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शुक्रवार, 31 मार्च 2023

रचनाकार :- आ. रजनी कपूर जी



नमन मंच🙏🙏
कलम बोलती साहित्य समूह
विषय -फूल और कांटे

सच और  झूठ के  क्या  मायनें किसको पता
कितने गुमनाम हीरे आए गए किसको पता 

पत्ता - पत्ता  हो रहा  जब पत्तझड़
बसंत बहार लिख पाए किसको पता 

झिलमिल तारों से सजा है आसमाँ
कितने  टूटे  है तारे  किसको पता 

रंगबिरंगे शोख से मुस्कुरातें से फूल
कांटो की पीड़ा है कितनी किसको पता 

कुछ अश्रु जो ठहरे है नयन कोरों मे
दर्द कितना समेटे नही ,किसी को पता 

रजनी कपूर
जम्मू

रचनाकार :- आ. प्रजापति श्योनाथ सिंह "शिव" जी



"नमन मंच"
क्रमांक:- 570
दिनांक :-31/03/2023
विषय:- फूल और कांटे
विधा:- गेय पद्य
                        "फूल और कांटे "
                      _-_-_-_-_-_-_-_-_

जीवन चार दिनों का ये,आ मिल खुशियां बांटें
कहीं मिलेंगे फूल तुझे ,कहीं गढ़े पग कांटे।

विधुना का कैसा खेला,समझ परे अनजाने
सुख की चाहत भाए मन , कंटक मनु अरि समाने
सुख , दुख की फुलवारी दुनिया, वर्ग भेद सब छांटें
कहीं मिलेंगे ---------

इक पादप की इक शाखा, महिमा निरख निराली
नजर एक पालक - पोषक, इक प्यास बुझाता माली
फिर भी पुष्पित कली -भली, सुगंध - गंध मन भाते।
कहीं मिलेंगे ---------

सुख का है संसार सभी, दुःख मन सभी उतारें
दुःख का ग्राहक नहीं बने, चुभ कंटक आह निकारे
लहरें मानो भवसागर ,संग उठे ज्वार व भाटे ।
कहीं मिलेंगे--------

रक्षा सुमन करें कंटक , संभल कर हाथ लगाना
मत तोड़ो ये भाई मेरा, खुशियों भरा फ़साना
"शिव" सम्मान समय का कर,मृदूलता दरद को सांटे।
कहीं मिलेंगे --------

प्रजापति श्योनाथ सिंह "शिव"
 महेशरा, अमरोहा,उ0प्र0
स्वरचित/मौलिक

गुरुवार, 30 मार्च 2023

रचनाकार :- आ. अरविंद सिंह वत्स जी

नमन--कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक------------------569
विषय-------------कटहल की सब्जी
तिथि----------------30/03/2023
वार-------------------------गुरुवार
विधा------------------------मुक्तक
मात्राभार--------------------13,11

               #कटहल_की_सब्जी

कटहल की सब्जी बनी,मुख में आया नीर।
सब्जी खाया माँग कर,कब था भाया क्षीर।
चटनी भी थी साथ में,लिया साथ में स्वाद-
सब्जी खाया सो गया,सकल मिटाया पीर।

उदर हुआ ये लालची,फिर खाने की चाह।
बची नहीं थी रात में,सब्जी बिन थी आह।
अन्तर्मन फिर माँगता,करता बहु आवाज-
सुने कौन इस शोर जी,वत्स न भाती राह।

अरविन्द सिंह "वत्स"
प्रतापगढ़
उत्तरप्रदेश

रचनाकार :- आ. अल्का बलूनी पंत जी

सोमवार, 20 मार्च 2023

रचनाकार :- आ. मिठू डे जी, शीर्षक :- बाल श्रम और बचपन


#कलमबोलतीहैसाहित्यसमूह 
#विषयक्रमांक564
#विषय-बालश्रम और बचपन 
#विधा- लघुकथा 
#दिनांक- 17/3/2023

