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मंगलवार, 18 अप्रैल 2023

रचनाकार :- आ. संगीता चमोली जी






नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समुह
 विषय साहित्य सफर
 विधा कविता

दिनांक 17 अप्रैल 2023

महकती कलम की खुशबू नजर अलग हो,
साहित्य के सफर की झलक अलग हो,
दस्तख सफर में दी, तो हमने देखा,
सहयोगी पहचान बनी तो आनंद अलग है,,

बड़े खुश हैं हम जीवन में सम्मान पाकर,
बड़े सुहाने नजारे हैं साहित्य सफर में आकर,
चलती रही कलम भाव विचार लिखकर,
रात दिन चलती रही  प्यारा साहित्य सफर,

भाव हकीकत लिखने की कोशिश मेरी रही है,
हर मानव को साहित्य  पढ़कर आनंद लेना है,
इस सफर में ज्ञान और सम्मान बढ़ता रहता है,
टूटी फूटी वाणी से गुणगान गाती रहती हूं !

सच्ची श्रद्धा तन मन से लिखकर समर्पित हूं,
साहित्य के सफर में उड़ान भरना भर्ती रहती हूं,
मां शारदे यही वरदान दे पहचान चाहती हूं,
शारदे की पूजा साहित्य संदेश देना चाहते हैं !

          स्वरचित
 संगीता चमोली उत्तराखंड

रचनाकार :- आ. तरुण रस्तोगी "कलमकार" जी


🙏नमन मंच 🙏
#कलम बोलती है साहित्य समूह 
#आयोजन संख्या ५७७
#दिनांक १८/०४/२३
#विषय सफ़र
#विधा छंद मुक्त कविता 

ज़िंदगी से मायूस न होना कभी गर्दिशों भी  मुस्कुराते रहो।
दुश्वारियां जीवन में बहुत है मगर मुश्किलों को अपनी  हटाते रहो।
इम्तहांँ जिंदगी ले रही आजकल मुश्किल जीना तेरा हो गया है यहां,
मार ठोकर हवा में उड़ते उसे राह अपनी सही तुम बनाते रहो।
रुकावटें मंजिलों में मिलेगी तुझे संकटों से भरा है तुम्हारा #सफर,
हौसले को अपने डिगाना नहीं लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाते रहो।
हालातों से कभी घबराना नहीं हार कर तुम्हें बैठ जाना नहीं!
जोश में होश अपना न खोना कभी तीर निशाने पर अपना लगाते रहो।
डगमगाए जो किश्ती भंवर में तेरी छोड़ देना नहीं अपनी पतवार को,
हौसले को तू अपने जगाना जरा नाव अपनी किनारे लगाते रहो।
ज़िंदगी से मायूस न होना कभी गर्दिशों भी  मुस्कुराते रहो।
दुश्वारियां जीवन में बहुत है मगर मुश्किलों को अपनी  हटाते रहो।

तरुण रस्तोगी "कलमकार"
मेरठ स्वरचित
🙏🌹🙏

सोमवार, 17 अप्रैल 2023

रचनाकार :-आ. नफे सिंह योगी मालड़ा जी



मंच को सादर नमन
दिनांक:- 14.04.2023
विषय क्रमांक:- 576
विषय:- सुकून यही है
विधा:- स्वैच्छिक 
शीर्षक:- बड़ा सुकून मिलता है...   

     कभी ऐसा किया, करो..बड़ा सुकून मिलता है...  

