबर - 6
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ब्लाग के लिए स्वीकृति

नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
दिनांक-24/9/21
विषय-अभिलाषा
विधा-स्वैच्छिक ( छंद मुक्त कविता)
शीर्षक- स्वप्न सुनहरा

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अभिलाषा के स्वप्न नगर में,
अभिलाषाओं का मेला है।

ऱग बिरंगे तरंगित चित्रों से,
सुसज्जित जिसका सवेरा है।

अभिलाषा मन की अति चंचल,
पल पल नित नवीन ये रुप धरे।

छण छण बदले अपनी परिभाषा,
आस निरास की धूप छांव सी निखरे।

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सुखमिला अग्रवाल'भूमिजा'
स्वरचित एवं मौलिक
कापीराइट ©®
मुंबई

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रचना नंबर - 7
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🙏नमन मंच 🙏
#कलम_बोलती_है_
साहित्य_समूह 
#आयोजन संख्या ३३९
#आयोजन विषय  अभिलाषा
#विधा कविता

मेरे मन की यह अभिलाषा,
            पूरी हो हम सबकी आशा।
चले सत्य की राह पर सारे, 
          हिम्मत अपनी कभी न हारे।
छट जाएं धरती से नफरत का     
                                  अंधियारा,
खुशियों से फिर महकेगा यह
                           गुलशन हमारा।
सूरज फिर निकलेगा जग में फैलाने   
                                  उजियारा।
होगा दूर अंधेरा तब दुनिया का    
                                        सारा।

तरुण रस्तोगी'कलमकार'
मेरठ स्वरचित
🙏🌹🙏
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रचना नंबर - 8
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जय माँ शारदे
नमन कलम बोलती है सहित्य समूह
विषय :अभिलाषा
दिनांक :24-09-2021
विधा:स्वेछिक

मन की अभिलाषा !
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मन की अभिलाषा क्या है?
अभिलाषा इच्छाओं का मेला है।।
एक छोर मिल भी गया अगर।
जो पाया वह कम ही लगता है।।

अतृप्त अंतर्मन चैन कहां पाता है।
मन इच्छाओं के चुंगल मे फंसा रहता है।।
एक इच्छा पूर्ण हो भी हो जाए अगर।
दूसरे क्षण नई इच्छाओं का सृजन हो जाता है।। 

अतीत के पलों मे खोकर देखा है।
अभिलाषाओं का  हिमशिखर जहां  है ।।
असंख्य इच्छाओं का बोझ उठाकर।
मानव को बर्फ की परत पर चढ़ते देखा है।।

संक्षिप्त सा जीवन सफर है।
हमें तो बस अभिनय करना है।।
अभिलाषाएं पूर्ण न हो अगर ।
इंसान को बस टूटने से बचना है।।

मानव जीवन चाहे जैसे  जी सकता है।
सफल होकर नभ में भी उड़ सकता है।।
एहसास ना किया परम शक्ति का अगर।
शिखर पर जाकर भी फिसल सकता है।।

अभिलाषाएं अनंत अनेक है।
अभिलाषाओं का अंत कहां है।।
सफर का अंत ना हो जाए तब तक।
मानव के जीवन में चैन कहाँ है।।

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भगतसिंह, नई दिल्ली
(मेरे एकल संग्रह "एक कविता ऐसी लिख पाऊं" से है)

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रचना नंबर - 9
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नमन मंच 🙏
कलम बोलती है साहित्य समूह
दिन,शुक्रवार
दिनांक,२४/०९/२१
विधा,कविता
विषय,, अभिलाषा

जब हृदय ने समझा हृदय की भाषा,तब जाकर परिभाषित 
हुई एक नई अभिलाषा,,,,,,

खोल पट हृदय के कहती हूं
बड़ी अजीब मेरी अभिलाषा
जब देह से निकले ये आत्मा

तो गुजारिश है एक रोज की 
मोहलत देना मुझे हे परमात्मा
ज़रा पूछूं तो उस रूह से कहां से

आकर कहां चली जाती हो , हो
सके तो देना अपना कभी पता
ठिकाना,कैसा है मोह पासा,,,

करनी है तुझसें दो चार बातें 
शायद मिल जाए जीवन की 
परिभाषा,,,,,,,,,

हां,,सच में मेरी अंतरात्मा से बस
यही और एक यही है अभिलाषा,,,

स्वरचित,, अर्चना उपाध्याय
पूर्णतः मौलिक और अप्रकाशित
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रचना नंबर - 10
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नमन कलम बोलती है मंच
विषय-अभिलाषा
विधा-स्वैच्छिक
दिनांक-24/9/2021

अभिलाषा मेरी यही, हिंदी हो सिरमोर।
अपनायें सब प्रेम से, यह सबकी चितचोर।।
यह सबकी चितचोर, प्रचारित करना जग में।
है जग ज्ञान अथाह, रहे ये सबके मग में।।
यही सर्व की मान्य, विश्व की जननी भाषा।
हों श्रेष्ठ संस्कार, सदा सबकी अभिलाषा।।

बढो साथ लेकर इसे, तभी मिलेगी राह।
विश्वगुरू भारत बनें, यही हमारी चाह।।
यही हमारी चाह,प्रगति भारत की करती।
बढे देश का मान, उड़ानें जग में भरती।।
बाँटे ज्ञान प्रकाश, रहे सदा हमें देकर।
भरा ज्ञान भंडार, बढो इसे साथ लेकर।।

स्वरचित
डॉ एन एल शर्मा निर्भय
जयपुर
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रचना नंबर - 11
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नमन.....मंच
कलमबोलतीहैसाहित्यसमूह
विषय......#अभिलाषा
विधा.......#छंद (सार छंद)
मात्रा.......16 , 12 = 28 मात्रा, पदान्त - 22
दिनांक.....24/09/2021

             ---: अभिलाषा :---
             

मन करता है गगन को छुलूँ ,
                      सूर्य चाँद से खेलूँ ।
मन करता है नभ के तारों 
                      को मुठ्ठी में लेलूँ ।।1।।

मन करता है उडूँ गगन में 
                      मैं भी पंछी जैसा ।
मन करता है खत्म कभी ना 
                      होये मेरा पैसा ।। 2।।

मन करता है मैं फूलों सा 
                     वन बागों में महकूँ ।
कली-कली पर बन तितली मैं 
                     फुदक-फुदक कर ठमकूँ ।।3।।

मन करता है कोयल जैसा 
                      कुहू - कुहू मैं बोलूँ ।
पेड़ों की फुनगी पर बैठूँ 
                      भर मस्ती में डोलूँ ।।4।।

                 --------- ० --------
स्वरचित व मौलिक रचना

                  आचार्य धनंजय पाठक
                           पनेरीबाँध
                 डालटनगंज , झारखण्ड
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रचना नंबर - 12
नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समुह
दिनांकः24-9-21
क्रमाँकः339
विधाः कविता
जीवन के दिन गिनती के, अभिलाषा है अनंत
इंसा हो जाता खत्म, मगर बचा ना  कोई साधु हो या संत।1
अभिलाषा ऐसी है मृगतृष्णा, जिसका ओर ना छोर
जिसका कोई हड़प ना पाये
चोरी करें ना चोर।2
हो यदि अभिलाषा अनियंत्रित
कराये सबसे रार
खत्म हो सब सुकुन और शाँति 
खत्म हो जाये प्यार।3
बाँल्ग के लिए अनुमति
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रचना नंबर - 13
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नमन मंच
कलम बोलती हैं
विषय अभिलाषा
विधा कविता

लोग   कहते  हैं  कहने  में,
उम्र गुजार दी तेरे बदलने में।

फकत तेरे मिलने  बिछुड़ने में,
फ़र्क है मिलने और मुकरने में।

नहीं तुमसे रुसवा जिंदगी में,
बस वक्त ही लगा समझने में।

टूट गया आशियाना मिलने में,
वक्त लगा  नहीं  बिखरने  में।

गुलशन में लगी  आग  केवल,
दिल न लगाता आज जलने में।

आग लगी है मेरे सीने में सही,
है मशक्कत बहुत ही जीने में।

इश्क जैसा नहीं किसी ओर में,
आ रहा है मजा  फिसलने में।

वक्त का तकाजा है मिलने मे,
फ़र्क है कहने और  करने में।

क्या मिलेगा तुम्हे जकड़ने में,
देर लगती नहीं   मचलने में।

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

कैलाश चंद साहू
बूंदी राजस्थान
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺रचना नंबर - 14
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नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
दिनांक-24-9-2021
विषय अभिलाषा
विद्या पद्य

मेरी परम अभिलाषा है।
मैं परिवर्तन कर जाऊं
मिलजुल कर सब से रह पाऊं
जोत प्रेम की मैं जगाऊं।

कर्तव्य पथ पर अडिग रहजाऊ
भय  मुक्तजीवन चाहती हूं।
यही अभिलाषा गाती हूं।
नफरत दुनिया से मिट जाए।

धर्म-कर्म का दीप जलाएं।
नैतिकता का पाठ पढ़ू पढ़ाऊं।
बिखरे हुए समाज को फिर से।
एकता के पथ पर चलाऊं।।

मेरी यही अभिलाषा है।
दीन दुखियों की सेवा करके ‌।
जीवन अपना बिताऊ में।
सब से मिलना चाहती हूं।

मरने से पहले इस जीवन में।
कुछ अच्छा मैं  कर जाऊं।
इस समाज मैं कुछ ऐसा।
अमिट कार्य करके मैं जाऊं ।

जाना तो एक दिन सबको है।
मैं आसमान को छू जाऊं ।
समाज परिवार के प्रति
अपना कर्तव्य निभाऊं।

कर्मवान बन देश के काम आऊं।।
मर मिट जाना एक दिन सबको।
गांव गली मोहल्ले पहचान बनाऊं।
जाने पहले साहित्य में कुछ।
मैं  अच्छा सृजन कर जाऊं।

स्वरचित मौलिक
संगीता चमोली
देहरादून उत्तराखंड
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रचना नंबर - 15
*********''**** 
नमन मंच
24-9-2021
विषय-  अभिलाषा 
शुक्रवार 

अभिलाषा है मेरी की बेटियों की रक्षा हो ,
 सदाचार का आदर करें  दुर्भावना न हो ।

स्थिरता हो स्थिर, संशय गतिहीनता न हो,
राजनीति भी साफ सुथरी,भीरुता न हो ।

बच्चे-विद्यार्थी मेधा युक्त,मलिनता न हो ,
जोश-अथक का सम्बल,पथभृष्टा न हो।

प्रगति-उन्नति का गम्भीर भाव-एकता हो,
राष्ट्रोत्थान की दिशा का पथ मंगलमय हो।

ज्ञान-विज्ञान का हो मानवोत्कर्ष में सदा ,
सदियां की प्रेरणा का सार्थक मनोबल हो।

स्वरचित
डॉ पूनम सिंह 
लखनऊ
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रचना नंबर -16
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नमन मंच कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक३३९
विषय. अभिलाषा
विधा कविता 
दिनाँक२४/९/२०२१
दिन शुक्रवार
संचालक आप औऱ हम

मेरे मन की अभिलाषा पूरी करना मैय्या।
सुख शान्ति से रहें सब आपस में हो प्रेम भाव।
सब के जीवन में आए सुख का नया सबेरा।
मेरे मन की है अभिलाषा मैय्या।
मेरे मन की है यही अभिलाषा कामयाबी की
बुलन्दी तक पहुंच माँ बाप का करूं नाम रोशन।
सैनिक बन दुश्मन से लड़ने जाऊँ।
बुजुर्ग माँ बाप की करूं सेवा।
मेरे मन की यह अभिलाषा 
दीन दुखियों के कुछ काम आऊँ।
असहाय हैं जो उनकी करूं मदद ।
मेरे मन की यह अभिलाषा,
 छोटा साआशियां हो अपना।
बिटिया की किलकारी गूँजे घर में,
मेरे आँगन में भी बजे शहनाई।
बिटिया की मैं भी करूं विदाई।
मेरे मन की अभिलाषा, करना पूरी मैय्या।

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचना। ब्लाग में अपलोड करने की पूर्ण अनुमति है।
नरेन्द्र श्रीवात्री स्नेह
बालाघाट म. प्र.


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रचना नंबर -17
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जय माँ शारदे
नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
#दैनिक विषय क्रमांक - 339
दिनांक - 24/09/2021
#दिन : शुक्रवार
#विषय - अभिलाषा
#विधा - कविता
#समीक्षा के लिए
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मेरे मन की यह अभिलाषा, 
बचपन मेरा लौट आए
माँ पिता का प्यार मिले
दादा दादी दुलार लुटाए

मेरे मन की यह अभिलाषा, 
मां आंचल में भरकर सुलाए
दादा दादी नाना नानी आकर
पारियों की कहानी सुना जाए

मेरे मन की यह अभिलाषा, 
उम्र अपनी राह भटक जाए
पग उल्टा दिखलाकर उसको
बचपन मेंरा वापस लौटा लाए

मेरे मन की यह अभिलाषा, 
बचपन वापिस मिल जाए
मिले कागज की कश्ती वहीं
जहां हम छोड़कर आए

मेरे मन की यह अभिलाषा, 
अभिलाषा बनकर रह गई
चील कौए उड़ाते थे बचपन में
हम बचपन अपना उड़ा लाए

मेरे मन की यह अभिलाषा, 
कोई बचपने मुझको लौटाए
तरुणाई की भटकी चाह में
बचपन अपना कहां लुटा आए

मौलिक और स्वरचित
जगदीश गोकलानी "जग ग्वालियरी"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश

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रचना नंबर - 18
*************'
कलम बोलती है साहित्य समूह
नमन मंच
दिनांक - २४/०९/२०२१
विधा -- कविता
विषय -- # अभिलाषा #
मन में जागी यही अभिलाषा
जाऊं माता मै तेरे द्वार
तेरा दर्शन करूँ मैं माता
कर दो माता मेरा उद्धार
सोच रहा है ये मन मेरा
कैसे तेरे दर जाऊं मै
मै तुच्छ हूं पाप घनेरा
मन ही मन पछताऊं मै
तुम तो हो पारस मणि माता
कर लो तुम मुझको स्वीकार
मन में जागी यही अभिलाषा
जाऊं माता मै तेरे द्वार
अब यही है मेरी लालसा
प्रबल प्रखर है अभिलाषा
तेरी भक्ति में मगन रहूँ
तेरा रूप निहारूँ हर पल
तेरा ही बस गुणगान करूँ
तेरी शरण में आया माता
कर दो मैरा बेडा़ पार
मन में जागी यही अभिलाषा
जाऊं माता मैं तेरै द्वार 
हे माता पर्वत वासनी
तूं ही है जगदाधार
 सिंह वाहनी,पाप नाशनी 
तूं ही है जग पालन हार
मेरी लालसा पूरन कर दे
कर दे माँ भव सागर पार
मन में जागी यही अभिलाषा
जाऊं माता मैं तेरे द्वार
रचनाकार -- सुभाष चौरसिया हेम बाबू महोबा स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित
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रचना नंबर - 19
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नमन मंच 
#कलम बोलती है साहित्य समूह 
दो दिवसीय आयोजन 
#दिन :शुक्रवार 
#विषय क्रमांक no.:339
#दिनांक :24/09/2021
#विषय :अभिलाषा 
#विधा :कविता 

*अभिलाषा*

मेरे मन की 
यह अभिलाषा है 
कि फूल बन तेरे 
गजरे की शोभा बनूँ
और तुझ प्यारी को लालचाउँ 
मेरे मन की 
यह अभिलाषा है 
कि फूल बनकर 
त्रिलोकी नाथ के 
गले का हार बनूँ
और मंदिर मे पूजा जाऊं
मेरे मन की 
यह अभिलाषा है 
जिस रास्ते जाये 
देश की रक्षा के लिए 
सरहद पर वीर अनेक 
उनके चरणों मे
अपना शीश झुकाऊं 
मेरे मन की 
यह अभिलाषा है 
कि कांटो संग 
रहकर भी प्यार का 
दुनिया को संदेश देता जाऊं
मेरे मन की 
यह अभिलाषा है 
कि शादी मे 
वर-बधू के गले 
की शोभा बढ़ाऊं 
मेरे मन की 
यह अभिलाषा है 
कि अर्थी पर चढ़कर 
अंतिम निवास तक साथ निभाउं
मेरे मन की 
यह अभिलाषा है 
कि जिस धरती पर 
ऊगू पूरी दुनिया को 
खुश्बू से महकऊं 