अब रोटी कौन ?लाएगा भाई !!- अर्थी में लेटी माँ को एक टक देखतें हुए मुन्नी पूछ रही थी अपने आठ साल के बड़े भाई से!!
संजू बिलग बिलग कर रो रहा था!!अचानक बहन के इस सवाल से वो भी कुछ पल के लिए रोना भूल गया!!संजू!मुन्नी की तरफ़ पलट देखा तो देखा मुन्नी एक टक माँ की तरफ़ देखें जा रही है!उसकी आंखों में एक बूंद भी आंसू नहीं है एक अजीब सा सन्नाटा है !हाँ!!चेहरे पे एक अजीब सा भाव है!शायद रोटी की फिक्र!!
मुन्नी- भाई!माँ!तो मर गई अब रोटी कौन लाएगा?
संजू !बहन को गले लगाते हुए बोला- मैं  लाऊंगा!!

       आठ साल का संजू अपनी और अपनी बहन की पेट की आग बुझाने के लिए एक बीड़ी कारखाने में काम पर लग !!
धीरे-धीरे दम घूंटता माहौल में संजू नन्हे-नन्हे हाथो से बीड़ी के पत्तियों में तंबाकू लपेटना सिख गया!शायद उसकी किस्मत की लकीरे भी उस दम घूंटते माहौल में 
दम तोड़नें लगा!!
बचपन ना जाने कहाँ खो गया??

✍मिठु डे मौलिक (स्वरचित )

वर्धमान-वेस्ट बंगाल

मंगलवार, 14 मार्च 2023

रचनाकार :- आ. शशि मित्तल अमर जी, शीर्षक :- शीतलता




नमन मंच (कलम बोलती है साहित्य समूह)
१५/३/२०२३
विषय--शीतलता
संचालन --आ.कन्हैयालाल गुप्त जी

सादर समीक्षार्थ

          #शीतलता 
--------------0---------

मन को जो शीतलता दे ,
ऐसा गीत कहाँ से गाऊँ 
मन मेरा है उदास
खुशी के सुर कैसे सजाऊँ?

जीवन में मिलना बिछुड़ना क्यों
क्या यही जग का नियम है..
जो आया है वो जाएगा 
फिर क्यूं दिल में तड़पन है???
ऐ दिल तू ही बता मुझको
मैं कैसे मन को समझाऊँ ?

मन को शीतलता दे 
ऐसा गीत कहाँ से गाऊँ??

पन्ने पलटे डायरी के ,
कुछ गुलाब की पंखुरियां 
बिखर ,मुस्कुराई 
ठंडक पहुंची दिल को..
याद किसी की आई
नई -पुरानी बतियां
दिल में मुस्कुराई,
कुछ यादों से 
आँखें भर आई
कुछ  यादें
मन ही मन मुस्कुराई...
कानों में हौले से
राग नया सुना गई
यही तो जीवन है
सुख -दु:ख तो 
आना - जाना
मत हो उदास
मीत तुम्हारा है साथ
गीत खुशी के गाओ
जीवन में हर सुर-साज़ सजाओ!!

*शशि मित्तल "अमर"*
स्वरचित

रचनाकार -आ. संजीव कुमार भटनागर जी

नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक_ 562
विषय  पथिक तू चलता चल
विधा  कविता
दिनांक ..13 मार्च 2023 
वार : सोमवार

ओ पथिक तू चलता चल
राह में होंगे थकान के पल,
नहीं रुक पथ में तू कभी
जीत के पाएगा सुखद पल|

मंज़िल नहीं है अब दूर तेरी
साहस की तेरे आयी घड़ी,
कंटको को तब तू रौंद देना
पथ में होगी फूलों की लड़ी|

निडर चल ज्यों नदिया बहे
राह में प्रस्तर खंड भी मिले,
सागर से मिलने चलती जाती
अपनी राह वो खुद बनाती|

तूफानों से नहीं डरना तुझको
पथ विमुख नहीं होना तुझको
राह अडिग अटल पर्वत सा
विपत्तियों से है लड़ना तुझको|

सपने सब तूने जो देखे थे कल
हकीकत में उनको रंगता चल,
सूर्य तेज या गहराई सागर लिए
पथ पे पथिक तू चलता चल|