कभी ऐसा किया..कि फुर्सत के लम्हों में  किसी अपरिचित गरीब  के साथ बैठकर, एक साथ खाना खाया , उसकी संवेदनाओं को, मजबूरियों को, गरीबी को करीब से देखा... कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया..  कि सर्दी में रेलवे स्टेशन पर सोये अपंग, अपाहिज ,दुखी गरीब भिखारी को अपनी कम्बल उतार कर ओढ़ाया हो, कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया..कि अकेले बुजुर्ग के पास बैठ कर उसे गौर से सुना। उसकी आँखों में आँखें डालकर उसके जवानी के दिनों की कल्पना की, कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया.. कि जब माँ बैठी हो और आपने पूछा माँ पानी ले आऊँ,या कभी सुबह -सुबह सोयी हुई माँ को
चरण स्पर्श करके कहा ...लो माँ चाय पी लो, कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया.. कि खचाखच भरी बस में अकेली महिला शांत खड़ी हो और आपने कहा हो आओ माँ जी! यहाँ बैठिए, कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया.. कि गांँव में किसी गरीब की लड़की की शादी में गुप्त दान दिया और  सम्मान के साथ सिर पर हाथ रख  आशीर्वाद दे कर भावनाओं में बहे हो, कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया .. कि बुरी तरह हारी हुई, हताश टीम के पास जाकर कभी ये कहा आप बहुत अच्छे खेले, ये लो मैं तुम्हें खुश हो कर देता हूँ, कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया .. कि आप किसी सार्वजनिक इलाके से जा रहे थे और अपने देखा कि वहाँ बहुत ज्यादा प्लास्टिक बैग बिखरे हुए हैं, आप ने बिना हिचकिचाहट के उठाए, कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया .. कि दीपावली के अवसर पर लक्ष्मी पूजा के साथ-साथ गाँव के किसी शहीद की फोटो रख उसको भी तिलक लगाया हो, कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया.. कि रक्षाबंधन के त्यौहार पर किसी बिन भाई की बहन के घर जाकर सादर भाव से राखी बंधवाई हो और उसे हर उत्सव में सम्मानित किया हो। कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी  ऐसा किया.. कि शहीद दिवस पर अपने नजदीकी गाँव में शहीद स्मारक पर दीया जलाकर सल्यूट मारा, कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया.. कि बचपन के बूढे शिक्षक ,शिक्षिका जो हमें पढ़ाया करते थे।उनके पास जाकर चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लिया और बीते दिनों को याद किया,करो बड़ा सुकून मिलता है।

नफे सिंह योगी मालड़ा©®
महेंद्रगढ़ हरियाणा

रचनाकार :- आ अनामिका_वैश्य_आईना जी



शीर्षक - सुकून 

कहीं न कहीं तो मिलेगा, बस इसी आश में 
सब भटकते यहां है, सुकूं की तलाश में.. 

कर्म के तनाव जिम्मेदारियों के भार से परे निकल
आना चाहते हैं सब, सुकून के प्रकाश में.. 

सौंप करके सुकून को स्वयं को पूर्णतया सखी 
बदलना सभी को है यहाँ, बबूल से पलाश में..

बोझ सह न पा रहे हैं लोग वक्त के प्रहार से 
जिंदगी गुज़रना उन्हें है, सुकूनी अवकाश में..

सुकून के प्रेमी संघर्षों से रहते हैं बहुत दूर 
वो लोग विचरते हैं ख्वाबों के आकाश में..

सुकून यहीं है संतोष और भक्ति में पलता
आत्म में सुकून बसा है ढूँढते जहान में ..

#अनामिका_वैश्य_आईना
#लखनऊ

शुक्रवार, 31 मार्च 2023

रचनाकार :- आ. रजनी कपूर जी



नमन मंच🙏🙏
कलम बोलती साहित्य समूह
विषय -फूल और कांटे

सच और  झूठ के  क्या  मायनें किसको पता
कितने गुमनाम हीरे आए गए किसको पता 

पत्ता - पत्ता  हो रहा  जब पत्तझड़
बसंत बहार लिख पाए किसको पता 

झिलमिल तारों से सजा है आसमाँ
कितने  टूटे  है तारे  किसको पता 

रंगबिरंगे शोख से मुस्कुरातें से फूल
कांटो की पीड़ा है कितनी किसको पता 

कुछ अश्रु जो ठहरे है नयन कोरों मे
दर्द कितना समेटे नही ,किसी को पता 

रजनी कपूर
जम्मू

रचनाकार :- आ. प्रजापति श्योनाथ सिंह "शिव" जी



"नमन मंच"
क्रमांक:- 570
दिनांक :-31/03/2023
विषय:- फूल और कांटे
विधा:- गेय पद्य
                        "फूल और कांटे "
                      _-_-_-_-_-_-_-_-_

जीवन चार दिनों का ये,आ मिल खुशियां बांटें
कहीं मिलेंगे फूल तुझे ,कहीं गढ़े पग कांटे।

विधुना का कैसा खेला,समझ परे अनजाने
सुख की चाहत भाए मन , कंटक मनु अरि समाने
सुख , दुख की फुलवारी दुनिया, वर्ग भेद सब छांटें
कहीं मिलेंगे ---------

इक पादप की इक शाखा, महिमा निरख निराली
नजर एक पालक - पोषक, इक प्यास बुझाता माली
फिर भी पुष्पित कली -भली, सुगंध - गंध मन भाते।
कहीं मिलेंगे ---------

