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मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023

रचनाकार :- दमयंती मिश्रा जी, शीर्षक :- बदरी और चाँद

नमन मंच कलम बोलती है
आदरणीया निकुंज शरद जानी को नमन।
क्रमांक _५५६
दिनांक _२७/२/२०२३
विषय_बदरी और चांद
हे रीत पुरानी बदली और चांदकी ।
करते रहते खेल लुका छुपी का ।
बदली ढंक  लेती अपनी ओट में,
चांद को छा जाता गहन अंधेरा ।
 चकोर पक्षी विरह में पुकारता ।
पीहू पीहू कहां हो आओ न पास ।
  बदली सुन विरह गीत हट जाती ।
     ओट से निकल चांद की शीतल,
      चांदनी सितारे निखर उठते ऐसे ।
 बरात ले आते चंदा रोहणी को ब्याहने ।
बदली के अश्रु छलक जाते बन जल ।
 धरा की प्यास बुझती, हो उठती हरित।
 है यह खेल दोनों का चला आ रहा आदिकाल से ।
है कवि की कविता लिए छंद अलंकार से परिपूर्ण।
स्वरचित दमयंती मिश्रा

रचनाकार :- आ. रजनी कपूर जी, शीर्षक :-बदरी और चाँद


नमन मंच 🙏🙏
कलम बोलती साहित्य समूह
विषय -बदरी और चाँद

सूखे -सूखे से पत्ते हैं शाख पर,
सब्ज़ पत्तो ने आड़ दे आस जगाई है।

बदली मे छिपे -छिपे से चाँद की,
हल्की सी झलक से रोशनी जगमगाई है।

विमन्सक सन्नाटा सा है हर तरफ,
यूं लगा अल्हड़ सी गज़ल किसी ने गुनगुनाई है।

एक लम्हा जब महसूस किया तुमको,
यूं लगा रूह मेरी इत्र मे नहा आई है।

मुसाफिर सा था अन्धी सी दौड़ का,
जब खोज की तो भीतर ही मंजिल पाई है।

रजनी कपूर
जम्मू

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023

रचनाकार :- आ. प्रजापति श्योनाथ सिंह "शिव" महेशरा जी, शीर्षक :- जब फसल लहलहाती है ।


"नमन मंच"
दिनांक:- 23/02/2023
विषय:- जब फसल लहलहाती है
विधा :- कविता/स्वैच्छिक
समीक्षार्थ --
                "जब फसल लहलहाती है"
               _-_-_-_-_-_-_-_-_-_-_-_-_-_

कृषक  मन  आल्हादित  होता
निरख  फसल  लहलहाती  सी
परिवारी  मन  हर्षित  उसका
नवल  उपज  जब  पक  जाती।

धरा  करे  श्रंगार  नवल
चूनर  ओढ़े  धानी  रंग
हरियाली  जैसे  डेरा
महक  रहा  तृण  तृण  अंग।
यह  मौसम  अद्भुत  अनुपम
नयी  कोंपले  शाखा  सब
उपवन  कलियां  चटक  रहीं
पुष्प  बिखेरे  सौरभ  घर।

खुशबू  सौंधी  आम्र  मंजरी
कूक रही   कोयल  काली
फुदक  फुदक  गीत  सुनाती
स्वर  सरगम  की  मतवाली।

कनक  बल्लरी  झूम  रही
रंग  सुनहरा  छाया  है
घूंघरू  स्वर  चना  घनेरा
झूमर  मसूर  पाया  है।

अलसी  के  सिर  कलसी
प्रकृति  सुंदर  माया  है।
तिलहन  - दलहन  फसलें  ये
ऋतु  बसंती  लाया  है

अद्भुत  निरखत  दृग  दृश्य
अरहर  अलि  ढूंढे  मकरंद
छटा  छबीली  सुरबाला  लख
अनुभूति  का  ले  आनंद।

हलधर  मन  दशा  विशेषी
"शिव"  बौराया  नाच  रहा
उदर  पूर्ति  भरें  भंडारे
उपज  उपज  धन   जांच  रहा।

                              प्रजापति श्योनाथ सिंह "शिव"
                                महेशरा, अमरोहा, उ0प्र0
स्वरचित/मौलिक

रचनाकार :- आ. डॉ अर्चना नगाइच जी, शीर्षक :- जब फसल लहलहाती है




नमन मंच
        कलम बोलती है साहित्य समूह
        23.02.23
         विषय ---फसल लहलहाती है
         
            चलो खेत  हल उठाओ हम है किसान
            मेहनत से धरती माता की सेवा ही काम
            भरी दुपहरी पा विटप छांव पा पल भर विश्राम
            सांझ ढले लौट घर थके श्रमजीवी किसान 

            दिन रात अथक श्रम करते सुबह शाम
            आशा उम्मीदों के आंगन खिलते पुष्प अविराम
            मौसम रंग ले आया लहलहाते खेत फसल बेलगाम
             खुशियों से भरे मन आंनदित आठों याम
             