रचनाकार का नाम- संजीव कुमार भटनागर
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
मेरी यह रचना मौलिक व स्वरचित है

रचनाकार :- आ. सुनील शर्मा जी,


नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक 562
विषय पथिक तू चलता चल 
दिनांक 13.03.23
शीर्षक " बना रहे उत्साह प्रबल"

पथिक तू चलता चल
राह कितनी भी पत्थरीली हो
पग पग पर झाड़ कंटीली हो
दुर्गम ऊंचाइयां भी कभी
कर पाएं न तुझे विकल
पथिक तू चलता चल

सूरज बरसाए अग्नि बाण
या मेघ बरस करें परेशान
हर पल लगे बाधाओं भरा
निराशा का घनघोर अंधेरा
तू कस ले कमर और निश्चय अटल
पथिक तू चलता चल

न सोच कोई क्यूं साथ नहीं
हाथों में किसी का हाथ नहीं 
मंज़िल भी दिखती नहीं कहीं
राहबर का भी एहसास नहीं
जो साथ चलें उसे लेकर चल
पथिक तू चलता चल

कैसा थकना क्या रोना है
नभ छत है धरा तेरा बिछौना है
ग़र करता रहा प्रयत्न निरंतर
तो उद्देश्य बस एक खिलौना है
इस खेल में बना रहे उत्साह प्रबल
पथिक तू चलता चल

- डॉ. सुनील शर्मा
गुरुग्राम, हरियाणा

शनिवार, 11 मार्च 2023

रचनाकार :- आ. अरविंद सिंह वत्स जी


नमन---कलम बोलती है साहित्य समूह
विषय क्रमांक-------------------561
विषय-------------------------स्वतन्त्र
तिथि-----------------11/03/2023
वार--------------------------शनिवार
विधा--------------------विधाता छन्द
मापनी---1222,1222,1222,1222

                        #रिपु_दमन

हृदय में वास मिट्टी का,अरे!सम्मान भारत है।
लुटाना जान मिट्टी पर,अरे!अरमान भारत है।
नहीं झुकना मुझे यारों,अरे!सौगन्ध खाता हूँ-
वतन यह जिंदगी देता,अरे!वरदान भारत है।

लहू तन में भरा जो है,नहीं ठंडा कभी होगा।
मिटाना है मुझे दुश्मन,नहीं दंगा कभी होगा।
मिलूँगा सामने रिपु से,नहीं पीछे हटूँगा अब-
अरे ! बदरंग धरती पे,नहीं झंडा कभी होगा।

अरविन्द सिंह "वत्स"
प्रतापगढ़
उत्तरप्रदेश

शुक्रवार, 10 मार्च 2023

रचनाकार :- आ. तरुण रस्तोगी "कलमकार"जी



🙏नमन मंच 🙏
#कलमबोलतीहैसाहित्यसमूह
#आयोजन संख्या-५६१
#प्रदत्त छंद-माधव आधारित मुक्तक मालती छंद
#सादर समीक्षार्थ 
#मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२२

वंदना  माँ  शारदे  की , मैं  सदा  करते  
रहूंगा।
भाव मन के आपको माँ ,मैं समर्पित करता रहूंगा।
दो मुझे आशीष माता, लेखनी  में  धार  होगी,
देश हित की कामनाएं ,लेख में लिखता रहूंगा।
(२)
रास कान्हा ने रचाया, नाचती सब गोपियां है।
बांसुरी की तान पर ही, झूमती सब गोपियां है ।
सांझ है कितनी सुहानी, खिल खिलाते चांद तारे,
बज रही बंसी मधुर है,होश खोती गोपियां है।

तरुण रस्तोगी "कलमकार"
मेरठ स्वरचित
🙏🌹🙏

रचनाकार :- आ. संगीता चमोली जी

नमन मंच कलम बोलती है साहित्य समुह  विषय साहित्य सफर  विधा कविता दिनांक 17 अप्रैल 2023 महकती कलम की खुशबू नजर अलग हो, साहित्य के ...