सुख का है संसार सभी, दुःख मन सभी उतारें
दुःख का ग्राहक नहीं बने, चुभ कंटक आह निकारे
लहरें मानो भवसागर ,संग उठे ज्वार व भाटे ।
कहीं मिलेंगे--------

रक्षा सुमन करें कंटक , संभल कर हाथ लगाना
मत तोड़ो ये भाई मेरा, खुशियों भरा फ़साना
"शिव" सम्मान समय का कर,मृदूलता दरद को सांटे।
कहीं मिलेंगे --------

प्रजापति श्योनाथ सिंह "शिव"
 महेशरा, अमरोहा,उ0प्र0
स्वरचित/मौलिक

गुरुवार, 30 मार्च 2023

रचनाकार :- आ. अरविंद सिंह वत्स जी

नमन--कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक------------------569
विषय-------------कटहल की सब्जी
तिथि----------------30/03/2023
वार-------------------------गुरुवार
विधा------------------------मुक्तक
मात्राभार--------------------13,11

               #कटहल_की_सब्जी

कटहल की सब्जी बनी,मुख में आया नीर।
सब्जी खाया माँग कर,कब था भाया क्षीर।
चटनी भी थी साथ में,लिया साथ में स्वाद-
सब्जी खाया सो गया,सकल मिटाया पीर।

उदर हुआ ये लालची,फिर खाने की चाह।
बची नहीं थी रात में,सब्जी बिन थी आह।
अन्तर्मन फिर माँगता,करता बहु आवाज-
सुने कौन इस शोर जी,वत्स न भाती राह।

अरविन्द सिंह "वत्स"
प्रतापगढ़
उत्तरप्रदेश

रचनाकार :- आ. अल्का बलूनी पंत जी

सोमवार, 20 मार्च 2023

रचनाकार :- आ. मिठू डे जी, शीर्षक :- बाल श्रम और बचपन


#कलमबोलतीहैसाहित्यसमूह 
#विषयक्रमांक564
#विषय-बालश्रम और बचपन 
#विधा- लघुकथा 
#दिनांक- 17/3/2023

अब रोटी कौन ?लाएगा भाई !!- अर्थी में लेटी माँ को एक टक देखतें हुए मुन्नी पूछ रही थी अपने आठ साल के बड़े भाई से!!
संजू बिलग बिलग कर रो रहा था!!अचानक बहन के इस सवाल से वो भी कुछ पल के लिए रोना भूल गया!!संजू!मुन्नी की तरफ़ पलट देखा तो देखा मुन्नी एक टक माँ की तरफ़ देखें जा रही है!उसकी आंखों में एक बूंद भी आंसू नहीं है एक अजीब सा सन्नाटा है !हाँ!!चेहरे पे एक अजीब सा भाव है!शायद रोटी की फिक्र!!
मुन्नी- भाई!माँ!तो मर गई अब रोटी कौन लाएगा?
संजू !बहन को गले लगाते हुए बोला- मैं  लाऊंगा!!

       आठ साल का संजू अपनी और अपनी बहन की पेट की आग बुझाने के लिए एक बीड़ी कारखाने में काम पर लग !!
धीरे-धीरे दम घूंटता माहौल में संजू नन्हे-नन्हे हाथो से बीड़ी के पत्तियों में तंबाकू लपेटना सिख गया!शायद उसकी किस्मत की लकीरे भी उस दम घूंटते माहौल में 
दम तोड़नें लगा!!
बचपन ना जाने कहाँ खो गया??

✍मिठु डे मौलिक (स्वरचित )

वर्धमान-वेस्ट बंगाल

मंगलवार, 14 मार्च 2023

रचनाकार :- आ. शशि मित्तल अमर जी, शीर्षक :- शीतलता




नमन मंच (कलम बोलती है साहित्य समूह)
१५/३/२०२३
विषय--शीतलता
संचालन --आ.कन्हैयालाल गुप्त जी

सादर समीक्षार्थ

          #शीतलता 
--------------0---------

मन को जो शीतलता दे ,
ऐसा गीत कहाँ से गाऊँ 
मन मेरा है उदास
खुशी के सुर कैसे सजाऊँ?

जीवन में मिलना बिछुड़ना क्यों
क्या यही जग का नियम है..
जो आया है वो जाएगा 
फिर क्यूं दिल में तड़पन है???
ऐ दिल तू ही बता मुझको
मैं कैसे मन को समझाऊँ ?

मन को शीतलता दे 
ऐसा गीत कहाँ से गाऊँ??