शिवशंकर लोध राजपूत 
दिल्ली 
व्हाट्सप्प no.7217618716

रचना स्वरचित व मौलिक है !
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺रचना नंबर - 20
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दिनांक : 24/07/21  
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय :"अभिलाषा"      
डॉ. महेश मुनका "मुदित"
अभिलाषा है पुष्प तेरे चरणों मेंअर्पित मैं करूं सदा, 
अभिलाषा है हरदम अग्रसारित रहूं प्रगति पथ पर मैं सदा। अभिलाषा है सपने मेरे जीवन में कभी अधूरे ना रहें, 
अभिलाषा है थमे न पग मेरे अविचल बस बढ़ते ही रहे। अभिलाषा है किसी की टूटती सांसों को मैं संबल दे सकूं, अभिलाषा है किसी मासूम की आशा की ज्योत चला सकूँ। अभिलाषा है जन्म ले जिस भाषा को मातृभाषा मैंने जाना, अभिलाषा है उस भाषा को विश्व ने सशक्त भाषा माना। 
अभिलाषा है राष्ट्र हित में मैं सदा कर्म करता रहूं,
अभिलाषा है इस राष्ट्र की तन मन धन से सेवा करता रहूं। 
कहे मुदित जनहित राष्ट्रहित में सदा कर्तव्य रत रहो तुम,
चाहे कितना भी कष्ट हो हंसते-हंसते सहते रहो तुम।
-डॉ महेश मुनका 'मुदित'
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🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺रचना नंबर - 21
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जय माँ शारदे🙏
नमन मंच
विषय क्रमांक-339
विषय -अभिलाषा

अभिलाषा
अभिलाषा मेरी यही हैं
दुनिया न ऐसे होती
नफरतो से परे होती
धर्मो से परे होती
कर्मो मे बहस न होती
मंदिर सुकूँ देते
मस्ज़िद भी सुकूँ देते
दुश्मन भी सभी हमको
दोस्तों सा आकर मिलते
भूल चुके है जो रिश्तो को
वो भी हमें मिल जाए 
बांहे फैला फैला कर
स्वार्थ से परे सब होते
दुख -सुख में साथ होते
आडम्बरता से हो दूर
दिल के वो पास होते
जीवन में आस होती
कोई न भूखा सोता
अभिलाषा मेरी यही हैं
बेटियाँ अब सभी की
निर्भया ,प्रिंयका जैसे
यूँ शर्मसार न होती
घर बाहर सुरक्षित होती
मानवता यूँ न डिगती
अभिलाषा मेरी यही हैं
दुनिया न ऐसी होगी
नफरतों से परे ये होगी
रजनी कपूर
जम्मू
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 22
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नमन मंच
दिनाँक:24/09/2021
#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह 
#विषय: अभिलाषा
#विधा:पद्य
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          मेरे मन की यह अभिलाषा
+++++++++++++++++++++++++++++
ये अधर हमारे शांत रहे, अरु नैन समझ जाए भाषा।
बनो तुम्हीं बस जीवन साथी, मेरे मन की यह अभिलाषा।।

कभी अमा की नहीं अंधेरी, जीवन में काली रातें हों।
जिन बातों में न जिक्र हो तेरा, न हृदय में ऐसी बातें हों।
हम दोनों ही रहें हमेशा, बन इक दूजे की परिभाषा।
बनो तुम्हीं बस जीवन साथी, मेरे मन की यह अभिलाषा।।

मृगांक कभी न चमके पूरा, जिस रजनी में तुम साथ नहीं।
कट जाएं वो हाथ हमारे, जिन हाथों में ये हाथ नहीं।
तुम जीवन का हो उजियाला, है तुम बिन हर ओर कुहासा। 
बनो तुम्हीं बस जीवन साथी, मेरे मन की यह अभिलाषा।।

तुम हो सुगन्ध चंदन जैसी, तुम पावस की बूँदा-बाँदी।
केश तुम्हारे घने सुनहरे, ये देह लगे तेरी चाँदी।
तुम हो पहली तुम्हीं आखिरी, तुम कुदरत का नूर तराशा।
बनो तुम्हीं बस जीवन साथी, मेरे मन की यह अभिलाषा।।

मन के अंदर बस तुम बसते, जैसे हो पुष्प परागों का।
बोल तुम्हारे खण्ड राग के, तुम रोशन दान चिरागों का।
तुम सरिता की शीतल धारा, मैं सदा मेघ सम हूँ प्यासा।
बनो तुम्हीं बस जीवन साथी, मेरे मन की यह अभिलाषा।।
+++++++++++++++++++++++++++++
(स्वरचित एवं मौलिक)
-आई जे सिंह
दिल्ली
24 /09/2021
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺रचना नंबर - 23
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'जय माँ शारद 
विषय- अभिलाषा 
दिनांक-24-09-2021
शुक्रवार 
समीक्षा हेतु सादर प्रेषित-

अभिलाषा 
---------तुम मुझे को ऐसे समा लो अपने
रोम मेंजैसे
 तुम दिया और मैं बाती बन जाऊं
 
साज तुम और मैं राग बन जाऊं
 इस दिल की धड़कन की
 आवाज में बन जाऊं

कृष्ण की बांसुरी की तरह तुम्हारे
  अधरों की प्यास मैं बन जाऊं

तुम्हारी बोली में तुम्हारे कंठ की
 आवाज में बन जाऊं 
तुम्हारी कल्पना का आधार में बन जाऊं
 
जिस राह पर तुम्हारे कदम पड़े
 उस राह की धूल में बन जाओ
 मैं तुम्हें ऐसे समा जाऊं
 तुम शरीर में तुम्हारी परछाई बन जाऊं
 
तुम्हारे साथ चलते चलते तुम मेरा  
आधा अंग और मैं तुम्हारी 
 अर्धांगिनी बन जाऊं
तुम्हारे इस जीवन में मैं तुम्हारे 
जीने की वजह बन जाऊं

पूजा भारद्वाज---
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रचना नंबर - 24
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नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य
विषय क्रमांक 339
विषय अभिलाषा
मेरे मन की यह अभिलाषा
   16,15 वज्न गजल

मेरे मन की यह अभिलाषा, पूरा करना हे भगवान।
भ्रष्टाचार खत्म हो जाए,ऐसा मिल जाए वरदान ।

रोजगार सबको मिल जाए, हों सब की मुट्ठी में दाम,
दामन भर खुशियां मिल जाए, पहन सकें हम नव परिधान।

सर्दी गर्मी बरसा मौसम, झेले हैं बहुतेरे कष्ट, झोंपड़-पट्टी मे दिन काटे, मेरा भी बन जाए मकान।

भारत करे विकास निरंतर , प्रगति के खुल जाएं द्वार,
वैज्ञानिक खोजों हों पूरी, सफल रहेंगे अनुसंधान ।

 पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण, चतुर्दिक फैले सद्भाव,
भाईचारा हिंदू- मुस्लिम,रहे देश की यह पहचान।


अंग्रेजी से मोहभंग हो, रहे स्वदेशी ही आधार,
अपनी भाषा अपना गौरव, हिंदी का हो अब सम्मान।

स्वरचित
केशरी सिंह रघुवंशी हंस
अशोकनगर मध्य प्रदेश
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रचना नंबर - 25
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नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय- अभिलाषा
विधा-कविता
दिनांक-24/09/21

" अभिलाषा"

अभिलाषा थी मेरी तेरी पनाहों में सिमट जाने की।
बरसों पुरानी अनुभूतियों में ढल जाने की।।

लफ्जों में भी कुछ कह जाने की नहीं।
धीरे-धीरे दिल में तरसीब हो जाने की।।

हल्की-हल्की बूंदों के पड़ने से भी नहीं।
प्रीत के समंदर में भली-भांति डूब जाने की।।

बांहों में खोकर हसरतें भी मिटाने से नहीं।
अब तो सीधे मनोभावों में उतर जाने की।।

तुझे जी भर के देख लेने से भी नहीं।
दिल की लहरों में डूब जाने की।।

नजदीकियों या दूरियों का गम नहीं।
सांसों से तेरी रूह में उतर जाने की।।

तेरा अक्स देखने से चैन मिलता नहीं।
दिल के वादों को ताउम्र निभाने की।
अभिलाषा थी मेरी तेरी पनाहों में सिमट जाने की।।

डॉ मीनाक्षी कुमारी
मधुबनी (बिहार)

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रचना नंबर - 26
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कलम बोलती है
   साहित्य समूह
 क्रमांक:------ 339
 दिनाँक:--24.09.21
 विषय-- अभिलाषा

      मां भारती की सेवा करूँ सतत
      हे शारदे ! हस्त उठा दे हमें वरद 
     रहूं शरण में अहर्निश समर्पित
     कृपा करती रहे मां शारदेचतुर्दिश
     कलम अभिलाषा सदा रचती रहे देशभक्तिकी कथा आख्यान
     वीरों के त्याग बलिदान की
     वीणापाणि मातृ दे वरदान
     गीत गाऊं शौर्यकेअमर बलिदान 
   सांस अंतिम तक रहूं नत सदा
    माटी वन्देमातरम की शान में
   वीर भोग्या वसुंधरा है अमर
   कलम लिखे पावन चरित भगवान के

   अभिलाषा यही फूले फले
  आशीष वरसे पूर्वजों के सम्मान के


 स्वरचित

  डॉ अर्चना नगाइच
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रचना नंबर - 27
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#नमन कलम बोलती है साहित्य समूह 
#विषय क्रमांक-339
#दिनांक-24/09/2021
#दिन- शुक्रवार 
#विषय- अभिलाषा 

मेरे द्वारा किसी का ना अनहित हो,
जीवन में औरों का हित साधक बनूँ
दीन दुखी पीड़ित जनों का उपकार हो,
किसी के मार्ग का ना बाधक बनूँ॥

मेरे लिए पथ में कोई कंटक बिछाये, 
मैं उनके लिए नित फूल बिछाऊँ,
मेरे द्वारा किसी का ना उपहास हो,
निज जीवन में यही प्रयास हो॥ 

मेरे हृदय पटल पर ना अभिमान हो,
मेरे अंतस में सदा स्वाभिमान हो।
मन में ना अहं, ईर्ष्या, दंभ, द्वेष हो,
पर पीड़ा में निज ह्रदय में क्लेश हो॥

मेरे मन, वचन, कर्म से ना हिंसा हो,
मेरे हृदय में सत्य और अहिंसा हो।
मेरे द्वारा वंचितों का उपकार हो,
मेरे परमार्थ के सपने साकार हो॥

मै देश के लिए कुछ अच्छा करूँ,
मैं निज वतन सेवार्थ में मिट मरुँ।
मातृभूमि के लिए श्रम साधना करुँ, 
माँ भारती की सदा आराधना करुँ॥

                    रचना 
             नितांत मौलिक 
       मनोज कुमार चंद्रवंशी 
बेलगवाँ जिला अनूपपुर मध्यप्रदेश 
मोबाइल नंबर-9399920459
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रचना नंबर - 28
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*डाः नेहा इलाहाबादी दिल्ली*
   नमन मंच -
   शुक्रवार - 24/09/2021
           *अभिलाषा*
*कविता*

   नहीं रखना कोई अभिलाषा
ये होती हैं अनन्त , रह जाती
  हैं कुछ अधूरी अपूर्ण 
होने नहीं देना बलवती
क्यूँ कि बलवती होने पर होती
    इन्सान पर हावी
बनाती लेती हैं गुलाम हमेशा 
  के लिए और 
हो जाता है मज़बूर इन्सान 
पड़ जाता है कमजो़र
महसूस करता है थकान
मध्यम होने लगती हैं साँसे 
 क्षीण होता शरीर
फिर ऐसी अभिलाषा हमारे
किस काम की 
हमें जितनी ज़रूरत हो
क्यूँ न हम उतनी ही अभिलाषा रखें 
जिसकी हमें ज़रूरत हो। 
क्षण भंगुर जीवन कलिका है
   फिर इतनी हाय - हाय क्यूँ 
इन नश्वर इच्छाओं के पीछे 
भागने की बजाय 
 उन पर लगाम लगा कर लो
थोड़ा सत्कर्म 
बाँटो औरों को खुशी 
होगा तुम्हारा जीवन धन्य
   हो जाएँगी पूरी तुम्हारी 
सभी अभिलाषाएँ। 
और हो जाओगे 
सुख पूर्वक इस भवसागर से
    हो जाओगे पार। 
बड़ी अभिलाषाएँ फँसा कर
 मकड़ जाल में उलझाती हैं। 
        बचाती नहीं ।
     🌹🌹🌹🌹🌹
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺रचना नंबर - 29
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कलम बोलती है 
विषय क्रमांक-339
जयजय श्रीरामरामजी

24/9/2021/शुक्रवार
*अभिलाषा/कामना/इच्छा/मनोरथ*

काव्य

कामना यही मां होंसला देना।
लड़ें करोना से होंसला देना।
अभिलाषा मात् पूरी करें आप,
हमें आपदा में होंसला देना।

होंसला तो सभी उड़ान भर सकें।
हम यहां मनोरथ पूर्ण कर सकें।
लालसा कात्यायनी मातु एक है,
करोना युद्ध में एकजुट रह सकें।

जीवन की बागडोर मां हाथ है।
करें इच्छा पूर्ति मां हाथ है।
साहस होंसला अब देना हमें,
विनती करें हम सभी मां साथ है।

होंसला रख करोना से लड़ेंगे।
शुभकामनाओं से सभी भिड़ेंगे।
मात वरदायिनी साहस दें हमें,
करोना मिटाने घर में रहेंगे।

स्वरचित,
 शम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र

*कामना,हसरत, अभिलाषा, लालसा, होंसला*
काव्य
24/9/2021/शुक्रवार

🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺रचना नंबर - 30
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कलम बोलती है साहित्य समूह
दिनांक:-24-09-2021
बिषय:- अभिलाषा
विधा:- कुंडलियाँ, दोहा
क्रमांक:- 339

अभिलाषा मन में लिए, जीता आज मनुष्य|
खोज रहा है राह वह, पहुँजे पास भविष्य||
पहुँचे पास भविष्य, बुन रहा ताना- बाना|
फिर भी लगता व्यक्ति, भाग्य से भी अनजाना|
कहें' मधुर' कविराय, समय की समझो भाषा|
नहीं तो जानो व्यर्थ, हो रही है अभिलाषा||

दोहा:-
अभिलाषा ही मनुज को, जीवित रखता नित्य|
यदि यह मन में शुद्ध है, तो भरती लालित्य||

                 स्वरचित/ मौलिक
                ब्रह्मनाथ पाण्डेय' मधुर'
ककटही, मेंहदावल, संत कबीर नगर, उत्तर प्रदेश
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रचना नंबर - 31
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नमन कलम बोलती है साहित्य समूह 
दिनांक-24*09*21
विषय क्रमांक-339
विषय-अभिलाषा
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#अभिलाषा
रहे सदा अपनी मंजिल याद,
परिभाषा,अभिलाषा,संवाद। 
अभिलाषा है जीवन में सबका साथ मिले,
एक दुसरे के भावों को हम समझ सके।
ज्यादा और कुछ न चाहूं,
आशीष मुझे बस इतना देना।
मेरे हृदय में बसकर प्रभु, 
मानवता का रस भर देना।
चलती रहूँ सच्ची डगर पे,
बन सकूँ किसी का जीवन धार। 
श्रमिक वंचित विकलांग बालकों और, 
क्षुधित को भरपेट खिलाऊं।
यही मेरी #अभिलाषा है।
धर्म, जाति के भेद से ऊपर, 
देश प्रेम तुम भर देना।
मुझमें हो सामर्थ्य इतना,
कर सकूँ किसी का उपकार। 
काश!मिटा पाती मैं भ्रष्टाचार, 
कर देती उसका तार तार। 
कर सकूँ प्रसारित संदेश, 
रहे हमारा मिलकर देश। 
हमसबका रहे एक वेश,
भिन्नता रहे न शेष।।
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ममता झा
डालटेनगंज
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रचना नंबर - 32
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नमन मंच 🙏
#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह 
दिनांक-२४/९/२०२१
दिन-शुक्रवार
विषय-अभिलाषा
विधा-कविता
विषय प्रदाता एवं प्रवर्तन- आदरणीय राजेंद्र कुमार रत्नेश जी