             सकल पूंजी किसान की यही फसल लहलहाए
             घर परिवार बाल बच्चे सब आस लिये मुस्काये
             बहुत कठिन समय होता प्रकृति हो जब प्रतिकूल
              कांपते धड़कते दिल से किसान रहते धीर कूल
             आपदा विपदा सह किसान उठ नई उम्मीद संजोय
             लहलहतीं फसलें भरती जीवन में नव उत्साह ।

    स्वरचित ,मौलिक
   डॉ अर्चना नगाइच
💐💐💐💐💐💐
    23.02.23

रचनाकार :- आ मीठु डे, शीर्षक :- जब फसल लहलहाती है।


#कलमबोलतीहैसाहित्यसमूह 
#विषयक्रमांक554
#विषय- जब फसल लहलहाती है 
#विधा- कविता 
#दिनांक- 22/2/2023

जब फसल लहलहाती है !
धरा का सीना चीरकर नए !
अंकुर उग आते है !
उगाकर अन्न मेहनत का !
हमें भोजन खिलाते है!
सदा भूखों का भूख मिटाता जो !
वो मजबूर हलधर अभावों में !
गले में फाँसी लगाता क्यो?
ठिठुरती सर्दियों में चिलचिलाती धूप में !
बरसती काली घटाओं में!
आसमानी आपदाओं में !
न जाने किस किस से !
लड़ कर अपना फसल बचाता है !
कभी हार ना माने परिणाम चाहे कुछ भी हो !
फ़िर क्यों टूट जाता है वो ?
हार जाता अभावों में भूखे पेट की संघर्षों में !
उसकी तकलीफ कोई नहीं सुनता !
किस काम की ये तरक्की ??
रियायत किस काम आयेगा?
अन्न उगाने वालों की मत करो अवहेलना !!
वक्त पर संभल जाओ ये है देश के कर्णधार !!
किसान मुकर गया कभी अगर !
देश को भूखा मर जाना है !!

✍मीठु डे मौलिक (स्वरचित )

वर्धमान-वेस्ट बंगाल

बुधवार, 15 फ़रवरी 2023

रचनाकार :- आ. विमलेश जैसवाल जी, शीर्षक :- यादें



#कलम बोलती है
#विधा काव्य
#विषय यादें

सदा दिल दुखायेंगी यादें तुम्हारी
न हम भूल पाये शहादत वो भारी
कहीं लाल बिछुड़ा कहीं भाई खोया 
हुई है अकेली कहीं प्राण प्यारी 
लिया खूब बदला तसल्ली मिली भी 
मगर मांग सूनी खिली फिर न क्यारी 
बहुत कायराना है हरकत तुम्हारी 
है कैसी ये नफरत है कैसी बीमारी 
तबाही के तुम रास्ते पर चले हो 
संभल जाओ वरना बनोगे भिखारी
 स्वरचित विमलेश

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2023

रचनाकार :- आ. - डॉ. सुनील शर्मा जी, शीर्षक :- यादें



नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक 550
विषय यादें
दिनांक 13.02.2023
शीर्षक " यादें उन बरसातों की "

याद तुम्हारी साथ में लाई 
यादें उन बरसातों की
भीगा आंगन, भीगा आंचल
भीगी भीगी रातों की

भीगी पलकों से मुड़ मुड़ कर
देखा उन राहों की ओर
जिससे जाकर लौटे न तुम
सूख गए पलकों के कोर 

थम जाएगी नभ की रिमझिम
नैनों की बरसात नहीं
न खत आया न संदेसा
आने की भी आस नहीं

गुज़र गए यूं ही कई मौसम
पतझर क्या, मधुमास है क्या
फूल खिलें या मुरझाएं
बस टीस रही मन में इक यहां

दीप धरे देहरी पर फिर भी
बैठी हूं यही आस में गुम
कह कर गए थे आऊंगा मैं
लौट आओगे इक दिन तुम 

- डॉ. सुनील शर्मा
गुरुग्राम, हरियाणा
मौलिक एवं स्वरचित

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2023

रचनाकार :- आ. सुनीता चमोली जी, शीर्षक :- आओ वक्त के साथ चले..