पन्ने पलटे डायरी के ,
कुछ गुलाब की पंखुरियां 
बिखर ,मुस्कुराई 
ठंडक पहुंची दिल को..
याद किसी की आई
नई -पुरानी बतियां
दिल में मुस्कुराई,
कुछ यादों से 
आँखें भर आई
कुछ  यादें
मन ही मन मुस्कुराई...
कानों में हौले से
राग नया सुना गई
यही तो जीवन है
सुख -दु:ख तो 
आना - जाना
मत हो उदास
मीत तुम्हारा है साथ
गीत खुशी के गाओ
जीवन में हर सुर-साज़ सजाओ!!

*शशि मित्तल "अमर"*
स्वरचित

रचनाकार -आ. संजीव कुमार भटनागर जी

नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक_ 562
विषय  पथिक तू चलता चल
विधा  कविता
दिनांक ..13 मार्च 2023 
वार : सोमवार

ओ पथिक तू चलता चल
राह में होंगे थकान के पल,
नहीं रुक पथ में तू कभी
जीत के पाएगा सुखद पल|

मंज़िल नहीं है अब दूर तेरी
साहस की तेरे आयी घड़ी,
कंटको को तब तू रौंद देना
पथ में होगी फूलों की लड़ी|

निडर चल ज्यों नदिया बहे
राह में प्रस्तर खंड भी मिले,
सागर से मिलने चलती जाती
अपनी राह वो खुद बनाती|

तूफानों से नहीं डरना तुझको
पथ विमुख नहीं होना तुझको
राह अडिग अटल पर्वत सा
विपत्तियों से है लड़ना तुझको|

सपने सब तूने जो देखे थे कल
हकीकत में उनको रंगता चल,
सूर्य तेज या गहराई सागर लिए
पथ पे पथिक तू चलता चल|

रचनाकार का नाम- संजीव कुमार भटनागर
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
मेरी यह रचना मौलिक व स्वरचित है

रचनाकार :- आ. सुनील शर्मा जी,


नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक 562
विषय पथिक तू चलता चल 
दिनांक 13.03.23
शीर्षक " बना रहे उत्साह प्रबल"

पथिक तू चलता चल
राह कितनी भी पत्थरीली हो
पग पग पर झाड़ कंटीली हो
दुर्गम ऊंचाइयां भी कभी
कर पाएं न तुझे विकल
पथिक तू चलता चल

सूरज बरसाए अग्नि बाण
या मेघ बरस करें परेशान
हर पल लगे बाधाओं भरा
निराशा का घनघोर अंधेरा
तू कस ले कमर और निश्चय अटल
पथिक तू चलता चल

न सोच कोई क्यूं साथ नहीं
हाथों में किसी का हाथ नहीं 
मंज़िल भी दिखती नहीं कहीं
राहबर का भी एहसास नहीं
जो साथ चलें उसे लेकर चल
पथिक तू चलता चल

कैसा थकना क्या रोना है
नभ छत है धरा तेरा बिछौना है
ग़र करता रहा प्रयत्न निरंतर
तो उद्देश्य बस एक खिलौना है
इस खेल में बना रहे उत्साह प्रबल
पथिक तू चलता चल

- डॉ. सुनील शर्मा
गुरुग्राम, हरियाणा

शनिवार, 11 मार्च 2023

रचनाकार :- आ. अरविंद सिंह वत्स जी


नमन---कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक-------------------561
विषय-------------------------स्वतन्त्र
तिथि-----------------11/03/2023
वार--------------------------शनिवार
विधा--------------------विधाता छन्द
मापनी---1222,1222,1222,1222

                        #रिपु_दमन

हृदय में वास मिट्टी का,अरे!सम्मान भारत है।
लुटाना जान मिट्टी पर,अरे!अरमान भारत है।
नहीं झुकना मुझे यारों,अरे!सौगन्ध खाता हूँ-
वतन यह जिंदगी देता,अरे!वरदान भारत है।

लहू तन में भरा जो है,नहीं ठंडा कभी होगा।
मिटाना है मुझे दुश्मन,नहीं दंगा कभी होगा।
मिलूँगा सामने रिपु से,नहीं पीछे हटूँगा अब-
अरे ! बदरंग धरती पे,नहीं झंडा कभी होगा।

अरविन्द सिंह "वत्स"
प्रतापगढ़
उत्तरप्रदेश

शुक्रवार, 10 मार्च 2023

रचनाकार :- आ. तरुण रस्तोगी "कलमकार"जी



🙏नमन मंच 🙏
#कलमबोलतीहैसाहित्यसमूह
#आयोजन संख्या-५६१
#प्रदत्त छंद-माधव आधारित मुक्तक मालती छंद
#सादर समीक्षार्थ 
#मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२२