मेरे मन की अभिलाषा,
पूर्ण हो सब के मन की इच्छा ।
कोई ना हो अनाथ,
सबको मिले अपनों का साथ ।
वृद्धाश्रम ना जाना पड़े माता-पिता को,
बुढ़ापे में आये नहीं अश्रू , चैन मिले नैन को ।
विश्वास कायम हो रिश्तों के बीच में,
झगड़े ना हो कभी आपस में ।
गौमाता को सुरक्षा,जीवनदान मिले,
मूक प्राणी यों पर दया की भावना बढ़े ।
चारों तरफ हो खुशहाली ही खुशहाली,
हर परिवार में बढ़े मान-सम्मान बड़े बुजुर्गो की ।
कोई बिमारी ना फैले फिर से विश्व में,
विश्व में शांति ही शांति छा जाये ।
कोई भूखा ना सोये ,
भरपेट सबको खाना मिले ।
सत्य युग का हो पुनः आगमन,
एक-दूसरे में प्यार का खिले चमन ।
यही मेरे मन की अभिलाषा,
पूर्ण हो जायें सब के मन की इच्छा ।।

स्वरचित,मौलिक,अप्रकाशित मेरी रचना ।
ज्योति विपुल जैन
वलसाड ( गुजरात)
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺रचना नंबर - 33
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सादर नमन मंच
कलम बोलती है
क्रमांक। 339
दिनांक। 24/09/2021
विषय। अभिलाषा
विधा। कविता
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जीवन पथ पर स्नेह के पुष्प खिलाती चलूं ।
मेरी अभिलाषा है कि जग को हर्षाती चलूं।।

प्रेम स्नेह की बौछारों से मनवा हर्षित होता है,
सहानुभूति के शब्दों से दर्द लुप्त त्वरित होता है।
स्वयं भी हंसू और दूसरों को भी हंसाती चलूं ।
मेरी अभिलाषा है कि जग को हर्षाती चलूं।।

संबंधों में स्नेह की मीठी मिश्री घोलूं,
शब्दों को मुख से तोल तोल कर बोलूं,
रिश्तों में प्रेम स्नेह की दरिया बहाती चलूं।
मेरी अभिलाषा है कि जग को हर्षाती चलूं।।

जग में खाली हाथ आए खाली हाथ जाएंगे,
दुआओं के अलावा सब यही धरे रह जाएंगे।
दया और प्रेम की दरिया सब पर लुटाती चलूं।
मेरी अभिलाषा है कि जग को हर्षाती चलूं।।

संगीता चौबे पंखुड़ी,
 इंदौर मध्यप्रदेश
स्व रचित एवम् मौलिक रचना
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रचना नंबर - 34
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नमनमंच
#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह 
दिनांक-24.09.2021
विषय-अभिलाषा
विधा-कविता

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मेरे मन की यह अभिलाषा
पूरी हो जन जन की आषा,
मिटे गरीबी और निराशा
संस्कार बन जाये परिभाषा।
          सबको शिक्षा, इलाज मिले
          अमीर गरीब का भाव हटे,
          बेटा बेटी का अब भेद मिटे
          मेरे मन की यह अभिलाषा।
गंदी राजनीति न हो
वादे सारे ही पूरे हो
जिम्मेदारी भी तय हो
अपनी भी जिम्मेदारी हो।
            स्वच्छ रहें सब नदियां नाले
            कहीं तनिक न प्रदूषण हो,
            अतिक्रमण का नाम न हो
            कानून व्यवस्था का राज हो।
त्वरित न्याय मिले सबको
मन में भेद तनिक न हो,
किसी बात का खौफ न हो
जग में खुशियाँ अपार हो।
            मरने मारने का भाव न हो
            सीमा पर भी न तनाव हो,
            भाई चारा सारे संसार में हो
            सबके मन में प्रेमभाव हो।
मँहगाई का वार न हो
प्रकृति मार कभी न हो,
चिंता की कोई बात न हो
मन मेंं कपट विचार न हो।
            सामप्रदायिक दंगे न हों
            जाति धर्म की बात न हो,
            सब चाहें सबका हित हो
            खुशियों का भंडार भरा हो।
सामाजिक कुरीति न हो
बहन बेटियों में न डर हो,
नशे का अब व्यापार न हो
मेरे मन की यह अभिलाषा।
✍ सुधीर श्रीवास्तव
        गोण्डा, उ.प्र.
      8115285921
© मौलिक, स्वरचित
   



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रचना नंबर - 35
**********'******'
कलम बोलती है साहित्य समूह,
🙏 जय मां शारदे,
दैनिक विषय क्रमांक 339
दिनांक 24 सितंबर 2021
विषय :- "अभिलाषा"
      *****कविता*****
             *******
            *आरज़ू*
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हवा के संग हौसलों के संग, 
कब आसमान छू आऊँ मैं| 
 चिड़िया सी उड़कर दूर गगन, 
कब क्षितिज पार हो आऊँ मैं |

मीठा झरना बहती नदी, 
कब सुंदर गगरी बन जाऊँ मैं |
इस जगत की प्यास बुझाने को,
कब मीठी बूँद बन जाऊँ मैं |

नन्हें की आँख सपने देने, 
कब मीठी लोरी बन जाऊँ मैं |
किसी हाथ की लाठी बनकर के, 
कब सड़क पार ले जाऊँ मैं |

किसी भूखे को रोटी देकर, 
कब सुख की सौगात दे आऊँ मैं|
एक आस भरे दीपक की
कब विश्वास की लौ बन जाऊँ मैं |

बस यही अभिलाषा है मेरी!
ये सब कुछ ही कर जाऊँ मैं,
ये साॅंस टूटने के पहले!
थोड़ा जी भर जी जाऊं मैं।

✍🏻 सीता गुप्ता दुर्ग छत्तीसगढ़
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रचना नंबर - 36
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#कलम ✍🏻 बोलती_है_साहित्य_समूह 
#दो_ दिवसीय_ लेखन
#विषय_ क्रमांक : 339
#विषय : अभिलाषा
#विधा : कविता
#दिनांक : 24 सितंबर 2021 शुक्रवार
समीक्षा के लिए
_____________________________
छूलूँ नील गगन की ऊँचाई 
पाऊँ मैं सागर सी गहराई
धरा सदृश हो सहनशीलता
त्याग, धैर्य और हो तरलाई। 

       निर्झर के जल सी निर्मलता
       सरिता के जल सी चंचलता
       मलय पवन सी कोमलता
       चंदन सी सुगंधि ,शीतलता। 

राग द्वेष ,भेदभाव मिटाकर
धरा को स्वर्ग समान बना दूँ
अभिलाषा है ये मेरे मन की
समता,मानवता जग भर दूँ। 

       पंख लगाकर मैंउड़ूँ गगन में
       ध्रुव तारे सी अटल हो चमकूँ
       रवि की किरणों से तेज चुरा
       जग को मैं आभामय कर दूँ। 

जीवन की उलझन सुलझाओ
उपवन को हरियाली से भर दो
मेरीअभिलाषा पूर्ण करो प्रभु
मेरे भारत को स्वर्ग बना दो। 


                  स्वरचित मौलिक रचना
             सुमन तिवारी, देहरादून उत्तराखंड
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 37
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पटल को नमन🙏
कलम बोलती है साहित्य समूह
दैनिक विषय क्रमांक 339
विषय -अभिलाषा,कविता
स्वरचित,

  🌹अभिलाषा 🌹
है अभिलाषा रहती,
ऊंची उड़ान भरलूं।
अपने मन की सारी,
इच्छा पूरी करनी है।

अभिलाषा अच्छी होती,
यदि हो नेक विचार।
महत्वाकांक्षा हो बड़ी,
बनना नहीं लाचार है।

उतना पैर पसारिये,
जितनी बड़ी है चादर।
फिर न पछताइये,
वर्ना होता अनादर है।

आशा पूरी होती नहीं,
यह तो तू सब जान,
 होती अभिलाषा पूरी,
बढ़ जाता तेरा मान है।

      🌹 सुनीता परसाई🌹
           जबलपुर, मप्र
🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼
रचना नंबर - 38
******************
नमन मंच
दिनाँक-24-9-2021
विषय-अभिलाषा
विधा-मुक्तक 

भली-बुरी अभिलाषाओं से भभरा हुआ है सबका जीवन।
कभी सुखों की स्वर्ण रश्मियाँ, कभी दुखों के भी काले धन।
सुख-दुख पाने पर जल्दी ही,जो भी बिचलित हो जाते हैं।
मान नहीं उनका रखता है,कभी। समय का भी कोई क्षण।।
2-
मन में सद अभिलाषा हो तो रिश्ते बहुत सहज हो जाते।
रखते जो दुर्भाव अगर तो,अपने भी दुश्मन हो जाते।।
निश्छलता से मन निर्मल हो,जहाँ प्रेम की गंगा बहती।
सहज प्रेम से हम जीवन में,सभी कलुषता को धो जाते।।
रवेन्द्र पाल सिंह 'रसिक'
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 39
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नमन मंच 
कलम बोलती है साहित्य समूह 
दिनांक 24/09/2021
विषय अभिलाषा 
विधा कविता

आखिर मै क्या बनूँ?

माँ की मर्जी बनूँ मैं डाक्टर
करूँ दुखियों की सेवा ।
पापा कहे करो खूब मेहनत 
पाओ प्रशासनिक सेवा॥

दादाजी, की इच्छा सुनकर 
मैं भौचका रह जाऊँ।
झूठे तर्क-वितर्क करूँ
और एडवोकेट बन जाऊँ॥

दादीजी की है यह इच्छा
बने इंजीनीयर पोता।
सोच सोच परेशान रहूँ
कई रातों को नही सोता॥

दोस्त कहे मेरे मानो तो 
तुम नेता बन जाओ।
संसद मे हुडदंग करो 
परदेश मे मौज मनाओ॥

कोई नही कहता वैज्ञानिक
या जवान बन जाओ।
करो निज मिट्टी की सेवा
तुम किसान बन जाओ॥

बिजय बहादुर तिवारी
सर्वाधिकार सुरक्षित
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 40
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नमनमंच 
कलम बोलती है साहित्य समूह । दिनांक -24/09/2021
विषय -अभिलाषा ( बेटी की )
विधा- कविता 

न सोने में सजाकर के,
पिता मुझ को विदा कीजे। 
न धन दौलत न आभूषण,
पिता मुझको भी ना दीजे।।

ना परिधान मंहगे हों, 
न ऐसा मन में लालच है।
मिटे बस भेद बेटी का,
जरा सी ये इबादत है ।।

जमाने भर की बंदिशें ,
निगाहें मुझ पे रहती हैं ,
हजारों #वेदना हर रोज,
मेरे हृदय में रहती हैं।।

मिले मुझको नहीं मौके, 
बेटों को ही ज्यादा हैं।
अगर दे दो मुझे अफसर,
नभ छूं लूं ये वादा है।।

स्वरचित-
बेलीराम कनस्वाल 
घनसाली,टिहरी गढ़वाल,उतराखण्ड।

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रचना नम्बर - 41
*****************

नमन मंच
 कलम बोलती है साहित्यिक समूह
 विषय अभिलाषा
 विधा ग़ज़ल 
गज़ल 2222 2222
प्यास भरी इक आशा हूँ मैं
लोग कहे अभिलाषा हूँ मैं
जो मुझसे ताल्लुक रखता है
उस दिल की परिभाषा हूँ मैं
हैं तेरी ख़्वाहिश गुलिस्तां की
कुसमित सुरभि सुवासा हूँ मैं
अब ना खत्म हो राहे जिंदगी
सूरज किरण रक्कासा हूँ मैं
जो रच देता इतिहासो मे
हर्फ़ की स्वर्ण पीपासा हूँ मैं
स्वरचित संगीता सिंघलविभु
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रचना नंबर - 42
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नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय- अभिलाषा
विधा-कविता
दिनांक-24/09/21

" अभिलाषा"

अभिलाषा थी मेरी तेरी पनाहों में सिमट जाने की।
बरसों पुरानी अनुभूतियों में ढल जाने की।।

लफ्जों में भी कुछ कह जाने की नहीं।
धीरे-धीरे दिल में तरसीब हो जाने की।।

हल्की-हल्की बूंदों के पड़ने से भी नहीं।
प्रीत के समंदर में भली-भांति डूब जाने की।।

बांहों में खोकर हसरतें भी मिटाने से नहीं।
अब तो सीधे मनोभावों में उतर जाने की।।

तुझे जी भर के देख लेने से भी नहीं।
दिल की लहरों में डूब जाने की।।

नजदीकियों या दूरियों का गम नहीं।
सांसों से तेरी रूह में उतर जाने की।।

तेरा अक्स देखने से चैन मिलता नहीं।
दिल के वादों को ताउम्र निभाने की।
अभिलाषा थी मेरी तेरी पनाहों में सिमट जाने की।।

डॉ मीनाक्षी कुमारी
मधुबनी (बिहार)
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रचना नंबर - 43
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नमन मंच-कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक-339
विषय-अभिलाषा
विधा-कविता
दिनांक- 24-09-21

""""""""""""अभिलाषा""""""""""""
             ***"""""""""***
मेरी उर- आंगन अभिलाष यही,
        सब,वतन-धरा पर अर्पण कर दूं।
नित स्वेंद-श्रम से दीप जला कर,
        सबके दामन में खुशियां भर दूं।

ले रश्मि पुरुषार्थ के दिनकर से, 
         सब गहन अंधेरे रोशन कर दूं।
कौमुदी शीत -पुंज ले चंद्रमा से,
         हृदय गागर में शीतलता भर दूं।

मैं निरक्षरता का दुर्ग तोड़कर,
          शिक्षा की लौ घर- घर भर दूं।
एकलव्य सा अभ्यास रचाकर,
         लक्ष्य पथ में कुशलता भर दूं।

सब भेदभाव उत्कोच मिटाकर,
         घट सत्यनिष्ठा का अमृत भर दूं।
समता का अधिकार दिला कर,
        सबको प्रगति -पथ प्रवृत कर दूं।

अबलाओं में विश्वास जगा कर,
         सम्यक-न्याय का संबल भर दूं।
गरीबों को अधिकार दिला कर,
        सबके घट खुशियों से भर दूं।

सतीश कुमार नारनौंद
जिला हिसार हरियाणा
स्वरचित और मौलिक 
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌼
रचना नंबर - 44
**************
जय शारदे माँ 🙏🙏
नमन मंच-- कलम बोलती है तिथि-- 24/09/2021
विषय - अभिलाषा।

अभिलाषा
********* 

भगवान ने देकर अभिलाषा क्या खेल रचाया 
आशा निराशा के झूले में हम सब को झूलाया.

अभिलाषा तो है उड़ू उन्मुक्त गगन में बनकर पंछी 
जकड़ी न जाऊँ बेड़ियों में रहूं न बनकर मैं बंदी.

काश होते मेरे भी पंख तो उड़ती विस्तृत गगन में
मैं भी स्वच्छंद विचरण करती रहती मन मगन में.

बनकर रंग बिरंगी तितली फूल फूल पर बैठती 
बन कोयल मतवाली वन में कुहू कुहू का राग सुनाती.

अभिलाषा तो है मेरी बहुत चांद सितारों को छू लूं 
इन चमकीले सितारों को अपने अलकों में भर लूं.

मेरे मन की अभिलाषा है क्षितिज के पार हो आशियां अपना 
जहां ना हो नफरत की दीवारें पूरे हो अपना सपना.