विषय क्रमांक:- 547
विषय :- आओ वक्त के साथ चले। विधा :-स्वैच्छिक।समीक्षा हेतु।दिनांक :- 06 फ़रवरी 2023 
    🌹आओ वक्त के साथ चलेंं🌹
जिस परिवार से मैं स्वयं हूँ वह बहुत बडा़ है।मेरी माँ हमेशा कहा करती थी बच्चों को अपने से बडों और छोटों के साथ व्यवहार करने की शिक्षा घर से ही मिलती है।माँ एक कुशल गृहणी थी।हम बच्चों का बहुत ध्यान रखती थी।हम बच्चों को नीति शिक्षा की कहानियाँ सुनाकर हममें नैतिकता अंकुरित करती थी।एक बार की बात है गर्मियों की श्याम का समय था।मुझे और पडो़सियों के बच्चों को बुलाकर उन्होंने अपने पास बैठा लिया और कहने लगी "आओ वक्त के साथ चले"की कहानी सुनाती हूँ।उन बच्चों में मैं सबसे छोटी उम्र की थी।लेकिन मुझे भी उन्होंने अपनी गोदी में न बैठाकर और बच्चों के साथ अपने सामने बैठाया और कहानी कहने लगी-एक बार की बात है,एक व्यक्ति था वो एक महात्मा जी के पास गया और कहने लगा की गुरुजी मुझे दुःखों से कब छुटकारा मिलेगा और मैं "वक्त के साथ कब चल सकूंगा"।महात्मा जी ने उसको दो थैलियाँ दी और कहा पहली थैली में तुम्हारे पडो़सी की बुराइयाँ है इसे तुम हमेशा अपनी पीठ पर रखना और कभी खोलकर मत देखना और दूसरी पोटली में तुम्हारी बुराइयाँ रखी है इसे हमेशा अपने सामने रखना और कभी-कभी खोलकर देखते रहना।वो व्यक्ति बहुत खुश हुआ और घर चलने को हुआ तो थैलियाँ आपस मैं बदल गई।जिस थैली में उस व्यक्ति की स्वयं की बुराईयाँ  थी उसे उसने अपनी पीठ पर रख ली और पडोसियों की बुराई वाली थैली अपने हाथ में पकड़ ली।एक दो दिन तो उस व्यक्ति के शांति से बीते।लेकिन तीसरे दिन पडो़सी के घर का कचरा उसके घर के आँगन में गिरा तो वह लडने लगा।रोज ही उसके साथ कुछ न कुछ होनें लगा।एक दिन वही महात्मा जी उसके घर पहुंचे जिन्होंने उसे पोटलियाँ दी थी।उसका हाल चाल पूछने पर उसने पडोसियों के साथ लड़ाई झगडे़ वाली बात बता दी।महात्मा जी समझ गये इस व्यक्ति से कुछ गड़बड़ हो गई है।महात्मा जी ने उसकी पोटलियों को ठीक किया और चले गये।अब वह व्यक्ति किसी से कुछ नही बोलता था।शांति से घर पर रहने लगा।पडोसियों का उसके साथ व्यवहार भी बदल गया।पडो़सियों को बडा़ आश्चर्य हुआ।पडो़सी पूछते तो शान से कहता अब मैंने "वक्त के साथ चलना"- सीख लिया है।                                                                                         सुनीता चमोली ✍🏻

रचनाकार :- आ जगदीश गोकलानी "जग, ग्वालियरी" जी, शीर्षक :- आओ वक्त के साथ चले


जय माँ शारदे
नमन मंच
#कलम बोलती है साहित्य समूह
#दैनिक विषय क्रमांक - 547
दिनांक - 06/02/2023
#दिन : सोमवार
#विषय - आओ वक्त के साथ चलें
#विधा - गीत
#संचालिका -  आ. शशि मित्तल अमर जी
*****************

वक्त के साथ चलें हम, कदम से कदम मिलाकर।
मिले मौका बढ़ जाए आगे, हम वक्त को हराकर।।

साथ में वक्त की धार के , जो कोई संग बहता,
चलता जो वक्त के साथ में, हरदम आगे रहता।
रह जाए अगर तू पीछे, नहीं वक्त से गिला कर,
मिले मौका बढ़ जाए आगे, हम वक्त को हराकर।।

करता जो सलाम वक्त को, किस्मत  बदल जाती,
बनता गुलाम वक्त का, सफलता हाथ नहीं आती।
मान ले वक्त की बात को, नहीं वक्त से सिला कर,
मिले मौका बढ़ जाए आगे, हम वक्त को हराकर।।

वक्त है दौड़ लगाता, अतीत नहीं वक्त को भाता,
साथ वक्त के जो दौड़े, जीवन में सब कुछ पाता।
राह रोके वक्त अगर, रख दे तू वक्त को हिलाकर,
मिले मौका बढ़ जाए आगे, हम वक्त को हराकर

मौलिक और स्वरचित
जगदीश गोकलानी "जग, ग्वालियरी"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश

रचनाकार :- आ. सीता गुप्ता जी, शीर्षक :- राह जीवन की।


#कलम_बोलती_है_साहित्य_समूह
#विषय_क्रमांक_547 
#दिनांक_06-02-2023
#दिन_सोमवार
#विषय_आओ_वक्त_के_साथ_ चलें
#विधा_पंक्ति पर सृजन
     *राह जीवन की*
================
यह जीवन एक पहेली है!
जिसकी राह बड़ी अलबेली है।
कभी पग में कंटक देती है,
कभी मखमली सुमन बिछाती है।