वंदना  माँ  शारदे  की , मैं  सदा  करते  
रहूंगा।
भाव मन के आपको माँ ,मैं समर्पित करता रहूंगा।
दो मुझे आशीष माता, लेखनी  में  धार  होगी,
देश हित की कामनाएं ,लेख में लिखता रहूंगा।
(२)
रास कान्हा ने रचाया, नाचती सब गोपियां है।
बांसुरी की तान पर ही, झूमती सब गोपियां है ।
सांझ है कितनी सुहानी, खिल खिलाते चांद तारे,
बज रही बंसी मधुर है,होश खोती गोपियां है।

तरुण रस्तोगी "कलमकार"
मेरठ स्वरचित
🙏🌹🙏

मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023

रचनाकार :- दमयंती मिश्रा जी, शीर्षक :- बदरी और चाँद

नमन मंच कलम बोलती है
आदरणीया निकुंज शरद जानी को नमन।
क्रमांक _५५६
दिनांक _२७/२/२०२३
विषय_बदरी और चांद
हे रीत पुरानी बदली और चांदकी ।
करते रहते खेल लुका छुपी का ।
बदली ढंक  लेती अपनी ओट में,
चांद को छा जाता गहन अंधेरा ।
 चकोर पक्षी विरह में पुकारता ।
पीहू पीहू कहां हो आओ न पास ।
  बदली सुन विरह गीत हट जाती ।
     ओट से निकल चांद की शीतल,
      चांदनी सितारे निखर उठते ऐसे ।
 बरात ले आते चंदा रोहणी को ब्याहने ।
बदली के अश्रु छलक जाते बन जल ।
 धरा की प्यास बुझती, हो उठती हरित।
 है यह खेल दोनों का चला आ रहा आदिकाल से ।
है कवि की कविता लिए छंद अलंकार से परिपूर्ण।
स्वरचित दमयंती मिश्रा

रचनाकार :- आ. रजनी कपूर जी, शीर्षक :-बदरी और चाँद


नमन मंच 🙏🙏
कलम बोलती साहित्य समूह
विषय -बदरी और चाँद

सूखे -सूखे से पत्ते हैं शाख पर,
सब्ज़ पत्तो ने आड़ दे आस जगाई है।

बदली मे छिपे -छिपे से चाँद की,
हल्की सी झलक से रोशनी जगमगाई है।

विमन्सक सन्नाटा सा है हर तरफ,
यूं लगा अल्हड़ सी गज़ल किसी ने गुनगुनाई है।

एक लम्हा जब महसूस किया तुमको,
यूं लगा रूह मेरी इत्र मे नहा आई है।

मुसाफिर सा था अन्धी सी दौड़ का,
जब खोज की तो भीतर ही मंजिल पाई है।

रजनी कपूर
जम्मू

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023

रचनाकार :- आ. प्रजापति श्योनाथ सिंह "शिव" महेशरा जी, शीर्षक :- जब फसल लहलहाती है ।


"नमन मंच"
दिनांक:- 23/02/2023
विषय:- जब फसल लहलहाती है
विधा :- कविता/स्वैच्छिक
समीक्षार्थ --
                "जब फसल लहलहाती है"
               _-_-_-_-_-_-_-_-_-_-_-_-_-_

कृषक  मन  आल्हादित  होता
निरख  फसल  लहलहाती  सी
परिवारी  मन  हर्षित  उसका
नवल  उपज  जब  पक  जाती।

धरा  करे  श्रंगार  नवल
चूनर  ओढ़े  धानी  रंग
हरियाली  जैसे  डेरा
महक  रहा  तृण  तृण  अंग।
यह  मौसम  अद्भुत  अनुपम
नयी  कोंपले  शाखा  सब
उपवन  कलियां  चटक  रहीं
पुष्प  बिखेरे  सौरभ  घर।

खुशबू  सौंधी  आम्र  मंजरी
कूक रही   कोयल  काली
फुदक  फुदक  गीत  सुनाती
स्वर  सरगम  की  मतवाली।

कनक  बल्लरी  झूम  रही
रंग  सुनहरा  छाया  है
घूंघरू  स्वर  चना  घनेरा
झूमर  मसूर  पाया  है।

अलसी  के  सिर  कलसी
प्रकृति  सुंदर  माया  है।
तिलहन  - दलहन  फसलें  ये
ऋतु  बसंती  लाया  है