मेरी अभिलाषा की कोई थाह नहीं है ना है कोई और छोड़ मन तो सदा यही कहता रहता कि मिले मुझे मोर मोर् 

स्वरचित 
अनिता निधि 
जमशेदपुर, झारखंड
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 45
**************
नमन मंच- कलम बोलती है
विषय क्रमांक- 339
दिनांक-25/09/21
दिवस- शनिवार 
विषय- अभिलाषा 
विधा-स्वैच्छिक (गीत)
~~~~~~~~~~~~~~~
    ■■अभिलाषा■■

अब न हो सीता की अपहरण द्रोपदी का न हो अब चीर-हरण 
शकुनि चले न अनीति का पाशा 
यही हमारी मन की अभिलाषा 

 न हो अपहरण हत्या बलात्कार 
 सब धारण करे स्वदेशी संस्कार जाने धर्म संस्कृति की परिभाषा यही हमारी मन की अभिलाषा

नकल करे क्यों पश्चिमी सभ्यता
देखो अपनी संस्कार की भव्यता
अपनी मिट्टी पानी हो निज भाषा
यही हमारी मन की अभिलाषा

फिर से बनें हमारा राष्ट्र विश्व गूरु
 घर -घर बजे घंटी शंख डमरू 
हर बार जनम यहीं हो जिज्ञासा
यही हमारी मन की अभिलाषा  

        घूरण राय "गौतम" 
         मधुबनी बिहार 
  *उपरोक्त रचना स्वरचित
 मौलिक और स्वरचित
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 46
**************
. 25 सितंबर , शनिवार 
                   शब्द : #आकांक्षा
 शब्द प्रदाता : आदरणीय सुश्री उमा वैष्णवी जी
           🏵🌹#कुंडलिनी🌹🏵
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
                 🏵#रचना नंबर- 1
@@@@@@@@🌹@@@@@@@@ 

  पूरी #आकांक्षा हुई , किए बहुत व्रत , कर्म.

  किंतु तृप्ति अब तक नहीं ,सदा निभाया धर्म.

  सदा निभाया धर्म , बढ़ी रिश्तों की दूरी.

  तार - तार हो गए , हो गई हमसे दूरी.

🌹🌹🌹🌹🌹🙏🏵🙏🌹🌹🌹🌹🌹

. 🌹🙏#मुक्तक🌹🙏
          ==== शब्द : #आकांक्षा====
                   🏵#रचना नंबर- 2
@@@@@@@@🌹@@@@@@@@

  देवसरित - सी #अभिलाषा हो पावन जिसकी.

  सर्व हिताय भावना रहती निर्मल उसकी.

  दुर्लभ क्या है उसे जगत में सोचो तुम ही?

  होती है अनुभूति उसे हर पल षट रस की.
                           🌹🏵🙏
               कुलभूषण सोनी 'ब्रजवासी'
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺रचना नंबर - 47
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नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
#दैनिक विषय क्रमांक - 339
दिनांक - 24/09/2021
#दिन : शुक्रवार
#विषय – अभिलाषा
#विधा - कविता
तू आन बान शान है, मेरी जीवन की पहचान है।
मेरे मन की तू आशा है, मेरे जीवन की अभिलाषा है।
तुझको बोलूं तुझको पढूं, तुझे ही गाने की इच्छा है।
तेरे होने से सब दुनिया है नहीं तो ना जीने की इच्छा है।
प्यार है तकरार है मेरे जीवन का आधार है।
रूठना मनाना मन्ना और माने जाना यही हम सबका प्यार है।
तेरे सुख में मैं सुख मानू, तेरा दुख मुझे रुलाता है।
तुझे क्या कहूं तेरा दूर रहना मुझे कितना सताता है।
तू आस है उम्मीद है मेरे जीवन की उजली किरण है ।
तेरे बिन मैं कुछ भी नहीं, तू ही मेरा जीवन है।
आशा की अभिलाषा की नदी में बहते जाना है।
सुख-दुख के सागर में बैठकर गीत प्यार के गाना है।
तुम्हारा मेरी जिंदगी में आना बहार है।
तू ही सूरज की पहली किरण बारिश की पहली फुहार है।
तेरे आने से मेरी दुनिया रोशन है।
तेरा स्पर्श पाकर खिल उठता मेरा मन है।
तू ही मेरे जीवन की आस मेरी अभिलाषा है।
तू है तो यह जीवन है तू ही मेरी अंतिम आशा है।
तुझसे प्यार है तकरार है तू कहानी की बहार है।
तुझसे रोशन मेरी दुनिया तो जिसे मेरा करार है। Suneeta Choudhry ✍️
स्वरचित व मौलिक रचना
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रचना नंबर - 48
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नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
#दैनिक विषय क्रमांक - 339
दिनांक - 24/09/2021
#दिन : शुक्रवार
#विषय – अभिलाषा
#विधा - कविता

चाहा मैंने छू लूँ नील गगन को
बनके पंछी पार करूँ अंबर को,
इंद्रधनुषी इस दुनिया से लेकर
जीवन में भर लूँ प्यार के रंग को|

पंछी बन जाने की अभिलाषा है
विचरण करूँ स्वच्छंद गगन में,
न कोई डर फिर न कोई इच्छा 
उड़ जाऊँ दूर नील गगन में|

मन चाहता है मैं बादल बनके 
प्रेम सुधा बरसा दूँ धरा पे,
कोई न फिर कभी प्यासा हो
न कोई किसी के प्यार को तरसे|

बन जाऊँ चाँद है यह अभिलाषा
सबको राहत, हो चाँदनी की भाषा,
सुखी जीवन हो शीतल चाँदनी में
जग कल्याण की बनूँ परिभाषा|

डरता हूँ कहीं मैं खो न जाऊँ
इस चाहत को लिए सो न जाऊँ,
आशा निराशा के बीच भटकते
अपनी अभिलाषा को भूल न जाऊँ|

#घोषणा : - मैं, संजीव कुमार भटनागर घोषणा करता हूँ कि यह रचना मेरी स्वरचित मौलिक और अप्रकाशित रचना है। ब्लॉग पर प्रकाशन कि अनुमति है|
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रचना नंबर - 49
************'
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय - अभिलाषा

एक बार तुम मेरे सिर पर हाथ रख दो माँ
रोज तुम्हारे दर पर मैं दौड़ी चली आऊँगी।

ध्वजा,नारियल,फूल, माँ तुमको अर्पित करूँ
हलुआ, चने का भोग, रूपया भेट चढ़ाऊँगी।

धन-सम्पत्ति ना चाहूँ, न महलों की बात करूँ

आशीर्वाद मिले हमें चरणों में शीश नवाऊँगी।

निराशा का भाव न हो कभी, माँ तेरे दरबार में
मंदिर में शीश नवाऊँ परिक्रमा रोज लगाऊँगी।

ह्रदय में रहे उजियाला तम का कभी न वास हो
मनोकामना पूरी हो माँ, तेरी शरण में आऊँगी।

मन्नत मेरी पूरी करदे माँ ये मेरी अभिलाषा है
आशा-भाव लिए दर से झोली भर के जाऊँगी।

आये तेरे शरण हम घर खुशियों से भर दो माँ
नवरात्रि में मैया देवी जागरण भी करवाऊँगी।

सुमन अग्रवाल “सागरिका”
           आगरा
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺रचना नंबर - 50
*************''
नमन मंच, विषय-अभिलाषा "अभिलाषा"

बीसवी और इक्कीसवीं सदी में,
सम्मानित सामंजस्य करूं,
भारतीय संस्कृति जीवन शैली हो,
पर दुनिया के साथ मिला कर कदम चलूं,
थक कर जब घर अपने आऊं,
पति के साथ गरम चाय का प्याला पाऊं,
जीवन के दायित्व कर्म से
कभी नहीं मै जी चुराऊं,
बेटी-पत्नी और मां-बहना का
भलीभांति कर्तव्य निभाऊं।
निज आजादी के साथ-साथ
रिश्ते-नातों का फर्ज निभाऊं,
पर जीवन का सम्मन रहे,
अपने ढंग से खुद जीऊं,
आज तलक इतिहास लिखा गया
पर अब खुद मैं इतिहास बनूं.
पशुवत जीवन से घृणा रही हैं,
चाह यही इंसान रहूं,
मानवता का मार्ग पकड़ कर,
नई सदी में कदम धरूं।
कली फूल सा सुरभित जीवन,
सुगंध जहां में बिखराऊं
प्रकृति सुंदरी की गोदी में
सम्मानित होकर सो जाऊं। मंजू लोढ़ा, स्वरचित
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 51
***********'**
नमन 
कलम बोलती है
विषय ....अभिलाषा 
विधा .......कविता 
24-09-21 शुक्रवार

सब संसार में प्रेम हो सिंचिंत,
  रिश्तों का मूल्यांकन हो विदित ।
     वाद-- विवाद के बांध हों बंधित,
             मेरे मन की ये अभिलाषा ।

बेटी की इज्जत मान हो रक्षित ,
    सर्वाधिकार हों भाँति सुरक्षित ।
       नारी का कोई ना हो भक्षित ,
               मेरे मन की ये अभिलाषा ।

भ्रष्टाचार से लिप्त ना कोई, 
   नियम कानून में सुप्त ना कोई ।
      प्रेम - प्रीत से अतृप्त ना कोई ,
             मेरे मन की है अभिलाषा ।

सब जग अविरल प्रेम है बरसे,
    मेल मिलाप को मानस तरसे ।
       दुःख पीड़ा मिटे सभी के मन से,
               मेरे मन की है अभिलाषा ।

स्वरचित।सुधा चतुर्वेदी मधुर 
                  मुंबई
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 52
**'************
नमन माँ शारदे
#नमन मंच
#कलम बोलती साहित्य समूह
विषय- -अभिलाषा
विधा - गीतिका
विधान - चौपाई छंद
बहर---- 2222--2222
दिनांक--------- 25 :: 09 :: 2021
समीक्षार्थ----

[[[ ग़ज़ल ]]]
शब्दों की परिभाषा हूँ मैं ।
फूलों की अभिलाषा हूँ मैं ।।१

गीत ग़जल का इक इक अक्षर,
परखा और तराशा हूँ मैं।।२

मंदिर - मंदिर मस्जिद - मस्जिद ,
तुमको बहुत तलाशा हूँ मैं।।३

मेरी प्यास बुझाओ आकर ,
इक मुद्दत से प्यासा हूँ मैं ।।४

अक्सर पूछा करते हैं इन 
बच्चों की जिज्ञासा हूँ मैं।।५

दुनिया मुझको समझ न पायी ,
ऐसा खेल तमाशा हूँ मैं ।।६

काम नही मैं जिसके आया ,
उसकी घोर निराशा हूँ मैं ।।७

स्वरचित/ मौलिक
जगत भूषण राज
      बिहार
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 53
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#कलम बोलती है साहित्य समूह
        🙏जय माँ शारदे🙏
दो दिवसीय लेखन, विषय- क्रमांक 339
विषय- अभिलाषा
विधा- स्वैच्छिक/कविता
दिनांक - 24/09/2021से 25/09/2021
संचालक- आप और हम
रचना - कविता - स्वरचित/मौलिक
                    अभिलाषा
मन एक चंचल पंछी हर मन की अलग भाषा
जीवन चक्र में लाते रहता नई-नई अभिलाषा।

नहीं हो पाता एक पूरा, दूसरे में ध्यान लगाता
आकांक्षाओं के सड़क में, नये मोड़ ले आता
जग को देख जग जाते, मन में अनेक प्रत्याशा  
पूरा करने में लग जाते, रखते जीवन से आशा
मन एक ....................नई-नई अभिलाषा।

हसरतों का ज़िन्दगी में दिखता बड़ा असर 
मन भी मदद करता, दिला देता सुअवसर
अच्छे विचार संगति से, मन जाता है तराशा
अच्छे कर्मों से बदले, जीवन की परिभाषा
मन एक ..................नई-नई अभिलाषा
                        --------
रचनाकार
शिव शंकर पटेल
कोलकाता
🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 54
**************'
नमन मंच
#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह 
विषय_अभिलाषा
विधा_ काव्य
   अभिलाषा
ना चाहती हूँ ,बनना हिंदू , 
ना बनना, मुसलमान.
ना बनना, सिक्ख ही, 
ना बनना, क्रिस्तान.

मेरी अभिलाषा है मैं बनूँ, 
बस ऐसा एक इंसान.
दिल में धड़कता हो जिसके, 
बस हिन्दुस्तान, हिन्दुस्तान.

दिल में हो मेरे हरदम, 
तिरंगे का बस मान.
वन्दे मातरम् होंठों पर, 
रहता हो हरदम गान.

आँखों में मेरे अब, 
बस यही है अरमान.
जान भी हो मेरी, 
देश के लिए कुर्बांन

कफन हो देश की मिट्टी का, 
देश का ऊपर हो आसमान.
लिखा हो जिसपर नाम, 
सिर्फ हिंदुस्तान, हिंदुस्तान.
ये रचना स्वरचित है। 
राजेश्वरी जोशी, 
उत्तराखंड
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रचना नंबर - 55
**********'****'
नमन मंच 🙏
#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह 
#विषय - अभिलाषा
विषय क्रमांक - 339
दिनाँक-25/09/2021
***********************
             अभिलाषा
अभिलाषा ही अभिलाषा है प्रकृति के अंतर्मन में ।
इक चाहत कुछ पा लेने की,कुछ कर जाने की जीवन मे ।।
             अभिलाषा ही अभिलाषा है ......

इक राग बिखेर देने की मधुवन में,संगीत सुनाने सरिता तट में,
नव पल्लव फिर खिल जाते हैं, पाने धूप सुनहरी तरुवर में।।
                  अभिलाषा ही अभिलाषा है ..........

दूर कहीं मंजिल है फिर भी राही को पा लेने का संबल है ।
दूर कहीं साहिल में कस्ती पार लगाने की दमख़म है।।
            अभिलाषा ही अभिलाषा है......

भवरें की चाहत है नव पुष्प पराग कण को पा लेना ।
पुष्प की अभिलाषा है शहीदों की अर्थी में मिट जाने में।।
               अभिलाषा ही अभिलाषा है .........

कुरुक्षेत्र का रण दृष्टान्त , धर्म-अधर्म का खेला था ,पर
अभिलाषा के मोह परख लगी दांव में नारी राजमहल के आँगन में 
              अभिलाषा ही अभिलाषा है प्रकृति के ....

 स्वरचित व मौलिक रचना
      सुरेखा बर्मन
जिला डिंडौरी मध्यप्रदेश 

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रचना नंबर - 56
*****'****'*****
सादर नमन 
कलम बोलती है मंच
25.09.2021,शनिवार
विषय क्र.339
विषय--#अभिलाषा
विधा--कविता

अभिलाषा है उडू गगन में,
और धरा पर मैं छा जाऊँ।
चाह यही है शून्य क्षितिज,
के छोर सभी मैं छू जाऊँ।
बहुत सबेरे जागूँ में नित,
करूँ दिवाकर का स्वागत,
अभिलाषा है यह मैं अपने,
उन्मुक्त परों को अजमाऊँ।
चाहों का अंबार लगा है मेरे,
इस व्याकुल छोटे से मन में,
पूरे कैसे होंगे अरमां सारे,
सोच सोच कर मैं घबराऊँ।
जीवन का अबलंब छिना है,
अभिलाषा की बेदी पर है,
अकथ कहानी घायल मन की,
आज किसे में क्या बतलाऊँ।
दफन सभी हैं जो मेरी यादें
आज दर्द के मरघट पर हैं,
बाहों का अबलंब कहाँ पर,
मैं अपने किससे कैसे पाऊँ।

                   विनोद शर्मा
                   पिपरिया (म.प्र.)
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रचना नंबर - 57
***'*******'****
नमन मंच
कलम बोलती है सहित्य समूह
विषय - अभिलाषा
दिनांक -25/9/2021