कभी अश्रु कोटर होते हैं,
कभी अधर गीत भी गाते हैं।
कभी अपने पराए लगते हैं,
कभी गैर अपने हो जाते हैं।

कभी कोसों दूर की वो मंजिल!
क्षण भर में हासिल होती है।
कभी हाथ में आईं कुछ खुशियां,
एक पल में गायब होती हैं।

यह जिंदगी यूं ही पहेली बन,
अनसुलझी आगे बढ़ती है।
आओ वक्त के साथ चलें!
यही सीख वह देती है।

जो वक्त के साथ चल पाता है,
उसे जीने की राह मिल जाती है।
जो सम्मान किया उसने वक्त का,
उसे सारी खुशियां मिल जाती हैं।

✍🏻 सीता गुप्ता दुर्ग छत्तीसगढ़

सोमवार, 6 फ़रवरी 2023

रचनाकार :- आ. कन्हैयालाल गुप्त किशन जी की रचनाओं का संग्रह 🏅🏆🏅




आओ वक्त के साथ चले,मीठी मीठी बात करें,
यादों की सौगात गुने,   सौ बातों में बात चुनें,
वक्त के साथ जो चलता है, वक्त की बातें करता है,
वक्त पर वही काम आता है, वक्त से वही निपटता है,
वक्त की तो बात बड़ी, वक्त की सौगात बड़ी,
वक्त ने राम को वन भेजा, वक्त ने शिव को दग्ध किया,
हरिश्चंद्र भी वक्त के दम से, महाराजा से मरघट भंगी हुए,
वक्त के साथ चलना सीखों, वक्त की नब्ज को पहचानों,
वक्त पर वक्त की बात करो, वक्त से मत फरियाद करो।।

स्वरचित मौलिक रचना
डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन
आर्य चौक बाजार, भाटपार रानी, देवरिया, उत्तर प्रदेश, भारत २७४७०२
डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन जी:
******************************************
 गूंज रहा है गीत भारत की फिजाओं में,
जिन्दा है भारत अब भी इन अमराइयों में,
यहां के झरने सुंदर गीत गाते हैं श्रृंगार के,
हवाएं गुनगुनाती है अठखेलियों  प्यार से,
बादल भी रिमझिम रिमझिम धुन सुनाते,
ऋतुएं रंग बिरंगी छटा है सुंदर बिखेरते,
नदियों का जल निर्मल है अमृत की तरह,
यहां की मिट्टी चंदन है पूजन अर्चन तरह,
बालक है राम कृष्ण हर बालिका है राधा,
आज भी कण कण में बसे हैं राम श्याम,
जीवन के संगीत पर्व त्यौहारों में है बसे,
प्रेम प्रीति पूजा है तीज परिवारों में बसे।।
 डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन जी: 
***************************************
भारत का तिरंगा झुकना नहीं चाहिए,
बलिदानों की पारी रुकना नहीं चाहिए।
यह महावीरों की पावन पुनीत भूमि है,
यह शूरवीरों की रंगीन मनोभवी स्थली है।
यहां गौतम ने जन्म ले शांति पढ़ाया है,
महावीर ने अहिंसा का अभ्यास कराया है।
कबीर की साखियां गलियों में गूंजती है,
मीरा के पद भक्तों के मन को लूभाते है।
तुलसी का मानस लोगों के मस्तिष्क में है।
सूर के पद बाल कन्हैया का अह्लाद है।
स्वरचित मौलिक कविताएं

डॉ कन्हैयालाल गुप्त "किशन"
भाटपार रानी, देवरिया, 
उत्तर प्रदेश, भारत
२७४७०२
 डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन जी
******************************************
विकसित युवा विकसित भारत, तभी होगा क्षितिज पर भारत,
युवा अपनी सोच बदले, कौशल को कर्म का आधार बनाये,
स्वार्थ से ऊपर परमार्थ को सोचे,तब भारत की जनता को सोचे,
युवा ही बदल सकता है भारत के कायाकल्प कलेवर को,
आज का दिवस है बड़ा ही पावन, अवतरण हुए विवेकानन्द जी,
आज दिवस है युवा दिवस का, युवाओं में जोश हो पावन,
भारत तभी क्षितिज पर होगा, युवा जब होगा कर्म में कौशल,
जागेगा तभी भारत और भारतवासी होगें विश्व में अग्रतर।। 
स्वरचित मौलिक रचना डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन भाटपार रानी, देवरिया, उत्तर प्रदेश
डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन जी: 
*******************************************
धुंध
****
जीवन में भी आज कल छा गई है धुंध,
नहीं रहता है अब कोई मुझे सुध बुध।
जीवन की रफ्तार कुछ ठहर सी गई है,
अपनों से रिश्ते कुछ बिखर सी गई है।
सजाने संवारने की कोशिश में लगा हूं,
ये वक्त पर छोड़ता हूं, इसके परिणाम।
अभी जी रहा हूं जीवन को मै वर्तमान,
कौन जाए अतीत के कातिल लफड़ो में।
धुंध छंटने में समय तो लगता ही है जब,
हवाएं चलेंगी अपने अनुकूल तब होगा।
जीवन में थोड़ा सुकून, आशाएं जगेगी,
स्वर्णिम सुप्रभात भी तभी मन भाएगा।।

