"नमन मंच"
क्रमांक:- 570
दिनांक :-31/03/2023
विषय:- फूल और कांटे
विधा:- गेय पद्य
"फूल और कांटे "
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जीवन चार दिनों का ये,आ मिल खुशियां बांटें
कहीं मिलेंगे फूल तुझे ,कहीं गढ़े पग कांटे।
विधुना का कैसा खेला,समझ परे अनजाने
सुख की चाहत भाए मन , कंटक मनु अरि समाने
सुख , दुख की फुलवारी दुनिया, वर्ग भेद सब छांटें
कहीं मिलेंगे ---------
इक पादप की इक शाखा, महिमा निरख निराली
नजर एक पालक - पोषक, इक प्यास बुझाता माली
फिर भी पुष्पित कली -भली, सुगंध - गंध मन भाते।
कहीं मिलेंगे ---------
सुख का है संसार सभी, दुःख मन सभी उतारें
दुःख का ग्राहक नहीं बने, चुभ कंटक आह निकारे
लहरें मानो भवसागर ,संग उठे ज्वार व भाटे ।
कहीं मिलेंगे--------
रक्षा सुमन करें कंटक , संभल कर हाथ लगाना
मत तोड़ो ये भाई मेरा, खुशियों भरा फ़साना
"शिव" सम्मान समय का कर,मृदूलता दरद को सांटे।
कहीं मिलेंगे --------
प्रजापति श्योनाथ सिंह "शिव"
महेशरा, अमरोहा,उ0प्र0
स्वरचित/मौलिक