नही है किसी से उम्मीद, नही है किसी से कोई आशा।
जन्म लिया था जब धरती पर, तभी बदल गई थी जीवन की परिभाषा।।
इस देह में छिपी लड़की को तब यह अहसास भी न था।
नारी से नारी तक के सफर में, कहां बचती है कोई अभिलाषा।।
माँ ने सिखाया लड़की हो, लड़की जैसे रहना सीखो।
आये जो दर्द कभी , उसे अमृत समझ पीना सीखो।।
पिता ने तय किये दायरे, इस चौखट से उस चौखट तक के।
बंधी सात फेरों में जब तब जाना, नही होते है घर परियों के।।

मौलिक एवं स्वरचित
पायल राधा जैन
इटावा उत्तर प्रदेश

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रचना नंबर - 58
*********'****'
जय मां शारदा 
कलम बोलती है साहित्य समूह मंच को नमन
दिनांक 25 सितंबर 2021
विषय क्रमांक 339
विषय अभिलाषा
 विधा सायली

अभिलाषा
नैसर्गिक प्रवृत्ति 
सदा शाश्वत है
जीवन पथ 
में 

यह
मेरी अभिलाषा 
सरहद पर जाऊं
झंडा फहराऊ 
वहां।

कामना
वासना त्यागो
अभिलाषा अध्ययन की 
वांछित है 
सर्वदा 

आगे
बढ़ने की
जीवन में अभिलाषा 
सदा अपेक्षित 
है ।

जीवन
की एक 
प्रवृत्ति अभिलाषा है 
अच्छी भावनाएं 
अपनाओ 

मंजु माथुर अजमेर राजस्थान


🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 59
**************
#अभिलाषा



जीवन की सारी अभिलाषा
आज मुखर हुई है,आज जब शब्द मिलें है
जीने की अभिलाषा भी बसंत हुई है!
सोचती हूँ एक बार फिर लौट जाऊं 
बचपन की ओर, 
अलमस्त फिरूँ
घर की मुंडेर पर,
तितली बन फिरती रहूँ
बागों और बगीचें में!
सच आज मुखर हुईं है
प्यार की अभिलाषा भी
कोई मुझे चाहे मैं किसी की पसंद बनूँ
इतनी की ख़ास हो जाऊं!
आज एक अभिलाषा
इस नारी मन ने भी की है
मेरे होने न होने का फर्क तुम जान जाओ
और मैं बन जाऊं 
तुम्हारी अभिलाषा
जिसे पाने की जुस्तजू तुम्हारी हो!

राधा शैलेन्द्र
भागलपुर

🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर - 60
**************
#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह 
#विषय:-#अभिलाषा
#विधा:-#हाइकु
दिनांक २५/०९/२०२१
*************************
मेरी अभिलाषा
सब स्वस्थ रहे।
खुश संसार।

भेद मिटे
अमीर गरीब का
सब समान।

बेटे बेटी
फर्क नहीं करना 
दोनों आधार।

अड़ोसी पड़ोसी
सब सुखी हो
एक परिवार।


अपना देश
विश्व में चमके
खुशियां हजार।
***********************
स्व रचित-छगनलाल मुथा-सान्डेराव (ओस्ट्रेलिया)


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रचना नंबर - 61
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नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
#विषय क्रमांक _339
#विषय_अभिलाषा
#दिनाॕक_25_9_21
#विधा_स्वैच्छिक (दोहा)

अभिलाषा मन की यही,सबकी हो पहचान |
चंचल गति सी जिंदगी ,मिटता कभी न मान |_1
थाम लें नन्हें हाथ को,बैरी जग संसार |
कोमल कलियाॕ बचपना,जीने का अधिकार |_2
सच्चे बोलों से सजता,सुखी रहे परिवार |
मानवता के पाठ से,बढ़ना बारंबार |_3
मन के सच को जानिये,रूके न कोई काम |
सोच समझ के बोलिये,वाणी शुभकर धाम |_4
सबको अपना मानकर,करें नेक व्यवहार |
दया धर्म की नीति पर,खुशियाँ मिले अपार |_5
अभिलाषा की चमक से,सजता मन का द्वार |
सत्य धर्म यही मानिये,बैन कटीली धार |_6

स्वरचित एवं मौलिक रचना
स्मृति ठाकुर मंडला मध्य प्रदेश


🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺रचना नंबर - 62
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#नमनमंच
#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह 
#बिषय_अभिलाषा
#दिनाँक_25_09_21


न दौलत की न शौहरत की सितारों की न चाहत है,
मिले जीवन में तुम मुझको खुदा की मुझ पे रहमत है,
तुम्हारे दिल के कोने में मिले थोड़ी जगह मुझको ,
यही अभिलाषा है मेरी यही रब से इबादत है।

जुड़े तुमसे जो रिश्ते है संजोया प्यार से मैंने,
हूँ अर्धांगिनी तुम्हारी मैं निभाया फ़र्ज हर मैंने,
दिया है छोड़ अपनों को तुम्हारे घर में आई हूँ,
तुम्हारी इक़ मुस्कराहट पे तजा हर ख्वाब है मैंने।

समर्पित कर दिया जीवन तुम्हे ईस्वर सा पूजा है,
दीवानी हूँ मैं मीरा सी तेरे बिन और न दूजा है,
मेरा विश्वास न टूटे जिसे मुहब्बत में पिरोया है,
यही अभिलाषा है मेरी न तुमसे कुछ और मांगा है।

शीला द्विवेदी "अक्षरा"
उत्तर प्रदेश "उरई"
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रचना नंबर - 63
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जय मां शारदे 
नमन मंच 
विषय अभिलाषा
 विद्या स्वैच्छिक 
दिनांक-25-09-21 

मेरे जीवन की यह अभिलाषा 
करूं पूरी सबकी आशा 
दुख में डूबे लोगों को 
दे जाऊं मैं कुछ दिलासा 

करूं समाज से दूर बुराई
करूं सारे काम भलाई 
दूर करू अज्ञान तिमिर को 
लाकर ज्ञान का सवेरा

न हो कोई ऊंच-नीच
न हो कोई अमीर गरीब 
मिल कर रहे सभी 
वसुधैव कुटुंबकम् की हो भावना

प्रियदर्शिनी आचार्य

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रचना नंबर - 64
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नमन मंच : कलम बोलती है साहित्य समूह 
विधा : स्वेछिक 
दिनांक :25/09/2021

                 विषय :अभिलाषा 

मेरी अभिलाषा है की मेरा देश विश्व में अग्रणी हो 
मेरी अभिलाषा है की की मेरा देश फिर से सोने की चिड़िया कहलाये 
मेरी अभिलाषा है की की मेरा देश भ्रष्टाचार मुक्त हो जाये 
मेरी अभिलाषा है की की हर देशवासी के मन में तिरंगा लहराए 

मेरी अभिलाषा है की मेरे देश की राजनीती से दलदल साफ़ हो जाये 
मेरी अभिलाषा है की मेरे देश की राजनीती में चुनाव लड़ने हेतु न्यूनतम शिक्षा का मापदंड निर्धारित हो जाये 
मेरी अभिलाषा है की हर राजनीतिज्ञ कम से कम अपने एक बच्चे को सरकारी विद्यालय में पढाये 
मेरी अभिलाषा है की सरकारी डॉक्टरों पर निजी चिकित्सा को लेकर पाबंदी लगाई जाये 

मेरी अभिलाषा है की ये मेरा अंतिम जन्म हो 
मेरी अभिलाषा है की मैं इस जन्म में आवागमन के चक्र से मुक्त हो जाऊँ 
मेरी अभिलाषा है की मैं अपने परिवार के लिए ही नहीं बल्कि समाज के लिए भी कुछ करके जाऊँ 
मेरी अभिलाषा है की मैं अपने पंच विकारों से मुक्ति पाऊँ 

स्वरचित एवं स्वमौलिक 
"🔱विकास शर्मा'शिवाया '"🔱
जयपुर-राजस्थान
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रचना नंबर - 65
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नमन मंच 
क्रमांक 339
दिनांक 25/9/2021
विषय अभिलाषा 

अभिलाषा का दीप जलाकर 
रखा हे निज द्वार ।
सबका मार्ग प्रशस्त हो ,
प्रभु करना उपकार । 
जितने खाली हाथ हैं 
हो उनको रोजगार ।
भूखे पेट न कोई सोये 
सबको मिले आहार ।
सीमा पर जो डटे हैं उनका 
कभी न टूटे साहस ।
खेतों में हलधर किसान को 
पहुँचे सम्भव राहत ।
देश विकास की गति पकड़े 
हर घर में हो उल्लास ।
घट घट बसने वाले प्रभु 
हो पूर्ण मेरी अभिलाष ।।

योगेन्द्र अग्निहोत्री 
( मौलिक व स्वरचित)
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रचना नंबर - 66
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नमन मंच कलम बोलती हैं
क्रमाक_३३९/
दिनांक_२५/९/२०२१
विषय_अभिलाषा
 मै बेटी हूँ ,आधार सृष्टी सृजन की।
बिन नारी सृष्टी कैसी ,शक्ति हूँ मै ।
मेरी एक मात्र अभिलाषा हे यही ।
न करो कैद उडने दो खुले आकाश में
    मैने वेद की ऋचाऐ रची,हूँ ज्ञानी नही अज्ञानी ।
पूज्या‌ थी सदैव कुछ ‌अपवादो छोड ।
इस कलिकाल मे विदेशियो की नजरो‌बचने को किया स्वंय को कैद ।
अब हूँ स्वतन्त्र मै मुझे लोहा लेने दो 
दुश्मनो के‌ छक्के‌ को नष्ट कर ने दो।
कमजोर नही मै महाकाली बनने दो ।
अभिलाषा बस यही देश‌को छल कपट,रिश्वत खोरी भ्रष्टाचार से बचाऊ।
 परिवार समाज देश मे बिगुल ‌बजाऊ ।
हो देवभूमि पावन ,राम राज्य जैसा 
   अभिलाषा यही दुश्मनों को करू मजबूर ऐसा।
शीश स्वतः झुके नारी‌के समक्ष ।
घर घर हो पावन मंदिर पूज्य हो बुजुर्ग ।
दमयंती मिश्रा
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रचना नंबर - 67
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नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
क्रमांक -339 
विषय -अभिलाषा 
दिन -शनिवार
दिनांक -25/9 /2021 

मेरी छोटी सी अभिलाषा 
ईश्वर उसे पूर्ण कर देना
मेरे ह्रदय में प्रभु रहे बस
मानवता का बल भर देना 

देना सद्बुद्धि कुछ ऐसी 
सही राह पर सदा चलू मै
निर्मलऔर दीन दुखियों के 
चेहरे की मुस्कान बनू मै

देना शक्ति मुझको इतनी 
हर निर्धन का बनू सहारा 
कर्म करु जग में कुछ ऐसे
रहे चमकती जीवन धारा

मरनें पर कुछ ऐसा हो जाए
काम किसी के मैं आ जाऊं
कोई देखे आंख से मेरी 
हाथ किसी के काम आ जाए

मेरे तन का एक एक हिस्सा 
किसीअसहाय के काम आ जाए
 रक्त की एक-एक बूंद से
 किसी का जीवन बचा सकूं मै

यूं तो नहीं हूं किसी भी लायक 
किसी के तो लाइक बन जाऊं
बस इतनी सी अभिलाषा
मेरे ईश्वर पूरी कर देना।।

स्वरचित एवं मौलिक
सीमा शर्मा 
कालापीपल मध्यप्रदेश
ब्लॉग हेतु

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रचना नंबर - 68
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नमन मंच कलम बोलती है 🙏🏻
विषय-अभिलाषा
विधा-स्वैच्छिक
दिनांक-25/09/21
दिवस-शनिवार

सादर अभिवादन 🙏🏻

अब ना ही कोई चाह है
और ना किसी से कोई आशा,
मिले कोई जो समझे खामोशी मेरी
बस इतनी सी है अभिलाषा।

जब तब बनता रहा
सच्ची भावनाओं का तमाशा,
कोहीनूर ही बन गए होते अब तक
जो कभी होता खुद को इतना तराशा।

नहीं चाहिए सैकड़ों की भीड़
जिसमें गुम हो जाए वजूद ही मेरा,
चाहिए बस कोई ऐसा
बिन बोले... बिन सुने
समझे जो नैनों की भाषा।

भोले से दिल की बस इतनी सी अभिलाषा...
जब रुखसत हों इस जहां से
पीछे छोड़ जाएं कुछ ऐसे निशां,
कि जाने के बाद भी
ज़माना करे याद और कहे...
क्या कमाल का था इंसां।

अल्का मीणा
नई दिल्ली
स्वरचित एवं मौलिक रचना
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रचना नंबर - 69
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#नमन मंच कलम बोलती है साहित्य परिवार
विषय#अभिलाषा
विधा#कविता
दि.25/9/21
क्रमांक#339
अनमना सा सुमन इक डाल पे मुरझा गया।
अन्कही मन टीस को बन बेजुबाँ सुना गया।
सूलों मे घिर कर सदा रंग महक बिखेरता।
पँखुडी का दर्द रंज सब जिगर मे समेटता।
हौले से मुस्का रहा वो अपनी ही तकदीर पर,
जख्मों से बिधँता रहे ज्यूँ पलता पैने तीर पर।
कभी सुरों के कदमों में या जनाजों पे चढता,
कभी पिरो कर हार मे वर वधु मिलन करता।
कभी गूँथ के गजरों मे बालों का सिगांर बने,
सजे कभी गुलदान मे प्यार का उपहार बने।
सुमन की ख्वाहिश से यूँ सरोकार नही कोई,
पूछे रजा न उसकी है दिल में अरमान कोई।
उसकी ये अभिलाषा वीरों का हार बनूँ कभी।
रणभूमि में ढोल बजे सीमा पे मर मिटूँ कभी।
स्वरचित
🌹सुशील शर्मा🌹
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रचना नंबर - 70
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नमन मंच
#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह 
विषय क्रमांकः339
विषयः अभिलाषा
विधाः पद्म(छंदमुक्त)
दि-25/09/2021
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अभिलाषाओं की अतृप्ति,
  अस्त -व्यस्त जीवनक्रम
     सुख चैन स्वप्न हो जाना
        मानसपट चिन्तित रहना।

जीवन के कुटिल मोड़ पर,
  अभिलाषा की अभिवृद्धि,
     जर्जर तन का हो जाना,
        मन में दुख पलते रहना।

जन्म पलों से मानव की,      
  आवश्यकताऐं मृत्यु -पर्यन्त,
     माँग पूर्ति का कुटिल चक्र,
       आजीवन चलता सतत नित्य।        

पलभर में होता मन अधीर
  अपरिहार्य मन का निग्रह अति,
     क्षोभयुक्त उन्माद मनस का,
        कारक निश्चित अतृप्ति का।

              --मौलिक एवं स्वरचित--

अरुण कुमार कुलश्रेष्ठ
लखनऊ(उ.प्र.)
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रचना नंबर - 71
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🙏नमन मंच🙏
#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह 
#विषय--अभिलाषा
#विषयक्रमांक 339
#विधा स्वैच्छिक

नहीं है अभिलाषा गगन मे उड़ू मैं
नहीं कभी अभिलाषा बातें करूँ सितारों से
बस इंसानियत जिंदा रहे जीवन में
प्यार करूँ अपने किरदारों से।।

ना दुख पहुँचाऊँ अपनी बातों से किसी को
ना चोट लगे किसी को मेरे धर्म से
बस इतनी कृपा करना मेरे कान्हा।
इंसान हूँ ,इंसान बनी रहूँ मन,वचन,कर्म से।।
स्वरचित मौलिक
✍सीमा आचार्य
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रचना नंबर - 72