स्वरचित मौलिक रचना
डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन
आर्य चौक बाजार, भाटपार रानी, देवरिया, उत्तर प्रदेश, भारत
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#जय_छठी_मईया

जय छठी मईया,हम सब रहते आपकी छहिया,
बड़ा ही कठोर और निर्मल वर्त है, जानता जगत है,
चार दिनों तक घोर तपस्या,खाय नहाय से होत है,
गंगा घाट पर मईया की अराधना,अस्त सूर्य देव पूजा है,
फल पकवानों का सुंदर संग्रह, घर परिवार में सुख शांति है,
उदयाचल सूर्य देव की होती अराधना, सूर्य देव सुनते प्रार्थना है,
घाटों पर मेला सा लगा है,बहंगी का तांता सा लगा है,
देवे आशीष सुफल हो प्रार्थना, यही भक्तों की कामना है।।

स्वरचित मौलिक रचना
डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन
आर्य चौक बाजार भाटपार रानी, देवरिया, उत्तर प्रदेश 
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आज आप सूचित हो कि विश्व हिन्दी दिवस है,
इस भाषा में माधुर्य ओज और लालित्य भी है,
साहित्य समाज सभ्यता और संस्कृति दर्पण है,
भावों की अभिव्यंजना हिंदी मातृभाषा मेंही है,
हिंदी सारे संसार पर छायी   विकास भाषा है,
हिंदी के कवि लोगों की जुबान पर बसे हुए हैं,
आज हिंदी वासियों को   बहुत बहुत बधाई है,
आप सभी को विश्व हिन्दी दिवस पर बधाई है।।

 स्वरचित मौलिक रचना डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन 
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 #नववर्ष

नव वर्ष है,नव हर्ष है,नवल व्योम में नवल रवि है,
नव वर्ष की बात अलग है,इसकी सौगात अलग है,
अपने राष्ट्र की हवा नई है,अपने राष्ट्र की शान अलग है,
होंठों पर मुस्कान अलग है, दिलों के अरमान अलग है,
बसुंधरा की मान अलग है,नदी पर्वत की शान अलग है,
राजनीति के घात अलग है, न्यायालयों की जात अलग है,
हे प्रभु! देश की वायु बदल दे,नई चाल दे नई गति बल दे,
चिर नवीन को चिरंजीवी कर, देश की मर्यादा को बल दे।।

स्वरचित मौलिक रचना
डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन
आर्य चौक बाजार, भाटपार रानी, देवरिया, उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 4 फ़रवरी 2023

रचनाकार :- आ. मीनाक्षी भालेराव जी


मीनाक्षी जी की बहुत ही सुंदर रचना 
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सभी साहित्यकारों से रचनाकारों से अनुरोध है बिना पढे टिपणी ना करे 🙏🙏🙏
स्त्री 
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क्या तुम समझते हो 
स्त्री होने का दुःख ?
नहीं , तुम नहीं समझ सकते 
तुम्हें अपने पुरूष 
होंने का बहुत 
अभिमान है ।
सदियों दर सदियों तक 
तुम नहीं बदलोगे 
क्या तुम एक दिन के लिए 
केवल एक दिन के लिए 
स्त्री बनना चाहोगे 
देखना चाहोगे ।
महिने के वो सात दिन 
किस पीड़ा से गुजरती है 
जीना चाहोगे संस्कारों के
 नाम पर
शोषित होकर 
क्या तुम एक संतान को
 जन्म देकर 
नो महिने का अनुभव 
करना चाहोगे 
क्या एक दिन तुम 
चारदिवारी में 
बंद रहकर सब की देखभाल
 करना चाहोगे 
सबकी इच्छाओ की पूर्ति के लिए 
अपनी इच्छाओं का बलिदान 
 कर पाओगे 
स्त्री होने के लिए 
अहिल्या सा पत्थर होना पड़ता है 
मोक्ष के नाम पर ठोकरों में 
रहना पड़ता है 
द्रौपदी सा चीरहरण  सहना 
पड़ता है
 गली गली दुर्योधन 
भटकते हैं 
जो औरत को केवल भोग की
 वस्तु समझते हैं 
झेलना पड़ता है 
गांधारी सा अंधापन
साँस -ससुर ,पती की 
इच्छा  के कारण 
अपनी  ममता को 
छलना पड़ता है 
सिर्फ और सिर्फ पुरूष संतान को 
जिवित रखने के लिए 
कितनी बच्चियों को 
कुर्बान होना पड़ता है 
जिन्हें पैदा होने से पहले ही 
मार दिया जाता है 
फिर भी उजड़ी कोख
 लिए जिना पड़ता है 
कितनी अग्नि परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है 
सिया सा आत्मा के  जंगलों में भटकना पड़ता है 
क्या तुमने दी है कभी 
अग्नि परीक्षा 
सावित्री सा तपस्वी  
होना पड़ता है 
मृत्यु तक को हारना 
पड़ता है 
क्या  कभी  तुम अपनी 
सहचरी के लिए 
लड़े हो मौत से 
नहीं तुम तो अपने अहंकार 
 क्षणिक भूख के लिए स्त्री का 
शरीर ही नहीं 
आत्मा तक छीनबीन कर देते हो
फेंक देते हो 
मरने के लिए
उसका जिस्म तार-तार कर के 
और अपने होने पर गर्व करते हो
क्या है  
तुम्हारे पास गर्व करने 
जैसा 
जब भी  इस बात से भ्रमित हो 
के तुम 
संसार की सबसे श्रेष्ठ 
कृति हो
तो जाकर अपनी माँ से लिपट
 जाना
अपनी  बहन को देख लेना
अपनी बेटी के सर पर हाथ रख देना
 जब तुम्हें लगे के माँ की गोद से बढ़कर 
कोई जगह नहीं है संसार में 
या सुखद अहसास दुसरा नहीं है तो
स्त्री का महत्व जीवन में ही नहीं 
संसार में क्या होता है समझ लोगे 
तब तुम सही मायने में 
पुरूष कहलाओगे  ।