अद्भुत  निरखत  दृग  दृश्य
अरहर  अलि  ढूंढे  मकरंद
छटा  छबीली  सुरबाला  लख
अनुभूति  का  ले  आनंद।

हलधर  मन  दशा  विशेषी
"शिव"  बौराया  नाच  रहा
उदर  पूर्ति  भरें  भंडारे
उपज  उपज  धन   जांच  रहा।

                              प्रजापति श्योनाथ सिंह "शिव"
                                महेशरा, अमरोहा, उ0प्र0
स्वरचित/मौलिक

रचनाकार :- आ. डॉ अर्चना नगाइच जी, शीर्षक :- जब फसल लहलहाती है




नमन मंच
        कलम बोलती है साहित्य समूह
        23.02.23
         विषय ---फसल लहलहाती है
         
            चलो खेत  हल उठाओ हम है किसान
            मेहनत से धरती माता की सेवा ही काम
            भरी दुपहरी पा विटप छांव पा पल भर विश्राम
            सांझ ढले लौट घर थके श्रमजीवी किसान 

            दिन रात अथक श्रम करते सुबह शाम
            आशा उम्मीदों के आंगन खिलते पुष्प अविराम
            मौसम रंग ले आया लहलहाते खेत फसल बेलगाम
             खुशियों से भरे मन आंनदित आठों याम
             
             सकल पूंजी किसान की यही फसल लहलहाए
             घर परिवार बाल बच्चे सब आस लिये मुस्काये
             बहुत कठिन समय होता प्रकृति हो जब प्रतिकूल
              कांपते धड़कते दिल से किसान रहते धीर कूल
             आपदा विपदा सह किसान उठ नई उम्मीद संजोय
             लहलहतीं फसलें भरती जीवन में नव उत्साह ।

    स्वरचित ,मौलिक
   डॉ अर्चना नगाइच
💐💐💐💐💐💐
    23.02.23

रचनाकार :- आ मीठु डे, शीर्षक :- जब फसल लहलहाती है।


#कलमबोलतीहैसाहित्यसमूह 
#विषयक्रमांक554
#विषय- जब फसल लहलहाती है 
#विधा- कविता 
#दिनांक- 22/2/2023

जब फसल लहलहाती है !
धरा का सीना चीरकर नए !
अंकुर उग आते है !
उगाकर अन्न मेहनत का !
हमें भोजन खिलाते है!
सदा भूखों का भूख मिटाता जो !
वो मजबूर हलधर अभावों में !
गले में फाँसी लगाता क्यो?
ठिठुरती सर्दियों में चिलचिलाती धूप में !
बरसती काली घटाओं में!
आसमानी आपदाओं में !
न जाने किस किस से !
लड़ कर अपना फसल बचाता है !
कभी हार ना माने परिणाम चाहे कुछ भी हो !
फ़िर क्यों टूट जाता है वो ?
हार जाता अभावों में भूखे पेट की संघर्षों में !
उसकी तकलीफ कोई नहीं सुनता !
किस काम की ये तरक्की ??
रियायत किस काम आयेगा?
अन्न उगाने वालों की मत करो अवहेलना !!
वक्त पर संभल जाओ ये है देश के कर्णधार !!
किसान मुकर गया कभी अगर !
देश को भूखा मर जाना है !!

✍मीठु डे मौलिक (स्वरचित )

वर्धमान-वेस्ट बंगाल

बुधवार, 15 फ़रवरी 2023

रचनाकार :- आ. विमलेश जैसवाल जी, शीर्षक :- यादें



#कलम बोलती है
#विधा काव्य
#विषय यादें

सदा दिल दुखायेंगी यादें तुम्हारी
न हम भूल पाये शहादत वो भारी
कहीं लाल बिछुड़ा कहीं भाई खोया 
हुई है अकेली कहीं प्राण प्यारी 
लिया खूब बदला तसल्ली मिली भी 
मगर मांग सूनी खिली फिर न क्यारी 
बहुत कायराना है हरकत तुम्हारी 
है कैसी ये नफरत है कैसी बीमारी 
तबाही के तुम रास्ते पर चले हो 
संभल जाओ वरना बनोगे भिखारी
 स्वरचित विमलेश

रचनाकार :- आ. संगीता चमोली जी

नमन मंच कलम बोलती है साहित्य समुह  विषय साहित्य सफर  विधा कविता दिनांक 17 अप्रैल 2023 महकती कलम की खुशबू नजर अलग हो, साहित्य के ...