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नमन कलम बोलती है साहित्य समूह 
विषय क्रमांक-339
विषय- अभिलाषा 
25/09/21
शनिवार 
कविता 

जीवन की अभिलाषा लेकर प्रतिपल पुलकित रहती हूँ ,
आशाओं से दीप्त दिशाओं में ही आगे बढ़ती हूँ।

कितनी भी बदली छा जाये मेरे जीवन के पथ में,
पर मैं अपने लक्ष्य- मार्ग से कभी न विचलित होती हूँ।

मेरा जीवन - लक्ष्य राष्ट्र की सच्ची सेवा करना है,
इसीलिए मानवता का मैं बीज हृदय में बोती हूँ ।

सब मिलकर समाज के हित में निज कर्तव्य निभा पाएँ, 
नया जोश नित युवावर्ग में कविताओं से भरती हूँ ।

विश्व-पटल पर भारत की सुंदरतम छवि फिर से उभरे ,
इसी स्वप्न में विविध रंग के चित्र सजाने लगती हूँ ।

स्वरचित 
डॉ ललिता सेंगर
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रचना नंबर - 73
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मेरी अभिलाषा

चाह नहीं थी मेरी कभी
मैं गगन मैं उड़ जाऊँ
जब सें होश संभाला
बस अरमा था इतना की
 सफलता को पाऊ
एक़ नन्हे कछुए की भांति
अपनी मंज़िल की और बढ़ती गयी
ना थी फिकर रेस की
ना था भावना हार जीत की
बस एक़ मुसाफिर की भांति
चले जा रही थी
ना था आभास ठोकरों का
ना था अंदाजा मुश्किलों का
करवा चलता गया
और हम साथ बढ़ते गए
कुछ रही मिले
कुछ अलग होते गए
हम मस्त पंछी की भांति
अपनी उड़ान भरते रहे
एक़ रही अभिलाषा ज़िन्दगी में
कि पिता का नाम रोशन करेंगे
दिया जीवन जीने का मकसद
सर उस का ना झुकने देंगे
किया जो प्रयास थोड़ा सा
मंज़िल को पालेंगे
क़र्ज़ उसके किये का दें सकते नहीं
बस उसकी बेटी होने का फर्ज़ अवश्य निभा देंगे.....
निभा देंगे
मोना चोपड़ा
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रचना नंबर - 74
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नमन मंच 
#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह 
#विषय;-अभिलाषा 
#विषय क्रमाक-339
#दिनांक;-24/09/2021
विधा:-कविता 
      जीवन-पथ के हम सब गामी  
      अनन्त अभिलाषाओं के प्राणी 
      हो न कोई मानव-मानव में अन्तर 
      प्रगति पथ पर रहें सदा अग्रसर
              बनकर बादल गगन से बरसूं
              अवनी को सिंचित कर दूं
              विश्व बन्धुत्व की भाव जगा कर
, करूं समभाव सतत् उजागर 
      लाकर शशि की शीतल किरणें 
       स्फूरित करूं नई उर्जा सबमें 
       नफरत की दीवार गिरा दूं
       प्रेम की सरिता बहा दूं
               शिक्षा की बहे अविरल गंगा 
               न हो कोई भूखा नंगा 
               सबको भोजन,वस्त्र,आवास मिले
               जीवन यापन हेतु रोजगार मिले
        जाति भेद न करें स्वीकार 
        मिले सबको समता का अधिकार 
        हो न कहीं जग में व्यभिचार 
        जीने का मूल मंत्र हो सदाचार।।

कल्पना सिन्हा
स्वरचित व मौलिक 
  मुम्बई ।
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रचना नंबर - 75
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नमन मंच- कलम बोलती है
विषय क्रमांक- 339
दिनांक-25/09/21
दिवस- शनिवार 
विषय- अभिलाषा 
विधा-स्वैच्छिक (गीत)

तन मनुज का मिला जिसमें अभिलाषाएं अनेक हैं
कभी नील गगन में उन्मुक्त उड़ान भरने की चाहत
तो धरा पर खुबसूरत आशियां बनाने की अभिलाषा
और कभी एवरेस्ट फतह करने की अभिलाषा

कभी मन चाहता एकांत में खुद को ढूंढ लूं मैं
और कभी भीड़ का कोलाहल संगीतमय लगता
परिस्थिति के अनुरूप बदलती अभिलाषाएं हैं
दिल में पल पल बदलती अभिलाषाएं अनेक हैं

ईश्वर को पाने की अभिलाषा जब प्रबल होती
तब खुद की पहचान आसान सी हो जाती है
उस वक्त ठहर जाती हैं सारी अभिलाषाएं
जब साथ मिल जाता परमपिता परमेश्वर का

स्वरचित एवं मौलिक रचना, ब्लॉग के लिए प्रस्तुत है

     अनुराधा प्रियदर्शिनी
   प्रयागराज उत्तर प्रदेश
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रचना नंबर - 76
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#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह 
मंच को प्रणाम
#विषय: अभिलाषा
*मेरे मन की अभिलाषा.*
#विषय क्रमांक:339
#दिनांक : 25/09/2021
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मेरे मन की यह अभिलाषा 
न जान सका - ना पहचान सका 
पत्थर–सा जान मुझे 
शिला का आधार बना ।
पत्थर की अभिलाषा बनकर 
शिवलिंग का आकार लिया 
जल की शीतल धारा छूकर 
गंगा–सा पवित्र बना ।
भांग–धतूरा अर्पण करके 
भस्म लगाए महाकाल बने 
विष को घटक नीलकंठ कहलाते 
देवों के देव बने।
वे जों कपाल का हार पहनते 
कैलाश पर्वत के स्वामी कहलाते
कहते कैलाश नाथ उन्हें
पापों का निवारण करते ।
गुणों को स्वीकारके
अवगुणों को हरते
हैं गंगाधर – है गिरजापति 
बस मोक्ष प्राप्ति की है अभिलाषा।
न है कुछ पाने की अभिलाषा 
बस मन में स्मरण तुम्हारा लिए 
हृदय तुम्हारा हो जाता है
हे शिव शंभू - हे शिव शंकर, मेरे मन की यह अभिलाषा।

डा. वंदना खंडूरी
देहरादून उत्तराखंड
स्वरचित रचना
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रचना नंबर - 77
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नमन मंच
दिनाक.24.9.2021
बिषय.अभिलाषा !

मेरी है यारो अभिलाषा ,सब सबका
सम्मान करें !

कोई न यहाँ छोट बड़ा,सबसे अपनी पहचान करें !

धन दौलत हाथो का मैला,मत उस पर अभिमान करें !

मानब धर्म तुम अपना निभाओं,हर 
मानब का ध्यान करे !

मानबता है ऐसा दर्पण,उसका ही ईमान करे !

मेरी है यारो अभिलाषा,सब सबका सम्मान करे !

मौलिक
रंजीत सिंह !
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रचना नंबर - 78
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जय शारदे माँ 🙏🙏
नमनमंच संचालक।
कलम बोलती है साहित्य समूह।
विषय - अभिलाषा।
विधा - मुक्तक।
स्वरचित ।समीक्षार्थ

आज इच्छा पूरी हुई सबके मन की।
पूरी आकांक्षा हो गई जन-जन की। 
अब तो भव्य मंदिर बन जाय अभिलाषा
अभिलाषा श्री रामलला के दर्शन की।।
*****
दुनिया बस एक तमाशा है।
सुख की क्या ही परिभाषा है। 
तन ये मिल जाना माटी में
पुण्य कर्म करूं अभिलाषा है।। 
****
प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
24/09/2021
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रचना नंबर - 79
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नमन मंच कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय अभिलाषा
विधा काव्य



नादान अभिलाषाएं

अनंत असीमित होती है अभिलाषाएं।
नहीं जाने कोई इनकी मूक भाषाएं।
तृप्ति-अतृप्ति की गढ़ती परिभाषाएं।
सखी संगी इनकी होती आशाएं।

अनेक संवेग हृदय मे हलचल मचाते।
शब्द कानों में इनकी भाषा बुदबुदाते।
नव आसमां छूने की राह दिखाते।
अभिलाषा तार हर पल धुन सुनाते।

प्रदीप्त करने अभिलाषाओं के दीप।
नोचना मत दूसरे उड़ते पंछी के पर।
मत बनाना दूजा जीवन दर्द का घर।
नादान अभिलाषाओं को तु परे कर।

वीनस जैन
शाहजहांपुर
उत्तर प्रदेश
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रचना नंबर :-80
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नमन,,,,सभी मंच वासियो को।

विषय अभिलाषा,

पुष्प की अभिलाषा है कि
किसी माला में गुथा जाऊ

मन की ये अभिलाषा है कि,
मर जाऊ,या किसी पर मर मितू।

हदय कहता है ,बन पंछी
नील गगन में उड़ जाऊ

रोम रोम कह उठता है कि
जाऊ सजना से लिपट जाऊ।

तन की चाह,आकांशा कामना,बस इतनी सी अभिलाषा

हो जाऊं किसी का या किसी को में दिल से अपना लू।

पर सम्पूर्ण जीवन के अंतिम क्षण तक मेरी यही अभिलाषा है

निकलू जब भी अंतिम सफर पर,सबकी आँखे नम कर जाऊ।

ये बस मेरी अभिलाषा है
की में खुद को पा जाऊ।

🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺
रचना नंबर :-81
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नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य
विषय क्रमांक 339
विषय अभिलाषा
मेरे मन की यह अभिलाषा
विषय- अभिलाषा
विधा- कविता
स्वरचित व मौलिक रचना.
कुछ पाने की हर पग जगत् से
ऐसी पनपी मन में अभिलाषा !!
हर मानव में रक्ताणु जब एक-से
हैं जीवंतता के परमाणु भी एक-से
फिर जाति-पाति का भेदभाव है क्यों
यहीं अंतर्मन में उठती बोली-भाषा !
भेदभाव अमीर गरीब मिट जाए
हो ऐसी हम सबकी अभिलाषा !!
पुरस्कृत जीवन-मूल्यों से संसृति
‘मानव’ प्रकृति की अनमोल कृति
हो ध्येयसूत्र ‘वसुधैव कुटुंबकम्’
समरसता जीवन की हो परिभाषा!
भेदभाव समूल मिट जाए जगत् से
हो ऐसी हम सबकी अभिलाषा !!
न छोटे –बड़ी की छाई मनमानी हो
न ही बैर-विरोध की परिपाटी हो
जानते सब संस्कृतियाँ पुनर्सर्जित हों
दया-ममत्व स्पन्दित हों बारहमासा !
भेदभाव मेरा तेरा मिट जाए जगत् से
मानवता लिए सबकी अभिलाषा !!
रेखा मोहन २४/९/२१ पंजाब

रचनाकार :- आ. दामोदर मिश्रा जी 🏆🏅🏆

#कलम बोलती है साहित्य समूह मंच को नमन।
#जय मां शारदे।
#दो दिवसीय आयोजन।
#दिनांक : 22 सितंबर से 23 सितंबर तक।
#दिन :      बुधवार से बृहस्पतिवार तक।
विषय :     श्राद्ध पक्ष।
विधा :      स्वैच्छिक।

                     । रचना। 

मीठे  मीठे   खीर - पूड़ी,   तुम  किसे खिला रहे हो,
किस  किस के  लिए  तुम   सब  पूजा करा  रहे हो,
पंडित   बुला   कर    क्यों   पिंड - दान  करा रहे हो,
जीते  जी  तो,  पूछा नही,  आज क्या दिखा रहे हो।

कोई  कौआ  बन  कर क्यों आए  तुम्हारे छज्जे  पर,
एक  दो दिन  का ये  तर्पण का अर्पण क्या  लेना  है,
दूध,  गुड़,  और,   खीर   के  भोग आज   लगाओगे,
ऐसी  पूजा   उनकी,   जिंदा  जी  जिन्हे  सताया था।

गाय बनकर,  तेरे  द्वारे मैं पूड़ी  खाने   क्यों आऊंगी,
कचड़े  में  पड़े   हुए  प्लास्टिक -  शीशा  ही खाऊंगी,
अपनी मतलब  आती  तो,   गाय माता  कहलाती हूं,
मतलब निकलते  ही  कसाई  के  घर भेजी जाती हूं।

कुता  बन  कर,   कोई   क्यों तुम्हारा श्राद्ध को  खाए,
कुता  हो  कर  भी,   वह  तुम  से ज्यादा वफा निभाए,
कुता -  कौआ  यह सब तो,   केवल बस  उदाहरण हैं,
उनसे  भी गिरा हुआ,  आज,    मनुज का आचरण है।

मैं  सच कहता हूं,  गाय,  कुत्ता  या  कौवा नहीं बनूंगा,
तुम्हारे  रूप  में ही रूप  बदल तुम्हारे अंदर ही   रहूंगा,
शर्धा  से  श्राद्ध होगी,  बड़ों  की  इज्जत  अगाध होगी,
तब ही श्राद्ध पक्ष मनेगा,   तब  ही असली श्राद्ध होगी।

      स्वरचित मौलिक और अप्रकाशित।

      *ब्लॉग के लिए।

                              दामोदर मिश्र, बैरागी।
                               मेदनीनगर, पलामू , झारखंड।


बुधवार, 22 सितंबर 2021

रचनाकार :-आ. कुन्दन श्रीवास्तव जी 🏆🏅🏆

रचनाकार :- आ. अभिमन्यु सिंह जी 🏆🏅🏆

कलम ✍बोलती है साहित्य समूह को सादर नमन 🙏
साप्ताहिक मुक्तक लेखन आयोजन, 
विद्या:- पत्र लेखन✍
विषय:- पुत्री का पत्र माँ के नाम, 
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माँ को चरण वन्दन, 
            कैसी  हो  तुम  माँ ।
भूली  नहीं  हूँ   मैं ,
          तेरी आंचल की छांव। 

जब जब रोईं थी मैं, 
          तुम गोद में लेकर घूमी। 
बालों को सहला कर,
          गाल पर जड़ी थी चुम्मी। 

सब कुछ याद है माँ, 
           कुछ  भी नहीं मैं  भूली ।
जब मैं सोती बेफिक्र,
            तुम रखतीं आंखें खुली। 

सोते  जागते  हर  पल, 
              तेरी याद बहुत  आती है।
तेरे हांथ की बनी कलेवा,
               सपने  में  भी  भाती  है।

अच्छे से  तुम  रहना  माँ, 
               सेहत पर भी रखना ध्यान। 
समय से अपनी नींद लेना,
               समय से लेना व्यंजन पान। 

जल्द ही आऊंगी मिलने, 
               तब  बातें  करेंगे इत्मीनान। 
बातों  की है  झड़ी लगी ,
               करती हूँ अब कलम विराम।
                                  तुम्हारी पुत्री- पर्यावरण, 
          अभिमन्यु, (औरंगाबाद, बिहार),🙏

मंगलवार, 21 सितंबर 2021

वो कौन?.. सस्पेंस थ्रिलर स्टोरी by uma Vaishnav

14  फरवरी,

मोबाइल की रिंग ट्यून बजती हैं

गुप्त..गुप्त...गुप्त... 🎶🎶🎶..

रिंग सुनते ही प्रशांत की आँख खुलती हैं, प्रशांत आँखे मशलता हुआ... मोबाइल में नंबर देख..... कॉल उठाता है..

प्रशांत.... बोलो निधि,.. किस का मर्डर हुआ है, कहाँ पहुँचना है???

निधि... अरे... बिना कुछ कहे.. ही.. पूछ रहे हैं, किसका मर्डर हुआ??... 🙄

प्रशांत :- अब इतनी सुबह.. तुम मुझे वेलेंटाइन डे विश करने के लिए तो कॉल करोगी नहीं.. 😉