 मीनाक्षी भालेराव अध्यक्ष:पृथा फ़ाउन्डेशन अध्यक्ष:अक्षर अक्षर कविताओं का हिन्दी काव्य मंच

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2023

रचनाकार :- आ. शशि मित्तल "अमर" जी, शीर्षक :- धूल


नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
३/२/२०२३
विषय---धूल
विधा---लघुकथा
संचालन --आ.सुभाष कुशवाहा जी

सादर समीक्षार्थ

         #धूल
         -------
          संजय और रागिनी के बीच गाहे-बगाहे बच्चों को लेकर वाद विवाद हो ही जाता था।
        संजय को बच्चों का धूल में खेलना बहुत पसंद था, उसका कहना था बच्चे धूल-मिट्टी में खेल कर मजबूत बनते हैं और निरोगी रहते हैं। रागिनी को पसंद नहीं था कि हमारे हाई सोसाइटी के, शहर के बड़े स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे धूल -धूसरित होकर घर आएं।
उसे बड़ी कोफ्त होती थी।
        
          जितनी रागिनी को धूल से चिढ़ थी, उतना ही घरवालों को धूल से प्यार था।
             संजय तुम इतने बड़े अफसर हो, कल जब तुम्हारे बॉस अपनी फैमिली के साथ घर आए थे तब बच्चे धूल में खेल कर गंदे से घर आए तब मुझे बहुत शर्म आ रही थी। तुम समझते क्यों नहीं.......
      रोज की तना-तनी और तनाव में जीती रागिनी को  देख कर एक दिन उसके सास ससुर ने राज खोला कि संजय जो तुम्हारा पति है और बहुत बड़ा ऑफिसर  भी......यह रास्ते की #धूल #का #फूल है ।

        रागिनी की आँखों से धूल का पर्दा साफ हो चुका था।

शशि मित्तल "अमर"
स्वरचित

रचनाकार :- आ दमयंती मिश्रा जी, शीर्षक :-धूल


नमन मंच कलम बोलती है।
क्रमांक _५४६
दिनांक _३/२/२०२३
विषय _धूल 
 विधा  _लघुकथा
राम, श्याम व शंकर तीनों भाई साथ साथ रहते थे ।समय के साथ सोच बदलती है ।राम सबसे बड़ा समझदार, कर्तव्य निष्ठा, ईमानदारी सत्यनिष्ठ स्वभाव वाला था । विवाद करना व लालच स्वहित  के लिए झगड़ा  नहीं चाहता था ।
छोटे भाईयों ने उसे कुछ न दे कर माता पिता की जिम्मेदारी उसे सौंप दी ।वह मेहनत से परिवार को पालते हुए बच्चों को शिक्षित करना चाहता था ।साथ ही मां, पिता जी सेवा भी ईश्वर मानकर करता था ।
बच्चे अपने पिता मदद करते हुए आगे बढ़ रहे थे ।एक दिन माता पिता ने कहा बेटा हमारे पास कुछ नहीं है ।धन दौलत भाईयों ने ले लिया तुझे देख कर बहुत अफसोस होता है ।
शंकर बोला मां पिता जी धन दौलत तो धूल जैसे है ।आज से कर नहीं । आपकी सेवा मेरा परम कर्म कर्तव्य है ।आपके चरणों की धूल मुझे मिल रही है इसका तिलक करने से बहुत बहुत संतोषजनक धन की प्राप्ति होती उससे बड़ा धन ओर कोई नहीं ।
उसके बच्चे सुन रहे थे ।जब पढ़ कर अच्छी पोस्ट पर आरुड़ हुए तो बेटी ने दोनों खुलो को स्वर्ग बना दिया ।बेटा को सुशील सर्वगुण संपन्न बीबी मिली । उसने अपने दोनों हाथों से मां पिता सेवा की व अपने कर्म कर्तव्य को पूजा समझकर कार्य किया ।
वह कहता भ्रष्टाचार बेईमानी से कमाया धन धूल माटी है ।जो चला जाता साथ इज्जत भी धूल में मिल जाती ।
अतः दोस्तों परिवार समाज देश को आगे बढ़ाना हो तो दुर्गुणों को छोड़कर सत्य अहिंसा परमो धर्म सिद्धांत पर चलो । कभी भी आपका जीवन धूल सदृष्य न हो गया।
स्वरचित दमयंती मिश्रा गरोठ मध्यप्रदेश

