यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, 18 अप्रैल 2023

रचनाकार :- आ. संगीता चमोली जी






नमन मंच
कलम बोलती है साहित्य समुह
 विषय साहित्य सफर
 विधा कविता

दिनांक 17 अप्रैल 2023

महकती कलम की खुशबू नजर अलग हो,
साहित्य के सफर की झलक अलग हो,
दस्तख सफर में दी, तो हमने देखा,
सहयोगी पहचान बनी तो आनंद अलग है,,

बड़े खुश हैं हम जीवन में सम्मान पाकर,
बड़े सुहाने नजारे हैं साहित्य सफर में आकर,
चलती रही कलम भाव विचार लिखकर,
रात दिन चलती रही  प्यारा साहित्य सफर,

भाव हकीकत लिखने की कोशिश मेरी रही है,
हर मानव को साहित्य  पढ़कर आनंद लेना है,
इस सफर में ज्ञान और सम्मान बढ़ता रहता है,
टूटी फूटी वाणी से गुणगान गाती रहती हूं !

सच्ची श्रद्धा तन मन से लिखकर समर्पित हूं,
साहित्य के सफर में उड़ान भरना भर्ती रहती हूं,
मां शारदे यही वरदान दे पहचान चाहती हूं,
शारदे की पूजा साहित्य संदेश देना चाहते हैं !

          स्वरचित
 संगीता चमोली उत्तराखंड

रचनाकार :- आ. तरुण रस्तोगी "कलमकार" जी


🙏नमन मंच 🙏
#कलम बोलती है साहित्य समूह 
#आयोजन संख्या ५७७
#दिनांक १८/०४/२३
#विषय सफ़र
#विधा छंद मुक्त कविता 

ज़िंदगी से मायूस न होना कभी गर्दिशों भी  मुस्कुराते रहो।
दुश्वारियां जीवन में बहुत है मगर मुश्किलों को अपनी  हटाते रहो।
इम्तहांँ जिंदगी ले रही आजकल मुश्किल जीना तेरा हो गया है यहां,
मार ठोकर हवा में उड़ते उसे राह अपनी सही तुम बनाते रहो।
रुकावटें मंजिलों में मिलेगी तुझे संकटों से भरा है तुम्हारा #सफर,
हौसले को अपने डिगाना नहीं लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाते रहो।
हालातों से कभी घबराना नहीं हार कर तुम्हें बैठ जाना नहीं!
जोश में होश अपना न खोना कभी तीर निशाने पर अपना लगाते रहो।
डगमगाए जो किश्ती भंवर में तेरी छोड़ देना नहीं अपनी पतवार को,
हौसले को तू अपने जगाना जरा नाव अपनी किनारे लगाते रहो।
ज़िंदगी से मायूस न होना कभी गर्दिशों भी  मुस्कुराते रहो।
दुश्वारियां जीवन में बहुत है मगर मुश्किलों को अपनी  हटाते रहो।

तरुण रस्तोगी "कलमकार"
मेरठ स्वरचित
🙏🌹🙏

सोमवार, 17 अप्रैल 2023

रचनाकार :-आ. नफे सिंह योगी मालड़ा जी



मंच को सादर नमन
दिनांक:- 14.04.2023
विषय क्रमांक:- 576
विषय:- सुकून यही है
विधा:- स्वैच्छिक 
शीर्षक:- बड़ा सुकून मिलता है...   

     कभी ऐसा किया, करो..बड़ा सुकून मिलता है...  

कभी ऐसा किया..कि फुर्सत के लम्हों में  किसी अपरिचित गरीब  के साथ बैठकर, एक साथ खाना खाया , उसकी संवेदनाओं को, मजबूरियों को, गरीबी को करीब से देखा... कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया..  कि सर्दी में रेलवे स्टेशन पर सोये अपंग, अपाहिज ,दुखी गरीब भिखारी को अपनी कम्बल उतार कर ओढ़ाया हो, कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया..कि अकेले बुजुर्ग के पास बैठ कर उसे गौर से सुना। उसकी आँखों में आँखें डालकर उसके जवानी के दिनों की कल्पना की, कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया.. कि जब माँ बैठी हो और आपने पूछा माँ पानी ले आऊँ,या कभी सुबह -सुबह सोयी हुई माँ को
चरण स्पर्श करके कहा ...लो माँ चाय पी लो, कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया.. कि खचाखच भरी बस में अकेली महिला शांत खड़ी हो और आपने कहा हो आओ माँ जी! यहाँ बैठिए, कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया.. कि गांँव में किसी गरीब की लड़की की शादी में गुप्त दान दिया और  सम्मान के साथ सिर पर हाथ रख  आशीर्वाद दे कर भावनाओं में बहे हो, कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया .. कि बुरी तरह हारी हुई, हताश टीम के पास जाकर कभी ये कहा आप बहुत अच्छे खेले, ये लो मैं तुम्हें खुश हो कर देता हूँ, कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया .. कि आप किसी सार्वजनिक इलाके से जा रहे थे और अपने देखा कि वहाँ बहुत ज्यादा प्लास्टिक बैग बिखरे हुए हैं, आप ने बिना हिचकिचाहट के उठाए, कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया .. कि दीपावली के अवसर पर लक्ष्मी पूजा के साथ-साथ गाँव के किसी शहीद की फोटो रख उसको भी तिलक लगाया हो, कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया.. कि रक्षाबंधन के त्यौहार पर किसी बिन भाई की बहन के घर जाकर सादर भाव से राखी बंधवाई हो और उसे हर उत्सव में सम्मानित किया हो। कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी  ऐसा किया.. कि शहीद दिवस पर अपने नजदीकी गाँव में शहीद स्मारक पर दीया जलाकर सल्यूट मारा, कभी करो बड़ा सुकून मिलता है।

कभी ऐसा किया.. कि बचपन के बूढे शिक्षक ,शिक्षिका जो हमें पढ़ाया करते थे।उनके पास जाकर चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लिया और बीते दिनों को याद किया,करो बड़ा सुकून मिलता है।

नफे सिंह योगी मालड़ा©®
महेंद्रगढ़ हरियाणा

रचनाकार :- आ अनामिका_वैश्य_आईना जी



शीर्षक - सुकून 

कहीं न कहीं तो मिलेगा, बस इसी आश में 
सब भटकते यहां है, सुकूं की तलाश में.. 

कर्म के तनाव जिम्मेदारियों के भार से परे निकल
आना चाहते हैं सब, सुकून के प्रकाश में.. 

सौंप करके सुकून को स्वयं को पूर्णतया सखी 
बदलना सभी को है यहाँ, बबूल से पलाश में..

बोझ सह न पा रहे हैं लोग वक्त के प्रहार से 
जिंदगी गुज़रना उन्हें है, सुकूनी अवकाश में..

सुकून के प्रेमी संघर्षों से रहते हैं बहुत दूर 
वो लोग विचरते हैं ख्वाबों के आकाश में..

सुकून यहीं है संतोष और भक्ति में पलता
आत्म में सुकून बसा है ढूँढते जहान में ..

#अनामिका_वैश्य_आईना
#लखनऊ

रचनाकार :- आ. संगीता चमोली जी

नमन मंच कलम बोलती है साहित्य समुह  विषय साहित्य सफर  विधा कविता दिनांक 17 अप्रैल 2023 महकती कलम की खुशबू नजर अलग हो, साहित्य के ...