कहानी को आगे बढ़ाने से पहले हम आपको बता दें कि निधि और प्रशंसा एक साथ एक डिटेएक्टिव ऑफिस  में काम करते हैं, और दिल ही. दिल में एक दूसरे को चाहते हैं, किन्तु एक दूसरे के सामने स्वीकार नही करते हैं।

प्रशांत :- अच्छा बोलो क्या हुआ है?

निधि:- आप तुरंत ऑफिस पहुंचे। एक बहुत ही अजीब केस आया।

प्रशांत :- ओके,.. मैं अभी आधे घंटे में पहुंचता हूँ।

प्रशांत समय का बहुत पका था। वो ठीक है आधे घंटे बाद अपने ऑफिस पहुँच जाता है। किंतु निधि हमेशा देर से पहुँचती है। आज भी वो देर से पहुंचती है।
प्रशांत ऑफिस में निधि का इंतजार कर रहा होता है। तभी निधि ऑफिस में पहुँचती है।

निधि :- मे आई कमिंग... सर

(प्रशांत निधि का सीनियर ऑफिसर होता हैं, इसलिए निधि उसे सर ही कहती हैं।)

प्रशांत :- निधि... तुम आज फिर पूरे.. 5 मिनिट और 25 सैकंड लेट हो।

निधि :- ( मन ही मन बडबडाते हुए)... एक.. एक.. सैकेंड की गिनती करता है.. इंसान हैं.. या मशीन......हिटलर।

प्रशांत :- कुछ.. कहा.. तुमने..??

निधि :- कुछ नहीं.. आ... आआ.. आई एम सॉरी सर।

प्रशांत :- ओके.. अब काम की बात... कैस की फ़ाइल कहाँ हैं??

निधि प्रशांत को फ़ाइल देते हुए कहती हैं।

निधि :- यह रही.. सर।.. ये केस एक सर फिरे आशिक का लगता है... सर
और निधि प्रशांत को पूरा केस बताती हैं

शालिनी एक फूड एजेंसी में काम करती होती है,
आज से ठीक 3 महीने पहले यानी कि 3 नवंबर को उसके मोबाइल पर किसी अजनबी का कॉल आता है। वो कहता है कि वो शालिनी को बहुत चाहता है, और उसी से शादी करेगा। पहली बार तो शालिनी ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया। कोई सरफ़िरा समझ कर एक दो बात सुनाई और कॉल काट दिया। लेकिन वहीं कॉल उस दिन के बाद बार बार आता रहा। और सब से बड़ी हैरत की बात तो यह थी कि उसे शालिनी के पल पल की खबर रहती थी। वो कब खाती है.. वो कब सोती है..... उसकी पसंद.. ना.. पसंद.. सब... हर रोज वो उसे कॉल कर के कभी उसके कपड़ों की कभी उसके खाने की... तो कभी.. ऑफिस से आने जाने के समय की बात करता हैं, पूरे तीन महीने से वो उसे इसी तरह परेशान कर रहा है अब तो हद ही हो गई। इस बार उसने साफ साफ कह दिया कि इस वेलेंटाइन डे को यदि उसके प्यार को स्वीकार नहीं किया तो वो उसे जान से मार देगा। शालिनी बहुत डरी हुई है सर....

प्रशांत... शालिनी को पुलिस.. प्रोटेक्टसन दिया गया या नहीं...??

निधि.... यस सर,... दे दिया गया है।

प्रशांत.....ओके,.... चलों शालिनी के घर.... शालिनी से कुछ पूछताछ करनी है।

इतना कह कर प्रशांत और निधि शालिनी के घर पहुंच जाते हैं। और अपना परिचय देते हुए कहते हैं...

प्रशांत.... शालिनी जी.... मैंने आपका पूरा केस स्टडी किया है, पूरे केस को पढ़े के बाद यह तो यकीन हो गया कि कॉल करने वाला जो भी हैं, वो आपका.. बहुत करीबी... में से ही कोई एक हैं।

शालिनी.... लेकिन.. कौन..???

प्रशांत... यही तो... जानना हैं शालिनी जी... इस लिये हम आपसे कुछ सवाल पूछना चाहते हैं जिसका सही सही उत्तर देना होगा आपको।

शालिनी.... जी.. पूछिये

प्रशांत... अच्छा ...शालिनी जी... ये बताये कि इस घर में आपके अलावा... और कौन.. कौन.. रहते हैं।

शालिनी... मैं अकेली ही रहती हूँ।

निधि.. आपके माता-पिता... वो कहाँ हैं

शालिनी... आज से 2 साल पहले... एक कार एक्सीडेंट में दोनों चल बसे।

प्रशांत... चाचा.. चाची... मामा.. भैया.. बहन.. कोई रिश्तेदार... कोई तो होगा ना।

शालिनी..... नहीं... कोई नहीं है।

तभी शालिनी की एक फ्रेंड निशा आती है।

निशा.... शालिनी.. शालिनी.. कैसी हो तुम?? क्या हुआ?? उस बदमाश का कॉल फिर से आया था क्या??...

तभी प्रशांत पूछता है..... आप कौन??

शालिनी... ये मेरी फ्रेंड निशा हैं।

प्रशांत निशा से पूछता है.... तो आप निशा हैं।आप शालिनी को कब से जानती है।

निशा.... काॅलेज से साथ हैं.. हम दोनों... पर आप कौन हों??

शालिनी... ये डीटेक्टीव.. प्रशांत.. और.. ये इनकी जूनियर..ऑफिसर.. निधी

निशा... क्या.... शालिनी.. तुमने.. जासूस.. हायर किया है।

शालिनी.... हाँ,... मैं बहुत डर गई हूँ। उसने मुझे जान से मारने की धमकी दी।

प्रशांत... क्यूं.. निशा जी.... क्या आप नही चाहती कि आपकी सहेली को परेशान करने वाला पकड़ा जाये।

निशा... जी.. मैंने ऐसा कब कहा....

प्रशांत... जी कहा तो नहीं आपकी बातों से ऎसा लग रहा है।

शालिनी... प्रशांत जी, निशा मेरी बहुत अच्छी फ्रेंड है मेरी दोस्त, रिश्तेदार, भाई- बहन, मां- बाप सब कुछ निशा ही है मेरी कोई भी बात निशा से छुपी नहीं...... निशा मेरी सब कुछ है। वो कभी भी मेरे लिए गलत नहीं सोचेगी।

निधि.... कभी-कभी बहुत करीबी ही धोखा दे जाते हैं।

प्रशांत... ओके... शालिनी जी... मैं आपके ऑफिस में आपके साथ काम करने वाले सारे दोस्तों से मिलना चाहता हूं
शालिनी अपने ऑफिस के दोस्तों को घर पर बुलाती हैं। राहुल, विनय, अविनाश, प्रीति और रश्मि  यह सभी शालिनी के ऑफिस में काम करते हैं। निधी और प्रशांत सभी से पूछताछ करते हैं और उनके फोन नंबर एड्रेस नोट करते हैं।
सभी से पूछताछ करने पर कोई बात ऐसे सामने नहीं आई जिससे उन पर शक किया जाए। लेकिन प्रशांत को निशा पर शक होता है। तभी दूध वाला दूध लेकर आता है। वो सीधा अंदर आकर टेबल पर दूध रख कर जाने लगता है तभी प्रशांत उसे रोक लेते हैं।
प्रशांत... तुम बिना.. नॉक किये... अंदर आ जाते हो?
तभी शालिनी कहती हैं... ये तो दूधवाला हैं।
प्रशांत कहता है... शालिनी जी.... आप अकेले घर में रहती हैं आपको इस तरह किसी पर विश्वास नहीं करना चाहिए... चाहे वह दूध वाला हो ....या इस्त्री वाला... या कोई और..

कहानी जारी रहेगी....

image by goole 

   
   


रचनाकार :- आ. संजय वर्मा "दृष्टि"जी 🏆🏅🏆

#दैनिक_विषय_क्रमांक_337
*****************

#कलम बोलती है साहित्य समूह" के मंच को नमन 



* रचना मौलिक और स्वरचित 
#विषय क्रमांक.. 337

🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
 #विषय...कोशिश 
***********************************
#विधा ...स्वैच्छिक 
*********************************
#दिनांक .....20 से 21 सितंबर तक 
*********************************
#वार :- सोमवार से मंगलवार 
*********************************
#समय :- सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक
********************************


बेटी

प्रेम पूजा रिश्तों का बीज होती है बेटी
बड़े ही नाजों से घरों में पलती है बेटी
बाबुल की हर बात को मानती है बेटी
घर में माँ के संग हाथ बटाती है बेटी

छोटें भाइयों को डांटती समझाती है बेटी
माता-पिता का दायित्व निभाती है बेटी
संजा,रंगोली ,आरती को सजाती है बेटी
घर में हर्ष,उत्साह ,सुकून दे जाती है बेटी

ससुराल जाती तो बहुत याद आती है बेटी
पिया के घर रिश्तों में उर्जा भर जाती है बेटी
जिन्दगी को चलाने का मूलमंत्र होती है बेटी
हर कोशिश अधूरी रह जाती जब न होती बेटी

#संजय वर्मा "दृष्टि"
125,शहीद भगतसिंह मार्ग
मनावर जिला धार मप्र

रचनाकार :- आ. कुलभूषण सोनी 'ब्रजवासी जी 🏆🏅🏆

.              21सितंबर , मंगलवार
                🌹शब्द :#कोशिश
              विधा : #दोहा_मुक्तक 
🏵🇮🇳🌹🇮🇳🌹🏵🇮🇳🌹🏵🇮🇳🌹🏵🇮🇳
                🏵#रचना नंबर- 2
 संविधान  निज  देश  का  ,  लागू  का  जो पर्व.

'भूषन'  दीं  कुर्बानियाँ  ,   हम - सबको  है  गर्व.

 हम भी निज #कोशिश करेंं,रहें हृदय से स्वच्छ-

मातृ - भूमि की शान को , रखें  सदा  हम  सर्व. 
                       🌹🏵🙏
    रचयिता : कुलभूषण सोनी 'ब्रजवासी


रचनाकार :- आ. प्रमोद_गोल्हानी_सरस जी 🏆🏅🏆

🙏🌹जय माँ शारदा 
नमन "कलम बोलती है"
दि.-21-09-21
विषय कलर.-337
प्रदत्त विषय- #कोशिश
विधा-  #गीत
मेरी प्रस्तुति सादर निवेदित.... 

***********************************

कोशिश करते रहना प्यारे,मंज़िल तू पा जायेगा |
बिन कोशिश के इस जीवन में,तू कुछ भी ना पायेगा ||
                    +++++
मंज़िल की है चाह अगर तो,कदम बढ़ाने ही होंगे |
बाधाओं के पत्थर सारे,तुझे हटाने भी होंगे ||
मन से गर तू हार गया तो,जीत नहीं फिर पायेगा |
कोशिश करते रहना प्यारे,मंज़िल तू पा जायेगा ||
                    +++++
बात बहुत सीधी सच्ची है,जो तुझको समझानी है |
समझ सका ये बात अगर तो,जीवन में आसानी है ||
नहीं समझ पाया जो इसको,निश्चित वो पछतायेगा |
कोशिश करते रहना प्यारे,मंज़िल तू पा जायेगा ||
                     +++++
याद करे ये दुनिया इक दिन,काम वही करते जाना |
जो भी हों हालात मगर तू,राह बुरी तजते जाना ||
नेक राह चलता चल प्यारे,गीत ज़माना गायेगा |
कोशिश करते रहना प्यारे,मंज़िल तू पा जायेगा ||

************************************

  स्वरचित
#प्रमोद_गोल्हानी_सरस
      कहानी - सिवनी म.प्र.

रचनाकार :-, आ. नन्दिनी रस्तोगी नेहा'जी 🏆🏅🏆

नमन मंच
विधा कविता
विषय मजदूर

मजदूर नहीं मैं
जो दिन रात खटती  रहूं
 कभी बर्तन 
तो कभी कपड़े रगड़ती रहूं
बनाकर तो लाए थे तुम महारानी 
और बना  दी मुझे नौकरानी
बिना पगार के मिल गई 
तुम्हें एक नौकरानी
और तो और 
सर्विस पर भी जाती 
 पगार लाकर भी देती 
और बदले में पाना चाहती हूं 
सिर्फ थोड़ा सा प्यार
 औ स्नेह की बौछार 
पर शायद 
तुम वो भी नहीं दे पाते
 क्योंकि तुम तो मुझे
 मजदूर समझते  हो
पगार लाने वाला मजदूर 
दिन भर काम करने वाला मजदूर  
तुम्हारे घर को सलीके से
 रखने वाला मजदूर 
पर मजदूर नहीं हूं मैं 
मजबूर भी नहीं 
पर तुम्हारे प्यार ने 
बांध रखा है मुझे 
बस इतना ध्यान रखना
 मुझे मजदूर समझने की
 गलती ना करना ! 

नन्दिनी रस्तोगी नेहा'
मेरठ
स्वरचित

सोमवार, 20 सितंबर 2021

रचनाकार :-आ. संजीव कुमार भटनागर जी 🏆🏅🏆

रचना नंबर 1
************
नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक - ३३७
विषय - कोशिश
विधा - कविता
दिनाँक - २०/९/२०२१
दिन - सोमवार
संचालक - आप औऱ हम

जब प्रारब्ध परीक्षा लेता है
मनुज कठिन यातना सहता है,
सफलता असफलता की रेखा
कोशिश से पार कर लेता है|

विघ्न और बाधा मिल जाते हैं
पुरुषार्थ साहस थक जाते हैं,
सर्वस्व न्योछावर कर दे जो
कोशिश से अंबर पा लेते हैं|

जब भी तुमने प्रयत्न किया है
समस्या का हल निकला है,
साधा है जब पुरुषार्थ का तीर
पत्थर से भी जल निकला है|

कठिन राह पे जब तू निकला
मंज़िल की चाह में तू भटका,
प्रयास किया तूने पूरे मन से 
सफ़ल जिंदगी में होके निकला|

कोशिश व मेहनत पूरक हैं
मंज़िल पाने के ये कारक हैं,
मंज़िल मिले या नया तजुर्बा
परिणाम इसके सुखकारक हैं|

स्वीकारो इसको इक चुनौती है
विजय इसकी शायद नियति है,
विजय चाहें हो आधी अधूरी 
प्रयासों में तेरी कोशिश पूरी है|

#घोषणा : - मैं, संजीव कुमार भटनागर घोषणा करता हूँ कि यह रचना मेरी स्वरचित मौलिक और अप्रकाशित रचना है। ब्लॉग पर प्रकाशन कि अनुमति है|


रचना नंबर -2
***********

नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
#दैनिक विषय क्रमांक - 338
दिनांक - 22/09/2021
#दिन : बुधवार
#विषय - श्राद्ध - पक्ष
#विधा - कविता

नहीं भूलते आपको हम
आपसे ही अस्तित्व हमारा,
यादों, व्रतों, पुजा में शामिल तुम
तुमसे ही ये नाम हमारा|

पूर्वज कहें या पितृ पुकारें
संग सदा हैं आशीष तुम्हारे,
जीवन ये तो देन तुम्हारा
संस्कार प्रथा ये सभी तुम्हारे|

श्राद्ध पक्ष में हम करते तर्पण
खीर पूरी का तुम्हें करते अर्पण,
सोलह दिन महालय के कम हैं
ये जीवन तो है तुम्हें समर्पण|

जीवन का हर पाठ तुम ही से
मंज़िल की हर राह तुम ही से,
नमन तुम्हें कर आज पुकारा
ये श्रद्धा ये प्रार्थना तुम ही से|

तेरी छांव में पलकर बचपन
अपना जीवन बना था अनुपम,
गोद में तेरी खेल गले लगे थे
तेरे ऋण में बंधा है ये जीवन|

समर्पित श्रद्धा फूल हैं तुमको
अर्पित पसंद भोजन ये तुमको,
विप्र रूप या काग रूप में आना
समर्पण का ये नमन है तुमको|

#घोषणा : - मैं, संजीव कुमार भटनागर घोषणा करता हूँ कि यह रचना मेरी स्वरचित मौलिक और अप्रकाशित रचना है। ब्लॉग पर प्रकाशन कि अनुमति है|

रचनाकार :- आ. सुनीता शर्मा जी 🏆🏅🏆

कोशिश,,,, मगर कितनी,,,

जी हां पिछले 15 सालों से कोशिश ही तो कर रही थी वो,जिंदगी को एक पटरी पर लाने की। कोशिश ही तो कर रही थी वो पति के होते हुए भी अकेले ही दोनो बचो को बड़ा करने की क्योकि जिसका पति अच्छे खासे शरीर का मालिक होते हुए भी केवल आवारागर्दी करता हो,जिसे केवल यार दोस्तो के साथ बैठ कर शराब पीने से फुरसत न हो ,जो केवल पत्नी की कमाई पर ज़िंदा हो,जिसे बिना किसी वजह के मानसिक व शारारिक पीड़ा 24 घंटे सहन करनी पड़ती हो,।वो ओर कर भी क्या सकती है।समाज के डर से,सिर्फ सहना जिसकी नियति बन गई हो ,वो ओर क्या कर सकती है बस एक कोशिश।। क्योंकि औरत को इस दकियानूसी समाज मे अगर जीना है तो मुँह कान ओर जबान सब बन्द करके,रहना पड़ेगा।और कोशिश करनी पड़ेगी की वो सिर्फ कोशिश ही करती रहे।,,,,,,,,,ढेर सारे प्रश्न चिन्हों के साथ।. 