बुधवार, 1 फ़रवरी 2023

रचनाकार :- आ. पूनम गुप्ता जी, शीर्षक :- संयुक्त परिवार या एकल परिवार.....


#कलम बोलती है साहित्य समूह मंच को नमन
#विषय - संयुक्त परिवार या एकल परिवार
#विधा - परिचर्चा
#दिनांक -1/2/23

देश में संयुक्त परिवार का अब चलन अब कमहो गया है। इसके विघटन होने का कारण पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित होकर लोग अब एकल परिवार में रहना पसंद करते है| देश में संयुक्त परिवार की जो मिसाल दी जाती थी वह विलुप्त होती नजर आ रही है| स्वार्थ और अमीर बनने की होड़ में संयुक्त परिवार टूट रहे हैं| आज के युग में संयुक्त परिवार से अधिक एकल परिवार का चलन लगातार बढ़ता जा रहा है एकल परिवार में कमाने और खर्चा करने पर कोई पाबंदी नहीं होती है |वहीं दूसरी ओर बड़े बुजुर्ग की सुरक्षा का कवच भी एकल परिवार में नहीं होता है एकल परिवार में लोग अपने आप को स्वतंत्र महसूस करते हैं उन्हें किसी प्रकार की दखलअंदाजी पसंद नहीं आती है इसलिए आज के युग में एकल परिवार की संख्या बढ़ती जा रही है| वर्तमान समय में यह देखा जाए तो पहले की अपेक्षा पैसा कमाने के लिए साधनों में बहुत परिवर्तन हुए हैं परिवार यदि छोटा है तो आपकी जिम्मेदारी कम होती है किसी भी प्रकार का कोई दबाब नहीं होता है आप स्वतंत्र होते हैं आप अपनी मर्जी से कोई भी कार्य कर सकते हैं| पैसा कमा लेने से वह धनी तो  बन जाते हैं लेकिन  संयुक्त   परिवार में जो खुशी मिलती है वह एकल परिवार में नहीं होती संयुक परिवार में  एक दूसरे के लिए हमदर्दी और सबका  साथ मिलता है किसी भी प्रकार की परेशानी होने पर एक साथ मिलता है | संयुक्त परिवार में सब लोग एक दूसरे की मदद करने के लिए तैयार रहते हैं| वहीं एकल परिवार में विपरीत स्थिति उत्पन्न होती हैएकल परिवार में अकेला व्यकित तनाव ग्रस्त हो जाता है| इससे वो बीमार भी रहने लगता है यह ध्यान देने योग्य बात है पश्चिमी सभ्यता को हम अपना रहे हैं पश्चिमी देश  हमारे देश की सभ्यता संस्कारों को अपनाकर संयुक्त परिवार की ओर अपने कदम बढ़ा चुके है| हमें उन को देखते हुए सीख लेनी चाहिए जो पश्चिमी देश हमारे देश से सीख लेकर आगे बढ़ रहे है| फिर भी हम अपने संस्कारों को भूल गए हैं| हमें उनको देखकर अपने संस्कृति संस्कारों को जीवित रखना है परिवार में बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद प्राप्त होता है| उनकी छत्रछाया में सब एक साथ रहते हैं संयुक्त परिवार हमारे सम्रद्धि पूर्ण देश का ढांचा है| इसे  बिखरने न दे अपने बच्चों को अपने परिवार के साथ रखें अपने माता पिता के साथ रहे बड़े बुजुर्गों को अपने साथ रखकर उनका ध्यान और उनसे बातें करें  परिवार एक महत्वपूर्ण स्थान है| जहां आप सच्चा सुख प्राप्त कर सकते हैं अपने सारे दुख परेशानी भूल कर बड़ों के साथ आंतरिक आनंद की प्राप्ति होती है| संयुक्त परिवार मैं हमेशा एक दूसरे की सहायता के लिए सब तैयार रहते हैं| दुख हो या कोई परेशानी सब मिल बांट कर आपस में प्यार से रहते हैं देश में संयुक्त परिवार की स्थिति पहले से बेहतर नहीं हैं| अब आज के युवा पीढ़ी परिवार से अलग रहने में ही अपने आप को स्वतंत्र समझती है|वह अपनी मर्जी से सब काम करना चाहते हैं| संयुक्त परिवार में सभी लोग मिलजुल कर एक साथ रहते हैं जिससे परिवार के बच्चे अपने अंदर एकता की भावना को जागृत करते हैं| देश में संयुक्त परिवार की  स्थिति को सुधारने के लिए हम युवा पीढ़ी से अपेक्षा कर सकते हैं और देश में संयुक्त परिवार की स्थिति को हम सब मिलकर मजबूत कर सके|

 पूनम गुप्ता
भोपाल

रचनाकार :- आ. अनामिका_वैश्य_आईना जी, शीर्षक :- अहिंसा

शीर्षक -अहिंसा परमो धर्म 
काव्य

सब जीवों से प्रेम कर
सब ईश्वर की सन्तान
प्रेम दया करूणा रखें
अंतस में भाव महान ..

अहिंसा परमो धर्म है
सब पालन करिए जी
कभी किसी को पीर न दे
ध्यान यही मन रखिए जी ..

जप तप ज्ञान महान है
गुण विनम्र अति जानिए
अहिंसा उपासना ईश की
गीता उपदेश ये मानिये ..

#अनामिका_वैश्य_आईना
#लखनऊ

रचनाकार :- डॉक्टर उषा मिश्रा जी, शीर्षक :-अहिंसा



"  जय मां शारदे "
कलम बोलती है साहित्य समूह नमन।
दिनांक/३१/१/२३दिन मंगलवार
विषय _ क्रमांक 544
विधा_ स्वैच्छिक
विषय :_"अहिंसा "
संचालक आदरणीय गोपाल सिन्हा जी ।
संस्थापक आदरणीय उमा वैष्णवी जी।

 "अहिंसा परमो धर्म " हम सब
बड़े गर्व से कहते हैं। किंतु इसका
पालन करने में कंजूसी कर जाते हैं।
अहिंसा को समझना बहुत जरूरी है
अहिंसा मानव मात्र को जीना सिखाती है
अहिंसा जितना मानव मात्र के लिए जरूरी है उतना ही पशु पक्षियों के लिए भी  जरूरी है। वह भी समाज का अभिन्न अंग है ।
उनको भी जीने का अधिकार हमें देना चाहिए
कमज़ोर व्यक्ति का सहारा हमें अपने आपको बनाना चाहिए। हम समर्थ हैं पशु पक्षी कमजोर! व्यक्ति अपना बचाओ रखरखाव नहीं कर सकते! इस लिए हमें समय और कुछ अर्थ की व्यवस्था अपने आपसे कटौती करके उनकी सहायता के लिए तत्पर रहना चाहिए।
हमारे देश में एक लंगोटिया संत पैदा हुआ
जिसने सत्य और अहिंसा के लिए अपना संपूर्ण जीवन लगा दिया। जिन्हें हम बड़े आदर से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम से याद करते हैं।
हमें ऐसे लोगों से नसीहत लेनी चाहिए ;और
उनके अनुसार! उनके बताए हुए रास्ते पर चलकर! अहिंसा का पाठ समझना होगा।
अभी तीन दिन पहले की ही बात है।
रात में सोने के समय सड़क पर कुत्ते भौंक रहे थे। एक सज्जन व्यक्ति ही कहूंगी उन्हें  नीद
मे बड़ा व्यवधान पहुंचा।
और वह क्रोध में भर उठे और अपनी लाइसेंसी बंदूक से उन कुत्तों के ऊपर फायर कर दिया ।
गोली दोनों  के पेट से आर पार निकल गई
एक तो उसी वक्त मर गया दूसरा कुत्ता जो फीमेल डॉग थी , वह प्रेग्नेंट थी ! काफ़ी देर
तड़पने के बाद उसकी भी मृत्यु हो गई ।
उसकी समझ में नहीं आया कि आख़िर
इतनी सर्दी में भूखे प्यासे वह क्यों भोंक रहे 
है ? एक बार देखा होता तो पता चल जाता कि कोई अजनबी गली में किस नियत से घूम रहा है। जिस के लिए वह तुम्हें  सचेतकर रहे हैं।
ऐसे हिंसक व्यक्तियों को गांधी को, गौतम बुद्ध
आदि महापुरुषों को पढ़ना चाहिए और इनसे अहिंसा का ज्ञान वर्धन करना सीखना चाहिए।

स्वरचित 🔥
डॉक्टर उषा मिश्रा🔥
कानपुर उत्तर प्रदेश 🔥

रचनाकार :- आ. संगीता चमोली जी

नमन मंच कलम बोलती है साहित्य समुह  विषय साहित्य सफर  विधा कविता दिनांक 17 अप्रैल 2023 महकती कलम की खुशबू नजर अलग हो, साहित्य के ...