ब्लॉग के लिये।।    
सुनीता शर्मा कलमकार।मंदसौर।मध्य प्रदेश।
हिंदुस्तान

शनिवार, 18 सितंबर 2021

रचनाकार :- आ. सीमा शर्मा जी 🏆🏅🏆

नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
क्रमांक- 337
विषय -प्रेम की गागर
दिन- शनिवार 
विधा -कविता 
दिनांक- 18 /9 /2021


नहीं झलकती प्रेम की गागर हरदम यूहीं
नहीं सरसता प्रेम का सागर हर पल यूहीं
नहीं बरसता नेह का बादल हरदम यूही
खिलते नहीं हैं सुमन बगीचों मे  यूहीं

बहती नहीं प्रेम की नदियाँ हरदम यूही
यह तो बहती हैं ही उफान आने पर ही 
लिखती है कलम  विचार आने पर ही
नहीं झलकती प्रेम की गागर हरदम यूही

जीवन सबका लगता नहीं सरल सबको
सुख  मिले सभी को नहीं है मुमकिन 
प्रेम की गागर झलकी थी राधा के मन में 
प्रेम का पौधा पनपा था मीरा के मन में 

सूरदास की लगी लगन थी श्री कृष्णा से
तुलसी की मिट गई तृष्णा राम लेखन से
मेरा भी मन पावन हो इनके आचरण से
जीवन हो सरल इनके अनुसरण से।।

स्वरचित एवं मौलिक
सीमा शर्मा कालापीपल
ब्लॉग के लियेb

नमन मंच 
कलम बोलती है साहित्य समूह 
क्रमांक -338 
विषय -श्राद्ध पक्ष 
दिन -गुरुवार 
दिनांक -23/9/ 2021 

श्राद्ध पक्ष है आया 
पित्रों का मन हर्षाया 
अपने स्वजनों से मिलने का
फिर से अवसर आया 
अपने पूर्वजो को 
मनाने का अवसर आया

श्राद्ध पक्ष है आया
पितरों का मन हर्षाया

द्वारे पर रंगोली बनाओ
फूल और पत्तों से उसे सजाओ 
अपने पितरों को
 रिझाने का समय आया
श्राद्ध पक्ष है आया 
पितरों का मन हर्षाया

प्रेम से खीर और पुड़ी बनाओ 
अपने पित्रों को  को भोग लगाओ
प्रेम से उनकों जिमाने का अवसर आया
श्राद्ध पक्ष है आया
पितरों का मन हर्षाया

हमारे पूर्वजों का ऋण 
कम नही हमारे सिर पर 
क्या क्या दुख उठाकर 
हमें लायक बनाया
अपने पितरों पितामहों के
ऋण चुकाने का समय आया
श्राद्ध पक्ष है आया
पितरों का मन हर्षाया

जीवन भर था उन्हें सताया
उसके पश्चाताप का अवसर आया
कुछ कर्म कर उनसे आशीष
बरसाने का पल आया
श्राद्ध पक्ष है आया
पितरों का मन हर्षाया

अशिवन पूनम को 
सबके घरों में पधारे
पितृमोक्ष अमावस्या को
छोड़ कर विदा हो जायेंगे
फल फूल वस्त्र देकर
उनकों संतुष्ट करके
विदा करनें का अवसर आया

श्राद्ध पक्ष है आया
पितरों का मन हर्षाया 
अपने स्वजनों से फिर से 
मिलने का अवसर आया

स्वरचित एवं मौलिक
सीमा शर्मा 
कालापीपल मध्यप्रदेश
ब्लॉग के लिये सहर्ष






शुक्रवार, 17 सितंबर 2021

रचनाकार :- आ ओम प्रकाश आस जी 🏆🏅🏆

नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समुह
बिषय#बावरा मन
विधा#कविता।
**************
बन परिन्दा उडता है नील गगन।
ख्वाबो को बुनता है बावरा मन।।

चंचल चित  पल पल में उडता।
ढूढे कही बसेरा,ठाँव अपनापन।।
  
सुन्दर स्वप्न पिरोये भटक रहा है
मंजिल की चाहत में खटक रहा।

सुख चैन का नींद  किया हराम।
खुद गैरो की मंजिल झाँक रहा।।

कुछ सहमा सहमा सा रह कर।
अपना सर्बस्व लुटाना ओ चाहे।

पर पागल दिल मान सका ना
मन बावरा सोच जाल बिछाने।।

नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समुह
बिषय#बावरा मन
विधा#कविता।
**************
बन परिन्दा उडता है नील गगन।
ख्वाबो को बुनता है बावरा मन।।

चंचल चित  पल पल में उडता।
ढूढे कही बसेरा,ठाँव अपनापन।।
  
सुन्दर स्वप्न पिरोये भटक रहा है
मंजिल की चाहत में खटक रहा।

सुख चैन का नींद  किया हराम।
खुद गैरो की मंजिल झाँक रहा।।

कुछ सहमा सहमा सा रह कर।
अपना सर्बस्व लुटाना ओ चाहे।

पर पागल दिल मान सका ना
मन बावरा सोच जाल बिछाने।।

ओम प्रकाश आस
बौठा बरही गोरखपुर
यह रचना स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

(ब्लॉग हेतू)
बौठा बरही गोरखपुर
यह रचना स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

(ब्लॉग हेतू)

रचनाकार :- आ. सुनीता परसाई जी 🏆🏅🏆

पटल को नमन🙏
कलम बोलती है, साहित्य समूह
15/9/21, बुधवार
विधा :-मुक्तक
विषय :-बावरा मन

🌹बावरा मन🌹

बावरा मन ढूंढे चहुं ओर,
बंधी है  प्रीत की डोर।

प्रेम की सलोनी जोड़ी,
देख श्याम, राधा दौड़ी।

मुरली की धुन सुनकर,
सखियां आती मिलकर।

मथुरा में था जन्म लिया ,
 यशोमति को था सताया ।

राधा संग रास खेला,
था रसरंग का वो रेला।

राधा का साथ छोड़ा,
बिछड़ गया था जोड़ा।

 मिलन की नहीं थी आस,
 बावरे मन को था आभास।।

निहारती रहती थी राह,
 निकलती सदा थी आह।

अब आ जाओ गिरधारी,
मैं तो तुम से हूॅं हारी।

           स्वरचित रचना
      🌹सुनीता परसाई 🌹
            जबलपुर, मप्र

ब्लाग के लिए 🙏

रचनाकार :- आ. ममता गुप्ता जी 🏆🏅🏆


जय माँ शारदे
विषय क्रमांक-335
विषय-बावरा मन
विधा-कविता
दिनांक-१५/९/२०२१

बावरा मन बड़ा चंचल,जाने क्यों बन कर अचल।
बस चिंतन के सरोवर में ,बहता जाता है अविरल।
बावरा मन कहाँ कब कुछ समझ पाता है
हर वक्त यह बच्चो की तरह मचल जाता है।
कभी चाहता है,आसमां के तारे तोड़कर लाना
कभी चाहता है,चाँद को अपने घर लाना।
कभी चाहता है, पक्षी बनकर स्वछंद उड़ जाना।
कभी चाहता है,नदियों की तरह सागर में मिल जाना
चाहता है,फूल बन अपनी महक से बगिया महकाना।
जितना कुछ यह बावरा मन करना चाहता है।
अपनी मुट्ठी में सारे जहां की खुशियां समेटना चाहता है।
कुछ पाने की खुशी,कुछ खोने का डर सताता है।
इस उथल पुथल में मन हमेसा बेचैन सा रहता है।
मै कैसे समझाऊं ,इस बावरे मन को
अशान्त मन नकारात्मक विचारों को जन्म देता है
सकारात्मक सोच,सब्र का फल हमेशा मीठा होता है।
ए मेरे बावरे मन तू बस आज में "जी" 
क्यो कल के लिए परेशान होता है।

#ब्लॉग

©️ममता गुप्ता✍️
अलवर राजस्थान

गुरुवार, 16 सितंबर 2021

रचनाकार :- आ. साधना तिवारी "रीवा" जी 🏆🏅🏆

नमन मंच🙏
कलम बोलती साहित्य समूह
विषय बावरा मन
विधा  स्वैच्छिक

बावरा सा मन ये मेरा
जाने किस ओर है चला
कुछ सोचे और ना समझे
न देखे अपना भला और बुरा
बावरा सा....।

चंचलता है इसमें भरी
नई उमंगों के साथ चला
खुशियों को समेटे हुए
बिन पंखो के है उडा।
बावरा सा .....।

पल दो पल का ये जीवन
इसको जी लो अब तुम जरा
राह मुश्किल से मिलती है प्यार की,
उसी राह पर है यह चला।
बावरा सा.....।

कहते हैं शांत और सीधा है ये
पर दिल को यही भटकाये 
जैसे नदिया में कोई भवर उठता जाये।
 अनकहे रिश्तो को यह पास बुलाए,
बावरा मन ...।

सुख-दुख का अहसास कराए
करे शिकायतें खुद से, और खुद ही समझाए,
बावरा मन मेरा खुद में ही उलझता जाए।
बावरा मन ....।

स्वरचित एवं मौलिक
साधना तिवारी रीवा
 मध्य प्रदेश

रचनाकार :- आ. रामगोपाल प्रयास जी 🏆🏅🏆

नमन _मंच
विषय_गणपति आराधना 
व़िधा _स्व़ेच्छ़िक
दिनांक_११/०९/२१

विधा _रोल़ा 
समीक्षार्थ


गणपति ज्ञान निधान ,कृपा अब हम पर कीज़े ।
भरा   ज्ञान  भंडार , तनिक  सबको  ही  द़ीजे ।

मेटो   सबके  विघ्न , व़िघ्न  को   हरने  व़ाल़े ।
हो जायें खुश हाल , पड़े   न  दुखों  से  पाले ।

वक्र त़ुंड से सीख ,  सदा ही  हिलती डुलती ।
रहो न अक्रिया श़ील, आप से ये ही कहती ।

गज आनन भगवान , आप की वंदना करत़े ।
राग  द्वेष  से मुक्त , करें  प्रभ़ु ‌‌ त़ुमसे   कहते । 

सूर्पकर्ण भगवान , दया  हम  पर  बरस़ाय़ें ।
रहे    बुऱाई     दूर , सदा  ही  हम हरष़ाय़ें  ।

स्वरचित
रामगोपाल प्रयास

रचनाकार :- आ. अजय केशरी "अजेय" जी 🏆🏅🏆

नमन कलम बोलती है मंच 
 विधा - स्वतंत्र  (चोपाई छंद)
 विषय :- श्री गणपति देवा 
 दिनांक :- 11.09.2021  शनिवार 

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       गणपति  गणपति    मेरे      देवा
       तन   की   सारी     पीरा   लेवा l
       मुसक   सवारी     तेरो     वाहन    
       नरम  करे  बस तू  सब  पाहन ll
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       पार्वती   के    बाल   हो    लाला
       रोक  दिये  थे   शिव  के  चाला l
       क्रोध  में   जब  त्रिशूल    उठाए
       माँ को फिर तुम  ध्यान  दिलाए ll
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       बड़ा   शोर   जब    होने    लागे 
       सब  की   बुद्धि  उठकर  भागे l
       तब  जाकर    गजराजा    लाये
       उनके  धड  से  शीष  मिलाये ll
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       नये    रूप    में    आये    दाता
       देती  वर   फिर   प्यारी   माता l
       पहला   पूजन    आपा    होगा
       यार    भगेगा   मनका    रोगा ll
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                 द्वारा :- 🖋️🖋️
           अजय केशरी  "अजेय" 
     दुधीचुआ सिंगरौली (मध्य प्रदेश)
  ( स्वरचित स्वकल्पित मौलिक रचना)

रचनाकार :- आ. मीनाक्षी दीक्षित जी 🏆🏅🏆

सादर नमन कलम बोलती है मंच
११/०९२०२१      शनिवार
द्विदिवसीय प्रतियोगिता
विषय क्रमांक  -   ३३३
विषय --  गणेश वंदना
विधा-      स्वतंत्र (रोला छंद)
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काटो संकट क्लेश,      गजानन गौरीनंदन।
तव चरणों की धूल,     भक्त माथे का चंदन।
दूर्वा मोदक भेंट,       करूँ देवा अभिनन्दन।
ऋद्धि-सिद्धि के साथ, विराजे गणपति वंदन।।

ऋद्धि-सिद्धि शुभ-लाभ, प्रदाता हे शिव नंदन!
संकट विकट विनाश,    करो देवा दुखभंजन।
मंगलमूर्ति स्वरूप,     कीजिए गणपति सेवा ।
मनवांछित फल प्राप्त, प्रदाता गणपति देवा।।

मीनाक्षी दीक्षित
भोपाल मध्यप्रदेश
पूर्णतः स्वरचित मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित

रचनाकार :- आ. अनु तोमर जी 🏆🏅🏆

नमन मंच
कलम बोलती है
दिनांक -११.०९.२१
विषय - श्री गणेश जी की आराधना
विद्या - स्वैच्छिक
मंगल मूरति, दया निधान।
मूषक पर होकर सवार।
रिद्धि -सिद्धि को साथ लेकर,
लम्बोदर गौरा जी के लाल।
लक्ष्मी जी को साथ लेकर,
हाथ जोड़ मैं पुकार रहा हूं।
दुर्बल काया ,दीन हीन हूं।
तेरे द्वार पर आ न पाया।
हे कष्ट निवारक, बुद्धि के दाता ।
घर के द्वारे खोल दिये हैं सारे।
आओ गणपति मेरे द्वारे।
जो भी कुछ, मेरे पास है बप्पा,
सब तुझ पर न्यौछावर है।
आसन तेरा सजा रखा है।
मोदक प्रिय एक दन्त धारी,
आशा का दीप जला रखा है।
सबके संकट हर लो। कृपासिंधु
छाया है महामारी का घोर अंधेरा।
 विघ्न विनाशक, गजानन घारी।
देर करो मत, विनती सुन लो।
 प्रथम पूज्य तुम ही हो जग में
आओ - आओ मैं शरण तुम्हारी।
स्वरचित
अनु तोमर
मोदी नगर
गाजियाबाद

रचनाकार :- आ. डॉ. राजेश पुरोहित जी 🏆🏅🏆


🙏नमन मंच🙏
#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह 
#विषय गणेश आराधना
#विषयक्रमांक 333
#दिनांक  10/09/21

हे लंबोदर हे गजानन
हे वक्रतुण्ड हे सिद्धिविनायक
हे पार्वती नंदन
शिव जी के प्यारे गजानन
हे प्रथम पूज्य
हे गणनायक
तुम ही हो सिद्धि विनायक
हे बुद्धि के दाता
हम सब के भाग्य विधाता
मूषक वाहन पर आप बिराजे
घट घट में प्रभु आप बिराजे
हे करुणा के सागर
हे जग के पालक
असुरों के संहारक
हे विध्न विनाशक
हे गौरी नंदन
थोड़ी तो दया करो
हमारा भी उद्घार करो

✍स्वरचित मौलिक
डॉ. राजेश पुरोहित

रचनाकार :- आ. डॉ. अवधेश तिवारी "भावुक"जी 🏆🏅🏆

नमन मंच
विषय-गणेश वन्दना
11/09/2021

श्री गणेश आराधना

जय जय जय जय प्रभु गणेशा,
रहना  भावुक - संग  में हमेशा।

जब  भी  मैं  हो  जाऊँ  उदास,
मेरे   हृदय    में   करके   वास,
शुभाशीष  "भावुक"  को देकर
गणपति   भर    देना   विश्वास।

आप   मेरे   हो   आसपास  में
मन  को   हो  एहसास  हमेशा,

जय जय जय जय प्रभु गणेशा।

रक्षा   करना   मेरे   मान    का,
देना   दान   सतत   ज्ञान   का,
भावुक सर पर वरद  हस्त रख
जीवन    देना     सम्मान    का।

शिव - गौरा   के   राज   दुलारे
तन - मन को बल  देना  हमेशा।

जय जय जय जय प्रभु गणेशा।

प्रज्ञा , ज्ञान , शक्ति  का  वर  दे
सुख - समृद्धि , वैभव  भर   दें
जीवन   के  हर   इक   पथ  में
जहाँ  कहीं  भावुक  पग धर दें।

गौरी-सुत जय जय शिव नंदन
मिले   प्रभु  सम्मान    हमेशा।

जय जय जय जय प्रभु गणेशा,
रहना  भावुक - संग  में हमेशा।

डॉ. अवधेश तिवारी "भावुक"
नई दिल्ली
(स्वरचित एवं मौलिक)

रचनाकार :- आ. संगीता चमोली जी

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